#आपको अपने जीवन में एक बार भारत क्यों आना चाहिए
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भारत को आपकी 2023 यात्रा बकेट सूची में क्यों होना चाहिए
भारत को आपकी 2023 यात्रा बकेट सूची में क्यों होना चाहिए
भारत अस्पष्ट, दर्शनीय और पर्यटन स्थलों से भरा हुआ है जो आपको फिर से देश से प्यार करने पर मजबूर कर देगा। चूंकि नया साल जल्द ही अधिक से अधिक की संभावना के साथ आ रहा है लंबे सप्ताहांत के दौरान 16 मिनी छुट्टियां, क्यों न हमारे देश की सुंदरता को एक्सप्लोर करें? चाहे वह लंबी पैदल यात्रा हो, साहसिक कार्य हो, सड़क यात्रा हो या आपके दिमाग में गैस्ट्रोनॉमिकल यात्रा हो, आपको वास्तव में इन अनुभवों को प्राप्त…
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भारत का टीकाकरण कार्यक्रम दुनिया के लिए एक केस स्टडी हो सकता है : मन की बात के दौरान पीएम मोदी.
https://soundcloud.com/narendramodi
मेरे प्यारे देशवासियो,नमस्कार! अक्सर‘मन की बात’ में, आपकेप्रश्नों की बौछार रहती है | इस बार मैंने सोचा कि कुछ अलग किया जाए, मैं आपसे प्रश्न करूँ |तो, ध्यान से सुनिए मेरे सवाल |
....Olympic में Individual Gold जीतने वाला पहला भारतीय कौन था?
....Olympic के कौन से खेल में भारत ने अब तक सबसे ज्यादा medal जीते हैं?
...Olympic में किस खिलाड़ी ने सबसे ज्यादा पदक जीते हैं?
साथियो, आप मुझे जवाब भेजेंन भेजें, पर MyGov में Olympics परजो quiz है, उसमें प्रश्नों के उत्तर देंगे तो कई सारे इनाम जीतेंगे | ऐसे बहुत सारे प्रश्न MyGovके ‘Road to Tokyo Quiz’ में हैं | आप ‘Road to Tokyo Quiz’ में भाग लें | भारत ने पहले कैसा perform किया है ? हमारी Tokyo Olympics के लिए अब क्या तैयारी है ?- ये सब ख़ुद जानें और दूसरों को भी बताएं | मैं आप सब से आग्रह करना चाहता हूँ कि आप इस quiz competition में ज़रुर हिस्सा लीजिये |
साथियो, जब बात Tokyo Olympics की हो रही हो, तो भला मिल्खा सिंह जी जैसे legendary athlete को कौन भूल सकता है !कुछ दिन पहले ही कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया | जब वे अस्पताल में थे, तो मुझे उनसे बात करने का अवसर मिला था |
बात करते हुए मैंने ��नसे आग्रह किया था | मैंने कहा था कि आपने तो 1964 में Tokyo Olympics में भारत का प्रतिनि��ित्व किया था, इसलिए इस बार, जब हमारे खिलाड़ी,Olympics के लिए Tokyo जा रहे हैं, तोआपको हमारे athletes का मनोबल बढ़ाना है, उन्हें अपने संदेश से प्रेरित करना है | वो खेल को लेकर इतना समर्पित और भावुक थे कि बीमारी में भी उन्होंने तुरंत ही इसके लिए हामी भर दी लेकिन, दुर्भाग्य से नियति को कुछ और मंजूर था | मुझे आज भी याद है 2014 में वो सूरत आए थे | हम लोगों ने एक Night Marathon का उद्घाटन किया था | उस समय उनसे जो गपशप हुई, खेलों के बारे में जो बात हुई, उससे मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली थी | हम सब जानते हैं कि मिल्खा सिंह जी का पूरा परिवार sports को समर्पित रहा है, भारत का गौरव बढ़ाता रहा है |
साथियो, जब Talent, Dedication, Determination और Sportsman Spirit एक साथ मिलते हैं, तब जाकर कोई champion बनता है |हमारे देश में तो अधिकांश खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गाँवों से निकल करके आते हैं |Tokyo जा रहे हमारे Olympic दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है | हमारे प्रवीण जाधव जी के बारे में आप सुनेंगे, तो, आपको भी लगेगा कि कितने कठिन संघर्षों से गुजरते हुए प्रवीण जी यहाँ पहुंचे हैं | प्रवीण जाधव जी, महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के एक गाँव के रहने वाले हैं | वो Archery के बेहतरीन खिलाड़ी हैं | उनके माता-पिता मज़दूरी कर परिवार चलाते हैं, और अब उनका बेटा, अपना पहला,Olympics खेलने Tokyo जा रहा है | ये सिर्फ़ उनके माता-पिता ही नहीं, हम सभी के लिए कितने गौरव की बात है | ऐसे ही, एक और खिलाड़ी हैं, हमारी नेहा गोयल जी | नेहा,Tokyoजा रही महिला हॉकी टीम की सदस्य हैं | उनकी माँ और बहनें, साईकिल की factory में काम करके परिवार का ख़र्च जुटाती हैं | नेहा की तरह ही दीपिका कुमारी जी के जीवन का सफ़र भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है | दीपिका के पिता ऑटो-रिक्शा चलाते हैं और उनकी माँ नर्स हैं, और अब देखिए, दीपिका, अब Tokyo Olympics में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज़ हैं | कभी विश्व की नंबर एक तीरंदाज़ रहीं दीपिका के साथ हम सबकी शुभकामनाएँ हैं |
साथियो, जीवन में हम जहां भी पहुँचते हैं, जितनी भी ऊंचाई प्राप्त करते हैं, जमीन से ये जुड़ाव, हमेशा, हमें अपनी जड़ों से बांधे रखता है | संघर्ष के दिनों के बाद मिली सफलता का आनंद भी कुछ और ही होता है |Tokyo जा रहे हमारे खिलाड़ियों ने बचपन में साधनों-संसाधनों की हर कमी का सामना किया, लेकिन वो डटे रहे, जुटे रहे | उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की प्रियंका गोस्वामी जी का जीवन भी बहुत सीख देता है | प्रियंका के पिता बस कंडक्टर हैं | बचपन में प्रियंका को वो बैग बहुत पसंद था, जो medal पाने वाले खिलाड़ियों को मिलता है | इसी आकर्षण में उन्होंने पहली बार Race-Walking प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था | अब, आज वो इसकी बड़ी champion हैं |
Javelin Throw में भाग लेने वाले शिवपाल सिंह जी, बनारस के रहने वाले हैं | शिवपाल जी का तो पूरा परिवार ही इस खेल से जुड़ा हुआ है | इनके पिता, चाचा और भाई, सभी भाला फेंकने में expert हैं | परिवार की यही परंपरा उनके लिए Tokyo Olympics में काम आने वाली है |Tokyo Olympic के लिए जा रहे चिराग शेट्टी और उनके partner सात्विक साईराज का हौसला भी प्रेरित करने वाला है | हाल ही में चिराग के नाना जी का कोरोना से निधन हो गया था | सात्विक भी खुद पिछले साल कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे | लेकिन, इन मुश्किलों के बाद भी ये दोनों Men’s Double Shuttle Competition में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की तैयारी में जुटे हैं |
एक और खिलाड़ी से मैं आपका परिचय कराना चाहूँगा, ये हैं, हरियाणा के भिवानी के मनीष कौशिक जी | मनीष जी खेती-किसानी वाले परिवार से आते हैं | बचपन में खेतों में काम करते-करते मनीष को boxing का शौक हो गया था | आज ये शौक उन्हें टोक्यो ले जा रहा है | एक और खिलाड़ी हैं, सी.ए. भवानी देवी जी | नाम भवानी है और ये तलवारबाजी में expert हैं | चेन्नई की रहने वाली भवानी पहली भारतीय Fencer हैं, जिन्होंने Olympic में qualify किया है | मैं कहीं पढ़ रहा था कि भवानी जी की training जारी रहे, इसके लिए उनकी माँ ने अपने गहने तक गिरवी रख दिये थे |
साथियो, ऐसे तो अनगिनत नाम हैं लेकिन ‘मन की बात’ में, मैं, आज कुछ ही नामों का जिक्र कर पाया हूँ | टोक्यो जा रहे हर खिलाड़ी का अपना संघर्ष रहा है, बरसों की मेहनत रही है | वो सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं जा रहें बल्कि देश के लिए जा रहे हैं | इन खिलाड़ियों को भारत का गौरव भी बढ़ाना है और लोगों का दिल भी जीतना है और इसलिए मेरे देशवासियों मैं आपको भी सलाह देना चाहता हूँ, हमें जाने-अनजाने में भी हमारे इन खिलाड़ियों पर दबाव नहीं बनाना है, बल्कि खुले मन से, इनका साथ देना है, हर खिलाड़ी का उत्साह बढ़ाना है |
Social Media पर आप #Cheer4India के साथ अपने इन खिलाड़ियों को शुभकामनाएँ दे सकते हैं | आप कुछ और भी innovative करना चाहें, तो वो भी ज़रूर करें | अगर आपको कोई ऐसा idea आता है जो हमारे खिलाड़ियों के लिए देश को मिलकर करना चाहिए, तो वो आप मुझे ज़रुर भेजिएगा | हम सब मिलकर टोक्यो जाने वाले अपने खिलाड़ियों को support करेंगे - Cheer4India!!!Cheer4India!!!Cheer4India!!!
मेरे प्यारे देशवासियो, कोरोना के खिलाफ़ हम देशवासियों की लड़ाई जारी है,लेकिन इस लड़ाई में हम सब साथ मिलकर कई असाधारण मुकाम भी हासिल कर रहे हैं | अभी कुछ दिन पहले ही हमारे देश ने एक अभूतपूर्व काम किया है | 21 जून को vaccine अभियान के अगले चरण की शुरुआत हुई और उसी दिन देश ने 86 लाख से ज्यादा लोगों को मुफ़्त vaccine लगाने का record भी बना दिया और वो भी एक दिन में ! इतनी बड़ी संख्या में भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccination और वो भी एक दिन में ! स्वाभाविक है, इसकी चर्चा भी खूब हुई है |
साथियो, एक साल पहले सबके सामने सवाल था कि vaccine कब आएगी ? आज हम एक दिन में लाखों लोगों को‘ Made in India’ vaccine मुफ़्त में लगा रहे हैं और यही तो नए भारत की ताक़त है |
साथियो,vaccine की safety देश के हर नागरिक को मिले, हमें लगातार प्रयास करते रहना है |कई जगहों पर vaccine hesitancy को खत्म करने के लिए कई संगठन, civil society के लोग आगे आये हैं और सब मिलकर के बहुत अच्छा काम कर रहे हैं | चलिये, हम भी, आज, एक गाँव में चलते हैं, और,उन्हीं लोगों से बात करते हैं vaccine के बारे में मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के डुलारिया गाँव चलते हैं |
प्रधानमंत्री : हलो !
राजेश : नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी |
राजेश : मेरा नाम राजेश हिरावे, ग्राम पंचायत डुलारिया, भीमपुर ब्लॉक|
प्रधानमंत्री : राजेश जी, मैंने फ़ोन इसलिए किया कि मैं जानना चाहता था कि अभी आपके गाँव में, अब कोरोना की क्या स्थिति है ?
राजेश : सर, यहाँ पे कोरोना की स्थिति तो अभी ऐसा कुछ नहीं है यहाँ I
प्रधानमंत्री : अभी लोग बीमार नहीं हैं ?
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : गाँव की जनसँख्या कितनी है? कितने लोग हैं गाँव में ?
राजेश : गाँव में 462 पुरुष हैं और 332 महिला हैं,सर |
प्रधानमंत्री : अच्छा! राजेश जी, आपने vaccine ले ली क्या ?
राजेश : नहीं सर, अभी नहीं लिए हैं |
प्रधानमंत्री : अर�� ! क्यों नहीं लिया ?
राजेश : सर जी, यहाँ पर कुछ लोगों ने, कुछ WhatsApp पर ऐसा भ्रम डाल दिया गया कि उससे लोग भ्रमित हो गए सर जी |
प्रधानमंत्री : तो क्या आपके मन में भी डर है ?
राजेश : जी सर, पूरे गाँव में ऐसा भ्रम फैला दिया था सर |
प्रधानमंत्री : अरे रे रे, यह क्या बात की आपने ? देखिये राजेश जी...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : मेरा आपको भी और मेरे सभी गाँव के भाई-बहनों को यही कहना है कि डर है तो निकाल दीजिये |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : हमारे पूरे देश में 31 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने वैक्सीन का टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : आपको पता है न, मैंने खुद ने भी दोनों dose लगवा लिए हैं |
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : अरे मेरी माँ तो क़रीब-क़रीब 100 साल की हैं, उन्होंने भी दोनों dose लगवा लिए हैं I कभी-कभी किसी को इससे बुखार वगैरह आता है, पर वो बहुत मामूली होता है, कुछ घंटो के लिए ह�� होता है |देखिए vaccine नहीं लेना बहुत ख़तरनाक हो सकता है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : इससे आप ख़ुद को तो ख़तरे में डालते ही हैं, साथ ही में परिवार और गाँव को भी ख़तरे में डाल सकते हैं |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : और राजेश जी इसलिए जितना जल्दी हो सके vaccine लगवा लीजिये और गाँव में सबको बताइये कि भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccine दी जा रही है और 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए यह मुफ़्त vaccination है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो ये आप भी लोगों को गाँव में बताइये और गाँव में ये डर का तो माहौल का कोई कारण ही नहीं है |
राजेश : कारण यही सर, कुछ लोग ने ऐसी गलत अफ़वाह फैला दी जिससे लोग बहुत ही भयभीत हो गए उसका उदाहरण जैसे, जैसा उस vaccine को लगाने से बुखार आना, बुखार से और बीमारी फ़ैल जाना मतलब आदमी की मौत हो जाना यहाँ तक की अफ़वाह फैलाई |
प्रधानमंत्री : ओहोहो... देखिये आज तो इतने रेडियो, इतने टी.वी., इतनी सारी खबरें मिलती हैं और इसलिए लोगों को समझाना बहुत सरल हो जाता है और देखिये मैं आपको बताऊँ भारत के अनेक गाँव ऐसे हैं जहाँ सभी लोग vaccine लगवा चुके है यानी गाँव के शत प्रतिशत लोग | जैसे मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : कश्मीर में बांदीपुरा ज़िला है, इस बांदीपुरा ज़िले में एक व्यवन(Weyan)गाँव के लोगों ने मिलकर 100%, शत प्रतिशत vaccine का लक्ष्य बनाया और उसे पूरा भी कर दिया | आज कश्मीर के इस गाँव के 18 साल से ऊपर के सभी लोग टीका लगवा चुके हैं | नागालैंड के भी तीन गाँवों के बारे में मुझे पता चला कि वहाँ भी सभी लोगों ने 100%, शत प्रतिशत टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : राजेश जी, आपको भी अपने गाँव, अपने आस-पास के गाँव में ये बात पहुँचानी चाहिये और आप भी जैसे कहते हैं ये भ्रम है, बस ये भ्रम ही है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो भ्रम का जवाब यही है कि आपको ख़ुद को टीका लगा कर के समझाना पड़ेगा सबको | करेंगे न आप ?
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : पक्का करेंगे ?
राजेश : जी सर, जी सर | आपसे बात करने से मुझे ऐसा लगा कि मैं ख़ुद भी टीका लगाऊंगा और लोगों को इसके बारे में आगे बढ़ाऊँ |
प्रधानमंत्री : अच्छा, गाँव में और भी कोई है जिनसे मैं बात कर सकता हूँ ?
राजेश : जी है सर |
प्रधानमंत्री : कौन बात करेगा ?
किशोरीलाल : हेल्लो सर... नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी, कौन बोल रहे हैं ?
किशोरीलाल : सर, मेरा नाम है किशोरीलाल दूर्वे |
प्रधानमंत्री : तो किशोरीलाल जी, अभी राजेश जी से बात हो रही थी |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और वो तो बड़े दुखी हो करके बता रहे थे कि vaccine को लेकर लोग अलग-अलग बातें करते हैं |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : आपने भी ऐसा सुना है क्या ?
किशोरीलाल : हाँ... सुना तो हूँ सर वैसा...
प्रधानमंत्री : क्या सुना है ?
किशोरीलाल : क्योंकि ये है सर ये पास में महाराष्ट्र है उधर से कुछ रिश्तेदारी से जुड़े लोग मतलब कुछ अफ़वाह फैलाते कि vaccine लगाने से लोग सब मर रहा है, कोई बीमार हो रहा है कि सर लोगों के पास ज्यादा भ्रम है सर, इसलिए नहीं ले रहे हैं |
प्रधानमंत्री :नहीं.. कहते क्या है ? अब कोरोना ��ला गया, ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : कोरोना से कुछ नहीं होता है ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : नहीं, कोरोना चला गया नहीं बोलते सर, कोरोना तो है बोलते लेकिन vaccine जो लेते उससे मतलब बीमारी हो रहा है, सब मर रहे है | ये स्थिति बताते सर वो |
प्रधानमंत्री : अच्छा vaccine के कारण मर रहे हैं ?
किशोरीलाल : अपना क्षेत्र आदिवासी-क्षेत्र है सर, ऐसे भी लोग इसमें जल्दी डरते हैं .. जो भ्रम फैला देते कारण से लोग नहीं ले रहे सर vaccine |
प्रधानमंत्री :देखिये किशोरीलाल जी...
किशोरीलाल : जी हाँ सर...
प्रधानमंत्री : ये अफ़वाहें फैलाने वाले लोग तो अफ़वाहें फैलाते रहेंगे |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : हमें तो ज़िन्दगी बचानी है, अपने गाँव वालों को बचाना है, अपने देशवासियों को बचाना है | और ये अगर कोई कहता है कि कोरोना चला गया तो ये भ्रम में मत रहिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : ये बीमारी ऐसी है, ये बहुरूपिये वाली है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : वो रूप बदलती है... नए-नए रंग-रूप कर के पहुँच जाती है |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : और उसमें बचने के लिए हमारे पास दो रास्ते हैं | एक तो कोरोना के लिए जो protocol बनाया, मास्क पहनना, साबुन से बार-बार हाथ धोना, दूरी बनाए रखना और दूसरा रास्ता है इसके साथ-साथ vaccine का टीका लगवाना, वो भी एक अच्छा सुरक्षा कवच है तो उसकी चिंता करिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : अच्छा किशोरीलाल जी ये बताइये |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : जब लोग आपसे बातें करते है तो आप कैसे समझाते है लोगों को ? आप समझाने का काम करते है कि आप भी अफ़वाह में आ जाते हैं ?
किशोरीलाल : समझाएं क्या, वो लोग ज्यादा हो जाते तो सर हम भी भयभीत में आ जाते न सर |
प्रधानमंत्री : देखिये किशोरीलाल जी, मेरी आपसे बात हुई है आज, आप मेरे साथी हैं|
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : आपको डरना नहीं है और लोगों के डर को भी निकालना है | निकालोगे ?
किशोरीलाल : जी सर | निकालेंगे सर, लोगों के डर को भी निकालेंगे सर | मैं स्वयं भी ख़ुद लगाऊंगा |
प्रधानमंत्री : देखिये, अफ़वाहों पर बिल्कुल ध्यान न दें |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आप ज��नते है, हमारे वैज्ञानिकों ने कितनी मेहनत करके ये vaccine बनाई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : साल भर, रात-दिन इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने काम किया है और इसलिए हमें विज्ञान पर भरोसा करना चाहिये, वैज्ञानिकों पर भरोसा करना चाहिये | और ये झूठ फैलाने वाले लोगों को बार-बार समझाना चाहिये कि देखिये भई ऐसा नहीं होता है, इतने लोगों ने vaccine ले लिया है कुछ नहीं होता है |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और अफ़वाहों से बहुत बच करके रहना चाहिये, गाँव को भी बचाना चाहिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और राजेश जी, किशोरीलाल जी, आप जैसे साथियों को तो मैं कहूँगा कि आप अपने ही गाँव में नहीं, और गाँवों में भी इन अफ़वाहों को रोकने का काम कीजिये और लोगों को बताइये मेरे से बात हुई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : बता दीजिये, मेरा नाम बता दीजिये |
किशोरीलाल : बताएँगे सर और समझायेंगे लोगों को और स्वयं भी लेंगे |
प्रधानमंत्री : देखिये, आपके पूरे गाँव को मेरी तरफ से शुभकामनाएं दीजिये |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और सभी से कहिये कि जब भी अपना नंबर आये...
किशोरीलाल : जी...
प्रधानमंत्री : vaccine जरुर लगवाएं |
किशोरीलाल : ठीक है सर |
प्रधानमंत्री : मैं चाहूँगा कि गाँव की महिलाओं को, हमारी माताओं-बहनों को...
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : इस काम में ज्यादा से ज्यादा जोड़िये और सक्रियता के साथ उनको साथ रखिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : कभी-कभी माताएँ-बहन��ं बात कहती है न लोग जल्दी मान जाते हैं |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आपके गाँव में जब टीकाकरण पूरा हो जाए तो मुझे बताएँगे आप ?
किशोरीलाल : हाँ, बताएँगे सर |
प्रधानमंत्री : पक्का बताएँगे ?
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : देखिये, मैं इंतज़ार करूँगा आपकी चिट्ठी का |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : चलिये, राजेश जी, किशोर जी बहुत-बहुत धन्यवाद | आपसे बात करने का मौक़ा मिला |
किशोरीलाल : धन्यवाद सर, आपने हमसे बात किया है | बहुत-बहुत धन्यवाद आपको भी |
साथियो, कभी-ना-कभी, ये विश्व के लिए case study का विषय बनेगा कि भारत के गाँव के लोगों ने, हमारे वनवासी-आदिवासी भाई-बहनों ने, इस कोरोना काल में, किस तरह, अपने सामर्थ्य और सूझबूझ का परिचय दिया | गाँव के लोगों ने quarantine centreबनाए, स्थानीय ज़रूरतों को देखते हुए COVID protocol बनाए | गाँव के लोगों ने किसी को भूखा नहीं सोने दिया, खेती का काम भी रुकने नहीं दिया | नजदीक के शहरों में दूध-सब्जियाँ, ये सब हर रोज पहुंचता रहे, ये भी, गाँवों ने सुनिश्चित कियायानी ख़ुद को संभाला, औरों को भी संभाला | ऐसे ही हमें vaccination अभियान में भी करते रहना है | हमें जागरूक रहना भी है,और जागरूक करना भी है | गांवों में हर एक व्यक्ति को vaccine लग जाए,यह हर गाँव का लक्ष्य होना चाहिए | याद रखिए,और मैं तो आपको ख़ास रूप से कहना चाहता हूँ | आप एक सवाल अपने मन में पूछिये - हर कोई सफल होना चाहता है लेकिन निर्णायक सफलता का मंत्र क्या है ? निर्णायक सफलता का मंत्र है -निरंतरता |इसलिए हमें सुस्त नहीं पड़ना है, किसी भ्रांति में नहीं रहना है | हमें सतत प्रयास करते रहना है, कोरोना पर जीत हासिल करनी है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे देश में अब मानसून का सीजन भी आ गया है | बादल जब बरसते हैं तो केवल हमारे लिए ही नहीं बरसते, बल्कि बादल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बरसते हैं | बारिश का पानी जमीन में जाकर इकठ्ठा भी होता है, जमीन के जलस्तर को भी सुधारता है | और इसलिए मैं जल संरक्षण को देश सेवा का ही एक रूप मानता हूँ | आपने भी देखा होगा, हम में से कई लोग इस पुण्य को अपनी ज़िम्मेदारी मानकर लगे रहे हैं | ऐसे ही एक शख्स हैं उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के सच्चिदानंद भारती जी | भारती जी एक शिक्षक हैं और उन्होंने अपने कार्यों से भी लोगों को बहुत अच्छी शिक्षा दी है | आज उनकी मेहनत से ही पौड़ी गढ़वाल के उफरैंखाल क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट समाप्त हो गया है | जहाँ लोग पानी के लिए तरसते थे, वहाँ आज साल-भर जल की आपूर्ति हो रही है |
साथियों, पहाड़ों में जल संरक्षण का एक पारंपरिक तरीक़ा रहा है जिसे ‘चालखाल’ भी कहा जाता है , यानि पानी जमा करने के लिए बड़ा सा गड्ढा खोदना | इस परंपरा में भारती जी ने कुछ नए तौर –तरीकों को भी जोड़ दिया | उन्होंने लगातार छोटे-बड़े तालाब बनवाये | इससे न सिर्फ उफरैंखाल की पहाड़ी हरी-भरी हुई, बल्कि लोगों की पेयजल की दिक्कत भी दूर हो गई | आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि भारती जी ऐसी 30 हजार से अधिक जल-तलैया बनवा चुके हैं | 30 हजार ! उनका ये भागीरथ कार्य आज भी जारी है और अनेक लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं |
साथियों, इसी तरह यूपी के बाँदा ज़िले में अन्धाव गाँव के लोगों ने भी एक अलग ही तरह का प्रयास किया है | उन्होंने अपने अभियान को बड़ा ही दिलचस्प नाम दिया है – ‘खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में’ | इस अभियान के तहत गाँव के कई सौ बीघे खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़ बनाई गई है | इससे बारिश का पानी खेत में इकठ्ठा होने लगा, और जमीन में जाने लगा | अब ये सब लोग खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने की भी योजना बना रहे हैं | यानि अब किसानों को पानी, पेड़ और पैसा, तीनों मिलेगा | अपने अच्छे कार्यों से, पहचान तो उनके गाँव की दूर-दूर तक वैसे भी हो रही है |
साथियों, इन सभी से प्रेरणा लेते हुए हम अपने आस-पास जिस भी तरह से पानी बचा सकते हैं, हमें बचाना चाहिए | मानसून के इस महत्वपूर्ण समय को हमें गंवाना नहीं है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे शास्त्रों में कहा गया है –
“नास्ति मूलम् अनौषधम्” ||
अर्थात, पृथ्वी पर ऐसी कोई वनस्पति ही नहीं है जिसमें कोई न कोई औषधीय गुण न हो! हमारे आस-पास ऐसे कितने ही पेड़ पौधे होते हैं जिनमें अद्भुत गुण होते हैं, लेकिन कई बार हमें उनके बारे में पता ही नहीं होता! मुझे नैनीताल से एक साथी, भाई परितोष ने इसी विषय पर एक पत्र भी भेजा है | उन्होंने लिखा है कि, उन्हें गिलोय और दूसरी कई वनस्पतियों के इतने चमत्कारी मेडिकल गुणों के बारे में कोरोना आने के बाद ही पता चला ! परितोष ने मुझे आग्रह भी किया है कि, मैं ‘मन की बात’ के सभी श्रोताओं से कहूँ कि आप अपने आसपास की वनस्पतियों के बारे में जानिए, और दूसरों को भी बताइये | वास्तव में, ये तो हमारी सदियों पुरानी विरासत है, जिसे हमें ही संजोना है | इसी दिशा में मध्य प्रदेश के सतना के एक साथी हैं श्रीमान रामलोटन कुशवाहा जी, उन्होंने बहुत ही सराहनीय काम किया है | रामलोटन जी ने अपने खेत में एक देशी म्यूज़ियम बनाया है | इस म्यूज़ियम में उन्होंने सैकड़ों औषधीय पौधों और बीजों का संग्रह किया है | इन्हें वो दूर–सुदूर क्षेत्रों से यहाँ लेकर आए है | इसके अलावा वो हर साल कई तरह की भारतीय सब्जियाँ भी उगाते हैं | रामलोटन जी की इस बगिया, इस देशी म्यूज़ियम को लोग देखने भी आते हैं, और उससे ��हुत कुछ सीखते भी हैं | वाकई, ये एक बहुत अच्छा प्रय��ग है जिसे देश के अलग–अलग क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है | मैं चाहूँगा आपमें से जो लोग इस तरह का प्रयास कर सकते हैं, वो ज़रूर करें | इससे आपकी आय के नए साधन भी खुल सकते हैं | एक लाभ ये भी होगा कि स्थानीय वनस्पतियों के माध्यम से आपके क्षेत्र की पहचान भी बढ़ेगी |
मेरे प्यारे देशवासियों, अब से कुछ दिनों बाद 1 जुलाई को हम National Doctors’ Day मनाएंगे | ये दिन देश के महान चिकित्सक और Statesman, डॉक्टर बीसी राय की जन्म-जयंती को समर्पित है | कोरोना-काल में doctors के योगदान के हम सब आभारी हैं | हमारे डॉक्टर्स ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारी सेवा की है | इसलिए, इस बार National Doctors’ Day और भी ख़ास हो जाता है |
साथियों, मेडिसिन की दुनिया के सबसे सम्मानित लोगों में से एक Hippocrates ने कहा था :
“Wherever the art of Medicine is loved, there is also a love of Humanity.”
यानि ‘जहाँ Art of Medicine के लिए प्रेम होता है, वहाँ मानवता के लिए भी प्रेम होता है’ | डॉक्टर्स, इसी प्रेम की शक्ति से ही हमारी सेवा कर पाते हैं इसलिए, हमारा ये दायित्व है कि हम उतने ही प्रेम से उनका धन्यवाद करें, उनका हौसला बढ़ाएँ | वैसे हमारे देश में कई लोग ऐसे भी हैं जो डॉक्टर्स की मदद के लिए आगे बढ़कर काम करते हैं | श्रीनगर से एक ऐसे ही प्रयास के बारे में मुझे पता चला | यहाँ डल झील में एक Boat Ambulance Service की शुरुआत की गई | इस सेवा को श्रीनगर के Tariq Ahmad Patloo जी ने शुरू किया, जो एक Houseboat Owner हैं | उन्होंने खुद भी COVID-19 से जंग लड़ी है और इसी से उन्हें Ambulance Service शुरू करने के लिए प्रेरित किया | उनकी इस Ambulance से लोगों को जागरूक करने का अभियान भी चल रहा है वो लगातार Ambulance से Announcement भी कर रहे हैं | कोशिश यही है कि लोग मास्क पहनने से लेकर दूसरी हर ज़रूरी सावधानी बरतें |
साथियों, Doctors’ Day के साथ ही एक जुलाई को Chartered Accountants Day भी मनाया जाता है | मैंने कुछ वर्ष पहले देश के Chartered Accountants से, ग्लोबल लेवल की भारतीय ऑडिट फर्म्स का उपहार माँगा था | आज मैं उन्हें इसकी याद दिलाना चाहता हूँ | अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए Chartered Accountants बहुत अच्छी और सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं | मैं सभी Chartered Accountants, उनके परिवार के सदस्यों को अपनी शुभकामनाएं देता हूँ |
मेरे प्यारे देशवासियों, कोरोना के खिलाफ़ भारत की लड़ाई की एक बड़ी विशेषता है | इस लड़ाई में देश के हर व्यक्ति ने अपनी भूमिका निभाई है | मैंने “मन की बात” में अक्सर इसका ज़िक्र किया है | लेकिन कुछ लोगों को शिकायत भी रहती है कि उनके बारे में उतनी बात नहीं हो पाती है | अनेक लोग चाहे बैंक स्टाफ हो, टीचर्स हों, छोटे व्यापारी या दुकानदार हों, दुकानों में काम करने वाले लोग हों, रेहड़ी-पटरी वाले भाई-बहन हों, Security Watchmen, या फिर Postmen और Post Office के कर्मचारी- दरअसल यह लिस्ट बहुत ही लंबी है और हर किसी ने अपनी भूमिका निभाई है | शासन प्रशासन में भी कितने ही लोग अलग-अलग स्तर पर जुटे रहे हैं |
साथियों, आपने संभवतः भारत सरकार में सचिव रहे गुरु प्रसाद महापात्रा जी का नाम सुना होगा | मैं आज “मन की बात” में, उनका ज़िक्र भी करना चाहता हूँ | गुरुप्रसाद जी को कोरोना हो गया था, वो अस्पताल में भर्ती थे, और अपना कर्त्तव्य भी निभा रहे थे | देश में ऑक्सीजन का उत्पादन बढे, दूर-सुदूर इलाकों तक ऑक्सीजन पहुंचे इसके लिए उन्होंने दिन-रात काम किया | एक तरफ कोर्ट कचहरी का चक्कर, Media का Pressure - एक साथ कई मोर्चों पर वो लड़ते रहे, बीमारी के दौरान उन्होंने काम करना बंद नहीं किया | मना करने के बाद भी वो ज़िद करके ऑक्सीजन पर होने वाली वीडियों कॉन्फ्रेंस में भी शामिल हो जाते थे | देशवासियों की इतनी चिंता थी उन्हें | वो अस्पताल के Bed पर खुद की परवाह किए बिना, देश के लोगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए इंतजाम में जुटे रहे | हम सबके लिए दुखद है कि इस कर्मयोगी को भी देश ने खो दिया है , कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया है | ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनकी चर्चा कभी हो नहीं पाई | ऐसे हर व्यक्ति को हमारी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करें, वैक्सीन ज़रुर लगवाएं |
मेरे प्यारे देशवासियों, “मन की बात’ की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें मुझसे ज्यादा आप सबका योगदान रहता है | अभी मैंने MyGov में एक पोस्ट देखी, जो चेन्नई के थिरु आर.गुरुप्रसाद जी की है | उन्होंने जो लिखा है, वो जानकर आपको भी अच्छा लगेगा | उन्होंने लिखा है कि वो “मन की बात” programme के regular listener हैं | गुरुप्रसाद जी की पोस्ट से अब मैं कुछ पंक्तियाँ Quote कर रहा हूँ | उन्होंने लिखा है,
जब भी आप तमिलनाडु के बारे में बात करते हैं, तो मेरा Interest और भी बढ़ जाता है |
आपने तमिल भाषा और तमिल संस्कृति की महानता, तमिल त्योहारों और तमिलनाडु के प्रमुख स्थानों की चर्चा की है |
गुरु प्रसाद जी आगे लिखते हैं कि – “मन की बात” में मैंने तमिलनाडु के लोगों की उपलब्धियों के बारे में भी कई बार बताया है | तिरुक्कुरल के प्रति आपके प्यार और तिरुवल्लुवर जी के प्रति आपके आदर का तो कहना ही क्या ! इसलिए मैंने ‘मन की बात’ में आपने जो कुछ भी तमिलनाडु के बारे में बोला है, उन सबको संकलित कर एक E-Book तैयार की है | क्या आप इस E-book को लेकर कुछ बोल���ंगे और इसे NamoApp पर भी release करेंगे ? धन्यवाद |
‘ये मैं गुरुप्रसाद जी का पत्र आप के सामने पढ़ रहा था |’
गुरुप्रसाद जी, आपकी ये पोस्ट पढ़कर बहुत आनंद आया | अब आप अपनी E-Book में एक और पेज जोड़ दीजिये |
..’नान तमिलकला चाराक्तिन पेरिये अभिमानी |
नान उलगतलये पलमायां तमिल मोलियन पेरिये अभिमानी |..’
उच्चारण का दोष अवश्य होगा लेकिन मेरा प्रयास और मेरा प्रेम कभी भी कम नहीं होगा | जो तमिल-भाषी नहीं हैं, उन्हें मैं बताना चाहता हूँ गुरुप्रसाद जी को मैंने कहा है –
मैं तमिल संस्कृति का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ |
मैं दुनिया की सबसे पुरानी भाषा तमिल का बड़ा प्रशंसक हूँ |
साथियों, हर हिन्दुस्तानी को, विश्व की सबसे पुरातन भाषा हमारे देश की है, इसका गुणगान करना ही चाहिए, उस पर गर्व महसूस करना चाहिए | मैं भी तमिल को लेकर बहुत गर्व करता हूँ | गुरु प्रसाद जी, आपका ये प्रयास मेरे लिए नई दृष्टि देने वाला है | क्योंकि मैं ‘मन की बात’ करता हूँ तो सहज-सरल तरीक़े से अपनी बात रखता हूँ | मुझे नहीं मालूम था कि इसका ये भी एक element था | आपने जब पुरानी सारी बातों को इकठ्ठा किया, तो मैंने भी उसे एक बार नहीं बल्कि दो बार पढ़ा | गुरुप्रसाद जी आपकी इस book को मैं NamoApp पर जरुर upload करवाऊंगा | भविष्य के प्रयासों के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें |
मेरे प्यारे देशवासियों,आज हमने कोरोना की कठिनाइयों और सावधानियों पर बात की, देश और देशवासियों की कई उपलब्धियों पर भी चर्चा की |अब एक और बड़ा अवसर भी हमारे सामने है |15 अगस्त भी आने वाला है |आज़ादी के 75 वर्ष का अमृत-महोत्सव हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है |हम देश के लिए जीना सीखें |आज़ादी की जंग- देश के लिए मरने वालों की कथा है | आज़ादी के बाद के इस समय को हमें देश के लिए जीने वालों की कथा बनाना है |हमारा मंत्र होना चाहिए –India First. हमारे हर फ़ैसले , हर निर्णय का आधार होना चाहिए - India First |
साथियों, अमृत-महोत्सव में देश ने कई सामूहिक लक्ष्य भी तय किए हैं |जैसे, हमें अपने स्वाधीनता सेनानियों को याद करते हुए उनसे जुड़े इतिहास को पुनर्जीवित करना है |आपको याद होगा कि ‘मन की बात’ में, मैंने युवाओं से स्वाधीनता संग्राम पर इतिहास लेखन करके, शोध करने, इसकी अपील की थी |मक़सद यह था कि युवा प्रतिभाएं आगे आए, युवा-सोच, युवा-विचार सामने आए, युवा- कलम नई ऊर्जा के साथ लेखन करे |मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि बहुत ही कम समय में ढाई हज़ार से ज्यादा युवा इस काम को करने के लिए आगे आए हैं | साथियों, दिलचस्प बात ये है 19वीं- 20 वीं शताब्दी की जंग की बात तो आमतौर पर होती रहती है लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि 21वीं सदी में जो युवक पैदा हुए हैं, 21वीं सदी में जिनका जन्म हुआ है, ऐसे मेरे नौजवान साथियों ने 19वीं और 20वीं शताब्दी की आज़ादी की जंग को लोगों के सामने रखने का मोर्चा संभाला है |इन सभी लोगों ने MyGov पर इसका पूरा ब्यौरा भेजा है |ये लोग हिंदी – इंग्लिश, तमिल, कन्नड़ा, बांग्ला, तेलुगू, मराठी – मलयालम, गुजराती, ऐसी देश की अलग-अलग भाषाओँ में स्वाधीनता संग्राम पर लिखेंगें |कोई स्वाधीनता संग्राम से जुड़े रहे, अपने आस-पास के स्थानों की जानकारी जुटा रहा है, तो कोई, आदिवासी स्वाधीनता सेनानियों पर किताब लिख रहा है |एक अच्छी शुरुआत है |मेरा आप सभी से अनुरोध है कि अमृत-महोत्सव से जैसे भी जुड़ सकते हैं, ज़रुर जुड़े |ये हमारा सौभाग्य है कि हम आज़ादी के 75 वर्ष के पर्व का साक्षी बन रहे हैं |इसलिए अगली बार जब हम ‘मन की बात’ में मिलेंगे, तो अमृत-महोत्सव की और तैयारियों पर भी बात करेंगे |आप सब स्वस्थ रहिए, कोरोना से जुड़े नियमों का पालन करते हुए आगे बढ़िए, अपने नए-नए प्रयासों से देश को ऐसे ही गति देते रहिए |इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, बहुत बहुत धन्यवाद |
मेरे प्यारे देशवासियो,नमस्कार! अक्सर‘मन की बात’ में, आपकेप्रश्नों की बौछार रहती है | इस बार मैंने सोचा कि कुछ अलग किया जाए, मैं आपसे प्रश्न करूँ |तो, ध्यान से सुनिए मेरे सवाल |
....Olympic में Individual Gold जीतने वाला पहला भारतीय कौन था?
....Olympic के कौन से खेल में भारत ने अब तक सबसे ज्यादा medal जीते हैं?
...Olympic में किस खिलाड़ी ने सबसे ज्यादा पदक जीते हैं?
साथियो, आप मुझे जवाब भेजेंन भेजें, पर MyGov में Olympics परजो quiz है, उसमें प्रश्नों के उत्तर देंगे तो कई सारे इनाम जीतेंगे | ऐसे बहुत सारे प्रश्न MyGovके ‘Road to Tokyo Quiz’ में हैं | आप ‘Road to Tokyo Quiz’ में भाग लें | भारत ने पहले कैसा perform किया है ? हमारी Tokyo Olympics के लिए अब क्या तैयारी है ?- ये सब ख़ुद जानें और दूसरों को भी बताएं | मैं आप सब से आग्रह करना चाहता हूँ कि आप इस quiz competition में ज़रुर हिस्सा लीजिये |
साथियो, जब बात Tokyo Olympics की हो रही हो, तो भला मिल्खा सिंह जी जैसे legendary athlete को कौन भूल सकता है !कुछ दिन पहले ही कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया | जब वे अस्पताल में थे, तो मुझे उनसे बात करने का अवसर मिला था |
बात करते हुए मैंने उनसे आग्रह किया था | मैंने कहा था कि आपने तो 1964 में Tokyo Olympics में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, इसलिए इस बार, जब हमारे खिलाड़ी,Olympics के लिए Tokyo जा रहे हैं, तोआपको हमारे athletes का मनोबल बढ़ाना है, उन्हें अपने संदेश से प्रेरित करना है | वो खेल को लेकर इतना समर्पित और भावुक थे कि बीमारी में भी उन्होंने तुरंत ही इसके लिए हामी भर दी लेकिन, दुर्भाग्य से नियति को कुछ और मंजूर था | मुझे आज भी याद है 2014 में वो सूरत आए थे | हम लोगों ने एक Night Marathon का उद्घाटन किया था | उस समय उनसे जो गपशप हुई, खेलों के बारे में जो बात हुई, उससे मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली थी | हम सब जानते हैं कि मिल्खा सिंह जी का पूरा परिवार sports को समर्पित रहा है, भारत का गौरव बढ़ाता रहा है |
साथियो, जब Talent, Dedication, Determination और Sportsman Spirit एक साथ मिलते हैं, तब जाकर कोई champion बनता है |हमारे देश में तो अधिकांश खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गाँवों से निकल करके आते हैं |Tokyo जा रहे हमारे Olympic दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है | हमारे प्रवीण जाधव जी के बारे में आप सुनेंगे, तो, आपको भी लगेगा कि कितने कठिन संघर्षों से गुजरते हुए प्रवीण जी यहाँ पहुंचे हैं | प्रवीण जाधव जी, महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के एक गाँव के रहने वाले हैं | वो Archery के बेहतरीन खिलाड़ी हैं | उनके माता-पिता मज़दूरी कर परिवार चलाते हैं, और अब उनका बेटा, अपना पहला,Olympics खेलने Tokyo जा रहा है | ये सिर्फ़ उनके माता-पिता ही नहीं, हम सभी के लिए कितने गौरव की बात है | ऐसे ही, एक और खिलाड़ी हैं, हमारी नेहा गोयल जी | नेहा,Tokyoजा रही महिला हॉकी टीम की सदस्य हैं | उनकी माँ और बहनें, साईकिल की factory में काम करके परिवार का ख़र्च जुटाती हैं | नेहा की तरह ही दीपिका कुमारी जी के जीवन का सफ़र भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है | दीपिका के पिता ऑटो-रिक्शा चलाते हैं और उनकी माँ नर्स हैं, और अब देखिए, दीपिका, अब Tokyo Olympics में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज़ हैं | कभी विश्व की नंबर एक तीरंदाज़ रहीं दीपिका के साथ हम सबकी शुभकामनाएँ हैं |
साथियो, जीवन में हम जहां भी पहुँचते हैं, जितनी भी ऊंचाई प्राप्त करते हैं, जमीन से ये जुड़ाव, हमेशा, हमें अपनी जड़ों से बांधे रखता है | संघर्ष के दिनों के बाद मिली सफलता का आनंद भी कुछ और ही होता है |Tokyo जा रहे हमारे खिलाड़ियों ने बचपन में साधनों-संसाधनों की हर कमी का सामना किया, लेकिन वो डटे रहे, जुटे रहे | उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की प्रियंका गोस्वामी जी का जीवन भी बहुत सीख देता है | प्रियंका के पिता बस कंडक्टर हैं | बचपन में प्रियंका को वो बैग बहुत पसंद था, जो medal पाने वाले खिलाड़ियों को मिलता है | इसी आकर्षण में उन्होंने पहली बार Race-Walking प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था | अब, आज वो इसकी बड़ी champion हैं |
Javelin Throw में भाग लेने वाले शिवपाल सिंह जी, बनारस के रहने वाले हैं | शिवपाल जी का तो पूरा परिवार ही इस खेल से जुड़ा हुआ है | इनके पिता, चाचा और भाई, सभी भाला फेंकने में expert हैं | परिवार की यही परंपरा उनके लिए Tokyo Olympics में काम आने वाली है |Tokyo Olympic के लिए जा रहे चिराग शेट्टी और उनके partner सात्विक साईराज का हौसला भी प्रेरित करने वाला है | हाल ही में चिराग के नाना जी का कोरोना से निधन हो गया था | सात्विक भी खुद पिछले साल कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे | लेकिन, इन मुश्किलों के बाद भी ये दोनों Men’s Double Shuttle Competition में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की तैयारी में जुटे हैं |
एक और खिलाड़ी से मैं आपका परिचय कराना चाहूँगा, ये हैं, हरियाणा के भिवानी के मनीष कौशिक जी | मनीष जी खेती-किसानी वाले परिवार से आते हैं | बचपन में खेतों में काम करते-करते मनीष को boxing का शौक हो गया था | आज ये शौक उन्हें टोक्यो ले जा रहा है | एक और खिलाड़ी हैं, सी.ए. भवानी देवी जी | नाम भवानी है और ये तलवारबाजी में expert हैं | चेन्नई की रहने वाली भवानी पहली भारतीय Fencer हैं, जिन्होंने Olympic में qualify किया है | मैं कहीं पढ़ रहा था कि भवानी जी की training जारी रहे, इसके लिए उनकी माँ ने अपने गहने तक गिरवी रख दिये थे |
साथियो, ऐसे तो अनगिनत नाम हैं लेकिन ‘मन की बात’ में, मैं, आज कुछ ही नामों का जिक्र कर पाया हूँ | टोक्यो जा रहे हर खिलाड़ी का अपना संघर्ष रहा है, बरसों की मेहनत रही है | वो सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं जा रहें बल्कि देश के लिए जा रहे हैं | इन खिलाड़ियों को भारत का गौरव भी बढ़ाना है और लोगों का दिल भी जीतना है और इसलिए मेरे देशवासियों मैं आपको भी सलाह देना चाहता हूँ, हमें जाने-अनजाने में भी हमारे इन खिल���ड़ियों पर दबाव नहीं बनाना है, बल्कि खुले मन से, इनका साथ देना है, हर खिलाड़ी का उत्साह बढ़ाना है |
Social Media पर आप #Cheer4India के साथ अपने इन खिलाड़ियों को शुभकामनाएँ दे सकते हैं | आप कुछ और भी innovative करना चाहें, तो वो भी ज़रूर करें | अगर आपको कोई ऐसा idea आता है जो हमारे खिलाड़ियों के लिए देश को मिलकर करना चाहिए, तो वो आप मुझे ज़रुर भेजिएगा | हम सब मिलकर टोक्यो जाने वाले अपने खिलाड़ियों को support करेंगे - Cheer4India!!!Cheer4India!!!Cheer4India!!!
मेरे प्यारे देशवासियो, कोरोना के खिलाफ़ हम देशवासियों की लड़ाई जारी है,लेकिन इस लड़ाई में हम सब साथ मिलकर कई असाधारण मुकाम भी हासिल कर रहे हैं | अभी कुछ दिन पहले ही हमारे देश ने एक अभूतपूर्व काम किया है | 21 जून को vaccine अभियान के अगले चरण की शुरुआत हुई और उसी दिन देश ने 86 लाख से ज्यादा लोगों को मुफ़्त vaccine लगाने का record भी बना दिया और वो भी एक दिन में ! इतनी बड़ी संख्या में भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccination और वो भी एक दिन में ! स्वाभाविक है, इसकी चर्चा भी खूब हुई है |
साथियो, एक साल पहले सबके सामने सवाल था कि vaccine कब आएगी ? आज हम एक दिन में लाखों लोगों को‘ Made in India’ vaccine मुफ़्त में लगा रहे हैं और यही तो नए भारत की ताक़त है |
साथियो,vaccine की safety देश के हर नागरिक को मिले, हमें लगातार प्रयास करते रहना है |कई जगहों पर vaccine hesitancy को खत्म करने के लिए कई संगठन, civil society के लोग आगे आये हैं और सब मिलकर के बहुत अच्छा काम कर रहे हैं | चलिये, हम भी, आज, एक गाँव में चलते हैं, और,उन्हीं लोगों से बात करते हैं vaccine के बारे में मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के डुलारिया गाँव चलते हैं |
प्रधानमंत्री : हलो !
राजेश : नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी |
राजेश : मेरा नाम राजेश हिरावे, ग्राम पंचायत डुलारिया, भीमपुर ब्लॉक|
प्रधानमंत्री : राजेश जी, मैंने फ़ोन इसलिए किया कि मैं जानना चाहता था कि अभी आपके गाँव में, अब कोरोना की क्या स्थिति है ?
राजेश : सर, यहाँ पे कोरोना की स्थिति तो अभी ऐसा कुछ नहीं है यहाँ I
प्रधानमंत्री : अभी लोग बीमार नहीं हैं ?
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : गाँव की जनसँख्या कितनी है? कितने लोग हैं गाँव में ?
राजेश : गाँव में 462 पुरुष हैं और 332 महिला हैं,सर |
प्रधानमंत्री : अच्छा! राजेश जी, आपने vaccine ले ली क्या ?
राजेश : नहीं सर, अभी नहीं लिए हैं |
प्रधानमंत्री : अरे ! क्यों नहीं लिया ?
राजेश : सर जी, यहाँ पर कुछ लोगों ने, कुछ WhatsApp पर ऐसा भ्रम डाल दिया गया कि उससे लोग भ्रमित हो गए सर जी |
प्रधानमंत्री : तो क्या आपके मन में भी डर है ?
राजेश : जी सर, पूरे गाँव में ऐसा भ्रम फैला दिया था सर |
प्रधानमंत्री : अरे रे रे, यह क्या बात की आपने ? देखिये राजेश जी...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : मेरा आपको भी और मेरे सभी गाँव के भाई-बहनों को यही कहना है कि डर है तो निकाल दीजिये |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : हमारे पूरे देश में 31 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने वैक्सीन का टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : आपको पता है न, मैंने खुद ने भी दोनों dose लगवा लिए हैं |
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : अरे मेरी माँ तो क़रीब-क़रीब 100 साल की हैं, उन्होंने भी दोनों dose लगवा लिए हैं I कभी-कभी किसी को इससे बुखार वगैरह आता है, पर वो बहुत मामूली होता है, कुछ घंटो के लिए ही होता है |देखिए vaccine नहीं लेना बहुत ख़तरनाक हो सकता है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : इससे आप ख़ुद को तो ख़तरे में डालते ही हैं, साथ ही में परिवार और गाँव को भी ख़तरे में डाल सकते हैं |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : और राजेश जी इसलिए जितना जल्दी हो सके vaccine लगवा लीजिये और गाँव में सबको बताइये कि भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccine दी जा रही है और 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए यह मुफ़्त vaccination है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो ये आप भी लोगों को गाँव में बताइये और गाँव में ये डर का तो माहौल का कोई कारण ही नहीं है |
राजेश : कारण यही सर, कुछ लोग ने ऐसी गलत अफ़वाह फैला दी जिससे लोग बहुत ही भयभीत हो गए उसका उदाहरण जैसे, जैसा उस vaccine को लगाने से बुखार आना, बुखार से और बीमारी फ़ैल जाना मतलब आदमी की मौत हो जाना यहाँ तक की अफ़वाह फैलाई |
प्रधानमंत्री : ओहोहो... देखिये आज तो इतने रेडियो, इतने टी.वी., इतनी सारी खबरें मिलती हैं और इसलिए लोगों को समझाना बहुत सरल हो जाता है और देखिये मैं आपको बताऊँ भारत के अनेक गाँव ऐसे हैं जहाँ सभी लोग vaccine लगवा चुके है यानी गाँव के शत प्रतिशत लोग | जैसे मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : कश्मीर में बांदीपुरा ज़िला है, इस बांदीपुरा ज़िले में एक व्यवन(Weyan)गाँव के लोगों ने मिलकर 100%, शत प्रतिशत vaccine का लक्ष्य बनाया और उसे पूरा भी कर दिया | आज कश्मीर के इस गाँव के 18 साल से ऊपर के सभी लोग टीका लगवा चुके हैं | नागालैंड के भी तीन गाँवों के बारे में मुझे पता चला कि वहाँ भी सभी लोगों ने 100%, शत प्रतिशत टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : राजेश जी, आपको भी अपने गाँव, अपने आस-पास के गाँव में ये बात पहुँचानी चाहिये और आप भी जैसे कहते हैं ये भ्रम है, बस ये भ्रम ही है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो भ्रम का जवाब यही है कि आपको ख़ुद को टीका लगा कर के समझाना पड़ेगा सबको | करेंगे न आप ?
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : पक��का करेंगे ?
राजेश : जी सर, जी सर | आपसे बात करने से मुझे ऐसा लगा कि मैं ख़ुद भी टीका लगाऊंगा और लोगों को इसके बारे में आगे बढ़ाऊँ |
प्रधानमंत्री : अच्छा, गाँव में और भी कोई है जिनसे मैं बात कर सकता हूँ ?
राजेश : जी है सर |
प्रधानमंत्री : कौन बात करेगा ?
किशोरीलाल : हेल्लो सर... नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी, कौन बोल रहे हैं ?
किशोरीलाल : सर, मेरा नाम है किशोरीलाल दूर्वे |
प्रधानमंत्री : तो किशोरीलाल जी, अभी राजेश जी से बात हो रही थी |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और वो तो बड़े दुखी हो करके बता रहे थे कि vaccine को लेकर लोग अलग-अलग बातें करते हैं |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : आपने भी ऐसा सुना है क्या ?
किशोरीलाल : हाँ... सुना तो हूँ सर वैसा...
प्रधानमंत्री : क्या सुना है ?
किशोरीलाल : क्योंकि ये है सर ये पास में महाराष्ट्र है उधर से कुछ रिश्तेदारी से जुड़े लोग मतलब कुछ अफ़वाह फैलाते कि vaccine लगाने से लोग सब मर रहा है, कोई बीमार हो रहा है कि सर लोगों के पास ज्यादा भ्रम है सर, इसलिए नहीं ले रहे हैं |
प्रधानमंत्री :नहीं.. कहते क्या है ? अब कोरोना चला गया, ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : कोरोना से कुछ नहीं होता है ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : नहीं, कोरोना चला गया नहीं बोलते सर, कोरोना तो है बोलते लेकिन vaccine जो लेते उससे मतलब बीमारी हो रहा है, सब मर रहे है | ये स्थिति बताते सर वो |
प्रधानमंत्री : अच्छा vaccine के कारण मर रहे हैं ?
किशोरीलाल : अपना क्षेत्र आदिवासी-क्षेत्र है सर, ऐसे भी लोग इसमें जल्दी डरते हैं .. जो भ्रम फैला देते कारण से लोग नहीं ले रहे सर vaccine |
प्रधानमंत्री :देखिये किशोरीलाल जी...
किशोरीलाल : जी हाँ सर...
प्रधानमंत्री : ये अफ़वाहें फैलाने वाले लोग तो अफ़वाहें फैलाते रहेंगे |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : हमें तो ज़िन्दगी बचानी है, अपने गाँव वालों को बचाना है, अपने देशवासियों को बचाना है | और ये अगर कोई कहता है कि कोरोना चला गया तो ये भ्रम में मत रहिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : ये बीमारी ऐसी है, ये बहुरूपिये वाली है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : वो रूप बदलती है... नए-नए रंग-रूप कर के पहुँच जाती है |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : और उसमें बचने के लिए हमारे पास दो रास्ते हैं | एक तो कोरोना के लिए जो protocol बनाया, मास्क पहनना, साबुन से बार-बार हाथ धोना, दूरी बनाए रखना और दूसरा रास्ता है इसके साथ-साथ vaccine का टीका लगवाना, वो भी एक अच्छा सुरक्षा कवच है तो उसकी चिंता करिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : अच्छा किशोरीलाल जी ये बताइये |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : जब लोग आपसे बातें करते है तो आप कैसे समझाते है लोगों को ? आप समझाने का काम करते है कि आप भी अफ़वाह में आ जाते हैं ?
किशोरीलाल : समझाएं क्या, वो लोग ज्यादा हो जाते तो सर हम भी भयभीत में आ जाते न सर |
प्रधानमंत्री : देखिये किशोरीलाल जी, मेरी आपसे बात हुई है आज, आप मेरे साथी हैं|
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : आपको डरना नहीं है और लोगों के डर को भी निकालना है | निकालोगे ?
किशोरीलाल : जी सर | निकालेंगे सर, लोगों के डर को भी निकालेंगे सर | मैं स्वयं भी ख़ुद लगाऊंगा |
प्रधानमंत्री : देखिये, अफ़वाहों पर बिल्कुल ध्यान न दें |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आप जानते है, हमारे वैज्ञानिकों ने कितनी मेहनत करके ये vaccine बनाई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : साल भर, रात-दिन इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने काम किया है और इसलिए हमें विज्ञान पर भरोसा करना चाहिये, वैज्ञानिकों पर भरोसा करना चाहिये | और ये झूठ फैलाने वाले लोगों को बार-बार समझाना चाहिये कि देखिये भई ऐसा नहीं होता है, इतने लोगों ने vaccine ले लिया है कुछ नहीं होता है |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और अफ़वाहों से बहुत बच करके रहना चाहिये, गाँव को भी बचाना चाहिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और राजेश जी, किशोरीलाल जी, आप जैसे साथियों को तो मैं कहूँगा कि आप अपने ही गाँव में नहीं, और गाँवों में भी इन अफ़वाहों को रोकने का काम कीजिये और लोगों को बताइये मेरे से बात हुई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : बता दीजिये, मेरा नाम बता दीजिये |
किशोरीलाल : बताएँगे सर और समझायेंगे लोगों को और स्वयं भी लेंगे |
प्रधानमंत्री : देखिये, आपके पूरे गाँव को मेरी तरफ से शुभकामनाएं दीजिये |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और सभी से कहिये कि जब भी अपना नंबर आये...
किशोरीलाल : जी...
प्रधानमंत्री : vaccine जरुर लगवाएं |
किशोरीलाल : ठीक है सर |
प्रधानमंत्री : मैं चाहूँगा कि गाँव की महिलाओं को, हमारी माताओं-बहनों को...
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : इस काम में ज्यादा से ज्यादा जोड़िये और सक्रियता के साथ उनको साथ रखिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : कभी-कभी माताएँ-बहनें बात कहती है न लोग जल्दी मान जाते हैं |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आपके गाँव में जब टीकाकरण पूरा हो जाए तो मुझे बताएँगे आप ?
किशोरीलाल : हाँ, बताएँगे सर |
प्रधानमंत्री : पक्का बताएँगे ?
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : देखिये, मैं इंतज़ार करूँगा आपकी चिट्ठी का |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : चलिये, राजेश जी, किशोर जी बहुत-बहुत धन्यवाद | आपसे बात करने का मौक़ा मिला |
किशोरीलाल : धन्यवाद सर, आपने हमसे बात किया है | बहुत-बहुत धन्यवाद आपको भी |
साथियो, कभी-ना-कभी, ये विश्व के लिए case study का विषय बनेगा कि भारत के गाँव के लोगों ने, हमारे वनवासी-आदिवासी भाई-बहनों ने, इस कोरोना काल में, किस तरह, अपने सामर्थ्य और सूझबूझ का परिचय दिया | गाँव के लोगों ने quarantine centreबनाए, स्थानीय ज़रूरतों को देखते हुए COVID protocol बनाए | गाँव के लोगों ने किसी को भूखा नहीं सोने दिया, खेती का काम भी रुकने नहीं दिया | नजदीक के शहरों में दूध-सब्जियाँ, ये सब हर रोज पहुंचता रहे, ये भी, गाँवों ने सुनिश्चित कियायानी ख़ुद को संभाला, औरों को भी संभाला | ऐसे ही हमें vaccination अभियान में भी करते रहना है | हमें जागरूक रहना भी है,और जागरूक करना भी है | गांवों में हर एक व्यक्ति को vaccine लग जाए,यह हर गाँव का लक्ष्य होना चाहिए | याद रखिए,और मैं तो आपको ख़ास रूप से कहना चाहता हूँ | आप एक सवाल अपने मन में पूछिये - हर कोई सफल होना चाहता है लेकिन निर्णायक सफलता का मंत्र क्या है ? निर्णायक सफलता का मंत्र है -निरंतरता |इसलिए हमें सुस्त नहीं पड़ना है, किसी भ्रांति में नहीं रहना है | हमें सतत प्रयास करते रहना है, कोरोना पर जीत हासिल करनी है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे देश में अब मानसून का सीजन भी आ गया है | बादल जब बरसते हैं तो केवल हमारे लिए ही नहीं बरसते, बल्कि बादल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बरसते हैं | बारिश का पानी जमीन में जाकर इकठ्ठा भी होता है, जमीन के जलस्तर को भी सुधारता है | और इसलिए मैं जल संरक्षण को देश सेवा का ही एक रूप मानता हूँ | आपने भी देखा होगा, हम में से कई लोग इस पुण्य को अपनी ज़िम्मेदारी मानकर लगे रहे हैं | ऐसे ही एक शख्स हैं उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के सच्चिदानंद भारती जी | भारती जी एक शिक्षक हैं और उन्होंने अपने कार्यों से भी लोगों को बहुत अच्छी शिक्षा दी है | आज उनकी मेहनत से ही पौड़ी गढ़वाल के उफरैंखाल क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट समाप्त हो गया है | जहाँ लोग पानी के लिए तरसते थे, वहाँ आज साल-भर जल की आपूर्ति हो रही है |
साथियों, पहाड़ों में जल संरक्षण का एक पारंपरिक तरीक़ा रहा है जिसे ‘चालखाल’ भी कहा जाता है , यानि पानी जमा करने के लिए बड़ा सा गड्ढा खोदना | इस परंपरा में भारती जी ने कुछ नए तौर –तरीकों को भी जोड़ दिया | उन्होंने लगातार छोटे-बड़े तालाब बनवाये | इससे न सिर्फ उफरैंखाल की पहाड़ी हरी-भरी हुई, बल्कि लोगों की पेयजल की दिक्कत भी दूर हो गई | आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि भारती जी ऐसी 30 हजार से अधिक जल-तलैया बनवा चुके हैं | 30 हजार ! उनका ये भागीरथ कार्य आज भी जारी है और अनेक लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं |
साथियों, इसी तरह यूपी के बाँदा ज़िले में अन्धाव गाँव के लोगों ने भी एक अलग ही तरह का प्रयास किया है | उन्होंने अपने अभियान को बड़ा ही दिलचस्प नाम दिया है – ‘खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में’ | इस अभियान के तहत गाँव के कई सौ बीघे खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़ बनाई गई है | इससे बारिश का पानी खेत में इकठ्ठा होने लगा, और जमीन में जाने लगा | अब ये सब लोग खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने की भी योजना बना रहे हैं | यानि अब किसानों को पानी, पेड़ और पैसा, तीनों मिलेगा | अपने अच्छे कार्यों से, पहचान तो उनके गाँव की दूर-दूर तक वैसे भी हो रही है |
साथियों, इन सभी से प्रेरणा लेते हुए हम अपने आस-पास जिस भी तरह से पानी बचा सकते हैं, हमें बचाना चाहिए | मानसून के इस महत्वपूर्ण समय को हमें गंवाना नहीं है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे शास्त्रों में कहा गया है –
“नास्ति मूलम् अनौषधम्” ||
अर्थात, पृथ्वी पर ऐसी कोई वनस्पति ही नहीं है जिसमें कोई न कोई औषधीय गुण न हो! हमारे आस-पास ऐसे कितने ही पेड़ पौधे होते हैं जिनमें अद्भुत गुण होते हैं, लेकिन कई बार हमें उनके बारे में पता ही नहीं होता! मुझे नैनीताल से एक साथी, भाई परितोष ने इसी विषय पर एक पत्र भी भेजा है | उन्होंने लिखा है कि, उन्हें गिलोय और दूसरी कई वनस्पतियों के इतने चमत्कारी मेडिकल गुणों के बारे में कोरोना आने के बाद ही पता चला ! परितोष ने मुझे आग्रह भी किया है कि, मैं ‘मन की बात’ के सभी श्रोताओं से कहूँ कि आप अपने आसपास की वनस्पतियों के बारे में जानिए, और दूसरों को भी बताइये | वास्तव में, ये तो हमारी सदियों पुरानी विरासत है, जिसे हमें ही संजोना है | इसी दिशा में मध्य प्रदेश के सतना के एक साथी हैं श्रीमान रामलोटन कुशवाहा जी, उन्होंने बहुत ही सराहनीय काम किया है | रामलोटन जी ने अपने खेत में एक देशी म्यूज़ियम बनाया है | इस म्यूज़ियम में उन्होंने सैकड़ों औषधीय पौधों और बीजों का संग्रह किया है | इन्हें वो दूर–सुदूर क्षेत्रों से यहाँ लेकर आए है | इसके अलावा वो हर साल कई तरह की भारतीय सब्जियाँ भी उगाते हैं | रामलोटन जी की इस बगिया, इस देशी म्यूज़ियम को लोग देखने भी आते हैं, और उससे बहुत कुछ सीखते भी हैं | वाकई, ये एक बहुत अच्छा प्रयोग है जिसे देश के अलग–अलग क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है | मैं चाहूँगा आपमें से जो लोग इस तरह का प्रयास कर सकते हैं, वो ज़रूर करें | इससे आपकी आय के नए साधन भी खुल सकते हैं | एक लाभ ये भी होगा कि स्थानीय वनस्पतियों के माध्यम से आपके क्षेत्र की पहचान भी बढ़ेगी |
मेरे प्यारे देशवासियों, अब से कुछ दिनों बाद 1 जुलाई को हम National Doctors’ Day मना��ंगे | ये दिन देश के महान चिकित्सक और Statesman, डॉक्टर बीसी राय की जन्म-जयंती को समर्पित है | कोरोना-काल में doctors के योगदान के हम सब आभारी हैं | हमारे डॉक्टर्स ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारी सेवा की है | इसलिए, इस बार National Doctors’ Day और भी ख़ास हो जाता है |
साथियों, मेडिसिन की दुनिया के सबसे सम्मानित लोगों में से एक Hippocrates ने कहा था :
“Wherever the art of Medicine is loved, there is also a love of Humanity.”
यानि ‘जहाँ Art of Medicine के लिए प्रेम होता है, वहाँ मानवता के लिए भी प्रेम होता है’ | डॉक्टर्स, इसी प्रेम की शक्ति से ही हमारी सेवा कर पाते हैं इसलिए, हमारा ये दायित्व है कि हम उतने ही प्रेम से उनका धन्यवाद करें, उनका हौसला बढ़ाएँ | वैसे हमारे देश में कई लोग ऐसे भी हैं जो डॉक्टर्स की मदद के लिए आगे बढ़कर काम करते हैं | श्रीनगर से एक ऐसे ही प्रयास के बारे में मुझे पता चला | यहाँ डल झील में एक Boat Ambulance Service की शुरुआत की गई | इस सेवा को श्रीनगर के Tariq Ahmad Patloo जी ने शुरू किया, जो एक Houseboat Owner हैं | उन्होंने खुद भी COVID-19 से जंग लड़ी है और इसी से उन्हें Ambulance Service शुरू करने के लिए प्रेरित किया | उनकी इस Ambulance से लोगों को जागरूक करने का अभियान भी चल रहा है वो लगातार Ambulance से Announcement भी कर रहे हैं | कोशिश यही है कि लोग मास्क पहनने से लेकर दूसरी हर ज़रूरी सावधानी बरतें |
साथियों, Doctors’ Day के साथ ही एक जुलाई को Chartered Accountants Day भी मनाया जाता है | मैंने कुछ वर्ष पहले देश के Chartered Accountants से, ग्लोबल लेवल की भारतीय ऑडिट फर्म्स का उपहार माँगा था | आज मैं उन्हें इसकी याद दिलाना चाहता हूँ | अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए Chartered Accountants बहुत अच्छी और सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं | मैं सभी Chartered Accountants, उनके परिवार के सदस्यों को अपनी शुभकामनाएं देता हूँ |
मेरे प्यारे देशवासियों, कोरोना के खिलाफ़ भारत की लड़ाई की एक बड़ी विशेषता है | इस लड़ाई में देश के हर व्यक्ति ने अपनी भूमिका निभाई है | मैंने “मन की बात” में अक्सर इसका ज़िक्र किया है | लेकिन कुछ लोगों को शिकायत भी रहती है कि उनके बारे में उतनी बात नहीं हो पाती है | अनेक लोग चाहे बैंक स्टाफ हो, टीचर्स हों, छोटे व्यापारी या दुकानदार हों, दुकानों में काम करने वाले लोग हों, रेहड़ी-पटरी वाले भाई-बहन हों, Security Watchmen, या फिर Postmen और Post Office के कर्मचारी- दरअसल यह लिस्ट बहुत ही लंबी है और हर किसी ने अपनी भूमिका निभाई है | शासन प्रशासन में भी कितने ही लोग अलग-अलग स्तर पर जुटे रहे हैं |
साथियों, आपने संभवतः भारत सरकार में सचिव रहे गुरु प्रसाद महापात्रा जी का नाम सुना होगा | मैं आज “मन की बात” में, उनका ज़िक्र भी करना चाहता हूँ | गुरुप्रसाद जी को कोरोना हो गया था, वो अस्पताल में भर्ती थे, और अपना कर्त्तव्य भी निभा रहे थे | देश में ऑक्सीजन का उत्पादन बढे, दूर-सुदूर इलाकों तक ऑक्सीजन पहुंचे इसके लिए उन्होंने दिन-रात काम किया | एक तरफ कोर्ट कचहरी का चक्कर, Media का Pressure - एक साथ कई मोर्चों पर वो लड़ते रहे, बीमारी के दौरान उन्होंने काम करना बंद नहीं किया | मना करने के बाद भी वो ज़िद करके ऑक्सीजन पर होने वाली वीडियों कॉन्फ्रेंस में भी शामिल हो जाते थे | देशवासियों की इतनी चिंता थी उन्हें | वो अस्पताल के Bed पर खुद की परवाह किए बिना, देश के लोगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए इंतजाम में जुटे रहे | हम सबके लिए दुखद है कि इस कर्मयोगी को भी देश ने खो दिया है , कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया है | ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनकी चर्चा कभी हो नहीं पाई | ऐसे हर व्यक्ति को हमारी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करें, वैक्सीन ज़रुर लगवाएं |
मेरे प्यारे देशवासियों, “मन की बात’ की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें मुझसे ज्यादा आप सबका योगदान रहता है | अभी मैंने MyGov में एक पोस्ट देखी, जो चेन्नई के थिरु आर.गुरुप्रसाद जी की है | उन्होंने जो लिखा है, वो जानकर आपको भी अच्छा लगेगा | उन्होंने लिखा है कि वो “मन की बात” programme के regular listener हैं | गुरुप्रसाद जी की पोस्ट से अब मैं कुछ पंक्तियाँ Quote कर रहा हूँ | उन्होंने लिखा है,
जब भी आप तमिलनाडु के बारे में बात करते हैं, तो मेरा Interest और भी बढ़ जाता है |
आपने तमिल भाषा और तमिल संस्कृति की महानता, तमिल त्योहारों और तमिलनाडु के प्रमुख स्थानों की चर्चा की है |
गुरु प्रसाद जी आगे लिखते हैं कि – “मन की बात” में मैंने तमिलनाडु के लोगों की उपलब्धियों के बारे में भी कई बार बताया है | तिरुक्कुरल के प्रति आपके प्यार और तिरुवल्लुवर जी के प्रति आपके आदर का तो कहना ही क्या ! इसलिए मैंने ‘मन की बात’ में आपने जो कुछ भी तमिलनाडु के बारे में बोला है, उन सबको संकलित कर एक E-Book तैयार की है | क्या आप इस E-book को लेकर कुछ बोलेंगे और इसे NamoApp पर भी release करेंगे ? धन्यवाद |
‘ये मैं गुरुप्रसाद जी का पत्र आप के सामने पढ़ रहा था |’
गुरुप्रसाद जी, आपकी ये पोस्ट पढ़कर बहुत आनंद आया | अब आप अपनी E-Book में एक और पेज जोड़ दीजिये |
..’नान तमिलकला चाराक्तिन पेरिये अभिमानी |
नान उलगतलये पलमायां तमिल मोलियन पेरिये अभिमानी |..’
उच्चारण का दोष अवश्य होगा लेकिन मेरा प्रयास और मेरा प्रेम कभी भी कम नहीं होगा | जो तमिल-भाषी नहीं हैं, उन्हें मैं बताना चाहता हूँ गुरुप्रसाद जी को मैंने कहा है –
मैं तमिल संस्कृति का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ |
मैं दुनिया की सबसे पुरानी भाषा तमिल का बड़ा प्रशंसक हूँ |
साथियों, हर हिन्दुस्तानी को, विश्व की सबसे पुरातन भाषा हमारे देश की है, इसका गुणगान करना ही चाहिए, उस पर गर्व महसूस करना चाहिए | मैं भी तमिल को लेकर बहुत गर्व करता हूँ | गुरु प्रसाद जी, आपका ये प्रयास मेरे लिए नई दृष्टि देने वाला है | क्योंकि मैं ‘मन की बात’ करता हूँ तो सहज-सरल तरीक़े से अपनी बात रखता हूँ | मुझे नहीं मालूम था कि इसका ये भी एक element था | आपने जब पुरानी सारी बातों को इकठ्ठा किया, तो मैंने भी उसे एक बार नहीं बल्कि दो बार पढ़ा | गुरुप्रसाद जी आपकी इस book को मैं NamoApp पर जरुर upload करवाऊंगा | भविष्य के प्रयासों के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें |
मेरे प्यारे देशवासियों,आज हमने कोरोना की कठिनाइयों और सावधानियों पर बात की, देश और देशवासियों की कई उपलब्धियों पर भी चर्चा की |अब एक और बड़ा अवसर भी हमारे सामने है |15 अगस्त भी आने वाला है |आज़ादी के 75 वर्ष का अमृत-महोत्सव हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है |हम देश के लिए जीना सीखें |आज़ादी की जंग- देश के लिए मरने वालों की कथा है | आज़ादी के बाद के इस समय को हमें देश के लिए जीने वालों की कथा बनाना है |हमारा मंत्र होना चाहिए –India First. हमारे हर फ़ैसले , हर निर्णय का आधार होना चाहिए - India First |
साथियों, अमृत-महोत्सव में देश ने कई सामूहिक लक्ष्य भी तय किए हैं |जैसे, हमें अपने स्वाधीनता सेनानियों को याद करते हुए उनसे जुड़े इतिहास को पुनर्जीवित करना है |आपको याद होगा कि ‘मन की बात’ में, मैंने युवाओं से स्वाधीनता संग्राम पर इतिहास लेखन करके, शोध करने, इसकी अपील की थी |मक़सद यह था कि युवा प्रतिभाएं आगे आए, युवा-सोच, युवा-विचार सामने आए, युवा- कलम नई ऊर्जा के साथ लेखन करे |मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि बहुत ही कम समय में ढाई हज़ार से ज्यादा युवा इस काम को करने के लिए आगे आए हैं | साथियों, दिलचस्प बात ये है 19वीं- 20 वीं शताब्दी की जंग की बात तो आमतौर पर होती रहती है लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि 21वीं सदी में जो युवक पैदा हुए हैं, 21वीं सदी में जिनका जन्म हुआ है, ऐसे मेरे नौजवान साथियों ने 19वीं और 20वीं शताब्दी की आज़ादी की जंग को लोगों के सामने रखने का मोर्चा संभाला है |इन सभी लोगों ने MyGov पर इसका पूरा ब्यौरा भेजा है |ये लोग हिंदी – इंग्लिश, तमिल, कन्नड़ा, बांग्ला, तेलुगू, मराठी – मलयालम, गुजराती, ऐसी देश की अलग-अलग भाषाओँ में स्वाधीनता संग्राम पर लिखेंगें |कोई स्वाधीनता संग्राम से जुड़े रहे, अपने आस-पास के स्थानों की जानकारी जुटा रहा है, तो कोई, आदिवासी स्वाधीनता सेनानियों पर किताब लिख रहा है |एक अच्छी शुरुआत है |मेरा आप सभी से अनुरोध है कि अमृत-महोत्सव से जैसे भी जुड़ सकते हैं, ज़रुर जुड़े |ये हमारा सौभाग्य है कि हम आज़ादी के 75 वर्ष के पर्व का साक्षी बन रहे हैं |इसलिए अगली बार जब हम ‘मन की बात’ में मिलेंगे, तो अमृत-महोत्सव की और तैयारियों पर भी बात करेंगे |आप सब स्वस्थ रहिए, कोरोना से जुड़े नियमों का पालन करते हुए आगे बढ़िए, अपने नए-नए प्रयासों से देश को ऐसे ही गति देते रहिए |इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, बहुत बहुत धन्यवाद |
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परीक्षा पे चर्चा: पीएम मोदी ने करोड़ों छात्रों को दिया हौसला, माता-पिता से बच्चों पर दबाव न बनाने का किया आग्रह
चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों के साथ 'परीक्षा पे चर्चा' कर रहे हैं। इसमें 25 देशों के 15 करोड़ से अधिक छात्र शामिल हो रहे हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से छात्र परीक्षा को लेकर अपने सीधे सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछ सकते हैं। पीएम मोदी सवालों के जवाब देंगे और चयनित छात्रों के साथ बातचीत में बताएंगे कि वे परीक्षा के तनाव को कैसे कम सकते हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पीएम मोदी ने छात्रों से कहा कि, 'फिर एक बार आपका यह दोस्त आपके बीच में है। सबसे पहले मैं आपको नववर्ष 2020 की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं'। उन्होंने कहा, 'मुझे लगा आपके माता-पिता का बोझ थोड़ा हल्का करना चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि, 'स्मार्ट फोन जितना समय आपका समय चोरी करता है, उसमें से 10 प्रतिशत कम करके आप अपने मां, बाप, दादा, दाद�� के साथ बिताएं। तकनीक हमें खींचकर ले जाए, उससे हमें बचकर रहना चाहिए। हमारे अंदर ये भावना होनी चाहिए कि मैं तकनीक को अपनी मर्जी से उपयोग करूंगा।' पीएम मोदी ने कहा कि, 'पिछली शताब्दी के आखरी कालखंड और इस शताब्दी के आरंभ कालखंड में विज्ञान और तकनीक ने जीवन को बदल दिया है। इसलिए तकनीक का भय कतई अपने जीवन में आने नहीं देना चाहिए। तकनीक को हम अपना दोस्त माने, बदलती तकनीक की हम पहले से जानकारी जुटाएं, ये जरूरी है।' पीएम ने कहा कि, 'को-करिक्यूलर एक्टिविटीज न करना आपको रोबोट की तरह बना सकता है। आप इसे बदल सकते हैं। हां, इसके लिए बेहतर समय प्रबंधन की आवश्यकता होगी। आज कई अवसर हैं और मुझे आशा है कि युवा इनका उपयोग करेंगे।' #WATCH PM Modi interacts with students during ‘Pariksha Pe Charcha 2020’ https://t.co/0J7GheSmt5 — ANI (@ANI) January 20, 2020 पीएम मोदी ने कहा कि, 'हमें जो शिक्षा मिलती है, वह दुनिया का द्वार है। वर्णमाला सीखते समय, बच्चे एक नई दुनिया में प्रवेश करते हैं। हमारी शिक्षा हमारे लिए नई चीजों को सीखने का एक तरीका है। हमें इसे दिनचर्या के मूल में रखने और उसके बारे में और जानने की जरूरत है।' पीएम मोदी ने कहा कि, 'जाने अनजाने में हम लोग उस दिशा में चल पड़े हैं जिसमें सफलता-विफलता का मुख्य बिंदु कुछ विशेष परीक्षाओं के मार्क्स बन गए हैं। उसके कारण मन भी उस बात पर रहता है कि बाकी सब बाद में करूंगा, एक बार मार्क्स ले आऊं। हम विफलताओं से भी सफलता की शिक्षा पा सकते हैं। हर प्रयास में हम उत्साह भर सकते हैं और किसी चीज में आप विफल हो गए तो उसका मतलब है कि अब आप सफलता की ओर चल पड़े हो।' प्रधानमंत्री ने कहा कि, 'सिर्फ परीक्षा के अंक जिंदगी नहीं हैं। कोई एक परीक्षा पूरी जिंदगी नहीं है। ये एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। लेकिन यही सब कुछ है, ऐसा नहीं मानना चाहिए। मैं माता-पिता से भी आग्रह करूंगा कि बच्चों से ऐसी बातें न करें कि परीक्षा ही सब कुछ है। शिक्षा के साथ ही दूसरी एक्टिविटी का भी महत्व है, 10वीं और 12वीं विद्यार्थियों को मैं जरूर कहूंगा कि कुछ न कुछ अलग कीजिए, सिर्फ किताबों में ही न खो जाएं।' सवाल - बोर्ड के चलते उनका मूड ऑफ हो जाता है, तो हम किस तरह अपने आपको उत्साहित करें? जवाब - मैं तो सोच रहा था जवानों का मूड ऑफ ही नहीं होता लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि मूड ऑफ क्यों होता है। मुझे लगता है कि मूड ऑफ होने में बाहरी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। आप पढ़ रहे होते हैं और मां से कहते हैं कि 6 बजे चाय चाहिए लेकिन बीच में ही आप घड़ी देख लेते हैं कि 6 बजे या नहीं तो यहीं से गड़बड़ शुरू ��ो जाती है। लेकिन अगर इसे दूसरे तरीके से सोचे तो ये भी मन में आना चाहिए कि मां को कुछ हुआ तो नहीं। क्योंकि आपने अपेक्षा को अपने साथ जोड़ लिया है इसलिए ऐसा होता है। हर व्यक्ति को मोटिवेशन या डिमोटिवेशन से गुजरना पड़ता है। हमें मामूली सी बात पर मूड खराब नहीं करना चाहिए। सवाल - जो छात्र पढ़ाई में अच्छे नहीं है लेकिन खेल-संगीत में अच्छे होते हैं तो उनका भविष्य क्या होगा। पढ़ाई के बीच किस तरह एक्टिविटी के बीच बैलेंस बनाया जाए? जवाब - शिक्षा के जरिए बहुत बड़े रास्ते का दरवाजा खोलती है। सा रे गा मा से सिर्फ संगीत की दुनिया में एंट्री मिलती है, लेकिन उससे संगीत पूरा नहीं होता है। जो हम सीख रहे हैं उसे जिंदगी की कसौटी पर कसना जरूरी। स्कूल में पढ़ाया जाता है कि कम बोलने से फायदा होता है तो हमें जिंदगी में भी उसे उतारना चाहिए। अगर आप रोबोट की तरह काम करते रहेंगे, तो सिर्फ रोबोट ही बनकर रह जाएंगे। इसलिए पढ़ाई से अलग भी एक्टविटी करनी चाहिए, हालांकि टाइम मैनेजमैंट जरूरी है। सवाल - परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए हम कितना ध्यान केंद्रित करें। क्या सिर्फ मार्क्स से ही सफलता तय होगी? जवाब - हम लोग अब उस दिशा में चल पड़े हैं जहां नंबर को ही महत्वपूर्ण माना जाता है। अब बच्चों के दिमाग में रहता है कि पहले नंबर ले आऊं, फिर बाद में सोचेंगे। लेकिन आज दुनिया बहुत बदल चुकी है। सिर्फ परीक्षा के अंक ही जिंदगी नहीं है ये सिर्फ एक पड़ाव है। नंबर ही सबकुछ नहीं हैं, बच्चों के लिए ‘ये नहीं तो कुछ नहीं’ का माहौल ना बनाएं। ���िसान की स्कूली शिक्षा कम होती है लेकिन वो भी नई बातें सीखता है। परीक्षा का महत्व है, लेकिन सिर्फ परीक्षा ही जिंदगी नहीं है। पीएम मोदी ने चंद्रयान-2 का उदहारण देते हुए कहा कि, 'जब चंद्रयान जा रहा था तो हर कोई जाग रहा था, जब असफल हुआ तो पूरा देश डिमोटिवेट हो गया था। जब मैं चंद्रयान लॉन्च पर था तो लोगों ने मुझे कहा था कि वहां नहीं जाना चाहिए, क्योंकि पास होना पक्का नहीं है। तो मैंने कहा कि इसलिए मुझे जाना चाहिए। चंद्रयान के जब आखिरी मिनट थे, तो वैज्ञानिकों के चेहरे पर तनाव दिख रहा है। जब चंद्रयान फेल हुआ तो मैं चैन से बैठ नहीं पाया, सोने का मन नहीं कर रहा था। हमारी टीम कमरे में चली गई थी, लेकिन बाद में मैंने सभी को बुलाया। मैंने टीम को बताया कि हम वापस बाद में जाएंगे और सभी वैज्ञानिकों को सुबह बुलाया गया। अगली सुबह सभी वैज्ञानिकों को इकट्ठा किया, उनके सपनों की बातें की। उसके बाद पूरे देश का माहौल बदल गया, ये पूरे देश ने देखा है। हम विफलता में भी सफलता की शिक्षा पा सकते हैं। अगर आप किसी चीज में असफल हुए हैं तो इसका मतलब है कि आप सफलता की ओर बढ़ चुके हैं।' तनाव दूर करने के मकसद से शुरू हुआ है कार्यक्रम परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम छात्र तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सके, इस मकसद से शुरू किया गया। परीक्षा पे चर्चा का पहल��� संस्करण 16 फरवरी, 2018 को आयोजित हुआ था। इसका दूसरा संस्करण 29 जनवरी, 2019 को हुआ था। इस बार परीक्षा पे चर्चा का तीसरा संस्करण आयोजित किया जा रहा है। छात्रों के बीच प्रधानमंत्री की परीक्षा पे चर्चा काफी लोकप्रिय रही है। यही कारण है कि पिछले दो सालों के मुकाबले 250 अधिक छात्रों ने इस बार परीक्षा पे चर्चा के लिए अपना पंजीकरण करवाया है। ये भी पढ़े... मन की बात: पीएम मोदी ने कहा- आज का पीढ़ी बेहद तेज-तर्रार, इन्हें परिवारवाद और जातिवाद पसंद नहीं पीएम मोदी मन की बात स्वस्थ रहने के लिए बच्चे पसीना बहाएं, अयोध्या पर फैसला मील का पत्थर साबित हुआ मन की बात में पीएम मोदी ने नवरात्र व त्योहारों की बधाई के साथ इन मुद्दों पर रखी राय Read the full article
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What is stress? its signs and symptoms?
Stress मानसिक तनाव(Stress ) आजकल लोगो पर इतना हावी हो चुका है कि लोगो को मनोचिकित्सा का सहारा लेना पड़ रहा है| यह एक गंभीर बीमारी का रूप लेती जा रही है जिसका इलाज काफी मुश्किल है|हमें हर रोज अपनी जिंदगी में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जिनसे हम चाह कर भी संभाल नहीं पाते और उनसे निपटने के चककर में हम काफी टेंसन (stress ) में चले जाते हैं हम में से कई लोग तो तनावों को झेलते हुए इतने आदी हो चुके होते हैं कि वें महसूस ही नहीं कर पाते। ऐसे तनाव को यूस्ट्रेस (Eustress) कहा जाता है। अगर देखा जाए तो ये तनाव आपकी परफॉरमेंस और काम करने की क्षमता पर निगेटिव असर(negative effoct ) डालता है। इस आर्टिकल में हम discus करेंगे कि तनाव/टेंशन क्या है, तनाव के लक्षण, कारण और टेंशन से बचने के उपाय क्या हैं ? स्ट्रेस क्या है? (What is stress?) : स्ट्रेस या तनाव होना सामान्य सी बात है। ये तब महसूस होता है जब किसी स्थिति से निपटना मुश्किल हो जाता है। टेंशन होने पर एड्रेनालाईन (Adrenaline -When a stressful situation occurs and your heart begins to race, your hands begin to sweat, and you start looking for an escape, you have experienced a textbook case of fight-or-flight response.) हमारे पूरे शरीर में दौड़ने लगता है जिससे दिल की धड़कन बढ़ जाती है और मानसिक और शारीरिक चेतना बहुत ��्यादा बढ़ जाती है। हमें पसीना आता है, सनसनी महसूस होती है और कई बार पूरे शरीर के रोएं खड़े हो जाते हैं। कितना खतरनाक(Harmfull ) है तनाव? ऐसा नहीं है कि हमारे पूर्वजों(बुजुर्गों ) की जिंदगी में Stress नहीं था, लेकिन वो करो या मरो (Do or Die )की स्थिति को अपनाकर आसानी से इससे निजात पा सकते थे। आज हमारे जीवन में तनाव की मात्रा और उनकी आवृत्ति भी बहुत ज्यादा ही है। लेकिन सबसे मुश्किल बात यह है कि Stress देने वाले हार्मोन जैसे एड्रेलिन और कॉर्टिसोल का उत्सर्जन उस वक्त और ज्यादा harmfull हो जाता है जब हमें उनकी जरूरत नहीं होती है । अगर तनाव लंबे वक्त तक रहेगा तो हमारे इम्यून सिस्टम और हृदय को नुकसान पहुंच सकता है। इसके अलावा तनाव के रहते हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमतापर भी प्रभाव पड़ता है। इसका मतलब यह है कि तनाव उस वक्त और भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है जब हर पांच मिनट में करो या मरो (Do or Die )की स्थिति में जाना पड़े। ज्यादा तनाव होने से : हमारे इम्यून सिस्टम और हृदय को नुकसान पहुंच सकता है। गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता है। उम्र कम होती है। तनाव को समझना क्यों जरूरी है? (Why does understanding stress matter?) तनाव के कारण कई गंभीर मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। भारत में हर चार में से एक इंसान हर साल Stress का शिकार हो जाता है। तनाव के कारण कई बार हम लोग काम करते हुए भी लंबे वक्त तक काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। अगर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लंबे वक्त तक अनदेखा किया जाए जो ये गंभीर समस्या में बदल सकती है। देश में Stress और depression का इलाज करवाने वाले मरीजों में से तीन चौथाई महिलाएं हैं। लेकिन जो तीन चौथाई लोग टेंशन और डिप्रेशन के चलते आत्महत्या कर लेते हैं वह पुरुष हैं। चूंकि डिप्रेशन और टेंशन ही सुसाइड के मामलों के लिए अधिक जिम्मेदार साबित हुये हैं इसलिए इसका इलाज जरुरी है | क्यों होता है तनाव? (What causes stress?) आजकल होने वाले तनाव के सामान्य कारण निम्नलिखित हैं। जैसे - 1.काम 2.बेरोजगारी 3.पैसा 4.अलगाव और कुछ अन्य कारण जैसे घर छोड़ना 5.पार्टनर से ब्रेकअप 6.नौकरी में बदलाव होना 7.बच्चों का घर छोड़ना 8.आपका स्वास्थ्य और मूड 9.मौसम 10.पार्टनर का निधन होना या करीब न होना 11.तलाक के कारण परिवार टूट जाना 12.नशाखोरी और ड्रिंक करना 12.बुरी आदतों का शिकार होना 14.हिंसा या बुरे व्यवहार का शिकार होना थोड़ी देर के लिए जीवन में उतार-चढ़ाव आना तो जरुरी है लेकिन अगर ये लंबे वक्त तक बने रहे तो ��े जिंदगी से जुड़ी बाकी चीजों को भी नष्ट कर सकती है। वैसे भी तनाव इसलिए कभी ��हीं होता क्योंकि आप कमजोर हैं बल्कि हमेशा इसलिए होता है कि आप उसकी मौजूदगी होने के बाद भी टेंशन को रहने देते हैं और उसका विरोध नहीं करते हैं। तनाव होने पर हमेशा चीजों को सकारात्मक तरीके से देखने और सोचने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ मामलों में हो सकता है कि आपको Fresh Start की भी जरुरत पड़े। लेकिन अगर आप लगातार नौकरियां, पार्टनर या घर बदल रहे हैं तो ऐसे हालात में आपको हालात नहीं बल्कि खुद को बदलने की जरुरत होती है। क्या हैं Stress के चेतावनी देने वाले लक्षण (What are the warning signs of stress ?) अगर आपको इतना ज्यादा तनाव होता है कि संभलने का मौका तक नहीं मिल पाता है, तो ये आपके लिए खतरे की घंटी जैसा हो सकता है। इसलिए ये जानना बहुत जरुरी है कि तनाव होने से पहले वो कौन से लक्षण हैं जिन्हें जानकर आप थोड़ी देर में होने वाले तनाव से पहले ही निपट सकते हैं। टेंशन से पहले होने वाले सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:- 1.सामान्य से ज्यादा या कम भोजन करना। 2.तेजी से मूड बदलना। 3.आत्म-सम्मान में कमी आना। 4.हर वक्त टेंशन या बेचैनी महसूस करना। 5.ज्यादा या कम सोना। 6.कमजोर याददाश्त या भूलने की समस्या। 7.जरुरत से ज्यादा शराब या ड्रग्स लेना। 8.जरुरत से ज्यादा थकान या ऊर्जा में कमी होना। 9.परिवार और दोस्तों से दूर-दूर रहना। 10.ध्यान केंद्रित न करना और काम में संघर्ष करना। 11.उन चीजों में भी मन न लगना जो पहले आपको पसंद थीं। 12.विचित्र अनुभव होना, उन चीजों का दिखना जो वहां हैं ही नहीं। इसके अलावा टेंशन के कुछ शारीरिक लक्षण भी हो सकते हैं जिनमें सिरदर्द, कब्ज या किसी खास अंग या शरीर में दर्द होना। अपने अनुभव के बारे में कैसे बताएं? (How do I talk about how I'm feeling?) हम सभी जानते हैं कि जब हम किसी से जुड़ाव/lagav महसूस करते हैं तो उससे बात करना हमेशा अच्छा लगता है। हम लोगों में से कुछ के लिए, सोशल मीडिया इसका सबसे अच्छा माध्यम है। लेकिन रिसर्च से पता चला कि सोशल मीडिया ही हम लोगों में से कई की जिंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत बनकर सामने आया है। ये कहावत काफी पुरानी भी है और सुनी भी सभी ने है कि दर्द बांटने से कम होता है। लेकिन सच में ये बात सही है। ये लोगों को बताने के लिए नहीं है, ना ही ये साबित करने के लिए है कि आप जरुरत में हैं और किस दौर से गुजर रहे हैं। बल्कि ये उनसे समझने के लिए है कि अगर वह उस तकलीफ में होते तो क्या करते? कई बार जब हम टेंशन में होते हैं तो आसान से उपाय भी हमारे दिमाग में नहीं आते हैं। लेकिन दूसरे वही बात सुनकर हमें ऐसे रास्ते सुझा देते हैं जो हमारी हर मुश्किल को आसान बना देते हैं। इसलिए खुलकर संवाद करना भी बहुत जर��री है। वैसे भी किसी से बात करना कौन सी बड़ी बात है। इसलिए ईमानदारी से बात रखिए और दोस्तों को हर वो बात बता दीजिए जो आपको परेशान कर रही है। घबराएं नहीं, डॉक्टर से सलाह लें क्या कभी आपको जुकाम, दस्त या फिर बुखार की समस्या हुई है? इन बीमारियों के इलाज के लिए आप जरूर ही डॉक्टर के पास भी गए होंगे। अगर हां, तो फिर टेंशन होने पर डॉक्टर के पास जाने में हिचक क्यों? अगर आप सच में टेंशन से उबरने में मुश्किल महसूस कर रहे हों तो बेहतर है कि बिना देर किए डॉक्टर के पास जाएं। मनोचिकित्सक सच में बहुत धैर्य से मरीज की बात सुनते हैं और वह आपकी समस्या को औरों से बेहतर समझते हैं। उनके सामने बात रखने से वह न सिर्फ आपका सही इलाज कर सकते हैं बल्कि आपकी जिंदगी को नई राह भी दिखा सकते हैं। टेंशन, डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी उतनी ही आम बीमारी है जितनी कि जुकाम या बुखार होना। अगर आप उनके इलाज के लिए डॉक्टर के पास जा सकते हैं तो फिर टेंशन के इलाज के लिए क्यों नहीं? संकोच छोड़ दीजिए और डॉक्टर से इस मामले में बात कीजिए। आशा करती हूँ कि ये जानकारी helpfull होगी | हेल्थ से सम्बंधित अधिक लेख पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर विजिट करें :https://www.wisehealths.com/
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विज्ञान भैरव तंत्र विधि–110 (ओशो)
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विज्ञान भैरव तंत्र विधि–110 (ओशो)
दूसरी विधि:
‘हे गरिमामयी, लीला करो। यह ब्रह्मांड एक रिक्त खोल है जिसमें तुम्हारा मन अनंत रूप से कौतुक करता है।’
यह दूसरी विधि लीला के आयाम पर आधारित है। इसे समझे। यदि तुम निष्क्रिय हो तब तो ठीक है कि तुम गहन रिक्तता में, आंतरिक गहराइयों में उतर जाओ। लेकिन तुम सारा द���न रिक्त नहीं हो सकते और सारा दिन क्रिया शून्य नहीं हो सकते। तुम्हें कुछ तो करना ही पड़ेगा। सक्रिय होना एक मूल आवश्यकता है। अन्यथा तुम जीवित नहीं रह सकते। जीवन का अर्थ ही है सक्रियता। तो तुम कुछ घंटों के लिए तो निष्क्रिय हो सकते हो। लेकिन चौबीस घंटे में बाकी समय तुम्हें सक्रिय रहना पड़ेगा।
और ध्यान तुम्हारे जीवन की शैली होनी चाहिए। उसका एक हिस्सा नहीं। अन्यथा पाकर भी तुम उसे खो दोगे। यदि एक घंटे के लिए तुम निष्क्रिय हो तो तेईस घंटे के लिए तुम सक्रिय होओगे। सक्रिय शक्तियां अधिक होंगी और निष्क्रिय में जो तुम भी पाओगे वे उसे नष्ट कर देंगे। सक्रिय शक्तियां उसे नष्ट कर देंगी। और अगल दिन तुम फिर वही करोगे: तेईस घंटे तुम कर्ता को इकट्ठा करते रहोगे और एक घंटे के लिए तुम्हें उसे छोड़ना पड़ेगा। यह कठिन होगा।
तो कार्य और कृत्य के प्रति तुम्हें दृष्टिकोण बदलना होगा। इसीलिए यह दूसरी विधि है। कार्य को खेल समझना चाहिए, कार्य नहीं। कार्य को लीला की तरह, एक खेल की तरह लेना चाहिए। इसके प्रति तुम्हें गंभीर नहीं होना चाहिए। बस ऐसे ही जैसे बच्चे खेलते है। यह निष्प्रयोजन है। कुछ भी पाना नहीं है। बस कृत्य का ही आनंद लेना है।
यदि कभी-कभी तुम खेलो तो अंतर तुम्हें स्पष्ट हो सकता है। जब तुम कार्य करते हो तो अलग बात होती है। तुम गंभीर होते हो। बोझ से दबे होते हो। उत्तरदायी होते हो। चिंतित होते हो। परेशान होते हो। क्योंकि परिणाम तुम्हारा लक्ष्य होता है। स्वयं कार्य मात्र ही आनंद नहीं देता, असली बात भविष्य में, परिणाम में होती है। खेल में कोई परिणाम नहीं होता। खेलना ही आनंदपूर्ण होता है। और तुम चिंतित नहीं होते। खेल कोई गंभीर बात नहीं है। यदि तुम गंभीर दिखाई भी पड़ते हो तो बस दिखावा होता है। खेल में तुम प्रक्रिया का ही आनंद लेते हो।
कार्य में प्रक्रिया का आनंद नहीं लिया जाता। लक्ष्य, परिणाम महत्वपूर्ण होता है। प्रक्रिया को किसी न किसी तरह झेलना पड़ता है। कार्य करना पड़ता है। क्योंकि परिणाम पाना होता है। यदि परिणाम को तुम इसके बिना भी पा सकते तो तुम क्रिया को एक और सरका देते और परिणाम पर कूद पड़ते।
लेकिन खेल में तुम ऐसा नहीं करोगे, यदि परिणाम को तुम बिना खेले पा सको तो परिणाम व्यर्थ हो जाएगा। उसका महत्व ही प्रक्रिया के कारण है। उदाहरण के लिए, दो फुटबाल की टीमें खेल के मैदान में है, बस एक सिक्का उछाल कर वे तय कर सकते है कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा। इतने श्रम इतनी लंबी प्रक्रिया से क्यों गुजरना। इसे बड़ी सरलता से एक सिक्का उछाल कर तय किया जा सकता है। परिणाम सामने आ जाएगा। एक टीम जीत जाएगी और दूसरी टीम हार जाएगी। उसके लिए मेहनत क्या करनी।
लेकिन तब कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। कोई मतलब नहीं रह जाएगा। परिणाम अर्थपूर्ण नहीं है। प्रक्रिया का ही अर्थ है। यदि न कोई जीते और न कोई हारे तब भी खेल का मूल्य है। उस कृत्य का ही आनंद है।
लीला के इस आयाम ��ो तुम्हारे पूरे जीवन मे जोड़ना है। तुम जो भी कर रहे हो, उस कृत्य में इतने समग्र हो जाओ। कि परिणाम असंगत हो जाए। शायद वह आ भी जाए, उसे आना ही होगा। लेकिन वह तुम्हारे मन में न हो। तुम बस खेल रहे हो और आनंद ले रहे हो।
कृष्ण का यही अर्थ है जब वे अर्जुन को कहते है कि भविष्य परमात्मा के हाथ में छोड़ दे। तेरे कर्मों का फल परमात्मा के हाथ में है, तू तो बस कर्म कर। यही सहज कृत्य लीला बन जाता है। यही समझने में अर्जुन को कठिनाई होती है, क्योंकि वह सकता है कि यदि यह सब लीला ही है। तो हत्या क्यों करें? युद्ध क्यों करें? यह समझ सकता है कि कार्य क्या है, पर वह यह नहीं समझ सकता कि लीला क्या है। और कृष्ण का पूरा जीवन ही एक लीला है।
तुम इतना गैर-गंभीर व्यक्ति कहीं नहीं ढूंढ सकते। उनका पूरा जीवन ही एक लीला है, एक खेल है, एक अभिनय है। वे सब चीजों का आनंद ले रहे है। लेकिन उनके प्रति गंभीर नहीं है। वे सघनता से सब चीजों का आनंद ले रहे है। पर परिणाम के विषय में बिलकुल भी चिंतित भी चिंतित नहीं है। जो होगा वह असंगत है।
अर्जुन के लिए कृष्ण को समझना कठिन है। क्योंकि वह हिसाब लगाता है, वह परिणाम की भाषा में सोचता है। वह गीता के आरंभ में कहता है, ‘यह सब असार लगता है। दोनों और मेरे मित्र तथा संबंधी लड़ रहे है। कोई भी जीते, नुकसान ही होगा क्योंकि मेरा परिवार मेरे संबंधी, मेरे मित्र ही नष्ट होंगे। यदि मैं जीत भी जाऊं तो भी कोई अर्थ नहीं होगा। क्योंकि अपनी विजय मैं किसे दिखलाऊंगा? विजय का अर्थ ही तभी होता है, जब मित्र,संबंधी, परिजन उसका आनंद लें। लेकिन कोई भी न होगा,केवल लाशों के ऊपर विजय होगी। कौन उसकी प्रशंसा करेगा। कौन कहेगा कि अर्जुन, तुमने बड़ा काम किया है। तो चाहे मैं जीतूं चाहे मैं हारूं, सब असार लगता है। सारी बात ही बेकार है।’
वह पलायन करना चाहता है। वह बहुत गंभीर है। और जो भी हिसाब-किताब लगता है वह उतना ही गंभीर होगा। गीता की पृष्ठभूमि अद्भुत है: युद्ध सबसे गंभीर घटना है। तुम उसके प्रति खेलपूर्ण नहीं हो सकते। क्योंकि जीवन मरण का प्रश्न है। लाखों जानों का प्रश्न है। तुम खेलपूर्ण नहीं हो सकते। और कृष्ण आग्रह करते है कि वहां भी तुम्हें खेलपूर्ण होना है। तुम यह मत सोचो कि अंत में क्या होगा, बस अभी और यही जाओ। तुम बस योद्धा का अपना खेल पूरा करो। फलकी चिंता मत करो। क्योंकि परिणाम तो परमात्मा के हाथों में है। और इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि परिणाम परमात्मा के हाथों में है या नहीं। असली बात यह है कि परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है। असली बात यह है कि परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है। तुम्हें उसे नहीं ढोना है। यदि तुम उसे ढोते हो तो तुम्हारा जीवन ध्यानपूर्ण नहीं हो सकता।
यह दूसरी विधि कहती है: ‘हे गरिमामयी लीला करो।’
अपने पूरे जीवन को लीला बन जाने दो।
‘यह ब्रह्मांड एक रिक्त खोल है जिसमें तुम्हारा मन अनंत रूप से कौतुक करता है।‘
तुम्हारा मन अनवरत खेलता चला जाता है। पूरी प्रक्रिया एक खाली कमरे में चलते हुए स्वप्न जैसी है। ध्यान में अपने मन को कौतुक करते हुए देखना हो��ा है। बिलकुल ऐसे ही जैसे बच्चे खेलते है। और ऊर्जा के अतिरेक से कूदते-फांदते है। इतना ही पर्याप्त है। विचार उछल रहे है। कौतुक कर रहे है। बस एक लीला है। उसके प्रति गंभीर मत होओ। यदि कोई बुरा विचार भी आता है तो ग्लानि से मत भरो। या कोई शुभ विचार उठता है—कि तुम मानवता की सेवा करना चाहते हो—तो इसके कारण बहुत अधिक अहंकार से मत भर जाओ, ऐसा ��त सोचो कि तुम बहुत महान हो गए हो। केवल उछलता हुआ मन है। कभी नीचे जाता है, कभी ऊपर आता है। यह तो बस ऊर्जा का बहाता हुआ अतिरेक है जो भिन्न-भिन्न रूप और आकार ले रही है। मन तो उमड़ कर बहता हुआ एक झरना मात्र है, और कुछ भी नहीं।
खेलपूर्ण होओ। शिव कहते है: ‘हे गरिमामयी लीला करो।’
खेलपूर्ण होने का अर्थ होता है कि वह कृत्य का आनंद ले रहा है। कृत्य ही स्वयं में पर्याप्त है। पीछे किसी लाभ की आकांक्षा नहीं है। वह कोई हिसाब नहीं लगा रहा है। जरा एक दुकानदार की और देखो। वह जो भी कर रहा है उसमें लाभ हानि का हिसाब लगा रहा हे। कि इससे मिलेगा क्या। एक ग्राहक आता है। ग्राहक कोई व्यक्ति नहीं बस एक साधन है। उससे क्या कमाया जा सकता है। कैसे उसका शोषण किया जा सकता है। गहरे में वह हिसाब लगा रहा कि क्या करना है। क्या नहीं करना है। बस शोषण के लिए वह हर चीज का हिसाब लगा रहा है। उसे इस आदमी से कुछ लेना-देना नहीं है। बस सौदे से मतलब है। किसी और चीज से नहीं। उसे बस भविष्य से, लाभ से मतलब है।
पूर्व में देखो: गांवों में अभी भी दुकानदार बस लाभ ही नहीं कमाते और ग्राहक बस खरीदने ही नहीं आते। वे सौदे का आनंद लेते है। मुझे अपने दादा की याद है। वह कपड़ों के दुकानदार थे। और मैं तथा मेरे परिवार के लोग हैरान थे। क्योंकि इसमें उन्हें बहुत मजा आता था। घंटो-घंटो ग्राहकों के साथ वह खेल चलता था। यदि कोई चीज दस रूपये की होती तो वह उसे पचास रूपए मांगते। और वह जानते थे कि यह झूठ है। और उनके ग्राहक भी जानते थे कि वह चीज दस रूपये के आस-पास होनी चाहिए। और वे दो रूपये से शुरू करते। फिर घंटो तक लम्बी बहस होती। मेरे पिता और चाचा गुस्सा होते कि ये क्या हो रहा है। आप सीधे-सीधे कीमत क्यों नहीं बता देते। लेकिन उनके की अपने ग्राहक थे। जब वे लोग आते तो पूछते की दादा कहां है। क्योंकि उनके साथ तो खेल हो जाता था। चाहे हमे एक दो रूपये कम ज्यादा देना पड़े,इसमे कोई अंतर नहीं पड़ता।
उन्हें इसमे आनंद आता, वह कृत्य ही अपने आप में आनंद था। दो लोग बात कर रहे है, दोनों खेल रहे है। और दोनों जानते है कि यह एक खेल है। क्योंकि स्वभावत: एक निश्चित मूल्य ही संभव था।
पश्चिम में अब मूल्यों को निश्चित कर लिया गया है। क्योंकि लोग अधिक हिसाबी और लाभ उन्मुक्त हो गए है। समय क्यों व्यर्थ करना। जब बात को मिनटों में निपटाया जा सकता है। तो कोई जरूरत नहीं है। तुम सीधे-सीधे नि��्चित मूल्य लिख सकते हो। घंटों तक क्यों जद्दोजहद करना? लेकिन तब सारा खेल खो जाता है। और एक दिनचर्या रह जाती है। इसे तो मशीनें भी कर सकती है। दुकानदार की जरूरत ही नहीं है। न ग्राहक की जरूरत है।
मैने एक मनोविश्लेषक के संबंध में सुना है कि वह इतना व्यस्त था और उसके पास इतने मरीज आते थे कि हर किसी से व्यक्तिगत संपर्क रख पाना कठिन था। तो वह अपने टेप रिकार्डर से मरीजों के लिए सब संदेश भर देता था जो स्वयं उनसे कहना चाहता था।
एक बार ऐसा हुआ कि एक बहुत अमीर मरीज का सलाह के लिए मिलने का समय था। मनोविश्लेषक एक होटल में भीतर जा रहा था। अचानक उसने उस मरीज को वहां बैठे देखा। तो उसने पूछा, तुम यहां क्या कर रहे हो। इस समय तो तुम्हें मेरे पास आना था। मरीज ने कहा कि: ‘मैं भी इतना व्यस्त हूं कि मैंने अपनी बातें टेप रिकार्डर में भर दी है। दोनों टेप रिकार्डर आपस में बातें कर रहे है। जो आपको मुझसे कहना है वह मेरे टेप रिकार्डर में भर गया है। और जो मुझे आपको कहना है वह मेरे टेप रिकार्डर से आपके टेप रिकार्डर में रिकार्ड हो गया है। इससे समय भी बच गया और हम दोनों खाली है।’
यदि तुम हिसाबी हो जाओ तो व्यक्ति समाप्त हो जाता है। और मशीन बन जाता है। भारत के गांवों में अभी भी मोल-भाव होता है। यह एक खेल है। और रस लेने जैसा है। तुम खेल रहा हो। दो प्रतिभाओं के बीच एक खेल चलता है। और दोनों व्यक्ति गहरे संपर्क में आते है। लेकिन फिर समय नहीं बचता। खेलने से तो कभी भी समय की बचत नहीं हो सकती। और खेल में तुम समय की चिंता भी नहीं करते। तुम चिंता मुक्त होते हो। और जो भी होता है उसी समय तुम उसका रस लेते हो। खेलपूर्ण होना ध्यान प्रक्रियाओं के गहनत्म आधारों में से एक है। लेकिन हमारा मन दुकानदार है। हम उसके लिए प्रशिक्षित किया गया है। तो जब हम ध्यान भी करते है तो परिणाम उन्मुख होते है। और चाहे जो भी हो तुम असंतुष्ट ही होते हो।
मेरे पास लोग आते है और कहते है, ‘हां ध्यान तो गहरा हो रहा है। मैं अधिक आनंदित हो रहा हूं, अधिक मौन और शांत अनुभव कर रहा हूं। लेकिन और कुछ भी नहीं हो रहो।’
और क्या नहीं हो रहा? मैं जानता हूं ऐसे लोग एक दिन आएँगे और पूछेंगे, ‘हां मुझे निर्वाण का अनुभव तो हाँ रहा है, पर और कुछ नहीं हो रहा है। वैसे तो मैं आनंदित हूं, पर और कुछ नहीं हो रहा है।’ और क्या चाहिए। वह कोई लाभ ढूंढ रहा है। और जब तक कोई ठोस लाभ उसके हाथों में नहीं आ जाता। जिसे वह बैंक में जमा कर सके। वह संतुष्ट नहीं हो सकता। मौन और आनंद इतने अदृष्य है। कि तुम उन पर मालकियत नहीं कर सकते हो। तुम उन्हें किसी को दिखा भी नहीं सकते हो।
रोज मेरे पास लोग आते है और कहते है कि वह उदास है। वे कसी ऐसी चीज की आशा कर रहे है जिसकी आशा दुकानदारी में भी नहीं होनी चाहिए। और ध्यान में वे उसकी आशा कर रहे है। दुकानदार, ह��साबी-किताबी मन ध्यान के भी बीच में आ जाता है—इससे क्या लाभ हो सकता है।
दुकानदार खेलपूर्ण नहीं होता। और यदि तुम खेलपूर्ण नहीं हो त�� तुम ध्यान में नहीं उतर सकते। अधिक से अधिक खेलपूर्ण हो जाओ। खेल में समय व्यतीत करो। बच्चों के साथ खेलना ठीक रहेगा। यदि कोई और न भी हो तो तुम कमरे में अकेले उछल-कूद कर सकते हो। नाच सकते हो। और खेल सकते हो, आनंद ले सकते हो।
यह प्रयोग करके देखो। दुकानदारी में से जितना समय निकाल सको। निकाल कर जरा खेल में लगाओ। जो भी चाहो करो। चित्र बना सकते हो। सितार बजा सकते हो। तुम्हें जो भी अच्छा लगे। लेकिन खेलपूर्ण होओ। किसी लाभ की आकांक्षा मत करो। भविष्य की और मत देखो। वर्तमान की और देखो। और तब तुम भीतर भी खेलपूर्ण हो सकते हो। तब तुम अपने विचारों पर उछल सकते हो। उनके साथ खेल सकते हो। उन्हें इधर-उधर फेंक सकते हो। उनके साथ नाच सकते हो। लेकिन उनके प्रति गंभीर नहीं होओगे।
दो प्रकार के लोग है। एक वे जो मन के संबंध में पूर्णतया अचेत है। उनके मन में जो भी होता है उसके प्रति वे मूर्छित होते है। उन्हें नहीं पता कि कहां उनका मन उन्हें भटकाए जा रहा है। यदि मन की किसी भी चाल के प्रति तुम सचेत हो सको तो तुम हैरान होओगे। कि मन मैं क्या हो रहा है।
मन एसोसिएशन में चलता है। राह पर एक कुत्ता भौंकता है। भौंकना तुम्हारे मस्तिष्क तक पहुंचता है। और वह कार्य करना शुरू कर देता है। कुत्ते के इस भौंकने को लेकर तुम संसार के अंत तक जा सकते हो। हो सकता है कि तुम्हें किसी मित्र की याद आ जाए। जिसके पास एक कुत्ता है। अब यह कुत्ता तो तुम भूल गए पर वह मित्र तुम्हारे मन में आ गया। और उसकी एक पत्नी है जो बहुत सुंदर है—अब तुम्हारा मन चलने लगा। अब तुम संसार के अंत तक जा सकते हो। और तुम्हें पता नहीं चलता कि एक कुत्ता तुम पर चाल चल गया। बस भौंका ओर तुम्हें रास्ते पर ले आया। तुम्हारे मन ने दौड़ना शुरू कर दिया।
तुम्हें बड़ी हैरानी होगी यह जानकर कि वैज्ञानिक इस बारे में क्या कहते है। वे कहते है कि यह मार्ग तुम्हारे मन में सुनिश्चित हो जाता है। यदि यही कुत्ता इसी परिस्थिति में दोबारा भौंके तो तुम इसी पर चल पड़ोगे: वहीं मित्र,वहीं कुत्ता, वहीं सुंदर पत्नी। दोबारा उसी रास्ते पर तुम घूम जाओगे।
अब मनुष्य के मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड डालकर उन्होने कई प्रयोग किए है। वे मस्तिष्क में एक विशेष स्थान को छूते है। और एक विशेष स्मृति उभर आती है। अचानक तुम पाते हो कि तुम पाँच वर्ष के हो, एक बग़ीचे में खेल रहे हो। तितलियों के पीछे दौड़ रहे हो। फिर पूरी की पूरी शृंखला चली आती है। तुम्हें अच्छा लग रहा है। हवा, बगीचा,सुगंध, सब कुछ जीवंत हो उठती है। वह मात्र स्मृति ही नहीं होती, तुम उसे दोबारा जीते हो। फिर इलेक्ट्रोड वापस निकाल लिए जाता है। और स्मृति रूक जाती हे। यदि इलेक्ट्रोड पुन: उसी स्थान को छू ले तो पुन: वही स्मृति शुरू हो जाती है। तुम पुन: पाँच साल के हो जाते हो। उसी बग़ीचे में, उसी ��ितली के पीछे दौड़ने लगते हो। वहीं सुगंध और वहीं घटना चक्र शुरू हो जाता है। जब इलेक्ट्रोड निकाल लिया जाता है। लेकिन इलेक्ट्रोड को वापस उसी जगह रख दो स्मृति वापस आ जाती है।
यह ऐसे ही है जैसे यांत्रिक रूप से कुछ स्मरण कर रहे हो। और पूरा क्रम एक निश्चित जगह से प्रारंभ होता है और निश्चित परिणति पर समाप्त होता है। फिर पुन: प्रारंभ से शुरू होता है। ऐसे ही जैसे तुम टेप रिकार्डर में कुछ भर देते हो। तुम्हारे मस्तिष्क में लाखों स्मृतियां है। लाखों कोशिकाएं स्मृतियां इकट्ठी कर रही है। और यह सब यांत्रिक है।
मनुष्य के मस्तिष्क के साथ किए गए ये प्रयोग अद्भुत है। और इनसे बहुत कुछ पता चलता है। स्मृतियां बार-बार दोहरायी जा सकती है। एक प्रयोगकर्ता ने एक स्मृति को तीन सौ बार दोहराया और स्मृति वही की वही रही—वह संग्रहीत थी। जिस व्यक्ति पर यह प्रयोग किया गया उसे तो बड़ा विचित्र लगा क्योंकि वह उस प्रक्रिया का मालिक नहीं था। वह कुछ भी नहीं कर सकता था। जब इलेक्ट्रोड उस स्थान को छूता तो स्मृति शुरू हो जाती और उसे देखना पड़ता।
तीन सौ बार दोहराने पर वह साक्षी बन गया। स्मृति को तो वह देखता रहा, पर इस बात के प्रति वह जाग गया कि वह और उसकी स्मृति अलग-अलग है। यह प्रयोग ध्यानियों के लिए बहुत सहयोगी हो सकता है। क्योंकि जब तुम्हें पता चलता है कि तुम्हारा मन और कुछ नहीं बस तुम्हारे चारों और एक यांत्रिक संग्रह है। तो तुम उससे अलग हो जाते हो।
इस मन को बदला जा सकता है। अब तो वैज्ञानिक कहते है कि देर अबेर हम उन केंद्रों को काट डालेंगे जो तुम्हें विषाद ओर संताप देते है, क्योंकि बार-बार एक ही स्थान छुआ जाता है। और पूरी की पूरी प्रक्रिया को दोबारा जीना पड़ता है।
मैंने कई शिष्यों के साथ प्रयोग किए है। वही बात दोहराओं और वे बार-बार उसी दुष्चक्र में गिरते जाते हे। जब तक कि वे इस बात के साक्षी न हो जाएं कि यह एक यांत्रिक प्रक्रिया है। तुम्हें इस बात का पता है कि यदि तुम अपनी पत्नी से हर सप्ताह वहीं-वहीं बात कहते हो तो वह क्या प्रतिक्रिया करेगी। सात दिन में जब वह भूल जाए तो फिर वही बात कहो: वहीं प्रतिक्रिया होगी।
इसे रिकार्ड कर लो, प्रतिक्रिया हर बार वही होगी। तुम भी जानते हो, तुम्हारी पत्नी भी जानती है। एक ढांचा निश्चित है। और वही चलता रहता है। एक कुत्ता भी भौंक कर तुम्हारी प्रक्रिया की शुरूआत कर सकता है। कहीं कुछ छू जाता है। इलेक्ट्रोड प्रवेश कर जाता है। तुमने एक यात्रा शुरू कर दी।
यदि तुम जीवन में खेलपूर्ण हो तो भीतर तुम कन के साथ भी खेलपूर्ण हो सकते हो। फिर ऐसा समझो जैसे टेलीविजन के पर्दे पर तुम कुछ देख रहे हो। तुम उसमे सम्मिलित नहीं हो। बस एक द्रष्टा हो। एक दर्शक हो। तो देखो और उसका आनंद लो। न कहो अच्छा है, न कहो बुरा है, न निंदा करो, न प्रशंसा करो। क्योंकि वे गंभीर बातें है।
यदि तुम्हारे पर्दे पर कोई नग्न स्त्री आ जाती है तो यह मत कहो कि यह गलत है, कि कोई शैतान तुम पर चाल ��ल रहा है। कोई शैतान तुम पर चाल नहीं चल रहा,इसे देखो जैसे फिल्म के पर्दे पर कुछ देख रहे हो।
और इसके प्रति खेल का भाव रखो। उस स्त्री से कहो कि प्रतीक्षा करो। उसे बाहर धकेलने की कोशिश मत करो। क्योंकि जितना तुम उसे बाहर धकेलोगे। उतना ही वह भीतर धुसेगी। अब महिलाएं तो हठी हाथी है। और उसका पीछा भी मत करो। यदि तुम उसके पीछे जाते हो तो भी तुम मुश्किल में पड़ोगे। न उसके पीछू जाओ। न उस से लड़ो,यही नियम है। बस देखो और खेलपूर्ण रहो। बस हेलो या नमस्कार कर लो और देखते रहो, और उसके बेचैन मत होओ। उस स्त्री को इंतजार करने दो।
जैसे वह आई थी वैसे ही अपने आप चली जाएगी। वह अपनी मर्जी से चलती है। उसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। वह बस तुम्हारे स्मृतिपट पर है। किसी परिस्थिति वश वह चली आई बस एक चित्र की भांति। उसके प्रति खेलपूर्ण रहो।
यदि तुम अपने मन के साथ खेल सको तो वह शीध्र ही समाप्त हो जाएगा। क्योंकि मन केवल तभी हो सकता है। जब तुम गंभीर होओ। गंभीर बीच की कड़ी है। सेतु है।
‘हे गरिमामयी लीला करो। यह ब्रह्मांड एक रक्त खोल है। जिसमें तुम्हारा मन अनंत रूप से कौतुक करता है।’
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—पांच,
प्रवचन-79
साभार:-(oshosatsang.org)
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Four Things To Do For Becoming A Powerful Public Speaker: पावरफुल पब्लिक स्पीकर बनने के लिए ये 4 तरीके अपनाएँ, मिलेगी बड़ी सफलता
क्या आपने कभी मंच पर खड़े होकर लोगों को संबोधित किया है? अगर किया है तो आपको इस बात का अच्छी तरह से अहसास होगा कि मंच पर रहकर लोगों से बात करना बिल्कुल भी आसान काम नहीं है. स्टेज पर जब आप मौजूद होंगे तो घबराहट की वजह से आप अपना वह विषय भी भूल गए होंगे, जिसके बारे में आप बोलने आए हैं. दिल की तेज बढ़ती धड़कने, हाथों का अचानक कांप जाना और अजीब किस्म की बैचेनी ने आपको बार-बार स्टेज से वापसी का दरवाजा भी जरूर दिखाया होगा. अगर आपको भी स्टेज पर इसी तरह का अहसास हुआ है तो आप ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं है. पहली बार मंच पर आकर बड़ी संख्या में ऑडियंस को संबोधित करना किसी भी स्पीकर के पसीने छुड़ाने का काम ही करता है. पब्लिक स्पीकिंग एक कला है, जिसे सीख कर आप भी भारत के बेस्ट मोटिवेशनल या पब्लिक स्पीकर्स (Best Motivational Speaker in India) की लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं. चलिए आज बात करते हैं कि पब्लिक स्पीकिंग की इस कला को आप किस तरह से सीख सकते हैं और अपनी शानदार स्पीच और गोल्डन वर्ड्स के दम पर बड़ी से बड़ी ऑडियंस की तालियाँ बटोर सकते हैं.
1. आप क्या कहेंगे और ऑडियंस क्या सुनेगी (First Know What You Want to say to Your Audience)
पब्लिक स्पीकिंग एक कला के साथ ही एक बड़ी जिम्मेदारी भी है क्योंकि ऑडियंस अपना कीमती समय केवल आपको सुनने के लिए खर्च करने के लिए मौजूद होती है. अब स्पीकर के ऊपर ऑडियंस के उस कीमती समय और विश्वास को सही साबित करने का दारोमदार होता है. आपके पास ऑडियंस हैं और ऑडियंस के सामने एक अच्छी स्पीच देना किसी बेहतरीन अवसर से कम नहीं होता है. आपको अपनी स्पीच और शानदार कान्टेंट के माध्यम से उस ऑडियंस को उनके जीवन में बदलाव लाने वाली जानकारी उपलब्ध करानी है.
इसके लिए आपको अपना विषय पहले ही निर्धारित करना होगा. क्या आपके पास कोई अनुभव है, जिसे आप शेयर करना चाहते हैं या फिर कोई विशेष टॉपिक है, जो आपकी ऑडियंस को अच्छी नॉलेज देगा? ध्यान रखना होगा कि जिस भी कॉन्टेंट का चुनाव आप कर रहे हैं, उसमें वैल्यू होनी चाहिए. अगर वैल्यू नहीं है तो उस टॉपिक को छोड़ दें. ऐसे ही विषय का चयन करना चाहिए, जिससे आपकी ऑडियंस कनेक्ट कर पाए.
2. प्रैक्टिस कराएगी महारथ हासिल (Keep Practicing)
प्रैक्टिस ही व्यक्ति को महान बनाती है. चाहे किसी भी तरह का कार्य क्यों न हो, अगर लगातार किया जाए है तो उसमें सफलता जरूर मिलती है. पब्लिक स्पीकिंग स्किल्स (Public Speaking Skills) को भी लगातार प्रैक्टिस करते रहने से ही हासिल किया जा सकता है. जब आप अपना विषय या टॉपिक जान जाएं कि आपको किस टॉपिक पर बोलना है तो उसकी लगातार प्रैक्टिक करते रहने से आपमें आत्मविश्वास आता है. यहाँ पर आपको रट्टा नहीं लगाना है, प्रैक्टिस का उद्देश्य स्टेज पर जाने से पहले होने वाली घबराहट को दूर करना है. प्रैक्टिस का उद्देश्य अपने विषय पर अच्छी पकड़ बनाना है. आप चाहे तो अपने कुछ दोस्तों का समूह बनाकर उनके साथ भी प्रैक्टिस कर सकते हैं.
3. इमैजिन करें और बोलें बेहिचक (Visualize or Use the Power of Imagination)
कभी आपने सोचा है कि स्टेज पर ज्यादा लोगों को देख कर घबराहट क्यों होती है? दरअसर जब स्टेज पर आप होते हैं तो आप अनजाने लोगों को देख कर एक तरह के नकारात्मक स्वाभाव से खुद को घेर लेते हैं और फिर वही नकारात्मक स्वाभाव आपमें एक किस्म का डर पैदा कर देता है और आपको लोगों को देख कर घबराहट होने लगती है. ऐसी स्थिति में आपको अपनी इमैजिनेशन और विज्यूलाइजेशन का प्रयोग करना चाहिए. आपको एक लंबी सांस लेने के साथ ही मंच पर पहुंच कर ऑडियंस के मनोभाव को समझना चाहिए और आपको देखती उनकी नज़रों के बारे में सोचना चाहिए. स्पीच को शुरू करने से पहले हॉल या रूम के सन्नाटे को विज्यूलाइज़ करना चाहिए. अपने भीतर भरे आत्मविश्वास को महसूस करना चाहिए. आपको इमैजिन करना चाहिए कि आप एक शानदार स्पीच देने जा रहे हैं, जिसका ऑडियंस भरपूर आनंद उठाने वाली है.
4. तुलना किए जाने से न ड़रें (Don’t be Scare for Judging)
जब स्टेज पर जाकर आप स्पीच देने की तैयारी करते हैं तो आपके जहन में ऑडियंस को लेकर कुछ सवाल चल रहे होते हैं. आपका ध्यान होता है कि लोग आपकी भाषा, आपकी वेशभूषा, विषय पर आपकी समझ, आपकी जानकारी, आपके हाव-भाव को लेकर कुछ कानाफूसी कर रहे होंगे. आप सोचते हैं कि आपने इस बात को कह दिया, तो लोग क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे? बस आपको इन्ही सवालों और शंकाओं से खुद को दूर रखना है. आपको सोचना चाहिए कि आपके पास ऑडियंस से घिरा एक ऐसा मंच है, जहाँ पर आपसे कुछ सीखने की चाह लेकर लोग आपको सुनने आए हैं. आपको न तो दूसरों से तुलना होने का डर होना चाहिए और न ही खुद की भी किसी दूसरे व्यक्ति से तुलना करनी चाहिए. आपको अपने क्षेत्र की पूरी जानकारी होनी चाहिए और ऑडियंस को अच्छी तरह इंगेज़ करना आना चाहिए. अगर आप बिज़नेस कोच (Motivational Coach for Entrepreneurs) हैं, तो यहाँ आपका सामना आंत्रप्रेन्योर्स से होगा. इसलिए जरूरी है कि आपके पास बिज़नेस की हर छोटी बड़ी जानकारी होनी चाहिए.
पब्लिक स्पीकिंग एक ऐसा स्किल है, जो आपको विश्वभर में पहचान दिलाने का काम करता है. आपके व्यक्तित्व में निखार लाने का काम करता है, इसलिए पब्लिक स्पीकर को एक अच्छा प्रोफेशन माना जाता है. आप इन टिप्स और तरीको को अपने जीवन में शामिल कर बेहतरीन पब्लिक स्पीकर्स बन सकते हैं.
लेख के बारे में आप अपनी टिप्पणी को कमेंट सेक्शन में कमेंट करके दर्ज करा सकते हैं. इसके अलावा आ�� अगर एक व्यापारी हैं और अपने व्यापार में किन्ही जटिल और मुश्किल परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो आप Problem Solving Course के माध्यम से उन्हें दूर कर सकते हैं और अपने कारोबार को परेशानीमुक्त कारोबार बना सकते हैं.
Source: https://hindi.badabusiness.com/business-motivation/four-things-to-do-for-becoming-a-powerful-public-speaker-8700.html
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फिल्ममेकर अडूर गोपालकृष्णन ने कहा, सिनेमा को वापस हॉल में आना ही होगा Divya Sandesh
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फिल्ममेकर अडूर गोपालकृष्णन ने कहा, सिनेमा को वापस हॉल में आना ही होगा
दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित फिल्म निर्देशक भारत के सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार हैं, जिनकी प्रतिष्ठा दुनिया भर में है। प्रख्यात फिल्म डायरेक्टर सत्यजित रे उनका काम बहुत पसंद करते थे। यह सत्यजित रे की जन्मशती का साल है। इस मौके पर अडूर गोपालकृष्णन से उनकी कलायात्रा पर अरविंद दास ने बात की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :
स्वयंवरम (1972) से सुखायंतम (2019) की लंबी सिनेमाई यात्रा को आप किस रूप में देखते हैं? आम तौर पर मैं पीछे मुड़ कर नहीं देखता। फिल्म इंस्टिट्यूट, पुणे से पास करने के सात साल बाद मैंने पहली फिल्म बनाई और उसके बाद एक अंतराल रहा। असल में पूरे फिल्मी करियर में मेरी फिल्मों के बीच एक लंबा अंतराल रहा है। 55 साल के दौरान मैंने 12 फिल्में बनाई है। मैं इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं रहा। जब फिल्म बन रही होती थी, तब इनसाइडर रहता था और जब नहीं बन रही होती थी, तब आउटसाइडर। लोग पूछते हैं कि आपने इतनी कम फिल्में क्यों बनाई, जबकि इंडस्ट्री में इसी दौरान लोगों ने पचास-साठ फिल्में बना डालीं। ने भी मुझसे एक बार कहा था कि मुझे कम से कम एक फिल्म हर साल बनानी चाहिए, वह मेरा काम पसंद करते थे। मैंने उनसे कहा था कि मेरा भी यह सपना है। पर मैं जिस तरह के विचार को लेकर आगे बढ़ता हूं, यह हो नहीं पाता। एक विचार पर काम करने और उससे बाहर निकलने दोनों में मुझे काफी वक्त लगता है।
पांच साल लग जाते हैं एक फिल्म को परदे पर लाने में? हां, कभी-कभी तो सात-आठ साल। पर ऐसा मैं इरादतन नहीं करता। असल में इस इंडस्ट्री में सारी चीजें हमारे खिलाफ काम कर रही होती हैं। यहां वेरायटी एंटरटेनमेंट (गीत-नृत्य) पर जोर रहता है, जबकि मेरे यहां सीधी-सादी और आडंबरहीन चीजें हैं जो दर्शकों के जीवन, मेरे जीवन, समाज से जुड़ी हैं। सौभाग्य से मेरी फिल्मों को हमेशा दर्शक मिले हैं और फिल्में रिलीज हुई हैं। कभी दर्शकों ने इसे रिजेक्ट नहीं किया। बड़े प्रॉडक्शन की फिल्मों की तरह ही इसका प्रचार-प्र��ार हुआ। मेरे दर्शक केरल के बाहर देश-विदेश में फैले हैं। मैंने कोई समझौता किसी भी फिल्म में नहीं किया। जो भी मैंने बनाया उस पर मेरा पूरा नियंत्रण रहा। मेरे लिए खुश होना ज्यादा जरूरी है। मुझे किसी प्रकार का खेद नहीं है। हर फिल्म मेरे लिए प्रिय है।
सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन के साथ आपके कैसे संबंध थे? इन तीनों निर्देशकों की कौन सी फिल्म आपको सबसे ज्यादा पसंद आई? सत्यजीत रे मेरे गुरु समान थे। मेरे काम को लेकर हमेशा उन्होंने अच्छी बातें कहीं। ऋत्विक घटक के साथ मेरे निजी संबंध नहीं थे, हालांकि वे मेरे शिक्षक रहे। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। उनकी वजह से फिल्म इंस्टिट्यूट में सिनेमा के बारे में काफी कुछ पढ़ा। वे गजब के फिल्मकार थे। मृणाल सेन मेरे लिए बड़े भाई जैसे थे। रे और सेन के साथ मेरे संबंध प्रेम से भरे थे। मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि भारतीय सिनेमा की इन तीन विभूतियों को मैंने देखा-जाना। रे की ‘अपू त्रयी’, ‘अपराजितो’ मुझे खास तौर पर अच्छी लगी। मृणाल सेन की ‘एक दिन प्रतिदिन’ और ऋत्विक घटक की ‘मेघे ढाका तारा’ मेरी पसंदीदा फिल्में हैं।
आपने एक जगह लिखा है कि ‘सिनेमा मेरे लिए महज कहानी को दोहराना नहीं है’। आपके लिए सिनेमा में कौन का तत्व सबसे अहम है? फिल्म, असल में, मेरे लिए दर्शकों के साथ एक अनुभव साझा करना है। और ये अनुभव साझा करने लायक होने चाहिए। मेरी फिल्में मेरी संस्कृति को दिखाती है। मैं अपने समाज का हिस्सा हूं, कोई आउडसाइडर नहीं। फिल्मकार को अनूठे रूप से नई चीजें कहनी होती हैं। मैं कभी खुद को नहीं दोहराता। यह बोरिंग है। सिनेमा का विकास एक महान कलात्मक चीज को हासिल करने की इच्छा के फलस्वरूप हुआ है। हम आस-पास घट रही घटना से खुद को अनभिज्ञ नहीं रख सकते हैं।
स्वतंत्रता/मुक्ति का सवाल आपकी फिल्में स्वयंवरम, एलिप्पथाएम, मतिलुकल में है। जबकि फिल्म अनंतरम की रचना प्रक्रिया जटिल है। यहां यर्थाथ और कल्पना की रेखा गड्डमड्ड है… ‘अनंतरम’ रचने की प्रक्रिया के बारे में बताऊं। सवाल है कि हम कैसे रचें? शुरुआत में आप अपने अनुभव के ऊपर काम करते हैं। यदि आप कलात्मक व्यक्ति हैं तो उस अनुभव को आप किसी रूप में व्यवस्थित करते हैं और फिर यहां कल्पना की भूमिका आती है। सो सारा कुछ यहां मिल जाता है। अनुभव जस के तस रूप में नहीं आता। उसमें भी बदलाव होता है। हर इंसान के अंदर इंट्रोवर्ट और एक्सट्रोवर्ट मौजूद रहता है। इस फिल्म में ‘अजयन’ एक ऐसा ही चरित्र है। यदि आप कहानी देखेंगे तो यहां कोई विभेद नहीं है, यह एक-दूसर�� का पूरक है। दर्शक गैप्स को खुद भर लेते हैं और कहानी गढ़ते हैं।
हाल में रिलीज हुई मलायम फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचेन’ देखते हुए मुझे सामंती व्यवस्था के ऊपर बनी आपकी फिल्म एलिप्पथाएम की याद आई… ‘एलिप्पथाएम’ की शुरुआत मेरे मन में आए इस विचार से हुई कि हमारे आस-पास जो चीजें हैं उस पर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं व्यक्त करते हैं। फिर मुझे खुद ही जवाब मिल गया कि यदि हम प्रतिक्रिया देना शुरु करें तो हमारे लिए यह असुविधाजनक होगा। और फिर हम मानने लगते हैं कि कोई दिक्कत नहीं है, ये चीजें मौजूद ही नहीं हैं। ‘उन्नी’ का चरित्र ऐसा ही है। यह केरल समाज में सामंती संयुक्त परिवार के विघटन के दौर की कहानी है, पचास-साठ के दशक का देश काल है। उन्नी अपने आस-पास की घटना से विमुख है और खुद में सिमटा पड़ा है।
कोविड के दौर में सिनेमा का क्या भविष्य आप देखते हैं? अभी लोग लैपटॉप, टीवी, मोबाइल पर सिनेमा देख रहे हैं, पर सिनेमा को वापस हॉल में आना ही होगा। यह एक सामूहिक अनुभव है। छोटे परदे पर आप दृश्य, ध्वनि की बारीकियों से वंचित हो जाते हैं। घर में बहुत तरह के व्यवधान भी मौजूद रहते हैं।
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DNA ANALYSIS: दुनिया को Lock करके Unlock हुआ चीन, अब मना रहा जश्न
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DNA ANALYSIS: दुनिया को Lock करके Unlock हुआ चीन, अब मना रहा जश्न
नई दिल्ली: आज लॉकडाउन का 15वां दिन है और हम उम्मीद करते हैं कि आप अपने-अपने घरों में सकुशल होंगे और स्वस्थ होंगे. पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलने की शुरुआत आज से ठीक 100 दिन पहले हुई थी. इन 100 दिनों के बाद दुनिया के करीब 400 करोड़ लोग लॉकडाउन में हैं. जबकि चीन के जिस शहर वुहान से इस वायरस की शुरुआत हुई थी. उसे अब पूरी तरह से खोल दिया गया है और वहां अब लाइट शो करके दीवाली मनाई जा रही है. यानी पूरी दुनिया को लॉक करके चीन ने अपने शहर वुहान को अनलॉक कर दिया है.
अलग- अलग अनुमानों के मुताबिक, चीन की इस लापरवाही ने पूरी दुनिया का करीब 500 लाख करोड़ रुपये का नुकसान किया है. अब आप खुद सोचिए कि इतने बड़े नुकसान की भरपाई कौन करेगा ? दुनिया के अलग अलग देशों की सरकारें इसकी भरपाई आपकी और हमारी जेब से करेंगी. इसलिए अब कुछ संस्थाएं कह रही हैं कि दुनिया के बड़े-बड़े देशों को चीन से मुआवजा वसूलना चाहिए.
कोरोना वायरस की वजह से भारत के 135 करोड़ लोग अब भी लॉकडाउन में है और इससे भारत की अर्थव्यवस्था को भी बहुत बड़ा नुकसान हुआ है. इस नुकसान की भरपाई भी हमें और आपको ही करनी होगी. यानी भविष्य में आप एक ऐसा कोरोना टैक्स चुकाने पर मजबूर होंगे जो आपको दिखाई तो नहीं देगा लेकिन इसके नाम पर वर्षों तक आपकी जेब कटती रहेगी.
इस समय कोरोना वायरस से पूरी दुनिया में 14 लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हैं. 83 हजार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. करीब 400 करोड़ लोग अपने घरों में बंद हैं. लेकिन दुनिया में एक जगह ऐसी भी है, जहां जश्न मनाया जा रहा है. ये चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान है. यहीं से कोरोना वायरस का ऐसा संक्रमण शुरू हुआ था, जो पूरी दुनिया में फैल गया. लेकिन दुनिया भर में कोरोना का अंधेरा फैलाकर वुहान शहर अब जगमग है. यहां 76 दिन का लॉकडाउन खत्म होने पर कल रात एक लाइट शो हुआ. शहर की छोटी-बड़ी इमारतों में शानदार लाइटिंग की गई. ये एक तरह से वुहान की दिवाली है. आज जब..आप सभी अपने अपने घरों में बंद हैं, तो वुहान से आई इन तस्वीरों को देखकर आप अपने बारे में सोच रहे होंगे, कि किस तरह से हम अपने यहां लॉकडाउन से बाहर निकलेंगे.
लेकिन दुनिया को एक खतरनाक वायरस से लॉक कर देने वाले चीन का वुहान शहर अब अनलॉक हो गया है. कल रात 12 बजे जैसे ही वुहान से लॉकडाउन हटा, लोग अपने घरों से बाहर निकले आए. वुहान में 23 जनवरी से लॉकडाउन था. कोई भी बाहर नहीं निकल सकता था. लेकिन वुहान में अब सब पहले जैसा होने लगा है. कई बाज़ार भी खुल गए हैं. वुहान की फैक्ट्रियां भी शुरू हो गई हैं. हाइवे फिर से खोल दिए गए हैं. ट्रेन फिर से चलने लगी हैं. और घरेलू उड़ानें भी शुरू कर दी गई है.
करीब 1 करोड़ 10 लाख की आबादी वाले इस शहर में लॉकडाउन खुलने के पहले ही दिन करीब 50 से 60 हजार लोग शहर से बाहर निकल गए. वुहान में ही कोरोना वायरस का पहला मामला दिसंबर में आया था. जिसके बाद सिर्फ वुहान शहर में ही 50 हजार से ज़्यादा लोग संक्रमित हुए थे और ढाई हजार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी. लेकिन पिछले कई हफ्ते से वुहान में घरेलू संक्रमण ना के बराबर है. वुहान में पिछले 21 दिन में संक्रमण के सिर्फ 3 नए मामले सामने आए हैं. इसी वजह से 11 हफ्ते से चल रहा लॉकडाउन अब हटा लिया गया.
तो एक तरफ चीन है, जो ऐसे दिखा रहा है कि उसे कोरोना महामारी से कोई फर्क ही नहीं पड़ा है लेकिन दूसरी तरफ पूरी दुनिया है, जो चीन की लापरवाही की कीमत चुका रही है. और बात सिर्फ जिंदगियों की नहीं है, कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है. ये कितनी गंभीर बात है, इसको कुछ आंकड़ों के जरिये समझिये.
ब्रिटेन के एक Think Tank, The Henry Jackson Society के मुताबिक कोरोना वायरस से दुनियाभर के देशो में करीब 300 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का आर्थिक नुकसान हो चुका है. ये भारत की कुल अर्थव्यवस्था से भी करीब 100 लाख करोड़ रुपये ज्यादा है.
Organisation for Economic Co-operation and Development ने आशंका जताई है कि इस महामारी की वजह से वर्ष 2020 में दुनिया की GDP की विकास दर सिर्फ डेढ़ प्रतिशत रह सकती है जबकि कोरोना वायरस फैलने से पहले इसके करीब 3 प्रतिशत रहने का अनुमान था. यानी अब दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं आधी रफ्तार से आगे बढ़ेंगी.
संयुक्त राष्ट्र की Covid-19 And World Of Work रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी की वजह से दुनियाभर में करीब ढाई करोड़ नौकरियां खत्म हो सकती हैं. संयुक्त राष्ट्र की Trade Report में कहा गया है कि दुनिया की दो तिहाई आबादी विकासशील देशों में रहती है, इन देशों में करीब 187 लाख करोड़ रुपए के Rescue Package की जरूरत है जबकि विश्व बैंक ने कहा है कि इस महामारी की वजह से पूर्वी एशिया और एशिया पैसाफिक में एक करोड़ 10 लाख गरीब बढ़ सकते हैं.
आरोप लग रहे है कि ये सब चीन की लापरवाही का नतीजा है. लेकिन इसकी कीमत कौन चुकाएगा? भविष्य में जब इस महामारी से दुनिया पार पा लेगी तब दुनिया की डूबती हुई अर्थव्यवस्था को कौन पार लगाएगा ? जाहिर है सभी देशों की सरकारें, अर्थव्यस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए बाज़ार में पैसा लगाएंगी, लेकिन वो पैसा कहां से आएगा ? जाहिर है ये पैसा आपकी और हमारी जेब से ही जाएगा और ये कोरोना टैक्स कैसे धीरे धीरे करके वसूला जाएगा, आपको पता भी नहीं चलेगा. तो अब आप सोचिये, कि क्या ऐसा होना चाहिए ? क्या चीन से इस नुकसान का हिसाब नहीं मांगा जाना चाहिए ? क्या चीन से इसका जुर्माना नहीं वसूला जाना चाहिए ? दुनिया के कई देशों में ये सवाल उठने लगे हैं.
United States Senate Judiciary Committee के चेयरमैन लिंडसे ग्राहम (Lindsey Graham) ने तो कह भी दिया है कि इस महामारी की वजह से जो भी नुकसान हुआ है, पूरी दुनिया को उसके बिल चीन को भेज देने चाहिए. तो अब सवाल ये है कि अगर दुनिया के देश, चीन को हर्जाने का बिल भेजना शुरू कर दें तो हर्जाने की राशि कितनी बड़ी हो सकती है. The Henry Jackson Society ने इसका एक आंकलन तैयार किया है जिसके मुताबिक ब्रिटेन चाहे तो चीन से 449 बिलियन डॉलर्स यानी करीब 34 लाख करोड़ रुपये का क्लेम कर सकता है. अमेरिका भी चीन से हर्जाने के तौर पर 1200 बिलियन डॉलर्स यानी करीब 90 लाख करोड़ रुपये क्लेम कर सकता है जबकि कनाडा, चीन पर 59 बिलियन डॉलर्स यानी करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये और ऑस्ट्रेलिया 37 बिलियन डॉलर्स यानी करीब 2 लाख 80 हजार करोड़ रुपये का क्लेम कर सकते हैं.
जुर्���ाने की ये राशि इन देशों में 5 अप्रैल तक लॉकडाउन से होने वाले आर्थिक नुकसान और राहत पैकेज की घोषणाओं पर आधारित हैं..लेकिन आपको बता दें कि अभी तक किसी भी देश ने आधिकारिक तौर पर चीन से किसी तरह का कोई मुआवज़ा वसूलने की बात नहीं कही है. हालांकि इसकी मांग उठनी जरूर शुरू हो गई है. लेकिन बात सिर्फ आर्थिक हर्जाने की ही नहीं है, सवाल चीन को आईना दिखाने का भी है, क्योंकि वो तो अभी तक ये भी मानने के लिए तैयार नहीं है कि कोरोना वायरस, चीन से ही दुनियाभर में फैला.
ब्रिटेन के 15 सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को पत्र लिखकर अपील की है कि इस महामारी को फैलाने के आरोपी चीन के खिलाफ मुकदमा दायर किया जाए, जिसके बाद ब्रिटेन के Think Tank, The Henry Jackson Society ने एक स्टडी की, जिसमें बताया गया कि चीन ने किस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के INTERNATIONAL HEALTH REGULATIONS 2005 की गाइडलाइंस का उल्लंघन किया जिसमें चीन पर जो चार बड़े आरोप गिनाए गए हैं, वो आपको भी पता होने चाहिए.
चीन पर पहला आरोप – उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन से ��ीन हफ्ते तक ये बात छिपाकर रखी कि कोरोना वायरस, इंसान से इंसान में फैलता है. चीन पर दूसरा आरोप – उसने 2 जनवरी से 11 जनवरी तक कोरोना संक्रमण के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने गलत आंकड़े पेश किये चीन पर तीसरा आरोप – उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन से ये बात छिपाई कि इंसानों में कोरोना वायरस, जानवरों से पहुंचा चीन पर चौथा आरोप – ये पता होने के बावजूद कि कोरोना संक्रमण, इंसानों से इंसानों में फैलता है, उसने 23 जनवरी को लॉकडाउन से पहले 50 लाख लोगों को वुहान छोड़ने की इजाजत दी. वुहान वही शहर है जहां से कोरोना संक्रमण की शुरुआत हुई थी
अब इसे चीन की लापरवाही कहें या जान-बूझकर की गई गलती. लेकिन आज कोरोना वायरस ने जिस तरह पूरी दुनिया में कहर मचाया हुआ है, उसका जिम्मेदार चीन ही है. ऐसा करके चीन ने कितना बड़ा अपराध किया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइये कि ब्रिटेन की University of South-Ampton के मुताबिक अगर दुनिया भर में कोरोना वायरस से निपटने के लिए जरूरी ऐहतियाती कदम, तीन हफ्ते पहले उठा लिये जाते तो इसके संक्रमण को 95 प्रतिशत तक कम किया जा सकता था लेकिन ऐसा हुआ नहीं. लेकिन इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कम जिम्मेदार नहीं है जिसने कोरोना संक्रमण को महामारी घोषित करने में बहुत देरी की. इन सबूतों के आधार पर International Court Of Justice में चीन के खिलाफ एक मजबूत मुकदमा दायर किया जा सकता है लेकिन इसके लिए पूरी दुनिया को एक साथ आना होगा और बड़े देशों के लीडर्स को मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी पड़ेगी.
चीन की इस लापरवाही की कीमत भारत भी चुका रहा है. चीन के शहर वुहान से तो लॉकडाउन हटा दिय़ा गया है लेकिन भारत के 135 करोड़ लोगों के मन में यही सवाल है कि ये लॉकडाउन हटेगा या नहीं. भारत में लॉकडाउन 14 अप्रैल तक है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बड़े संकेत दिए हैं. प्रधानमंत्री की आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए सभी दलों के नेताओं से बात हुई थी, जिसके बाद कुछ नेताओं ने यही संकेत दिए कि लॉकडाउन खत्म करने के पक्ष में कोई नहीं है. इस मीटिंग के बारे में बताया गया कि प्रधानमंत्री ने बातचीत में कहा कि हर जिंदगी बचाना सरकार की प्राथमिकता है. देश में सामाजिक आपातकाल के हालात हैं. ज़्यादातर राज्य लॉकडाउन को बढ़ाने के पक्ष में हैं. विशेषज्ञ भी इसी की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन ज़रूरी है. प्रधानमंत्री मोदी 11 अप्रैल को मुख्यमंत्रियों के साथ तीसरी बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात करेंगे.
कोरोना वायरस फैलने की शुरुआत आज से ठीक 100 दिन पहले चीन के वुहान शहर में हुई थी. चीन में अब स्थितियां सामान्य हो रही हैं, वहां के शहर जगमगा रहे हैं लेकिन इन 100 दिनों ने पूरी दुनिया को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया है. पहले आप ये देखिए कि कैसे ये वायरस 100 दिनों में पूरी दुनिया में फैल गया. फिर ��म आपको बताएंगे कि क्यों अब आपका जीवन पहले जैसा नहीं रहेगा.
पिछले साल 31 दिसंबर को चीन के वुहान में संक्रमण का पहला मामला सामने आया था. इसके बाद अगले दिन यानी 1 जनवरी 2020 को वुहान की Sea Food Market को बंद कर दिया गया था. इसी जगह से इस वायरस के फैलने की शुरुआत हुई थी. 9 दिनों के बाद यानी 9 जनवरी को इस वायरस की पहचान हुई और पता लगा कि ये नए किस्म का वायरस है.
13वें दिन यानी 13 जनवरी को पहली बार चीन से बाहर इस संक्रमण का कोई मामला तब सामने आया. जब थाइलैंड ने इस बात की पुष्टि की कि उसके यहां वुहान से आई एक 61 वर्ष की महिला संक्रमित पाई गई है. 20 दिन बाद ये बात साबित हो गई कि ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल रहा है. 24वें दिन ये वायरस यूरोप पहुंच गया. इसकी वजह ये थी कि इस दौरान चीन के कई नागरिक lunar new year मनाने यूरोप के अलग-अलग देशों में पहुंच चुके थे.
इसी दिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने दाओस में कहा कि उनके देश को इस वायरस से कोई खतरा नहीं है. 31वें दिन यानी 31 जनवरी को ब्रिटेन यूरोप से अलग हुआ और उसी दिन ये बात साबित हो गई कि ये वायरस तेज़ी से लोगों को संक्रमित कर रहा है. 36वें दिन चीन से बाहर इस वायरस से पहली मौत हुई. मरने वाला व्यक्ति वुहान का ही नागरिक था और उसकी मौत फिलीपींस के एक अस्पताल में हुई थी.
50वें दिन दक्षिण कोरिया में वायरस से पीड़ित 31वां मरीज़ सामने आया. और कहा जाता है कि इसी मरीज़ ने दक्षिण कोरिया में हजारों लोगों को संक्रमित किया था. ये एक 61 वर्ष की महिला थी जिसने दो अलग अलग चर्च में प्रार्थना सभा में हिस्सा लिया था और यहीं से दक्षिण कोरिया में हालात बेकाबू होने लगे.
56वें दिन तक पूरी दुनिया में इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 80 हजार से ज्यादा हो चुकी थी. 66वें दिन तक इटली में स्थितियां खराब होने लगीं और रोज़ सैंकड़ों की संख्या में लोग मरने लगे. 71वें दिन यानी 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को एक महामारी घोषित कर दिया. 77वां दिन आते-आते, पूरी दुनिया में सामान्य जीवन अस्त व्यवस्त होने लगा. इटली में हर रोज़ औसतन साढ़े 400 लोगों की जान जाने लगी. 85 दिन बीतने के बाद पूरे भारत में लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई और आज भी आप लोग इसी लॉकडाउन में हैं. 93 दिनों के बाद यानी 2 अप्रैल को पूरी दुनिया में इस महामारी से मरने वालों की संख्या 50 हजार के पार हो गई.
99 दिन पूरे होते होते दुनिया के करीब 400 करोड़ लोग लॉकडाउन में जा चुके थे और आज यानी 100वें दिन भी इस लॉकडाउन के हटने की कोई उम्मीद नहीं है. जबकि 100 दिन पूरे होते ही चीन ने पूरी दुनिया में ये वायरस फैलाने वाले शहर वुहान से लॉकडाउन हटा दिया है.
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विचार मंथन : भारत की एकता के निर्भय निर्माता लौहपुरुष, सरदार वल्लभ भाई पटेल
कर्त्तव्य परायणता कठिन परिस्थितयों में भी अपनी कर्त्तव्य परायणता ही मानव को महा -मानव बनाती है । ऐसी ही एक मिसाल सरदार पटेल के जीवन से जुड़ी है, जो आज उनकी जन्म जयंती पर इस प्रेरक प्रसंग में आपको पढने को मिलेगी । उनके कथनों में भी आपको उनके व्यक्तित्व की झलक मिलेगी ।
एक वकील की वकालत खूब चलती थी । एक बार वह हत्या का एक मुकदमा लड़ रहे थे । उन्हें खबर मिली कि गांव में उनकी पत्नी बहुत बीमार हो गई हैं, और भी बीमारी गंभीर थी । इस कारण वकील साहब गांव आ गए । वह अपनी पत्नी की देखभाल में लगे थे । इसी बीच हत्या के उस मुकदमे की सुनवाई की तारीख पड़ी । वकील साहब असमंजस में थे । इधर पत्नी मृत्युशैया पर थी, उधर पेशी पर शहर जाना भी जरूरी था । न जाने पर मुकदमा खारिज हो जाने और मुलजिम को फांसी होने की आशंका थी ।
पति को असमंजस में देख पत्नी बोलीं- आप मेरी चिंता न करें, पेशी पर जरूर जाएं । भगवान सब अच्छा करेंगे । पत्नी की बात मानकर वकील साहब शहर लौट तो आए, मगर उनका मन बड़ा दुखी होता रहा । अदालत में मुकदमा पेश हुआ । सरकारी वकील ने साबित करने की कोशिश की कि मुलजिम कसूरवार है और उसे फांसी ही होनी चाहिए । वकील साहब बचाव पक्ष की ओर से जवाब देने के लिए खड़े हुए । वह बहस कर ही रहे थे कि उनके सहायक ने एक तार लाकर उनको दिया । वकील साहब थोड़ी देर रुके ।
तार पढ़कर अपने कोट की जेब में रखा और फिर बहस में लग गए । उन्होंने साबित कर दिया कि उनका मुवक्किल बेकसूर है । बहस के बाद मजिस्ट्रेट ने फैसला सुनाया कि अपराधी निरपराध है । मुवक्किल और दूसरे वकील मित्र अदालत के बाद बधाई देने वकील साहब के कमरे में आए । वकील साहब ने मित्रों को वह तार दिखाया जो उन्हें अदालत में बहस के दौरान मिला था । तार में लिखा था कि उनकी पत्नी का देहांत हो गया �� मित्रों ने कहा, ‘बीमार पत्नी को छोड़कर नहीं आना चाहिए था ।’ वकील साहब ने कहा, ‘दोस्तो, अपनत्व से बड़ा कर्तव्य होता है ।’ यह वकील थे भारत की एकता के निर्माता लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ।
कठोर समय में सही निर्णय
हैदराबाद के निजाम ने खुद को भारत से अलग होने का ऐलान कर दिया था । सरदार पटेल ने उसे संधि के लिए दिल्ली बुलाया, निजाम ने अपने दीवान को उनसे मिलने भेजा, जब निजाम पटेल जी से मिलने आया तो पटेल जी ने उनका पूरा आदर सत्कार किया, भोजन किया और उसके बाद मंत्रणा करने बैठे ।
पटेल जी ने पूछा की जब हैदराबाद के 80% हिन्दू भारत में मिलना चाहते है तो आपके निजाम क्यों पाकिस्तान के बहकावे में आ रहे है । निजाम के दीवान ने कहा की आप हमारे बीच में न पड़े, हम अपनी मर्जी के मालिक है, और रही हिन्दुओ की बात तो इन 1 करोड़ हिन्दुओ की हम लाशें बिछा देंगे, एक भी हिन्दू आपको जिन्दा नहीं मिलेगा, तब किसकी राय पूछेंगे.. ??
यह सुनकर पटेल जी ने दीवान कहा – आप जाइए वापिस हैदराबाद, दीवान चला जाता है, अगली सुबह दीवान के हैदराबाद पहुँचने से पहले ही भारतीय सेना हैदराबाद पर धावा बोल देती है । ऐसे कठोर समय में भी बिना समय गँवाए सही निर्णय लेकर खंड खंड देश को हिमाचल से कन्याकुमारी तक एक करने वाले सरदार पटेल को उनकी जन्म जयंती पर कोटि कोटि नमन ।
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Hindi News विचार मंथन : भारत की एकता के निर्भय निर्माता लौहपुरुष, सरदार वल्लभ भाई पटेल Read Latest Hindi News on Kranti Bhaskar.
source http://hindi-news.krantibhaskar.com/latest-news/hindi-news/ajab-gajab-news/40318/
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नींद का अभाव भारत में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 93% भारतीय ज़रूरत से कम नींद पाते हैं। बदलती जीवन शैली और आधुनिक गैजेट्स के हमारे जीवन में आने से स्थिति और खराब ही हुई है। किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के डॉक्टरों का कहना है, अकेले लखनऊ जिले में, सोने के विकार से प्रभावित लोगों की संख्या 40 लाख से अधिक हो सकती है।
अमेरिका के नेशनल स्लीप फाउंडेशन के अनुसार एक वयस्क व्यक्ति (18-64 वर्ष) को दिन में 7 से 9 घंटे की नींद मिलनी चाहिए। उस से अधिक उम्र के होने पर (64 वर्षों से अधिक) 7 से 8 घंटे की नींद आवश्यक है। किशोरों को लगभग 9 से 10 घंटे की आवश्यकता होती है, जबकि स्कूल-आयु वर्ग के बच्चों और 5 वर्ष के बच्चों को और भी अधिक नींद की आवश्यकता होती है।
लेकिन जैसा कि अब शोध में देखा जा रहा है, आपकी उम्र के अलावा भी दूसरे फ़ैक्टर आपकी नींद की ज़रूरतों पर असर करते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण फ़ैक्टर है लिंग या जेंडर। और काफ़ी स्पष्ट रूप से देखा गया है कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक सोना चाहिए!
महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक नींद क्यों चाहिए?
और महिलाओं के लिए नींद की ज़रूरत औसत की तुलना में अधिक हो सकती है। और अगर आपको पर्याप्त आराम नहीं मिलती है, तो यह आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है। लेकिन महिलाओं को अतिरिक्त नींद की जरूरत क्यों है? और क्या यह दावा सच भी है? तो आइए जानें क्यों महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक सोना चाहिए।
अधिक मानसिक ऊर्जा का उपयोग है खराब नींद का कारण
नेशनल स्लीप फाउंडेशन जैसे नींद विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं द्वारा अधिक मानसिक ऊर्जा का इस्तेमाल करना अधिक नींद की आवश्यकता का एक कारण है। उनके अनुसार, महिलाएं अपने दिमाग़ का अधिक मात्रा में उपयोग करती हैं और एक समय पर कई कार्य भी करती हैं। इससे अधिक मानसिक ऊर्जा की खपत होती है जिसके कारण जब नींद के दौरान मस्तिष्क को फिर से जीवंत करने की बात आती है, तो अधिक नींद की आवश्यकता होती है।
और पढ़ें: नींद ना आने के आयुर्वेदिक उपाय
अक्सर महिलाओं की नींद की क्वालिटी कम होती है
एक और कारण यह है कि महिलाओं को थोड़ा अधिक इसलिए सोना पड़ता है क्योंकि अक्सर उन्हे जो नींद प्राप्त होती है, वह उतनी अच्छी नहीं होती है। कुछ जीवन चरण और शारीरिक परिवर्तन महिलाओं में कम सुकूनदायक नींद के कारण बनते हैं। वास्तव में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं को वयस्कता में अनिद्रा और खराब नींद अधिक होने की संभावना होती है। नेशनल स्लीप फाउंडेशन द्वारा किए गये एक सर्वेक्षण में 63 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे हर हफ्ते अनिद्रा का अनुभव करती हैं।
और पढ़ें: जानिए आपके सोने की पोजीशन किस तरह करती है आपके स्वास्थ्य को प्रभावित
रजोनिवृत्ति के दौरान अच्छी नींद नहीं आती है
रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाएं बहुत अशांत नींद महसूस करती हैं। खराब नींद को एकदम से बेहद गर्मी लगना (हॉट फ्लैश) या रात में पसीने से तरबदार होने जैसे रजोनिवृत्ति से जुड़े अन्य लक्षणों से भी जोड़ा गया है।
प्रेगनेंसी के दौरान अच्छी नींद नहीं आती है
गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तनों के साथ-साथ शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तन भी हो सकते हैं जिनके कारण अच्छी नींद नहीं आती है। असुविधा के अलावा, अधिक बार पेशाब करना पड़ता है और टाँगों में ऐंठन भी गर्भवती महिला के लिए एक अच्छी रात की नींद मुश्किल बना सकती है।
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मासिक धर्म के दौरान नींद बिगड़ जाती है
अक्सर मासिक धर्म की वजह से पेट में ऐंठन, दर्द, मनोदशा का बिगड़ना और आहार में असंतुलन होता है। इन कारणों से प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम में महिलाओं को सुकूनदायक नींद नहीं मिलती है।
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रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के कारण नींद खराब होती है
रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के कारण पैरों को स्थाई रखना लगभग असंभव हो जाता है और इसके लक्षण शाम और रात में ज़्यादा तीव्र होते हैं। इसके नतीजे इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को ढंग से नींद आना बहुत मुश्किल होता है। अनुसंधान के मुताबिक, महिलाओं को रेस्टलेस लेग सिंड्रोम होने की अधिक संभावना है। कहा जाता है कि महिला हार्मोन और रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के बीच एक गहरा नाता है।
ओवरी में सिस्ट (पीसीओएस या PCOS) की वजह से नींद ठीक नहीं आती है
पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को निरोधक स्लीप एपनिया होने की अधिक संभावना होती है। इस बीमारी में ऊपरी वायुमार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिसके कारण आपको रात को श्वास लेने में कठिनाई होती है। इसके नतीजे आप खर्राटे मारना शुरू कर सकते हैं और आपको ठीक से नींद भी नहीं आती है।
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अनिद्रा के अन्य कारक
कुछ विकार या बीमारियां अनिद्रा को विकसित करने की संभावना को बढ़ाते हैं। दुर्भाग्य से, इनमें से कई बीमारियाँ महिलाओं में अधिक आम हैं - जैसे चिंता, अवसाद, या फाइब्रोमाइल्जी।
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हर सफलता के लिए हमें अधिक विनम्र होना चाहिए क्योंकि हमारी विनम्रता दूसरों को हमारी सफलता का जश्न मनाने में सक्षम बनाएगी: पीएम
सबसे पहले तो आप सभी को ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’ जीतने की बहुत बहुत बधाई। जबसे आपको पता चला होगा कि आपका नाम इस पुरस्कार के लिए चुना गया है, आपकी बेसब्री बढ़ गई होगी। आपके माता पिता, दोस्त, टीचर्स, वो सब भी आपके जितना ही excited होंगे। आपकी तरह मैं भी आपसे मिलने का इंतजार कर रहा था लेकिन कोरोना की वजह से अभी हमारी virtual मुलाकात ही हो रही है। प्यारे बच्चों, आपने जो काम किया है, आपको जो पुरस्कार मिला है, वो इसलिए भी खास है क्योंकि आपने ये सब कुछ कोरोना काल में किया है। इतनी कम उम्र में भी आपके ये काम हैरान कर देने वाले हैं। कोई खेल के क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रहा है, कोई तो अभी से ही रिसर्च और innovation कर रहा है। आपमें से ही कल देश के खिलाड़ी, देश के वैज्ञानिक, देश के नेता, देश के बड़े-बड़े CEOs भारत का गौरव बढ़ाने की परम्परा दिखाई देगी। अभी जो विडियो फिल्म चल रही थी, उसमें आप सबकी उपलब्धियों पर विस्तार से बात की गई है। आपमें से कई बच्चों के बारे में तो मुझे बीच-बीच में पता चलता रहता है, सुन चुका हूं। अब जैसे देखिए मुंबई की बेटी हमारी काम्या कार्तिकेयन। आपको याद होगा मैंने मन की बात में भी एक बार उसके विषय में जिक्र किया था। काम्या को पर्वतारोहण के क्षेत्र में देश का नाम ऊंचा करने के लिए ये पुरस्कार मिला है। आइए आज हम काम्या से ही बात करते हैं। उनसे ही शुरू करते हैं। उनसे कुछ पूछना जरूर चाहता हूं। प्रश्न - काम्या, अभी हाल-फिलहाल में, मैं नहीं मानता आप चैन से बैठती होंगी, ��ुछ न कुछ करती होंगी। तो आप किस नए पर्वत पर आपने विजय प्राप्त की है? क्या किया है इन दिनों? या फिर कोरोना की वजह से कुछ कठिनाई आ गई, क्या हुआ? उत्तर- सर, कोरोना ने पूरे देश को ही थोड़ी कठिनाइयां दी हैं। पर, as you said हम ऐसे बैठे नहीं रह सकते। हमें कोराना के बाद भी strong बाहर आना है। तो मैंने अपनी ट्रेनिंग और पूरी रूटीन कोरोना के दौरान भी जानी रखी है और अभी हम इस समय Gulmarg में हैं जो जम्मू-कश्मीर में है और मेरी अगली climb के लिए train कर रहे हैं। जो नॉर्थ अमेरिका में माउंट देनाली है। और हम जून इस साल में माउंट देनाली चढ़ने के लिए अभी train कर रहे हैं। प्रश्न – तो अभी आप बारामुला में हैं? उत्तर – जी सर, thankfully ऑफिस ने हमें बहुत हेल्प किया है, and उन्होंने भी पिछले तीन दिनों से 24x7 काम किया है। और हम यहां पर बारामुला में आकर आपसे मुलाकात कर पाए सर। प्रश्न – तो आपके साथ और कौन है? परिचय करवाइए। उत्तर- सर, ये मेरी मम्मी हैं और ये मेरे पापा हैं, सर। पापा – नमस्कार मोदी जी – चलिए आपको बधाई हो। आपने बेटी का हौसला भी बढ़ाया और आपने उसकी मदद भी की है। तो मैं ऐसे मां-बाप को तो विशेष रूप अभिनंदन करता हूं। प्रश्न - अच्छा सबसे बड़ा अवार्ड तो आपके लिए आपकी मेहनत और आपका मनोबल ही है। आप तो पहाड़ों पर चढ़ती हैं, ट्रैकिंग करती हैं, और पूरी दुनिया घूमती हैं, और अचानक जब कोरोना के कारण सब बंद हो गया, तो ये साल कैसे बिताया?क्या करती थीं? उत्तर – सर, मैंने कोरोना को एक opportunity समझा कि हालांकि मैं… प्रश्न – मतलब आपने भी आपदा को अवसर में पलटा? उत्तर – जी सर। प्रश्न – बताइए। उत्तर – सर, पर्वत तो नहीं चढ़ सकती हूं सर अभी जाकर, पर मैंने ये समझा कि इस टाइम में मैं दूसरों को अपने समय तक पहुंचने के लिए inspire कर सकती हूं। तो मैं बहुत सारे schools और institutions में webinar दे रही हूं और मेरे मिशन के बारे में भी बता रही हूं और इसका मैसेज भी spread करना चाहती हूं, सर। प्रश्न – लेकिन physical fitness के लिए भी तो कुछ करना पड़ता होगा? उत्तर- जी सर, usually हम running और cycling के लिए जाते थे but पहले लॉकडाउन में ये allowed नहीं था तो हम जो 21 स्टोरी की बिल्डिंग में रहते हैं मुम्बई में, हम वहां पर सीढ़ियां ऊपर-नीचे चढ़ते थे फिटनेस के लिए। और थोड़ा लॉकडाउन ease होने के बाद thankfully हम मुम्बई शिफ्ट हुए हैं तो हम शहयाद्री में जाकर छोटे-मोटे tracks करते थे सर, weekends में। प्रश्न – तो मुम्बई में तो कभी ठंड क्या होती है पता ही नहीं चलता होगा। यहां तो आज बारामुला में काफी ठंड में रहती होंगी आप? उत्तर – जी सर पीएम सर की टिप्पणी: देखिए कोरोना ने निश्चित तौर पर सभी को प्रभावित किया है। लेकिन एक बात मैंने नोट की है कि देश के बच्चे, देश की भावी पीढ़ी ने इस महामारी से मुकाबला करने में बड़ी भूमिका निभाई है। साबुन से 20 सेकेंड हाथ धुलना है- ये बात बच्चों ने सबसे पहले पकड़ी। और मैं तब सोशल मीडिया पर कितने ही वीडियो देखता था जिसमें बच्चे कोरोना से बचने के उपाय बताते थे। आज ये अवार्ड ऐसे हर बच्चे को भी मिला है। ऐसे परिवार और ऐसा समाज, जहां बच्चों से सीखने का culture होता है, वहां बच्चों के व्यक्तित्व का तो बहुत विकास होता ही है, साथ-साथ बड़ों में भी ठहराव नहीं आता, सीखने की ललक बनी रहती है, उनका उत्साह बना रहता है। और बड़े भी सोचते हैं कि- अरे वाह...हमारे बच्चे ने कहा है तो हम जरूर करेंगे। हमने ये कोरोना के समय भी देखा है और स्वच्छता भारत मिशन के दौरान भी मैंने बराबर देखा है। बच्चे जब किसी cause से ��ुड़ जाते हैं, तो उसमें सफलता मिलती ही है। काम्या आपको, आपके माता-पिता को, आपके trainers को, सबको मैं बहुत बधाई देता हूं। बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। और आप कश्मीर का मजा भी लीजिए और नए साहस के साथ आगे भी बढ़िए। अपनी हेल्थ, अपनी फिटनेस का ध्यान रखिए, नई-नई ऊंचाइयों पर पहुंचिए। नई-नई चोटियों को पर कीजिए। प्यार बच्चों, हमारे साथ झारखंड की एक बेटी आज है, सविता कुमारी। उन्हें खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ये पुरस्कार मिला है। प्रश्न - सविता जी, आपने कैसे मन बनाया कि आर्चरी या निशानेबाजी में आपको आगे बढ़ना है? ये विचार कहां से आया और इसमें आपके परिवार का support तो रहा ही होगा। तो मैं जरूर आपसे सुनना चाहता हूं ताकि देश के बच्चे जान सकें झारखंड के दूर-सुदूर जंगलों में हमारी एक बेटी क्या पराक्रम कर रही है, इससे देश के बच्चों को प्रेरणा मिलेगी। बताइए। उत्तर- सर, मैं कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ाई करती थी, वहीं पर हमको प्रेरणा मिली आर्चर सीखने की। प्रश्न- आपने देश के लिए मेडल लाना शुरू भी कर दिया है। पूरे देश की शुभकामनाएं आपके साथ हैं। आगे के लिए आपके मन में क्या लक्ष्य रखा है, कहाँ तक खेलना है? उत्तर- सर, हमको international में गोल्ड मैडल जीतना है और national anthem जब देश के लिए बजता है तो हमको अच्छा लगता है। प्रश्न – वाह! आपके साथ कौन-कौन है? उत्तर – सर, मम्मी आई हुईं हैं और इधर पापा आए हुए हैं। प्रश्न– अच्छा, ये कभी खेलते थे क्या? पिताजी ने कभी खेलों में हिस्सा लिया था? उत्तर – सर नहीं। प्रश्न – अच्छा सबसे पहले शुरू आपने किया? उत्तर – यस सर। प्रश्न – तो अभी तुम्हें बाहर जाना होता है तो मम्मी-पापा को चिन्ता नहीं होती है ना? उत्तर –सर, अभी तो सर हैं ना साथ में तो सर के साथ जाते हैं। प्रश्न– अच्छा। पीएम सर की टिप्पणी: आप ओलंपिक तक जाएं, गोल्ड लेकर आएं, ये आपके सपने वाकई हिन्दुस्तान के हर बच्चे को नए सपने सजाने की प्रेरणा देते हैं। मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं। स्पोर्ट्स की दुनिया में झारखंड का जो टैलेंट है, उस पर पूरे देश को गर्व है। मैंने तो देखा है कि झारखंड की बेटियां बड़ा कमाल कर देती हैं जी। कैसे-कैसे खेलकूद में अपना नाम बना रही हैं। छोटे-छोटे गांव, छोटे-छोटे शहरों में आप जैसा टैलेंट जब बाहर निकलता है, तो दुनिया भर में जाकर देश का नाम रोशन करता है। सविता, आपको मेरा बहुत-बहुत आशीर्वाद है। बहुत आगे बढ़िए। उत्तर – Thank You Sir. अच्छा, वैसे साथियों, इस बार राष्ट्रीय बाल पुरस्कारों में जो विविधता है वो बहुत अच्छी बात है। आर्चरी से अब हम आर्ट की दुनिया में चलेंगे। मणिपुर की बेटी हमारी कुमारी नवीश कीशम, बेहतर पेंटिग्स बनाने के लिए उसको आज पुरस्कार मिला है। प्रश्न - बताइए बेटा, नवीश, हम आपसे सुनना चाहते हैं। आप बहुत ही अच्छी पेंटिंग्स करती हैं। रंगों में तो वैसे ही बहुत ऊर्जा होती है। और वैसे तो नॉर्थ-ईस्ट अपने-आप में बड़ा colorful है। उन रंगों को सजा दिया जाये, तो ये जीवन भर देने जैसा होता है। मुझे बताया गया है कि आप ज़्यादातर environment पर, पर्यावरण पर, greenery पर पेंटिंग बनाती हैं। और यही विषय आपको इतना क्यों आकर्षित करता है? उत्तर- First of all good afternoon Sir. It’s truly an honour to have to personally interact with you and first my name is वनीश कीशम and I love paintings based on the environment because nowadays our environment is getting dirtier day by day. So there is a lot of pollution even in Imphal so a lot of pollution is there. So I want to change it by planting more trees and save our environment, our plants and animals. Our wildest places I want to save them. So in order to spread this message to the people as an Artist I do this. प्रश्न - अच्छा आपके परिवार में भी और कोई हैं जो पेंटिंग करते हैं? पिताजी, माताजी, भाई, चाचा, कोई। उत्तर – नो सर, My father is a businessman and my mom is a homemaker and I am the only artist. प्रश्न – ये तुम्हारे पिताजी, ये तुम्हारे माताजी हैं तुम्हारे साथ? उत्तर – हां। प्रश्न – तो ये तो तुम्हें डांटते होंगे कि तुम ये क्या पूरा दिन पेंटिंग करती रहती हो? कुछ पढ़ती नहीं हो। खाना नहीं पकाती हो। काम नहीं करती हो। ऐसे डांटते होंगे? उत्तर – No Sir, they support me a lot. प्रश्न – तो बहुत lucky हो आप तो। अच्छा आपकी उम्र छोटी सी है, लेकिन विचार बहुत बड़े हैं जी। अच्छा, पेंटिंग के अलावा आपकी क्या-क्या हॉबी हैं? उत्तर- सर, I love to sing, I love singing and I love to do gardening also. माननीय पीएम की टिप्पणी: नवीश, मैं मणिपुर कई बार आया हूं। और वहां की प्रकृति मुझे बहुत आकर्षित करती है, मेरा अनुभव रहा है वहां। और प्रकृति को लेकर वहां के लोगों में जो एक प्रकार की श्रद्धा है, प्रकृति की रक्षा के लिए पूरे नॉर्थ-ईस्ट में हर कोई व्यक्ति अपनी जान लगा देता है। जो मणिपुर में भी देखा जाता है और मैं मानता हूं कि बहुत ऊंचे संस्कार हैं। प्रश्न – अच्छा आप गाना गाती हो, आपने बताया। कुछ सुनाओगी मुझे? उत्तर – Yes sir, I mean like I am not a professional singer but I love to, so this is our folk song उत्तर – बहुत बढ़िया। में तुम्हारे माता-पिता को भी बधाई देता हूं और मैं मानता हूं कि तुम्हें संगीत में भी जरूर कुछ करना चाहिए। आवाज में बहुत दम है। मैं कोई शास्त्र का जानकार नहीं हूं लेकिन अच्छा लगा। सुन करके बहुत अच्छा लगा। तो तुम्हें इन सब जगह पर मेहनत करनी चाहिए। मेरा तुमको बहुत-बहुत आशीर्वाद है। साथियों, हमारे देश के बच्चे इतने टैलेंट के साथ जिंदगी को जी रहे हैं, उनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। अब देखिए, एक तरफ बेहतरीन पेंटिंग बनाने वाली बिटिया नवीश हैं तो कर्नाटका के राकेश कृष्ण भी हैं। राकेश को खेती से जुड़े Innovation के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। राकेश आपको बहुत-बहुत बधाई देता हूं। और मैं जरूर आपसे बात करना चाहूंगा। प्रश्न - राकेश, आपका प्रोफ़ाइल जब मैं देख रहा था तो मुझे बहुत अच्छा लगा। आप इतनी कम उम्र में ही इनोवेशन कर रहे हैं, वो भी आप हमारे किसानों के लिए सोच रहे हैं। आप साइन्स के स्टूडेंट हैं, तो रिसर्च इनोवेशन तो स्वाभाविक ही है। लेकिन किसानों के लिए इनोवेशन करना है, ये कोई मामूली बात नहीं है जी। तो मैं जरूर सुनना चाहूंगा ये मन कैसे लग गया आपका, ये काम के लिए कैसे मन लग गया? उत्तर- सर, first of all नमस्कार और सर मैं बोलना चाहता हूं कि science और innovation में interest रहा ही था लेकिन सर, मेरे पापा एक तो किसान हैं और मैं एक farming family से हूं। ये मेरे पिताजी हैं और ये मेरी माताजी हैं। तो सर मैं देखता कि जो एक farming existing practice में बहुत सारे problems थे, तो कुछ तो करना था। और मेरा मन था कि मैं जो किसान हैं, हमारे राष्ट्रीय अन्नदाता हैं, उनको कुछ contribute करो। जो मेरा technology का इनोवशन है, इसे उनको contribute करने के लिए मैंने एक मिशन बनाया है सर। तो already जो existing practice है उनसे 50 पर्सेंट से भी ज्यादा profitable मेरे मशीन हैं सर। प्रश्न – अच्छा तो कभी प्रयोग किया है क्या, खेत में प्रयोग किया है कभी पिताजी के साथ? उत्तर – हां सर, प्रयोग किया है। तो एक बोलना चाहता हूं कि सर, मेरे मशीन 10-15 पर्सेंट से भी ज्यादा टाइम consume, it decrease the time taken. और जो मैंने practically जो टेस्ट किया है, उससे पता चला है कि मेरे मशीन सबसे ज्यादा profitable और सबसे ज्यादा germination rate देता है। सर, वो क्या है आज जो skilled labor चाहिए farming के लिए, यानी किसान को जो लेबर चाहिए उसका चार्ज तो sky rocket हुआ है, बहुत ज्यादा हुआ है और हमें skilled laborers नहीं मिलते हैं। तो इसीलिए मैंने एक multipurpose मशीन तैयार किया है ताकि एक ही किसान सब काम एक ही साथ कर सकता है और बहुत ज्यादा पैसा और टाईम easily बचा सके। प्रश्न – अच्छा जब आपने बनाया, अखबारों में छपा, लोगों को पता चला तो ये manufactures जो होते हैं, बिजनेस कम्पनियां होती हैं, startup वाले होते हैं , वो कोई आपके पास पहुंचे क्या? कि चलो हम सब large scale पर करते हैं? बहुत बड़ा बनाते हैं, ऐसा कुछ हुआ क्या? उत्तर – हां सर, दो-तीन कम्पनी ने पूछा मेरे से और मैं festival of innovation राष्ट्रपति भवन का एक participant था और वहां पर उन्होंने आकर पूछा था, सर। लेकिन मेरी prototype जो है वो completely develop नहीं हुआ है सर। अभी भी मैं काम करना चाहता हूं, और भी अच्छे तरीके से मैं बनाना चाहता हूं इसे। प्रश्न – अच्छा तो तुम्हारे ��ो टीचर्स हैं वो उसमें interest ले करके तुम्हें और मदद कर रहे हैं क्या? और कोई साइंटिस्ट, दुनिया के और लोग मदद कर रहे हैं क्या? कोई ऑनलाइन तुम्हें contact करते हैं क्या? उत्तर – हां सर, मेरे जो टीचर्स हैं हमारे हाई स्कूल के और अभी जो Pre-University College के जो lecturers हैं, सब लोग मुझे guidance देते हैं सर, और motivate करते हैं सर। Every step of my journey has been motivated my hard working parents and teachers, Sir. तो आज मैं जो भी हूं, सब उन्हीं की वजह से हूं और जो उन्होंने मुझे inspire किया है उसी तरीके से मैं इस लेवल पर आया हूं सर। उत्तर- चलिए मैं आपके माताजी-पिताजी को भी बधाई देता हूं कि उन्होंने किसानी को भी मन से किया है और किसानी के साथ बेटे को जोड़ा भी है। बेटे को जो टेलेंट है उसको किसानी से जोड़ा है। तो आप तो डबल-डबल अभिनंदन के अधिकारी हैं। माननीय पीएम की टिप्पणी: राकेश, आधुनिक कृषि, ये आज हमारे देश की ज���ूरत है। और मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि इतनी छोटी उम्र में आप ना सिर्फ इसे समझ रहे हैं बल्कि कृषि को आधुनिक बनाने के लिए, टेक्नोलॉजी से जोड़ने के लिए प्रयास भी कर रहे हैं। आप ऐसे ही सफल होते रहें, आपको मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं और आपके माता-पिता का मैं धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने बेटे को उस काम के लिए प्रेरित किया है जो देश के किसानों के काम आने वाला है। आइए अब यूपी चलते हैं। यूप के अलीगढ़ के रहने वाले मोहम्मद शादाब, इनसे बात करते हैं। जैसा यहां बताया गया है कि मोहम्मद शादाब ने अमेरिका तक में भारत का झंडा गाड़ा है, देश का नाम रोशन किया है। प्रश्न - शादाब, आप अमेरिका में युवा एंबेसडर की तरह काम कर रहे हैं। स्कॉलर्शिप हासिल करके अलीगढ़ से अमेरिका तक की यात्रा आपने की। कई अवार्ड भी आपने जीते और women empowerment के लिए काम भी कर रहे हैं। इतना सब करने की प्रेरणा कहाँ से मिली आपको कहां से मिलती है? उत्तर- आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार। सबसे पहले तो मैं ये बताना चाहूंगा कि मैं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का 11वीं कक्षा का छात्र हूं और इतना सब कुछ करने की प्रेरणा मुझे अपने माता पिता एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के टीचरों से मिलती है। जैसाकि हम सब जानते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक ऐसी जगह हैं जिसने इस दुनिया को बहुत अच्छे-अच्छे लोग दिए हैं। ऐसे ही मैं चाहता हूं कि मैं भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का नाम रोशन करूं और देश के लिए कुछ कर गुजरूं। प्रश्न – तो आपके माताजी-पिताजी भी कुछ ने कुछ ऐसा करते थे कि तुम्हारे से ही सब करवाते हैं? उत्तर – नहीं, मेरे माता-पिता का शुरू से ही स्पोर्ट रहा है। जैसा कि मेरे माता-पिता का कहना है कि जैसे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आजाद सर थे, उन्होंने देश को इतनी बड़ी मिसाइल दी जो आज देश हमारा किसी का मोहताज नहीं है। तो ऐसे ही मेरे माता-पिता कहना है कि आप भी कुछ देश के लिए ऐसा करो कि देश आपको सालों-साल याद रखे। प्रश्न 2- देखिए, आप वाकई देश का नाम रोशन कर रहे हैं। अच्छा आगे क्या सोचा है, कुछ तो मन में जरूर बड़ी-बड़ी बातें आती होंगी? उत्तर- जी सर, तो आगे मेरा सपना है कि मैं बड़े होकर आईएएस आफिसर बनू और अपने समाज की सेवा करूं। और मैं यहीं नहीं रुकना चाहता, मैं आगे जाकर यूनाइटेड नेशन में मानव अधिकार पर काम करना चाहता हूं। और मेरा ये सपना है मैं यूनाइटेड नेशन में जाकर अपने देश का झंडा लहराऊं और अपने देश का ना रोशन करूं। माननीय पीएम की टिप्पणी: वाह! दुनिया में भारत का नाम और ऊंचा हो, नए भारत की पहचान और मजबूत हो, ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी हमारे देश के नौजवानों के ऊपर है। और शादाब, मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। आपके मन में बहुत clarity है और अब्दुल कलाम जी को हीरो के रूप में आपके परिवार में आपके माता-पिता ने आपके दिमाग में बचपन से भरा हुआ है ये सपना, मैं आपके माता-पिता को भी बहुत बधाई देता हूं कि उन्होंने आपको सही रास्ता दिखाया। हीरो कैसे हों, ideals कैसे हों, ये बचपन में आपको सिखा दिया और जिसने आपकी जिंद���ी को बना दिया। और आपने, आपके माता-पिता ने जो मंत्र दिया उसको जी। इसलिए मैं आपको बहुत बधाई देता हूं और आपको बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आइए, अब हम गुजरात चलते हैं। गुजरात के मंत्र जितेंद्र हरखानी, उससे बात करते हैं। मंत्र जितेंद्र को स्पोर्ट्स की दुनिया में, तैराकी में अच्छे प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। प्रश्न 1- मंत्र, केम छो? मजा में थे? तारे साथ कौन-कौन छे? उत्तर – मेरे साथ पापा-मम्मी छे। प्रश्न- अच्छा मंत्र ये बताइए, देश भर से लोग आज तुम्हें देख रहे हैं। तुमने इतना बड़ा साहस करके देश का नाम रोशन किया है। देखिए, मैं भी जब बचपन में था मेरे गांव में वडनगर में, तो हमारे यहां बड़ा तालाब था। तो हम सब बच्चे तैरते थे। लेकिन वो तैरना और तुम्हारा तैरना, उसमें बहुत बड़ा अन्तर है। काफी ट्रेनिंग होती है, काफी मेहनत करनी पड़ती है। और आप तो तैराकी में record बना रहे हैं और प्रेरणा बन गए हैं। आप तो athlete हैं। और athlete तो लक्ष्य के लिए बहुत focused होते हैं। बताइए, मैं आपसे जानना चाहता हूं, आपका क्या लक्ष्य है? क्या करना चाहते हैं? कैसे आगे बढ़ना चाहते हैं? हां बताओ, मेरे साथ बात करो। उत्तर- गुड मॉर्निंग सर, प्रश्न – हां गुड मार्निंग। बताइए। उत्तर – सर, मैं वर्ल्ड का best swimmer बनना चाहता हूं और आपके जैसा बन सकता हूं, देश की सेवा करना चाहता हूं। प्रश्न – देखिए, आपके मन में ये इतना सपना है, मुझे पक्का विश्वास है कि आपके माता-पिता जिस समर्पण भाव से तुम्हारे लिए अपना समय खपा रहे हैं, आप ही उनकी जिंदगी के सपने बन गए हो, आप ही उनकी जिंदगी के मंत्र बन गए हो। और इसलिए आप जो पुरुषार्थ कर रहे हो, जिस हिम्मत और मेहनत के साथ कर रहे हो, आपके माता-पिता को ही नहीं, आप जैसे बच्चों के जितने माता-पिता हैं, उन सबके लिए भी आपके माता-पिता प्रेरणा हैं और आप भी प्रेरणा हैं। और इसलिए मैं आपको बहुत बधाई देता हूं। बहुत अच्छे उमंग के साथ आप बात कर रहे हैं। ये अपने-आप में बहुत बड़ी बात है। मैं आपको बहुत बधाई देता हूं और मुझे कभी किसी ने बताया था कि आपके शायद जो कोच थे उसने आपको प्रॉमिस किया है मुझसे मिलने का। किया है ना? तो तुमने झगड़ा क्यों नहीं किया कोच से, अभी तक मिलवाया नहीं तो? उत्तर – आप ही आ जाओ, मैं यहां चाय पिलाता हूं। प्रश्न – तो जब मैं गुजरात आऊंगा, मिलने आओगे? उत्तर – जरूर। प्रश्न – तो राजकोट का गांठिया लेकर आना पड़ेगा? क्या बोल रहा है ये? उत्तर – सर ये बोल रहा है कि जब आप आएंगे तो जलेबी, गाठिंया सब लेकर आएंगे। आप बोलेंगे तो चाय भी पिलाएंगे। माननीय पीएम की टिप्पणी: चलिए बहुत-बहुत बधाई आपको। बहुत ही अच्छी बातें बताईं आप सबने! प्यारे बच्चों, इस बातचीत से, आप सभी को मिले अवार्ड से ये समझ आता है कि कैसे जब एक छोटा सा आइडिया, एक राइट एक्शन के साथ जुड़ता है तो कितने बड़े और प्रभावशाली रिज़ल्ट आते हैं! आप सब खुद इसका कितना बड़ा उदाहरण हैं। आज आपकी ये जो उपलब्धियां है, इसकी शुरुआत भी तो किसी विचार से, एक आइडिया से ही हुई होगी। अब जैसे पश्चिम बंगाल के सौहादर्य डे हैं। वो पौराणिक कथाओं और देश के गौरवशाली इतिहास से जुड़ा लेखन करते हैं। जब उनके मन में पहली बार ये विचार आया होगा कि इस दिशा में बढ़ना है, लिखना है, तो वो सिर्फ ये सोचकर नहीं बैठ गए। उन्होंने सही एक्शन लिया, लिखना शुरू किया, और आज इसका नतीजा हम देख रहे हैं। ऐसे ही असम के तनुज समद्दार हैं, बिहार की ज्योति कुमारी हैं, दो बच्चों का जीवन बचाने वाले महाऱाष्ट्र के कामेश्वर जगन्नाथ वाघमारे हैं, सिक्किम के आयुष रंजन हैं, पंजाब की बेटी नाम्या जोशी हैं, हर बच्चे की प्रतिभा, उनका टैलेंट, देश का गौरव बढ़ाने वाला है। मेरा तो मन है कि आप सभी से बात करूं। आप एक भारत-श्रेष्ठ भारत की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति हैं। लेकिन समय के अभाव की वजह से ऐसा संभव नहीं। साथियों, संस्कृत में एक बढ़िया श्लोक है- और जब हम छोटे थे तो हमारे टीचर हमें सुनाया करते थे, बार-बार हमें रटाया करते थे। और वो कहते थे- “उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:” अर्थात, कार्य उद्यम से, मेहनत से सिद्ध होते हैं केवल कल्पना करते रहने से नहीं होता है। एक आइडिया जब एक्शन से जुड़ता है, तो उससे कितने और एक्शन भी शुरू हो जाते हैं। जैसे कि आपकी सफलता ने कितने और लोगों को भी प्रेरित किया है। आपके दोस्त, आपके साथी, और देश के दूसरे बच्चे, कितने ही बच्चे जो आपको टीवी पर देख रहे होंगे, अखबार में आपके बारे में पढ़ेंगे, वो भी आपसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ेंगे, नए संकल्प लेंगे, और उन्हें पूरा करने के लिए भरसक प्रयास करेंगे। ��से ही उनसे और दूसरे युवाओं को प्रेरणा मिलेगी। ये cycle ऐसे ही बढ़ती जाती है। लेकिन प्यारे बच्चों, एक बात मैं आपको और भी कहना चाहूँगा। मेरी ये बात हमेशा याद रखिएगा कि ये पुरस्कार आपके जीवन का एक छोटा सा पड़ाव है, आपको इस सफलता की खुशी में खो नहीं जाना है। जब आप यहाँ से जाएंगे, तो लोग आपकी खूब वाहवाही करेंगे। अखबार में आपका नाम भी निकल रहा होगा, आपके इंटरव्यू भी होंगे। लेकिन, आपको ध्यान रखना है कि ये वाहवाही आपके actions की वजह से है, आपके कर्म के कारण है, आपके commitment के कारण है। वाहवाही में भटक कर अगर एक्शन रुक गए, या आप उससे ही disconnect हो गए तो यही वाहवाही आपके लिए बाधा बन सकती है। अभी तो आगे जीवन में आपको और भी बड़ी सफलताएँ हासिल करनी हैं। और एक मैं सुझाव देना चाहूंगा। आप जरूर कुछ न कुछ पढ़ते होंगे। लेकिन आग्रहपूर्वक आपको जिसकी भी पसंद आए। हर साल कोई न कोई एक जीवनी जरूर पढ़िए। वो आत्मकथा भी हो सकती हैं जीवनी भी हो सकती है। वो किसी वैज्ञानिक की भी हो सकती हैं, खिलाड़ी की हो सकती हैं, किसी बड़े किसान की हो सकती हैं। किसी बड़े फिलोस्फर की, लेखक की, जो भी आपको मन पड़े, तय कीजिए साल में एक बार एक जीवनी बहुत मन से पढूंगा। कम से कम एक जीवनी। आप देखिए जीवन में लगातार नई प्रेरणा मिलती रहेगी। मेरे नौजवान साथियों, मैं चाहूंगा कि आप इन सारी बातों को जरूर महत्व देंगे, लेकिन मैं कुछ तीन बातें और जोड़ना चाहता हूं। पहला- निरंतरता का संकल्प। यानि आपके काम की गति कभी रुकनी नहीं चाहिए, कभी शिथिल नहीं पड़नी चाहिए। जब भी एक काम पूरा हो, तो उसके आगे नया सोचते ही रहना चाहिए। दूसरी बात मैं कहूंगा, देश के लिए संकल्प। जो काम करें वो सिर्फ अपना काम मानकर न करें। मेरा काम, मेरे लिए काम, ये सोच हमारे दायरे को बहुत सीमित कर देती है। जब आप देश के लिए काम करेंगे, तो अपने आप, आपका काम कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा, बहुत बड़ा हो जाएगा। बहुत लोग ऐसा लगेगा कि जैसे आपके काम के लिए कुछ न कुछ कर रहे हैं। आपका सोचने का विस्तार ही बदल जाएगा। इस साल हमारा देश आजादी के 75 साल में प्रवेश कर रहा है। आप सभी सोचिएगा, ऐसा क्या करें कि देश और आगे बढ़े। और तीसरी बात मैं जरूर कहना चाहूंगा, वो है, विनम्रता का संकल्प। हर एक सफलता के साथ आपको और ज्यादा विनम्र होने का संकल्प लेना चाहिए। क्योंकि आपमें विनम्रता होगी तो आपकी सफलता को सैकड़ों-हजारों और लोग भी आपके साथ मिलकर celebrate करेंगे। आपकी सफलता खुद अपने-आप ही बड़ी हो जाएगी। तो मैं मानूँ कि आप ये तीनों संकल्प याद रखेंगे? एकदम पक्का याद रखेंगे और मुझे विश्वास है कि आप लोग बहुत focussed होते हैं, भूलेंगे नहीं। और मुझे मालूम है आप न भूलेंगे, न ही किसी को भूलने देंगे। आगे और भी बड़े बड़े काम करेंगे। आपके जीवन में आगे के जो सपने हैं, आपके वो सपने पूरे हों, और लगातार ऐसी ही सफलताओं से आप सभी नौजवान, सब बच्चे देश को आगे बढ़ाते रहें, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आपके परिवारजनों को, आपके शिक्षक जगत के सारे साथियों को, सबको इस बात के लिए मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और आप सब बच्चों को अनेक-अनेक आशीर्वाद देता हूं।बहुत बहुत धन्यवाद !
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यह एक साक्षात्कार है जिसे आपको अवश्य पढ़ना चाहिए। यहां एक महिला है और वह उठती है, आगे देखती है और अपने जीवन के साथ जारी रहती है। बातचीत एक ही समय में दिल तोड़ने वाली और प्रेरक है, यह कुछ भी नहीं है, लेकिन यह सच है और आप इसे पढ़ सकते हैं।
इरफान ने क्या महसूस किया कि उन्हें जल्द ही सेट पर वापस आना चाहिए और 'एंग्रीज़ी मीडियम' करना चाहिए?
खैर, यह सिर्फ इसलिए था क्योंकि उनकी बीमारी पूरी तरह से नियंत्रण में थी। उनके स्कैन बेहतरीन थे। उन्हें होमी अदजानिया ('एंग्रेज़ी मीडियम' निर्देशक) और विश्वसनीय दिनेश विजजन (निर्माता) से प्यार था। वह पैसा कमाना चाहता था क्योंकि वह एक स्व-निर्मित व्यक्ति था और उसे खुद पर विश्वास करने की सबसे अधिक आवश्यकता थी।
क्या आप उसके फिर से शुरू होने के साथ ठीक थे? यदि नहीं, तो क्या आपने उसे बताया और बदले में उसने क्या जवाब दिया?
मुझे यकीन नहीं था। मैं चाहता था कि वह थोड़ा और आराम करे। मैं चाहता था कि वह पूरी तरह से ठीक हो जाए। हम उस समय बहुत आशान्वित थे लेकिन एक बड़ा संघर्ष था। उनका कैंसर शायद ही था, यहां तक कि डॉक्टर ने उन्हें फिर से शुरू करने की पूरी अनुमति दी थी। भारत और विदेशों में डॉक्टरों ने कहा, 'काम उनकी मनोदशा को बढ़ाएगा, उनकी योग्यता'। इसलिए मैंने दिया और अंत में मुझे खुशी है कि मैंने किया। कैंसर एक जानलेवा बीमारी है और कुछ भी निश्चित नहीं है। तो क्यों किसी को छोटी खुशियों से वंचित करें? यह पहली बार था जब मैं शूटिंग के लिए उनके साथ था, लेकिन वास्तविक शूटिंग के लिए नहीं। मैं उनके साथ डे शूट और नाइट शूट, दोनों में था। मैंने सेट पर उनके खाने आदि के बारे में एक माँ की तरह व्यवहार किया, लेकिन , क्या हमने मज़ा किया! वह होमी के साथ रोज़ हँसा! अपनी बीमारी पर हंसने से ज्यादा सुंदर और क्या हो सकता है? उसके लिए, मैं होमी अदजानिया और ��िनेश विजान का हमेशा ऋणी रहूंगा। मैं फिर भी उन स्थानों पर हँसी महसूस करूँगा अगर मैं कभी उन लोगों को देखता हूँ, फिर से।
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परीक्षा पे चर्चा: पीएम मोदी ने करोड़ों छात्रों को दिया हौसला, माता-पिता से बच्चों पर दबाव न बनाने का किया आग्रह
चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों के साथ 'परीक्षा पे चर्चा' कर रहे हैं। इसमें 25 देशों के 15 करोड़ से अधिक छात्र शामिल हो रहे हैं। इस कार्यक्रम के माध्यम से छात्र परीक्षा को लेकर अपने सीधे सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछ सकते हैं। पीएम मोदी सवालों के जवाब देंगे और चयनित छात्रों के साथ बातचीत में बताएंगे कि वे परीक्षा के तनाव को कैसे कम सकते हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); पीएम मोदी ने छात्रों से कहा कि, 'फिर एक बार आपका यह दोस्त आपके बीच में है। सबसे पहले मैं आपको नववर्ष 2020 की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं'। उन्होंने कहा, 'मुझे लगा आपके माता-पिता का बोझ थोड़ा हल्का करना चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि, 'स्मार्ट फोन जितना समय आपका समय चोरी करता है, उसमें से 10 प्रतिशत कम करके आप अपने मां, बाप, दादा, दादी के साथ बिताएं। तकनीक हमें खींचकर ले जाए, उससे हमें बचकर रहना चाहिए। हमारे अंदर ये भावना होनी चाहिए कि मैं तकनीक को अपनी मर्जी से उपयोग करूंगा।' पीएम मोदी ने कहा कि, 'पिछली शताब्दी के आखरी कालखंड और इस शताब्दी के आरंभ कालखंड में विज्ञान और तकनीक ने जीवन को बदल दिया है। इसलिए तकनीक का भय कतई अपने जीवन में आने नहीं देना चाहिए। तकनीक को हम अपना दोस्त माने, बदलती तकनीक की हम पहले से जानकारी जुटाएं, ये जरूरी है।' पीएम ने कहा कि, 'को-करिक्यूलर एक्टिविटीज न करना आपको रोबोट की तरह बना सकता है। आप इसे बदल सकते हैं। हां, इसके लिए बेहतर समय प्रबंधन की आवश्यकता होगी। आज कई अवसर हैं और मुझे आशा है कि युवा इनका उपयोग करेंगे।' पीएम मोदी ने कहा कि, 'हमें जो शिक्षा मिलती है, वह दुनिया का द्वार है। वर्णमाला सीखते समय, बच्चे एक नई दुनिया में प्रवेश करते हैं। हमारी शिक्षा हमारे लिए नई चीजों को सीखने का एक तरीका है। हमें इसे दिनचर्या के मूल में रखने और उसके बारे में और जानने की जरूरत है।' पीएम मोदी ने कहा कि, 'जाने अनजाने में हम लोग उस दिशा में चल पड़े हैं जिसमें सफलता-विफलता का मुख्य बिंदु कुछ विशेष परीक्षाओं के मार्क्स बन गए हैं। उसके कारण मन भी उस बात पर रहता है कि बाकी सब बाद में करूंगा, एक बार मार्क्स ले आऊं। हम विफलताओं से भी सफलता की शिक्षा पा सकते हैं। हर प्रयास में हम उत्साह भर सकते हैं और किसी चीज में आप विफल हो गए तो उसका मतलब है कि अब आप सफलता की ओर चल पड़े हो।' प्रधानमंत्री ने कहा कि, 'सिर्फ परीक्षा के अंक जिंदगी नहीं हैं। कोई एक परीक्षा पूरी जिंदगी नहीं है। ये एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। लेकिन यही सब कुछ है, ऐसा नहीं मानना चाहिए। मैं माता-पिता से भी आग्रह करूंगा कि बच्चों से ऐसी बातें न करें कि परीक्षा ही सब कुछ है। शिक्षा के साथ ही दूसरी एक्टिविटी का भी महत्व है, 10वीं और 12वीं विद्यार्थियों को मैं जरूर कहूंगा कि कुछ न कुछ अलग कीजिए, सिर्फ किताबों में ही न खो जाएं।' सवाल - बोर्ड के चलते उनका मूड ऑफ हो जाता है, तो हम किस तरह अपने आपको उत्साहित करें? जवाब - मैं तो सोच रहा था जवानों का मूड ऑफ ही नहीं होता लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि मूड ऑफ क्यों होता है। मुझे लगता है कि मूड ऑफ होने में बाहरी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। आप पढ़ रहे होते हैं और मां से कहते हैं कि 6 बजे चाय चाहिए लेकिन बीच में ही आप घड़ी देख लेते हैं कि 6 बजे या नहीं तो यहीं से गड़बड़ शुरू हो जाती है। लेकिन अगर इसे दूसरे तरीके से सोचे तो ये भी मन में आना चाहिए कि मां को कुछ हुआ तो नहीं। क्योंकि आपने अपेक्षा को अपने साथ जोड़ लिया है इसलिए ऐसा होता है। हर व्यक्ति को मोटिवेशन या डिमोटिवेशन से गुजरना पड़ता है। हमें मामूली सी बात पर मूड खराब नहीं करना चाहिए। सवाल - जो छात्र पढ़ाई में अच्छे नहीं है लेकिन खेल-संगीत में अच्छे होते हैं तो उनका भविष्य क्या होगा। पढ़ाई के बीच किस तरह एक्टिविटी के बीच बैलेंस बनाया जाए? जवाब - शिक्षा के जरिए बहुत बड़े रास्ते का दरवाजा खोलती है। सा रे गा मा से सिर्फ संगीत की दुनिया में एंट्री मिलती है, लेकिन उससे संगीत पूरा नहीं होता है। जो हम सीख रहे हैं उसे जिंदगी की कसौटी पर कसना जरूरी। स्कूल में पढ़ाया जाता है कि कम बोलने से फायदा होता है तो हमें जिंदगी में भी उसे उतारना चाहिए। अगर आप रोबोट की तरह काम करते रहेंगे, तो सिर्फ रोबोट ही बनकर रह जाएंगे। इसलिए पढ़ाई से अलग भी एक्टविटी करनी चाहिए, हालांकि टाइम मैनेजमैंट जरूरी है। सवाल - परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए हम कितना ध्यान केंद्रित करें। क्या सिर्फ मार्क्स से ही सफलता तय होगी? जवाब - हम लोग अब उस दिशा में चल पड़े हैं जहां नंबर को ही महत्वपूर्ण माना जाता है। अब बच्चों के दिमाग में रहता है कि पहले नंबर ले आऊं, फिर बाद में सोचेंगे। लेकिन आज दुनिया बहुत बदल चुकी है। सिर्फ परीक्षा के अंक ही जिंदगी नहीं है ये सिर्फ एक पड़ाव है। नंबर ही सबकुछ नहीं हैं, बच्चों के लिए ‘ये नहीं तो कुछ नहीं’ का माहौल ना बनाएं। किसान की स्कूली शिक्षा कम होती है लेकिन वो भी नई बातें सीखता है। परीक्षा का महत्व है, लेकिन सिर्फ परीक्षा ही जिंदगी नहीं है। पीएम मोदी ने चंद्रयान-2 का उदहारण देते हुए कहा कि, 'जब चंद्रयान जा रहा था तो हर कोई जाग रहा था, जब असफल हुआ तो पूरा देश डिमोटिवेट हो गया था। जब मैं चंद्रयान लॉन्च पर था तो लोगों ने मुझे कहा था कि वहां नहीं जाना चाहिए, क्योंकि पास होना पक्का नहीं है। तो मैंने कहा कि इसलिए मुझे जाना चाहिए। चंद्रयान के जब आखिरी मिनट थे, तो वैज्ञानिकों के चेहरे पर तनाव दिख रहा है। जब चंद्रयान फेल हुआ तो मैं चैन से बैठ नहीं पाया, सोने का मन नहीं कर रहा था। हमारी टीम कमरे में चली गई थी, लेकिन बाद में मैंने सभी को बुलाया। मैंने टीम को बताया कि हम वापस बाद में जाएंगे और सभी वैज्ञानिकों को सुबह बुलाया गया। अगली सुबह सभी वैज्ञानिकों को इकट्ठा किया, उनके सपनों की बातें की। उसके बाद पूरे देश का माहौल बदल गया, ये पूरे देश ने देखा है। हम विफलता में भी सफलता की शिक्षा पा सकते हैं। अगर आप किसी चीज में असफल हुए हैं तो इसका मतलब है कि आप सफलता की ओर बढ़ चुके हैं।' तनाव दूर करने के मकसद से शुरू हुआ है कार्यक्रम परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम छात्र तनावमुक्त होकर परीक्षा दे सके, इस मकसद से शुरू किया गया। परीक्षा पे चर्चा का पहला संस्करण 16 फरवरी, 2018 को आयोजित हुआ था। इसका दूसरा संस्करण 29 जनवरी, 2019 को हुआ था। इस बार परीक्षा पे चर्चा का तीसरा संस्करण आयोजित किया जा रहा है। छात्रों के बीच प्रधानमंत्री की परीक्षा पे चर्चा काफी लोकप्रिय रही है। यही कारण है कि पिछले दो सालों के मुकाबले 250 अधिक छात्रों ने इस बार परीक्षा पे चर्चा के लिए अपना पंजीकरण करवाया है। ये भी पढ़े... मन की बात: पीएम मोदी ने कहा- आज का पीढ़ी बेहद तेज-तर्रार, इन्हें परिवारवाद और जातिवाद पसंद नहीं पीएम मोदी मन की बात स्वस्थ रहने के लिए बच्चे पसीना बहाएं, अयोध्या पर फैसला मील का पत्थर साबित हुआ मन की बात में पीएम मोदी ने नवरात्र व त्योहारों की बधाई के साथ इन मुद्दों पर रखी राय Read the full article
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तो नेहरू, आजाद, पटेल से गांधी जी कहते-तो फिर जिसे आप लोग उचित समझो, उसे राष्ट्रपति बना लो, चक्रैया मेरे चरखे का चक्का ठीक करने में मेरी मदद कर देगा--- ओम प्रकाश
आज जब राष्ट्रपति चुनाव को लेकर माहौल गर्म है , ऐसे समय में राष्ट्रपति को लेकर महात्मा गाँधी के विचार क्या थे ? इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश जी द्वारा लिखित एक उत्कृष्ठ लेख —–
इतिहास की पऱख और घटनाओं-परिस्थितियों का मूल्यांकन अकसर हम अपनी सोच और समझ से करने लगते हैं, इतिहास को जानने के बदले अपने-आपको इतिहास पर थोपने लगते हैं। गोस्वामी तुलसीदास की लिखी एक बहुत अर्थवान चौपाई है—जैसी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी। आकलन निरपेक्ष हो, तत्कालीन परिस्थितियों और तकाजों के परिप्रेक्ष्य में हो, तो फिर उसके सबब और सबक सर्वकालिक बन जाते हैं। होना यही चाहिए। संस्कृतियों को लेकर भी अनेक बार भी.यही होता है। उन्हें समझने के बदले, व्यक्ति और समाज उन्हें अपनी समझ से समझने लगते हैं। नतीजा—सच हर व्याख्या के साथ दूर होता चला जाता है। ऐसे में सच तक पहुंचना एक-दूसरे को जानने से ही हो सकता है। .यह जानना अनेक बार अनेकानेक कारणों से बाधित होता है। इस क्रम में आजका जानना हम महात्मा गांधी को लेकर रख रहे हैं। हमारी आजादी का संग्राम अभी बहुत हाल का रहा है, पर इतिहास की व्याख्या में अनेक मतांतर हैं। स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की भूमिका को लेकर भी अनेक बार अनेक सवाल उठते रहे हैं—खास कर देश के विभाजन को लेकर। यह कि उन्हें अड़ जाना था,, और बंटवारे को नामंजूर कर देना था। विभाजन को रोकने के लिए देश के आम जन का आह्वान कर देना था। गांधी के अंतिम दिनों में कांग्रेस में किस तरह से फैसला होता था, इसे लेकर एक बिलकुल ही अलग व्याख्या हाल में आयी है। उनके अपने् पोते गोपाल कृष्ण गांधी की कलम से। गोपाल कृष्ण गांधी जी के सबसे छोटे बेटे रामदास के पुत्र हैं। वे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नाती हैं। हाल तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। वर्तमान में उपराष्ट्रपति पद के विपक्ष के उम्मीद्वार । यह आलेख राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में लिखा गया था। शनिवार, ३० जून के हिंदुस्तान टाइम्स में संपादकीय पेज पर प्रकाशित हुआ था।–
क्या महात्मा गांधी ने राष्ट्रपति पद के लिए किसी का नाम सुझाया था? उनके रहते इस तरह का कोई पद नहीं बना था। उनके जीवन के अंतिम दिन भारत के स्वाधीनता संग्राम के भारत के विभाजन में बदल जाने के दिन थे। अनेकानेक दु:स्वप्नों से भरे। उस समय, किसे क्या पद दिया जाये, और कौन कहां बैठे, जैसी बातें उनके लिए बहुत मायने की नहीं थीं। बावजूद इसके, उनके अंदर दूर तक देख सकनेवाला जो इनसान बैठा था, उसने एक नाम को सोच लिया था। इस नाम का, ३१ मई १९४७ को उन्होंने उल्लेख किया। चक्रैया। कौन चक्रैया? खोज-खोज कर मैं केवल इतना जान पाया हूं कि वह १९३५ में सेवाग्राम से जुड़ा। खादी के काम में उसने अच्छी निपुणता हासिल की। वह युवा था। आंध्र का रहनेवाला था। और तब की भाषा-बोली में कहूं तो हरिजन था। २८ मई १९४७ को मुंबई में ब्रेन ट्यूमर के आपरेशन के दौरान उसकी मौत हो गयी। गांधी जी उस समय दिल्ली में थे। ३१ मई की भंगी कालोनी की अपनी प्रार्थना सभा में उन्होंने कहा—‘चक्रैया की मौत पर जोर-जोर से रो पड़ना चाहता हूं। पर रो नहीं सकता।‘ नोआखाली और बिहार में सैकड़ों लोगों को सांप्रदायिकों के हाथों जिस तरह शिकार हुए उन्होंने देखा और जाना था, वह उनके दिमाग से मिटाये नहीं मिट रहा था। उन्होंने कहा—‘किसके लिए मैं रोऊं? और किसके लिए क्यों न रोऊं?’ फिर वे तुरंत ही चक्रैया की बात पर वापस आ गये। उन्होंने कहा-‘ वह समय जल्द आ रहा है, जब देश का राष्ट्रपति चुना जायेगा। चक्रैया जिंदा रहते तो मैं उनका नाम प्रस्तावित करता।‘
आइए कल्पना करें कि जनवरी १९५० में महात्मा गांधी और चक्रैया दोनों जिंदा होते तो क्या होता? महात्मा ने गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी, प्रधानमंत्री नेहरू, उपप्रधानमंत्री पटेल, हाल में कांग्रेस अध्यक्ष रहे मौलाना आजाद, कृपलानी और राजेंद्र प्रसाद से राय की होती। वे लोग क्या कहते इसे सोचा जा सकता है। वे कहते—बापू, हमने नहीं सुना, पर आप कह रहे हैं तो, नाम—चक… चक… चक्रैया अच्छा तो लगता है। बहुत ठीक लगता है। इससे बेहतर क्या होगा कि हमारे सबसे शोषित-पीड़ित तबके से कोई हमारे नये राष्ट्र का नया मुखिया हो। पर हमने, बापू, आपस में विचार किया। आप सही कह रहे हैं बापू, पर आज की परिस्थितियां –आप सोचें, आपके लिए बहुत आदर है हमारे मन में, हम आपके बाहर कहां हैं, पर देखें—हममें से एक, हमारा मतलब है कि एक भारतीय आज लार्ड माउंटबेटन की जगह बैठ रहा है ….अभी, दुनिया युद्ध और अर्थ व्यवस्था के भीषण संकट से बाहर आना शुरू ही हुई है… पाकिस्तान एक नया अंतरराष्ट्रीय दर्जा हासिल कर रहा है… तब राष्ट्रपति के पद पर कोई ऐसा होना चाहिए, हममें से ही कोई हो ऐसा जरूरी नहीं, पर कोई ऐसा हो जो देश-दुनिया में जाना-पहचाना हो, जिसे हमारी तरह की राजनीति की समझ हो, सूझ-बूझ हो, जिसे सरकार चलाना आता हो, आपके हम जैसे अनुयाइयों की तरह—जो हमें संकट में सलाह दे सके…जो राजनीति की बारीकियों को पकड़ सके….बाहर के देशों में जाना है—बाहर से राष्ट्राध्यक्षों को आना है…स्वागत-समारोह सबको संभालना है… तब, ७८ साल के उन वृद्ध ने कहा होता—आप सभी बेहतर जानते हैं.. आखिरकार अब मैं एक बुड्ढा आदमी हूं…राजकाज आप लोगों को चलाना है… मैं तो उम्मीद के खिलाफ एक उम्मीद कर रहा था कि जब आप लोग राजकाज चला रहे हैं,…. तो क्या कहा आपने राजनीति की बारीकियां… तो मैंने सोचा था कि राजनीति की समझ, वह तो महत्वपूर्ण है ही…आप लोगों जैसा अनुभव भी….पर मैंने सोचा था कि कोई ऐसा भी हो नैतिक नेतृत्व भी दे—अपने काम से। अपने किये से। बता दीजिए किसी को जो आज अपने हाथ का, अपने श्रम का इस्तेमाल करे। सब तो दिमाग खपा रहे हैं, और गले की नसें झकझोर रहे हैं। स्वागत-समारोह—वह खाना-पीना, परसना, उसका तौर-तरीका वह सब चक्रैया को मैं पांच मिनट में समझा दूंगा। वह हमें विश्वास दिला देगा कि वह हमारे जैसा है। पतित और पावन, दोनों। शोषित, पर बिना किसी विद्वेष के। भद्र। ठीक, अब आप अच्छे लोग, जाइए। जैसा आप ठीक सोचते हैं, वैसा कीजिए। मुझे अब कुछ काम है। यह चरखे का चक्का ठीक करना है। चक्रैया इस काम में मेरी मदद कर देगा।
डॉ कमल टावरी “विध्यार्थी”
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नेताजी की 125 वीं जयंती मनाने के लिए कोलकाता में पराक्रम दिवस समारोह में पीएम के संबोधन .
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द! मंच पर विराजमान पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री जगदीप धनखड़ जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बहन ममता बनर्जी जी, मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी श्री प्रह्लाद पटेल जी, श्री बाबुल सुप्रियो जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के निकट संबंधी जन, भारत का गौरव बढ़ाने वाली आजाद हिंद फौज के जांबाज सदस्य, उनके परिजन, यहां उपस्थित कला और साहित्य जगत के दिग्गज और बंगाल की इस महान धरती के मेरे भाइयों और बहनों, आज कोलकाता में आना मेरे लिए बहुत भावुक कर देने वाला क्षण है। बचपन से जब भी ये नाम सुना- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, मैं किसी भी स्थिति में रहा, परिस्थिति में रहा, ये नाम कान में पड़ते ही एक नई ऊर्जा से भर गया। इतना विराट व्यक्तित्व कि उनकी व्याख्या के लिए शब्द कम पड़ जाएं। इतनी दूर की दृष्टि कि वहां तक देखने के लिए अनेकों जन्म लेने पड़ जाएं। विकट से विकट परिस्थिति में भी इतना हौसला, इतना साहस कि दुनिया की बड़ी से बड़ी चुनौती ठहर न पाए। मैं आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चरणों में अपना शीश झुकाता हूं, उन्हें नमन करता हूं। और नमन करता हूं उस मां को, प्रभादेवी जी को जिन्होंने नेताजी को जन्म दिया। आज उस पवित्र दिन को 125 वर्ष हो रहे हैं। 125 वर्ष पहले, आज के ही दिन माँ भारती की गोद में उस वीर सपूत ने जन्म लिया था, जिसने आज़ाद भारत के सपने को नई दिशा दी थी। आज के ही दिन ग़ुलामी के अंधेरे में वो चेतना फूटी थी, जिसने दुनिया की सबसे बड़ी सत्ता के सामने खड़े होकर कहा था, मैं तुमसे आज़ादी मांगूंगा नहीं, आज़ादी छीन लूँगा। आज के दिन सिर्फ नेताजी सुभाष का जन्म ही नहीं हुआ था, बल्कि आज भारत के नए आत्मगौरव का जन्म हुआ था, भारत के नए सैन्य कौशल का जन्म हुआ था। मैं आज नेताजी की 125वीं जन्म-जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की तरफ से इस महापुरुष को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं, उन्हें सैल्यूट करता हूं। साथियों, मैं आज बालक सुभाष को नेताजी बनाने वाली, उनके जीवन को तप, त्याग और तितिक्षा से गढ़ने वाली बंगाल की इस पुण्य-भूमि को भी आदरपूर्वक नमन करता हूँ। गुरुदेव श्री रबीन्द्रनाथ टैगोर, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, शरद चंद्र जैसे महापुरुषों ने इस पुण्य भूमि को राष्ट्रभक्ति की भावना से भरा है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, चैतन्य महाप्रभु, श्री ऑरोबिन्दो, मां शारदा, मां आनंदमयी, स्वामी विवेकानंद, श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जैसे संतों ने इस पुण्यभूमि को वैराग्य, सेवा और आध्यात्म से अलौकिक बनाया है। ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजा राममोहन राय, गुरुचंद ठाकुर, हरिचंद ठाकुर जैसे अनेक समाज सुधारक सामाजिक सुधार के अग्रदूतों ने इस पुण्यभूमि से देश में नए सुधारों की नींव भरी है। जगदीश चंद्र बोस, पी सी रॉय, एस. एन. बोस और मेघनाद साहा अनगिनत वैज्ञानिकों ने इस पुण्य-भूमि को ज्ञान विज्ञान से सींचा है। ये वही पुण्यभूमि है जिसने देश को उसका राष्ट्रगान भी दिया है, और राष्ट्रगीत भी दिया है। इसी भूमि ने हमें देशबंधु चितरंजन दास, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और हम सभी के प्रिय भारत रत्न प्रणब मुखर्जी से साक्षात्कार कराया। मैं इस भूमि के ऐसे लाखों लाख महान व्यक्तित्वों के चरणों में भी आज इस पवित्र दिन पर प्रणाम करता हूँ। साथियों, यहाँ से पहले मैं अभी नेशनल लाइब्रेरी गया था, जहां नेताजी की विरासत पर एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस और आर्टिस्ट-कैम्प का आयोजन हो रहा है। मैंने अनुभव किया, नेताजी का नाम सुनते ही हर कोई कितनी ऊर्जा से भर जाते हैं। नेताजी के जीवन की ये ऊर्जा जैसे उनके अन्तर्मन से जुड़ गई है! उनकी यही ऊर्जा, यही आदर्श, उनकी तपस्या, उनका त्याग देश के हर युवा के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। आज जब भारत नेताजी की प्रेरणा से आगे बढ़ रहा है, तो हम सबका कर्तव्य है कि उनके योगदान को बार-बार याद किया जाए। पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया जाए। इसलिए, देश ने तय किया है कि नेताजी की 125वीं जयंती के वर्ष को ऐतिहासिक, अभूतपूर्व भव्यता भरे आयोजनों के साथ मनाए। आज सुबह से देशभर में इससे जुड़े कार्यक्रम हर कोने में हो रहे हैं। आज इसी क्रम में नेताजी की स्मृति में एक स्मारक सिक्का और डाक-टिकट जारी किया गया है। नेताजी के पत्रों पर एक पुस्तक का विमोचन भी हुआ है। कोलकाता और बंगाल, जो उनकी कर्मभूमि रहा है, यहाँ नेताजी के जीवन पर एक प्रदर्शनी और प्रॉजेक्शन मैपिंग शो भी आज से शुरू हो रहा है। हावड़ा से चलने वाली ट्रेन ‘हावड़ा-कालका मेल’ का भी नाम बदलकर ‘नेताजी एक्सप्रेस’ कर दिया गया है। देश ने ये भी तय किया है कि अब हर साल हम नेताजी की जयंती, यानी 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया करेंगे। हमारे नेताजी भारत के पराक्रम की प्रतिमूर्ति भी हैं और प्रेरणा भी हैं। आज जब इस वर्ष देश अपनी आजादी के 75 वर्ष में प्रवेश करने वाला है, जब देश आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, तब नेताजी का जीवन, उनका हर कार्य, उनका ह��� फैसला, हम सभी के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है। उनके जैसे फौलादी इरादों वाले व्यक्तित्व के लिए असंभव कुछ भी नहीं था। उन्होंने विदेश में जाकर देश से बाहर रहने वाले भारतीयों की चेतना को झकझोरा, उन्होंने आज़ादी के लिए आज़ाद हिन्द फौज को मजबूत किया। उन्होंने पूरे देश से हर जाती, पंथ, हर क्षेत्र के लोगों को देश का सैनिक बनाया। उस दौर में जब दुनिया महिलाओं के सामान्य अधिकारों पर ही चर्चा कर रही थी, नेता जी ने ‘रानी झाँसी रेजीमेंट’ बनाकर महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। उन्होंने फौज के सैनिकों को आधुनिक युद्ध के लिए ट्रेनिंग दी, उन्हें देश के लिए जीने का जज्बा दिया, देश के लिए मरने का मकसद दिया। नेता जी ने कहा था- “भारोत डाकछे। रोकतो डाक दिए छे रोक्तो के। ओठो, दाड़ांओ आमादेर नोष्टो करार मतो सोमोय नोय। अर्थात, भारत बुला रहा है। रक्त, रक्त को आवाज़ दे रहा है। उठो, हमारे पास अब गँवाने के लिए समय नहीं है। साथियों, ऐसी हौसले भरी हुंकार सिर्फ और सिर्फ नेताजी ही दे सकते थे। और आखिर, उन्होंने ये दिखा भी दिया कि जिस सत्ता का सूरज कभी अस्त नहीं होता, भारत के वीर सपूत रणभूमि में उसे भी परास्त कर सकते हैं। उन्होंने संकल्प लिया था, भारत की जमीन पर आज़ाद भारत की आज़ाद सरकार की नींव रखेंगे। नेताजी ने अपना ये वादा भी पूरा करके दिखाया। उन्होंने अंडमान में अपने सैनिकों के साथ आकर तिरंगा फहराया। जिस जगह अंग्रेज देश के स्वतन्त्रता सेनानियों को यातनाएं देते थे, काला पानी की सजा देते थे, उस जगह जाकर उन्होंने उन सेनानियों को अपनी श्रद्धांजलि दी। वो सरकार, अखंड भारत की पहली आज़ाद सरकार थी। नेताजी अखंड भारत की आज़ाद हिन्द सरकार के पहले मुखिया थे। और ये मेरा सौभाग्य है कि आज़ादी की उस पहली झलक को सुरक्षित रखने के लिए, 2018 में हमने अंडमान के उस द्वीप का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप रखा। देश की भावना को समझते हुए, नेताजी से जुड़ी फाइलें भी हमारी ही सरकार ने सार्वजनिक कीं। ये हमारी ही सरकार का सौभाग्य रहा जो 26 जनवरी की परेड के दौरान INA Veterans परेड में शामिल हुए। आज यहां इस कार्यक्रम में आजाद हिंद फौज में रहे देश के वीर बेटे और बेटी भी उपस्थित हैं। मैं आपको फिर से प्रणाम करता हूं और प्रणाम करते हुए यही कहूंगा कि देश सदा-सर्वदा आपका कृतज्ञ रहेगा, कृतज्ञ है और हमेशा रहेगा। साथियों, 2018 में ही देश ने आज़ाद हिन्द सरकार के 75 साल को भी उतने ही धूमधाम से मनाया था। देश ने उसी साल सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबन्धन पुरस्कार भी शुरू किए। नेताजी ने दिल्ली दूर नहीं का नारा देकर लाल किले पर झंडा फहराने का जो सपना देखा था, उनका वो सपना देश ने लाल किले पर झंडा फहराकर पूरा किया। भाइयों और बहनों, जब आजाद हिंद फौज की कैप में मैंने लाल किले पर झंडा फहराया था, उसे मैंने अपने सर पर लगाया था। उस वक्त मेरे मन मस्तिष्क में बहुत कुछ चल रहा था। बहुत से सवाल थे, बहुत सी बातें थीं, एक अलग अनुभूति थी। मैं नेताजी के बारे में सोच रहा था, देशवासियों के बारे में सोच रहा था। ��ो किसके लिए जीवन भर इतना रिस्क उठाते रहे, जवाब यही है- हमारे और आपके लिए। वो कई-कई दिनों तक आमरण अनशन किसके लिए करते रहे- आपके और हमारे लिए। वो महीनों तक किसके लिए जेल की कोठरी में सजा भुगतते रहे- आपके और हमारे लिए। कौन ऐसा होगा जिसके जीवन के पीछे इतनी बड़ी अंग्रेजी हुकूमत लगी हो वो जान हथेली पर रखकर फरार हो जाए। हफ्तों-हफ्तों तक वो काबुल की सड़कों पर अपना जीवन दांव पर लगाकर एक एंबैसी से दूसरी के चक्कर लगाते रहे- किसके लिए? हमारे और आपके लिए। विश्व युद्ध के उस माहौल में देशों के बीच पल-पल बदलते देशों के बीच के रश्ते, इसके बीच क्यों वो हर देश में जाकर भारत के लिए समर्थन मांग रहे थे? ताकि भारत आजाद हो सके, हम और आप आजाद भारत में सांस ले सकें। हिंदुस्तान का एक-एक व्यक्ति नेताजी सुभाष बाबू का ऋणी है। 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों के शरीर में बहती रक्त की एक-एक बूंद नेताजी सुभाष की ऋणी है। ये ऋण हम कैसे चुकाएंगे? ये ऋण क्या हम कभी चुका भी पाएंगे? साथियों, जब नेताजी सुभाष यहां कोलकाता में अपने अड़तीस बटा दो, एल्गिन रोड के घर में कैद थे, जब उन्होंने भारत से निकलने का इरादा कर लिया था, तो उन्होंने अपने भतीजे शिशिर को बुलाकर कहा था- अमार एकटा काज कोरते पारबे? अमार एकटा काज कोरते पारबे? क्या मेरा एक काम कर सकते हो? इसके बाद शिशिर जी ने वो किया, जो भारत की आजादी की सबसे बड़ी वजहों में से एक बना। नेताजी ये देख रहे थे कि विश्व-युद्ध के माहौल में अंग्रेजी हुकूमत को अगर बाहर से चोट पहुंचाई जाए, तो उसे दर्द सबसे ज्यादा होगा। वो भविष्य देख रहे थे कि जैसे-जैसे विश्व युद्ध बढ़ेगा, वैसे-वैसे अग्रेजों की ताकत कम पड़ती जाएगी, भारत पर उनकी पकड़ कम पड़ती जाएगी। ये था उनका विजन, इतनी दूर देख रहे थे वो। मैं कहीं पढ़ रहा था कि इसी समय उन्होंने अपनी भतीजी इला को दक्षिणेश्वर मंदिर भी भेजा था कि मां का आशीर्वाद ले आओ। वो देश से तुरंत बाहर निकलना चाहते थे, देश के बाहर जो भारत समर्थक शक्तियां हैं उन्हें एकजुट करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने युवा शिशिर से कहा था- अमार एकटा काज कोरते पारबे? क्या मेरा एक काम कर सकते हो? साथियों, आज हर भारतीय अपने दिल पर हाथ रखे, नेताजी सुभाष को महसूस करे, तो उसे फिर से ये सवाल सुनाई देगा- अमार एकटा काज कोरते पारबे? क्या मेरा एक काम कर सकते हो? ये काम, ये काज, ये लक्ष्य आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने का है। देश का जन-जन, देश का हर क्षेत्र, देश का हर व्यक्ति इससे जुड़ा है। नेताजी ने कहा था- पुरुष, ओर्थो एवं उपोकरण निजेराई बिजोय बा साधिनता आंते पारे ना. आमादेर अबोशोई सेई उद्देश्यो शोकति थाकते होबे जा आमादेर साहोसिक काज एवंम बीरतपुरनो शोसने उदबुधो कोरबे. यानि, हमारे पास वो उद्देश्य और शक्ति होनी चाहिए, जो हमें साहस और वीरतापूर्ण तरीके से शासन करने के लिए प्रेरित करे। आज हमारे पास उद्देश्य भी है, शक्ति भी है। आत्मनिर्भर भारत का हमारा लक्ष्य हमारी आत्मशक्ति, हमारे आत्मसंकल्प से पूरा होगा। नेता जी ने कहा था- “आज आमादेर केबोल एकटी इच्छा थाका उचित – भारोते ईच्छुक जाते, भारोते बांचते पारे। यानि, आज हमारी एक ही इच्छा होनी चाहिए कि हमारा भारत बच पाए, भारत आगे बढ़े। हमारा भी एक ही लक्ष्य है। अपना खून-पसीना बहाकर देश के लिए जीएं, अपने परिश्रम से, अपने innovations से देश को आत्मनिर्भर बनाएं। नेताजी कहते थे- “निजेर प्रोती शात होले सारे बिस्सेर प्रोती केउ असोत होते पारबे ना’ अर्थात, अगर आप खुद के लिए सच्चे हैं, तो आप दुनिया के लिए गलत नहीं हो सकते। हमें दुनिया के लिए बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट बनाने होंगे, कुछ भी कमतर नहीं, Zero Defect- Zero Effect वाले प्रॉडक्ट। नेताजी ने हमें कहा था- “स्वाधीन भारोतेर स्वोप्ने कोनो दिन आस्था हारियो ना। बिस्से एमुन कोनो शोक्ति नेई जे भारोत के पराधीनांतार शृंखलाय बेधे राखते समोर्थों होबे” यानी, आज़ाद भारत के सपने में कभी भरोसा मत खोओ। दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है जो भारत को बांधकर के रख सके। वाकई, दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है जो 130 करोड़ देशवासियों को, अपने भारत को आत्मनिर्भर भारत बनाने से रोक सके। साथियों, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, गरीबी को, अशिक्षा को, बीमारी को, देश की सबसे बड़ी समस्याओं में गिनते थे। वो कहते थे- ‘आमादेर शाब्छे बोरो जातियो समस्या होलो, दारिद्रो अशिकखा, रोग, बैज्ञानिक उत्पादोन। जे समस्यार समाधान होबे, केबल मात्रो सामाजिक भाबना-चिन्ता दारा” अर्थात, हमारी सबसे बड़ी समस्या गरीबी, अशिक्षा, बीमारी और वैज्ञानिक उत्पादन की कमी है। इन समस्याओं के समाधान के लिए समाज को मिलकर जुटना होगा, मिलकर प्���यास करना होगा। मुझे संतोष है कि आज देश पीड़ित, शोषित वंचित को, अपने किसान को, देश की महिलाओं को सशक्त करने के लिए दिन-रात एक कर रहा है। आज हर एक गरीब को मुफ्त इलाज की सुविधा के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं। देश के किसानों को बीज से बाजार तक आधुनिक सुविधाएं दी जा रही हैं। खेती पर होने वाला उनका खर्च कम करने के प्रयास किए जा रहा है। हर एक युवा को आधुनिक और गुणवत्ता-पूर्ण शिक्षा मिले, इसके लिए देश के education infrastructure को आधुनिक बनाया जा रहा है। बड़ी संख्या में देश भर में एम्स, IITs और IIMs जैसे बड़े संस्थान खोले गए हैं। आज देश, 21वीं सदी की जरूरतों के हिसाब से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी लागू कर रहा है। साथियों, मैं कई बार सोचता हूँ कि आज देश में जो बदलाव हो रहे हैं, जो नया भारत आकार ले रहा है, उसे देख नेताजी को कितनी संतुष्टि मिलती। उन्हें कैसा लगता, जब वो दुनिया की सबसे आधुनिक technologies में अपने देश को आत्मनिर्भर बनते देखते? उन्हें कैसा लगता, जब वो पूरी दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों में, शिक्षा में, मेडिकल सैक्टर में भारतीयों का डंका बजते देखते? आज राफेल जैसे आधुनिक विमान भी भारत की सेना के पास हैं, और तेजस जैसे अत्याधुनिक विमान भारत खुद भी बना रहा है। जब वो देखते कि आज उनके देश की सेना इतनी ताकतवर है, उसे वैसे ही आधुनिक हथियार मिल रहे हैं, जो वो चाहते थे, तो उन्हें कैसा लगता? आज अगर नेताजी ये देखते कि उनका भारत इतनी बड़ी महामारी से इतनी ताकत से लड़ा है, आज उनका भारत vaccine जैसे आधुनिक वैज्ञानिक समाधान खुद तैयार कर रहा है तो वो क्या सोचते? जब वो देखते कि भारत वैक्सीन देकर दुनिया के दूसरे देशों की मदद भी कर रहा है, तो उन्हें कितना गर्व होता। नेताजी जिस भी स्वरूप में हमें देख रहे हैं, हमें आशीर्वाद दे रहे हैं, अपना स्नेह दे रहे हैं। जिस सशक्त भारत की उन्होंने कल्पना की थी, आज LAC से लेकर के LOC तक, भारत का यही अवतार दुनिया देख रही है। जहां कहीं से भी भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश की गई, भारत आज मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। साथियों, नेताजी के बारे में बोलने के लिए इतना कुछ है कि बात करते-करते रातों की रातों बीत जाए। नेताजी जैसे महान व्यक्तित्वों के जीवन से हम सबको, और खासकर युवाओं को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। लेकिन एक और बात जो मुझे बहुत प्रभावित करती है, वो है अपने लक्ष्य के लिए अनवरत प्रयास। विश्व युद्ध के समय पर जब साथी देश पराजय का सामना कर चुके थे, सरेंडर कर रहे थे, तब नेताजी ने अपने सहयोगियों को जो बात कही थी, उसका भाव यही था कि- दूसरे देशों ने सरेंडर किया होगा, हमने नहीं। अपने संकल्पों को सिद्धि तक ले जाने की उनकी क्षमता अद्वितीय थी। वो अपने साथ भगवत गीता रखते थे, उनसे प्रेरणा पाते थे। अगर वो किसी काम के लिए एक बार आश्वस्त हो जाते थे, तो उसे पूरा करने के लिए किसी भी सीमा तक प्रयास करते थे। उन्होंने हमें ये बात सिखाई है कि, अगर कोई विचार बहुत सरल नहीं है, साधारण नहीं है, अगर इसमें कठिनाइयाँ भी हैं, तो भी कुछ नया करने से डरना नहीं चाहिए। अगर ��प किसी चीज में भरोसा करते हैं, तो आपको उसे प्रारंभ करने का साहस दिखाना ही चाहिए। एक बार को ये लग सकता है कि आप धारा के विपरीत बह रहे हैं, लेकिन अगर आपका लक्ष्य पवित्र है तो इसमें भी हिचकना नहीं चाहिए। उन्होंने ये करके दिखाया कि आप अगर अपने दूरगामी लक्ष्यों के लिए समर्पित हैं, तो सफलता आपको मिलनी ही मिलनी है। साथियों, नेताजी सुभाष, आत्मनिर्भर भारत के सपने के साथ ही सोनार बांग्ला की भी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। जो भूमिका नेताजी ने देश की आज़ादी में निभाई थी, आज वही भूमिका पश्चिम बंगाल को आत्मनिर्भर भारत अभियान में निभानी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान का नेतृत्व आत्मनिर्भर बंगाल और सोनार बांग्ला को भी करना है। बंगाल आगे आए, अपने गौरव को और बढ़ा��, देश के गौरव को और बढ़ाए। नेताजी की तरह ही, हमें भी अपने संकल्पों की प्राप्ति तक अब रुकना नहीं है। आप सभी अपने प्रयासों में, संकल्पों में सफल हों, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आज के इस पवित्र दिवस पर, इस पवित्र धरती पर आकर के, आप सबके आशीर्वाद लेकर के नेताजी के सपनों को पूरा करने का हम संकल्प करके आगे बढ़े, इसी एक भावना के साथ मैं आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ! जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द! बहुत-बहुत धन्यवाद!
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आइए, हम अपने नए साल के संकल्प के लिए 'मुखर' बनाएं: मन की बात के दौरान पीएम मोदी.
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। आज 27 दिसंबर है। ठीक चार दिन बाद, २०२१ की शुरुआत होगी। एक तरह से, आज की मन की बात २०२० की मन की बात है। अगली मन की बात २०२१ में शुरू होगी। दोस्तों, आपके द्वारा लिखे गए कई पत्र सामने हैं। मेरा। आपके द्वारा Mygov पर भेजे गए सुझाव भी हैं। कई लोगों ने फोन पर खुद को व्यक्त किया है। अधिकांश संदेशों में वर्ष 2021 के लिए गए प्रस्तावों और प्रस्तावों के अनुभव शामिल हैं। कोल्हापुर की अंजलि ने लिखा है कि नए साल पर हम दूसरों को शुभकामनाएं और शुभकामनाएं देते हैं ... आइए हम इस बार कुछ उपन्यास करें! हम अपने देश का अभिवादन क्यों नहीं करते; देश को भी शुभकामनाएँ भेजें! हो सकता है कि हमारा देश 2021 में नई ऊंचाइयों को छुए ... भारत में विश्व में भारत की छवि और मजबूत हो ... इससे बड़ी कामना और क्या हो सकती है!दोस्तों, मुंबई के अभिषेक ने NAMO App पर एक संदेश पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा है कि 2020 तक जो कुछ भी हमारे सामने आया, उसने हमें सिखाया कि वह अकल्पनीय था। उन्होंने कोरोना के असंख्य पहलुओं पर लिखा है। इन पत्रों में, इन संदेशों में, एक सामान्य विशेष कारक जो मेरे सामने आता है वह कुछ ऐसा है जिसे मैं आपके साथ साझा करना चाहूंगा। अधिकांश पत्रों में लोगों ने देश की क्षमताओं और देशवासियों की सामूहिक शक्ति की प्रशंसा की है। जब जनता कर्फ्यू जैसा एक उपन्यास प्रयोग पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा बन गया, जब देश ने हमारे कोरोना योद्धाओं को ताली-थली, तालियों और प्लेटों की गूंजती झंकार के साथ विदाई दी .. लोगों ने उस की याद में भी भेजा है।मित��रों, देश के आम लोगों में सबसे आम लोगों ने इस परिवर्तन को महसूस किया है। मैंने देश में आशा की एक असाधारण लहर देखी है। कई चुनौतियां आईं ... कई संकट। कोरोना के कारण, दुनिया को आपूर्ति श्रृंखलाओं के मामले में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा ... लेकिन हमने हर संकट के साथ एक नया सबक सीखा। देश को नई क्षमताओं से नवाजा गया। इसे शब्दों में बयां करना ... इस क्षमता को "आत्मनिर्भरता" कहा जाता है - आत्मनिर्भरता।दोस्तों, दिल्ली के अभिनव बनर्जी ने जो अनुभव मुझे लिखा है, वह भी बहुत दिलचस्प है। अभिनव जी परिवार में बच्चों के लिए कुछ खिलौने और उपहार खरीदना चाहते थे… .जब वे दिल्ली के झंडेवालान बाजार गए थे।आप में से कई लोग जानते होंगे कि दिल्ली का यह बाजार साइकिल और खिलौनों के लिए जाना जाता है। पहले भी महंगे खिलौनों का मतलब होता था आयातित चीजें; सस्ते खिलौने भी कहीं और से आएंगे। लेकिन अभिनव जी ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि कई दुकानदार ग्राहकों को खिलौने बेच रहे हैं, उन्होंने गुणवत्ता पर जोर देते हुए कहा कि वे बेहतर खिलौने हैं क्योंकि वे मेड इन इंडिया हैं। ग्राहक भी भारत के बने खिलौनों की मांग कर रहे हैं। वास्तव में, यह है- मानसिकता में एक बड़ा परिवर्तन ... यह उसी का जीवित प्रमाण है। हमारे देशवासियों के दिमाग में एक बहुत बड़ा बदलाव शुरू हो गया है ... वह भी एक साल के भीतर। इस बदलाव को नापना आसान नहीं है। यहां तक कि अर्थशास्त्री भी अपने मापदंडों पर इसका आकलन नहीं कर पाएंगे।दोस्तों, विशाखापट्टनम के वेंकट मुरली प्रसाद ने मुझे जो भी लिखा है, उसमें पूरी तरह से अलग तरह का विचार है। वेंकट जी ने लिखा है कि वह 2021 के लिए मेरे एबीसी के लिए अटैचमेंट कर रहे हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उनका एबीसी से क्या मतलब है। तब मैंने देखा कि वेंकट जी ने पत्र के साथ एक चार्ट संलग्न किया था। मैंने चार्ट पर नज़र डाली और महसूस किया कि वह एबीसी… अत्निम्भर भारत चार्ट से क्या मतलब है। यह बहुत दिलचस्प है। वेंकट जी ने उन सभी वस्तुओं की एक सूची तैयार की है, जिनका वे दैनिक आधार पर उपयोग करते हैं। इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, स्टेशनरी, सेल्फ केयर आइटम के अलावा कई अन्य चीजें शामिल हैं। वेंकट जी ने कहा है कि जाने या अनजाने में हम उन विदेशी उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं जिनके विकल्प भारत में आसानी से उपलब्ध हैं। उसने अब कसम खाई है कि वह केवल उस उत्पाद का उपयोग करेगा जो हमारे देशवासियों के शौचालय और पसीने के निशान को सहन करता है।दोस्तों, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने एक ऐसी चीज का भी जिक्र किया है जो मुझे काफी दिलचस्प लगी। उन्होंने लिखा है कि जब हम एक आत्मनिर्भर भारत का समर्थन कर रहे हैं, तो हमारे निर्माताओं के लिए एक स्पष्ट संदेश होना चाहिए कि वे उत्पादों की गुणवत्ता से समझौता न करें। वह जो कहता है वह सही है। यह 'शून्य प्रभाव, शून्य दोष' के लोकाचार के साथ काम करने का उपयुक्त क्षण है। मैं देश के निर्माताओं और उद्योग के नेताओं से आग्रह करता हूं ... देश के लोगों ने एक दृढ़ कदम उठाया है ... एक साहसिक कदम आगे बढ़ा रहे हैं ... स्थानीय लोगों के लिए मुखर प्रत्येक घर में पुनर्जन्म ले रहा है ... और ऐसे परिदृश्य में, यह सुनिश्चित करने का समय है कि हमारे उत्पाद वैश्विक मानकों को पूरा करते हैं। जो भी वैश्विक श्रेष्ठ है; हमें इसे भारत में बनाना चाहिए और इसे साबित करना चाहिए। उसके लिए हमारे उद्यमी मित्रों को आगे आना होगा। स्टार्टअप्स को भी आगे आना होगा। एक बार फिर, मैं वेंकट जी को उ���के शानदार प्रयासों के लिए बधाई देता हूं।दोस्तों, हमें इस भावना को संजोना है ... इसे संरक्षित रखें और साथ ही इसका पोषण भी करते रहें। मैंने यह पहले भी कहा है ... मैं एक बार फिर देशवासियों से आग्रह करता हूं ... एक सूची तैयार करें। दिन भर में हम जो भी वस्तुएं इस्तेमाल करते हैं… .उनका उपयोग करें… .विदेश में निर्मित चीजों के बारे में सोचें जो हमारे जीवन में जाने-अनजाने में एक तरह से हमें नीचे गिरा देती हैं। आइए जानें भारत में बने उनके विकल्प। और तय करें कि हम भारत के लोगों की मेहनत और पसीने से बने उत्पादों का उपयोग करेंगे। आप हर साल नए साल के संकल्प करते हैं ... इस बार देश की खातिर एक संकल्प करना होगा।मेरे प्यारे देशवासियों, हमारी सहस्राब्दी पुरानी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं को अत्याचारियों और अत्याचारियों के क्रूर कुकृत्यों से बचाने के लिए कई सर्वोच्च बलिदान किए गए …… .यह उन्हें याद करने का दिन है। इस दिन गुरु गोविंद के पुत्र हैं। सिंह, साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह जीवित थे। अत्याचारी साहिबज़ादे को अपना विश्वास त्यागना चाहते थे; महान गुरु परंपरा की शिक्षाओं को त्यागें। लेकिन, हमारे साहिबज़ादे ने उस कोमल उम्र में भी अद्भुत साहस और दृढ़ संकल्प दिखाया। अपरिपक्वता के दौरान, जैसे-जैसे पत्थरों का ढेर शुरू हुआ, धीरे-धीरे दीवार की ऊंचाई बढ़ाते गए। मौत चेहरे पर घूर रही है… .. बावजूद कि, वे एक सा भी हिलता नहीं था। इस दिन ही गुरु गोविंद सिंह जी की माता-माता गुजरी ने शहादत प्राप्त की थी। लगभग एक सप्ताह पहले, यह श्री गुरु तेग बहादुर जी का भी शहादत दिवस था। यहाँ दिल्ली में, मुझे गुरु तेग बहादुर जी को पुष्प अर्पित करने और गुरु तेग बहादुर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर मिला। इस महीने के दौरान, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से प्रेरित होकर, कई लोग फर्श पर सोते हैं। लोग श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए सर्वोच्च बलिदान को बहुत श्रद्धा के साथ याद करते हैं। इस शहादत ने पूरी मानवता के लिए सीखने की एक नई किरण के रूप में कार्य किया; देश के लिए। इस शहादत ने हमारी सभ्यता की रक्षा के महान कार्य की ओर काम किया। हम इस शहादत के ऋणी हैं। एक बार फिर मैं श्री गुरु तेग बहादुर जी, माता गुजरी, गुरु गोबिंद सिंह जी और चार साहिबजादों की शहादत को नमन करता हूं। इस तरह के कई बलिदानों ने भारत के वर्तमान ताने-बाने को बरकरार रखा हैमेरे प्यारे देशवासियो, मैं अब आपको कुछ ऐसा बताने जा रहा हूँ जो आपको प्रसन्न कर देगा और साथ ही आपको गर्व का अनुभव कराएगा। भारत में, 2014 और 2018 के बीच, तेंदुओं की संख्या में 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। 2014 में, देश में तेंदुओं की संख्या लगभग 7,900 थी, जबकि 2019 में यह बढ़कर 12,852 हो गई। ये बहुत ही तेंदुए हैं जिनके बारे में जिम कॉर्बेट ने कहा था: “जिन लोगों ने तेंदुए को प्रकृति में भटकते नहीं देखा है, वे इसकी सुंदरता की कल्पना नहीं कर सकते हैं…। उसके रंगों की सुंदरता और उसके आकर्षण के आकर्षण की कल्पना नहीं कर सकते। देश के अधिकांश हिस्सों, विशेषकर मध्य भारत में, तेंदुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। तेंदुओं की अधिकतम आबादी वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र क्रम में सबसे ऊपर हैं। यह साल के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। दुनिया भर में तेंदुए, खतरों का सामना कर रहे हैं; उनके निवास स्थान को पूरी दुनिया में नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसी परिस्थितियों में, भारत में तेंदुओं की आबादी में निरंतर वृद्धि ने पूरी दुनिया को एक रास्ता दिखाया है। आपको यह भी पता होना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में, भारत में शेरों की आबादी बढ़ी है; बाघों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। इसके अलावा, भारत के वन क्षेत्र में वृद्धि हुई है, इसका कारण यह है कि न केवल सरकार बल्कि कई लोग, नागरिक समाज, कई संस्थान भी हमारे पेड़ों और पौधों और जंगली जानवरों के संरक्षण में लगे हुए हैं। वे सभी प्रशंसा के पात्र हैं।दोस्तों, मैंने तमिलनाडु के कोयम्बटूर में एक दिल को छूने वाले प्रयास के बारे में पढ़ा। आपने भी सोशल मीडिया प�� इसके दृश्य देखे होंगे। हमने इंसानों के लिए व्हीलचेयर देखी है, लेकिन कोयम्बटूर में बेटी गायत्री ने अपने पिता के साथ मिलकर पीड़ित कुत्ते के लिए व्हीलचेयर बनाई। यह संवेदनशीलता प्रेरणादायक है और यह तभी हो सकता है जब कोई व्यक्ति सभी जीवन रूपों के प्रति दया और करुणा से भरा हो। ठंड की ठंड में दिल्ली एनसीआर और देश के अन्य शहरों में, कई लोग आश्रयहीन जानवरों की देखभाल के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। वे उन जानवरों के लिए भोजन, पानी, स्वेटर और यहां तक कि बिस्तर की व्यवस्था करते हैं। कुछ लोग हर दिन ऐसे सैकड़ों जानवरों के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं। ऐसे प्रयासों की प्रशंसा की जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी में कई नेक प्रयास किए जा रहे हैं। वहां, जेल के कैदी गायों को ठंड से बचाने के लिए पुराने और फटे कंबल से कवर बना रहे हैं। कौशाम्बी के अलावा, इन कंबलों को दूसरे जिलों की जेलों से इकट्ठा किया जाता है और फिर उन्हें सिलकर गौशालाओं, गौशालाओं में भेज दिया जाता है। कौशाम्बी के कैदी हर हफ्ते कई कवर सिल रहे हैं। आइए, हम दूसरों की सेवा की भावना के साथ देखभाल के ऐसे कार्यों को प्रोत्साहित करें। वास्तव में, यह एक महान कार्य है जो समाज की संवेदनशीलता को मजबूत करता है।मेरे प्यारे देशवासियो, अब जो पत्र मेरे सामने है, उसमें दो बड़ी तस्वीरें हैं। ये एक मंदिर की तस्वीरें हैं और 'पहले' और 'बाद' को दर्शाती हैं। इन तस्वीरों के साथ जो पत्र है वह युवाओं की एक टीम के बारे में बात करता है जो खुद को युवा ब्रिगेड कहता है। वास्तव में, इस यूथ ब्रिगेड ने कर्नाटक में श्रीरंगपटना में वीरभद्र स्वामी नाम के एक प्राचीन शिव मंदिर को बदल दिया है। मंदिर में चारों ओर बड़े पैमाने पर मातम और झाड़ियाँ थीं ... यहाँ तक कि यात्रियों को वहाँ एक मंदिर के अस्तित्व की पहचान नहीं हो सकती थी। एक दिन, कुछ पर्यटकों ने सोशल मीडिया पर इस भूल मंदिर का एक वीडियो पोस्ट किया। जब युवा ब्रिगेड ने सोशल मीडिया पर इस वीडियो को देखा तो वे इसे सहन नहीं कर सके और इस टीम ने इसे एक साथ रेनोवेट करने का फैसला किया। उन्होंने मंदिर के परिसर में उगी झाड़ियों, घास और पौधों को हटा दिया। उन्होंने जहां भी आवश्यक हो मरम्मत और निर्माण कार्य किया। उनके अच्छे काम को देखकर, स्थानीय लोगों ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया। कुछ ने सीमेंट की पेशकश की; दूसरों ने पेंट की पेशकश की ... लोग ऐसे कई अन्य योगदानों के साथ आए। ये सभी युवक अलग-अलग पेशों के हैं। इसलिए, उन्होंने सप्ताहांत के दौरान समय निकाला और मंदिर के लिए काम किया। उन्होंने दरवाजे लगाने के अलावा मंदिर के लिए बिजली कनेक्शन की भी व्यवस्था की, जिससे मंदिर की पुरानी भव्यता बहाल हुई। जुनून और दृढ़ प्रतिबद्धता दो साधन हैं जिनके माध्यम से लोग हर लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। जब मैं भारत के युवाओं को देखता हूं, तो मुझे खुशी होती है और आश्वासन मिलता है। प्रसन्न और आश्वस्त क्योंकि मेरे देश के युवाओं में ’कैन डू’ दृष्टिकोण है और उनमें Do विल डू ’की भावना है। उनके लिए कोई चुनौती बहुत बड़ी नहीं है। उनके लिए पहुंच से बाहर कुछ भी नहीं है। मैंने तमिलनाडु के एक शिक्षक के बारे में पढ़ा। उसका नाम हेमलता एन.के. है, और वह विल्लुपुरम के एक स्कूल में दुनिया की सबसे पुरानी भाषा तमिल सिखाती है। यहां तक कि कोविद 19 महामारी भी अपने शिक्ष�� कार्य में बाधा नहीं बना सकी। हाँ! चुनौतियां निश्चित रूप से थीं, लेकिन उसने एक अभिनव तरीका खोजा। उसने पाठ्यक्रम के सभी 53 अध्यायों को रिकॉर्ड किया, एनिमेटेड वीडियो बनाए, उन्हें एक पेन ड्राइव में डाला और उसे अपने छात्रों के बीच वितरित किया। उसके छात्रों को इससे बहुत मदद मिली; वे अध्यायों को नेत्रहीन समझते थे। इसके साथ ही, वह अपने छात्रों के साथ टेलीफोन पर बातचीत करती रही। इस प्रकार, छात्रों के लिए अध्ययन काफी रोचक हो गया। इस कोरोना समय के दौरान पूरे देश में, शिक्षकों ने जिन नवीन तरीकों को अपनाया है, वे पाठ्यक्रम सामग्री जो उन्होंने रचनात्मक रूप से तैयार की हैं, वे ऑनलाइन अध्ययन के इस अवधि में अमूल्य हैं। मैं सभी शिक्षकों से निवेदन करता हूं कि वे इन पाठ्यक्रम सामग्रियों को शिक्षा मंत्रालय के दीक्षा पोर्टल पर अवश्य अपलोड करें। इससे उन छात्रों को मदद मिलेगी जो देश के दूर-दराज के इलाकों में रह रहे हैं, बहुत कुछ।दोस्तों अब हम बात करते हैं झारखंड के कोरवा जनजाति के हीरामन जी की। हिरामन जी गढ़वा जिले के सिन्जो गाँव में रहते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य हो��ा कि कोरवा जनजाति की आबादी महज 6,000 है, जो शहरों से दूर पहाड़ियों और जंगलों में रहती है। हीरामन जी ने अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने का काम किया है। 12 साल के एक अनथक शौचालय के बाद उन्होंने कोरवा भाषा का एक शब्दकोष बनाया है जो विलुप्त हो रहा है। इस शब्दकोष में, उन्होंने कई कोरवा शब्दों के अर्थों के साथ लिखा है जो घर में इस्तेमाल होने वाले शब्दों से लेकर दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले शब्दों तक हैं। हिरामन जी ने कोरवा समुदाय के लिए जो किया है वह देश के लिए एक उदाहरण है।मेरे प्यारे देशवासियों, यह कहा जाता है कि अकबर के दरबार में एक प्रमुख दरबारी था जिसका नाम अबुलफज़ल था। कश्मीर की यात्रा के बाद, उन्होंने एक बार टिप्पणी की थी कि इस स्थान पर एक ऐसा सुंदर दृश्य था जो सबसे चिड़चिड़े और बुरे स्वभाव के लोगों के मूड को बढ़ा सकता है, जिससे उन्हें खुशी मिलती है। दरअसल, वह कश्मीर के भगवा मैदानों का जिक्र कर रहे थे। केसर सदियों से कश्मीर से जुड़ा है। कश्मीरी केसर मुख्य रूप से पुलवामा, बडगाम और किश्तवाड़ जैसी जगहों पर उगाया जाता है। इस साल मई में, कश्मीरी केसर को भौगोलिक संकेत टैग या जीआई टैग दिया गया था। इसके जरिए हम कश्मीरी केसर को ग्लोबली पॉपुलर ब्रांड बनाना चाहते हैं। कश्मीरी केसर विश्व स्तर पर एक मसाले के रूप में प्रसिद्ध है जिसमें कई औषधीय गुण हैं। इसकी एक मजबूत सुगंध होती है, इसका रंग गहरा गहरा होता है और इसके धागे लंबे और मोटे होते हैं जो इसके औषधीय महत्व को बढ़ाते हैं।यह जम्मू और कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। और अगर आप गुणवत्ता के बारे में बात कर रहे हैं, तो कश्मीर का केसर अद्वितीय है और अन्य देशों के केसर से बिल्कुल अलग है। कश्मीर से केसर को अब जीआई टैग मान्यता के साथ एक अलग पहचान मिली है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि जीआई टैग प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद, कश्मीरी केसर दुबई में एक सुपरमार्केट में लॉन्च किया गया था। अब इसके निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। यह एक आत्मीयनिभर भारत के निर्माण के हमारे प्रयासों को और मजबूत करेगा। केसर उगाने वाले किसानों को इससे विशेष रूप से लाभ होगा। अब पुलवामा के त्राल के शेर इलाके के निवासी अब्दुल मजीदवानी के मामले पर एक नजर डालते हैं। वह ई-ट्रेडिंग के माध्यम से पंपोर में ट्रेडिंग सेंटर में राष्ट्रीय केसर मिशन की मदद से अपने जीआई टैगेड केसर की बिक्री कर रहा है। उनके जैसे कई लोग कश्मीर में इस गतिविधि में शामिल हैं। अगली बार जब आप केसर खरीदने का फैसला करेंगे, तो कश्मीर का केसर खरीदने की सोचेंगे! केवल कश्मीरी लोगों की गर्माहट ही ऐसी है कि यह केसर के लिए एक विशिष्ट, विशिष्ट स्वाद प्रदान करता है।मेरे प्यारे देशवासियो, अभी दो दिन पहले गीता जयंती थी। गीता हमें अपने जीवन के हर संदर्भ में प्रेरित करती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गीता इतना अद्भुत ग्रन्थ क्यों है? ऐसा इसलिए क्योंकि यह स्वयं भगवान कृष्ण की आवाज है। लेकिन गीता की विशिष्टता यह भी है कि यह ज्ञान क�� खोज से शुरू होती है ... एक प्रश्न से शुरू होती है। अर्जुन ने भगवान से एक प्रश्न किया, पूछताछ की और उसके बाद ही दुनिया को गीता का ज्ञान प्राप्त हुआ। गीता की तरह, हमारी संस्कृति में सभी ज्ञान जिज्ञासा से शुरू होते हैं। वेदांत का सबसे पहला मंत्र है - 'अथातो ब्रह्म जिज्ञासा', अर्थात् आओ, हम ब्रह्म के बारे में पूछताछ करें। इसलिए हम परम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से भी पूछताछ करने की बात करते हैं! ऐसी है जिज्ञासा की शक्ति। जिज्ञासा से आप कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करते हैं। बचपन में, हम केवल इसलिए सीखते हैं क्योंकि हम जिज्ञासु हैं। जब तक हममें जिज्ञासा है तब तक हम जीवित हैं। जब तक जिज्ञासा है, तब तक कुछ सीखने की प्रक्रिया जारी रहती है। इसमें कोई उम्र, कोई भी परिस्थिति, कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे तमिलनाडु के एक बुजुर्ग व्यक्ति श्री टी। श्रीनिवासाचार्य स्वामी जी के बारे में, जिज्ञासुता की ऐसी ऊर्जा का एक उदाहरण पता चला! श्री टी। श्रीनिवासाचार्य स्वामी जी नब्बे वर्ष के हैं। इस उम्र में भी, वह कंप्यूटर पर अपनी पुस्तक लिख रहा है; वह भी, स्वयं टाइपिंग। आप सोच रहे होंगे कि किताब लिखना ठीक है ...? लेकिन श्रीनिवासचार्यजी के समय में, कंप्यूटर नहीं थे। तो, उसने कंप्यूटर कब सीखा? यह सही है कि उनके कॉलेज के दिनों में कोई कंप्यूटर नहीं था। लेकिन, उनके मन और आत्मविश्वास में अब भी उतनी ही जिज्ञासा है जितनी उनकी युवावस्था में थी। वास्तव में, श्रीनिवासाचार्य स्वामीजी संस्कृत और तमिल के विद्वान हैं। उन्होंने अब तक लगभग 16 आध्यात्मिक पुस्तकें लिखी हैं। हालाँकि, कंप्यूटर के आगमन के साथ, जब उन्होंने महसूस किया कि किताबें लिखने और छापने का तरीका बदल गया है, तो उन्होंने 86 साल की उम्र में कंप्यूटर और आवश्यक सॉफ्टवेयर सीखा ... हाँ, अस्सी की उम्र में। अब वह अपनी किताब पूरी कर रहे हैं।दोस्तों, श्री टी। श्रीनिवासाचार्य स्वामीजी का जीवन इस बात का एक जीवंत उदाहरण है कि जीवन ऊर्जा से भरा रहता है, जब तक जीवन में जिज्ञासा, सीखने की इच्छा, मृत्यु नहीं होती। इसलिए, हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि हम पिछड़ गए; हमसे छूट गया। "केवल अगर ... हम भी यह सीखा था!" हमें यह भी नहीं सोचना चाहिए कि हम सीख नहीं सकते, या आगे नहीं बढ़ सकते।मेरे प्यारे देशवासियो, हम सिर्फ जिज्ञासा से बाहर कुछ नया सीखने और करने की बात कर रहे थे। हम नए साल में नए प्रस्तावों का भी जिक्र कर रहे थे। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो निरंतर कुछ नया करते रहते हैं, नए संकल्पों को पूरा करते रहते हैं। आपने भी जीवन में महसूस किया होगा कि जब हम समाज के लिए कुछ करते हैं, तो समाज खुद हमें बहुत कुछ करने की ऊर्जा देता है। उल्लेखनीय कार्य सरल प्रेरणाओं से सम्पन्न हो सकते हैं। ऐसा युवा श्रीमन प्रदीप सांगवान है! गुरुग्राम के प्रदीपसंगवान 2016 से H हीलिंग हिमालय ’नामक एक अभियान चला रहे हैं। वह अपनी टीम और स्वयंसेवकों के साथ हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में जाते हैं जहाँ वे पर्यटकों द्वारा फेंके गए प्लास्टिक कचरे को साफ करते हैं। अब तक, प्रदीप जी ने हिमालय के विभिन्न पर्यटन स्थानों से टन प्लास्टिक को साफ किया है। इसी तरह, कर्नाटक के एक युवा दंपति हैं, अनुदीप और मिनुशा। अनुदीप और मिनुशा की शादी पिछले महीने नवंबर में हुई थी। शादी के बाद बहुत सारे युवा यात्रा के लिए जाते हैं, लेकिन इन दोनों ने कुछ अलग किया। दोनों ने हमेशा देखा कि लोग यात्रा पर निकलते हैं, लेकिन वे जहां भी जाते हैं, बहुत सारा कचरा छोड़ जाते हैं और पीछे-पीछे कूड़ा डालते हैं। इसी तरह की स्थिति कर्नाटक के सोमेश्वर समुद्र तट पर भी थी। अनुदीप और मिनुशा ने फैसला किया कि वे उस कचरे को साफ करेंगे जो लोगों ने सोमेश्वर समुद्र तट पर छोड़ दिया है। यह पहला संकल्प था जो शादी के बाद पति और पत्नी दोनों ने लिया। दोनों ने मिलकर समुद्र तट से कूड़े का ढेर साफ किया। अनुदीप ने सोशल मीडिया पर अपने संकल्प के बारे में भी साझा किया। उनके विशाल विचार से प्रेरित होकर, कई युवा आए और उनके साथ जुड़ गए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन लोगों ने मिलकर सोमेश्वर समुद्र तट से 800 किलो से अधिक कचरे को साफ किया है।दोस्तों, इन प्रयासों के बीच, हमें यह भी सोचना होगा कि इन समुद्र तटों, इन पहाड़ों पर पहली बार में यह कचरा कैसे जाता है। आखिरकार, यह हमारे बीच में से एक है, जो इस कचरे को वहां छोड़ देता है। हमें प्रदीप और अनुदीप-मिनुशा जैसे सफाई अभियान चलाना चाहिए। लेकिन उससे पहले ही हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि हम कूड़ा-कचरा बिल्कुल नहीं छोड़ेंगे, जिससे शुरुआत हो सके। आखिर स्वच्छ भारत अभियान का भी यह पहला संकल्प है। और हां, मैं आपको कुछ और याद दिलाना चाहता हूं। कोरोना के कारण, इस वर्ष इस पर ज्यादा चर्चा नहीं की जा सकी। हमें अपने देश को एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्त बनाना है। यह भी 2021 के प्रस्तावों में से एक है। निष्कर्ष में, मैं आपको नए साल की शुभकामनाएं देता हूं। खुद भी स्वस्थ रहें, अपने परिवार को भी स्वस्थ रखें। अगले साल, जनवरी में, 'मन की बात' नए विषयों पर स्पर्श करेगी।बहुत धन्यवाद
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