#आप में शामिल हुए कांग्रेसी नेता
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trendingwatch · 2 years ago
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उत्तराखंड में कांग्रेस को बड़ा झटका, तीन वरिष्ठ नेता आप में शामिल
उत्तराखंड में कांग्रेस को बड़ा झटका, तीन वरिष्ठ नेता आप में शामिल
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि उनके प्रवेश से उत्तराखंड में आप को मजबूती मिलेगी। (प्रतिनिधि) देहरादून: उत्तराखंड से कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेताओं ने सोमवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। Uttarakhand Pradesh Congress spokesman Rajendra Prasad Raturi, Pradesh Mahila Congress vice-president Kamlesh Raman and the social media adviser Kuldip…
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newsuniversal-in · 2 years ago
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अग्निपथ योजना के विरोध में कांग्रेसियों ने सत्याग्रह कर ज्ञापन सौंपा
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सिद्धार्थनगर। कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को सत्याग्रह कर महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार को संबोधित एक ज्ञापन उप जिला अधिकारी इटवा को सौंपा। जिसमें अग्निपथ योजना को वापस लिए जाने की मांग की गई है। जानकारी के अनुसार कांग्रेसी नेता अब्दुल सलाम खाँ एडवोकेट की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अग्निपथ योजना वापस लेने के लिए सत्याग्रह किया। तहसील परिसर के बरामदे में बैनर लगाकर हाथ में तख्तियां लेकर बैठे। तख्तियां पर लिखा था “अग्निपथ योजना वापस लो” “ठेकेदारी नहीं युवाओं को नौकरी नौकरी दो” इसके उपरांत कार्यकर्ताओं ने उप जिला अधिकारी इटवा अभिषेक पाठक को एक ज्ञापन सौंपा। दिए गए ज्ञापन में मांग किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में घोषित अग्निपथ योजना सशस्त्र बलों की लंबे समय से चली आ रही परंपरा और लोकाचार को नष्ट करने और उनके मनोबल का अवमूल्यन करने के कारण पूरे देश में व्यापक गुस्सा और विरोध हो रहा है। केंद्र सरकार द्वारा बिना किसी व्यापक परामर्श के इस गलत नीति को जिस तरह से थोपा गया है। उससे बड़ी संख्या में वह तमाम युवा नाराज हैं जो सशस्त्र बलों में शामिल होने का सपना देख रहे थे। आज देशभर के युवा अग्निपथ योजना के विरोध में सड़कों पर उतर कर आंदोलन कर रहे हैं। इस योजना के विरोध में हम कांग्रेस जन इटवा तहसील परिसर में एक दिवसीय सत्याग्रह कर आप से मांग करते हैं कि अपनी संवैधानिक शक्तियों का उपयोग करते हुए सरकार को निर्देशित करें कि वह तत्काल अग्निपथ योजना को वापस ले। इस अवसर पर ब्लॉक अध्यक्ष मैनुद्दीन, ज़िला अल्पसंख्यक उपाध्यक्ष जलाल अहमद, रहमतुल्लाह, बैतुल्लाह, निरहू राम, राम सहाय, जमाल अहमद, राम कृष्ण, नियाज़ अहमद, इमरान, इबरार अहमद, अताउल्लाह आदि उपस्थित रहे। इसे भी पढ़ें- मनोरंजन से भरपूर होगी देहाती फिल्म जुगाड़ी फेरे- विपुल जैन Read the full article
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abhay121996-blog · 4 years ago
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राहुल गांधी की पार्ट टाइम पॉलिटिक्स कांग्रेस पर भारी, अपने ही क्षत्रपों से सीखें 'युवराज' Divya Sandesh
#Divyasandesh
राहुल गांधी की पार्ट टाइम पॉलिटिक्स कांग्रेस पर भारी, अपने ही क्षत्रपों से सीखें 'युवराज'
नई दिल्ली केरल दौरे पर पहुंचे राहुल गांधी सोमवार को एक कॉलेज में छात्राओं को सेल्फ डिफेंस के टिप्स दिए। कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष से सेंट थेरेसा कॉलेज की स्‍टूडेंट्स ने पूछा कि उन्हें आइकीडो आता है, क्या वे उन्हें सेल्फ डिफेंस के कुछ टिप्स दे सकते हैं। इस पर राहुल ने मंच पर लड़कियों को बुलाकर सेल्फ डिफेंस के टिप्स दिए। साथ ही कहा कि कांग्रेस भी इसी तरह मजबूत है। हालांकि चुनावी राज्यों में कांग्रेस की मजबूती दिख नहीं रही। वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल असम में पार्टी के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। असम में कांग्रेस की वापसी के लिए बघेल ने पूरा जोर लगाया है। चुनावी मौसम में इन दो घटनाओं का जिक्र क्यों ?
राहुल गांधी के केरल दौरे के दौरान ही प्रदेश कांग्रेस समिति में उपाध्यक्ष और वरिष्ठ पार्टी नेता केसी रोसाकुट्टी ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। पांच चुनावी राज्यों में राहुल गांधी की भूमिका को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह सवाल दबी जुबान पार्टी के भीतर से भी है। इन सभी राज्यों में बीजेपी की ओर से पूरी ताकत लगाई जा रही है। पार्टी के सभी बड़े नेता चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। वहीं कांग्रेस के ��ीतर देखा जाए तो अलग- अलग राज्यों में वहां के नेता और दूसरे राज्यों के सी��म ने कमान संभाली है। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे है कि राहुल गांधी इन चुनावों को लेकर कितने गंभीर हैं।
राहुल गांधी को लेकर सवाल अब भी वही राहुल गांधी पर आरोप लगते रहे हैं कि वो पार्ट टाइम पॉलिटिक्स करते हैं, हालांकि यह आरोप विपक्ष की ओर से लगाए जाते हैं। इसके पीछे जो तर्क दिए जाते हैं उसमें चुनाव बाद राहुल गांधी का छुट्टियों के लिए कहीं निकल जाना, चुनावी माहौल में देर से एंट्री ये सब शामिल है। हार- जीत अपनी जगह है लेकिन आप जीत के लिए कितना दम लगाते हैं यह काफी मायने रखता है। कार्यकर्ताओं का मनोबल तो अपने नेता को देखकर ही बढ़ा रहता है। चुनावी राज्यों में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को राहुल गांधी की सक्रिय भूमिका का इंतजार है।
पहले चरण की वोटिंग में कुछ दिन बाकी है और कांग्रेस कई राज्यों में सीन से गायब है। पिछले कई मौकों पर देखा गया है कि चुनावी राज्यों में राहुल गांधी की एंट्री देर से हुई। कई बार यह हार- जीत का माहौल बन जाने के बाद हुई। साथ ही यह भी देखा गया है कि चुनाव बाद वो छुट्टी मनाने निकल जाते हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के भीतर ही कई नेता ऐसे भी हैं जो ग्रास रूट पॉलिटिक्स पर फोकस करते रहे हैं। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर, छ्त्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसके सबसे बढ़िया उदाहरण हैं।
ग्रास रूट पॉलिटिक्स के दम पर बनाई एक अलग पहचान पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर, छ्त्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस शासित राज्यों के ये वो सीएम हैं जिन्होंने ग्रास रूट पॉलिटिक्स के दम अपनी एक अलग पहचान बनाई है। कैप्टन अमरिंदर के लिए तो यह खासतौर पर कहा जाता है कि पंजाब में कांग्रेस सत्ता में है तो उसके पीछे बड़ी वजह कैप्टन हैं। इन नेताओं के बारे में कहा जाता है कि ये सभी ग्रास रूट लेवल पर जाकर लगातार पार्टी के लिए काम करते रहते हैं। यही वजह है कि जनता के बीच भी इनकी एक खास इमेज है।
असम में कांग्रेस की वापसी के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पूरा जोर लगाया हुआ है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहते और उससे पहले भूपेश बघेल की जो मेहनत रही उसको लोगों ने देखा। यही वजह रही कि जिस राज्य में कांग्रेस की वापसी को सबसे कम यकीन था वहीं पार्टी ने अच्छी खासी जीत हासिल की। अब उसी अनुभव का पूरा प्रयोग असम के चुनाव में वो कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इन नेताओं के लिए राहुल गांधी रोल मॉडल कैसे हो सकते हैं। हां ये जरूर है कि इन नेताओं से राहुल गांधी बहुत कुछ सीख सकते हैं।
न उठे सवाल तो लगाना होगा फुल टाइम पॉलिटिक्स पर जोर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करते रहते हैं। विपक्षी दल के नेता के रूप में यह बात ठीक भी है लेकिन सिर्फ क्या इससे काम चल जाएगा। पार्टी को मजबूत स्थिति में लाने के लिए क्या कुछ और करने की जरूरत ��हीं है। राहुल गांधी को क्या अपने ही पार्टी के नेताओं से कुछ सीखने की जरूरत नहीं है जिन्होंने ग्रास रूट पॉलिटिक्स पर जोर लगाया। यही वजह है कि उनके राज्यों में उनकी जड़ें अब तक मजबूत हैं।
अगले साल जीवन के 80 वर्ष पूरे करने जा रहे कैप्टन ने एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने की बात की है। कैप्टन ने कहा है कि पंजाब को संकट की स्थिति से निकालने के लिए वह चुनाव मैदान में उतरेंगे। राहुल गांधी पर पार्ट टाइम पॉलिटिक्स के आरोप न लगे और फुल टाइम पॉलिटिक्स करनी है तो उन्हें अपने ही नेताओं से सीखने की क्या जरूरत नहीं।
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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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शिवराज सिंह चौहान ने कौन सा राजनीतिक विष पिया, मंत्रिमंडल विस्तार से एक दिन पहले क्यों कही ऐसी बात?
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भोपाल सरकार बनाने के सौ दिन से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद मध्य प्रदेश में गुरुवार को मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे। इस बात की घोषणा करने के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ऐसी बात कह गए जिसकी राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है। पत्रकारों से बातचीत के दौरान सीएम शिवराज ने खुद की तुलना शिव से की और मंत्रिमंडल विस्तार में आ रही दिक्कतों की तुलना खुद के विष पीने से कर गए।
पत्रकार ने पूछा कि अमृत किसको मिलेगा विष किसको मिलेगा। इसपर सीएम शिवराज ने कहा कि मंथन से अमृत की निकलता है, विष तो शिव पी जाते हैं। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि गुरुवार को मंत्रिमंडल शपथ ले लेगा। अगर पिछले 100 दिनों की मध्य प्रदेश राजनीति को समझना है तो सीएम शिवराज के इस बयान से सारी बातें स्पष्ट हो जा रही हैं।
एक दिन पहले भी शिवराज ने बयां किया था दर्द एक दिन पहले सीएम शिवराज ने ट्वीट कर अपना दर्द बयां किया था। सीएम शिवराज ने ट्वीट में कहा था, ‘आये थे आप हमदर्द बनकर, रह गये केवल राहज़न बनकर। पल-पल राहज़नी की इस कदर आपने, कि आपकी यादें रह गईं दिलों में जख्म बनकर।’ राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह ट्वीट शिवराज सिंह चौहान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए किया है। सीएम कहना चाह रहे हैं कि आप हमदर्द बनकर आए यानी कांग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी में आए। उसके बाद आप मंत्रिमंडल में अपने लोगों की हिस्सेदारी को लेकर इतना तोलमोल कर रहे हैं कि यह जख्म बन चुका है। हालांकि ये सब अटकलें हैं, जब तक सीएम खुलकर कुछ नहीं कहते तब तक कुछ भी कहना ठीक नहीं है।
मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया को खुश करने की चुनौती ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरी है और शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने हैं। ऐसे में स्वभाविक है कि सिंधिया मंत्रिमंडल में अपने समर्थकों के लिए काफी कुछ चाहते होंगे। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर 16 पूर्व विधायक और 6 पूर्व मंत्री बीजेपी में आए हैं। जो छह लोग कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे उन्हें तो शिवराज सरकार में भी ओहदा तो चाहिए ही। इसके अलावा 16 और पूर्व विधायक भी कांग्रेस से बगावत करने के एवज में मंत्री पद की चाहत पाले हुए हैं।
सिंधिया समर्थकों में से तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत कैबिनेट में पहले से शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार बीजेपी ने 6 लोगों के अलावा बिसाहूलाल सिंह, एंदल सिंह कंसाना और हरदीप सिंह डंग को मंत्री पद का आश्वासन दिया था। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया कैंप के ही इमरती देवी, प्रद्युमन सिंह तोमर, प्रभुराम चौधरी और महेंद्र सिंह सिसौदिया का भी मंत्री बनना तय माना जा रहा है।
कांग्रेसी नेता कहते हैं कि सिंधिया को खुश करना इतना आसान काम नहीं है। पूर्व मंत्री सज्जन कुमार ने कहा कि सिंधिया कोई ऐसे वैसे नेता नहीं हैं कि जिन्हें किसी बात के लिए मना लिया जाए। ज्योतिरादित्य सिंधिया को संतुष्ट करना आसान काम नहीं है, यह इस बार न केवल शिवराज सिंह चौहान बल्कि पूरी बीजेपी को पता चल जाएगा।
नरोत्तम मिश्रा चाहते हैं शिवराज की जगह? सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ की सरकार गिराने में अहम रोल निभाने वाले नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। हालांकि दिल्ली हाईकमान ने फिलहाल उनकी इच्छा दबा दी है। उम्मीद की जा रही है कि नरोत्तम मिश्रा को संतुष्ट करने के लिए उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इसके अलावा नरोत्तम मिश्रा भी मंत्रिमंडल में अपने समर्थक विधायकों को जगह दिलाना चाहते हैं।
भोपाल के राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि सिंधिया और नरोत्तम को खुश करने के फेर में शिवराज सिंह चौहान अपनी पसंद के नेता को भी मंत्री पद नहीं दे पा रहे हैं। शायद इसी बात को जाहिर करने के लिए सीएम शिवराज ने पत्रकार से कहा कि समुद्र मंथन से निकला विष तो खुद शिव पीते हैं और अमृत लोगों में बंटता है।
शिवराज के बयान पर कमलनाथ का तंज सीएम शिवराज के विष वाले बयान पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तंज कसा है। कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा है, मंथन इतना लंबा हो गया कि अमृत तो निकला नहीं , सिर्फ़ विष ही विष निकला है। मंथन से निकले विष को तो अब रोज़ ही पीना पढ़ेगा, क्योंकि अब तो कल से रोज़ मंथन करना पढ़ेगा। अमृत के लिये तो अब तरसना ही तरसना पढ़ेगा। इस विष का परिणाम तो अब हर हाल में भोगना पढ़ेगा।’
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electionsinindia · 6 years ago
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पीएम मोदी ने लंदन में ईवीएम पर सवाल खड़ा करने पर कांग्रेस को घेरा देश में लोकसभा चुनाव को कुछ ही समय बचा है जिसके तहत सभी राजनीतिक पार्टियों के दिग्गज नेता चुनाव प्रचार में लग गए हैं। इसी बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने केरल के त्रिशूर जिले में रविवार को एक जनसभा को संबोधित किया। इस सभा में सरकारी योजनाओं का जिक्र करने के बाद पीएम मोदी ने लंदन में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बहाने कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा। पीएम मोदी ने कहा कि सबरीमाला मामले ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इस कम्युनिस्ट सरकार ने हमारी सभ्यता को ताक पर रख दिया। क्या अपको संवैधानिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं पीएम मोदी ने कहा कि सारा विपक्ष फिर चाहे वह कांग्रेस हो या कम्युनिस्ट पार्टी उसे देश की किसी भी संवैधानिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। इन लोगों के लिए सेना, पुलिस, सीबीआई, सीएजी और सारी संस्थाएं गलत हैं। ये लोग सिर्फ खुद को सही मानते हैं। हाल में सारा देश देखकर यह हैरान है कि कैसे लंदन की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत के लोकतांत्रिक सिस्टम पर सवाल उठाए गए और कैसे एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस पत्रकार वार्ता में शामिल हुए। मैं (नरेंद्र मोदी) कांग्रेस से पूछना चाहता हूं, क्या यही आपका हमारे संविधान और संवैधानिक संस्थानों के प्रति सम्मान है और क्या आप राजनीति के लिए इस स्तर तक आ चुके हैं?' पीएम ने कहा कि कांग्रेस को खुद पर उठे हर सवाल पर जवाब देना होगा। विपक्ष के नेता किसानों को गुमराह ना करें पीएम मोदी विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि विपक्ष के नेता दिवालिया हो चुके हैं। जब भी देश की विकास की बात होती है तो इन सभी के पास सिर्फ मोदी विरोध का ही कार्यक्रम होता है। इनके दिन की शुरुआत और अंत दोनों मोदी को गाली देते हुए ही होते हैं। मैं इन नेताओं से कहना चाहता हूं कि आपका जितना मन चाहे मुझे गाली दें, लेकिन किसानों को गुमराह ना करें। आपका जितना मन करें मुझे गाली दें, लेकिन देश के विकास की संभावना बनाने और युवाओं के लिए नए मौके पैदा करने की मेरी कोशिशों में कोई व्यवधान ना डालें।' लोकतंत्र की बात ना करे कांग्रेस पीएम मोदी ने केरल में हुई राजनीतिक ��त्याओं के मुद्दे पर सत्ताधारी केरल सरकार और कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट लोकतंत्र की बात करे यह एक मजाक जैसा लगता है। आप सभी ने देखा है कि कैसे केरल में तमाम राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या कराई गई है और कारण सिर्फ इतना है कि उनकी विचारधारा कम्युनिस्ट सरकार से अलग है। पीएम ने आगे कहा कि अब यही रवैया मध्य प्रदेश में भी देखने को मिल रहा है। कांग्रेस की आलोचना करते हुए पीएम ने कहा कि आज भी कांग्रेस के कुछ नेताओं के दिमाग में इमरजेंसी की दमनकारी विचारधारा जीवित है और इसी कारण तमाम राजनीतिक षडयंत्र रचे जा रहे हैं। केरल सरकार को घेरा सबरीमाला मुद्दे का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि दुर्भाग्य से आज केरल की संस्कृति पर प्रहार किया जा रहा है और यह काम वह पार्टी कर रही है जोकि केरल की सत्ता में बैठी है। सबरीमाला के जिस मुद्दे ने देश का ध्यान आकर्षित किया, उस पर पूरे देश ने देखा कि कैसे केरल सरकार ने यहां की परंपराओं और संस्कृति का अपमान किया। मैं (नरेंद्र मोदी) यह नहीं समझ पाता कि केरल सरकार आखिर क्यों हमारी वर्षों से चली आ रही संस्कृति पर प्रहार करना चाहती है।' पीएम मोदी ने जो भी कहा इसका केरल की जनता पर कितना असर पड़ता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
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vsplusonline · 5 years ago
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DNA ANALYSIS: क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया परिवार के DNA में ही बीजेपी है?
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DNA ANALYSIS: क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया परिवार के DNA में ही बीजेपी है?
आज ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद लोग ये पूछ रहे हैं कि क्या सिंधिया परिवार के DNA में ही बीजेपी है? ऐसा इसलि��� है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजया राजे ने भी अपने करियर की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी लेकिन 1967 में वो भी जन संघ में शामिल हो गईं. 1967 में उनके बेटे माधव राव सिंधिया भी जन संघ में शामिल हो गए और मां बेटे की ये जोड़ी 1971 में इंदिरा गांधी की लहर को रोकने में जुट गई थी. लेकिन आपातकाल के बाद माधव राव सिंधिया जनसंघ से अलग हो गए और उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. लेकिन विजया राजे की बेटी, वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बीजेपी के साथ की और दोनों आज भी बीजेपी में ही हैं.
2018 में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को सीएम नहीं बनने दिया और 1993 में उनके पिता को भी सीएम बनने से रोका गया था. मध्य प्रदेश की राजनीति में कैसे अलग-अलग गुट एक दूसरे का रास्ता रोकते रहे हैं. ये हम आपको आगे बताएंगे लेकिन पहले आप ये सुनिए कि ज्योतिरादित्य की बुआ और बीजेपी नेता यशोधरा राजे ने इस घटना क्रम पर क्या कहा? लेकिन पहले ये जान लीजिए कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के इतने बड़े फैसले की वजह क्या रही. 
असल में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस आने वाले संकट की तरफ आंखें मूंदकर बैठा था और अपने ही नाराज़ नेताओं को लेकर गंभीर नहीं था. ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार पिछले कुछ समय से अपनी नाराज़गी का इजहार कर रहे थे लेकिन पार्टी में उनकी सुनी नहीं गई. इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से ही हो गई थी. चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद ��न्हें मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा. लेकिन चुनाव जीतने के बाद कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया. सूत्रों के मुताबिक, सिंधिया के नाम पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को आपत्ति थी क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि कोई ऐसा युवा नेता बड़े पद पर आए जिसके आगे उनके बेटे राहुल गांधी का कद छोटा लगने लगे.
राहुल गांधी ने चुनाव जीतने के बाद सिंधिया को उप मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया था लेकिन सिंधिया ने इससे इनकार कर दिया. इसकी जगह सिंधिया चाहते थे कि वो अपने किसी करीबी को उप मुख्यमंत्री पद के लिए आगे कर दें लेकिन तब राहुल गांधी ने शर्त रख दी कि फिर कमलनाथ की तरफ से भी एक उप मुख्यमंत्री होगा. पार्टी के कुछ नेताओं का ये भी कहना है इसी वजह से सोनिया गांधी ने 2017 के बाद लोकसभा में उप नेता का पद खाली रखा. जिसमें सिंधिया की दिलचस्पी थी. सिंधिया को नज़र अंदाज करने का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी दे दी गई. जबकि पार्टी जानती थी कि वहां कांग्रेस का कोई चांस नहीं है और हार का सारा ठीकरा सिंधिया पर ही फूटेगा. यानी कांग्रेस ने जान बूझकर सिंधिया को ऐसी जिम्मेदारी दी थी, जिससे उनके राजनीतिक कद में गिरावट आ जाए.
पिछले कुछ दिनों से ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के सामने ये मांग रख रहे थे कि उन्हें मध्य प्रदेश में पार्टी का प्रमुख बना दिया जाए और राज्यसभा की टिकट दी जाए. कांग्रेस उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए तो तैयार थी लेकिन राज्यसभा भेजने के लिए तैयार नहीं थी. माना जा रहा है कि बीजेपी उन्हें राज्यसभा में भेजेगी और केंद्र में मंत्री भी बनाएगी और इन्हीं शर्तों के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ा है. बीजेपी इसे सिंधिया की घर वापसी बता रही है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जनसंघ से की थी. जनसंघ की आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बन गई. दूसरी तरफ कांग्रेस-बीजेपी पर तोड़फोड़ का आरोप लगाकर सिंधिया को गद्दार बता रही. यहां आपके लिए मध्य प्रदेश की राजनीति में फैली गुटबंदी को समझना भी जरूरी है. संक्षेप और आसान शब्दों में आप इसे ऐसे समझिए कि राज्य में बड़े नेताओं के अपने-अपने गुट रहे हैं. किसी ज़माने में अर्जुन सिंह का गुट हावी रहता था. अब दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने-अपने गुट हैं. लेकिन खास बात ये है कि सिंधिया परिवार के खिलाफ बाकी सारे गुट हमेशा एकजुट हो जाते हैं.
1993 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी. मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे माधवराव सिंधिया थे. लेकिन तब अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह का गुट एकजुट हो गया था. दिग्विजय सिंह उस समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष थे. अर्जुन सिंह केंद्र सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री थे. दोनों ने मिलकर कांग्रेस के विधायक दल की बैठक में किसी नेता का नाम फाइनल नहीं होने दिया. मामला दि��्ली तक पहुंचा. वहां माधवराव सिंधिया की जगह दिग्विजय सिंह का नाम फाइनल हो गया. कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवाने में अर्जुन सिंह की बड़ी भूमिका रही. यहीं से माधव राव सिंधिया का असंतोष शुरू हुआ और 1996 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ भी दी थी.
इतिहास ने पच्चीस साल बाद खुद को करीब-करीब ऐसे ही दुहराया. वर्ष 2018 में चुनाव नतीजों के बाद मध्य प्रदेश में फिर एक बार सिंधिया गुट के खिलाफ बागी खेमे एकजुट हो गए. इस बार माधव राव सिंधिया की जगह उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोकना था. दृश्य में दिग्विजय सिंह फिर एक बार थे. लेकिन उनके साथ इस बार अर्जुन सिंह की जगह कमलनाथ थे. कमलनाथ 2018 के चुनाव से पहले तक कांग्रेस के अला-कमान से नाराज़ चल रहे थे. क्योंकि कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ सदस्य होने के बावजूद दलित वोट बैंक को साधने के लिए पार्टी ने लोकसभा में कमलनाथ की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे को अपना नेता बना दिया था.  कमलनाथ को ये भी लगता था कि मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें कोई अहम मंत्रालय नहीं मिला. कहते हैं कि दिग्विजय सिंह ने एक तीर से दो राजनीतिक चाल चल दी. एक तरफ तो उन्होंने नाराज कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनवाने का भरोसा दिला दिया. दूसरी तरफ कांग्रेस आलाकमान की इस इच्छा को भी हवा दे दी कि किसी युवा को मुख्यमंत्री बनाना, राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य के लिए ठीक नहीं है. और इस तरह से मध्य प्रदेश का चुनाव जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री नहीं बन सके. ठीक उसी तरह जैसे 1993 में माधवराव सिंधिया मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे.
मध्य प्रदेश की राजनीति ने एक और इतिहास दुहराया है. 53 वर्ष पहले भी कांग्रेस की सरकार सत्ता से बाहर हुई थी. उस समय इसकी वजह थीं- विजया राजे सिंधिया. यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी. तब मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री थे द्वारका प्रसाद मिश्र. जिनके पुत्र बृजेश मिश्र बाद में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव बने. संक्षेप में ये किस्सा कुछ ऐसा है कि 1967 में जब मध्य प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव होने वाले थे, तब राजमाता विजया राजे सिंधिया और मुख्यमंत्री डीपी मिश्र के बीच टिकट बंटवारे को लेकर अनबन हो गई. इसके बाद विजया राजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर गुना संसदीय सीट से चुनाव जीत गईं. जैसे आज कांग्रेस के 22 विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हैं, तब विजया राजे सिंधिया के साथ कांग्रेस के 36 विधायक थे. इन बागी विधायकों ने जन क्रांति दल के नाम से पार्टी बनाई, और गोविंद नारायण सिंह को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया. यानी विजया राजे सिंधिया की वजह से डीपी मिश्र को इस्तीफा देना पड़ा और मध्य प्रदेश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. यानी बिल्कुल दादी की तरह पोते ने भी कांग्रेस का बंटवारा कर दिया. 
ज्योतिरादित्य सिंधिया एक राज परिवार से हैं. लेकिन, ये हमारे लोकतंत्र की ताकत है कि राजघरानों ने भी ज��ता की शक्ति को स्वीकार कर लिया. लोकसभा की गुना सीट को सिंधिया राजघराने का किला कहते हैं. 2019 के चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया इसी सीट से हार गए. उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार केपी यादव ने हराया. केपी यादव कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया के चुनाव प्रचार के दौरान उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया ने अपने फेसबुक वॉल पर एक तस्वीर शेयर की थी. इस तस्वीर में ज्योतिरादित्य सिंधिया गाड़ी के अंदर बैठे हुए हैं. जबकि बाहर केपी यादव खड़े हैं और सेल्फी ले रहे हैं. सिंधिया परिवार शायद ये दिखाना चाहता था कि कभी उनके साथ सेल्फी लेने वाले को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बना दिया. ये फेसबुक पोस्ट आत्म-मुग्ध राजनीति का उदाहरण था. लेकिन, चुनाव में हार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को जनता की ताकत का अहसास हो गया होगा. यहीं से उन्हें समझ में आ गया होगा कि जनता की नब्ज को पकड़ना ज़रूरी है.
शायद यही वजह है कि अनुच्छेद 370 पर उन्होंने अपनी पार्टी लाइन से अलग हटकर केंद्र सरकार के फैसले की सराहना की थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा कांग्रेस के युवा नेता दीपेंदर हुड्डा ने भी जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का समर्थन किया था. हो सकता है कांग्रेस के पुराने और बुज़ुर्ग नेता इतनी हिम्मत ना दिखा पाएं. लेकिन, युवा नेताओं ने एक शुरुआत कर दी है.
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ferretbuzz · 7 years ago
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If exit poll prediction comes true as BJP Victory in Gujarat 5 major reasons like PM Modi नई दिल्ली: गुजरात चुनाव की जीत को लेकर भविष्यवाणी हो चुकी है. एग्जिट पोल्स की भविष्यावाणी में हिमाचल में कमल त��� खिलेगा ही, साथ ही गुजरात के रण में भी भाजपा विजय पताका लहराएगी. हालांकि, एग्जिट पोल की भविष्यवाणी में कितना दम है इसका फैसला 18 दिसंबर को वोटों की गिनती के बाद ही होगा. मगर जिस तरह से तमाम न्यूज चैनलों और एजेंसियों ने गुजरात में भाजपा को बढ़त दी है, उससे ये साफ नजर आने लगा है कि अगर कोई हैरान करने वाला वाकया नहीं होता है, तो भारतीय जनता पार्टी गुजरात में पिछले 22 सालों की सत्ता को एक बार फिर से बचाने में कामयाब हो जाएगी. गुजरात में अगर बीजेपी सच में सरकार बनाती है तो इसकी एक वजह नहीं, बल्कि कई वजहें होंगी. इस बार सिर्फ मोदी मैजिक ही नहीं चला है, बल्कि ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिसे भुनाने में बीजेपी कामयाब हो गई है.  तो चलिए जानते हैं कि अगर गुजरात में एग्जिट पोल की भविष्यवाणी सच साबित होती है तो बीजेपी की जीत के कौन-कौन से की-फैक्टर होंगे.  1. मोदी मैजिक का कमाल इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी के खेवनहार अभी भी पीएम नरेंद्र मोदी ही हैं. लोकसभा चुनाव में परवान चढ़ा मोदी मैजिक अभी भी अपने शबाब पर है. यही वजह है कि गुजरात चुनाव से पहले वहां के लोगों में बीजेपी को लेकर जो रोष और नाराजगी देखने को मिली, वो मोदी की रैलियों की वजह से धीरे-धीरे कम होता गया. जब तक मोदी चुनावी प्रचार के मैदान में नहीं थे, तब तक बीजेपी कांग्रेस के सामने कमजोर टीम साबित हो रही थी. मगर जैसे ही चुनावी अभियान का मोर्चा खुद पीएम मोदी ने संभाला, वैसे ही बाजी पलट गई और गुजरात की जनता को पीएम मोदी ने ऐसे वशीभूत किया कि उसका असर मतदान केंद्रों में ही देखने को मिले. गुजरात की जीत एक बार फिर से साबित करती है कि मोदी के चुनावी जुमले और उनके भाषण का अंदाज आज भी लोगों को लुभाने की ताकत रखते हैं. यही वजह है कि अगर बीजेपी की जीत होती है, तो पीएम मोदी सबसे बड़ी वजह होंगे. सच कहूं तो पीएम मोदी की चेहरा ही गुजरात की जीत की बानगी होगी.  हार-जीत छोड़ो, ये 5 बातें साबित करती हैं कि राहुल गांधी अब राजनीति के माहिर खिलाड़ी हो गये हैं 2. कांग्रेस और राहुल पर लगातार हमला ये बात किसी से छिपी नहीं है कि इस चुनाव में विकास का पर्याय कही जाने वाली पार्टी बीजेपी और शख्स पीएम मोदी विकास के मुद्दे से कन्नी काटते नजर आए. कुछ-एक जगहों को छोड़ दें तो कहीं भी बीजेपी की ओर से कोई भी विकास और गुजरात के मुद्दों पर बोलता नजर नहीं आया. मगर बीजेपी ने अपनी जो रणनीति बनाई थी, उसमें वो कामयाब होते नजर आए. बीजेपी और पीएम मोदी ने पूरे चुनाव अभियाने के दौरान कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमला करना जारी रखा. बीजेपी के छोटे स्तर के नेता से लेकर पीएम मोदी तक ने राहुल गांधी पर व्यक्तिगत हमले करने से गुरेज नहीं ��िया. बीजेपी की आईटी सेल ने भी राहुल को ट्रोल करने की भरपूर कोशिश की. रैलियों में पीएम मोदी के भाषण की शुरुआत और अंत दोनों ही राहुल गांधी और कांग्रेस से ही होती थी. यही वजह है कि गुजरात की जनता की नजर में राहुल गांधी और कांग्रेस की जो छवि बननी चाहिए वो नहीं बन पाई. वो कहते हैं न कि झूठ को अगर बार-बार प्रचारित किया जाए तो वो सच लगने लगती है. गुजरात में बीजेपी ने शायद इसी वाक्य को चरितार्थ किया. 3. अय्यर के बयान बीजेपी के लिए संजीवनी गुजरात चुनाव में बीजेपी की जीत के वैसे तो कई फैक्टर होंगे, मगर बीजेपी के लिए कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर का पीएम मोदी के लिए बयान किसी की-फैक्टर से कम नहीं था. एक तरह से देखा जाए तो मणिशंकर अय्यर का नीच आदमी वाला बयान ने बीजेपी के लिए संजीवनी का काम किया. इस बात को खुद बीजेपी और पीएम मोदी भी जानते हैं. यही वजह है कि बयान के आने के बाद भी पीएम मोदी ने इसे जनसभा में अपना चुनावी हथियार बना लिया और दूसरे चरण में इसका खूब फायदा मिला. पीएम मोदी ने इस बयान को गुजरात के अपनाम से जोड़ कर वहां के लोगों की सहानुभूति वोट के रूप में बटोर लीं. पीएम मोदी सभी रैलियों में बीजेपी और खुद पर हुए कांग्रेस की ओर से हमले को गुजरात पर हमला करार देते नजर आए. पीएम मोदी ये भी कहते सुने गये कि उनका अपमान मतलब गुजरात का अपमान. पीएम मोदी के ऐसे ही करिश्माई भाषणों ने वहां की जनता के मन को इस तरह से मोह लिया कि उसका परिणाम बीजेपी की जीत के रूप में दिख रही है.  कांग्रेस गुजरात जीते या हारे, मगर बीजेपी को राहुल गांधी से ये 5 बातें जरूर सीखनी चाहिए 4. राहुल का हिंदुत्व, जनेऊ और मंदिर यात्रा गुजरात चुनाव में राहुल गांधी का हिंदुत्व प्रेम साफ देखने को मिला. यही वजह है कि गुजरात चुनाव अभियान के शुरू होते ही राहुल गांधी मंदिरों के चक्कर लगाने लगे. हालांकि, अभी तक की भविष्यवाणियों को देखें तो इसका फायदा राहुल न मिलकर इसका घाटा ही देखने को मिल रहा है. कारण कि बीजेपी राहुल के अचानक वाले हिंदुत्व प्रेम को लोगों के बीच भुनाने में कामयाब रही. हर जहग जा-जाकर राहुल गांधी के मंदिर दौरों को लेकर हमला करना और उनके हिंदू होने पर सवाल उठाना आदि बातें सभी बीजेपी के पक्ष में ही जाती दिख रही हैं. बीजेपी के हाथ सबसे मजबूत हथियार तो उस वक्त लगा जब सोम मंदिर में राहुल गांधी का नाम एक गैर-हिंदू रजिस्टर में लिखा मिला. इस बात पर बीजेपी इतनी हमलावर हो गई कि कांग्रेस को सारे सबूत सामने रखने पड़े और जनेऊ वाली फोटो तक दिखानी पड़ी. यूपी के सीएम योगी ने तो राहुल के पूजा करने के पोजिशन को लेकर भी सवाल उठा दिया और कहा कि वो मंदिर में ऐसे पूजा करते हैं जैसे नमाज पढ़ रहे हों. कुल मिलाकर देखा जाए तो गुजरात चुनाव में राहुल का हिंदुत्व प्रेम उनके लिए घाटे का सौदा ही दिख रहा है. गुजरात विधानसभा चुनाव : क्या आप जानते हैं इन पार्टियों के दागी नेता भी हैं मैदान में? 5. स्टार प्रचारकों की फौज और शाह की रणनीति बीते लोकसभा चुनाव के बाद से जहां भी बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हुई, उसकी जीत में अमित शाह की रणनीति की अहम भूमिका रही है. गुजरात चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. कांग्रेस सत्ता की कुर्सी के आस-पास भी न भटके इसके लिए बीजेपी ने अपनी रणनीति तो बनाई ही साथ में उसने स्टार प्रचारकों की फौज खड़ी कर दी थी. गुजरात की जनता को भगवा रंग में रंगने के लिए स्टार प्रचारकों में मोदी, शाह, राजनाथ, नितिन गडकरी, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू, स्मृति ईरानी, उमा भारती, कलराज मिश्र, मेनका गांधी, राम ���िलास पासवान, मुख्तार अब्बास नकवी, पीयूष गोयल, महेश शर्मा, वी के सिंह जैसे भाजपा के कद्दावर नेता शामिल थे. इन नेताओं की फौज ने गुजरात में बीजेपी के पक्ष में हवा बनाने का पूरा काम किया और जो भी रही-कसर बाकी थी, उसे खुद पीएम मोदी ने पूरा कर दिया. हालांकि, इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि अमित शाह की अहम रणनीति बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को जोड़ना और डोर-टू-डोर कैंपेन भी गुजरात की जीत में अहम भूमिका निभाएगी.  राहुल गांधी को हर हाल में सीखनी चाहिए पीएम मोदी से ये 6 बातें, नहीं तो 2019 में बड़ी आसानी से जीत जाएगी बीजेपी याद रहे कि ये कारण एग्जिट पोल में बीजेपी की जीत की भविष्यवाणी के आधार पर बताये गये हैं.  VIDEO: प्राइम टाइम : क्या सही साबित होंगे एग़्जिट पोल? (हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।) Source link
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theviralpagesindia-blog · 8 years ago
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यूपी में बीजेपी-कांग्रेस की इन पांच जीतना तय है!
परिवारवाद, परिवारवाद. चुनाव आते ही खूब बखान होता है. मगर इससे कोई पार्टी अछूती नजर नहीं आती. लेकिन सबसे ज्यादा कांग्रेस को ही घेरा जाता है. इस बार बीजेपी ने भी बेटों-बेटियों का खूब ख्याल रखा है. पीएम मोदी की नसीहत के बावजूद कई नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट दिया गया. ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि कांग्रेस पर परिवारवाद की सियासत करने और वंशवाद को बढ़ावा देने के बीजेपी के इल्ज़ामों का अब क्या होगा. परिवारवाद को लेकर बहुत से इल्ज़ाम सुने होंगे. और पांच राज्यों के चुनावों के दौरान और सुनोगे. तो फिर कांग्रेस को ही क्यों परिवारवाद के लिए कोसें. यहां आप जानिए बीजेपी और समाजवादी पार्टी की उन बेटियों के बारे में भी जो चुनावी विरासत को संभालने के लिए यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में उतरी हैं.
मृगांका सिंह
मृगांका सिंह
यूपी की कैराना सीट से बीजेपी ने मृगांका सिंह को उतारा है. वो कैराना से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह की बेटी हैं. हुकुम सिंह ही वो नेता थे, जिन्होंने मुस्लिम माफियाओं की वजह से कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था. मृगांका अपने चुनाव में इसी मुद्दे को भुनाने की तैयारी में हैं. उनकी पढ़ाई भारत के बाहर ही हुई है, इसलिए लोकल लेवल पर लोग उन्हें ज्यादा नहीं जानते. अभी वो एक स्कूल चलाती हैं.
हुकुम सिंह
मृगांका को उनके चचेरे भाई अनिल चौहान की जगह टिकट मिला है. अनिल को बीजेपी ने 2014 के उप-चुनाव में टिकट दिया था, जिसमें वो हार गए थे. बीजेपी से टिकट न मिलने पर अनिल RLD में चले गए और अब बीजेपी के परिवारवाद को कोस रहे हैं.
कैराना से बीएसपी कैंडिडेट: राव अब्दुल वारिस कैराना से एसपी-कांग्रेस कैंडिडेट: पंकज मलिक
नीलिमा कटियार
नीलिमा कटियार
कानपुर की कल्याणपुर सीट से बीजेपी ने प्रेमलता कटियार की बेटी नीलिमा कटियार को टिकट दिया है. नीलिमा लंबे समय तक ABVP से जुड़ी रही हैं. माना जा रहा है कि इसी वजह से बीजेपी ने उन पर भरोसा जताया है. लेकिन, इससे भी बड़ी वजह हैं नीलिमा की मां प्रेमलता, जो 1991 से 2007 तक लगातार विधायक रहीं. 2012 की सपा लहर में वो चुनाव नहीं निकाल सकीं. इस बार उन्होंने अपनी बेटी को टिकट दिलाया है.
प्रेमलता कटियार
प्रेमलता कल्याण सिंह से राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के अलावा मायावती तक की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. उन्हें कल्याण सिंह का करीबी माना जाता है, जो अभी राजस्थान के राज्यपाल हैं. कल्याण के पोते संदीप को भी बीजेपी ने अतरौली से टिकट दिया है.
कल्याणपुर से बीएसपी कैंडिडेट: दीपू कुमार निषाद कल्याणपुर से सपा-कांग्रेस कैंडिडेट: सतीश निगम
रीता बहुगुणा जोशी
कांग्रेस छोड़ बीजेपी जॉइन करते समय अमित शाह के साथ रीता
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा जोशी इस बार बीजेपी के बैनर तले चुनाव लड़ने जा रही हैं. 24 साल तक कांग्रेस में रहने के बाद वो पिछले साल 21 अक्टूबर को बीजेपी में शामिल हो गई थीं. पार्टी ने उन्हें लखनऊ कैंट सीट से टिकट दिया है. अंदरखाने की खबरों के मुताबिक रीता इस बात से नाराज थीं कि कांग्रेस ने यूपी में शीला दीक्षित को सीएम कैंडिडेट बना दिया. रीता 2007 से 2012 तक यूपी कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं.
हेमवती नंदन बहुगुणा
कांग्रेस में रहते हुए रीता इसी सीट से विधायक रही हैं. रीता के भाई विजय बहुगुणा ने जज बनने से लेकर उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने तक का सफर तय किया. इस बार वो अपने विरोधियों पर कोई सीधा हमला नहीं कर रही हैं, लेकिन अपनी जीत सुनिश्चित मानकर चल रही हैं.
लखनऊ कैंट से बीएसपी कैंडिडेट: योगेश दीक्षित लखनऊ कैंट से सपा-कांग्रेस कैंडिडेट: अपर्णा यादव (मुलायम की छोटी बहू)
आराधना मिश्रा
सपा के मैनिफेस्टो लॉन्चिंग में अखिलेश और डिंपल के साथ आराधना
प्रतापगढ़ की रामपुर खास सीट से कांग्रेस ने उतारा है आराधना मिश्रा को, जो यहां की सिटिंग MLA हैं. लेकिन, इससे भी खास बात ये कि वो यूपी के दिग्गज कांग्रेसी नेता प्रमोद तिवारी की बेटी हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से प्रमोद ने ही जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. सीट खाली होने पर पार्टी ने उपचुनाव में आराधना को उतारा और वो जीत गईं.
प्रमोद तिवारी
राज्यसभा सांसद बनने से पहले प्रमोद नौ बार विधायक रहे. इनके बारे में कहा जाता है कि कांग्रेस जैसे-जैसे यूपी में कमजोर होती गई, प्रमोद मजबूत होते गए. हालांकि, आराधना की दावेद��री की वजह से इस सीट पर कांग्रेस के जीतने की संभावना ज्यादा है.
रामपुर खास से बीएसपी कैंडिडेट: अशोक कुमार सिंह रामपुर खास से बीजेपी कैंडिडेट: नागेश प्रताप सिंह
अदिति सिंह
चुनावी दौरे पर अदिति सिंह
गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली की रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस ने अदिति सिंह को टिकट दिया है. अदिति पांच बार के विधायक अखिलेश सिंह की बेटी हैं. अखिलेश सिंह रायबरेली सदर सीट के मौजूदा विधायक हैं. हालांकि, बीच में उन्होंने पीस पार्टी जॉइन की थी, लेकिन अभी वो कांग्रेस के साथ हैं. हालिया दिनों में अदिति प्रियंका गांधी के संपर्क में थीं और प्रियंका ने ही उन्हें कांग्रेस जॉइन करने के लिए कन्विंस किया.
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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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शिवराज सिंह चौहान ने कौन सा राजनीतिक विष पिया, मंत्रिमंडल विस्तार से एक दिन पहले क्यों कही ऐसी बात?
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भोपाल सरकार बनाने के सौ दिन से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद मध्य प्रदेश में गुरुवार को मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे। इस बात की घोषणा करने के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ऐसी बात कह गए जिसकी राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है। पत्रकारों से बातचीत के दौरान सीएम शिवराज ने खुद की तुलना शिव से की और मंत्रिमंडल विस्तार में आ रही दिक्कतों की तुलना खुद के विष पीने से कर गए।
पत्रकार ने पूछा कि अमृत किसको मिलेगा विष किसको मिलेगा। इसपर सीएम शिवराज ने कहा कि मंथन से अमृत की निकलता है, विष तो शिव पी जाते हैं। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि गुरुवार को मंत्रिमंडल शपथ ले लेगा। अगर पिछले 100 दिनों की मध्य प्रदेश राजनीति को समझना है तो सीएम शिवराज के इस बयान से सारी बातें स्पष्ट हो जा रही हैं।
एक दिन पहले भी शिवराज ने बयां किया था दर्द एक दिन पहले सीएम शिवराज ने ट्वीट कर अपना दर्द बयां किया था। सीएम शिवराज ने ट्वीट में कहा था, ‘आये थे आप हमदर्द बनकर, रह गये केवल राहज़न बनकर। पल-पल राहज़नी की इस कदर आपने, कि आपकी यादें रह गईं दिलों में जख्म बनकर।’ राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह ट्वीट शिवराज सिंह चौहान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए किया है। सीएम कहना चाह रहे हैं कि आप हमदर्द बनकर आए यानी कांग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी में आए। उसके बाद आप मंत्रिमंडल में अपने लोगों की हिस्सेदारी को लेकर इतना तोलमोल कर रहे हैं कि यह जख्म बन चुका है। हालांकि ये सब अटकलें हैं, जब तक सीएम खुलकर कुछ नहीं कहते तब तक कुछ भी कहना ठीक नहीं है।
मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया को खुश करने की चुनौती ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरी है और शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने हैं। ऐसे में स्वभाविक है कि सिंधिया मंत्रिमंडल में अपने समर्थकों के लिए काफी कुछ चाहते होंगे। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर 16 पूर्व विधायक और 6 पूर्व मंत्री बीजेपी में आए हैं। जो छह लोग कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे उन्हें तो शिवराज सरकार में भी ओहदा तो चाहिए ही। इसके अलावा 16 और पूर्व विधायक भी कांग्रेस से बगावत करने के एवज में मंत्री पद की चाहत पाले हुए हैं।
सिंधिया समर्थकों में से तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत कैबिनेट में पहले से शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार बीजेपी ने 6 लोगों के अलावा बिसाहूलाल सिंह, एंदल सिंह कंसाना और हरदीप सिंह डंग को मंत्री पद का आश्वासन दिया था। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया कैंप के ही इमरती देवी, प्रद्युमन सिंह तोमर, प्रभुराम चौधरी और महेंद्र सिंह सिसौदिया का भी मंत्री बनना तय माना जा रहा है।
कांग्रेसी नेता कहते हैं कि सिंधिया को खुश करना इतना आसान काम नहीं है। पूर्व मंत्री सज्जन कुमार ने कहा कि सिंधिया कोई ऐसे वैसे नेता नहीं हैं कि जिन्हें किसी बात के लिए मना लिया जाए। ज्योतिरादित्य सिंधिया को संतुष्ट करना आसान काम नहीं है, यह इस बार न केवल शिवराज सिंह चौहान बल्कि पूरी बीजेपी को पता चल जाएगा।
नरोत्तम मिश्रा चाहते हैं शिवराज की जगह? सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ की सरकार गिराने में अहम रोल निभाने वाले नरोत्तम मिश्रा मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। हालांकि दिल्ली हाईकमान ने फिलहाल उनकी इच्छा दबा दी है। उम्मीद की जा रही है कि नरोत्तम मिश्रा को संतुष्ट करने के लिए उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इसके अलावा नरोत्तम मिश्रा भी मंत्रिमंडल में अपने समर्थक विधायकों को जगह दिलाना चाहते हैं।
भोपाल के राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि सिंधिया और नरोत्तम को खुश करने के फेर में शिवराज सिं�� चौहान अपनी पसंद के नेता को भी मंत्री पद नहीं दे पा रहे हैं। शायद इसी बात को जाहिर करने के लिए सीएम शिवराज ने पत्रकार से कहा कि समुद्र मंथन से निकला विष तो खुद शिव पीते हैं और अमृत लोगों में बंटता है।
शिवराज के बयान पर कमलनाथ का तंज सीएम शिवराज के विष वाले बयान पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने तंज कसा है। कमलनाथ ने ट्वीट कर कहा है, मंथन इतना लंबा हो गया कि अमृत तो निकला नहीं , सिर्फ़ विष ही विष निकला है। मंथन से निकले विष को तो अब रोज़ ही पीना पढ़ेगा, क्योंकि अब तो कल से रोज़ मंथन करना पढ़ेगा। अमृत के लिये तो अब तरसना ही तरसना पढ़ेगा। इस विष का परिणाम तो अब हर हाल में भोगना पढ़ेगा।’
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abhay121996-blog · 3 years ago
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जितिन ने बढ़ाई सियासी सनसनी, बदलेंगे सियासी समीकरण Divya Sandesh
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जितिन ने बढ़ाई सियासी सनसनी, बदलेंगे सियासी समीकरण
सीतापुर। तीन पीढ़ी से जुड़े दिग्गज कांग्रेसी व ब्राह्मण वोट बैंक का एक प्रमुख चेहरा रहे जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने के बाद सीतापुर, शाहजहांपुर, धौरहरा-लखीमपुर में सियासी समीकरण बदल सकते हैं। यूपी में 2022 का चुनाव जीतने की तैयारियों में तेजी से जुटी भाजपा के लिए जितिन प्रसाद का आना सुखद संदेश हो सकता है।  उनकी गिनती उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में ब्राह्मण नेता के तौर पर होती रही हैं। उनका भाजपा में शामिल होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। महज 27 वर्ष की उम्र में पिता जितेन्द्र प्रसाद के निधन व माता कांता प्रसाद के चुनाव हार जाने के बाद शाहजहांपुर से अपनी सियासी पारी की शुरुआत करने वाले जितिन 2004 का लोकसभा चुनाव जीतकर सोनिया गांधी व राहुल गांधी के निकट आ गए थे। 2009 में शाहजहांपुर लोकसभा सीट आरक्षित हो जाने के बाद श्री प्रसाद ने 15वीं लोकसभा का चुनाव 2009 में नवसृजित धौरहरा सीट पर किस्मत आजमाई, जिस��ें लगभग एक लाख पचहत्तर हजार मतों से विजय प्राप्त की थी। उसके बाद 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव ��ें जितिन प्रसाद को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि प्रसाद ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अपनी किस्मत कांग्रेस के बैनर से आजमाई थी परंतु उसमें भी वह नाकामयाब साबित हुए थे।
योगी के जन्मदिन पर ट्वीट से बढ़ गई थी भाजपा में जाने की अटकलें!  यूं तो कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद के भाजपा से जुड़ने की चर्चा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी चली थी, बताते हैं कि उस समय वे बीजेपी के एक बड़े नेता के संबंधों के आधार पर भाजपा में शामिल होने के लिए जा रहे थे परंतु उसी समय प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से उन्होंने अपने कदम वापस खींच लिए थे। उसके बाद कांग्रेस ने उन्हें आसाम का बंगाल राज्य का प्रभारी बनाकर उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को जोड़ने की जिम्मेदारी सौपीं थी, परंतु श्री प्रसाद पिछले 2 वर्षों से कांग्रेस में अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। जितिन प्रसाद ने 5 जून 2021 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जन्मदिन पर ट्वीट से सियासी हलचल बढ़ा दी थी। उन्होंने मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर ट्वीट कर शुभकामनाएं व बधाई प्रेषित की थी तभी से यह माना जा रहा था कि वे बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।
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संचालित कर रहे थे ‘ब्राह्मण चेतना परिषद’ कांग्रेस में अपनी उपेक्षा से आहत होकर जितिन प्रसाद 2020 में कोविड कॉल के दौरान ब्राह्मण चेतना परिषद बनाकर ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने के अभियान में जुटे थे, उनके नजदीकी बताते हैं कि 2020 में कोरोना आपदा के दौरान जितिन ने बृहद स्तर पर वर्चुअल मीटिंग से उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ब्राह्मणों को जोड़ने का काम शुरू किया था। इसके माध्यम से वे लोगों की नब्ज भी टटोलने में जुटे थे। प्रदेश के कई जिलों में वे ‘ब्राह्मण चेतना परिषद’ की इकाई का गठन कर निरन्तर सम्पर्क व संवाद कायम किये हुए थे। 
2019 से कांग्रेस नेतृत्व के निशाने पर आए जितिन प्रसाद यूं तो जितिन प्रसाद के पिता स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद का इतिहास भी कांग्रेस नेतृत्व से टकराने का रहा है। स्वर्गीय जितेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस में रहकर सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़कर वंशवाद के खिलाफ बिगुल बजाया था। नवंबर 2000 में स्वर्गीय जितेंद्र प्रसाद सोनिया गांधी के खिलाफ राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़े थे, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। जितिन प्रसाद के साथ कांग्रेस से जुड़े एक नेता ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि 2019 में प्रियंका गांधी उन्हें लखनऊ लोकसभा सीट पर राजनाथ सिंह के विरूद्ध चुनाव लड़ाना चाहती थी परन्तु श्री प्रसाद ने अपने राजनैतिक सबन्धों का हवाला देकर प्रियंका गांधी की बात को अनसुना कर दिया था। तभी से वे कांग्रेस नेतृत्व के निशाने पर थे। 
इन विभागों के रहे मंत्री  जितिन प्रसाद ने 2008 में केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री के अलावा बाद में सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय संभाल कर यूपीए सरकार में ही पेट्रोलियम, प्राकतिक गैस के साथ मानव संसाधन विकास मंत्री की जिम्मेदारी निभाई। 
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बदलेंगे सियासी समीकरण भाजपा में शामिल हो जाने के बाद अब यह माना जा रहा है कि पश्चिम के कुछ जिलों के अलावा अवध क्षेत्र में भी जितिन प्रसाद के दबदबे के कारण सियासी समीकरण बदल सकते हैं। जितिन प्रसाद जिस धौरहरा सीट पर चुनाव लड़कर केंद्र में मंत्री बने थे, उसी सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में भ���जपा की उम्मीदवार रहीं रेखा वर्मा ने उन्हें बहुत बुरी तरीके से पटकनी दी थीं। धौरहरा की सांसद रेखा वर्मा का भी कद भाजपा में बड़ा है वे वर्तमान में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। जितिन के समर्थकों का मानना है कि 2022 में वे महोली विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं। फिलहाल क्या होगा ये तो 22 के चुनावों में ही पता चलेगा, परन्तु इतना जरूर है कि भाजपा में शामिल होने के बाद जितिन प्रसाद ने सियासी सनसनी जरूर फैला दी है। 
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