#अवकाश के क्या नियम है
Explore tagged Tumblr posts
Text
Awkash-ke-niyam
मानव संपदा के अंतर्गत समस्त अवकाश संबंधी नियम उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा उत्तर प्रदेश विभिन्न अवकाश के नियम देखें👇 Download in PDF
View On WordPress
#casual leave rule#earned leave rule#earned leave rule 2024#leave rule up government#अवकाश के क्या नियम है#अवकाश के नये नियम क्या है#अवकाश के नियम#अवकाश के नियम 2024#अवकाश के नियम pdf#अवकाश के प्रावधान#उत्तर प्रदेश अवकाश ने नियम#उत्तर प्रदेश सरकार अवकाश के नियम#मानव पर अवकाश के क्या नियम है#मानव संपदा के अंतर्गत समस्त अवकाश संबंधी नियम उत्तर प्रदेश
0 notes
Text
👁️ क्या आपने 20-20-20 नियम के बारे में सुना है?
आज की डिजिटल युग में, हम अक्सर दीर्घकालिक रूप से स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं, चाहे वह काम हो या मनोरंजन। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह हमारी आंखों को थका सकता है?
Dr. Vikram Bhalla, MBBS, DNB (Ophthalmology), भल्ला आई हॉस्पिटल में, यहां हैं एक सरल लेकिन प्रभावी अभ्यास पर रोशनी डालने के लिए: 20-20-20 नियम। हर 20 मिनट के लिए, जितना समय आप स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं, उतना ही समय, 20 सेकंड का अवकाश लें और कुछ 20 फुट दूर की चीज़ को देखें। यह आंखों की थकान और थकान को कम करने में एक छोटा सा समायोजन है जो बड़े परिणाम दे सकता है।
अगर आप किसी भी अस्वस्थता का अनुभव कर रहे हैं या अपनी आंखों के स्वास्थ्य के बारे में कोई चिंता है, तो डॉ. विक्रम भल्ला से संपर्क करें। आप हमें रांची, झारखंड के भल्ला आई हॉस्पिटल में पाएं, बिरसा चौक के पास, हवाई नगर, सत्यारी टोली, मारुति ट्रू वैल्यू के सामने, एचपी पेट्रोल पंप के पास। हमें 7061015823 या 8969749533 पर कॉल करके अपॉइंटमेंट बुक करें या कोई सवाल पूछें।
#EyeHealth#20-20-20Rule#BhallaEyeHospital#HealthyEyes#DigitalEyeStrain#EyeCareTips#VisionCare#EyeSafety#RanchiDoctors#JharkhandHealth#EyeWellness#EyeTips#ScreenTimeTips#DigitalWellness#EyeComfort
0 notes
Link
होटल मार्केटिंग क्या है?
होटल मार्केटिंग, होटल इंडस्ट्री का विभिन्न मार्केटिंग रणनीतियों और तकनीकों को उपयोग करना जिससे होटल इंडस्ट्री अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने के साथ साथ ग्राहकों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकें और मेहमानोें को आकर्शित करने के लिए हर संभव प्रयास कर सकें ताकि ग्राहक होटल द्वारा दी गयी सुविधाओं से प्रभावित होकर उसका नियमित ग्रहाक बन सके। कुछ मायनों मे होटल इंडस्ट्री में यह अनुमान लगाना बहुत आसान है कि उपभोक्ता क्या चाहते हैं, जो कल्याण, सुरक्षा और मन की शांति से शुरू होता है। फिर भी यह उससे कहीं आगे जाता है, और यह जानना कि शेष वर्ष के लिए अपना बजट कहाँ आवंटित करना है, एक चुनौती हो सकती है। हालांकि COVID-19 के प्रकोप के परिणाम स्वरुप पिछले एक साल से न केवल आतिथ्य उद्योग बड़े बदलावों से जुझ रहा है बलिक होटल मार्केटिंग का रुझान भी बदल गया हैं।
इस डिजिटल युग में, होटल विपणन ऑनलाइन होता है, साथ ही साथ व्यक्ति और होटल ब्रांडों को वेबसाइट ट्रैफिक, सोशल मीडिया, ईमेल और कई अन्य चैनलों के माध्यम से अपनी उपस्थिति को अधिकतम करने की आवश्यकता होती है। COVID-19 के प्रभाव के कारण होटल इंडस्ट्री आतिथ्य उद्योग को बढावा देने के लिए नये रुझानो की ओर आर्कशित हो रही हैं और उन्हें अपनी संपत्ति पर कैसे लागू कर सकते हैं ये प्रयास कर रही है।
होटल की स्वच्छता और सुरक्षा प्रयासों का पालन करना आवश्यक है
स्पष्ट रूप से, लोग इस महामारी के दौरान अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं, और संभवतः कुछ समय तक ऐसा करना जारी रखेंगे। ग्राहक के लिए स्वच्छ शब्द का अर्थ और जुड़ाव बदल गये है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक बार क्या दिया गया था (एक “साफ” कमरा), अब इस शब्द स्वच्छ (एक “साफ” कमरा) की एक नई परिभाषा (“वायरस-मुक्त” कमरे) ने ले ली है। जिसमें महत्वपूर्ण स्वच्छता और सुरक्षा पहलों पर ध्यान दिया जाएगाः टचलेस कमरे में प्रवेश और मास्क पहने हुए कर्मचारी। यह मेहमानों को यात्रा के आनंद पर ध्यान केंद्रित रखता है, साथ ही उन्हें आश्वस्त कराना है कि वे अभी भी खुद का आनंद लेने के लिए सुरक्षित हैं।
Also Read: Ways to Provide the Best Hotel Customer Service
आतिथ्य उदयोग एंव होटल मैनेजमेंट शिक्षण संस्थान में कोरोना का प्रभाव और 2021 में इसके लिए बनाये गये नियम
2021 में होटलों के लिए नेबरहुड स्थानीय मार्केटिंग एक प्रमुख रणनीति होगी
COVID के कारण आतिथ्य उद्योग बहुत प्रभावित हुआ यात्रा प्रतिबंध से विदेशी सैलानियो के आवागमन पर रोक लगी जिसके चलते होटल इंडस्ट्री ने अंतरराष्ट्रीय मेहमानों के विपरीत, स्थानीय मेहमानों पर अपना ध्यान बढाया। कई होटलों ने स्थानीय ग्राहकों, या कम से कम पड़ोसी देशों के ग्राहकों को लक्षित करने के लिए अपने विपणन प्रयासों को बदलकर प्रतिक्रिया दी है। इसका मतलब होटल के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना जैसे कि जिम सुविधाएं, वाई-फाई का उपयोग और अपने होटल के कमरों से या समर्पित कार्य क्षेत्रों से दूरस्थ कार्य करने की क्षमता। नेबरहुड मार्केटिंग एक ऐसी रणनीति है जो अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के बजाय स्थानीय दर्शकों को लुभाने पर निर्भर करती है। यह व्यवसाय यात्रियों और ड्राइव-इन मीटिंग्स और कार्यक्रमों के प्रचार के साथ-साथ अवकाश यात्रियों और कई अन्य प्रकार के होटल मेहमानों के लिए भी जाता है। कुछ होटल पहले से ही महामारी की शुरुआत के बाद से इस मानसिकता को अपनाना शुरू कर चुके हैं, लेकिन जैसा कि टीकाकरण करने वाले लोग धीरे-धीरे सामान्य जीवन के लिए आश्वस्त हो रहे हैं, उन्हे होटल के नये नियमों से आकर्षित करना एक विमान पर बैठाने के लिए आश्वस्त करने की तुलना में बहुत आसान है अगर वे अभी तक यात्रा नहीं कर रहे हैं तो।
वीडियो मार्केटिंग
ऑनलाइन वीडियो की खपत एक चैंकाने वाली दर से बढ़ रही है। वास्तव में, औसत उपभोक्ता को 2021 में प्रतिदिन औसतन 100 मिनट का वीडियो देखने की उम्मीद है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि क्यों 92 प्रतिषत मार्केटर्स कहते हैं कि वीडियो उनकी मार्केटिंग रणनीति के लिए एक महत्वपूर्ण बिज्ञापन उपकरण है। फेसबुक लाइव, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आपके होटल या यात्रा व्यवसाय के वीडियो बिज्ञापन के लिए उपयोग करने के कुछ सबसे अच्छे माध्यम हैं। आपके रिसॉर्ट या होटल के आसपास के सुंदर दृश्य और भव्य स्थान आसानी से दर्शकों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं, खासकर अगर यह एक रोमांचक वीडियो में दिया गया हो। उपलब्ध कई अलग-अलग वीडियो विकल्पों के साथ – प्रचार वीडियो, होटल लाइव स्ट्रीम, होटल हाइलाइट, और ग्राहक साक्षात्कार, वीडियो के माध्यम से आपके व्यवसाय के लिए बाजार में हमेशा कुछ न कुछ होता है।
बुकिंग बढ़ाने के लिए ऑनलाइन ट्रैवल एजेंसियों से जुड़े
51 प्रतिषत यात्री ऑनलाइन ट्रैवल एजेंसियों (ओटीए) बनाम होटल के साथ सीधे बुकिंग के माध्यम से अपनी होटल बुकिंग करते हैं, ओटीए आतिथ्य व्यवसायों के वितरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण चैनलों में से एक हैं। उनकी सफलता के कारण, पिछले कुछ वर्षों में ट्रैवल एजेंसियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। इस तरह की सेवाएं ग्राहकों को ऑनलाइन और लुकअप सेवाओं और उत्पादों को एक ही स्थान पर जाने की अनुमति देती हैं, बजाय व्यक्तिगत वेबसाइटों पर जाने के। नतीजतन, एक या एक से अधिक ट्रैवल एजेंसियों के साथ साझेदारी स्थापित करना प्राथमिकता होनी चाहिए।
चैटबॉट्स के साथ ग्राहक अनुभव में सुधार करें
चैटबॉट एक अपेक्षाकृत नई तकनीक है, लेकिन कई व्यवसायों के डिजिटल जुड़ाव रणनीति का एक प्रमुख घटक बन गया है। चैटबोट का उपयोग प्रति वर्ष 30 प्रतिषत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। चैटबॉट आतिथ्य क्षेत्र के व्यवसायों के लिए विशेष रूप से उपयोगी हो सकते हैं, क्योंकि वे ग्राहकों के प्रश्नों के त्वरित जवाब के लिए अनुमति देते हैं, चाहे आपके पास उन सवालों के जवाब देने के लिए स्टाफ उपलब्ध हो या नहीं। चैटबॉट्स का उपयोग बुकिंग चरणों के माध्यम से संभावित ग्राहकों को मार्गदर्शन करने में मदद करने के लिए किया जा सकता है, बुकिंग की प्रक्रिया को पूरा करने के साथ-साथ बुकिंग प्रक्रिया के दौरान आने वाले प्रश्नों के लिए सहायता प्रदान करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करें।
होटल मार्केटिंग के इन नये रुझानो से होटल इंडस्ट्री मे सुधार होगा। होटल इंडस्ट्री एक ऐसी इंडस्ट्री है जहां बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हेरीटेज इंस्टीटयूट ऑफ होटल एण्ड टूरिज्म, आगरा, अपने विद्यार्थियों को हाॅस्पिटेलिटी इंडस्ट्री की जरुरतोे को ध्यान मे रखते हुए कई पाठयक्रम चला रहा है ताकि छात्रों को इस फील्ड की तमाम नयी बातों से अवगत कराया जा सकें। Best IHM Institute in India, COVID-19 के मापद��्डों को ध्यान में रखकर विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान कर रहा हैं। साथ ही संस्थान विद्यार्थियों को होटल मार्केटिंग के बारे में न सिर्फ उन्हे सैद्वांतिक ज्ञान प्रदान करता है बल्कि उन्हे फील्ड वर्क के लिए उनकी कम्युनिकेषन स्किल्स और पर्सनालिटी डेवलपमेंट की भी उचित जानकारी प्रदान कर उन्हे योग्य बनाता है।
0 notes
Text
Kendriya Vidyalaya admission 2021: क्लास 1 से 10वीं तक में एडमिशन का पूरा शेड्यूल व गाइडलाइंस Divya Sandesh
#Divyasandesh
Kendriya Vidyalaya admission 2021: क्लास 1 से 10वीं तक में एडमिशन का पूरा शेड्यूल व गाइडलाइंस
KV class 1 to 10 admission 2021: शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए केंद्रीय विद्यालयों (Kendriya Vidyalaya) में एडमिशन की प्रक्रिया बस शुरू होने ही वाली है। केंद्रीय विद्यालय संगठन () ने क्लास 1 से लेकर 12वीं तक में दाखिले का पूरा शेड्यूल और दिशानिर्देश जारी कर दिया है। केवी एडमिशन शेड्यूल से लेकर उम्र सीमा और आरक्षण तक.. पूरी डीटेल आगे दी गई है।
केवीएस ने कहा है कि क्लास 1 के लिए एडमिशन फॉर्म ऑनलाइन भरे जाएंगे। जबकि क्लास 2 से लेकर 10वीं तक के लिए आपको संबंधित स्कूल से ऑफलाइन एडमिशन फॉर्म लेकर भरना और जमा करना होगा। हालांकि शेड्यूल सभी के लिए एक जैसा ही रहेगा, जो kvsangathan.nic.in पर जारी किया गया है।
KVS class 1 admission 2021: ये रहा शेड्यूल क्लास-1 के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू – 01 अप्रैल 2021 (सुबह 10 बजे से) क्लास-1 ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि – 19 अप्रैल 2021 (शाम 7 बजे तक) पहली एडमिशन लिस्ट – 23 अप्रैल 2021 दूसरी लिस्ट (अगर सीट खाली बचती है) – 30 अप्रैल 2021 तीसरी लिस्ट (अगर सीट खाली बचती है) – 05 मई 2021 RTE, SC/ST, OBC (NCL) के लिए ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन (अगर ऑनलाइन से पर्याप्त आवेदन नहीं आए तो) – 10 मई से 13 मई 2021 तक ऑफलाइन की एडमिशन लिस्ट जारी होने की तिथि – 15 मई से 20 मई 2021 तक
KVS class 2 to 10 admission 2021: ऐसा है शेड्यूल उपलब्ध सीटों के लिए ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन – 08 अप्रैल से 15 अप्रैल 2021 तक एडमिशन लिस्ट जारी होगी – 19 अप्रैल 2021 (शाम 4 बजे) एडमिशन की तिथि – 20 अप्रैल से 27 अप्रैल 2021 तक सभी कक्षाओं में एडमिशन की अंतिम तिथि (क्लास 9 को छोड़कर) – 30 मई 2021
नोट: केवी संगठन ने कहा है कि दिए गए शेड्यूल में अगर कोई दिन सार्वजनिक अवकाश होता है, तो उसके अगले कार्य दिवस को ओपनिंग/क्लोजिंग डेट माना जाएगा। ऑफलाइन एडमिशन लिस्ट के लिए संबंधित केंद्रीय विद्यालय का नोटिस बोर्ड देखना होगा, जहां आपने अप्लाई किया है।
ये भी पढ़ें :
Reservation in Kendriya Vidyalaya admission: ये होगा आरक्षण का नियम शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) के तहत – 25% एससी (SC) – 15% एसटी (ST) – 7.5% ओबीसी एनसीएल (OBC NCL) – 27%
यानी अगर किसी क्लास में 40 बच्चों का एडमिशन होना है तो, उपरोक्त आरक्षण नियमों के अनुसार, आरटीई के लिए 10 सीटें, एससी के लिए 06 सीटें, एसटी के लिए 03 सीटें और ओबीसी एनसीएल के लिए 11 सीटें आरक्षित होंगी। इसके अलावा दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए (जेनरल समेत) 3% सीटें आरक्षित होंगी।
ये भी पढ़ें :
KVS admission age limit: किस क्लास के लिए क्या हो उम्र
क्लास न्यूनतम उम्र अधिकतम उम्र
1 5 साल 7 साल
2 6 साल 8 साल
3 7 साल 9 साल
4 8 साल 10 साल
5 9 साल 11 साल
6 10 साल 12 साल
7 11 साल 13 साल
8 12 साल 14 साल
9 13 साल 15 साल
10 14 साल 16 साल
नोट: न्यूनतम व अधिकतम उम्र सीमा की गणना जिस साल एडमिशन के लिए अप्लाई कर रहे हैं, उस वर्ष की 31 मार्च की तारीख तक से की जाएगी। संबंधित स्कूल के प्राचार्य की अनुमति से दिव्यांग विद्यार्थियों को अधिकतम उम्र सीमा में 2 साल तक की छूट दी जा सकती है।
0 notes
Text
NCERT Class 12 Hindi Sampadkiya Lekhan
NCERT Class 12 Hindi Sampadkiya Lekhan
CBSE Class 12 Hindi (संपादकीय लेखन)
प्रश्नः 1.संपादकीय का क्या महत्त्व है?उत्तरःसंपादक संपादकीय पृष्ठ पर अग्रलेख एवं संपादकीय लिखता है। इस पृष्ठ के आधार पर संपादक का पूरा व्यक्तित्व झलकता है। अपने संपादकीय लेखों में संपादक युगबोध को जाग्रत करने वाले विचारों को प्रकट करता है। साथ ही समाज की विभिन्न बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। संपादकीय पृष्ठों से उसकी साधना एवं कर्मठता की झलक आती है। वस्तुतः संपादकीय पृष्ठ पत्र की अंतरात्मा है, वह उसकी अंतरात्मा की आवाज़ है। इसलिए कोई बड़ा समाचार-पत्र बिना संपादकीय पृष्ठ के नहीं निकलता।
पाठक प्रत्येक समाचार-पत्र का अलग व्यक्तित्व देखना चाहता है। उनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ देखना चाहता है जो उसे अन्य समाचार से अलग करती हों। जिस विशेषता के आधार पर वह उस पत्र की पहचान नियत कर सके। यह विशेषता समाचार-पत्र के विचारों में, उसके दृष्टिकोण में प्रतिलक्षित होती है, किंतु बिना संपादकीय पृष्ठ के समाचार-पत्र के विचारों का पता नहीं चलता। यदि समाचार-पत्र के कुछ विशिष्ट विचार हो, उन विचारों में दृढ़ता हो और बारंबार उन्हीं विचारों का समर्थन हो तो पाठक उन विचारों से असहमत होते हुए भी उस समाचार-पत्र का मन में आदर करता है। मेरुदंडहीन व्यक्ति को कौन पूछेगा। संपादकीय लेखों के विषय समाज के विभिन्न क्षेत्रों को लक्ष्य करके लिखे जाते हैं।
प्रश्नः 2.किन-किन विषयों पर संपादकीय लिखा जाता है?उत्तरःजिन विषयों पर संपादकीय लिखे जाते हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
समसामयिक विषयों पर संपादकीय
दिशा-निर्देशात्मक संपादकीय
संकेतात्मक संपादकीय
दायित्वबोध और नैतिकता की भावना से परिपूर्ण संपादकीय
व्याख्यात्मक संपादकीय
आलोचनात्मक संपादकीय
समस्या संपादकीय
साहित्यिक संपादकीय
सांस्कृतिक संपादकीय
खेल से संबंधित संपादकीय
राजनीतिक संपादकीय।
प्रश्नः 3.संपादकीय का अर्थ बताइए।उत्तरः‘संपादकीय’ का सामान्य अर्थ है-समाचार-पत्र के संपादक के अपने ��िचार। प्रत्येक समाचार-पत्र में संपादक प्रतिदिन ज्वलंतविषयों पर अपने विचार व्यक्त करता है। संपादकीय लेख समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है। संपादकीय के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है। अतएव संपादक को चाहिए कि वह इसमें संतुलित टिप्पणियाँ ही प्रस्तुत करे।
संपादकीय में किसी घटना पर प्रतिक्रिया हो सकती है तो किसी विषय या प्रवृत्ति पर अपने विचार हो सकते हैं, इसमें किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है तो किसी उलझी हुई स्थिति का विश्लेषण हो सकता है।
प्रश्नः 4.संपादकीय पृष्ठ के बारे में बताइए।उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ को समाचार-पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचार-पत्र उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
प्रश्नः 5.अच्छे संपादकीय में क्या गुण होने चाहिए?उत्तरःएक अच्छे संपादकीय में अपेक्षित गुण होने अनिवार्य हैं –
संपादकीय लेख की शैली प्रभावोत्पादक एवं सजीव होनी चाहिए।
भाषा स्पष्ट, सशक्त और प्रखर हो।
चुटीलेपन से भी लेख अपेक्षाकृत आकर्षक बन जाता है।
संपादक की प्रत्येक बात में बेबाकीपन हो।
ढुलमुल शैली अथवा हर बात को सही ठहराना अथवा अंत में कुछ न कहना-ये संपादकीय के दोष माने जाते हैं,अतः संपादक को इनसे बचना चाहिए।
उदाहरण
1. दाऊद पर पाक को और सुबूत
डॉन को सौंप सच्चे पड़ोसी बने जनरल
भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के चेहरे से नकाब नोच फेंका है। मुंबई बमकांड के प्रमुख अभियुक्तों में से एक और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पाक में होने के कुछ और पक्के सुबूत मंगलवार को नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को सौंपे हैं। इनमें प्रमाण के तौर पर दाऊद के दो पासपोर्ट नंबर पाकिस्तान को सौंपे हैं। यही नहीं, भारत सरकार ने दाऊद के पाकिस्तानी ठिकानों से संबंधित कई साक्ष्य भी जनरल साहब को भेजे हैं। इनमें दो पते कराची के हैं। भारत एक लंबे समय से पाकिस्तान से दाऊद के प्रत्यर्पण की माँग करता आ रहा है। अमेरिका भी बहुत पहले साफ कर चुका है कि दाऊद पाक में ही है। पिछले दिनों बुश प्रशासन ने वांछितों की जो सूची जारी की थी, उसमें दाऊद का पता कराची दर्ज है। दरअसल अलग-अलग कारणों से भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए दाऊद अह्म होता जा रहा है। भारत का मानना है कि 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाकों को अं��ाम देने के बाद, फरार डॉन अब भी पाकिस्तान से बैठकर भारत में आतंकवाद को गिजा-पानी मुहैया करा रहा है।
अमेरिका ने दाऊद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। वाशिंगटन का दावा है कि दाऊद कराची से यूरोप और अमेरिकी देशों में ड्रग्स का करोबार भी चला रहा है, लिहाजा उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। तीसरी तरफ, पाकिस्तान के लिए दाऊद इब्राहिम इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में आतंक फैला रहे संगठनों को जोड़े रखने और उनको पैसे तथा हथियार मुहैया कराने में दाऊद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खबर तो यहाँ तक है कि दाऊद ने पाकिस्तान की सियासत में भी दखल देना शुरू कर दिया है और यही वह मुकाम है, जब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कभी-कभी दाऊद खतरनाक लगने लगता है। फिर भी, वह उसे पनाह दिए हुए है। जब भी भारत दाऊद की माँग करता है, पाक का रटा-रटाया जवाब होता है कि वह पाकिस्तान में है ही नहीं पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने कोशिश की कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और इंटरपोल की फेहरिस्तों से दाऊद के पाकिस्तानी पतों को खत्म करा दिया जाए, लेकिन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इसके लिए तैयार नहीं हुए।
भारत के खिलाफ आतंकवाद को पालने-पोसने और शह देने में पाकिस्तान की भूमिका जग-जाहिर है। एफबीआई ने दो दिन पूर्व अमेरिका की एक अदालत में सचित्र साक्ष्यों के साथ एक हलफनामा दायर कर दावा किया है कि पाक के बालाघाट में आतंकी शिविर सक्रिय है। बुधवार को भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद में सरकार ने खुलासा किया कि पाक अधिकृत कश्मीर में 52 आतंकी शिविर चल रहे हैं। क्या जॉर्ज बुश इन बातों पर गौर फरमाएँगे? भारत को भी दाऊद चाहिए और अमेरिका को भी, तो क्यों नहीं बुश प्रशासन पाकिस्तान पर जोर डालता है कि वह डॉन को भारत को सौंपकर एक सच्चे पड़ोसी का हक अदा करे। पाकिस्तान के शासन को भी समझना चाहिए, साँप-साँप होता है जिस दिन उनको डसेगा, तब पता चलेगा।
2. धरती के बढ़ते तापमान का साक्षी बना नया साल
उत्तर भारत में लोगों ने नववर्ष का स्वागत असामान्य मौसम के बीच किया। इस भू-भाग में घने कोहरे और कडाके की ठंड के बीच रोमन कैलेंडर का साल बदलता रहा है, लेकिन 2015 ने खुले आसमान, गरमाहट भरी धूप और हल्की सर्दी के बीच हमसे विदाई ली। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। ब्रिटेन के मौसम विशेषज्ञ इयन कुरी ने तो दावा किया कि बीता महीना ज्ञात इतिहास का सबसे गर्म दिसंबर था। अमेरिका से भी ऐसी ही खबरें आईं। संयुक्त राष्ट्र पहले ही कह चुका था कि 2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा। भारतीय मौसम विभाग ��े मुताबिक उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में आने वाले दिनों में तापमान ज्यादा नहीं बदलेगा। यानी आने वाले दिनों में भी वैसी सर्दी पड़ने की संभावना नहीं है, जैसा सामान्यतः वर्ष के इन दिनों में होता है। दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का अनुमान है कि 2016 में तापमान बढ़ने का क्रम जारी रहेगा और संभवतः नया साल पुराने वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ देगा।
इसकी खास वजह प्रशांत महासागर में जारी एल निनो परिघटना है, जिससे एक बार फिर दक्षिण एशिया में मानसून प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हवा का गरमाना जारी है। इन घटनाक्रमों का ही सकल प्रभाव है कि गुजरे 15 वर्षों में धरती के तापमान में चिंताजनक स्तर तक वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप हो रहे जलवायु परिवर्तन के लक्षण अब स्पष्ट नज़र आने लगे हैं। आम अनुभव है कि ठंड, गर्मी और बारिश होने का समय असामान्य हो गया है। गुजरा दिसंबर और मौजूदा जनवरी संभवत: इसी बदलाव के सबूत हैं। जलवायु परिवर्तन के संकेत चार-पाँच दशक पहले मिलने शुरू हुए। वर्ष 1990 आते-आते वैज्ञानिक इस नतीजे पर आ चुके थे कि मानव गतिविधियों के कारण धरती गरम हो रही है।
उन्होंने चेताया था कि इसके असर से जलवायु बदलेगी, जिसके खतरनाक नतीजे होंगे, लेकिन राजनेताओं ने उनकी बातों की अनदेखी की। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन रोकने की पहली संधि वर्ष 1992 में ही हुई, लेकिन विकसित देशों ने अपनी वचनबद्धता के मुताबिक उस पर अमल नहीं किया। अब जबकि खतरा बढ़ चुका है, तो बीते साल पेरिस में धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्शियस तक सीमित रखने के लिए नई संधि हुई। नया साल यह चेतावनी लेकर आया है कि अगर इस बार सरकारों ने लापरवाही दिखाई तो बदलता मौसम मानव सभ्यता की सूरत ही बदल देगा।
3. कामकाजी महिलाओं को मज़बूती देता फैसला
मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से 26 हफ्ते करने और माँ बनने के बाद दो साल तक घर से काम करने का विकल्प देने का केंद्र का इरादा सराहनीय है। आशा है, इसका चौतरफा स्वागत होगा। सरकार इन प्रावधानों को निजी क्षेत्र में भी लागू करना चाहती है, लेकिन इससे कॉर्पोरेट सेक्टर को आशंकित नहीं होना चाहिए। इन नियमों को लागू कर कंपनियाँ न सिर्फ समाज में लैंगिक समता लाने में सहायक बनेंगी, बल्कि गहराई से देखें तो उन्हें महसूस होगा कि कामकाजी महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल स्थितियाँ खुद उनके लिए भी फायदेमंद हैं। अक्सर माँ बनने के साथ महिलाओं के कॅरियर में बाधा आ जाती है।
अनेक महिलाएँ तब नौकरी छोड़ देती हैं। इसके साथ ही उन्हें ट्रेनिंग और तजुर्बा देने में कंपनियाँ, जो निवेश करती हैं वह बेकार चला जाता है। असल में अनेक कंपनियाँ यही सोचकर नियुक्ति के समय प्रतिभाशाली महिला उम्मीदवारों का चयन नहीं करतीं। इस तरह वे श्रेष्ठतर मानव संसाधन से वंचित रह जाती हैं। नए प्रस्ताव लागू होने पर महिलाएँ नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं होंगी। साथ ही ये नियम बड़े सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप भी हैं। मसलन, बाल विकास की दृष्टि से जीवन के आरंभिक छह महीने बेहद अहम होते हैं। उस दौरान शिशु को माता-पिता के सघन देखभाल की आवश्यकता होती है, इसीलिए अब विकसित देशों में पितृत्व अवकाश भी दिया जाने लगा है, ताकि नवजात बच्चों की तमाम शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी हो सकें।
फिर जब आधुनिक सूचना तकनीक भौतिक दूरियों को अप्रासंगिक करती जा रही है, तो (जहाँ संभव हो) घर से काम करने का विकल्प देने में किसी संस्था/कंपनी को कोई नुकसान नहीं होगा। केंद्रीय सिविल सर्विस सेवा (अवकाश) नियम-1972 के तहत सरकारी महिला कर्मचारियों को छह महीने का मातृत्व अवकाश पहले से मिल रहा है। अब दो साल तक घर से काम करने का विकल्प सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों की नई माँ बनीं महिला कर्मचारियों को देना प्रगतिशील कदम माना जाएगा। .इससे भारत उन देशों में शामिल होगा, जहाँ महिला कर्मचारियों के लिए उदार कायदे अपनाए गए हैं। 42 देशों में 18 हफ्तों से अधिक मातृत्व अवकाश का प्रावधान लागू है। वहाँ का अनुभव है कि इन नियमों से सामाजिक विकास को बढ़ावा मिला, जबकि उत्पादन या आर्थिक विकास पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ। बेशक ऐसा ही भारत में भी होगा। अत: नए नियमों को लागू करने की तमाम औपचारिकताएँ सरकार को यथाशीघ्र पूरी करनी चाहिए।
4. जीवन गढ़ने वाला साहित्यकार
जिन्होंने अपने लेखन के जरिये पिछले करीब पाँच दशकों से गुजराती साहित्य को प्रभावित किया है और लेखन की करीब सभी विधाओं में जिनकी मौजूदगी अनुप्राणित करती है, उन रघुवीर चौधरी को इस वर्ष के ज्ञानपीठ सम्मान के लिए चुनने का फैसला वाकई उचित है। गीता, गाँधी, विनोबा, गोवर्धनराम त्रिपाठी और काका कालेलकर ने उन्हें विचारों की गहराई दी, तो रामदरश मिश्र से उन्होंने हिंदी संस्कार लिया। विज्ञान और अध्यात्म, यथार्थ तथा संवेदना के साथ व्यंग्य की छटा भी उनके लेखन में दिखाई देती है। रघुवीर चौधरी हृदय से कवि हैं। विचारों की गहराई और तस्वीरों-संकेतों का सार्थक प्रयोग अगर तमाशा जैसी उनकी शुरुआती काव्य कृतियों में मिलता है, तो सौराष्ट्र के जीवन पर उनके काव्य में लोकजीवन की अद्भुत छटा दिखती है।
अलबत्ता व्यापक पहचान तो उन्हें जीवन की गहराइयों और रिश्तों की फाँस को परिभाषित करते उनके उपन्यासों ने ही दिलाई। उनके उपन्यास अमृता को गुजराती साहित्य में एक मोड़ घुमा देने वाली घटना माना जा सकता है। इसके जरिये गुजराती साहित्य में अस्तित्ववाद की प्रभावी झलक तो मिली ही, पहली बार गुजराती साहित्य में परिष्कृत भाषा की भी शुरुआत हुई। गुजराती भाषा को मांजने में उनका योगदान दूसरे किसी से भी अधिक है। उपर्वास त्रयी ने रघुवीर चौधरी को ख्याति के साथ साहित्य अकादमी सम्मान दिलाया, तो रुद्र महालय और सोमतीर्थ जैसे ऐतिहासिक उपन्यास मानक बनकर सामने आए।
पर रघुवीर चौधरी का परिचय साहित्य के दायरे से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से लेकर नवनिर्माण आंदोलन तक में भागीदारी उनके एक सजग-जिम्मेदार नागरिक होने का परिचायक है, जिसका सुबूत अखबारों में उनके स्तंभ लेखन से भी मिलता है। साहित्य अकादमी से लेकर प्रेस काउंसिल और फ़िल्म फेस्टिवल तक में उनकी भूमिका उनकी रुचि वैविध्य का प्रमाण है। आरक्षण पर उन्होंने किताब लिखी है; हालांकि आरक्षण के मामले में गांधी और अंबेडकर के समर्थक रघुवीर चौधरी पाटीदार आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं। अपने गाँव को सौ फीसदी साक्षर बनाने से लेकर कृषि कर्म में उनकी सक्रियता भी उन्हें गांधी की माटी के एक सच्चे गांधी के तौर पर प्रतिष्ठित करती है।
5. अखंड भारत की सुंदर कल्पना
भाजपा महासचिव राम माधव ने अल जजीरा को दिए एक इंटरव्यू में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर अखंड भारत के निर्माण की जो इच्छा जताई है, वह नई न होने के बावजूद चौंकाती है, तो उसकी वजह है। तीनों देशों ��ो एक करने की इच्छा बहुतेरे लोग जताते हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव तो जब-तब भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ की बात करते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस संकल्पना के पीछे, राम माधव पिछले साल तक भी जिसके प्रवक्ता थे, वस्तुतः वृहद हिंदू राष्ट्र की वह संकल्पना है, जो विभाजन के कारण साकार नहीं हो सकी लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र मानने वाले राम माधव यह उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क आपसी रजामंदी से संघ और भाजपा की इच्छा के अनुरूप वृहद हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए तैयार हो जाएँगे? यही नहीं, राम माधव को इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के उन नेताओं की भी राय ले लेनी चाहिए, जो केंद्र की ��ौजूदा सरकार की रीति-नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोगों को पाकिस्तान भेज देने की बात करते हैं।
अलबत्ता इच्छा चाहे वृहद हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने की हो या भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ बनाने की, यथार्थ के आईने में यह व्यर्थ की कवायद ही ज़्यादा है। आज़ादी के बाद भारत ने लोकतांत्रिक परंपरा को मज़बूत करते हुए विकास के रास्ते पर लगातार कदम बढ़ाया, जबकि पाकिस्तान सामंतवादी व्यवस्था में जकड़ा रहा, जिसके सुबूत सैन्यतंत्र की मज़बूती, लोकतंत्र की कमजोरी और कट्टरवाद तथा आतंकवाद के मज़बूत होने के रूप में दिखाई पड़ी। बांग्लादेश ने ज़रूर अपने स्तर पर कमोबेश प्रगति की, पर कट्टरता के मामले में वह पीछे नहीं है। लिहाजा इन दो देशों को अपने साथ जोड़ने से भारत पर बोझ ही बढ़ेगा। जब सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात करते हुए छोटी इकाइयों को तरजीह दी जा रही है, तब तीन देशों का महासंघ प्रशासनिक दृष्टि से कितनी बड़ी चुनौती होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। लिहाजा यथार्थ को स्वीकारते हुए इन तीनों देशों के आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करना ही अधिक व्यावहारिक लगता है।
6. संपादकीय
प्रत्येक जीव में अपने प्रति सुरक्षा का भाव होना एक सहज वृत्ति है। पराक्रमी और शक्तिशाली व्यक्ति या जीव से लेकर निरीह प्राणी तक, जिस किसी में भी चेतना होती है, सभी अपने लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश या अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण की जद्दोजहद में जुटे दिखाई पड़ते हैं। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो, अपने दैनिक जीवन में ही इसके कई उदाहरण दिखाई पड़ेंगे लेकिन सुरक्षित और अनुकूल परिस्थिति का निर्माण बिना जोखिम उठाये संभव नहीं होता है। यदि किसी को सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण बिना किसी संघर्ष के मिल भी जाए तो वह जीवन अर्थहीन माना जाएगा।
ध्यान रहे कि संघर्ष से न डरने वालों का जीवन सुगमतापूर्वक व्यतीत सदैव समस्याओं की दलदल में फँसता रहता है। कर्मपथ पर सबसे अधिक भरोसा स्वयं पर करना होता है, लेकिन परिस्थितियाँ आने पर दूसरों के सहयोग की भी ज़रूरत होती है। लेकिन यह सनद रहे कि केवल दूसरों से ही सहयोग लेना उचित नहीं होता बल्कि सहयोग देने के लिए भी तत्पर रहना होता है। हालांकि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दूसरों से सहयोग लेने की आदत पड़ जाती है, जो उन्हें पराश्रित बना देती है और इस प्रकार व्यक्ति न केवल कमज़ोर होता जाता है बल्कि स्वयं के कौशलों को भी क्षीण करता जाता है।
लक्ष्य की ओर बढ़ते हर युवा को यह समझना चाहिए कि जीवन में आदर्श परिस्थितियों जैसा कभी कुछ नहीं होता। कभी धाराएँ अपनी दिशा में तो कभी प्रतिकूल दिशा में होती है। ऐसे में, हर व्यक्ति का यही कर्तव्य है कि वह बगैर हिम्मत हारे, पूरी क्षमता से अपनी ��तवार चलाता रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व्यक्ति के आत्मबल पर खूब जोर देते थे। याद रहे कि मुश्किल परिस्थितियों में व्यक्ति का आत्मबल ही सबसे अचूक हथियार होता है। हमें अपने आत्मबल को इतना ऊँचा और अपने संकल्प को इतना दृढ़ बना लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में हमारी मानसिक शांति पर आँच न आ सके। हर युवा को यह समझ लेना चाहिए कि कोई भी परिस्थिति इतनी कठिन नहीं होती कि वह व्यक्ति के अस्तित्व पर हावी हो जाए।
7. व्यक्ति पूजा की संस्कृति से बाहर निकलें पार्टियाँ
अपने 131वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। पार्टी की महाराष्ट्र इकाई की पत्रिका ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे लेखों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अतीत को उकेरा गया और जवाहर लाल नेहरू की कुछ नीतियों की ओलाचना की गई। नेहरू के संबंध में कहा गया कि अगर वे सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से चलते तो चीन, तिब्बत तथा जम्मू-कश्मीर के मामलों में स्थितियाँ कुछ अलग होतीं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। ऐसी राय रखने वाले लोग हमेशा मौजूद रहे हैं। यह भी सही है कि प्रथम प्रधानमंत्री के अनेक समकालीन नेता तथा इतिहासकार यह नहीं मानते-जैसाकि ‘कांग्रेस दर्शन’ के लेख में कहा गया है-कि नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण थे या उनमें संवादहीनता थी। वैसे गुजरे दौर के बारे में बौद्धिक एवं राजनीतिक दायरे में अलग-अलग समझ सामने आए, इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह ऐसे मामलों पर पार्टी के अंदर सभी विचारों को व्यक्त होने का मौका देती। उससे पार्टी का वैचारिक-यहाँ तक सांगठनिक आधार भी-अधिक व्यापक होता।
हालांकि, सोनिया गांधी के बारे में कही गई बातों के पीछे दुर्भावना तलाशी जा सकती है, लेकिन बेहतर नज़रिया यह होगा कि पार्टी इन बातों का सीधे सामना करे, इसलिए कि अगर (जैसाकि लेख में अध्यक्ष का कोई दोष नहीं है। यह कहना कि पार्टी में शामिल होने के महज 62 दिन बाद वे कांग्रेस की अध्यक्ष बन गईं, सोनिया से कहीं ज्यादा कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति पर टिप्पणी है, जिसकी एक परिवार पर निर्भरता जग-जाहिर है लेकिन ऐसा अब ज़्यादातर पार्टियों के साथ हो चुका है।
दरअसल, अपने देश में राजनीतिक दलों ने अपने नेता को ‘सुप्रीमो’ यानी सबसे और तमाम सवालों से ऊपर मानने तथा वंशवादी उत्तराधिकार की ऐसी संस्कृति अपना रखी है, जिससे उनके भीतर लोकतांत्रिक विचार-विमर्श अवरुद्ध हो गया है। इस क���रण उन दलों को गाहे-��-गाहे शार्मिंदगियों से भी गुजरना पड़ता है। फिलहाल, ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ है। इस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया अगर ‘कांग्रेस दर्शन’ के संपादक की बर्खास्तगी तक सीमित रह गई, तो यही कहा जाएगा कि उसने असली समस्या से आँखें चुरा लीं। सही सबक यह होगा कि पार्टी अपने भीतर इतिहास और वैचारिक सवालों पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित करे तथा किसी पूर्व या वर्तमान नेता को आलोचना से ऊपर न माने।
8. हिंसक आंदोलनों पर अब लगाम लगाने का वक्त
मामला गुजरात का था, लेकिन हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और तोड़फोड़ की ताजा पृष्ठभूमि में यह सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ आया। उद्योगपतियों की संस्था एसोचैम का अनुमान है कि हरियाणा में इस आंदोलन के दौरान 25,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। पिछले वर्ष गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के समय भी बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। ऐसा ही राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के वक्त हुआ। ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण पाने का जाट अथवा दूसरी जातियों का दावा कितना औचित्यपूर्ण है, यह दीगर सवाल है। मगर लोग अराजकता जैसी हालत पैदा करने पर उतर आएँ, तो उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। लोकतांत्रिक समाज में वह सिरे से अस्वीकार्य होना चाहिए।
यह बात दरअसल तमाम किस्म के आंदोलनों पर लागू होती है, इसलिए यह संतो�� की बात है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को अति-गंभीरता से लिया है। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ पटेल समुदाय के नेता हार्दिक पटेल पर दायर राजद्रोह मामले की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान उसने यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की, ‘हम लोगों को राष्ट्र की संपत्ति जलाने और आंदोलन के नाम पर देश को बंधक बनाने की इजाजत नहीं दे सकते।’ कोर्ट ने कहा कि वह सार्वजनिक संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने वाले लोगों को दंडित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा।
न्यायाधीशों ने संकेत दिया कि इसके तहत संभव है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों को क्षतिपूर्ति देनी पड़े। असल में यातायात रोकने से होने वाली दिक्कतों पर भी इसके साथ ही विचार करने की आवश्यकता है। उससे हजारों लोगों के समय और धन की बर्बादी होती है और उन्हें एवं उनके परिजनों को गहरी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। अपनी माँग मनवाने के लिए दूसरों को ऐसी मुसीबत में डालने का यह चलन खासकर आरक्षण की माँग को लेकर होने वाले आंदोलनों में बढता गया है। इस पर तुरंत रोक लगाने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त र��ख से अब इस दिशा में प्रभावी पहल की उम्मीद बंधी है। वैसे बेहतर होता राजनीतिक दल आम-सहमति बनाते और संसद इस बारे में एक व्यापक कानून बनाती। किंतु वोट बैंक की चिंता में रहने वाली पार्टियों से यह उम्मीद करना बेमतलब है, इसीलिए अनेक दूसरे मामलों की तरह इस मुद्दे पर भी आशा न्यायपालिका से ही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्नः 1.संपादक के दो प्रमुख कार्य बताइए। (CBSE-2011, 2012, 2015)उत्तरःसंपादक के दो प्रमुख कार्य हैं –(क) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का चयन कर प्रकाशन योग्य बनाना।(ख) तात्कालिक घटनाओं पर संपादकीय लेख लिखना।
प्रश्नः 2.संपादकीय किसे कहते हैं? (CBSE-2009, 2010, 2014)उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ पर तत्कालीन घटनाओं पर संपादक की टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है। इसे अखबार की आवाज़ माना जाता है।
प्रश्नः 3.संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं दिया जाता? (CBSE-2009, 2014)उत्तरःसंपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। यह व्यक्ति की टिप्पणी नहीं होती। अपितु समूह का पर्याय होता है। इसलिए संपादकीय में लेखक का नाम नहीं दिया जाता।
प्रश्नः 4.संपादकीय का महत्त्व समझाइए। (CBSE-2016)उत्तरःसंपादकीय तत्कालीन घटनाक्रम पर समूह की राय व्यक्त करता है। वह निष्पक्ष होकर उस पर अपने सुझाव भी देता है। मज़बूत लोकतंत्र में संपादकीय की महती आवश्यकता है।
प्रश्नः 5.समाचार पत्र के किस पृष्ठ पर विज्ञापन देने की परंपरा नहीं है?उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ।
प्रश्नः 6.सामान्यतः किस दिन संपादकीय नहीं छपता?उत्तरःरविवार।
प्रश्नः 7.संपादकीय का उददेश्य क्या है?उत्तरःसंपादकीय का उद्देश्य विषय विशेष पर अपने विचार पाठक व सरकार तक पहुँचाना है।
प्रश्नः 8.संपादकीय पृष्ठ पर क्या-क्या होता है?उत्तरःसंपादकीय, संपादक के नाम पत्र, आलेख, विचार आदि।
प्रश्नः 9.भारत में संपादकीय पृष्ठ पर कार्टून न छपने का क्या कारण है?उत्तरःकार्टून हास्य व्यंग्य का प्रतीक है। यह संपादकीय पृष्ठ की गंभीरता को कम करता है।
via Blogger https://ift.tt/2YHCMDQ
0 notes
Text
क्या है शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट, जिसके तहत आने वाली दुकानों को लॉकडाउन में खोलने की मिली मंजूरी
New Post has been published on https://apzweb.com/%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%b6%e0%a5%89%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%8f%e0%a4%82%e0%a4%a1-%e0%a4%8f%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%87%e0%a4%ac%e0%a5%8d/
क्या है शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट, जिसके तहत आने वाली दुकानों को लॉकडाउन में खोलने की मिली मंजूरी
दुकानों पर धक्का-मुक्की न करने की भी हिदायत
देश में जारी लॉकडाउन (Lockdown Part 2) के बीच शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (What is Shop & Establishment Act) के तहत रजिस्टर्ड दुकानों को खोलने की मंजूरी मिल गई है. आइए जानें इसके बारे में सबकुछ
नई दिल्ली. कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Covid19) के मद्देनज़र लागू लॉकडाउन (Lockdown Part2) में छूट की दूसरी किश्त शनिवार से लागू हो गई है. इसके तहत शर्तों के साथ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में गैरजरूरी सामानों की दुकानें भी खुल जाएंगी. गृहमंत्रालय ने शुक्रवार को देर रात जारी आदेश में सभी रजिस्टर्ड दुकानें खोलने की अनुमति दे दी है. सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (Shops & Establishment Act) ) में रजिस्टर्ड दुकानों को खोलने की मंजूरी है.
शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (What is (Shops & Establishment Act) )- टैक्स एक्सपर्ट गौरी चड़ढा कहती हैं कि अगर आप कोई भी बिजनेस करते हैं या दुकान खोलते है तो उसके लिए ये लाइसेंस जरूरी है. अगर आप घर पर बैठकर यानी वर्क फ्रॉर्म होम करते हैं तो भी ये लाइसेंस जरूरी है. दुकान, सभी तरह की कॉमर्शियल गितिविधियां, रेस्ट्रोरेंट, होटल, थिएटर, सार्वजनकि मनोरंजन, रिटेल व्यापार या फिर भी किसी तरह का कोई बिजनेस हो.
यह एक ऐसा एक्ट है. जिसे मजदूरी का भुगतान, छुट्टियां, सर्विस के नियम, अवकाश और काम की अन्य चीजों की तय करना है. यह सरकार के लेबर डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है. इस एक्ट के दायरे में वो सभी बिजनेस आते है जहां किसी भी प्रकार का बिजनेस का फिर व्यवसाय किया जा रहा है.
इसके अलावा इसमें सोसाइटी, चेरिटेबल ट्रस्ट, शैषणिक ��ंस्थाएं (जिन्हें पैसा कमाने लिए चलाया जा रहा है) भी आते है. हालांकि, ये नियम फैक्ट्री पर लागू नहीं होता है.एक्ट में दी गए बिजनेस और दुकानों की परिभाषा >> कोई भी व्यावसायिक क्षेत्र, जैसे कि बैंकिंग, ट्रेडिंग या इंश्योरेंस के लिए लाइसेंस लेना जरूरी है. >> कोई भी शॉप्स जहां लोग काम करते हैं या कार्यालय का काम करने या सर्विस देने के लिए लगे हुए हैं. >> होटल, रेस्टोरेंट और बोर्डिंग हाउस या एक छोटा कैफे या चाय की दुकान के लिए >> मनोरंजन के लिए खोली दुकान, सिनेमाघर और सिनेमा हॉल या मनोरंजन पार्क के लिए >> इस एक्ट की परिभाषा हर राज्य में अलग-अलग हो सकती है. क्योंकि राज्य सरकार अपने क्षेत्र और >> समय-समय पर इसमें बदलाव करती रहती है. अगर आसान शब्दों में कहें तो जिन्हें राज्य में अपना >> व्यवसाय चलाने के लिए अधिनियम के तहत रजिस्टर करने की आवश्यकता होती है.
इससे जुड़ी जरूरी बातें
(1) अगर आप दुकान शुरू कर रहे हैं, तो आपको अपनी स्थापना के शुरू होने के 30 दिनों के भीतर आपको इस अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए फाइल करना होगा.इसके लिए बैंक में चालू खाता खोलने सहित कई कारणों से यह रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है. यह लाइसेंस, भारत में व्यवसाय चलाने के लिए आवश्यक अन्य रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करने के लिए एक मूल लाइसेंस और आपके व्यवसाय के प्रमाण के रूप में बनता है.
(2) रोजाना और साप्ताहिक कामों के घंटे का ब्यौरा रखना जरूरी है.
(3) महिलाओं और बच्चों के काम के लिए नियम
(4) इसमें बिजनेस और उसमें काम करने वालों के लिए सभी नियम तय किए गए है.
(5) जब कोई व्यक्ति दुकान खोलता या फिर कोई भी बिजनेस करता है तो वो कानूनी तौर पर अपने कर्ज़ और नुकसान के लिए उत्तरदायी होता है. लेकिन शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट में रजिस्ट्रेशन के बात आपकी निजी संपत्ति को उस बिजनेस में शामिल नहीं किया जाता है. मतलब साफ है कि अगर कोई नुकसान होता है तो आपके घर और अन्य प्रॉपर्टी पर कोई असर नहीं होगा.
ये भी पढ़ें-लॉकडाउन में आपकी जरूरत का सामान घर पहुंचाने के लिए सरकार ने बनाया खास प्लान!
News18 Hindi पर सबसे पहले Hindi News पढ़ने के लिए हमें यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें. देखिए मनी से जुड़ी लेटेस्ट खबरें.
First published: April 25, 2020, 8:52 AM IST
function serchclick() var seacrhbox = document.getElementById("search-box"); if (seacrhbox.style.display === "block") seacrhbox.style.display = "none"; else seacrhbox.style.display = "block";
document.addEventListener("DOMContentLoaded", function() document.getElementById("search-click").addEventListener("click", serchclick); /* footer brand slider start */ new Glide(document.querySelector('.ftrchnl-in-wrap'), type: 'carousel', perView: 8, ).mount(); ); ! function(f, b, e, v, n, t, s) if (f.fbq) return; n = f.fbq = function() n.callMethod ? n.callMethod.apply(n, arguments) : n.queue.push(arguments) ; if (!f._fbq) f._fbq = n; n.push = n; n.loaded = !0; n.version = '2.0'; n.queue = []; t = b.createElement(e); t.async = !0; t.src = v; s = b.getElementsByTagName(e)[0]; s.parentNode.insertBefore(t, s) (window, document, 'script', 'https://connect.facebook.net/en_US/fbevents.js'); fbq('init', '482038382136514'); fbq('track', 'PageView'); Source link
#क्या है शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट#जिसके तहत आने वाली दुकानों को लॉकडाउन में खोलने की मिली मंजूरी-What is shop and establishment act in hindi MHA permits registered shops sell#News
0 notes
Text
आयोग से बनाए परीक्षा केंद्र संदेह के दायरे में, सीबीआइ ने केंद्रों की सूची कब्जे में ली, पीसीएस 2015 में पेपर लीक प्रकरण में खंगाल रहे जांच अधिकारी
आयोग से बनाए परीक्षा केंद्र संदेह के दायरे में, सीबीआइ ने केंद्रों की सूची कब्जे में ली, पीसीएस 2015 में पेपर लीक प्रकरण में खंगाल रहे जांच अधिकारी
इलाहाबाद : उप्र लोक सेवा आयोग से पांच साल में हुई भर्तियों की जांच सिर्फ इसलिए शुरू हुई थी कि दाल में कुछ काला होने का आरोप था। लेकिन, जांच में सामने आ रहा है कि पूरी दाल ही काली है। किसी बड़े नतीजे की ओर बढ़ रहे सीबीआइ अफसरों को अब यह पता चला है कि पीसीएस सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में जिन केंद्रों का निर्धारण हुआ, वह भी नियम विरुद्ध था। परीक्षा केंद्र में मानक को ताख पर रखा गया। तत्कालीन शासन भी मौन साधे रहा।एसपी राजीव रंजन के निर्देशन में 50 से अधिक सीबीआइ अफसरों ने परीक्षा केंद्रों की सूची कब्जे में ले ली है। आयोग से यह जानकारी ली जा रही है कि परीक्षा केंद्र बनाने के नियम क्या है, केंद्र निर्धारण के लिए कौन जाता है और किन मानकों का ध्यान रखा जाता है। सीबीआइ को यह भी पता चला है कि पांच साल के दौरान कई डिबार हुए ��रीक्षा केंद्रों को पुन: केंद्र बनाया गया। पता लगाया जा है कि इसकी अनुमति किसने दी। परीक्षा केंद्र निर्धारण के लिए अंतिम रूप से कौन उत्तरदायी है। पीसीएस 2015 परीक्षा में पेपर लीक प्रकरण को भी सीबीआइ ने गहन छानबीन का बिंदु बनाया है। जिस केंद्र से पेपर लीक हुआ उसके प्रबंधक और प्राचार्य कौन थे तथा उप्र लोक सेवा आयोग की इसकी क्या भूमिका थी।ज्यादातर अनुभागों की ली गई तलाशी, कई रिकार्ड सील
इलाहाबाद : उप्र लोक सेवा आयोग से हुई भर्तियों की जांच में किसी बड़े नतीजे की ओर बढ़ रही सीबीआइ ने रविवार को अचानक कई अनुभागों में पहुंचकर आवश्यक रिकॉर्ड कब्जे में ले लिया। आयोग के कुल 34 अनुभागों में सीबीआइ की टीमें ज्यादातर में प्रवेश कर गईं।
प्रतियोगी परीक्षाओं ही नहीं, सीधी भर्ती के भी कई महत्वपूर्ण रिकॉर्ड सील कर दिए। जिन कर्मचारियों को रविवार के अवकाश के बावजूद अनुभागों में आने के लिए पहले से कहा गया था, उनसे पूछताछ हुई। जांच टीम ने अब अनुभागवार परीक्षा प्रक्रिया के चार्ट बनाकर काम शुरू कर दिया है। एसपी राजीव रंजन के निर्देशन में करीब पांच दर्जन जांच अधिकारी कई दिनों से आयोग में हैं और अभिलेखों का परीक्षण कर रहे हैं। इस बीच पीसीएस 2015 में अभ्यर्थियों के गलत चयन से संबंधित अभिलेख हाथ लगने पर जांच टीमों ने सक्रियता बढ़ा दी। सीबीआइ की छह टीमें लगातार अनुभागों में जाकर वहां से रिकॉर्ड जुटाती रहीं। रविवार को आयोग के परीक्षा विभाग में सीबीआइ के अधिकारी कई अनुभागों में पहुंचे। वहां पांच साल के दौरान हुई लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाओं, सीधी भर्ती के रिकॉर्ड देखे। पर्यवेक्षक तय करने की प्रक्रिया, पर्यवेक्षकों की सूची, परीक्षकों की सूची, विशेषज्ञों की सूची, साक्षात्कार बोर्ड और भर्ती संबंधित विज्ञापनों का चार्ट बनाया। आयोग में मौजूद अनुभाग अधिकारियों से पूछताछ की गई। इस बीच साक्षात्कार अनुभाग में पहुंचकर जांच अधिकारियों ने साक्षात्कार बोर्ड गठन की प्रक्रिया की जानकारी जुटा ली। सूत्र बताते हैं कि बार-बार रिकॉर्ड न खंगालना पड़े इसलिए अब सभी प्रक्रिया का चार्ट बनाकर क्रमवार जांच शु़रू होगी। जांच में तेजी की उम्मीद लगाई जा रही है।विज्ञापन में बदलाव का भी संदेह : सीबीआइ को जांच और पूछताछ में जानकारी हुई है कि उप्र लोक सेवा आयोग में शासन से मंजूर विज्ञापन में भी बदलाव किए गए। पदों व अर्हता को लेकर स्थानीय स्तर पर छेड़छाड़ की गई और तत्कालीन शासन भी इस पर मौन साधे रहा। हालांकि संदेह ही हुआ है। पुख्ता प्रमाण को कई से पूछताछ होगी।
Read full post at: http://www.cnnworldnews.info/2018/05/2015_42.html
0 notes
Text
मंत्र:प्रेमचन्द, महान रचनाकार को उनकी जयंती पर नमन🙏
संध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखायी दिये। डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था। डोली औषाधालय के सामने आकर रूक गयी। बूढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर पड़ी हुई चिक से झॉँका। ऐसी साफ-सुथरी जमीन पर पैर रखते हुए भय हो रहा था कि कोई घुड़क न बैठे। डाक्टर साहब को खड़े देख कर भी उसे कुछ कहने का साहस न हुआ।
डाक्टर साहब ने चिक के अंदर से गरज कर कहा—कौन है? क्या चाहता है?
डाक्टर साहब ने हाथ जोड़कर कहा— हुजूर बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा लड़का कई दिन से…….
डाक्टर साहब ने सिगार जला कर कहा—कल सबेरे आओ, कल सबेरे, हम इस वक्त मरीजों को नहीं देखते।
बूढ़े ने घुटने टेक कर जमीन पर सिर रख दिया और बोला—दुहाई है सरकार की, लड़का मर जायगा! हुजूर, चार दिन से ऑंखें नहीं…….
डाक्टर चड्ढा ने कलाई पर नजर डाली। केवल दस मिनट समय और बाकी था। गोल्फ-स्टिक खूँटी से उतारने हुए बोले—कल सबेरे आओ, कल सबेरे; यह हमारे खेलने का समय है।
बूढ़े ने पगड़ी उतार कर चौखट पर रख दी और रो कर बोला—हूजुर, एक निगाह देख लें। बस, एक निगाह! लड़का हाथ से चला जायगा हुजूर, सात लड़कों में यही एक बच रहा है, हुजूर। हम दोनों आदमी रो-रोकर मर जायेंगे, सरकार! आपकी बढ़ती होय, दीनबंधु!
ऐसे उजड़ड देहाती यहॉँ प्राय: रोज आया करते थे। डाक्टर साहब उनके स्वभाव से खूब परिचित थे। कोई कितना ही कुछ कहे; पर वे अपनी ही रट लगाते जायँगे। किसी की सुनेंगे नहीं। धीरे से चिक उठाई और बाहर निकल कर मोटर की तरफ चले। बूढ़ा यह कहता हुआ उनके पीछे दौड़ा—सरकार, बड़ा धरम होगा। हुजूर, दया कीजिए, बड़ा दीन-दुखी हूँ; संसार में कोई और नहीं है, बाबू जी!
मगर डाक्टर साहब ने उसकी ओर मुँह फेर कर देखा तक नहीं। मोटर पर बैठ कर बोले—कल सबेरे आना।
मोटर चली गयी। बूढ़ा कई मिनट तक मूर्ति की भॉँति निश्चल खड़ा रहा। संसार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसी की जान की ��ी परवाह नहीं करते, शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था। सभ्य संसार इतना निर्मम, इतना कठोर है, इसका ऐसा मर्मभेदी अनुभव अब तक न हुआ था। वह उन पुराने जमाने की जीवों में था, जो लगी हुई आग को बुझाने, मुर्दे को कंधा देने, किसी के छप्पर को उठाने और किसी कलह को शांत करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। जब तक बूढ़े को मोटर दिखायी दी, वह खड़ा टकटकी लागाये उस ओर ताकता रहा। शायद उसे अब भी डाक्टर साहब के लौट आने की आशा थी। फिर उसने कहारों से डोली उठाने को कहा। डोली जिधर से आयी थी, उधर ही चली गयी। चारों ओर से निराश हो कर वह डाक्टर चड्ढा के पास आया था। इनकी बड़ी तारीफ सुनी थी। यहॉँ से निराश हो कर फिर वह किसी दूसरे डाक्टर के पास न गया। किस्मत ठोक ली!
उसी रात उसका हँसता-खेलता सात साल का बालक अपनी बाल-लीला समाप्त करके इस संसार से सिधार गया। बूढ़े मॉँ-बाप के जीवन का यही एक आधार था। इसी का मुँह देख कर जीते थे। इस दीपक के बुझते ही जीवन की अँधेरी रात भॉँय-भॉँय करने लगी। बुढ़ापे की विशाल ममता टूटे हुए हृदय से निकल कर अंधकार आर्त्त-स्वर से रोने लगी।
2
कई साल गुजर गये। डाक्टर चड़ढा ने खूब यश और धन कमाया; लेकिन इसके साथ ही अपने स्वास्थ्य की रक्षा भी की, जो एक साधारण बात थी। यह उनके नियमित जीवन का आर्शीवाद था कि पचास वर्ष की अवस्था में उनकी चुस्ती और फुर्ती युवकों को भी लज्जित करती थी। उनके हरएक काम का समय नियत था, इस नियम से वह जौ-भर भी न टलते थे। बहुधा लोग स्वास्थ्य के नियमों का पालन उस समय करते हैं, जब रोगी हो जाते हें। डाक्टर चड्ढा उपचार और संयम का रहस्य खूब समझते थे। उनकी संतान-संध्या भी इसी नियम के अधीन थी। उनके केवल दो बच्चे हुए, एक लड़का और एक लड़की। तीसरी संतान न हुई, इसीलिए श्रीमती चड्ढा भी अभी जवान मालूम होती थीं। लड़की का तो विवाह हो चुका था। लड़का कालेज में पढ़ता था। वही माता-पिता के जीवन का आधार था। शील और विनय का पुतला, बड़ा ही रसिक, बड़ा ही उदार, विद्यालय का गौरव, युवक-समाज की शोभा। मुखमंडल से तेज की छटा-सी निकलती थी। आज उसकी बीसवीं सालगिरह थी।
संध्या का समय था। हरी-हरी घास पर कुर्सियॉँ बिछी हुई थी। शहर के रईस और हुक्काम एक तरफ, कालेज के छात्र दूसरी तरफ बैठे भोजन कर रहे थे। बिजली के प्रकाश से सारा मैदान जगमगा रहा था। आमोद-प्रमोद का सामान भी जमा था। छोटा-सा प्रहसन खेलने की त���यारी थी। प्रहसन स्वयं कैलाशनाथ ने लिखा था। वही मुख्य एक्टर भी था। इस समय वह एक रेशमी कमीज पहने, नंगे सिर, नंगे पॉँव, इधर से उधर मित्रों की आव भगत में लगा हुआ था। कोई पुकारता—कैलाश, जरा इधर आना; कोई उधर से बुलाता—कैलाश, क्या उधर ही रहोगे? सभी उसे छोड़ते थे, चुहलें करते थे, बेचारे को जरा दम मारने का अवकाश न मिलता था। सहसा एक रमणी ने उसके पास आकर पूछा—क्यों कैलाश, तुम्हारे सॉँप कहॉँ हैं? जरा मुझे दिखा दो।
कैलाश ने उससे हाथ मिला कर कहा—मृणालिनी, इस वक्त क्षमा करो, कल दिखा दूगॉँ।
मृणालिनी ने आग्रह किया—जी नहीं, तुम्हें दिखाना पड़ेगा, मै आज नहीं मानने की। तुम रोज ‘कल-कल’ करते हो।
मृणालिनी और कैलाश दोनों सहपाठी थे ओर एक-दूसरे के प्रेम में पगे हुए। कैलाश को सॉँपों के पालने, खेलाने और नचाने का शौक था। तरह-तरह के सॉँप पाल रखे थे। उनके स्वभाव और चरित्र की परीक्षा करता रहता था। थोड़े दिन हुए, उसने विद्यालय में ‘सॉँपों’ पर एक मार्के का व्याख्यान दिया था। सॉँपों को नचा कर दिखाया भी था! प्राणिशास्त्र के बड़े-बड़े पंडित भी यह व्याख्यान सुन कर दंग रह गये थे! यह विद्या उसने एक बड़े सँपेरे से सीखी थी। साँपों की जड़ी-बूटियॉँ जमा करने का उसे मरज था। इतना पता भर मिल जाय कि किसी व्यक्ति के पास कोई अच्छी जड़ी है, फिर उसे चैन न आता था। उसे लेकर ही छोड़ता था। यही व्यसन था। इस पर हजारों रूपये फूँक चुका था। मृणालिनी कई बार आ चुकी थी; पर कभी सॉँपों को देखने के लिए इतनी उत्सुक न हुई थी। कह नहीं सकते, आज उसकी उत्सुकता सचमुच जाग गयी थी, या वह कैलाश पर उपने अधिकार का प्रदर्शन करना चाहती थी; पर उसका आग्रह बेमौका था। उस कोठरी में कितनी भीड़ लग जायगी, भीड़ को देख कर सॉँप कितने चौकेंगें और रात के समय उन्हें छेड़ा जाना कितना बुरा लगेगा, इन बातों का उसे जरा भी ध्यान न आया।
कैलाश ने कहा—नहीं, कल जरूर दिखा दूँगा। इस वक्त अच्छी तरह दिखा भी तो न सकूँगा, कमरे में तिल रखने को भी जगह न मिलेगी।
एक महाशय ने छेड़ कर कहा—दिखा क्यों नहीं देते, जरा-सी बात के लिए इतना टाल-मटोल कर रहे हो? मिस गोविंद, हर्गिज न मानना। देखें कैसे नहीं दिखाते!
दूसरे महाशय ने और रद्दा चढ़ाया—मिस गोविंद इतनी सीधी और भोली हैं, तभी आप इतना मिजाज करते हैं; दूसरे सुंदरी होती, तो ��सी बात पर बिगड़ खड़ी होती।
तीसरे साहब ने मजाक उड़ाया—अजी बोलना छोड़ देती। भला, कोई बात ��ै! इस पर आपका दावा है कि मृणालिनी के लिए जान हाजिर है।
मृणालिनी ने देखा कि ये शोहदे उसे रंग पर चढ़ा रहे हैं, तो बोली—आप लोग मेरी वकालत न करें, मैं खुद अपनी वकालत कर लूँगी। मैं इस वक्त सॉँपों का तमाशा नहीं देखना चाहती। चलो, छुट्टी हुई।
इस पर मित्रों ने ठट्टा लगाया। एक साहब बोले—देखना तो आप सब कुछ चाहें, पर दिखाये भी तो?
कैलाश को मृणालिनी की झेंपी हुई सूरत को देखकर मालूम हुआ कि इस वक्त उनका इनकार वास्तव में उसे बुरा लगा है। ज्योंही प्रीति-भोज समाप्त हुआ और गाना शुरू हुआ, उसने मृणालिनी और अन्य मित्रों को सॉँपों के दरबे के सामने ले जाकर महुअर बजाना शुरू किया। फिर एक-एक खाना खोलकर एक-एक सॉँप को निकालने लगा। वाह! क्या कमाल था! ऐसा जान पड़ता था कि वे कीड़े उसकी एक-एक बात, उसके मन का एक-एक भाव समझते हैं। किसी को उठा लिया, किसी को गरदन में डाल लिया, किसी को हाथ में लपेट लिया। मृणालिनी बार-बार मना करती कि इन्हें गर्दन में न डालों, दूर ही से दिखा दो। बस, जरा नचा दो। कैलाश की गरदन में सॉँपों को लिपटते देख कर उसकी जान निकली जाती थी। पछता रही थी कि मैंने व्यर्थ ही इनसे सॉँप दिखाने को कहा; मगर कैलाश एक न सुनता था। प्रेमिका के सम्मुख अपने सर्प-कला-प्रदर��शन का ऐसा अवसर पाकर वह कब चूकता! एक मित्र ने टीका की—दॉँत तोड़ डाले होंगे।
कैलाश हँसकर बोला—दॉँत तोड़ डालना मदारियों का काम है। किसी के दॉँत नहीं तोड़ गये। कहिए तो दिखा दूँ? कह कर उसने एक काले सॉँप को पकड़ लिया और बोला—‘मेरे पास इससे बड़ा और जहरीला सॉँप दूसरा नहीं है, अगर किसी को काट ले, तो आदमी आनन-फानन में मर जाय। लहर भी न आये। इसके काटे पर मन्त्र नहीं। इसके दॉँत दिखा दूँ?’
मृणालिनी ने उसका हाथ पकड़कर कहा—नहीं-नहीं, कैलाश, ईश्वर के लिए इसे छोड़ दो। तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ।
इस पर एक-दूसरे मित्र बोले—मुझे तो विश्वास नहीं आता, लेकिन तुम कहते हो, तो मान लूँगा।
कैलाश ने सॉँप की गरदन पकड़कर कहा—नहीं साहब, आप ऑंखों से देख कर मानिए। दॉँत तोड़कर वश में किया, तो क्या। सॉँप बड़ा समझदार होता हैं! अगर उसे विश्वास हो जाय कि इस आदमी से मुझे कोई हानि न पहुँचेगी, तो वह उसे हर्गिज न काटेगा।
मृणालिनी ने जब देखा कि कैलाश पर इस वक्त भूत सवार है, तो उसने यह तमाशा न करने के विचार से कहा—अच्छा भाई, अब यहॉँ से चलो। देखा, गाना शुरू हो गया है। आज मैं भी कोई चीज सुनाऊँगी। यह कहते हुए उसने कैलाश का कंधा पकड़ कर चलने का इशारा किया और कमरे से निकल गयी; मगर कैलाश विरोधियों का शंका-समाधान करके ही दम लेना चाह��ा था। उसने सॉँप की गरदन पकड़ कर जोर से दबायी, इतनी जोर से इबायी कि उसका मुँह लाल हो गया, देह की सारी नसें तन गयीं। सॉँप ने अब तक उसके हाथों ऐसा व्यवहार न देखा था। उसकी समझ में न आता था कि यह मुझसे क्या चाहते हें। उसे शायद भ्रम हुआ कि मुझे मार डालना चाहते हैं, अतएव वह आत्मरक्षा के लिए तैयार हो गया।
कैलाश ने उसकी गर्दन खूब दबा कर मुँह खोल दिया और उसके जहरीले दॉँत दिखाते हुए बोला—जिन सज्जनों को शक हो, आकर देख लें। आया विश्वास या अब भी कुछ शक है? मित्रों ने आकर उसके दॉँत देखें और चकित हो गये। प्रत्यक्ष प्रमाण के सामने सन्देह को स्थान कहॉँ। मित्रों का शंका-निवारण करके कैलाश ने सॉँप की गर्दन ढीली कर दी और उसे जमीन पर रखना चाहा, पर वह काला गेहूँवन क्रोध से पागल हो रहा था। गर्दन नरम पड़ते ही उसने सिर उठा कर कैलाश की उँगली में जोर से काटा और वहॉँ से भागा। कैलाश की ऊँगली से टप-टप खून टपकने लगा। उसने जोर से उँगली दबा ली और उपने कमरे की तरफ दौड़ा। वहॉँ मेज की दराज में एक जड़ी रखी हुई थी, जिसे पीस कर लगा देने से घतक विष भी रफू हो जाता था। मित्रों में हलचल पड़ गई। बाहर महफिल में भी खबर हुई। डाक्टर साहब घबरा कर दौड़े। फौरन उँगली की जड़ कस कर बॉँधी गयी और जड़ी पीसने के लिए दी गयी। डाक्टर साहब जड़ी के कायल न थे। वह उँगली का डसा भाग नश्तर से काट देना चाहते, मगर कैलाश को जड़ी पर पूर्ण विश्वास था। मृणालिनी प्यानों पर बैठी हुई थी। यह खबर सुनते ही दौड़ी, और कैलाश की उँगली से टपकते हुए खून को रूमाल से पोंछने लगी। जड़ी पीसी जाने लगी; पर उसी एक मिनट में कैलाश की ऑंखें झपकने लगीं, ओठों पर पीलापन दौड़ने लगा। यहॉँ तक कि वह खड़ा न रह सका। फर्श पर बैठ गया। सारे मेहमान कमरे में जमा हो गए। कोई कुछ कहता था। कोई कुछ। इतने में जड़ी पीसकर आ गयी। मृणालिनी ने उँगली पर लेप किया। एक मिनट और बीता। कैलाश की ऑंखें बन्द हो गयीं। वह लेट गया और हाथ से पंखा झलने का इशारा किया। मॉँ ने दौड़कर उसका सिर गोद में रख लिया और बिजली का टेबुल-फैन लगा दिया।
डाक्टर साहब ने झुक कर पूछा कैलाश, कैसी तबीयत है? कैलाश ने धीरे से हाथ उठा लिए; पर कुछ बोल न सका। मृणालिनी ने करूण स्वर में कहा—क्या जड़ी कुछ असर न करेंगी? डाक्टर साहब ने सिर पकड़ कर कहा—क्या बतलाऊँ, मैं इसकी बातों में आ गया। अब तो नश्तर से भी कुछ फायदा न होगा।
आध घंटे तक यही हाल रहा। कैलाश की दशा प्रतिक्षण बिगड़ती जाती थी। यहॉँ तक कि उसकी ऑंखें पथरा गयी, हाथ-पॉँव ठंडे पड़ गये, मुख की कांति मलिन पड़ गयी, नाड़ी का कहीं पता नहीं। मौत के सारे लक्षण दिखायी देने लगे। घर में कुहराम मच गया। ��ृणालिनी एक ओर सिर पीटने लगी; मॉँ अलग पछाड़े खाने लगी। डाक्टर चड्ढा को मित्रों ने पकड़ लिया, नहीं तो वह नश्तर अपनी गर्दन पर मार लेते।
एक महाशय बोले—कोई मंत्र झाड़ने वाला मिले, तो सम्भव है, अब भी जान बच जाय।
एक मुसलमान सज्जन ने इसका समर्थन किया—अरे साहब कब्र में पड़ी हुई लाशें जिन्दा हो गयी हैं। ऐसे-ऐसे बाकमाल पड़े हुए हैं।
डाक्टर चड्ढा बोले—मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गया था कि इसकी बातों में आ गया। नश्तर लगा देता, तो यह नौबत ही क्यों आती। बार-बार समझाता रहा कि बेटा, सॉँप न पालो, मगर कौन सुनता था! बुलाइए, किसी झाड़-फूँक करने वाले ही को बुलाइए। मेरा सब कुछ ले ले, मैं अपनी सारी जायदाद उसके पैरों पर रख दूँगा। लँगोटी बॉँध कर घर से निकल जाऊँगा; मगर मेरा कैलाश, मेरा प्यारा कैलाश उठ बैठे। ईश्वर के लिए किसी को बुलवाइए।
एक महाशय का किसी झाड़ने वाले से परिचय था। वह दौड़कर उसे बुला लाये; मगर कैलाश की सूरत देखकर उसे मंत्र चलाने की हिम्मत न पड़ी। बोला—अब क्या हो सकता है, सरकार? जो कुछ होना था, हो चुका?
अरे मूर्ख, यह क्यों नही कहता कि जो कुछ न होना था, वह कहॉँ हुआ? मॉँ-बाप ने बेटे का सेहरा कहॉँ देखा? मृणालिनी का कामना-तरू क्या पल्लव और पुष्प से रंजित हो उठा? मन के वह स्वर्ण-स्वप्न जिनसे जीवन आनंद का स्रोत बना हुआ था, क्या पूरे हो गये? जीवन के नृत्यमय तारिका-मंडित सागर में आमोद की बहार लूटते हुए क्या उनकी नौका जलमग्न नहीं हो गयी? जो न होना था, वह हो गया।
वही हरा-भरा मैदान था, वही सुनहरी चॉँदनी एक नि:शब्द संगीत की भॉँति प्रकृति पर छायी हुई थी; वही मित्र-समाज था। वही मनोरंजन के सामान थे। मगर जहाँ हास्य की ध्वनि थी, वहॉँ करूण क्रन्दन और अश्रु-प्रवाह था।
3
शहर से कई मील दूर एक छोट-से घर में एक बूढ़ा और बुढ़िया अगीठी के सामने बैठे जाड़े की रात काट रहे थे। बूढ़ा नारियल पीता था और बीच-बीच में खॉँसता था। बुढ़िया दोनों घुटनियों में सिर डाले आग की ओर ताक रही थी। एक मिट्टी के तेल की कुप्पी ताक पर जल रही थी। घर में न चारपाई थी, न बिछौना। एक किनारे थोड़ी-सी पुआल पड़ी हुई थी। इसी कोठरी में एक चूल्हा था। बुढ़िया दिन-भर उपले और सूखी लकड़ियॉँ बटोरती थी। बूढ़ा रस्सी बट कर बाजार में बेच आता था। यही उनकी जीविका थी। उन्हें न किसी ने रोते देखा, न हँसते। उनका सारा समय जीवित रहने में कट जाता था। मौत द्वार पर खड़ी थी, रोने या हँसने की कहॉँ फुरसत! बुढ़िया ने पूछा—कल के लिए सन तो है नहीं, काम क्या करोंगे?
‘जा कर झगडू साह से दस सेर सन उधार लाऊँगा?’
‘उसके पहले के पैसे तो दिये ही नहीं, और उधार कैसे देगा?’
‘न देगा न सही। घास तो कहीं नहीं गयी। दोपहर तक क्या दो आने की भी न काटूँगा?’
इतने में एक आदमी ने द्वार पर आवाज दी—भगत, भगत, क्या सो गये? जरा किवाड़ खोलो।
भगत ने उठकर किवाड़ खोल दिये। एक आदमी ने अन्दर आकर कहा—कुछ सुना, डाक्टर चड्ढा बाबू के लड़के को सॉँप ने काट लिया।
भगत ने चौंक कर कहा—चड्ढा बाबू के लड़के को! वही चड्ढा बाबू हैं न, जो छावनी में बँगले में रहते हैं?
‘हॉँ-हॉँ वही। शहर में हल्ला मचा हुआ है। जाते हो तो जाओं, आदमी बन जाओंगे।‘
बूढ़े ने कठोर भाव से सिर हिला कर कहा—मैं नहीं जाता! मेरी बला जाय! वही चड्ढा है। खूब जानता हूँ। भैया लेकर उन्हीं के पास गया था। खेलने जा रहे थे। पैरों पर गिर पड़ा कि एक नजर देख लीजिए; मगर सीधे मुँह से बात तक न की। भगवान बैठे सुन रहे थे। अब जा�� पड़ेगा कि बेटे का गम कैसा होता है। कई लड़के हैं।
‘नहीं जी, यही तो एक लड़का था। सुना है, सबने जवाब दे दिया है।‘
‘भगवान बड़ा कारसाज है। उस बखत मेरी ऑंखें से ऑंसू निकल पड़े थे, पर उन्हें तनिक भी दया न आयी थी। मैं तो उनके द्वार पर होता, तो भी बात न पूछता।‘
‘तो न जाओगे? हमने जो सुना था, सो कह दिया।‘
‘अच्छा किया—अच्छा किया। कलेजा ठंडा हो गया, ऑंखें ठंडी हो गयीं। लड़का भी ठंडा हो गया होगा! तुम जाओ। आज चैन की नींद सोऊँगा। (बुढ़िया से) जरा तम्बाकू ले ले! एक चिलम और पीऊँगा। अब मालूम होगा लाला को! सारी साहबी निकल जायगी, हमारा क्या बिगड़ा। लड़के के मर जाने से कुछ राज तो नहीं चला गया? जहॉँ छ: बच्चे गये थे, वहॉँ एक और चला गया, तुम्हारा तो राज सुना हो जायगा। उसी के वास्ते सबका गला दबा-दबा कर जोड़ा था न। अब क्या करोंगे? एक बार देखने जाऊँगा; पर कुछ दिन बाद मिजाज का हाल पूछूँगा।‘
आदमी चला गया। भगत ने किवाड़ बन्द कर लिये, तब चिलम पर तम्बाखू रख कर पीने लगा।
बुढ़िया ने कहा—इतनी रात गए जाड़े-पाले में कौन जायगा?
‘अरे, दोपहर ही होता तो मैं न जाता। सवारी दरवाजे पर लेने आती, तो भी न जाता। भूल नहीं गया हूँ। पन्ना की सूरत ऑंखों में फिर रही है। इस निर्दयी ने उसे एक नजर देखा तक नहीं। क्या मैं न जानता था कि वह न बचेगा? खूब जानता था। चड्ढा भगवान नहीं थे, कि उनके एक निगाहदेख लेने से अमृत बरस जाता। नहीं, खाली मन की दौड़ थी। अब किसी दिन जाऊँगा और कहूँगा—क्यों साहब, कहिए, क्या रंग है? दुनिया बुरा कहेगी, कहे; कोई परवाह नहीं। छोटे आदमिय��ं में तो सब ऐव हें। बड़ो में कोई ऐब नहीं होता, देवता होते हैं।‘
भगत के लिए यह जीवन में पहला अवसर था कि ऐसा समाचार पा कर वह बैठा रह गया हो। अस्सी वर्ष के जीवन में ऐसा कभी न हुआ था कि सॉँप की खबर पाकर वह दौड़ न गया हो। माघ-पूस की अँधेरी रात, चैत-बैसाख की धूप और लू, सावन-भादों की चढ़ी हुई नदी और नाले, किसी की उसने कभी परवाह न की। वह तुरन्त घर से निकल पड़ता था—नि:स्वार्थ, निष्काम! लेन-देन का विचार कभी दिल में आया नहीं। यह सा काम ही न था। जान का मूल्य कोन दे सकता है? यह एक पुण्य-कार्य था। सैकड़ों निराशों को उसके मंत्रों ने जीवन-दान दे दिया था; पर आप वह घर से कदम नहीं निकाल सका। यह खबर सुन कर सोने जा रहा है।
बुढ़िया ने कहा—तमाखू अँगीठी के पास रखी हुई है। उसके भी आज ढाई पैसे हो गये। देती ही न थी।
बुढ़िया यह कह कर लेटी। बूढ़े ने कुप्पी बुझायी, कुछ देर खड़ा रहा, फिर बैठ गया। अन्त को लेट गया; पर यह खबर उसके हृदय पर बोझे की भॉँति रखी हुई थी। उसे मालूम हो रहा था, उसकी कोई चीज खो गयी है, जैसे सारे कपड़े गीले हो गये है या पैरों में कीचड़ लगा हुआ है, जैसे कोई उसके मन में बैठा हुआ उसे घर से लिकालने के लिए कुरेद रहा है। बुढ़िया जरा देर में खर्राटे लेनी लगी। बूढ़े बातें करते-करते सोते है और जरा-सा खटा होते ही जागते हैं। तब भगत उठा, अपनी लकड़ी उठा ली, और धीरे से किवाड़ खोले।
बुढ़िया ने पूछा—कहॉँ जाते हो?
‘कहीं नहीं, देखता था कि कितनी रात है।‘
‘अभी बहुत रात है, सो जाओ।‘
‘नींद, नहीं आतीं।’
‘नींद काहे आवेगी? मन तो चड़ढा के घर पर लगा हुआ है।‘
‘चड़ढा ने मेरे साथ कौन-सी नेकी कर दी है, जो वहॉँ जाऊँ? वह आ कर पैरों पड़े, तो भी न जाऊँ।‘
‘उठे तो तुम इसी इरादे से ही?’
‘नहीं री, ऐसा पागल नहीं हूँ कि जो मुझे कॉँटे बोये, उसके लिए फूल बोता फिरूँ।‘
बुढ़िया फिर सो गयी। भगत ने किवाड़ लगा दिए और फिर आकर बैठा। पर उसके मन की कुछ ऐसी दशा थी, जो बाजे की आवाज कान में पड़ते ही उपदेश सुनने वालों की होती हैं। ऑंखें चाहे उपेदेशक की ओर हों; पर कान बाजे ही की ओर होते हैं। दिल में भी बापे की ध्वनि गूँजती रहती हे। शर्म के मारे जगह से नहीं उठता। निर्दयी प्रतिघात का भाव भगत के लिए उपदेशक था, पर हृदय उस अभागे युवक की ओर था, जो इस समय मर रहा था, जिसके लिए एक-एक पल का विलम्ब घातक था।
उसने फिर किवाड़ खोले, इतने धीरे से कि बुढ़िया को खबर भी न हुई। बाहर निकल आया। उसी वक्त गॉँव को चौकीदार गश्त लगा रहा था, बोला—कैसे उठे भगत? आज तो बड़ी सरदी है! कहीं जा रहे हो क्या?
भगत ने कहा—नहीं जी, ज���ऊँगा कहॉँ! देखता था, अभी कितनी रात है। भला, के बजे होंगे।
चौकीदार बोला—एक बजा होगा और क्या, अभी थाने से आ रहा था, तो डाक्टर चड़ढा बाबू के बॅगले पर बड़ी भड़ लगी हुई थी। उनके लड़के का हाल तो तुमने सुना होगा, कीड़े ने छू लियाहै। चाहे मर भी गया हो। तुम चले जाओं तो साइत बच जाय। सुना है, इस हजार तक देने को तैयार हैं।
भगत—मैं तो न जाऊँ चाहे वह दस लाख भी दें। मुझे दस हजार या दस लाखे लेकर करना क्या हैं? कल मर जाऊँगा, फिर कौन भोगनेवाला बैठा हुआ है।
चौकीदार चला गया। भगत ने आगे पैर बढ़ाया। जैसे नशे में आदमी की देह अपने काबू में नहीं रहती, पैर कहीं रखता है, पड़ता कहीं है, कहता कुछ हे, जबान से निकलता कुछ है, वही हाल इस समय भगत का था। मन में प्रतिकार था; पर कर्म मन के अधीन न था। जिसने कभी तलवार नहीं चलायी, वह इरादा करने पर भी तलवार नहीं चला सकता। उसके हाथ कॉँपते हैं, उठते ही नहीं।
भगत लाठी खट-खट करता लपका चला जाता था। चेतना रोकती थी, पर उपचेतना ठेलती थी। सेवक स्वामी पर हावी था।
आधी राह निकल जाने के बाद सहसा भगत रूक गया। हिंसा ने क्रिया पर विजय पायी—मै यों ही इतनी दूर चला आया। इस जाड़े-पाले में मरने की मुझे क्या पड़ी थी? आराम से सोया क्यों नहीं? नींद न आती, न सही; दो-चार भजन ही गाता। व्यर्थ इतनी दूर दौड़ा आया। चड़ढा का लड़का रहे या मरे, मेरी कला से। मेरे साथ उन्होंने ऐसा कौन-सा सलूक किया था कि मै उनके लिए मरूँ? दुनिया में हजारों मरते हें, हजारों जीते हें। मुझे किसी के मरने-जीने से मतलब!
मगर उपचेतन ने अब एक दूसर रूप धारण किया, जो हिंसा से बहुत कुछ मिलता-जुलता था—वह झाड़-फूँक करने नहीं जा रहा है; वह देखेगा, कि लोग क्या कर रहे हें। डाक्टर साहब का रोना-पीटना देखेगा, किस तरह सिर पीटते हें, किस तरह पछाड़े खाते है! वे लोग तो विद्वान होते हैं, सबर कर जाते होंगे! हिंसा-भाव को यों धीरज देता हुआ वह फिर आगे बढ़ा।
इतने में दो आदमी आते दिखायी दिये। दोनों बाते करते चले आ रहे थे—चड़ढा बाबू का घर उजड़ गया, वही तो एक लड़का था। भगत के कान में यह आवाज पड़ी। उसकी चाल और भी तेज हो गयी। थकान के मारे पॉँव न उठते थे। शिरोभाग इतना बढ़ा जाता था, मानों अब मुँह के बल गिर पड़ेगा। इस तरह वह कोई दस मिनट चला होगा कि डाक्टर साहब का बँगला नजर आया। बिजली की बत्तियॉँ जल रही थीं; मगर सन्नाटा छाया हुआ था। रोने-पीटने के आवाज भी न आती थी। भगत का कल��जा धक-धक करने लगा। कहीं मुझे बहुत देर तो नहीं हो गयी? वह दौड़ने लगा। अपनी उम्र में वह इतना तेज कभी न दौड़ा था। ��स, यही मालूम होता था, मानो उसके पीछे मोत दौड़ी आ री है।
4
दो बज गये थे। मेहमान विदा हो गये। रोने वालों में केवल आकाश के तारे रह गये थे। और सभी रो-रो कर थक गये थे। बड़ी उत्सुकता के साथ लोग रह-रह आकाश की ओर देखते थे कि किसी तरह सुहि हो और लाश गंगा की गोद में दी जाय।
सहसा भगत ने द्वार पर पहुँच कर आवाज दी। डाक्टर साहब समझे, कोई मरीज आया होगा। किसी और दिन उन्होंने उस आदमी को दुत्कार दिया होता; मगर आज बाहर निकल आये। देखा एक बूढ़ा आदमी खड़ा है—कमर झुकी हुई, पोपला मुँह, भौहे तक सफेद हो गयी थीं। लकड़ी के सहारे कॉँप रहा था। बड़ी नम्रता से बोले—क्य��� है भई, आज तो हमारे ऊपर ऐसी मुसीबत पड़ गयी है कि कुछ कहते नहीं बनता, फिर कभी आना। इधर एक महीना तक तो शायद मै किसी भी मरीज को न देख सकूँगा।
भगत ने कहा—सुन चुका हूँ बाबू जी, इसीलिए आया हूँ। भैया कहॉँ है? जरा मुझे दिखा दीजिए। भगवान बड़ा कारसाज है, मुरदे को भी जिला सकता है। कौन जाने, अब भी उसे दया आ जाय।
चड़ढा ने व्यथित स्वर से कहा—चलो, देख लो; मगर तीन-चार घंटे हो गये। जो कुछ होना था, हो चुका। बहुतेर झाड़ने-फँकने वाले देख-देख कर चले गये।
डाक्टर साहब को आशा तो क्या होती। हॉँ बूढे पर दया आ गयी। अन्दर ले गये। भगत ने लाश को एक मिनट तक देखा। तब मुस्करा कर बोला—अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, बाबू जी! यह नारायण चाहेंगे, तो आध घंटे में भैया उठ बैठेगे। आप नाहक दिल छोटा कर रहे है। जरा कहारों से कहिए, पानी तो भरें।
कहारों ने पानी भर-भर कर कैलाश को नहलाना शुरू कियां पाइप बन्द हो गया था। कहारों की संख्या अधिक न थी, इसलिए मेहमानों ने अहाते के बाहर के कुऍं से पानी भर-भर कर कहानों को दिया, मृणालिनी कलासा लिए पानी ला रही थी। बुढ़ा भगत खड़ा मुस्करा-मुस्करा कर मंत्र पढ़ रहा था, मानो विजय उसके सामने खड़ी है। जब एक बार मंत्र समाप्त हो जाता, वब वह एक जड़ी कैलाश के सिर पर डाले गये और न-जाने कितनी बार भगत ने मंत्र फूँका। आखिर जब उषा ने अपनी लाल-लाल ऑंखें खोलीं तो केलाश की भी लाल-लाल ऑंखें खुल गयी। एक क्षण में उसने अंगड़ाई ली और पानी पीने को मॉँगा। डाक्टर चड़ढा ने दौड़ कर नारायणी को गले लगा लिया। नारायणी दौड़कर भगत के पैरों पर गिर पड़ी और म़णालिनी कैलाश के सामने ऑंखों में ऑंसू-भरे पूछने लगी—अब कैसी तबियत है!
एक क्षण् में चारों तरफ खबर फैल गयी। मित्रगण मुबारकवाद देने आने लगे। डाक्टर साहब बड़े श्रद्धा-भाव से हर एक के हसामने भगत का यश गाते फिरते थे। सभी लोग भगत के दर्शनों के लिए उत्सुक हो उठे; मगर अन्दर ��ा कर देखा, तो भगत का कहीं पता न था। नौकरों ने कहा—अभी तो यहीं बैठे चिलम पी रहे थे। हम लोग तमाखू देने लगे, तो नहीं ली, अपने पास से तमाखू निकाल कर भरी।
यहॉँ तो भगत की चारों ओर तलाश होने लगी, और भगत लपका हुआ घर चला जा रहा था कि बुढ़िया के उठने से पहले पहुँच जाऊँ!
जब मेहमान लोग चले गये, तो डाक्टर साहब ने नारायणी से कहा—बुड़ढा न-जाने कहाँ चला गया। एक चिलम तमाखू का भी रवादार न हुआ।
नारायणी—मैंने तो सोचा था, इसे कोई बड़ी रकम दूँगी।
चड़ढा—रात को तो मैंने नहीं पहचाना, पर जरा साफ हो जाने पर पहचान गया। एक बार यह एक मरीज को लेकर आया था। मुझे अब याद आता हे कि मै खेलने जा रहा था और मरीज को देखने से इनकार कर दिया था। आप उस दिन की बात याद करके मुझें जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं उसे अब खोज निकालूँगा और उसके पेरों पर गिर कर अपना अपराध क्षमा कराऊँगा। वह कुछ लेगा नहीं, यह जानता हूँ, उसका जन्म यश की वर्षा करने ही के लिए हुआ है। उसकी सज्जनता ने मुझे ऐसा आदर्श दिखा दिया है, जो अब से जीवनपर्यन्त मेरे सामने रहेगा।
#sehyogngo2003#ecotarianaura#goodnessofheart#premchandstories#morallife#goodnessofsoul#hindiliterature#premchandjayanti
0 notes
Text
नए रूट पर सफर से पहले जानें लखनऊ मेट्रो की गाइड लाइन, ध्यान रखें ये बातें
*राजधानी लखनऊ* *नए रूट पर सफर से पहले जानें लखनऊ मेट्रो की गाइड लाइन, ध्यान रखें ये बातें* लखनऊ चौधरी चरण सिंह मेट्रो स्टेशन से मुंशी पुलिया के बीच मेट्रो कब चलेगी, इसको लेकर 26 फरवरी को भी फैसला नहीं हो सका। अब माना जा रहा है कि मेट्रो को हरी झंडी तीन या पांच मार्च को दिखाई जा सकती है। हालांकि इस पर सीएम योगी आदित्यनाथ ही मुहर लगाएंगे। वहीं, लखनऊ मेट्रो ने सफर से पहले लाखों यात्रियों तक अपनी संशोधित गाइड लाइन पहुंचाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। यात्रियों को नियम-कानून के साथ ही सामान खोने और आपात स्थिति में क्या करना है, इसकी भी जानकारी दी जा रही है। लखनऊ मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक कुमार केशव ने बताया कि अभी 12-13 हजार यात्री प्रतिदिन सफर कर रहे हैं। पूरा सेक्शन शुरू होने पर यह ग्राफ शुरुआती दिनों में ही 60-70 हजार हो जाएगा। *मेट्रो यात्रियों के लिए जरूरी जानकारी* *इमरजेंसी में क्या करें :* उद्घोषक यंत्र से मिलने वाली जानकारियों को ध्यान से सुनें। मेट्रो स्टाफ की ओर से मिलने वाले निर्देशों का पालन करें। आग या विस्फोट के समय ऑटोमेटिक फेयर कलेक्शन गेट स्वत: खुल जाएंगे। ऐसे समय किसी स्मार्ट कार्ड या टोकन दिखाने की जरूरत नहीं। हर मेट्रो स्टेशन पर तय निकास मार्ग से ही बाहर निकलें। ट्रेन ऑपरेटर की मदद से इमरजेंसी गेट का इस्तेमाल करें। स्टेशन के दोनों हिस्सों पर बने रैंप से निकलें। इसका नियंत्रण ट्रेन ऑपरेटर केबिन से होगा ट्रेन ऑपरेटर से बात करने के लिए लाल रंग का बटन दबाएं। इंटरकॉम पर भी बात करें। दिव्यांग व्हील चेयर से कोच तक जा सकते हैं। *कहां करें शिकाय��* यात्री मेट्रो के हेल्पलाइन नंबर 0522-2288869 पर भी संपर्क कर सकते हैं। खोए सामान की जानकारी 48 घंटे के भीतर देनी होगी। इसके लिए ट्रांसपोर्ट नगर मेट्रो स्टेशन जाना होगा। यहां सुबह आठ से रात आठ बजे के बीच यात्री कभी भी संपर्क कर सकेंगे। रविवार और राष्ट्रीय व राजपत्रित अवकाश पर यह हेल्प सेंटर बंद रहेगा। यात्री खोए सामान की जानकारी या सूचना देने के लिए नंबर 0522-6602518 पर संपर्क कर सकते हैं। खोया सामान लेने के लिए अपने साथ पहचान पत्र की छाया प्रति और उसकी मूल प्रति साथ लाना होगा। मेट्रो कर्मी की अभद्रता या सफाई सहित अन्य शिकायत स्टेशन पर रखी शिकायत पंजिका पर दर्ज हो सकेगी। ऐसे बनेगा पास यात्रियों के सफर के लिए गो स्मार्ट, टोकन व टूरिस्ट कार्ड बनेंगे। यह स्टेशनों के काउंटर से खरीदे जा सकेंगे। गो स्मार्ट कार्ड पास दो सौ रुपये में बनेंगे। सौ रुपये सुरक्षा शुल्क वापस होगा, इसे 2000 रुपये तक करा सकेंगे रिचार्ज। एक दिन की वैधता का टूरिस्ट कार्ड 200 और तीन दिन की वैधता का कार्ड 350 रुपये में बनेगा। दोनों ही स्मार्ट कार्ड में 100 रुपये वापस होंगे, कर सकेंगे असीमित यात्रा। टिकट रीडिंग मशीन से बैलेंस पता चलेगा। गो स्मार्ट से यात्रा की तो 10 प्रतिशत छूट मिलेगी। बीच सफर निरस्त होने पर शेष किराया कार्ड के बैलेंस में वापस आएगा। स्मार्ट कार्ड पास का इस्तेमाल कोई भी मित्र या परिवारीजन कर सकेंगे। टोकन ट्रेन आने के पांच मिनट पहले मिलना बंद होगा, स्मार्ट कार्ड से अंतिम समय तक यात्रा होगी।
0 notes
Text
Kendriya Vidyalaya admission 2021: क्लास 1 से 10वीं तक में एडमिशन का पूरा शेड्यूल व गाइडलाइंस Divya Sandesh
#Divyasandesh
Kendriya Vidyalaya admission 2021: क्लास 1 से 10वीं तक में एडमिशन का पूरा शेड्यूल व गाइडलाइंस
KV class 1 to 10 admission 2021: शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए केंद्रीय विद्यालयों (Kendriya Vidyalaya) में एडमिशन की प्रक्रिया बस शुरू होने ही वाली है। केंद्रीय विद्यालय संगठन () ने क्लास 1 से लेकर 12वीं तक में दाखिले का पूरा शेड्यूल और दिशानिर्देश जारी कर दिया है। केवी एडमिशन शेड्यूल से लेकर उम्र सीमा और आरक्षण तक.. पूरी डीटेल आगे दी गई है।
केवीएस ने कहा है कि क्लास 1 के लिए एडमिशन फॉर्म ऑनलाइन भरे जाएंगे। जबकि क्लास 2 से लेकर 10वीं तक के लिए आपको संबंधित स्कूल से ऑफलाइन एडमिशन फॉर्म लेकर भरना और जमा करना होगा। हालांकि शेड्यूल सभी के लिए एक जैसा ही रहेगा, जो kvsangathan.nic.in पर जारी किया गया है।
KVS class 1 admission 2021: ये रहा शेड्यूल क्लास-1 के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू – 01 अप्रैल 2021 (सुबह 10 बजे से) क्लास-1 ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि – 19 अप्रैल 2021 (शाम 7 बजे तक) पहली एडमिशन लिस्ट – 23 अप्रैल 2021 दूसरी लिस्ट (अगर सीट खाली बचती है) – 30 अप्रैल 2021 तीसरी लिस्ट (अगर सीट खाली बचती है) – 05 मई 2021 RTE, SC/ST, OBC (NCL) के लिए ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन (अगर ऑनलाइन से पर्याप्त आवेदन नहीं आए तो) – 10 मई से 13 मई 2021 तक ऑफलाइन की एडमिशन लिस्ट जारी होने की तिथि – 15 मई से 20 मई 2021 तक
KVS class 2 to 10 admission 2021: ऐसा है शेड्यूल उपलब्ध सीटों के लिए ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन – 08 अप्रैल से 15 अप्रैल 2021 तक एडमिशन लिस्ट जारी होगी – 19 अप्रैल 2021 (शाम 4 बजे) एडमिशन की तिथि – 20 अप्रैल से 27 अप्रैल 2021 तक सभी कक्षाओं में एडमिशन की अंतिम तिथि (क्लास 9 को छोड़कर) – 30 मई 2021
नोट: केवी संगठन ने कहा है कि दिए गए शेड्यूल में अगर कोई दिन सार्वजनिक अवकाश होता है, तो उसके अगले कार्य दिवस को ओपनिंग/क्लोजिंग डेट माना जाएगा। ऑफलाइन एडमिशन लिस्ट के लिए संबंधित केंद्रीय विद्यालय का नोटिस बोर्ड देखना होगा, जहां आपने अप्लाई किया है।
ये भी पढ़ें :
Reservation in Kendriya Vidyalaya admission: ये होगा आरक्षण का नियम शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) के तहत – 25% एससी (SC) – 15% एसटी (ST) – 7.5% ओबीसी एनसीएल (OBC NCL) – 27%
यानी अगर किसी क्लास में 40 बच्चों का एडमिशन होना है तो, उपरोक्त आरक्षण नियमों के अनुसार, आरटीई के लिए 10 सीटें, एससी के लिए 06 सीटें, एसटी के लिए 03 सीटें और ओबीसी एनसीएल के लिए 11 सीटें आरक्षित होंगी। इसके अलावा दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए (जेनरल समेत) 3% सीटें आरक्षित होंगी।
ये भी पढ़ें :
KVS admission age limit: किस क्लास के लिए क्या हो उम्र
क्लास न्यूनतम उम्र अधिकतम उम्र
1 5 साल 7 साल
2 6 साल 8 साल
3 7 साल 9 साल
4 8 साल 10 साल
5 9 साल 11 साल
6 10 साल 12 साल
7 11 साल 13 साल
8 12 साल 14 साल
9 13 साल 15 साल
10 14 साल 16 साल
नोट: न्यूनतम व अधिकतम उम्र सीमा की गणना जिस साल एडमिशन के लिए अप्लाई कर रहे हैं, उस वर्ष की 31 मार्च की तारीख तक से की जाएगी। संबंधित स्कूल के प्राचार्य की अनुमति से दिव्यांग विद्यार्थियों को अधिकतम उम्र सीमा में 2 साल तक की छूट दी जा सकती है।
0 notes
Text
NCERT Class 12 Hindi Sampadkiya Lekhan
NCERT Class 12 Hindi Sampadkiya Lekhan
CBSE Class 12 Hindi (संपादकीय लेखन)
प्रश्नः 1.संपादकीय का क्या महत्त्व है?उत्तरःसंपादक संपादकीय पृष्ठ पर अग्रलेख एवं संपादकीय लिखता है। इस पृष्ठ के आधार पर संपादक का पूरा व्यक्तित्व झलकता है। अपने संपादकीय लेखों में संपादक युगबोध को जाग्रत करने वाले विचारों को प्रकट करता है। साथ ही समाज की विभिन्न बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। संपादकीय पृष्ठों से उसकी साधना एवं कर्मठता की झलक आती है। वस्तुतः संपादकीय पृष्ठ पत्र की अंतरात्मा है, वह उसकी अंतरात्मा की आवाज़ है। इसलिए कोई बड़ा समाचार-पत्र बिना संपादकीय पृष्ठ के नहीं निकलता।
पाठक प्रत्येक समाचार-पत्र का अलग व्यक्तित्व देखना चाहता है। उनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ देखना चाहता है जो उसे अन्य समाचार से अलग करती हों। जिस विशेषता के आधार पर वह उस पत्र की पहचान नियत कर सके। यह विशेषता समाचार-पत्र के विचारों में, उसके दृष्टिकोण में प्रतिलक्षित होती है, किंतु बिना संपादकीय पृष्ठ के समाचार-पत्र के विचारों का पता नहीं चलता। यदि समाचार-पत्र के कुछ विशिष्ट विचार हो, उन विचारों में दृढ़ता हो और बारंबार उन्हीं विचारों का समर्थन हो तो पाठक उन विचारों से असहमत होते हुए भी उस समाचार-पत्र का मन में आदर करता है। मेरुदंडहीन व्यक्ति को कौन पूछेगा। संपादकीय लेखों के विषय समाज के विभिन्न क्षेत्रों को लक्ष्य करके लिखे जाते हैं।
प्रश्नः 2.किन-किन विषयों पर संपादकीय लिखा जाता है?उत्तरःजिन विषयों पर संपादकीय लिखे जाते हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
समसामयिक विषयों पर संपादकीय
दिशा-निर्देशात्मक संपादकीय
संकेतात्मक संपादकीय
दायित्वबोध और नैतिकता की भावना से परिपूर्ण संपादकीय
व्याख्यात्मक संपादकीय
आलोचनात्मक संपादकीय
समस्या संपादकीय
साहित्यिक संपादकीय
सांस्कृतिक संपादकीय
खेल से संबंधित संपादकीय
राजनीतिक संपादकीय।
प्रश्नः 3.संपादकीय का अर्थ बताइए।उत्तरः‘संपादकीय’ का सामान्य अर्थ है-समाचार-पत्र के संपादक के अपने विचार। प्रत्येक समाचार-पत्र में संपादक प्रतिदिन ज्वलंतविषयों पर अपने विचार व्यक्त करता है। संपादकीय लेख समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है। संपादकीय के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है। अतएव संपादक को चाहिए कि वह इसमें संतुलित टिप्पणियाँ ही प्रस्तुत करे।
संपादकीय में किसी घटना पर प्रतिक्रिया हो सकती है तो किसी विषय या प्रवृत्ति पर अपने विचार हो सकते हैं, इसमें किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है तो किसी उलझी हुई स्थिति का विश्लेषण हो सकता है।
प्रश्नः 4.संपादकीय पृष्ठ के बारे में बताइए।उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ को समाचार-पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचार-पत्र उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
प्रश्नः 5.अच्छे संपादकीय में क्या गुण होने चाहिए?उत्तरःएक अच्छे संपादकीय में अपेक्षित गुण होने अनिवार्य हैं –
संपादकीय लेख की शैली प्रभावोत्पादक एवं सजीव होनी चाहिए।
भाषा स्पष्ट, सशक्त और प्रखर हो।
चुटीलेपन से भी लेख अपेक्षाकृत आकर्षक बन जाता है।
संपादक की प्रत्येक बात में बेबाकीपन हो।
ढुलमुल शैली अथवा हर बात को सही ठहराना अथवा अंत में कुछ न कहना-ये संपादकीय के दोष माने जाते हैं,अतः संपादक को इनसे बचना चाहिए।
उदाहरण
1. दाऊद पर पाक को और सुबूत
डॉन को सौंप सच्चे पड़ोसी बने जनरल
भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के चेहरे से नकाब नोच फेंका है। मुंबई बमकांड के प्रमुख अभियुक्तों में से एक और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पाक में होने के कुछ और पक्के सुबूत मंगलवार को नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को सौंपे हैं। इनमें प्रमाण के तौर पर दाऊद के दो पासपोर्ट नंबर पाकिस्तान को सौंपे हैं। यही नहीं, भारत सरकार ने दाऊद के पाकिस्तानी ठिकानों से संबंधित कई साक्ष्य भी जनरल साहब को भेजे हैं। इनमें दो पते कराची के हैं। भारत एक लंबे समय से पाकिस्तान से दाऊद के प्रत्यर्पण की माँग करता आ रहा है। अमेरिका भी बहुत पहले साफ कर चुका है कि दाऊद पाक में ही है। पिछले दिनों बुश प्रशासन ने वांछितों की जो सूची जारी की थी, उसमें दाऊद का पता कराची दर्ज है। दरअसल अलग-अलग कारणों से भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए दाऊद अह्म होता जा रहा है। भारत का मानना है कि 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाकों को अंजाम देने के बाद, फरार डॉन अब भी पाकिस्तान से बैठकर भारत में आतंकवाद को गिजा-पानी मुहैया करा रहा है।
अमेरिका ने दाऊद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। वाशिंगटन का दावा है कि दाऊद कराची से यूरोप और अमेरिकी देशों में ड्रग्स का करोबार भी चला रहा है, लिहाजा उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। तीसरी तरफ, पाकिस्तान के लिए दाऊद इब्राहिम इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में आतंक फैला रहे संगठनों को जोड़े रखने और उनको पैसे तथा हथियार मुहैया कराने में दाऊद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खबर तो यहाँ तक है कि दाऊद ने पाकिस्तान की सियासत में भी दखल देना शुरू कर दिया है और यही वह मुकाम है, जब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कभी-कभी दाऊद खतरनाक लगने लगता है। फिर भी, वह उसे पनाह दिए हुए है। जब भी भारत दाऊद की माँग करता है, पाक का रटा-रटाया जवाब होता है कि वह पाकिस्तान में है ही नहीं पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने कोशिश की कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और इंटरपोल की फेहरिस्तों से दाऊद के पाकिस्तानी पतों को खत्म करा दिया जाए, लेकिन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इसके लिए तैयार नहीं हुए।
भारत के खिलाफ आतंकवाद को पालने-पोसने और शह देने में पाकिस्तान की भूमिका जग-जाहिर है। एफबीआई ने दो दिन पूर्व अमेरिका की एक अदालत में सचित्र साक्ष्यों के साथ एक हलफनामा दायर कर दावा किया है कि पाक के बालाघाट में आतंकी शिविर सक्रिय है। बुधवार को भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद में सरकार ने खुलासा किया कि पाक अधिकृत कश्मीर में 52 आतंकी शिविर चल रहे हैं। क्या जॉर्ज बुश इन बातों पर गौर फरमाएँगे? भारत को भी दाऊद चाहिए और अमेरिका को भी, तो क्यों नहीं बुश प्रशासन पाकिस्तान पर जोर डालता है कि वह डॉन को भारत को सौंपकर एक सच्चे पड़ोसी का हक अदा करे। पाकिस्तान के शासन को भी समझना चाहिए, साँप-साँप होता है जिस दिन उनको डसेगा, तब पता चलेगा।
2. धरती के बढ़ते तापमान का साक्षी बना नया साल
उत्तर भारत में लोगों ने नववर्ष का स्वागत असामान्य मौसम के बीच किया। इस भू-भाग में घने कोहरे और कडाके की ठंड के बीच रोमन कैलेंडर का साल बदलता रहा है, लेकिन 2015 ने खुले आसमान, गरमाहट भरी धूप और हल्की सर्दी के बीच हमसे विदाई ली। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। ब्रिटेन के मौसम विशेषज्ञ इयन कुरी ने तो दावा किया कि बीता महीना ज्ञात इतिहास का सबसे गर्म दिसंबर था। अमेरिका से भी ऐसी ही खबरें आईं। संयुक्त राष्ट्र पहले ही कह चुका था कि 2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में आने वाले दिनों में तापमान ज्यादा नहीं बदलेगा। यानी आने वाले दिनों में भी वैसी सर्दी पड़ने की संभावना नहीं है, जैसा सामान्यतः वर्ष के इन दिनों में होता है। दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का अनुमान है कि 2016 में तापमान बढ़ने का क्रम जारी रहेगा और संभवतः नया साल पुराने वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ देगा।
इसकी खास वजह प्रशांत महासागर में जारी एल निनो परिघटना है, जिससे एक बार फिर दक्षिण एशिया में मानसून प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हवा का गरमाना जारी है। इन घटनाक्रमों का ही सकल प्रभाव है कि गुजरे 15 वर्षों में धरती के तापमान में चिंताजनक स्तर तक वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप हो रहे जलवायु परिवर्तन के लक्षण अब स्पष्ट नज़र आने लगे हैं। आम अनुभव है कि ठंड, गर्मी और बारिश होने का समय असामान्य हो गया है। गुजरा दिसंबर और मौजूदा जनवरी संभवत: इसी बदलाव के सबूत हैं। जलवायु परिवर्तन के संकेत चार-पाँच दशक पहले मिलने शुरू हुए। वर्ष 1990 आते-आते वैज्ञानिक इस नतीजे पर आ चुके थे कि मानव गतिविधियों के कारण धरती गरम हो रही है।
उन्होंने चेताया था कि इसके असर से जलवायु बदलेगी, जिसके खतरनाक नतीजे होंगे, लेकिन राजनेताओं ने उनकी बातों की अनदेखी की। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन रोकने की पहली संधि वर्ष 1992 में ही हुई, लेकिन विकसित देशों ने अपनी वचनबद्धता के मुताबिक उस पर अमल नहीं किया। अब जबकि खतरा बढ़ चुका है, तो बीते साल पेरिस में धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्शियस तक सीमित रखने के लिए नई संधि हुई। नया साल यह चेतावनी लेकर आया है कि अगर इस बार सरकारों ने लापरवाही दिखाई तो बदलता मौसम मानव सभ्यता की सूरत ही बदल देगा।
3. कामकाजी महिलाओं को मज़बूती देता फैसला
मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से 26 हफ्ते करने और माँ बनने के बाद दो साल तक घर से काम करने का विकल्प देने का केंद्र का इरादा सराहनीय है। आशा है, इसका चौतरफा स्वागत होगा। सरकार इन प्रावधानों को निजी क्षेत्र में भी लागू करना चाहती है, लेकिन इससे कॉर्पोरेट सेक्टर को आशंकित नहीं होना चाहिए। इन नियमों को लागू कर कंपनियाँ न सिर्फ समाज में लैंगिक समता लाने में सहायक बनेंगी, बल्कि गहराई से देखें तो उन्हें महसूस होगा कि कामकाजी महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल स्थितियाँ खुद उनके लिए भी फायदेमंद हैं। अक्सर माँ बनने के साथ महिलाओं के कॅरियर में बाधा आ जाती है।
अनेक महिलाएँ तब नौकरी छोड़ देती हैं। इसके साथ ही उन्हें ट्रेनिंग और तजुर्बा देने में कंपनियाँ, जो निवेश करती हैं वह बेकार चला जाता है। असल में अनेक कंपनियाँ यही सोचकर नियुक्ति के समय प्रतिभाशाली महिला उम्मीदवारों का चयन नहीं करतीं। इस तरह वे श्रेष्ठतर मानव संसाधन से वंचित रह जाती हैं। नए प्रस्ताव लागू होने पर महिलाएँ नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं होंगी। साथ ही ये नियम बड़े सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप भी हैं। मसलन, बाल विकास की दृष्टि से जीवन के आरंभिक छह महीने बेहद अहम होते हैं। उस दौरान शिशु को माता-पिता के सघन देखभाल की आवश्यकता होती है, इसीलिए अब विकसित देशों में पितृत्व अवकाश भी दिया जाने लगा है, ताकि नवजात बच्चों की तमाम शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी हो सकें।
फिर जब आधुनिक सूचना तकनीक भौतिक दूरियों को अप्रासंगिक करती जा रही है, तो (जहाँ संभव हो) घर से काम करने का विकल्प देने में किसी संस्था/कंपनी को कोई नुकसान नहीं होगा। केंद्रीय सिविल सर्विस सेवा (अवकाश) नियम-1972 के तहत सरकारी महिला कर्मचारियों को छह महीने का मातृत्व अवकाश पहले से मिल रहा है। अब दो साल तक घर से काम करने का विकल्प सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों की नई माँ बनीं महिला कर्मचारियों को देना प्रगतिशील कदम माना जाएगा। .इससे भारत उन देशों में शामिल होगा, जहाँ महिला कर्मचारियों के लिए उदार कायदे अपनाए गए हैं। 42 देशों में 18 हफ्तों से अधिक मातृत्व अवकाश का प्रावधान लागू है। वहाँ का अनुभव है कि इन नियमों से सामाजिक विकास को बढ़ावा मिला, जबकि उत्पादन या आर्थिक विकास पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ। बेशक ऐसा ही भारत में भी होगा। अत: नए नियमों को लागू करने की तमाम औपचारिकताएँ सरकार को यथाशीघ्र पूरी करनी चाहिए।
4. जीवन गढ़ने वाला साहित्यकार
जिन्होंने अपने लेखन के जरिये पिछले करीब पाँच दशकों से गुजराती साहित्य को प्रभावित किया है और लेखन की करीब सभी विधाओं में जिनकी मौजूदगी अनुप्राणित करती है, उन रघुवीर चौधरी को इस वर्ष के ज्ञानपीठ सम्मान के लिए चुनने का फैसला वाकई उचित है। गीता, गाँधी, विनोबा, गोवर्धनराम त्रिपाठी और काका कालेलकर ने उन्हें विचारों की गहराई दी, तो रामदरश मिश्र से उन्होंने हिंदी संस्कार लिया। विज्ञान और अध्यात्म, यथार्थ तथा संवेदना के साथ व्यंग्य की छटा भी उनके लेखन में दिखाई देती है। रघुवीर चौधरी हृदय से कवि हैं। विचारों की गहराई और तस्वीरों-संकेतों का सार्थक प्रयोग अगर तमाशा जैसी उनकी शुरुआती काव्य कृतियों में मिलता है, तो सौराष्ट्र के जीवन पर उनके काव्य में लोकजीवन की अद्भुत छटा दिखती है।
अलबत्ता व्यापक पहचान तो उन्हें जीवन की गहराइयों और रिश्तों की फाँस को परिभाषित करते उनके उपन्यासों ने ही दिलाई। उनके उपन्यास अमृता को गुजराती साहित्य में एक मोड़ घुमा देने वाली घटना माना जा सकता है। इसके जरिये गुजराती साहित्य में अस्तित्ववाद की प्रभावी झलक तो मिली ही, पहली बार गुजराती साहित्य में परिष्कृत भाषा की भी शुरुआत हुई। गुजराती भाषा को मांजने में उनका योगदान दूसरे किसी से भी अधिक है। उपर्वास त्रयी ने रघुवीर चौधरी को ख्याति के साथ साहित्य अकादमी सम्मान दिलाया, तो रुद्र महालय और सोमतीर्थ जैसे ऐतिहासिक उपन्यास मानक बनकर सामने आए।
पर रघुवीर चौधरी का परिचय साहित्य के दायरे से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से लेकर नवनिर्माण आंदोलन तक में भागीदारी उनके एक सजग-जिम्मेदार नागरिक होने का परिचायक है, जिसका सुबूत अखबारों में उनके स्तंभ लेखन से भी मिलता है। साहित्य अकादमी से लेकर प्रेस काउंसिल और फ़िल्म फेस्टिवल तक में उनकी भूमिका उनकी रुचि वैविध्य का प्रमाण है। आरक्षण पर उन्होंने किताब लिखी है; हालांकि आरक्षण के मामले में गांधी और अंबेडकर के समर्थक रघुवीर चौधरी पाटीदार आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं। अपने गाँव को सौ फीसदी साक्षर बनाने से लेकर कृषि कर्म में उनकी सक्रियता भी उन्हें गांधी की माटी के एक सच्चे गांधी के तौर पर प्रतिष्ठित करती है।
5. अखंड भारत की सुंदर कल्पना
भाजपा महासचिव राम माधव ने अल जजीरा को दिए एक इंटरव्यू में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर अखंड भारत के निर्माण की जो इच्छा जताई है, वह नई न होने के बावजूद चौंकाती है, तो उसकी वजह है। तीनों देशों को एक करने की इच्छा बहुतेरे लोग जताते हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव तो जब-तब भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ की बात करते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस संकल्पना के पीछे, राम माधव पिछले साल तक भी जिसके प्रवक्ता थे, वस्तुतः वृहद हिंदू राष्ट्र की वह संकल्पना है, जो विभाजन के कारण साकार नहीं हो सकी लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र मानने वाले राम माधव यह उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क आपसी रजामंदी से संघ और भाजपा की इच्छा के अनुरूप वृहद हिंदू ���ाष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए तैयार हो जाएँगे? यही नहीं, राम माधव को इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के उन नेताओं की भी राय ले लेनी चाहिए, जो केंद्र की मौजूदा सरकार की रीति-नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोगों को पाकिस्तान भेज देने की बात करते हैं।
अलबत्ता इच्छा चाहे वृहद हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने की हो या भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ बनाने की, यथार्थ के आईने में यह व्यर्थ की कवायद ही ज़्यादा है। आज़ादी के बाद भारत ने लोकतांत्रिक परंपरा को मज़बूत करते हुए विकास के रास्ते पर लगातार कदम बढ़ाया, जबकि पाकिस्तान सामंतवादी व्यवस्था में जकड़ा रहा, जिसके सुबूत सैन्यतंत्र की मज़बूती, लोकतंत्र की कमजोरी और कट्टरवाद तथा आतंकवाद के मज़बूत होने के रूप में दिखाई पड़ी। बांग्लादेश ने ज़रूर अपने स्तर पर कमोबेश प्रगति की, पर कट्टरता के मामले में वह पीछे नहीं है। लिहाजा इन दो देशों को अपने साथ जोड़ने से भारत पर बोझ ही बढ़ेगा। जब सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात करते हुए छोटी इकाइयों को तरजीह दी जा रही है, तब तीन देशों का महासंघ प्रशासनिक दृष्टि से कितनी बड़ी चुनौती होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। लिहाजा यथार्थ को स्वीकारते हुए इन तीनों देशों के आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करना ही अधिक व्यावहारिक लगता है।
6. संपादकीय
प्रत्येक जीव में अपने प्रति सुरक्षा का भाव होना एक सहज वृत्ति है। पराक्रमी और शक्तिशाली व्यक्ति या जीव से लेकर निरीह प्राणी तक, जिस किसी में भी चेतना होती है, सभी अपने लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश या अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण की जद्दोजहद में जुटे दिखाई पड़ते हैं। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो, अपने दैनिक जीवन में ही इसके कई उदाहरण दिखाई पड़ेंगे लेकिन सुरक्षित और अनुकूल परिस्थिति का निर्माण बिना जोखिम उठाये संभव नहीं होता है। यदि किसी को सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण बिना किसी संघर्ष के मिल भी जाए तो वह जीवन अर्थहीन माना जाएगा।
ध्यान रहे कि संघर्ष से न डरने वालों का जीवन सुगमतापूर्वक व्यतीत सदैव समस्याओं की दलदल में फँसता रहता है। कर्मपथ पर सबसे अधिक भरोसा स्वयं पर करना होता है, लेकिन परिस्थितियाँ आने पर दूसरों के सहयोग की भी ज़रूरत होती है। लेकिन यह सनद रहे कि केवल दूसरों से ही सहयोग लेना उचित नहीं होता बल्कि सहयोग देने के लिए भी तत्पर रहना होता है। हालांकि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दूसरों से सहयोग लेने की आदत पड़ जाती है, जो उन्हें पराश्रित बना देती है और इस प्रकार व्यक्ति न केवल कमज़ोर होता जाता है बल्कि स्वयं के कौशलों को भी क्षीण करता जाता है।
लक्ष्य की ओर बढ़ते हर युवा को यह समझना चाहिए कि जीवन में आदर्श परिस्थितियों जैसा कभी कुछ नहीं होता। कभी धाराएँ अपनी दिशा में तो कभी प्रतिकूल दिशा में होती है। ऐसे में, हर व्यक्ति का यही कर्तव्य है कि वह बगैर हिम्मत हारे, पूरी क्षमता से अपनी पतवार चलाता रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व्यक्ति के आत्मबल पर खूब जोर देते थे। याद रहे कि मुश्किल परिस्थितियों में व्यक्ति का आत्मबल ही सबसे अचूक हथियार होता है। हमें अपने आत्मबल को इतना ऊँचा और अपने संकल्प को इतना दृढ़ बना लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में हमारी मानसिक शांति पर आँच न आ सके। हर युवा को यह समझ लेना चाहिए कि कोई भी परिस्थिति इतनी कठिन नहीं होती कि वह व्यक्ति के अस्तित्व पर हावी हो जाए।
7. व्यक्ति पूजा की संस्कृति से बाहर निकलें पार्टियाँ
अपने 131वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। पार्टी की महाराष्ट्र इकाई की पत्रिका ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे लेखों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अतीत को उकेरा गया और जवाहर लाल नेहरू की कुछ नीतियों की ओलाचना की गई। नेहरू के संबंध में कहा गया कि अगर वे सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से चलते तो चीन, तिब्बत तथा जम्मू-कश्मीर के मामलों में स्थितियाँ कुछ अलग होतीं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। ऐसी राय रखने वाले लोग हमेशा मौजूद रहे हैं। यह भी सही है कि प्रथम प्रधानमंत्री के अनेक समकालीन नेता तथा इतिहासकार यह नहीं मानते-जैसाकि ‘कांग्रेस दर्शन’ के लेख में कहा गया है-कि नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण थे या उनमें संवादहीनता थी। वैसे गुजरे दौर के बारे में बौद्धिक एवं राजनीतिक दायरे में अलग-अलग समझ सामने आए, इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह ऐसे मामलों पर पार्टी के अंदर सभी विचारों को व्यक्त होने का मौका देती। उससे पार्टी का वैचारिक-यहाँ तक सांगठनिक आधार भी-अधिक व्यापक होता।
हालांकि, सोनिया गांधी के बारे में कही गई बातों के पीछे दुर्भावना तलाशी जा सकती है, लेकिन बेहतर नज़रिया यह होगा कि पार्टी इन बातों का सीधे सामना करे, इसलिए कि अगर (जैसाकि लेख में अध्यक्ष का कोई दोष नहीं है। यह कहना कि पार्टी में शामिल होने के महज 62 दिन बाद वे कांग्रेस की अध्यक्ष बन गईं, सोनिया से कहीं ज्यादा कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति पर टिप्पणी है, जिसकी एक परिवार पर निर्भरता जग-जाहिर है लेकिन ऐसा अब ज़्यादातर पार्टियों के साथ हो चुका है।
दरअसल, अपने देश में राजनीतिक दलों ने अपने नेता को ‘सुप्रीमो’ यानी सबसे और तमाम सवालों से ऊपर मानने तथा वंशवादी उत्तराधिकार की ऐसी संस्कृति अपना रखी है, जिससे उनके भीतर लोकतांत्रिक विचार-विमर्श अवरुद्ध हो गया है। इस कारण उन दलों को गाहे-ब-गाहे शार्मिंदगियों से भी गुजरना पड़ता है। फिलहाल, ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ है। इस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया अगर ‘कांग्रेस दर्शन’ के संपादक की बर्खास्तगी तक सीमित रह गई, तो यही कहा जाएगा कि उसने असली समस्या से आँखें चुरा लीं। सही सबक यह होगा कि पार्टी अपने भीतर इतिहास और वैचारिक सवालों पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित करे तथा किसी पूर्व या वर्तमान नेता को आलोचना से ऊपर न माने।
8. हिंसक आंदोलनों पर अब लगाम लगाने का वक्त
मामला गुजरात का था, लेकिन हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और तोड़फोड़ की ताजा पृष्ठभूमि में यह सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ आया। उद्योगपतियों की संस्था एसोचैम का अनुमान है कि हरियाणा में इस आंदोलन के दौरान 25,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। पिछले वर्ष गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के समय भी बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। ऐसा ही राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के वक्त हुआ। ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण पाने का जाट अथवा दूसरी जातियों का दावा कितना औचित्यपूर्ण है, यह दीगर सवाल है। मगर लोग अराजकता जैसी हालत पैदा करने पर उतर आएँ, तो उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। लोकतांत्रिक समाज में वह सिरे से अस्वीकार्य होना चाहिए।
यह बात दरअसल तमाम किस्म के आंदोलनों पर लागू होती है, इसलिए यह संतोष की बात है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को अति-गंभीरता से लिया है। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ पटेल समुदाय के नेता हार्दिक पटेल पर दायर राजद्रोह मामले की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान उसने यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की, ‘हम लोगों को राष्ट्र की संपत्ति जलाने और आंदोलन के नाम पर देश को बंधक बनाने की इजाजत नहीं दे सकते।’ कोर्ट ने कहा कि वह सार्वजनिक संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने वाले लोगों को दंडित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा।
न्यायाधीशों ने संकेत दिया कि इसके तहत संभव है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों को क्षतिपूर्ति देनी पड़े। असल में यातायात रोकने से होने वाली दिक्कतों पर भी इसके साथ ही विचार करने की आवश्यकता है। उससे हजारों लोगों के समय और धन की बर्बादी होती है और उन्हें एवं उनके परिजनों को गहरी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। अपनी माँग मनवाने के लिए दूसरों को ऐसी मुसीबत में डालने का यह चलन खासकर आरक्षण की माँग को लेकर होने वाले आंदोलनों में बढता गया है। इस पर तुरंत रोक लगाने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से अब इस दिशा में प्रभावी पहल की उम्मीद बंधी है। वैसे बेहतर होता राजनीतिक दल आम-सहमति बनाते और संसद इस बारे में एक व्यापक कानून बनाती। किंतु वोट बैंक की चिंता में रहने वाली पार्टियों से यह उम्मीद करना बेमतलब है, इसीलिए अनेक दूसरे मामलों की तरह इस मुद्दे पर भी आशा न्यायपालिका से ही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्नः 1.संपादक के दो प्रमुख कार्य बताइए। (CBSE-2011, 2012, 2015)उत्तरःसंपादक के दो प्रमुख कार्य हैं –(क) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का चयन कर प्रकाशन योग्य बनाना।(ख) तात्कालिक घटनाओं पर संपादकीय लेख लिखना।
प्रश्नः 2.संपादकीय किसे कहते हैं? (CBSE-2009, 2010, 2014)उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ पर तत्कालीन घटनाओं पर संपादक की टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है। इसे अखबार की आवाज़ माना जाता है।
प्रश्नः 3.संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं दिया जाता? (CBSE-2009, 2014)उत्तरःसंपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। यह व्यक्ति की टिप्पणी नहीं होती। अपितु समूह का पर्याय होता है। इसलिए संपादकीय में लेखक का नाम नहीं दिया जाता।
प्रश्नः 4.संपादकीय का महत्त्व समझाइए। (CBSE-2016)उत्तरःसंपादकीय तत्कालीन घटनाक्रम पर समूह की राय व्यक्त करता है। वह निष्पक्ष होकर उस पर अपने सुझाव भी देता है। मज़बूत लोकतंत्र में संपादकीय की महती आवश्यकता है।
प्रश्नः 5.समाचार पत्र के किस पृष्ठ पर विज्ञापन देने की परंपरा नहीं है?उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ।
प्रश्नः 6.सामान्यतः किस दिन संपादकीय नहीं छपता?उत्तरःरविवार।
प्रश्नः 7.संपादकीय का उददेश्य क्या है?उत्तरःसंपादकीय का उद्देश्य विषय विशेष पर अपने विचार पाठक व सरकार तक पहुँचाना है।
प्रश्नः 8.संपादकीय पृष्ठ पर क्या-क्या होता है?उत्तरःसंपादकीय, संपादक के नाम पत्र, आलेख, विचार आदि।
प्रश्नः 9.भारत में संपादकीय पृष्ठ पर कार्टून न छपने का क्या कारण है?उत्तरःकार्टून हास्य व्यंग्य का प्रतीक है। यह संपादकीय पृष्ठ की गंभीरता को कम करता है।
via Blogger https://ift.tt/2YHCMDQ
0 notes
Text
NCERT Class 12 Hindi Sampadkiya Lekhan
NCERT Class 12 Hindi Sampadkiya Lekhan
CBSE Class 12 Hindi (संपादकीय लेखन)
प्रश्नः 1.संपादकीय का क्या महत्त्व है?उत्तरःसंपादक संपादकीय पृष्ठ पर अग्रलेख एवं संपादकीय लिखता है। इस पृष्ठ के आधार पर संपादक का पूरा व्यक्तित्व झलकता है। अपने संपादकीय लेखों में संपादक युगबोध को जाग्रत करने वाले विचारों को प्रकट करता है। साथ ही समाज की विभिन्न बातों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। संपादकीय पृष्ठों से उसकी साधना एवं कर्मठता की झलक आती है। वस्तुतः संपादकीय पृष्ठ पत्र की अंतरात्मा है, वह उसकी अंतरात्मा की आवाज़ है। इसलिए कोई बड़ा समाचार-पत्र बिना संपादकीय पृष्ठ के नहीं निकलता।
पाठक प्रत्येक समाचार-पत्र का अलग व्यक्तित्व देखना चाहता है। उनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ देखना चाहता है जो उसे अन्य समाचार से अलग करती हों। जिस विशेषता के आधार पर वह उस पत्र की पहचान नियत कर सके। यह विशेषता समाचार-पत्र के विचारों में, उसके दृष्टिकोण में प्रतिलक्षित होती है, किंतु बिना संपादकीय पृष्ठ के समाचार-पत्र के विचारों का पता नहीं चलता। यदि समाचार-पत्र के कुछ विशिष्ट विचार हो, उन विचारों में दृढ़ता हो और बारंबार उन्हीं विचारों का समर्थन हो तो पाठक उन विचारों से असहमत होते हुए भी उस समाचार-पत्र का मन में आदर करता है। मेरुदंडहीन व्यक्ति को कौन पूछेगा। संपादकीय लेखों के विषय समाज के विभिन्न क्षेत्रों को लक्ष्य करके लिखे जाते हैं।
प्रश्नः 2.किन-किन विषयों पर संपादकीय लिखा जाता है?उत्तरःजिन विषयों पर संपादकीय लिखे जाते हैं, उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
समसामयिक विषयों पर संपादकीय
दिशा-निर्देशात्मक संपादकीय
संकेतात्मक संपादकीय
दायित्वबोध और नैतिकता की भावना से परिपूर्ण संपादकीय
व्याख्यात्मक संपादकीय
आलोचनात्मक संपादकीय
समस्या संपादकीय
साहित्यिक संपादकीय
सांस्कृतिक संपादकीय
खेल से संबंधित संपादकीय
राजनीतिक संपादकीय।
प्रश्नः 3.संपादकीय का अर्थ बताइए।उत्तरः‘संपादकीय’ का सामान्य अर्थ है-समाचार-पत्र के संपादक के अपने विचार। प्रत्येक समाचार-पत्र में संपादक प्रतिदिन ज्वलंतविषयों पर अपने विचार व्यक्त करता है। संपादकीय लेख समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है। संपादकीय के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है। अतएव संपादक को चाहिए कि वह इसमें संतुलित टिप्पणियाँ ही प्रस्तुत करे।
संपादकीय में किसी घटना पर प्रतिक्रिया हो सकती है तो किसी विषय या प्रवृत्ति पर अपने विचार हो सकते हैं, इसमें किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है तो किसी उलझी हुई स्थिति का विश्लेषण हो सकता है।
प्रश्नः 4.संपादकीय पृष्ठ के बारे में बताइए।उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ को समाचार-पत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार लेख के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आमतौर पर संपादक के नाम पत्र भी इसी पृष्ठ पर प्रकाशित किए जाते हैं। वह घटनाओं पर आम लोगों की टिप्पणी होती है। समाचार-पत्र उसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
प्रश्नः 5.अच्छे संपादकीय में क्या गुण होने चाहिए?उत्तरःएक अच्छे संपादकीय में अपेक्षित गुण होने अनिवार्य हैं –
संपादकीय लेख की शैली प्रभावोत्पादक एवं सजीव होनी चाहिए।
भाषा स्पष्ट, सशक्त और प्रखर हो।
चुटीलेपन से भी लेख अपेक्षाकृत आकर्षक बन जाता है।
संपादक की प्रत्येक बात में बेबाकीपन हो।
ढुलमुल शैली अथवा हर बात को सही ठहराना अथवा अंत में कुछ न कहना-ये संपादकीय के दोष माने जाते हैं,अतः संपादक को इनसे बचना चाहिए।
उदाहरण
1. दाऊद पर पाक को और सुबूत
डॉन को सौंप सच्चे पड़ोसी बने जनरल
भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के चेहरे से नकाब नोच फेंका है। मुंबई बमकांड के प्रमुख अभियुक्तों में से एक और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पाक में होने के कुछ और पक्के सुबूत मंगलवार को नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को सौंपे हैं। इनमें प्रमाण के तौर पर दाऊद के दो पासपोर्ट नंबर पाकिस्तान को सौंपे हैं। यही नहीं, भारत सरकार ने दाऊद के पाकिस्तानी ठिकानों से संबंधित कई साक्ष्य भी जनरल साहब को भेजे हैं। इनमें दो पते कराची के हैं। भारत एक लंबे समय से पाकिस्तान से दाऊद के प्रत्यर्पण की माँग करता आ रहा है। अमेरिका भी बहुत पहले साफ कर चुका है कि दाऊद पाक में ही है। पिछले दिनों बुश प्रशासन ने वांछितों की जो सूची जारी की थी, उसमें दाऊद का पता कराची दर्ज है। दरअसल अलग-अलग कारणों से भारत, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए दाऊद अह्म होता जा रहा है। भारत का मानना है कि 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाकों को अंजाम देने के बाद, फरार डॉन अब भी पाकिस्तान से बैठकर भारत में आतंकवाद को गिजा-पानी मुहैया करा रहा है।
अमेरिका ने दाऊद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। वाशिंगटन का दावा है कि दाऊद कराची से यूरोप और अमेरिकी देशों में ड्रग्स का करोबार भी चला रहा है, लिहाजा उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है। तीसरी तरफ, पाकिस्तान के लिए दाऊद इब्राहिम इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में आतंक फैला रहे संगठनों को जोड़े रखने और उनको पैसे तथा हथियार मुहैया कराने में दाऊद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खबर तो यहाँ तक है कि दाऊद ने पाकिस्तान की सियासत में भी दखल देना शुरू कर दिया है और यही वह मुकाम है, जब राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को कभी-कभी दाऊद खतरनाक लगने लगता है। फिर भी, वह उसे पनाह दिए हुए है। जब भी भारत दाऊद की माँग करता है, पाक का रटा-रटाया जवाब होता है कि वह पाकिस्तान में है ही नहीं पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने कोशिश की कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों और इंटरपोल की फेहरिस्तों से दाऊद के पाकिस्तानी पतों को खत्म करा दिया जाए, लेकिन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश इसके लिए तैयार नहीं हुए।
भारत के खिलाफ आतंकवाद को पालने-पोसने और शह देने में पाकिस्तान की भूमिका जग-जाहिर है। एफबीआई ने दो दिन पूर्व अमेरिका की एक अदालत में सचित्र साक्ष्यों के साथ एक हलफनामा दायर कर दावा किया है कि पाक के बालाघाट में आतंकी शिविर सक्रिय है। बुधवार को भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद में सरकार ने खुलासा किया कि पाक अधिकृत कश्मीर में 52 आतंकी शिविर चल रहे हैं। क्या जॉर्ज बुश इन बातों पर गौर फरमाएँगे? भारत को भी दाऊद चाहिए और अमेरिका को भी, तो क्यों नहीं बुश प्रशासन पाकिस्तान पर जोर डालता है कि वह डॉन को भारत को सौंपकर एक सच्चे पड़ोसी का हक अदा करे। पाकिस्तान के शासन को भी समझना चाहिए, साँप-साँप होता है जिस दिन उनको डसेगा, तब पता चलेगा।
2. धरती के बढ़ते तापमान का साक्षी बना नया साल
उत्तर भारत में लोगों ने नववर्ष का स्वागत असामान्य मौसम के बीच किया। इस भू-भाग में घने कोहरे और कडाके की ठंड के बीच रोमन कैलेंडर का साल बदलता रहा है, लेकिन 2015 ने खुले आसमान, गरमाहट भरी धूप और हल्की सर्दी के बीच हमसे विदाई ली। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। ब्रिटेन के मौसम विशेषज्ञ इयन कुरी ने तो दावा किया कि बीता महीना ज्ञात इतिहास का सबसे गर्म दिसंबर था। अमेरिका से भी ऐसी ही खबरें आईं। संयुक्त राष्ट्र पहले ही कह चुका था कि 2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में आने वाले दिनों में तापमान ज्यादा नहीं बदलेगा। यानी आने वाले दिनों में भी वैसी सर्दी पड़ने की संभावना नहीं है, जैसा सामान्यतः वर्ष के इन दिनों में होता है। दरअसल, कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का अनुमान है कि 2016 में तापमान बढ़ने का क्रम जारी रहेगा और संभवतः नया साल पुराने वर्ष के रिकॉर्ड को तोड़ देगा।
इसकी खास वजह प्रशांत महासागर में जारी एल निनो परिघटना है, जिससे एक बार फिर दक्षिण एशिया में मानसून प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से हवा का गरमाना जारी है। इन घटनाक्रमों का ही सकल प्रभाव है कि गुजरे 15 वर्षों में धरती के तापमान में चिंताजनक स्तर तक वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप हो रहे जलवायु परिवर्तन के लक्षण अब स्पष्ट नज़र आने लगे हैं। आम अनुभव है कि ठंड, गर्मी और बारिश होने का समय असामान्य हो गया है। गुजरा दिसंबर और मौजूदा जनवरी संभवत: इसी बदलाव के सबूत हैं। जलवायु परिवर्तन के संकेत चार-पाँच दशक पहले मिलने शुरू हुए। वर्ष 1990 आते-आते वैज्ञानिक इस नतीजे पर आ चुके थे कि मानव गतिविधियों के कारण धरती गरम हो रही है।
उन्होंने चेताया था कि इसके असर से जलवायु बदलेगी, जिसके खतरनाक नतीजे होंगे, लेकिन राजनेताओं ने उनकी बातों की अनदेखी की। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन रोकने की पहली संधि वर्ष 1992 में ही हुई, लेकिन विकसित देशों ने अपनी वचनबद्धता के मुताबिक उस पर अमल नहीं किया। अब जबकि खतरा बढ़ चुका है, तो बीते साल पेरिस में धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्शियस तक सीमित रखने के लिए नई संधि हुई। नया साल यह चेतावनी लेकर आया है कि अगर इस बार सरकारों ने लापरवाही दिखाई तो बदलता मौसम मानव सभ्यता की सूरत ही बदल देगा।
3. कामकाजी महिलाओं को मज़बूती देता फैसला
मातृत्व अवकाश की अवधि 12 से 26 हफ्ते करने और माँ बनने के बाद दो साल तक घर से काम करने का विकल्प देने का केंद्र का इरादा सराहनीय है। आशा है, इसका चौतरफा स्वागत होगा। सरकार इन प्रावधानों को निजी क्षेत्र में भी लागू करना चाहती है, लेकिन इससे कॉर्पोरेट सेक्टर को आशंकित नहीं होना चाहिए। इन नियमों को लागू कर कंपनियाँ न सिर्फ समाज में लैंगिक समता लाने में सहायक बनेंगी, बल्क��� गहराई से देखें तो उन्हें महसूस होगा कि कामकाजी महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल स्थितियाँ खुद उनके लिए भी फायदेमंद हैं। अक्सर माँ बनने के साथ महिलाओं के कॅरियर में बाधा आ जाती है।
अनेक महिलाएँ तब नौकरी छोड़ देती हैं। इसके साथ ही उन्हें ट्रेनिंग और तजुर्बा देने में कंपनियाँ, जो निवेश करती हैं वह बेकार चला जाता है। असल में अनेक कंपनियाँ यही सोचकर नियुक्ति के समय प्रतिभाशाली महिला उम्मीदवारों का चयन नहीं करतीं। इस तरह वे श्रेष्ठतर मानव संसाधन से वंचित रह जाती हैं। नए प्रस्ताव लागू होने पर महिलाएँ नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं होंगी। साथ ही ये नियम बड़े सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप भी हैं। मसलन, बाल विकास की दृष्टि से जीवन के आरंभिक छह महीने बेहद अहम होते हैं। उस दौरान शिशु को माता-पिता के सघन देखभाल की आवश्यकता होती है, इसीलिए अब विकसित देशों में पितृत्व अवकाश भी दिया जाने लगा है, ताकि नवजात बच्चों की तमाम शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें पूरी हो सकें।
फिर जब आधुनिक सूचना तकनीक भौतिक दूरियों को अप्रासंगिक करती जा रही है, तो (जहाँ संभव हो) घर से काम करने का विकल्प देने में किसी संस्था/कंपनी को कोई नुकसान नहीं होगा। केंद्रीय सिविल सर्विस सेवा (अवकाश) नियम-1972 के तहत सरकारी महिला कर्मचारियों को छह महीने का मातृत्व अवकाश पहले से मिल रहा है। अब दो साल तक घर से काम करने का विकल्प सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों की नई माँ बनीं महिला कर्मचारियों को देना प्रगतिशील कदम माना जाएगा। .इससे भारत उन देशों में शामिल होगा, जहाँ महिला कर्मचारियों के लिए उदार कायदे अपनाए गए हैं। 42 देशों में 18 हफ्तों से अधिक मातृत्व अवकाश का प्रावधान लागू है। वहाँ का अनुभव है कि इन नियमों से सामाजिक विकास को बढ़ावा मिला, जबकि उत्पादन या आर्थिक विकास पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं हुआ। बेशक ऐसा ही भारत में भी होगा। अत: नए नियमों को लागू करने की तमाम औपचारिकताएँ सरकार को यथाशीघ्र पूरी करनी चाहिए।
4. जीवन गढ़ने वाला साहित्यकार
जिन्होंने अपने लेखन के जरिये पिछले करीब पाँच दशकों से गुजराती साहित्य को प्रभावित किया है और लेखन की करीब सभी विधाओं में जिनकी मौजूदगी अनुप्राणित करती है, उन रघुवीर चौधरी को इस वर्ष के ज्ञानपीठ सम्मान के लिए चुनने का फैसला वाकई उचित है। गीता, गाँधी, विनोबा, गोवर्धनराम त्रिपाठी और काका कालेलकर ने उन्हें विचारों की गहराई दी, तो रामदरश मिश्र से उन्होंने हिंदी संस्कार लिया। विज्ञान और अध्यात्म, यथार्थ तथा संवेदना के साथ व्यंग्य की छटा भी उनके लेखन में दिखाई देती है। रघुवीर चौधरी हृदय से कवि हैं। विचारों की गहराई और तस्वीरों-संकेतों का सार्थक प्रयोग अगर तमाशा जैसी उनकी शुरुआती काव्य कृतियों में मिलता है, तो सौराष्ट्र के जीवन पर उनके काव्य में लोकजीवन की अद्भुत छटा दिखती है।
अलबत्ता व्यापक पहचान तो उन्हें जीवन की गहराइयों और रिश्तों की फाँस को परिभाषित करते उनके उपन्यासों ने ही दिलाई। उनके उपन्यास अमृता को गुजराती साहित्य में एक मोड़ घुमा देने वाली घटना माना जा सकता है। इसके जरिये गुजराती साहित्य में अस्तित्ववाद की प्रभावी झलक तो मिली ही, पहली बार गुजराती साहित्य में परिष्कृत भाषा की भी शुरुआत हुई। गुजराती भाषा को मांजने में उनका योगदान दूसरे किसी से भी अधिक है। उपर्वास त्रयी ने रघुवीर चौधरी को ख्याति के साथ साहित्य अकादमी सम्मान दिलाया, तो रुद्र महालय और सोमतीर्थ जैसे ऐतिहासिक उपन्यास मानक बनकर सामने आए।
पर रघुवीर चौधरी का परिचय साहित्य के दायरे से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से बहुत आगे जाता है। भूदान आंदोलन से लेकर नवनिर्माण आंदोलन तक में भागीदारी उनके एक सजग-जिम्मेदार नागरिक होने का परिचायक है, जिसका सुबूत अखबारों में उनके स्तंभ लेखन से भी मिलता है। साहित्य अकादमी से लेकर प्रेस काउंसिल और फ़िल्म फेस्टिवल तक में उनकी भूमिका उनकी रुचि वैविध्य का प्रमाण है। आरक्षण पर उन्होंने किताब लिखी है; हालांकि आरक्षण के मामले में गांधी और अंबेडकर के समर्थक रघुवीर चौधरी पाटीदार आंदोलन के पक्ष में नहीं हैं। अपने गाँव को सौ फीसदी साक्षर बनाने से लेकर कृषि कर्म में उनकी सक्रियता भी उन्हें गांधी की माटी के एक सच्चे गांधी के तौर पर प्रतिष्ठित करती है।
5. अखंड भारत की सुंदर कल्पना
भाजपा महासचिव राम माधव ने अल जजीरा को दिए एक इंटरव्यू में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिलाकर अखंड भारत के निर्माण की जो इच्छा जताई है, वह नई न होने के बावजूद चौंकाती है, तो उसकी वजह है। तीनों देशों को एक करने की इच्छा बहुतेरे लोग जताते हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव तो जब-तब भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ की बात करते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस संकल्पना के पीछे, राम माधव पिछले साल तक भी जिसके प्रवक्ता थे, वस्तुतः वृहद हिंदू राष्ट्र की वह संकल्पना है, जो विभाजन के कारण साकार नहीं हो सकी लेकिन भारत को हिंदू राष्ट्र मानने वाले राम माधव यह उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क आपसी रजामंदी से संघ और भाजपा की इच्छा के अनुरूप वृहद हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए तैयार हो जाएँगे? यही नहीं, राम माधव को इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के उन नेताओं की भी राय ले लेनी चाहिए, जो केंद्र की मौजूदा सरकार की रीति-नीतियों पर सवाल उठाने वाले लोगों को पाकिस्तान भेज देने की बात करते हैं।
अलबत्ता इच्छा चाहे वृहद हिंदू राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने की हो या भारत-पाक-बांग्लादेश महासंघ बनाने की, यथार्थ के आईने में यह व्यर्थ की कवायद ही ज़्यादा है। आज़ादी के बाद भारत ने लोकतांत्रिक परंपरा को मज़बूत करते हुए विकास के रास्ते पर लगातार कदम बढ़ाया, जबकि पाकिस्तान सामंतवादी व्यवस्था में जकड़ा रहा, जिसके सुबूत सैन्यतंत्र की मज़बूती, लोकतंत्र की कमजोरी और कट्टरवाद तथा आतंकवाद के मज़बूत होने के रूप में दिखाई पड़ी। बांग्लादेश ने ज़रूर अपने स्तर पर कमोबेश प्रगति की, पर कट्टरता के मामले में वह पीछे नहीं है। लिहाजा इन दो देशों को अपने साथ जोड़ने से भारत पर बोझ ही बढ़ेगा। जब सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात करते हुए छोटी इकाइयों को तरजीह दी जा रही है, तब तीन देशों का महासंघ प्रशासनिक दृष्टि से कितनी बड़ी चुनौती होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। लिहाजा यथार्थ को स्वीकारते हुए इन तीनों देशों के आपसी रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश करना ही अधिक व्यावहारिक लगता है।
6. संपादकीय
प्रत्येक जीव में अपने प्रति सुरक्षा का भाव होना एक सहज वृत्ति है। पराक्रमी और शक्तिशाली व्यक्ति या जीव से लेकर निरीह प्राणी तक, जिस किसी में भी चेतना होती है, सभी अपने लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश या अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण की जद्दोजहद में जुटे दिखाई पड़ते हैं। यदि हम अपने चारों ओर देखें तो, अपने दैनिक जीवन में ही इसके कई उदाहरण दिखाई पड़ेंगे लेकिन सुरक्षित और अनुकूल परिस्थिति का निर्माण बिना जोखिम उठाये संभव नहीं होता है। यदि किसी को सभी प्रकार से अनुकूल वातावरण बिना किसी संघर्ष के मिल भी जाए तो वह जीवन अर्थहीन माना जाएगा।
ध्यान रहे कि संघर्ष से न डरने वालों का जीवन सुगमतापूर्वक व्यतीत सदैव समस्याओं की दलदल में फँसता रहता है। कर्मपथ पर सबसे अधिक भरोसा स्वयं पर करना होता है, लेकिन परिस्थितियाँ आने पर दूसरों के सहयोग की भी ज़रूर��� होती है। लेकिन यह सनद रहे कि केवल दूसरों से ही सहयोग लेना उचित नहीं होता बल्कि सहयोग देने के लिए भी तत्पर रहना होता है। हालांकि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें दूसरों से सहयोग लेने की आदत पड़ जाती है, जो उन्हें पराश्रित बना देती है और इस प्रकार व्यक्ति न केवल कमज़ोर होता जाता है बल्कि स्वयं के कौशलों को भी क्षीण करता जाता है।
लक्ष्य की ओर बढ़ते हर युवा को यह समझना चाहिए कि जीवन में आदर्श परिस्थितियों जैसा कभी कुछ नहीं होता। कभी धाराएँ अपनी दिशा में तो कभी प्रतिकूल दिशा में होती है। ऐसे में, हर व्यक्ति का यही कर्तव्य है कि वह बगैर हिम्मत हारे, पूरी क्षमता से अपनी पतवार चलाता रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व्यक्ति के आत्मबल पर खूब जोर देते थे। याद रहे कि मुश्किल परिस्थितियों में व्यक्ति का आत्मबल ही सबसे अचूक हथियार होता है। हमें अपने आत्मबल को इतना ऊँचा और अपने संकल्प को इतना दृढ़ बना लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में हमारी मानसिक शांति पर आँच न आ सके। हर युवा को यह समझ लेना चाहिए कि कोई भी परिस्थिति इतनी कठिन नहीं होती कि वह व्यक्ति के अस्तित्व पर हावी हो जाए।
7. व्यक्ति पूजा की संस्कृति से बाहर निकलें पार्टियाँ
अपने 131वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। पार्टी की महाराष्ट्र इकाई की पत्रिका ‘कांग्रेस दर्शन’ में छपे लेखों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अतीत को उकेरा गया और जवाहर लाल नेहरू की कुछ नीतियों की ओलाचना की गई। नेहरू के संबंध में कहा गया कि अगर वे सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह से चलते तो चीन, तिब्बत तथा जम्मू-कश्मीर के मामलों में स्थितियाँ कुछ अलग होतीं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। ऐसी राय रखने वाले लोग हमेशा मौजूद रहे हैं। यह भी सही है कि प्रथम प्रधानमंत्री के अनेक समकालीन नेता तथा इतिहासकार यह नहीं मानते-जैसाकि ‘कांग्रेस दर्शन’ के लेख में कहा गया है-कि नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण थे या उनमें संवादहीनता थी। वैसे गुजरे दौर के बारे में बौद्धिक एवं राजनीतिक दायरे में अलग-अलग समझ सामने आए, इसमें कुछ अस्वाभाविक नहीं है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह ऐसे मामलों पर पार्टी के अंदर सभी विचारों को व्यक्त होने का मौका देती। उससे पार्टी का वैचारिक-यहाँ तक सांगठनिक आधार भी-अधिक व्यापक होता।
हालांकि, सोनिया गांधी के बारे में कही गई बातों के पीछे दुर्भावना तलाशी जा सकती है, लेकिन बेहतर नज़रिया यह होगा कि पार्टी इन बातों का सीधे सामना करे, इसलिए कि अगर (जैसाकि लेख में अध्यक्ष का कोई दोष नहीं है। यह कहना कि पार्टी में शामिल होने के महज 62 दिन बाद वे कांग्रेस की अध्यक्ष बन गईं, सोनिया से कहीं ज्यादा कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति पर टिप्पणी है, जिसकी एक परिवार पर निर्भरता जग-जाहिर है लेकिन ऐसा अब ज़्यादातर पार्टियों के साथ हो चुका है।
दरअसल, अपने देश में राजनीतिक दलों ने अपने नेता को ‘सुप्रीमो’ यानी सबसे और तमाम सवालों से ऊपर मानने तथा वंशवादी उत्तराधिकार की ऐसी संस्कृति अपना रखी है, जिससे उनके भीतर लोकतांत्रिक विचार-विमर्श अवरुद्ध हो गया है। इस कारण उन दलों को गाहे-ब-गाहे शार्मिंदगियों से भी गुजरना पड़ता है। फिलहाल, ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ है। इस पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया अगर ‘कांग्रेस दर्शन’ के संपादक की बर्खास्तगी तक सीमित रह गई, तो यही कहा जाएगा कि उसने असली समस्या से आँखें चुरा लीं। सही सबक यह होगा कि पार्टी अपने भीतर इतिहास और वैचारिक सवालों पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित करे तथा किसी पूर्व या वर्तमान नेता को आलोचना से ऊपर न माने।
8. हिंसक आंदोलनों पर अब लगाम लगाने का वक्त
मामला गुजरात का था, लेकिन हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और तोड़फोड़ की ताजा पृष्ठभूमि में यह सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ आया। उद्योगपतियों की संस्था एसोचैम का अनुमान है कि हरियाणा में इस आंदोलन के दौरान 25,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। पिछले वर्ष गुजरात में पटेल आरक्षण आंदोलन के समय भी बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। ऐसा ही राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के वक्त हुआ। ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण पाने का जाट अथवा दूसरी जातियों का दावा कितना औचित्यपूर्ण है, यह दीगर सवाल है। मगर लोग अराजकता जैसी हालत पैदा करने पर उतर आएँ, तो उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। लोकतांत्रिक समाज में वह सिरे से अस्वीकार्य होना चाहिए।
यह बात दरअसल तमाम किस्म के आंदोलनों पर लागू होती है, इसलिए यह संतोष की बात है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को अति-गंभीरता से लिया है। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ पटेल समुदाय के नेता हार्दिक पटेल पर दायर राजद्रोह मामले की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान उसने यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की, ‘हम लोगों को राष्ट्र की संपत्ति जलाने और आंदोलन के नाम पर देश को बंधक बनाने की इजाजत नहीं दे सकते।’ कोर्ट ने कहा कि वह सार्वजनिक संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने वाले लोगों को दंडित करने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा।
न्यायाधीशों ने संकेत दिया कि इसके तहत संभव है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों को क्षतिपूर्ति देनी पड़े। असल में यातायात रोकने से होने वाली दिक्कतों पर भी इसके साथ ही विचार करने की आवश्यकता है। उससे हजारों लोगों के समय और धन की बर्बादी होती है और उन्हें एवं उनके परिजनों को गहरी मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ती है। अपनी माँग मनवाने के लिए दूसरों को ऐसी मुसीबत में डालने का यह चलन खासकर आरक्षण की माँग को लेकर होने वाले आंदोलनों में बढता गया है। इस पर तुरंत रोक लगाने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख से अब इस दिशा में प्रभावी पहल की उम्मीद बंधी है। वैसे बेहतर होता राजनीतिक दल आम-सहमति बनाते और संसद इस बारे में एक व्यापक कानून बनाती। किंतु वोट बैंक की चिंता में रहने वाली पार्टियों से यह उम्मीद करना बेमतलब है, इसीलिए अनेक दूसरे मामलों की तरह इस मुद्दे पर भी आशा न्यायपालिका से ही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्नः 1.संपादक के दो प्रमुख कार्य बताइए। (CBSE-2011, 2012, 2015)उत्तरःसंपादक के दो प्रमुख कार्य हैं –(क) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समाचारों का चयन कर प्रकाशन योग्य बनाना।(ख) तात्कालिक घटनाओं पर संपादकीय लेख लिखना।
प्रश्नः 2.संपादकीय किसे कहते हैं? (CBSE-2009, 2010, 2014)उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ पर तत्कालीन घटनाओं पर संपादक की टिप्पणी को संपादकीय कहा जाता है। इसे अखबार की आवाज़ माना जाता है।
प्रश्नः 3.संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं दिया जाता? (CBSE-2009, 2014)उत्तरःसंपादकीय को अखबार की आवाज़ माना जाता है। यह व्यक्ति की टिप्पणी नहीं होती। अपितु समूह का पर्याय होता है। इसलिए संपादकीय में लेखक का नाम नहीं दिया जाता।
प्रश्नः 4.संपादकीय का महत्त्व समझाइए। (CBSE-2016)उत्तरःसंपादकीय तत्कालीन घटनाक्रम पर समूह की राय व्यक्त करता है। वह निष्पक्ष होकर उस पर अपने सुझाव भी देता है। मज़बूत लोकतंत्र में संपादकीय की महती आवश्यकता है।
प्रश्नः 5.समाचार पत्र के किस पृष्ठ पर विज्ञापन देने की परंपरा नहीं है?उत्तरःसंपादकीय पृष्ठ।
प्रश्नः 6.सामान्यतः किस दिन संपादकीय नहीं छपता?उत्तरःरविवार।
प्रश्नः 7.संपादकीय का उददेश्य क्या है?उत्तरःसंपादकीय का उद्देश्य विषय विशेष पर अपने विचार पाठक व सरकार तक पहुँचाना है।
प्रश्नः 8.संपादकीय पृष्ठ पर क्या-क्या होता है?उत्तरःसंपादकीय, संपादक के नाम पत्र, आलेख, विचार आदि।
प्रश्नः 9.भारत में संपादकीय पृष्ठ पर कार्टून न छपने का क्या कारण है?उत्तरःकार्टून हास्य व्यंग्य का प्रतीक है। यह संपादकीय पृष्ठ की गंभीरता को कम करता है।
from Blogger http://www.margdarsan.com/2020/08/ncert-class-12-hindi-sampadkiya-lekhan.html
0 notes
Text
आयोग के प्रस्तावों को खंगाल रही सीबीआइ, अब मांग, पूर्व सीएम अखिलेश यादव की संपत्ति भी जांचे एजेंसी
आयोग के प्रस्तावों को खंगाल रही सीबीआइ, अब मांग, पूर्व सीएम अखिलेश यादव की संपत्ति भी जांचे एजेंसी
इलाहाबाद : उप्र लोक सेवा आयोग से हुई भर्तियों की जांच में परीक्षा समिति की ओर से पारित प्रस्ताव भी खंगाले जा रहे हैं। सीबीआइ के अफसर कई दिनों से सामान्य व असाधारण प्रस्ताव, उनके उद्देश्य और प्रतियोगियों या आयोग को इससे होने वाले लाभ की जानकारी जुटा ��हे हैं। सामान्य कार्य दिवस ही नहीं, सार्वजनिक अवकाश में भी सीबीआइ की छह सदस्यीय टीम आयोग में डेरा डाले रही। सोमवार को कई अधिकारियों से पूछताछ हुई। 1पांच साल के दौरान आयोग से हुई सभी भर्तियों की जांच का सिलसिला तेजी से चल निकला है। सीबीआइ ने पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल यादव के कार्यकाल में पारित प्रस्तावों पर ध्यान केंद्रित कर दिया है। प्राथमिकता असाधारण प्रस्ताव को लेकर है। यह प्रस्ताव कब बनें, क्यों बनाए गए, इससे प्रतियोगियों का क्या हित हुआ, असाधारण प्रस्ताव किन परिस्थितियों में लाया जा सकता है। इन जैसे अन्य सवाल भी आयोग के अफसरों के सामने सीबीआइ टीम की जुबां पर हैं। सूत्र बताते हैं कि इन प्रस्तावों में ही सीबीआइ पूर्व अध्यक्ष पर मनमानी के लगे आरोप को पुख्ता करने की कोशिश में है। सीबीआइ ने रविवार और सोमवार को आयोग में रहकर पीसीएस 2015 तथा 2014 में भी हुई विभिन्न परीक्षाओं के दौरान अचानक बदले गए नियम की जानकारी आयोग के अधिकारियों से ली।पूछताछ के अलावा सीबीआइ के अधिकारी भर्तियों के अभिलेख भी लगातार मांग रहे हैं, जिन्हें उपलब्ध कराने के लिए आयोग में कई अधिकारियों को विशेष रूप से लगाया गया है। आयोग का कहना है कि सीबीआइ की ओर से मांगे जा रहे सभी अभिलेख मूल रूप से दिए जा रहे हैं, जबकि उनकी फोटो स्टेट प्रति सुरक्षित रखी जा रही है। सीबीआइ टीम ने रविवार को भी आयोग में पूरे दिन रहकर तमाम अभिलेख खंगाले थे।इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग से हुई भर्तियों में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की भूमिका पर सवाल उठे हैं। कहा जा रहा है कि उनकी सहमति के बिना आयोग से हुई भर्तियों में भ्रष्टाचार संभव नहीं था। यह दावा प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की ओर से किया गया है और सीबीआइ को पत्र देकर अखिलेश यादव की भर्तियों में भूमिका, उनकी संपत्ति की जांच करने की मांग की गई है। समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय ने सीबीआइ के एसपी को मांत्र पत्र सोमवार को भेजा। इसमें लिखा है कि आयोग के पूर्व व मौजूदा अध्यक्ष/ सदस्यों तथा अखिलेश यादव की घनिष्ठता की पड़ताल की जाए। अवनीश ने कहा है कि अखिलेश यादव ने नियमों को अनदेखा कर आगरा के हिस्ट्रीशीटर अनिल यादव को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत डॉ. अनिल यादव के बारे में मांगी गई जानकारी में तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने आख्या में शून्य बताया, जबकि कोर्ट को दिए हलफनामा में राज्य सरकार ने अनिल यादव का अपराधिक इतिहास बताया है। इसके बाद आगरा के एसपी ने बताया था कि अनिल यादव ‘तड़ीपार’ तक हो चुके हैं। पांडेय के अनुसार, ��ैनपुरी के जिलाधिकारी से लेकर कानूनगो तक ने रविवार के दिन अनिल यादव के चरित्र का सत्यापन किया जो यह सिद्ध करता है कि भर्तियों में भ्रष्टाचार करने के लिए अनिल यादव की बतौर अध्यक्ष नियुक्ति सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री की शह पर की गई।वर्तमान अध्यक्ष और सदस्यों पर भी आरोपसीबीआइ के एसपी को भेजे पत्र में आयोग के वर्तमान अध्यक्ष अनिरुद्ध यादव और सदस्यों पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। अधिकांश आरोप इनकी शैक्षिक योग्यता में असल तथ्यों को छिपाने के हैं।
Read full post at: http://www.cnnworldnews.info/2018/03/blog-post_53.html
0 notes