#अमेरिका में विरोध प्रदर्शन
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sharpbharat · 7 days ago
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Jamshedpur congress protest : प्रवासी भारतीयों के अमेरिका से अन्यायपूर्ण निर्वासन का जमशेदपुर जिला कांग्रेस ने किया विरोध, प्रदर्शन कर फूंका विरोध का बिगुल
जमशेदपुर : अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी एवं झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के आह्वान पर अमेरिकी सरकार द्वारा भारतीय प्रवासियों के अन्यायपूर्ण निर्वासन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन पूर्वी सिंहभूम जिला कांग्रेस कमिटी के तत्वावधान में जमशेदपुर के साकची गोलचक्कर पर जिलाध्यक्ष आनन्द बिहारी दुबे एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के नेतृत्व में आयोजित किया गया. इस अवसर पर जिलाध्यक्ष आनन्द बिहारी…
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livetimesnewschannel · 1 month ago
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How 3 Major Countries in Recession Are Affecting the World
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Introduction
Countries Struggling With Recession: पिछले कई सालों से मंदी के शोर से अमेरिका और जर्मनी समेत दुनिया भर के देश परेशान हैं. जानकारों का मानना है कि वर्ष 2024 में मंदी ने एक बार पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया. बड़े से बड़े देश भी इस समय मंदी से जूझ रहे हैं. ऐसे में कई सेक्टरों की बुरी हालत हो गई है. महंगाई को कंट्रोल करने की सभी कोशिशें नाकाम होती नजर आ रही हैं. कच्चे तेल की कीमतें हों या खाद्य वस्तुओं को दाम, हर चीज पर महंगाई का असर है. पड़ोसी देश श्रीलंका और पाकिस्तान के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. ऐसे में आज हम जानेंगे कौन से ऐसे 3 देश हैं जो इस समय महामंदी से जूझ रहे हैं. इसका असर अन्य देशों पर भी पड़ रहा है.
Table Of Content
श्रीलंका
आर्थिक मंदी
हालात खराब होने की क्या है वजह?
सेलोन बैंक कर्मचारी ने दिया बयान
जर्मनी
प्रमुख उद्योग संघ ने दी चेतावनी
जर्मनी में महामंदी की शुरुआत
जर्मनी में मंदी का क्या है कारण?
सुस्त रिकवरी
जर्मनी की अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी में सुधार कब ?
जापान
क्या है बड़ी वजह?
श्रीलंका
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श्रीलंका ऐतिहासिक रूप से सीलोन के रूप में जाना जाता है. मई, 2024 में पहली बार श्रीलंका ने अपने लोन का भुगतान नहीं किया. इसके बाद हालात बदतर हो गए. यहां तक कि जनता सड़कों पर उतर आई. श्रीलंका इस समय 70 वर्षों में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है. श्रीलंका में मंदी साल 2019 से चल रही है और दिन पर दिन स्थिति खराब होती जा रही है. इस दौरान ईंधन की कीमतों में भी उछाल देखा गया, जो कमोबेश अब भी जारी है. खाद्य वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. इसकी वजह से हजारों लोग रोजाना भूखे रह रहे हैं. सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में सरकारी ऋण अब 101 प्रतिशत है और साल 2023 में इसका आंकड़ा 120 प्रतिशत तक पहुंच गया था. श्रीलंका विकास अद्यतन में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि श्रीलंका में महंगाई में कमी आई है. नई नीतियों के लागू होने की वजह से कर में वृद्धि हुई है. 5 दशकों में पहली बार चालू खाता अधिशेष हुआ है, जिसे बढ़ी हुई धनराशि और पर्यटन में पुनः वृद्धि से बल मिला है. इसके बावजूद श्रीलंका के हालात सामान्य बेहद खराब स्थिति में हैं.
आर्थिक मंदी
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वर्ष 2022 की शुरुआत में श्रीलंका की स्थिति बद से बदतर नजर आई थी. महंगाई की दर आसमान छू रही थी. वस्तुओं की कीमतें अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गईं. विश्व बैंक की मानें तो श्रीलंका में 500,000 से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए. देश में खाने, दवा और ईं��न की कमी के साथ-साथ दैनिक ब्लैकआउट और अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी जा गई थी. ऐसी स्थिति को देखते हुए वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी थी. इससे जूझ रहे लोगों के मन में गुस्सा भरा पड़ा. पुलिस और सुरक्षाबलों के तैनाती के बावजूद श्रीलंका में विरोध प्रदर्शन जारी रहा. इसके बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति ने इस्तीफा दे दिया और सिंगापुर भाग गए. इन घटनाओं के बाद से तत्कालीन प्रधानमंत्री और कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को 21 जुलाई को औपचारिक रूप से राष्ट्रपति चुना गया. विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गई और कर्फ्यू लगा दिया गया.
हालात खराब होने की क्या है वजह?
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गौरतलब है कि सरकार ने इस संकट के लिए कोविड महामारी को जिम्मेदार ठहराया. कहा गया कि कोविड की वजह से पर्यटन उद्योग बर्बाद हो गया. श्रीलंका की विनाशकारी आर्थिक नीतियों को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया गया. टैक्स में बड़ी कटौती के चलते सरकार को राजस्व में सालाना 1.4 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. रासायनिक फर्टिलाइज़र पर 2021 में प्रतिबंध से घरेलू स्तर पर खाद्य पदार्थों की कमी हुई. खर्च को कम करने के लिए सरकार ने सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों, जैसे श्रीलंका एयरलाइंस, श्रीलंका इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन और श्रीलंका टेलीकॉम का निजीकरण करना शुरू कर दिया.
सेलोन बैंक कर्मचारी ने दिया बयान
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सेलोन बैंक के कर्मचारी यूनियन के उपाध्यक्ष अनुपा नानदुला ने मंदी पर बात करते हुए कहा कि सरकार को सुधारों का बोझ वेतन लेने वाले वर्ग और मध्यम वर्ग पर नहीं डालना चाहिए, जो पहले से ही आर्थिक संकट से प्रभावित हैं. उन्होंने आगे कहा कि श्रीलंका इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन के निजीकरण के खिलाफ हाल ही में हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. वो मानते हैं कि निजीकरण से नौकरियां कम होंगी और कर्मचारी वर्ग पर ज्यादा बोझ पड़ेगा. पिछले साल आर्थिक संकट के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को हिंसक तरीके से खत्म करने के बाद से ही श्रीलंका में प्रशासन बल का प्रयोग कर रही है.
जर्मनी
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दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी वाला देश जर्मनी एक बार फिर मंदी का शिकार है. जर्मनी की इकोनॉमी में दूसरी तिमाही में अचानक गिरावट देखने को मिली. जर्मनी की सकल घरेलू उत्पाद में पहली तिमाही की तुलना में 0.1 प्रतिशत गिरावट देखने को मिली. यहां बता दें कि लगातार दो तिमाही में गिरावट को मंदी कहा जाता है. जर्मनी की अर्थव्यवस्था इन दिनों गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है. कच्चे माल जैसे कि लिथियम पर बढ़ती निर्भरता और ऑर्डर की कमी से उसकी हालत साल 2009 की मंदी के बाद से सबसे खराब स्तर पर है. ऑर्डर की कमी से आर्थिक परेशानी और बढ़ रही है.
प्रमुख उद्योग संघ ने दी चेतावनी
जर्मनी के प्रमुख उद्योग संघ, फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज ने इस मुद्दे को लेकर चेतावनी दी. उन्होंने ��हा कि जर्मनी की कच्चे माल, खासकर लिथियम के लिए आयात पर निर्भरता बढ़ रही है. उन्होंने आगे बताया कि अगर चीन से लिथियम का आयात रुक जाता है तो इससे जर्मनी की अर्थव्यवस्था को लगभग 115 अरब यूरो (122 अरब डॉलर) का नुकसान हो सकता है. जो औद्योगिक उत्पादन का लगभग 15 प्रतिशत है. वहीं, एक प्रमुख दैनिक समाचार ने बताया कि जर्मन सरकार को लगता है कि अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे साल भी सिकुड़ेगी और उसने अपने पूर्वानुमानों में कटौती की है. औद्योगिक मंदी, कम निर्यात और बढ़ती ऊर्जा लागत को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है. जर्मन अर्थव्यवस्था मंत्रालय को उम्मीद है कि 2024 में अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे वर्ष सिकुड़ेगी. अब 0.3 प्रतिशत वृद्धि के अपने पूर्व अनुमान के बजाय 0.2 प्रतिशत संकुचन का अनुमान लगाया गया है.
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जर्मनी में महामंदी की शुरुआत
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जर्मनी में महामंदी की शुरुआत साल 1930 के दशक में आई. यह एक गंभीर वैश्विक आर्थिक मंदी थी, जिसमें जर्मनी सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था.
जर्मनी में मंदी का क्या है कारण?
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जर्मन अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि साल 2024 में भी जर्मनी की अर्थव्यवस्था सिकुड़ेगी. उसे अगले वर्ष में 1.1 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है, जो पिछले पूर्वानुमान में 1 प्रतिशत थी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2026 तक अर्थव्यवस्था में 1.6% की वृद्धि होने की उम्मीद है. हालांकि, इस समय जिस तरह के हालात चल रहे हैं उससे इस आंकड़े को हासिल करना बेहद मुश्किल लग रहा है. जर्मनी में मंदी के कई वजह हो सकते हैं.
सुस्त रिकवरी
साल 2023 में जर्मनी संकुचन वाली एकमात्र प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्था होगी, जिसकी बड़ी वजह रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध है. औद्योगिक मंदी, कम निर्यात ऑर्डर और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के प्रभाव से जूझ रही है. ऐसा माना जा रहा था कि महंगाई में कमी और यूरोपीय केंद्रीय बैंक की ओर से ब्याज दरों में कटौती से इस साल एक बार फिर अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी, लेकिन घरेलू और विदेशी स्तर पर कमजोर मांग ने इन सकारात्मक कारकों को काफी हद तक नकार दिया.
जर्मनी की अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी में सुधार कब ?
मंदी पर बात करते हुए जर्मनी के अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हैबेक ने बताया कि सरकार की प्रस्तावित विकास पहल आर्थिक सुधार लाने में प्रमुख भूमिका निभाएंगी.
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जापान
जापान की अर्थव्‍यवस्‍था के लिए समय अच्छा नहीं चल रहा है. देश की अर्थव्‍यवस्‍था लगातार गिरती हुई नजर आ रही है. दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था में जापान ने अपना स्थान खो दिया है. जापान अब चौथे स्थान पर आ गया है. एक्‍सपर्ट्स का कहना है कि जापान धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता और उत्पादकता को खो रहा है. देश के सकल घरेलू उत्पाद में एक साल की तुलना में 2023 के अंतिम तीन महीनों में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई है. इससे पहले पिछली तिमाही में अर्थव्यवस्था में 3.3 प्रतिशत गिरावट आई थी. गौरतलब है कि जापान के कैबिनेट कार्यालय के आंकड़े भी संकेत देते हैं कि जापान ने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का अपना स्थान खो दिया है.
क्या है बड़ी वजह?
युवा आबादी
जापान की अर्थव्‍यवस्‍था में इतनी बड़ी गिरावट की सबसे मुख्य वजह युवा आबादी है. जापान में बच्चों के कम जन्म की वजह से जनसंख्या में युवा आबादी की संख्या कम हो गई है. ऐसे में इंटरनेश��ल मॉनेटरी फंड ने अनुमान जताया है कि जापान चौथे स्थान पर आने वाला है. फिलहाल जापान की GDP, पिछले साल कुल 4500 अरब अमेरिकी डॉलर या लगभग 591000 अरब येन थी. जर्मनी ने पिछले महीने जीडपी 4400 अरब अमेरिकी डॉलर या 45000 अरब अमेरिकी डॉलर होने की घोषणा की थी.
जीडीपी में गिरावट
लगातार जीडीपी में गिरावट जापान को मंदी का शिकार बना रहा है. कैबिनेट कार्यालय के आंकड़ों की मानें तो अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में जापानी अर्थव्यवस्था में 0.4 प्रतिशत की सालाना दर से सिकुड़ गई है. ये पिछली तिमाही से 0 से 0.1 प्रतिशत कम है. साल 2023 के लिए जीडीपी पिछले साल की तुलना में 1.9 प्रतिशत बढ़ी थी. जापान ने अपने अर्थव्यवस्था को स्‍मॉल और मिड साइज के बिजनेस के माध्यम से आगे बढ़ाया है.
कोर इनफ्लेशन हाई
जापान में महंगाई बीते कुछ दिनों में कम हुई है, लेकिन कोर इनफ्लेशन रेट के आंकडे बढ़ते जा रहे हैं. केंद्रीय बैंक के 2 प्रतिशत लक्ष्य से 15वें महीने भी ऊपर रही है. ऐसे में अब GDP के आंकड़े भी अनुमान से कम रहे हैं.Conclusion
कोविड महामारी के बाद से ही जापान, जर्मनी और श्रीलंका समेत कई देशों पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है. इसका असर सिर्फ 3 देशों पर ही नहीं बल्कि पूरे दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ रहा है. मंदी का असर महंगाई और बेरोजगारी पर पर हो रहा है. इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग देशों के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
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asr24news · 4 months ago
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कमला हैरिस ने ट्रंप को निशाने पर लिया, उद्यमियों के लिए किये वादे
वाशिंगटन, 15 अक्टूबर 2024। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को निशाने पर लिया है। कमला हैरिस ने लिखा- मेरे माता-पिता नागरिक अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन करते समय मिले थे। जब मैं बच्ची था, तो वे मुझे घुमक्कड़ गाड़ी में मार्च में ले जाते थे। वे मेरी पहली…
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manvadhikarabhivyakti · 6 months ago
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कोलकाता दुष्कर्म-हत्याकांड के विरोध में UK के 13 शहरों में एक साथ प्रदर्शन, न्याय-सुरक्षा की मांग
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी के दौरान महिला डॉक्टर के साथ दरिंदगी के विरोध में विदेशों में भी आवाज उठ रही है। यूनाइटेड किंगडम (यूके) के एडिनबर्ग में भारतीय दूतावास के समक्ष 22 अगस्त की शाम 7 बजे हुए प्रदर्शन में सैकड़ों पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे। इस दौरान यूके के 13 शहरों के साथ अमेरिका में भी इसी समय प्रदर्शन किए गए।   अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की…
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dainiksamachar · 1 year ago
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क्या महिला पर दर्ज हो सकता है बलात्कार का केस? सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला, जानिए पूरा मामला
नई दिल्ली: क्या महिला पर बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है? जी हां ऐसा मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और सर्वोच्च अदालत ने इस केस में पंजाब पुलिस से जवाब मांगा है। 62 साल की महिला पर उसी की बहू ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। अपने ऊपर लगे आरोपों को लेकर सास के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। बहू ने महिला के छोटे बेटे पर भी बलात्कार का आरोप लगाया है। वहीं बड़ा बेटे से उसकी शादी हुई थी। 62 वर्षीय महिला याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ऋषि मल्होत्रा ने जस्टिस हृषिकेश रॉय और संजय करोल की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि महिला पर गैंगरेप का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है और सिद्धांत का मूल यह था कि महिला को बलात्कार के मामले में आरोपी नहीं बनाया जा सकता है।यहां से शुरू होती है कहानी यह पूरा मामला पंजाब के गुरदासपुर का है। यहां एक बहू ने शिकायतकर्ता 62 साल की महिला के बड़े बेटे से वीडियो कॉल के माध्यम से शादी की थी। असल में सास का बड़ा बेटा अमेरिका में रहता है। उसने फेसबुक के माध्यम से लड़की से दोस्ती की और दोस्ती बढ़ते ही शादी का प्रस्ताव रख दिया। बहू का आरोप है कि बड़े बेटे की जिद थी कि अगर वह उससे शादी नहीं करती तो वह आत्महत्या कर लेगा। पिछले साल सितंबर में वीडियो कॉल के माध्यम से दोनों की शादी हुई थी।अब आया कहानी में नाटकीय मोड़ शादी के बाद बहू सास के साथ रहने लगी। सास ने कहा कि उसका छोटा बेटा पुर्तगाल से आया और कुछ समय के लिए उसके साथ रहा। जब वह वापस जा रहा था, तो बहू ने उस पर उसे अपने साथ ले जाने का जोर डाला, लेकिन वह 31 जनवरी को पुर्तगाल चला गया। उसके जाने के तुरंत बाद, बहू और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर सास पर अपने बड़े बेटे से शादी को रद्द करने का दबाव डाला। 5 फरवरी को एक समझौता हुआ जिसके तहत सास ने शादी को रद्द करने के लिए शिकायतकर्ता को 11 लाख रुपये दिए।नहीं मनी बात तो लगा दिया बलात्कार का आरोपयाचिकाकर्ता सास का आरोप है कि उसके बाद उनकी मांगें बढ़ गईं और जब हमने मानने से इनकार कर दिया, तो अलग हो चुकी बहू ने 22 फरवरी को उसके और उसके छोटे बेटे के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के छोटे बेटे ने उसके साथ बलात्कार किया और उसकी नग्न तस्वीरें लीं, जबकि उसकी सास ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ उसके विरोध प्रदर्शन को चुप करा दिया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि 62 वर्षीय महिला की अग्रिम जमानत गुरदासपुर की स��्र अदालत ने खारिज कर दी थी। गिरफ्तारी पूर्व जमानत की उनकी याचिका को भी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 3 नवंबर को खारिज कर दिया था। http://dlvr.it/SzbTkk
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roh230 · 2 years ago
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eforentertainment · 2 years ago
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हिंसा की आग में झुलसता रहा मणिपुर, और चलता रहा नमो का दौरा
बीबीसी की एक खबर के मुताबिक़ फ़्रांस में एक नाबालिग युवा को ट्रैफिक कानून तोड़ने पर पुलिस द्वारा गोली मार युवक की हत्या से लोगों में भारी आक्रोश छिड़ जाता है। जिसके बाद फ़्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रॉन की ओर से तुरंत जर्मनी दौरे को कैंसिल करने का बयान सामने आता है।
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आज सुबह मैक्रॉन का एक ब्यान सामने आता है और वह कहते हैं " किसी भी पुलिस वाले को बख्शा नहीं जाएगा।" वहीं यदि आपको याद हो तो हमारे देश के पूर्वोत्तर हिस्से में करीब एक महीने से झुलसते हिस्से को प्रधानमंत्री मोदी यूँ ही कुछ नेताओं के भरोसे छोड़कर अपनी यात्राओं के लिए रवाना हो जाते हैं। इस बात से बेफिक्र की कितने लोग हिंसा की आग में जल रहे हैं और जल चुके हैं। वे अमेरिका की सर जमीन पर जाने, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को खास उपहार देने और व्हाइट हाउस में लंच करने को लेकर अधिक उत्साहित जान पड़ते हैं। दौरे से वापस लौटकर बेहद गर्व से एयरपोर्ट पर अपने मंत्रियों से पूछते हैं कि देश में क्या हाल है? पूर्वोत्तर राज्य में इतनी हिंसा और विरोध प्रदर्शन के बावजूद प्र��ानमंत्री मोदी ने अब तक न मणिपुर का दौरा कर वहां की सुध ही ली है और ना ही इस मसले का हल निकालने को,लेकर प्रदर्शनकारियों को सांत्वना ही दी है।
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vilaspatelvlogs · 5 years ago
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अमेरिका में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाकर भागा बदमाश, देखें वायरल VIDEO
अमेरिका में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाकर भागा बदमाश, देखें वायरल VIDEO
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अमेरिका
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में एक शख्स अपनी कार से पिस्तौल निकालते हुए दिख रहा है, जिसके बाद प्रदर्शनकारी घटनास्थल से भागने लगते हैं.
अमेरिका में प्रदर्शनकारियों पर बदमाश ने चलाई गोली.
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gostcoder · 5 years ago
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फेसबुक, स्नैपचैट अमेरिका में जॉर्ज फ्लोयड की मृत्यु और जातिवाद को कम करते हुए कॉर्पोरेट कोरस में शामिल हों
फेसबुक, स्नैपचैट अमेरिका में जॉर्ज फ्लोयड की मृत्यु और जातिवाद को कम करते हुए कॉर्पोरेट कोरस में शामिल हों
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फ़्लॉइड की मौत के खिलाफ सार्वजनिक रुख अपनाने में फेसबुक और स्नैपचैट इंटेल, नेटफ्लिक्स, गूगल, आईबीएम, एडिडास और नाइकी में शामिल हो गए और व्यापक नस्लवाद का आह्वान किया।
रायटर
आखरी अपडेट: 3 जून, 2020, 12:23 PM IST
फेसबुक इंक और स्नैपचैट डेवलपर स्नैप इंक संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्लीय असमानता की निंदा करने वाली नवीनतम अमेरिकी कंपनियां बन गईं क्योंकि हिंसक विरोध…
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hindinewshub · 5 years ago
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Facebook, Snapchat Join Corporate Chorus Decrying George Floyd's Death and Racism in US
Facebook, Snapchat Join Corporate Chorus Decrying George Floyd’s Death and Racism in US
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फ़्लॉइड की मौत के खिलाफ सार्वजनिक रुख अपनाने में फेसबुक और स्नैपचैट इंटेल, नेटफ्लिक्स, गूगल, आईबीएम, एडिडास और नाइकी में शामिल हो गए और व्यापक नस्लवाद का आह्वान किया।
रायटर
आखरी अपडेट: 3 जून, 2020, 12:23 PM IST
फेसबुक इंक और स्नैपचैट डेवलपर स्नैप इंक, संयुक्त राज्य अमेरिका में नवीनतम नस्लीय असमानता की निंदा करने वाली नवीनतम अमेरिकी कंपनियाँ बन गईं, क्योंकि…
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newshindiplus · 5 years ago
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सड़कों पर प्रदर्शन करती दिखीं प्रियंका चोपड़ा की प्रेग्नेंट जेठानी, मुंह पर बांधा था कपड़ा
सड़कों पर प्रदर्शन करती दिखीं प्रियंका चोपड़ा की प्रेग्नेंट जेठानी, मुंह पर बांधा था कपड़ा
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सड़कों पर प्रदर्शन करती दिखीं सोफी टर्नर प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) की प्रेग्नेंट (Pregnant) जेठानी (Sister In Law) सोफी टर्नर (Sophie Turner) अपने पति जो जोनास (Joe Jonas) के साथ सड़कों पर हो रहे प्रदर्शन (Protests) में शामिल हुईं.
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anki14542 · 5 years ago
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जॉर्ज फ्लॉयड – CNN वीडियो की मौत पर अमेरिका भर में पांचवीं रात के लिए विरोध प्रदर्शन देश भर में हिंसक झड़पों के साथ मिनियापोलिस, मिनेसोटा में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत पर कम से कम 30 अमेरिकी शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। सीएनएन के पोलो सैंडोवल की रिपोर्ट। । Source link
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vaidicphysics · 4 years ago
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जब भारत का आत्मा रो पड़ा
भारतीय गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व के पावन अवसर पर किसानों के नाम पर देश की राजधानी में जो तांडव हुआ, उसे देखकर भारत का आत्मा रो पड़ा। लाठी, तलवार व पत्थरों से जिस प्रकार आतंकवादियों वा अलगाववादियों ने पुलिस बल पर जो आक्रमण किया, उन्हें ट्रैक्टरों से रौंद रौंद कर मारने का प्रयास किया, वे जवान गंदे नाले में प्राण बचाने हेतु कूदने को विवश हुए, महिलाओं को भी नहीं छोड़ा, गाड़ियों को ही नहीं, अपितु रोगी वाहनों तक को नष्ट किया गया, क्या यह आंदोलन था? सबसे बढ़कर राष्ट्र के गौरव के प���रतीक लाल किले पर राष्ट्रध्वज का अपमान किया, उसे फेंका गया, उतारा भी गया और अपना एक पंथ विशेष का ध्वज लगा दिया, यह किसी भी प्रकार अपनी ही मां भारती के विरुद्ध युद्ध के बिगुल से कम नहीं था।
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भारतीय गणतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। पुलिस तथा भारत सरकार इतना सब सहन करती रही, तब यह प्रश्न उठता है कि क्या भारत इतना बेबश हो गया है, दुर्बल हो गया है कि कोई भी आतंकवादी वा अलगाववादी संगठन देश की राजधानी को बंधक बनाकर कुछ भी तांडव कर सकता है? क्या इसे किसानों का आंदोलन कहा जा सकता है? सरकार ने पुलिस के जवानों को प्रारंभ में आत्मरक्षार्थ लाठी तक नहीं दी, बेचारे मार खाते रहे। नेताओं ने अपनी कोठियों के पास पूरी सुरक्षा कर रखी थी परंतु जवानों को हिंसक भीड़ के आगे अकेला निहत्था बेवश छोड़ दिया। आंसू गैस आदि का प्रयोग भी तब हुआ, जब स्थिति अनियंत्रित हो गई।
वस्तुतः मुझे इस आंदोलन पर पूर्व से कुछ-कुछ ही संदेह था। अपने कार्य की व्यस्ततावश मैं इस विषय में अधिक कुछ जानने व समझने की इच्छा भी नहीं कर पाता, परंतु संक्षिप्त समाचार देखने से इतना तो अवगत था कि कहीं कुछ अनिष्ट अवश्य है। किसानों के समर्थन में जो नेता आ रहे थे, कभी ट्रैक्टर्स पर बैठकर किसान हितैषी होने का प्रदर्शन करते हैं, वहां जोशीले भाषण देते हैं, कभी राष्ट्रपति भवन की ओर दौड़ते हैं। क्या किसानों ने कभी उनसे यह पूछने का प्रयास भी किया कि स्वतंत्रता के पश्चातझ्झ् अधिकांश समय उन्हीं की सरकार रही है, तब उन्होंने क्यों नहीं किसानों का कायाकल्प कर दिया? क्यों नहीं आज भी उनकी राज्य सरकारें किसानों का भला कर पा रही हैं? क्यों उनके शासन में किसान आत्महत्या करते रहे हैं? किसानों ने क्यों पिछले लगभग 70 वर्षों में विभिन्न सरकारों द्वारा उनके लिए बनाई गई नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रयास नहीं किया? यदि वे सभी राजनीतिक दलों को किसान विरोधी मानते हैं, तब क्यों नहीं उन्होंने अपने मंच से राजनेताओं को धक्का मार कर बाहर निकाला? जो राजनेता सदैव पाकिस्तान व चीन की भाषा बोलते हैं, आतंकवादियों व अलगाववादियों का खुलकर समर्थन करते हैं, कश्मीर में धारा 370 लगाने के अपराधी रहे हैं और आज फिर गुपकार गिरोह, के साथ मिलकर पुनः 370 धारा को बहाल करने की मांग करते हैं  और गुपकार गिरोह चीन के सहयोग, तो कोई अमेरिका के सहयोग से धारा 370 को बहाल करने की बात करते हैं, वे राष्ट्रीय इतिहास व संस्कृति का पदे पदे अपमान करते हैं, उनका किसानों का मसीहा बनने का दिखावा क्यों किसानों को दिखाई नहीं दिया? यह किसानों से भूल हुई। इसके साथ ही किसानों की भीड़ में पाकिस्तान व खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगना, अलगाववादियों के चित्र को लहराना, यह सब यही दर्शाता है कि किसानों का आंदोलन अपने मूल लक्ष्य से भटक गया और इसमें खालिस्तानी आतंकवादी, चीन व पाक के चाटुकार वामपंथी शक्तियों ने घुसपैठ कर ली। विपक्षी दल भी इस पाप में पूर्णतः सम्मिलित थे। इस आंदोलन के समर्थन में कनाडा के प्रधानमंत्री का बोलना, यूएन का बोलना, ब्रिटेन में प्रदर्शन होना, यह सब दर्शाता है कि यह आंदोलन परोक्ष रूप से कहीं बाहर से भी प्रेरित था और गणतंत्र दिवस को ही लक्ष्य बनाने की हठ कोई सामान्य बात नहीं थी, बल्कि इसमें पूर्व नियोजित भयानक षडयंत्र की गंध आती है।
यह बात नितांत सत्य है कि किसी भी देश का किसान उस देश का आत्मा है, वह अन्नदाता है, इस कारण महर्षि दयानंद सरस्वती ने किसानों को राजाओं का राजा कहा था। वे किसानों के प्रति बहुत सहृदयता रखते थे, इस कारण उन्होंने गो-कृषि आदि रक्षिणी सभा की स्थापना की थी। दुर्भाग्य से देश ने ऋषि दयानंद को नहीं समझा और किसान दुःखी ही होता रहा। कई सरकारें आयीं व गयीं परन्तु ऋषि दयानन्द को किसी ने भी महत्व नहीं दिया?
यद्यपि मोदी सरकार ने किसानों के हित में पूर्व सरकारों की अपेक्षा कुछ कदम तो उठाए ही हैं परंतु ये बिल जिस प्रकार अकस्मात् लाकर बिना चर्चा के प��रित कराए, वह प्रक्रिया ही गलत थी, अधिनायकवादी थी। वे बिल किसानों के हित में हैं वा नहीं, यह मेरा विषय नहीं परंतु इतना सुना है कि जो नेता इनका अब विरोध कर रहे हैं,  वे ही पहले इन बिलों को ला रहे थे, तब भाजपा ने विरोध किया और जब भाजपा लायी, तो ये विरोध कर रहे हैं, तब सत्यवादी तो कोई दल वा नेता नहीं है। सभी सत्ता के मद में जनता के अधिकारों व वास्तविक हितों को भूल जाते हैं। आज कोरोना के नाम पर भी अघोषित आपात्काल व अधिनायकवाद चल रहा है, सत्य कोई सुनने वाला नहीं। देश बर्बाद हो गया है। कारोना काल में कुछ बडे़ पूंजीपतियों की सम्पत्ति बहुत बढ़ गयी और करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये, करोड़ों और अधिक निर्धन हो गये, व्यापारी व विद्यार्थी आदि बर्बाद हो गये। तब भी क्या इसे कोई षड्यन्त्र मानने को उद्यत है, कोई कुछ सुनना चाहता है? परन्तु आज कुछ मत बोलो, स्वास्थ्य आपात्काल है, इसमें सत्य को भी अफवाह बताया जाता है।
सबका अन्नदाता आज भी दुःखी ही है और पूंजीवाद बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि जनता आंदोलनों के लिए भी बाध्य हो जाती है। यह आंदोलन भी इसी का परिणाम था। सरकार ने आंदोलनकारी किसानों के दबाव को देखते हुए कई चक्र की वार्ता की। किसानों को बिलों के किसी भी बिंदु पर बात करने का प्रस्ताव रखा, अनेक बातों को स्वीकार भी किया, कानूनों को स्थगित करके एक समिति भी बनाई, तब किसानों का कर्तव्य था कि वे आंदोलन को स्थगित कर देते, समिति के निर्णय की प्रतीक्षा करते परंतु ऐसा लगता है कि किसान नेता अराजक व अलगाववादी तत्त्वों के नियंत्रण में आ चुके थे और भोले भाले किसानों को लेकर ठंड में सड़कों पर डटे रहे। अंत में अराजक तत्त्वों ने देश के मस्तक पर यह कलंक लगा ही दिया। सरकार को इस कलंक के अपराधियों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए। ज��ाँ तक बात बिलों को वापिस लेने की हठ की है, उस विषय में यह भी सत्य है कि बिल वापिस लेने से देश पर कोई संकट का पहाड़ नहीं टूटेगा, परन्तु एक आशंका यह अवश्य है कि इससे प्रेरित होकर राष्ट्रविरोधी नेता धारा 370 हटाने आदि जैसे अनेक राष्ट्रहित के कानूनों को भी रद्द करने के लिए आन्दोलन करने लग जाएंगे। इस कारण बिलों में किसान हित में आवश्यक संशोधन ही करना चाहिए। बिल वापिसी की हठ ठीक नहीं।
मैं तो सभी देशवासियों से विनती करता हूं कि देश सर्वोपरि है, इस कारण इसकी अस्मिता की रक्षा करना सबका सामूहिक उत्तरदायित्व है। सरकार व जनता दोनों को ही अपने अपने अधिकार नहीं, बल्कि कर्तव्य तथा दू��रों के अधिकारों को समझना होगा। जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को मनमाने ढंग से कानून बनाकर देश पर थोपने से पूर्व जन भावनाओं को समझना होगा। किसानों, श्रमिकों व उद्योगपतियों के बीच मैत्रीपूर्ण समन्वय किसी भी राष्ट्र के लिए अनिवार्य है, अन्यथा राष्ट्र का अस्तित्व ही नष्ट हो सकता है। निर्धन व धनी के बीच बढ़ती दूरी अत्यंत घातक है। आज यह घातक पाप प्रवाह जोरों से चल रहा है। हाँ, एक तथ्य यह भी है कि, जो लोग अम्बानी व अडानी जैसे उद्योगपतियों को लेकर छाती पीटते हैं, वे विदेशी कम्पनीज् की चर्चा भी नहीं करते, यह क्या रहस्य है?
स्मरण रहे यह अमानवीय पाप आज प्रारंभ नहीं हुआ है, बल्कि इसके नायक श्री जवाहरलाल नेहरू ही थे। विदेशी कंपनीज् को आमंत्रित करने वाले वे ही थे। उदारीकरण, जो वास्तव में उधारीकरण की प्रक्रिया श्री नरसिंहा राव के शासनकाल में ही प्रारंभ हो गई थी, तब भाजपा व संघ दोनों ही इसके विरुद्ध थे और स्वदेशी की दुहाई दे रहे थे, परंतु दुर्भाग्य से अब वे ही विदेशी कंपनीज् के स्वागत में पलक पावडे़ बिछा रहे हैं। कभी एक ईस्ट इंडिया कंपनीज् ने देश पर क्रूर शासन किया था, आज विदेशी दवा कंपनीज् संपूर्ण विश्व पर शासन कर रही हैं। खाद, बीज, इंटरनेट आदि से जुड़ी कंपनीज् भी इसमें सहभागी हैं। कोरोना नामक कथित महामारी भी इन्हीं की देन है। सर्वत्र अंधकार है, पूंजीपति लूट मचा रहे हैं, अधिकांश कानून उन्हीं के संरक्षण के लिए होते हैं। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश पराधीनता की ऐसी बेड़ियों में जकड़ गया है, जो भविष्य में देश को पूर्व की पराधीनता से भी अधिक भयानक गर्त में गिर सकता है। आज मेरी यह बात सबके गले नहीं उतरेगी परंतु वह दिन दूर नहीं जब ऐसा दुर्भाग्य हमारे समक्ष आ खड़ा होगा। इधर हमारी आंतरिक समस्याएं गंभीर होती जा रही हैं, उधर चीन, तुर्की व पाकिस्तान का गठजोड़ हमारे लिए संकट बढ़ाता जा रहा है। हां, इतना अवश्य है चीन के संकट के समक्ष सीना तान कर खड़ा होने का भारी साहस तो मोदी जी ने किया ही है, जो हमारे लिए गर्व की बात है, परंतु जो देश आंतरिक संकटों से निरंतर घिरता जाए और देश के अधिकांश नागरिक स्वार्थी व संकीर्ण सोच तक ही सीमित हो गये हों और सरकार अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं व बहुराष्ट्रीय कम्पनीज् के मकड़जाल में फंसने और उनसे प्रशंसा पाने को ही राष्ट्र का गौरव मानने की भूल कर रही हो, तब कोई चमत्कार ही देश को बचा सकता है।
आचार्य अग्निव्��त नैष्ठिक प्रमुख, श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास
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allgyan · 4 years ago
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धरना प्रदर्शन और किसान आंदोलन -
धरना -प्रदर्शन हो या विरोध प्रदर्शन आजकल आम बात है लेकिन ये परम्परा कैसे शुरू हुई या कहे कब शुरू हुई या किस लिए शुरू हुई |ये बात ही आपको बताना चाहते है | इस समय भी देश में किसान अपने हक़ के लिए विरोध प्रदर्शन पुरे देश में कर रहे है | कृषि कानूनों को लेकर जो सरकार संसद में पास कर दिया है | इसमें लोग कई तरह का प्रदर्शन कर रहे है |
Protest शब्द का सबसे पहले प्रयोग -
कई लोगों के इस पे अलग -अलग मत है |लेकिन अपने हक़ के लिए प्रदर्शन करना कोई गुनाह नहीं है | Protest शब्द का Origin फ्रेंच भाषा के  प्रोटेट से लिया गया है जिसे पहली बार सन 1751 में स्टेटमेंट ऑफ़ डिसएप्रूवल के तौर पर रिकॉर्ड किया गया था। कई रिसर्च के अनुसार दुनिया में सबसे पहला विरोध प्रदर्शन 195 ईसापूर्व  में रोमन साम्राज्य के दौर में हुआ था। इस विरोध प्रदर्शन में महिलाओं ने अपने अधिकारों के ल���ए आवाज़ उठाई थी।
भूख हड़ताल का जिक्र सिविल राइट्स में -
भारत में पहले भी लोग अपना विरोध प्रदर्शन जताते थे कर्ज मुक्ति को लेकर भूख हड़ताल करते थे | जेलों में भी लोग अपने हक़ के लिए हड़ताल करते आये है |जबकि भूख हड़ताल का जिक्र सबसे पहले आयरलैंड के सिविल राइट्स में किया गया है |भारत में आज़ादी के लड़ाई में कई तरह के विरोध प्रदर्शन हुए है उसमे नमक आंदोलन ,दांडी यात्रा का बहुत महत्व है |भारत में सबसे लम्बे समय तक धरना प्रदर्शन करने का रिकॉर्ड मास्टर विजय सिंह के नाम है, जो पिछले 21 वर्षों से इंसाफ की उम्मीद में सिस्टम में बदलाव का ��ंतज़ार कर रहे हैं।
दुनिया में सबसे लम्बे समय तक विरोध करने का रिकॉर्ड अमेरिका की एक महिला के नाम पर है। परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के विरोध में इस महिला ने 30 वर्षों से ज़्यादा समय तक विरोध प्रदर्शन किया था और इसी वर्ष यानी जनवरी 2016 में वाइट हाउस  के सामने उसकी मौत हो गई|दिल्ली में तो जंतर -मंतर हड़ताल का , विरोध का या एक केंद्र ही बन चूका है |किसी न कहा है की जब नाइंसाफी करना क़ानून बन जाए तो विरोध करना हमारा कर्तव्य बन जाता है।विरोध प्रदर्शन का हमेशा ही स्वर्णम इतिहास रहा है |समाज का दायित्व होना चाहिए की अपने विरोधों को कम से कम खुद में समाहित कर सके | विरोध का मतलब क्या है हो सकता है वो आपके मत से सहमत नहीं हो |और जो आपके मत से सहमत नहीं क्या वो विरोध भी नहीं कर सकता है |इस बात पे आपको सोचना जरूर चाहिए |
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saathi · 5 years ago
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Black Lives Matter
अमेरिका में पुलिस बर्बरता के खिलाफ़ हो रहे लगातार विरोध प्रदर्शन, सिर्फ़ कुछ लोगों की बेवजह हुई मौत पर एक प्रतिक्रिया भर नहीं हैं। ये 401 सालों के नस्लीय भेदभाव के खिलाफ़ उठी प्रतिक्रिया है। अश्वेतों और मूल निवासी अश्वेतों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार अमेरिका के अस्तित्व के खाके में ही समाया हुआ है और हमें अब भी इस तथ्य के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिणाम दिखाई पड़ते हैं.
Tumblr का अपने समुदाय के प्रति यह नैतिक दायित्व है कि वह इस प्लैटफ़ॉर्म का इस्तेमाल सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार ढंग से करें. चुप रहना अब कोई विकल्प नहीं है. हम प्रदर्शन करने वालों और Black Lives Matter आंदोलन के साथ हैं.
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hindinewsxyz-blog · 5 years ago
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Trump rushed into White House bunker by Secret Service as protests raged: Report
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सीक्रेट सर्विस के एजेंटों ने शुक्रवार रात को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को व्हाइट हाउस के बंकर में ले जाया गया, क्योंकि सैकड़ों प्रदर्शनकारी कार्यकारी हवेली के बाहर जमा हो गए, उनमें से कुछ ने पुलिस की बैरिकेडिंग पर पत्थर फेंके और तोड़-फोड़ की।ट्रम्प ने लगभग एक घंटे बंकर में बिताए, जिसे व्हाइट हाउस के एक रिपब्लिकन के अनुसार आतंकवादी हमलों जैसी आपात स्थितियों में उपयोग के लिए डिज़ाइन किया गया था, जो निजी मामलों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने और नाम न छापने की शर्त पर अधिकृत नहीं थे। खाते की पुष्टि प्रशासन के एक अधिकारी ने की, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर भी बात की।एजेंटों द्वारा अचानक लिए गए निर्णय ने व्हाइट हाउस के अंदर फंसे मनोदशा को रेखांकित किया, जहां लाफयेते पार्क में प्रदर्शनकारियों के मंत्रों को सभी सप्ताहांत में सुना जा सकता था और गुप्त सेवा एजेंटों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष किया।शुक्रवार को विरोध प्रदर्शन की शुरुआत जॉर्ज फ्लॉयड की मौत से हुई थी, जो एक काले आदमी की मौत हो गई थी, जिसे एक सफेद मिनियापोलिस पुलिस अधिकारी ने गर्दन पर पिन किया था। वाशिंगटन में प्रदर्शन हिंसक हो गए और अधिकारियों को आश्चर्यचकित करते हुए पकड़े गए। उन्होंने 2001 में 11 हमलों के बाद से व्हाइट हाउस परिसर में उच्चतम अलर्ट में से एक को उगल दिया।"व्हाइट हाउस सुरक्षा प्रोटोकॉल और निर्णयों पर टिप्पणी नहीं करता है," व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जुड डीरे ने कहा। गुप्त सेवा ने कहा कि यह अपने सुरक्षात्मक कार्यों के साधनों और तरीकों पर चर्चा नहीं करता है। बंकर के लिए राष्ट्रपति के कदम की रिपोर्ट सबसे पहले द न्यूयॉर्क टाइम्स ने की थी।रिपब्लिकन के अनुसार, राष्ट्रपति और उनके परिवार को भीड़ के आकार और जहर से हिला दिया गया है। यह तुरंत स्पष्ट नहीं था कि पहली महिला मेलानिया ट्रम्प और दंपति का 14 वर्षीय बेटा, बैरन राष्ट्रपति बंकर में शामिल हुए थे। गुप्त सेवा प्रोटोकॉल ने एजेंसी के संरक्षण में उन सभी को भूमिगत आश्रय में रहने के लिए बुलाया होगा।ट्रम्प ने सलाहकारों को बताया कि उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता है, जबकि दोनों निजी और सार्वजनिक रूप से सीक्रेट सर्विस के काम की प्रशंसा करते हैं।लगभग एक दशक में अमेरिका से पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष प्रक्षेपण देखने के लिए ट्रम्प ने शनिवार को फ्लोरिडा की यात्रा की। व��� आभासी घेराबंदी के तहत एक व्हाइट हाउस लौट आया, प्रदर्शनकारियों के साथ - कुछ हिंसक - रात के बहुत से कुछ सौ गज की दूरी पर इकट्ठा हुए।प्रदर्शनकारियों ने रविवार दोपहर को लौटा, शाम को लाफायेत ​​पार्क में पुलिस के खिलाफ सामना किया।ट्रम्प ने राष्ट्रीय संकट के समय में भड़काऊ ट्वीट्स की एक श्रृंखला का उपयोग करने और पक्षपातपूर्ण हमलों को दूर करने के लिए परियोजना की ताकत के लिए अपना प्रयास जारी रखा।चूंकि शहर रात-रात भर जलते रहे और हिंसा की तस्वीरें टेलीविज़न पर हावी रहीं, इसलिए ट्रम्प के सलाहकारों ने तनाव कम करने के प्रयास में ओवल ऑफिस के पते की संभावना पर चर्चा की। नीति के प्रस्तावों की कमी और एकता का संदेश देने में राष्ट्रपति की अपनी उदासीनता के बारे में धारणा को जल्दी ही खत्म कर दिया गया।ट्रंप रविवार को सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखे। इसके बजाय, व्हाइट हाउस के एक अधिकारी जो समय से पहले योजनाओं पर चर्चा करने के लिए अधिकृत नहीं थे, ने कहा कि ट्रम्प को आने वाले दिनों में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के वैध क्रोध और हिंसक आंदोलनकारियों की अस्वीकार्य कार्रवाइयों के बीच अंतर आकर्षित करने की उम्मीद थी।रविवार को, ट्रम्प ने एक रूढ़िवादी टिप्पणीकार के एक संदेश को रीट्वीट किया जिससे अधिकारियों को अधिक बल के साथ जवाब देने के लिए प्रोत्साहित किया गया।बक सेक्स्टन ने राष्ट्रपति के एक संदेश में लिखा है, "जब तक अच्छे लोग बुरे लोगों के खिलाफ भारी बल का उपयोग करने के लिए तैयार नहीं होंगे, तब तक यह बंद नहीं होगा।"हाल के दिनों में व्हाइट हाउस में सुरक्षा को नेशनल गार्ड और सीक्रेट सर्विस और यू.एस. पार्क पुलिस के अतिरिक्त कर्मियों द्वारा मजबूत किया गया है।न्याय विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, रविवार को जस्टिस डिपार्टमेंट ने ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्यों को ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन से व्हाइट हाउस के बाहर नेशनल गार्ड की टुकड़ियों को सप्लीमेंट देने के लिए तैनात किया। अधिकारी इस मामले पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं कर सके और नाम न छापने की शर्त पर बात की। । Source link Read the full article
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