#अमेरिका में विरोध प्रदर्शन
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कमला हैरिस ने ट्रंप को निशाने पर लिया, उद्यमियों के लिए किये वादे
वाशिंगटन, 15 अक्टूबर 2024। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को निशाने पर लिया है। कमला हैरिस ने लिखा- मेरे माता-पिता नागरिक अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन करते समय मिले थे। जब मैं बच्ची था, तो वे मुझे घुमक्कड़ गाड़ी में मार्च में ले जाते थे। वे मेरी पहली…
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‘वापस जाओ, सत्ता छोड़ो’ के खिलाफ अमेरिका में असामान्य विरोध प्रदर्शन यूनुस: हिंदू उत्पीड़न के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन
न्यूयॉर्क: संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेने आए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस के खिलाफ उनके ही देशवास���यों ने हिंसक विरोध प्रदर्शन किया और ‘वापस जाओ, सत्ता छोड़ो’ लिखी तख्तियां लहराने लगे। इस समय, स्वाभाविक रूप से, सड़क के किनारे खड़े न्यूयॉर्कवासी तुलना कर रहे थे कि एक ओर, पच्चीस हजार से अधिक भारतीय नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए उपस्थित थे, दूसरी ओर, हजारों…
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कोलकाता दुष्कर्म-हत्याकांड के विरोध में UK के 13 शहरों में एक साथ प्रदर्शन, न्याय-सुरक्षा की मांग
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी के दौरान महिला डॉक्टर के साथ दरिंदगी के विरोध में विदेशों में भी आवाज उठ रही है। यूनाइटेड किंगडम (यूके) के एडिनबर्ग में भारतीय दूतावास के समक्ष 22 अगस्त की शाम 7 बजे हुए प्रदर्शन में सैकड़ों पुरुष, महिलाएं और बच्चे शामिल थे। इस दौरान यूके के 13 शहरों के साथ अमेरिका में भी इसी समय प्रदर्शन किए गए। अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की…
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क्या महिला पर दर्ज हो सकता है बलात्कार का केस? सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला, जानिए पूरा मामला
नई दिल्ली: क्या महिला पर बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है? जी हां ऐसा मामला सुप्रीम कोर्ट में आया और सर्वोच्च अदालत ने इस केस में पंजाब पुलिस से जवाब मांगा है। 62 साल की महिला पर उसी की बहू ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। अपने ऊपर लगे आरोपों को लेकर सास के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। बहू ने महिला के छोटे बेटे पर भी बलात्कार का आरोप लगाया है। वहीं बड़ा बेटे से उसकी शादी हुई थी। 62 वर्षीय महिला याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ऋषि मल्होत्रा ने जस्टिस हृषिकेश रॉय और संजय करोल की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि महिला पर गैंगरेप का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है और सिद्धांत का मूल यह था कि महिला को बलात्कार के मामले में आरोपी नहीं बनाया जा सकता है।यहां से शुरू होती है कहानी यह पूरा मामला पंजाब के गुरदासपुर का है। यहां एक बहू ने शिकायतकर्ता 62 साल की महिला के बड़े बेटे से वीडियो कॉल के माध्यम से शादी की थी। असल में सास का बड़ा बेटा अमेरिका में रहता है। उसने फेसबुक के माध्यम से लड़की से दोस्ती की और दोस्ती बढ़ते ही शादी का प्रस्ताव रख दिया। बहू का आरोप है कि बड़े बेटे की जिद थी कि अगर वह उससे शादी नहीं करती तो वह आत्महत्या कर लेगा। पिछले साल सितंबर में वीडियो कॉल के माध्यम से दोनों की शादी हुई थी।अब आया कहानी में नाटकीय मोड़ शादी के बाद बहू सा�� के साथ रहने लगी। सास ने कहा कि उसका छोटा बेटा पुर्तगाल से आया और कुछ समय के लिए उसके साथ रहा। जब वह वापस जा रहा था, तो बहू ने उस पर उसे अपने साथ ले जाने का जोर डाला, लेकिन वह 31 जनवरी को पुर्तगाल चला गया। उसके जाने के तुरंत बाद, बहू और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर सास पर अपने बड़े बेटे से शादी को रद्द करने का दबाव डाला। 5 फरवरी को एक समझौता हुआ जिसके तहत सास ने शादी को रद्द करने के लिए शिकायतकर्ता को 11 लाख रुपये दिए।नहीं मनी बात तो लगा दिया बलात्कार का आरोपयाचिकाकर्ता सास का आरोप है कि उसके बाद उनकी मांगें बढ़ गईं और जब हमने मानने से इनकार कर दिया, तो अलग हो चुकी बहू ने 22 फरवरी को उसके और उसके छोटे बेटे के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के छोटे बेटे ने उसके साथ बलात्कार किया और उसकी नग्न तस्वीरें लीं, जबकि उसकी सास ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ उसके विरोध प्रदर्शन को चुप करा दिया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि 62 वर्षीय महिला की अग्रिम जमानत गुरदासपुर की सत्र अदालत ने खारिज कर दी थी। गिरफ्तारी पूर्व जमानत की उनकी याचिका को भी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 3 नवंबर को खारिज कर दिया था। http://dlvr.it/SzbTkk
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हिंसा की आग में झुलसता रहा मणिपुर, और चलता रहा नमो का दौरा
बीबीसी की एक खबर के मुताबिक़ फ़्रा���स में एक नाबालिग युवा को ट्रैफिक कानून तोड़ने पर पुलिस द्वारा गोली मार युवक की हत्या से लोगों में भारी आक्रोश छिड़ जाता है। जिसके बाद फ़्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रॉन की ओर से तुरंत जर्मनी दौरे को कैंसिल करने का बयान सामने आता है।
आज सुबह मैक्रॉन का एक ब्यान सामने आता है और वह कहते हैं " किसी भी पुलिस वाले को बख्शा नहीं जाएगा।" वहीं यदि आपको याद हो तो हमारे देश के पूर्वोत्तर हिस्से में करीब एक महीने से झुलसते हिस्से को प्रधानमंत्री मोदी यूँ ही कुछ नेताओं के भरोसे छोड़कर अपनी यात्राओं के लिए रवाना हो जाते हैं। इस बात से बेफिक्र की कितने लोग हिंसा की आग में जल रहे हैं और जल चुके हैं। वे अमेरिका की सर जमीन पर जाने, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को खास उपहार देने और व्हाइट हाउस में लंच करने को लेकर अधिक उत्साहित जान पड़ते हैं। दौरे से वापस लौटकर बेहद गर्व से एयरपोर्ट पर अपने मंत्रियों से पूछते हैं कि देश में क्या हाल है? पूर्वोत्तर राज्य में इतनी हिंसा और विरोध प्रदर्शन के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक न मणिपुर का दौरा कर वहां की सुध ही ली है और ना ही इस मसले का हल निकालने को,लेकर प्रदर्शनकारियों को सांत्वना ही दी है।
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अमेरिका में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाकर भागा बदमाश, देखें वायरल VIDEO
अमेरिका में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाकर भागा बदमाश, देखें वायरल VIDEO
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अमेरिका
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में एक शख्स अपनी कार से पिस्तौल निकालते हुए दिख रहा है, जिसके बाद प्रदर्शनकारी घटनास्थल से भागने लगते हैं.
अमेरिका में प्रदर्शनकारियों पर बदमाश ने चलाई गोली.
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फेसबुक, स्नैपचैट अमेरिका में जॉर्ज फ्लोयड की मृत्यु और जातिवाद को कम करते हुए कॉर्पोरेट कोरस में शामिल हों
फेसबुक, स्नैपचैट अमेरिका में जॉर्ज फ्लोयड की मृत्यु और जातिवाद को कम करते हुए कॉर्पोरेट कोरस में शामिल हों
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प्रतिनिधित्व के लिए छवि
फ़्लॉइड की मौत के खिलाफ सार्वजनिक रुख अपनाने में फेसबुक और स्नैपचैट इंटेल, नेटफ्लिक्स, गूगल, आईबीएम, एडिडास और नाइकी में शामिल हो गए और व्यापक नस्लवाद का आह्वान किया।
रायटर
आखरी अपडेट: 3 जून, 2020, 12:23 PM IST
फेसबुक इंक और स्नैपचैट डेवलपर स्नैप इंक संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्लीय असमानता की निंदा करने वाली नवीनतम अमेरिकी कंपनियां बन गईं क्योंकि हिंसक विरोध…
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#Snapchat#अमरक#अमेरिका में नस्लवाद#अमेरिका में भेदभाव#अमेरिका में विरोध प्रदर्शन#आईबीएम#इंटेल#एडिडास#और#क#कम#करत#करपरट#करस#गूगल#जतवद#जरज#जातिवाद का विरोध#जॉर्ज फ्लिंग किलिंग#जॉर्ज फ्लोयड मामला#जॉर्ज फ्लोयड मौत#नाइके#नेटफ्लिक्स#फलयड#फसबक#फेसबुक#म#मतय#मार्क जकरबर्ग#मिनियापोलिस पुलिस
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Facebook, Snapchat Join Corporate Chorus Decrying George Floyd's Death and Racism in US
Facebook, Snapchat Join Corporate Chorus Decrying George Floyd’s Death and Racism in US
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प्रतिनिधित्व के लिए छवि
फ़्लॉइड की मौत के खिलाफ सार्वजनिक रुख अपनाने में फेसबुक और स्नैपचैट इंटेल, नेटफ्लिक्स, गूगल, आईबीएम, एडिडास और नाइकी में शामिल हो गए और व्यापक नस्लवाद का आह्वान किया।
रायटर
आखरी अपडेट: 3 जून, 2020, 12:23 PM IST
फेसबुक इंक और स्नैपचैट डेवलपर स्नैप इंक, संयुक्त राज्य अमेरिका में नवीनतम नस्लीय असमानता की निंदा करने वाली नवीनतम अमेरिकी कंपनियाँ बन गईं, क्योंकि…
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सड़कों पर प्रदर्शन करती दिखीं प्रियंका चोपड़ा की प्रेग्नेंट जेठानी, मुंह पर बांधा था कपड़ा
सड़कों पर प्रदर्शन करती दिखीं प्रियंका चोपड़ा की प्रेग्नेंट जेठानी, मुंह पर बांधा था कपड़ा
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सड़कों पर प्रदर्शन करती दिखीं सोफी टर्नर प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra) की प्रेग्नेंट (Pregnant) जेठानी (Sister In Law) सोफी टर्नर (Sophie Turner) अपने पति जो जोनास (Joe Jonas) के साथ सड़कों पर हो रहे प्रदर्शन (Protests) में शामिल हुईं.
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#Black Lives Matter protests in America#entertainment#hollywood stars#Joe Jonas#Priyanka Chopra#Sister In Law#Social Media#Sophie Turner#Sophie Turner Joe Jonas participate in Black Lives Matter protests#Viral News#viral photos#अमेरिका में रंगभेद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए सोफी टर्नर जो जोनास#जेठानी#जो जोनास#नेटवर्क 18#न्यूज 18 हिंदी#प्रियंका चोपड़ा#मनोरंजन#वायरल न्यूज#वायरल वीडियो#सोफी टर्नर#सोशल मीडिया#हॉलीवुड स्टार्स
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जॉर्ज फ्लॉयड – CNN वीडियो की मौत पर अमेरिका भर में पांचवीं रात के लिए विरोध प्रदर्शन देश भर में हिंसक झड़पों के साथ मिनियापोलिस, मिनेसोटा में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत पर कम से कम 30 अमेरिकी शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। सीएनएन के पोलो सैंडोवल की रिपोर्ट। । Source link
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नाटो में शामिल होने के लिए भारत पर कोई दबाव नहीं डाल सकता...यूएन में भारत ने दोस्त रूस को सुना दिया
संयुक्त राष्ट्र: भारत एक बड़ा देश है, जो 'अपने दम पर खड़ा है और गौरवान्वित' है और कोई भी इस पर दबाव नहीं डाल सकता। यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने गुरुवार को उस समय कही, जब उनसे रूस के विदेश मंत्री के इस दावे के बारे में सवाल किया गया कि पश्चिमी सैन्य समूह नाटो भारत पर मास्को और बीजिंग विरोधी गठबंधन में शामिल होने का दबाव डाल रहा है। कंबोज ने कहा, भारत की बहुआयामी स्वतंत्र नीति है। भारतीय प्रतिनिधि कंबोज ने कहा कि रूस के साथ हमारे महत्वपूर्ण संबंध हैं और जहां तक अमेरिका के साथ संबंधों की बात है, यह एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी है, जो कभी भी इतनी मजबूत नहीं थी। भारत ने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता उस समय संभाली है, जब वीटो के अधिकार वाले रूस के यूक्रेन पर आक्रमण और उससे उपजे वैश्विक तनाव से वह असहाय हो चुका है। इस संदर्भ में पश्चिमी देशों और रूस के साथ भारत का संबंध उपयोगी हो सकता है। गुरुवार को महीने भर के लिए तयक सुरक्षा परिषद के कार्यक्रम में यूक्रेन मुद्दे को शामिल नहीं किया गया है, लेकिन कंबोज ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मुद्दा सामने आएगा। 'पीएम मोदी ने पुतिन को दिया था शांति का संदेश' यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के संदर्भ में कम्बोज ने कहा, 'हम शुरू से ही बहुत स्पष्ट रहे हैं, हमने एक स्वर में शांति की बात की है। हम कूटनीति और संवाद के पक्षधर हैं। इसके लिए हमारे प्रधान मंत्री (नरेंद्र मोदी) और विदेश मंत्री (एस जयशंकर) दोनों पक्षों से बात कर रहे हैं। हम उन कुछ देशों में से हैं, जो दोनों से बात कर रहे हैं।' उन्होंने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था, 'यह युद्ध का युग नहीं है' और कहा कि इसे 'वैश्विक स्वीकृति मिली है।' जी 20 की हालिया घोषणा में भी इसे शामिल किया गया है। प्रमुख औद्योगिक और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के समूह जी20 ने पिछले महीने बाली में अपने शिखर सम्मेलन में आम सहमति की बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने यूक्रेन में बुनियादी ढांचे पर हमलों की निंदा की है। कंबोज ने बताया कि भारत यूक्रेन को 12 मेडिकल कंसाइनमेंट और शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। एक रिपोर्टर द्वारा चीन में जारी विरोध प्रदर्शन और उसकी सरकार की कोविड नीति के बारे में पूछे जाने पर कंबोज ने कहा, 'हम अन्य देशों के आंतरिक और घरेलू मामलों पर टिप्पणी नहीं करते हैं, इस पर टिप्पणी करना हमारा काम नहीं है।' http://dlvr.it/SdjdPq
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जब भारत का आत्मा रो पड़ा
भारतीय गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व के पावन अवसर पर किसानों के नाम पर देश की राजधानी में जो तांडव हुआ, उसे देखकर भारत का आत्मा रो पड़ा। लाठी, तलवार व पत्थरों से जिस प्रकार आतंकवादियों वा अलगाववादियों ने पुलिस बल पर जो आक्रमण किया, उन्हें ट्रैक्टरों से रौंद रौंद कर मारने का प्रयास किया, वे जवान गंदे नाले में प्राण बचाने हेतु कूदने को विवश हुए, महिलाओं को भी नहीं छोड़ा, गाड़ियों को ही नहीं, अपितु रोगी वाहनों तक को नष्ट किया गया, क्या यह आंदोलन था? सबसे बढ़कर राष्ट्र के गौरव के प्रतीक लाल किले पर राष्ट्रध्वज का अपमान किया, उसे फेंका गया, उतारा भी गया और अपना एक पंथ विशेष का ध्वज लगा दिया, यह किसी भी प्रकार अपनी ही मां भारती के विरुद्ध युद्ध के बिगुल से कम नहीं था।
भारतीय गणतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। पुलिस तथा भारत सरकार इतना सब सहन करती रही, तब यह प्रश्न उठता है कि क्या भारत इतना बेबश हो गया है, दुर्बल हो गया है कि कोई भी आतंकवादी वा अलगाववादी संगठन देश की राजधानी को बंधक बनाकर कुछ भी तांडव कर सकता है? क्या इसे किसानों का आंदोलन कहा जा सकता है? सरकार ने पुलिस के जवानों को प्रारंभ में आत्मरक्षार्थ लाठी तक नहीं दी, बेचारे मार खाते रहे। नेताओं ने अपनी कोठियों के पास पूरी सुरक्षा कर रखी थी परंतु जवानों को हिंसक भीड़ के आगे अकेला निहत्था बेवश छोड़ दिया। आंसू गैस आदि का प्रयोग भी तब हुआ, जब स्थिति अनियंत्रित हो गई।
वस्तुतः मुझे इस आंदोलन पर पूर्व से कुछ-कुछ ही संदेह था। अपने कार्य की व्यस्ततावश मैं इस विषय में अधिक कुछ जानने व समझने की इच्छा भी नहीं कर पाता, परंतु संक्षिप्त समाचार देखने से इतना तो अवगत था कि कहीं कुछ अनिष्ट अवश्य है। किसानों के समर्थन में जो नेता आ रहे थे, कभी ट्रैक्टर्स पर बैठकर किसान हितैषी होने का प्रदर्शन करते हैं, वहां जोशीले भाषण देते हैं, कभी राष्ट्रपति भवन की ओर दौड़ते हैं। क्या किसानों ने कभी उनसे यह पूछने का प्रयास भी किया कि स्वतंत्रता के पश्चातझ्झ् अधिकांश समय उन्हीं की सरकार रही है, तब उन्होंने क्यों नहीं किसानों का कायाकल्प कर दिया? क्यों नहीं आज भी उनकी राज्य सरकारें किसानों का भला कर पा रही हैं? क्यों उनके शासन में किसान आत्महत्या करते रहे हैं? किसानों ने क्यों पिछले लगभग 70 वर्षों में विभिन्न सरकारों द्वारा उनके लिए बनाई गई नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन करने का प्रयास नहीं किया? यदि वे सभी राजनीतिक दलों को किसान विरोधी मानते हैं, तब क्यों नहीं उन्होंने अपने मंच से राजनेताओं को धक्का मार कर बाहर निकाला? जो राजनेता सदैव पाकिस्तान व चीन की भाषा बोलते हैं, आतंकवादियों व अलगाववादियों का खुलकर समर्थन करते हैं, कश्मीर में धारा 370 लगाने के अपराधी रहे हैं और आज फिर गुपकार गिरोह, के साथ मिलकर पुनः 370 धारा को बहाल करने की मांग करते हैं और गुपकार गिरोह चीन के सहयोग, तो कोई अमेरिका के सहयोग से धारा 370 को बहाल करने की बात करते हैं, वे राष्ट्रीय इतिहास व संस्कृति का पदे पदे अपमान करते हैं, उनका किसानों का मसीहा बनने का दिखावा क्यों किसानों को दिखाई नहीं दिया? यह किसानों से भूल हुई। इसके साथ ही किसानों की भीड़ में पाकिस्तान व खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगना, अलगाववादियों के चित्र को लहराना, यह सब यही दर्शाता है कि किसानों क�� आंदोलन अपने मूल लक्ष्य से भटक गया और इसमें खालिस्तानी आतंकवादी, चीन व पाक के चाटुकार वामपंथी शक्तियों ने घुसपैठ कर ली। विपक्षी दल भी इस पाप में पूर्णतः सम्मिलित थे। इस आंदोलन के समर्थन में कनाडा के प्रधानमंत्री का बोलना, यूएन का बोलना, ब्रिटेन में प्रदर्शन होना, यह सब दर्शाता है कि यह आंदोलन परोक्ष रूप से कहीं बाहर से भी प्रेरित था और गणतंत्र दिवस को ही लक्ष्य बनाने की हठ कोई सामान्य बात नहीं थी, बल्कि इसमें पूर्व नियोजित भयानक षडयंत्र की गंध आती है।
यह बात नितांत सत्य है कि किसी भी देश का किसान उस देश का आत्मा है, वह अन्नदाता है, इस कारण महर्षि दयानंद सरस्वती ने किसानों को राजाओं का राजा कहा था। वे किसानों के प्रति बहुत सहृदयता रखते थे, इस कारण उन्होंने गो-कृषि आदि रक्षिणी सभा की स्थापना की थी। दुर्भाग्य से देश ने ऋषि दयानंद को नहीं समझा और किसान दुःखी ही होता रहा। कई सरकारें आयीं व गयीं परन्तु ऋषि दयानन्द को किसी ने भी महत्व नहीं दिया?
यद्यपि मोदी सरकार ने किसानों के हित में पूर्व सरकारों की अपेक्षा कुछ कदम तो उठाए ही हैं परंतु ये बिल जिस प्रकार अकस्मात् लाकर बिना चर्चा के पारित कराए, वह प्रक्रिया ही गलत थी, अधिनायकवादी थी। वे बिल किसानों के हित में हैं वा नहीं, यह मेरा विषय नहीं परंतु इतना सुना है कि जो नेता इनका अब विरोध कर रहे हैं, वे ही पहले इन बिलों को ला रहे थे, तब भाजपा ने विरोध किया और जब भाजपा लायी, तो ये विरोध कर रहे हैं, तब सत्यवादी तो कोई दल वा नेता नहीं है। सभी सत्ता के मद में जनता के अधिकारों व वास्तविक हितों को भूल जाते हैं। आज कोरोना के नाम पर भी अघोषित आपात्काल व अधिनायकवाद चल रहा है, सत्य कोई सुनने वाला नहीं। देश बर्बाद हो गया है। कारोना काल में कुछ बडे़ पूंजीपतियों की सम्पत्ति बहुत बढ़ गयी और करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये, करोड़ों और अधिक निर्धन हो गये, व्यापारी व विद्यार्थी आदि बर्बाद हो गये। तब भी क्या इसे कोई षड्यन्त्र मानने को उद्यत है, कोई कुछ सुनना चाहता है? परन्तु आज कुछ मत बोलो, स्वास्थ्य आपात्काल है, इसमें सत्य को भी अफवाह बताया जाता है।
सबका अन्नदाता आज भी दुःखी ही है और पूंजीवाद बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि जनता आंदोलनों के लिए भी बाध्य हो जाती है। यह आंदोलन भी इसी का परिणाम था। सरकार ने आंदोलनकारी किसानों के दबाव को देखते हुए कई चक्र की वार्ता की। किसानों को बिलों के किसी भी बिंदु पर बात करने का प्रस्ताव रखा, अनेक बातों को स्वीकार भी किया, कानूनों को स्थगित करके एक समिति भी बनाई, तब किसानों का कर्तव्य था कि वे आंदोलन को स्थगित कर देते, समिति के निर्णय की प्रतीक्षा करते परंतु ऐसा लगता है कि किसान नेता अराजक व अलगाववादी तत्त्वों के नियंत्रण में आ चुके थे और भोले भाले किसानों को लेकर ठंड में सड़कों पर डटे रहे। अंत में अराजक तत्त्वों ने देश के मस्तक पर यह कलंक लगा ही दिया। सरकार को इस कलंक के अपराधियों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए। जहाँ तक बात बिलों को वापिस लेने की हठ की है, उस विषय में यह भी सत्य है कि बिल वापिस लेने से देश पर कोई संकट का पहाड़ नहीं टूटेगा, परन्तु एक आशंका यह अवश्य है कि इससे प्रेरित होकर राष्ट्रविरोधी नेता धारा 370 हटाने आदि जैसे अनेक राष्ट्रहित के कानूनों को भी रद्द करने के लिए आन्दोलन करने लग जाएंगे। इस कारण बिलों में किसान हित में आवश्यक संशोधन ही करना चाहिए। बिल वापिसी की हठ ठीक नहीं।
मैं तो सभी देशवासियों से विनती करता हूं कि देश सर्वोपरि है, इस कारण इसकी अस्मिता की रक्षा करना सबका सामूहिक उत्तरदायित्व है। सरकार व जनता दोनों को ही अपने अपने अधिकार नहीं, बल्कि कर्तव्य तथा दूसरों के अधिकारों को समझना होगा। जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को मनमाने ढंग से कानून बनाकर देश पर थोपने से पूर्व जन भावनाओं को समझना होगा। किसानों, श्रमिकों व उद्योगपतियों के बीच मैत्रीपूर्ण समन्वय किसी भी राष्ट्र के लिए अनिवार्य है, अन्यथा राष्ट्र का अस्तित्व ही नष्ट हो सकता है। निर्धन व धनी के बीच बढ़ती दूरी अत्यंत घातक है। आज यह घातक पाप प्रवाह जोरों से चल रहा है। हाँ, एक तथ्य यह भी है कि, जो लोग अम्बानी व अडानी जैसे उद्योगपतियों को लेकर छाती पीटते हैं, वे विदेशी कम्पनीज् की चर्चा भी नहीं करते, यह क्या रहस्य है?
स्मरण रहे यह अमानवीय पाप आज प्रारंभ नहीं हुआ है, बल्कि इसके नायक श्री जवाहरलाल नेहरू ही थे। विदेशी कंपनीज् को आमंत्रित करने वाले वे ही थे। उदारीकरण, जो वास्तव में उधारीकरण की प्रक्रिया श्री नरसिंहा राव के शासनकाल में ही प्रारंभ हो गई थी, तब भाजपा व संघ दोनों ही इसके विरुद्ध थे और स्वदेशी की दुहाई दे रहे थे, परंतु दुर्भाग्य से अब वे ही विदेशी कंपनीज् के स्वागत में पलक पावडे़ बिछा रहे हैं। कभी एक ईस्ट इंडिया कंपनीज् ने देश पर क्रूर शासन किया था, आज विदेशी दवा कंपनीज् संपूर्ण विश्व पर शासन कर रही हैं। खाद, बीज, इंटरनेट आदि से जुड़ी कंपनीज् भी इसमें सहभागी हैं। कोरोना नामक कथित महामारी भी इन्हीं की देन है। सर्वत्र अंधकार है, पूंजीपति लूट मचा रहे हैं, अधिकांश कानून उन्हीं के संरक्षण के लिए होते हैं। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश पराधीनता की ऐसी बेड़ियों में जकड़ गया है, जो भविष्य में देश को पूर्व की पराधीनता से भी अधिक भयानक गर्त में गिर सकता है। आज मेरी यह बात सबके गले नहीं उतरेगी परंतु वह दिन दूर नहीं जब ऐसा दुर्भाग्य हमारे समक्ष आ खड़ा होगा। इधर हमारी आंतरिक समस्याएं गंभीर होती जा रही हैं, उधर चीन, तुर्की व पाकिस्तान का गठजोड़ हमारे लिए संकट बढ़ाता जा रहा है। हां, इतना अवश्य है चीन के संकट के समक्ष सीना तान कर खड़ा होने का भारी साहस तो मोदी जी ने किया ही है, जो हमारे लिए गर्व की बात है, परंतु जो देश आंतरिक संकटों से निरंतर घिरता जाए और देश के अधिकांश नागरिक स्वार्थी व संकीर्ण सोच तक ही सीमित हो गये हों और सरकार अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं व बहुराष्ट्रीय कम्पनीज् के मकड़जाल में फंसने और उनसे प्रशंसा पाने को ही राष्ट्र का गौरव मानने की भूल कर रही हो, तब कोई चमत्कार ही देश को बचा सकता है।
आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक प्रमुख, श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास
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धरना प्रदर्शन और किसान आंदोलन -
धरना -प्रदर्शन हो या विरोध प्रदर्शन आजकल आम बात है लेकिन ये परम्परा कैसे शुरू हुई या कहे कब शुरू हुई या किस लिए शुरू हुई |ये बात ही आपको बताना चाहते है | इस समय ��ी देश में किसान अपने हक़ के लिए विरोध प्रदर्शन पुरे देश में कर रहे है | कृषि कानूनों को लेकर जो सरकार संसद में पास कर दिया है | इसमें लोग कई तरह का प्रदर्शन कर रहे है |
Protest शब्द का सबसे पहले प्रयोग -
कई लोगों के इस पे अलग -अलग मत है |लेकिन अपने हक़ के लिए प्रदर्शन करना कोई गुनाह नहीं है | Protest शब्द का Origin फ्रेंच भाषा के प्रोटेट से लिया गया है जिसे पहली बार सन 1751 में स्टेटमेंट ऑफ़ डिसएप्रूवल के तौर पर रिकॉर्ड किया गया था। कई रिसर्च के अनुसार दुनिया में सबसे पहला विरोध प्रदर्शन 195 ईसापूर्व में रोमन साम्राज्य के दौर में हुआ था। इस विरोध प्रदर्शन में महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई थी।
भूख हड़ताल का जिक्र सिविल राइट्स में -
भारत में पहले भी लोग अपना विरोध प्रदर्शन जताते थे कर्ज मुक्ति को लेकर भूख हड़ताल करते थे | जेलों में भी लोग अपने हक़ के लिए हड़ताल करते आये है |जबकि भूख हड़ताल का जिक्र सबसे पहले आयरलैंड के सिविल राइट्स में किया गया है |भारत में आज़ादी के लड़ाई में कई तरह के विरोध प्रदर्शन हुए है उसमे नमक आंदोलन ,दांडी यात्रा का बहुत महत्व है |भारत में सबसे लम्बे समय तक धरना प्रदर्शन करने का रिकॉर्ड मास्टर विजय सिंह के नाम है, जो पिछले 21 वर्षों से इंसाफ की उम्मीद में सिस्टम में बदलाव का इंतज़ार कर रहे हैं।
दुनिया में सबसे लम्बे समय तक विरोध करने का रिकॉर्ड अमेरिका की एक महिला के नाम पर है। परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के विरोध में इस महिला ने 30 वर्षों से ज़्यादा समय तक विरोध प्रदर्शन किया था और इसी वर्ष यानी जनवरी 2016 में वाइट हाउस के सामने उसकी मौत हो गई|दिल्ली में तो जंतर -मंतर हड़ताल का , विरोध का या एक केंद्र ही बन चूका है |किसी न कहा है की जब नाइंसाफी करना क़ानून बन जाए तो विरोध करना हमारा कर्तव्य बन जाता है।विरोध प्रदर्शन का हमेशा ही स्वर्णम इतिहास रहा है |समाज का दायित्व होना चाहिए की अपने विरोधों को कम से कम खुद में समाहित कर सके | विरोध का मतलब क्या है हो सकता है वो आपके मत से सहमत नहीं हो |और जो आपके मत से सहमत नहीं क्या वो विरोध भी नहीं कर सकता है |इस बात पे आपको सोचना जरूर चाहिए |
#मास्टरविजयसिंह#Protest#Protest शब्द#आयरलैंडकेसिविल राइट्स#कृषिकानूनों#जंतरमंतर#देशमेंकिसानधरना प्रदर्शन#धरनाप्रदर्शनऔरकिसानआंदोलन#फ्रेंचभाषा केप्रोटेट#भूखहड़ताल#रोमनसाम्राज्य#स्टेटमेंटऑफ़डिसएप्रूवल
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Black Lives Matter
अमेरिका में पुलिस बर्बरता के खिलाफ़ हो रहे लगातार विरोध प्रदर्शन, सिर्फ़ कुछ लोगों की बेवजह हुई मौत पर एक प्रतिक्रिया भर नहीं हैं। ये 401 सालों के नस्लीय भेदभाव के खिलाफ़ उठी प्रतिक्रिया है। अश्वेतों और मूल निवासी अश्वेतों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार अमेरिका के अस्तित्व के खाके में ही समाया हुआ है और हमें अब भी इस तथ्य के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिणाम दिखाई पड़ते हैं.
Tumblr का अपने समुदाय के प्रति यह नैतिक दायित्व है कि वह इस प्लैटफ़ॉर्म का इस्तेमाल सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार ढंग से करें. चुप रहना अब कोई विकल्प नहीं है. हम प्रदर्शन करने वालों और Black Lives Matter आंदोलन के साथ हैं.
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Google के सीईओ सुंदर पिचाई ने अमेरिका में नस्लीय समानता अभियान का विरोध किया
Google के सीईओ सुंदर पिचाई ने अमेरिका में नस्लीय समानता अभियान का विरोध किया
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सुंदर पिचाई, सीईओ, Google की तस्वीर
“हम नस्लीय समानता के समर्थन में खड़े हैं, और वे सभी जो इसे खोजते हैं”, पिचाई ने कहा।
आईएएनएस
आखरी अपडेट: 1 जून, 2020, 12:05 PM IST
Google और YouTube ने रविवार को अमेरिका में अपने होम पेज पर एक काले रंग का रिबन लगा दिया, जिसमें पुलिस की हिरासत में एक निहत्थे काले व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के विरोध में एकजुटता दिखाई गई। “हम नस्लीय समानता के…
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