#انسانیت
Explore tagged Tumblr posts
Photo
مشكل ما خدا نيست! مـشكل ما انسانهايى هستند كه خود را نماينده خدا دانستند و با نام خدا هر كارى كه خـواستند كردند.. میلان کوندرا #میلان_کوندرا #خدا #انسانیت #نماینده ده_خدا https://www.instagram.com/p/CodSrC7rGE9/?igshid=NGJjMDIxMWI=
0 notes
Photo
مردم متمدن، همین کمتر از پنجاه سال پیش تو آمریکا اوج نژادپرستی بود و همیشه یک سوال برای من مگه دست خود آدمه کجا و چجوری به دنیا بیاد؟؟؟؟؟؟ #زندگی #انسانیت #انسان #امید #هدف #کوشش #تلاش #تدبیر #مقاومت #پیروزی #ثروت #پیج_اینستاگرام_خشایار #اکسپلور #دیالوگ_ماندگار #جملات_ناب #reels https://www.instagram.com/p/Cn0_nKHD_L0/?igshid=NGJjMDIxMWI=
#زندگی#انسانیت#انسان#امید#هدف#کوشش#تلاش#تدبیر#مقاومت#پیروزی#ثروت#پیج_اینستاگرام_خشایار#اکسپلور#دیالوگ_ماندگار#جملات_ناب#reels
0 notes
Text
رمز واژههای دوری و تنهایی
امروز نظرم به سوی تو میپردازد، به همان نحوی که پرتوی ضعیف از آفتابی از پشت ابرها به زمین میرسد و روز را با یک حالت تیرگی و نیمروشنی پر میکند. تا زمانی که تو در اطرافیان خود بودی، دنیای من چون یک تالار نورانی به نظر میرسید که از همه جانب به توجه و لطافت تو پراکنده شده بود.
حالا، شش روز میگذرد از آن زمان که پشت سرت را به من گرفتی و به دنیایی دورافتاده سوار شدی. اما بیتردید، این شش روز مثل یک دوره طولانی از زمان به من مینماید؛ گویا سالهای بیپایانی از عزلت و تنهایی را تجربه کردهام. همچنین، فاصلهای که از تو ایجاد شده، چون تاریکیای غریب و ناشناخته در اطرافم پیچیده است و باعث میشود که هر نفسی که میکشم، با دلیلی ناآشنا همراه باشد.
بیتردید، این فاصله مرا به ایجاد تغییراتی در وجودم واداشته است. از اینکه میترسم به این فاصله عادت کنم، محکوم به اتفاقی تلخ و تراژیک است؛ آیا واقعاً من نیز چنانچه داستایوفسکی اشاره کرده، به نبود تو عادت خواهم کرد؟ آیا محکوم به بیتوجهی به نبود تو در دنیایم خواهم شد؟
گذشته از این نیز در کتاب "یادداشتهای خانه مردگان" داستایوفسکی نوشته است: "انسان موجودیست که به همه چیز عادت میکند." آیا این واقعاً درست است؟ آیا عادت به فقدان تو نیز بخشی از مسیر زندگی من خواهد شد؟ آیا از تو فراتر رفته، عادت خواهم کرد؟
احساساتی که در سینهام حاکم است، نمیتوانند به اندازهای که باید باشند، توسط کلمات خالی از احساسات منتقل شوند. دلتنگیام، عشقم و دلبستگیام به تو، هر چند در دلم زندگی میکنند، اما به سختی توانستهاند در زبان بیان شوند. گرچه این نوازشها به سمت تو ارسال میشوند، اما چون امکان بهبود در واژگان نیست، آنها همچون پیامهایی بیریشه در اقیانوس بیپایان غم، گم میشوند.
از دوری تو میترسم، از تبعات آن بر روی زندگیام میترسم، اما چه طور میتوانم از این همه ترس، خودم را مصون کنم؟
0 notes
Text
محبت اور ہمدردی زندگی کی ضروریات ہیں، آسائش نہیں۔ ان کے بغیر انسانیت زندہ نہیں رہ سکتی
"Love and compassion are necessities of life, not luxuries. Without them, humanity cannot survive
Dalai Lam
46 notes
·
View notes
Text
✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨
GAZA! 🇵🇸 Almost everybody on the planet has heard of this word, though. Why not, too? The most shocking thing about this brutal genocide against the world's most oppressed people is how they justify this senseless slaughter of women and children. They are having difficulty obtaining necessities like food and water, and guess what? The Jews, who were given sanctuary by the Palestinians, are subjected to this persecution in a Muslim-majority nation. Ahhh, the unsettling pictures of kids and the reports of adolescent girls and women being sexually assaulted. And here I am, writing this blog and doing absolutely nothing.
Perhaps the most severe sensation I have is that after we all pass away, questions regarding our roles in the tyranny will be raised. not one thing has changed in our ordinary lives; yet, some people are boycotting companies that promote Israel, raising the question of why these companies even exist. As you can see, they are so consumed with their success and wealth that they don't even consider humanity or our fundamental morality. What's worse is that we have no empathy whatsoever for Palestinians. Yes, even you! heard me correctly! because it has no effect on your day-to-day existence. We are having a pleasant time while dining in restaurants. Nothing in how we live every day has altered. And since we as human beings fell short to act and speak up for them, we are the individuals who are most accountable for this holocaust. We will pay a price for this.The Qur'an indicates that Almighty is aware of everything.
✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨✨🇵🇸✨
غزہ! سیارے پر تقریباً ہر شخص نے اس لفظ کے بارے میں سنا ہے۔ کیوں نہیں، بھی؟ دنیا کے مظلوم ترین انسانوں کے خلاف اس وحشیانہ نسل کشی کے بارے میں سب سے افسوسناک بات یہ ہے کہ وہ عورتوں اور بچوں کے اس بے ہودہ قتل کو کس طرح جائز قرار دیتے ہیں۔ انہیں خوراک اور پانی جیسی ضروریات کے حصول میں دشواری کا سامنا ہے، اور اندازہ لگائیں کہ کیا؟ یہودی، جنہیں فلسطینیوں نے پناہ دی تھی، مسلم اکثریتی قوم میں اس ظلم و ستم کا نشانہ بنتے ہیں۔ آہ، بچوں کی پریشان کن تصاویر اور نوعمر لڑکیوں اور خواتین کے ساتھ جنسی زیادتی کی اطلاعات۔ اور میں یہاں ہوں، یہ بلاگ لکھ رہا ہوں اور کچھ بھی نہیں کر رہا ہوں۔ شاید مجھے سب سے شدید احساس یہ ہے کہ ہم سب کے گزر جانے کے بعد، ظلم میں ہمارے کردار کے بارے میں سوالات اٹھیں گے۔ ہماری عام زندگیوں میں ایک چیز بھی نہیں بدلی۔ پھر بھی، کچھ لوگ اسرائیل کو فروغ دینے والی کمپنیوں کا بائیکاٹ کر رہے ہیں، یہ سوال اٹھا رہے ہیں کہ یہ کمپنیاں کیوں موجود ہیں۔ جیسا کہ آپ دیکھ سکتے ہیں، وہ اپنی کامیابی اور دولت کے ساتھ اس قدر ہڑپ کر جاتے ہیں کہ وہ انسانیت یا ہماری بنیادی اخلاقیات کا خیال تک نہیں رکھتے۔ سب سے بری بات یہ ہے کہ ہمیں فلسطینیوں کے لیے کوئی ہمدردی نہیں ہے۔ ہاں، تم بھی! مجھے صحیح سنا! کیونکہ اس کا آپ کے روزمرہ کے وجود پر کوئی اثر نہیں پڑتا۔ ریستوراں میں کھانے کے دوران ہم خوشگوار وقت گزار رہے ہیں۔ ہم جس طرح سے ہر روز رہتے ہیں اس میں کچھ بھی نہیں بدلا ہے۔ اور چونکہ ہم بحیثیت انسان ان کے لیے کام کرنے اور بولنے میں کوتاہی کرتے ہیں، اس لیے ہم وہ افراد ہیں جو اس ہولوکاسٹ کے لیے سب سے زیادہ جوابدہ ہیں۔ ہم اس کی قیمت ادا کریں گے۔ قرآن بتاتا ہے کہ اللہ تعالیٰ ہر چیز سے باخبر ہے۔
✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨
गाझा! ग्रहावरील जवळजवळ प्रत्येकाने हा शब्द ऐकला आहे. का नाही, पण? जगातील सर्वात अत्याचारित लोकांवरील या क्रूर नरसंहाराची सर्वात धक्कादायक गोष्ट म्हणजे ते स्त्रिया आणि मुलांच���या या मूर्खपणाच्या कत्तलीचे समर्थन कसे करतात. त्यांना अन्न आणि पाणी यासारख्या गरजा मिळवण्यात अडचण येत आहे आणि अंदाज लावा काय? ज्यू, ज्यांना पॅलेस्टिनींनी अभयारण्य दिले होते, मुस्लिमबहुल राष्ट्रात हा छळ केला जातो. अहो, लहान मुलांची अस्वस्थ करणारी छायाचित्रे आणि किशोरवयीन मुली आणि स्त्रियांवर लैंगिक अत्याचार झाल्याच्या बातम्या. आणि मी इथे आहे, हा ब्लॉग लिहित आहे आणि काहीही करत नाही.
कदाचित मला सर्वात तीव्र खळबळ अशी आहे की आपण सर्वांचे निधन झाल्यानंतर, जुलमी शासनातील आपल्या भूमिकेबद्दल प्रश्न उपस्थित केले जातील. आपल्या सामान्य जीवनात एकही गोष्ट बदललेली नाही; तरीही, काही लोक इस्रायलला प्रोत्साहन देणाऱ्या कंपन्यांवर बहिष्कार टाकत आहेत आणि या कंपन्या अस्तित्वात का आहेत असा प्रश्न उपस्थित करत आहेत. तुम्ही बघू शकता, ते त्यांच्या यशाचा आणि संपत्तीचा इतका उपभोग घेतात की ते मानवतेचा किंवा आपल्या मूलभूत नैतिकतेचाही विचार करत नाहीत. सर्वात वाईट म्हणजे पॅलेस्टिनी लोकांबद्दल आम्हाला सहानुभूती नाही. होय, अगदी तुम्हीही! मला बरोबर ऐकले! कारण त्याचा तुमच्या दैनंदिन अस्तित्वावर कोणताही परिणाम होत नाही. रेस्टॉरंटमध्ये जेवताना आम्ही आनंददायी वेळ घालवत आहोत. आपण दररोज कसे जगतो यातील काहीही बदललेले नाही. आणि त्यांच्यासाठी कृती करण्यात आणि बोलण्यात आम्ही मानव म्हणून कमी पडलो असल्याने, या सर्वनाशासाठी आम्ही सर्वात जबाबदार व्यक्ती आहोत. आम्ही याची किंमत मोजू. कुराण सूचित करते की सर्वशक्तिमान सर्व गोष्टींबद्दल जागरूक आहे.
🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸
غزة! ومع ذلك، فقد سمع الجميع تقريبًا على هذا الكوكب بهذه الكلمة. لماذا لا أيضا؟ إن الشيء الأكثر إثارة للصدمة في هذه الإبادة الجماعية الوحشية ضد الشعوب الأكثر اضطهادا في العالم هو كيف يبررون هذه المذبحة التي لا معنى لها للنساء والأطفال. إنهم يواجهون صعوبة في الحصول على الضروريات مثل الطعام والماء، وخمنوا ماذا؟ ويتعرض اليهود، الذين منحهم الفلسطينيون الملاذ، لهذا الاضطهاد في دولة ذات أغلبية مسلمة. آه، الصور المزعجة للأطفال والتقارير عن تعرض الفتيات والنساء المراهقات للاعتداء الجنسي. وها أنا أكتب هذه المدونة ولا أفعل شيئًا على الإطلاق.
ولعل أشد ما ينتابني هو أنه بعد وفاتنا جميعا ستُطرح أسئلة حول دورنا في الاستبداد. لم يتغير شيء واحد في حياتنا العادية؛ ومع ذلك، يقاطع بعض الناس الشركات التي تروج لإسرائيل، مما يثير التساؤل عن سبب وجود هذه الشركات. وكما ترون، فإنهم منشغلون جدًا بنجاحهم وثرواتهم لدرجة أنهم لا يفكرون حتى في الإنسانية أو أخلاقنا الأساسية. والأسوأ من ذلك هو أنه ليس لدينا أي تعاطف على الإطلاق مع الفلسطينيين. نعم، حتى أنت! سمعتني بشكل صحيح! لأنه ليس له أي تأثير على وجودك اليومي. نحن نقضي وقتًا ممتعًا أثناء تناول الطعام في المطاعم. لم يتغير شيء في الطريقة التي نعيش بها كل يوم. وبما أننا كبشر فشلنا في التحرك والتحدث نيابة عنهم، فإننا الأفراد الأكثر مسؤولية عن هذه المحرقة. وسندفع ثمن ذلك. ويشير القرآن إلى أن الله تعالى يعلم كل شيء.
✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨🇵🇸✨
गाजा! हालाँकि, ग्रह पर लगभग हर किसी ने इस शब्द के बारे में सुना है। भी क्यों नहीं? दुनिया के सबसे उत्पीड़ित लोगों के खिलाफ इस क्रूर नरसंहार के बारे में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वे महिलाओं और बच्चों के इस संवेदनहीन वध को कैसे उचित ठहराते हैं। उन्हें भोजन और पानी जैसी ज़रूरतें प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है, और सोचिए क्या? जिन यहूदियों को फ़िलिस्तीनियों ने शरण दी थी, उन्हें मुस्लिम-बहुल राष्ट्र में इस उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। आह, बच्चों की परेशान करने वाली तस्वीरें और किशोर लड़कियों और महिलाओं के यौन उत्पीड़न की खबरें। और मैं यहाँ हूँ, यह ब्लॉग लिख रहा हूँ और बिल्कुल कुछ नहीं कर रहा हूँ।
शायद मेरी सबसे गंभीर अनुभूति यह है कि हम सभी के निधन के बाद, अत्याचार में हमारी भूमिकाओं के बारे में सवाल उठाए जाएंगे। हमारे सामान्य जीवन में एक भी चीज़ नहीं बदली है; फिर भी, कुछ लोग इज़राइल को बढ़ावा देने वाली कंपनियों का बहिष्कार कर रहे हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि ये कंपनियाँ अस्तित्व में क्यों हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं, वे अपनी सफलता और धन से इतने लीन हैं कि वे मानवता या हमारी मौलिक नैतिकता पर भी विचार नहीं करते हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि फ़िलिस्तीनियों के प्रति हमारी कोई सहानुभूति नहीं है। हाँ, आप भी! मुझे सही सुना! क्योंकि इसका आपके दैनिक अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। रेस्तरां में भोजन करते समय हम सुखद समय बिता रहे हैं। हम हर दिन कैसे जीते हैं, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। और चूँकि हम मनुष्य के रूप में उनके लिए कार्य करने और बोलने में वि��ल रहे, हम ही वे व्यक्ति हैं जो इस विनाश के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। हम इसके लिए कीमत चुकाएंगे। कुरान इंगित करता है कि सर्वशक्तिमान को हर चीज की जानकारी है।
#gaza genocide#palestine#free gaza#free palestine#book quotes#islamic#muslims#illustration#urduposts#urduadab#marathi#english#arabic#hindi#news
20 notes
·
View notes
Text
کہاں ہر ایک سے انسانیت کا بار اٹھا
کہ یہ بلا بھی ترے عاشقوں کے سر آئی
فراق گورکھپوری
8 notes
·
View notes
Text
@alirafieiv
کریون شکارچی به کارگردانی جی. سی. چاندور یک اثرِ میانمایه از افسانه و قصه است که در فُرمِ سینما مرزهای اسطوره و افسانه را درنوردیده. فیلمِ قبلیِ چاندور «مارجین کال» را دوست داشتم چرا که ثابت میکند مولفْ قصهگویی با زبانِ سینما را بلد است و تکنیکهایی برای تعلیق و کشمکش در این مدیوم ارائه کرده که گفتمانی از کلاسیک و جریانِ سینمایی در آن گنجانده شده. مشخصاً دربارهی اثرِ مورد بحث این سوال بوجود میآید که شخصیتها تا کی میخواهند از ابزاراتِ ابرقهرمانیِ خود به نامِ انسانیت و اخلاق، علیه انسان استفاده کنند؟ من بارها به این نکته اشاره کردهام که هاوارد سوبر در «قدرت فیلم» قهرمان را دارای اخلاقِ برتر عنوان کرده نه ابزارِ برتر. این فکتِ بسیار درستی است که ما شخصیتهای مهمِ سینمایی از «سرگیجه» هیچکاک تا آراگون در «ارباب حلقهها» را با مترِ اخلاق اندازه بگیریم و جزئیاتی از وقایعِ داستانی را حولِ محور تصمیمات آنها بشماریم اما نکتهی بسیار مهمِ تفاوت اخلاق در این شخصیتها است که یادداشت و متنی دیگر را میطلبد. دربارهی «کریون شکارچی» نمیتوان با مترِ اخلاق یک ابرقهرمان را اندازه گرفت چرا که او تربیت شدهی یک شکارچیِ بزرگتر است و حتی نحوهی بازگشتش به زندگی محصولِ معجوناتی است که از خونِ شیر و روحِ خدایان ساخته شدهاند. واقعاً سینما این نیست که ما برای قهرمانی و قهرمان ب��شتر داشتن یک انسانِ ماوراییِ ترکیبی از حیوان و روحی ناشناخته بسازیم و به غلط جریاناتی را ادامه دهیم که فرمایشاتی از کمیکبوکها هستند و...
youtube
#youtube#art#علی رفیعی وردنجانی#نقد فیلم#artwork#digital art#animation#artists on tumblr#critic#digital illustration#کریون شکارچی#مارول#marvel#kraven
1 note
·
View note
Text
ترجمه فارسی مقالهٔ (سال ۲۰۱۶) در مورد انگیزه و تلاشم برای نوشتن و انتشار کتاب فراملی کودک در صنعت نشر کودک آمریکا.
این مقاله قبل از انتشار اولین کتاب در سری کتابهای کودک متنوع و مترقی انتشاراتم به زبان انگلیسی در شهر نیویورک نوشته و چاپ شد. جمعآوری بودجه برای چاپ اولین کتاب حدود یک سال و فقط از طریق حمایت معنوی و تشویق بزرگان فلسطینی-آمریکایی مترقی و پیش خرید صدها خانواده و شهروند مهیا شد.
Persian translation of a 2016 English Op-Ed I wrote for Mondoweiss prior to the publication and launch of Dr. Bashi™️ first diverse social justice children’s book, namely “P is For Palestine: A Palestine Alphabet Book.”
داستان فلسطین به طور کلی داستان انسانیت ماست. داستان تمام آدم ها و تمام ملت هایی که در طول تاریخ به دنبال افتخار به وطنشان بوده اند.
در 22 سپتامبر 1980 با حمله صدام به اهواز در نزدیکی مرز ایران و عراق من شاهد از دست دادن خانه مان بودم. در آن زمان من 6 ساله بودم. شانسی که ما آوردیم این بود که توانستیم در زادگاه مادرم شیراز ساکن شویم و برای مدت کوتاهی در امان باشیم تا زمانی که بمباران هوایی شیراز و سایر شهرهای دور از مرز عراق هم آغاز شد. چند سال بعد از شروع جنگ خانواده ام به سوئد پناهنده شدند. در سوئد من کودکانی را از مناطق جنگی ملاقات کردم و داستان زندگیشان را شنیدم. مصائب پناهندگان فلسطینی در این میان احساسات عمیقی را در من برانگیخت.
در کمپ پناهندگان سوئد که محل اسکان موقت ما بود، هر کسی به جز فلسطینی ها ملیت شناخته شده و سرزمینی بر روی نقشه سیاسی جهان داشت. رنج های خانواده های فلسطینی شامل چند نسل می شد؛ از پدربزرگ هایی که در روز نکبت کشته شده بودند یا از آن جان سالم بدر برده بودند تا پدر و مادرها و کودکانی که در کمپ های پناهندگان به دنیا آمده بودند.
در ان زمان ما به جز معدود عکس های خانوادگی و حرف های خودمان، چیز قابل توجهی برای نشان دادن به یکدیگر یا همسایگان و هم کلاسی های جدید سوئدی مان که نسبت به فرهنگ و تاریخ ما بی اطلاع بودند نداشتیم یا در کتابخانه های محلی نمی توانستیم پیدا کنیم.
در آن روزها، کتاب یا فیلم هایی که سرزمین و فرهنگ ما را بشناساند وجود نداشت. من سال های مدرسه را به دفاع از وطنم ایران در برابر کتاب بتی محمودی (نه بدون خواهرم) و تبلیغات پیوسته رسانه های نژادپرست علیه اکثر جوامع مسلمان گذراندم.
اکنون بعد از گذشت سه دهه شرایط تغییر کرده است. با وجود اینکه جهان اوضاع بسیار نابه سامان تری را تجربه می کند اما فرصت ها برای یادگیری بیشتر و تشکیل گروه های مردمی برای انجام کارهای خوب افزایش یافته است. این شرایط برای من به معنای ترکیب تحقیقات دانشگاهیم در زمینه نژاد، جنسیت، حقوق بشر و تاریخ با فعالیت اجتماعی و علاقه ام به هنرهای بصری و ارتباط و یادگیری و تبادل ایده ها با دانشگاهیان، هنرمندان و فعالان اجتماعی همفکر از طریق رسانه های جمعی است.
بدین ترتیب، به مدد عصر دیجیتال و همکاری کوروش بیگ پور، تایپوگرافیست شناخته شده استارتاپ اجتماعی دکتر باشی را راه اندازی کردم تا از این طریق وسایل کمک آموزشی استاندارد به زبان فارسی و عربی را که کمبود آن احساس می شود برای کودکان ارائه نمایم.
شبکه اجتماعی فیس بوک نیز خانم گلرخ نفیسی هنرمندی با دغدغه های اجتماعی را به گروه من ملحق کرد و در حال حاضر در حال تالیف کتابهای مصور در حوزه ادبیات کودکان هستیم و این فعالیت ها را برای کودکانی انجام می دهیم که سرنوشتی مشابه ما دارند از جمله کودکان پناهنده سوری در المان یا سوئد یا کودکان پناهنده یمنی که در شهر نیویورک ملاقات کردم.
بر همین اساس بود که کتاب "ف مثل فلسطین" در دست انتشار قرار گرفت. این کتاب برای کودکان فلسطینی است که می خواهند برای دوستانشان حرفی برای گفتن داشته باشند.
ریشه کتاب های الفبا به چند ��رن قبل باز می گردد. در حال حاضر کتاب های الفبایی بی شماری در باره بسیاری از کشورها و فرهنگ ها در دنیا وجود دارد که به کودکان در شناخت ملت ها و فرهنگ های دیگر کمک می کند، از جمله الف مثل آمریکا، ب مثل برزیل، ک مثل کانادا. با این وجود، چنین کتابی برای فلسطین به زبان انگلیسی تا به حال وجود نداشته است."
"هرکسی که در فلسطین بوده است یا دوستان، هم کلاسی ها و همسایگان فلسطینی دارد، می داند که این ملت پر افتخار اهل مدیترانه در مرکز توجه دنیای ماست. فلسطین سرزمین شیرین ترین پرتقال ها، پیچیده ترین سوزن دوزی ها، رقص های باشکوه (دبکه)، باغهای حاصلخیز زیتون و شادترین مردمان است. با الهام از پیشینه غنی مردم فلسطین در زمینه ادبیات و هنرهای بصری یک نویسنده دانشگاهی در زمینه ادبیات کودکان و یک تصویرگر با دغدغه های اجتماعی دست به دست هم داده اند تا کتاب "ف مثل فلسطین" را به زبان انگلیسی تالیف و در آن داستان فلسطین را به سادگی حروف الفبا به شیوه ای آموزشی، شاد و آگاهی بخش تعریف کنند تا از این طریق گوشه ای از زیبایی و قدرت فرهنگ فلسطین را نمایش دهند:
ع مثل عربی، زبان من، زبانی که چهارمین زبان ترانه دنیاست!
ب مثل بیت لحم، محل تولدم با بهترین باقلواها، که باید آنرا در بشقاب گذاشت نه در کوزه!"
Original English Op-Ed is Available here:
#PIsForPalestine#crowdfunded#labor of love#publishing#diverse children's books#Persian translation#فارسی#گلبرگ باشی
3 notes
·
View notes
Text
دوستت دارم
به اندازه تمام نیستی ام
هستی هایم را مدتهاست به پای عشقمان سوزاندم
دوستت دارم
زیباترین صفت انسانیت
توبودی و هستی تا جهان رنگی تازه از جنس نور به خود ببیند
دوستت دارم
ای روشن تر از نور✨
#مریم_خدادادی
2 notes
·
View notes
Text
بہ تسلیمات نظامت اعلیٰ تعلقات عامہ پنجاب
لاہور، فون نمبر:99201390
ڈاکٹر محمد عمران اسلم/پی آر او ٹو سی ایم
ہینڈ آؤٹ نمبر64
”اقلیتیں …………سر کا تاج“مریم نواز شریف نے وعدہ سچ کر دکھایا
پاکستان کی تاریخ کا پہلا مینارٹی کارڈکی لانچنگ،وزیر اعلیٰ مریم نواز کا مینارٹی کارڈ50 سے75 ہزار کرنے کا اعلان
وزیراعلیٰ مریم نوازشریف نے تقریب کے دوران سونیا بی بی کے مینارٹی کا رڈ کے ذریعے اے ٹی ایم مشین سے ٹرانزیکشن کے عمل کا مشاہدہ کیا
ایوان اقبال کمپلیکس میں ''چیف منسٹر مینارٹی کارڈ''لانچنگ کی تقریب،ہندو، سکھ اور کرسچن سمیت دیگر برادری کے مرد وخواتین کی شرکت
تقریب کے شرکا نے پاکستان زندہ باد کے نعروں سے وزیر اعلیٰ مریم نواز کا خیر مقدم کی،اقلیتی مرد وخواتین خواتین کو مینارٹی کارڈ تقسیم کئے
اقلیتی برادری کی حفاظت اور زندگیوں میں بہتری لانا ہماری ذمہ داری ہے،مینارٹیز کی حفاظت کا فرض پوری ذمہ دار ی سے نبھارہی ہوں:مریم نوازشریف
اقلیتی برادری کے جان و مال کو خطرے میں ڈالنے والوں کا راستہ پوری قوت سے روکیں گے،پاکستان کی تعمیر و ترقی میں اقلیتوں کا بھی مساوی کردار ہے
اقلیتوں کے لئے کوئی بھی خطرناک صورتحال ہو تو خود نگرانی کرتی ہوں،پہلے دن ہی کہا کہ مینارٹی ہمارے لیے سرکا تاج ہیں
مینارٹی بہن، بھائی، بزرگوں اور بچوں کیلئے کیا ان کو احساس ہو کہ وہ بھی پاکستانی اور پنجابی ہیں،سیاسی بیان نہیں بلکہ سب احساس ہوجائے کہ مینارٹی بھی وطن عزیزکا اتنا ہی حصہ ہیں جنتا دوسرے پاکستانیوں کا ہے
حقدار کو حق ملنے پر خوشی ہے، سب مذاہب ایک مضبوط لڑی میں پروئے ہیں، سبز ہلالی پرچم بھی بھی سفید رنگ کے بغیر مکمل نہیں ہوتا
قیامت کے دن میں اس کے خلاف گواہ بنوں گا،اقلیتوں کے بارے میں نبی کریم ؐ کی یہ حدیث اسلام کے اقلیتوں کے بارے میں رویے کا درس ہے
اقلیتوں کے بارے میں میرے والد محمد نوازشریف نے ہمیشہ اقلیت کہنے سے منع کیا، تعداد میں تو کم ہونگے مگر پاکستانیت اور انسانیت میں سے کسی سے کم نہیں
پاکستان کی تاریخ میں پہلی بلکہ پنجاب کی تاریخ میں پہلی مرتبہ مینارٹی کارڈ لانچ کیا ہے،ہماری حکومت نے اقلیتی امور کے ڈیپارٹمنٹ کے بجٹ کو بڑھایا ہے
مینارٹی کارڈ سے 50ہزار گھرانوں ساڑھے 10ہزار روپے ہر تین ماہ ملے گا،ساڑھے 10ہزار رقم کوئی زیادہ نہیں،آئندہ چند سالوں میں اس رقم کو بڑھائیں گے
50ہزار گھرانوں کو 75ہزار گھرانوں تک لیکر جائیں گے،ساڑھے 10ہزار روپے نہیں بلکہ محمد نوازشریف اور پنجاب حکومت کی طرف سے ہدیہ اور تحفہ ہے
تہواروں پر مینارٹی گرانٹ 10ہزار سے بڑھا کر 15 ہزار کر دی گئی ہے،وزیر اعلیٰ مریم نوازشریف کا منیارٹی کارڈ کی لانچنگ تقریب سے خطاب
لاہور22 - جنوری:……''اقلیتیں۔۔۔۔۔۔ سر کاتاج''،مریم نواز شریف نے وعدہ سچ کر دکھایا۔وزیر اعلیٰ مریم نواز شریف نے مینارٹی کارڈ 50 سے 75 ہزار کرنے کا اعلان کیاہے۔وزیر اعلیٰ پنجاب مریم نواز شریف نے پاکستان کا پہلا ''چیف منسٹر مینارٹی کارڈ'' لانچ کردیا۔ایوان اقبال کمپلیکس میں ہندو، سکھ اور کرسچن سمیت دیگر برادری کے مرد وخواتین نے شرکت کی۔تقریب کے شرکا نے پاکستان زندہ باد کے نعروں سے وزیر اعلیٰ مریم نواز کا خیر مقدم کی۔وزیر اعلیٰ مریم نواز شریف شرکا کے درمیان بیٹھ گئیں۔بشپ ندیم کامران اور سردار سرنجیت سنگھ، پنڈت لال نے دعائیں اور پراتھنا کیں۔وزیر اعلیٰ مریم نواز شریف نے چیف منسٹر مینارٹی کارڈ کی لانچنگ کردی۔وزیر اعلیٰ مریم نواز شریف نے اقلیتی مرد وخواتین خواتین کو مینارٹی کارڈ تقسیم کئے۔وزیر اعلیٰ مریم نواز شریف نے اے ٹی ایم مشین کے ذریعے سونیا بی بی کے مینارٹی کارڈ کی ٹرانزیکشن کا مشاہدہ کیا۔پنجاب میں 50 ہزار خاندانوں کو سہ ماہی 10500 روپے ملیں گے۔صوبائی وزیراقلیتی امور رمیش سنگھ اروڑہ نے پنجابی میں خطاب کیااور وزیر اعلیٰ مریم نواز شریف کا شکریہ ادا کیا۔وزیر اعلیٰ مریم نواز شریف نے مینارٹی کارڈ حاصل کرنیوالے مرد وخواتین کو مبارکباد دی۔وزیر اعلیٰ پنجاب مریم نوازشریف نے منیارٹی کارڈ کی لانچنگ تقریب سے خطاب کرتے ہوئے کہا کہ اقلیتی برادری کی حفاظت اور زندگیوں میں بہتری لانا ہماری ذمہ داری ہے۔مینارٹیز کی حفاظت کا فرض پوری ذمہ دار ی سے نبھارہی ہوں۔ اقلیتی برادری کے جان و مال کو خطرے میں ڈالنے والوں کا راستہ پوری قوت سے روکیں گے۔ پاکستان کی تعمیر و ترقی میں اقلیتوں کا بھی مساوی کردار ہے۔اقلیتوں کے لئے کوئی بھی خطرناک صورتحال ہو تو خود نگرانی کرتی ہوں۔پہلے دن ہی کہا کہ مینارٹی ہمارے لیے سرکا تاج ہیں۔وزیراعلیٰ مریم نوازشریف نے کہا کہ مینارٹی بہن، بھائی، بزرگوں اور بچوں کے لئے کیا ان کو احساس ہو کہ وہ بھی پاکستانی اور پنجابی ہیں۔سیاسی بیان نہیں بلکہ سب احساس ہوجائے کہ مینارٹی بھی وطن عزیزکا اتنا ہی حصہ ہیں جنتا دوسرے پاکستانیوں کا ہے۔پاکستان میں مینارٹی نام رکھ دیا گیا جس میں اتفاق نہیں کرتی۔مینارٹی والے کی یہ پہچان یہ نہیں کہ آپ غیر مسلم ہیں بلکہ آپ کی پہچان سچے اور پکے پاکستانی ہے۔ تقریب میں ہندوؤں برادری، کرسیچن اور سکھ برادری اور دوسرے مذاہب کے لوگ بھی موجود ہیں۔حقدار کو حق ملنے پر خوشی ہے، سب مذاہب ایک مضبوط لڑی میں پروئے ہیں۔ سبز ہلالی پرچم بھی بھی سفید رنگ کے بغیر مکمل نہیں ہوتا۔ وزیراعلیٰ مریم نوازشریف نے کہا کہ پاکستان اور پنجاب کے پہلے کابینہ میں سکھ منسٹر کی تعیناتی پر پوری دنیا سے مبارکباد کے پیغام آئے۔انہوں نے خطاب کرتے ہوئے بتایا کہ نبی کریم ؐ نے فرمایا جو شخص کسی غیر مسلم پر ظلم کرے گا،حق چھینے گا، طاقت سے زیادہ بوجھ ڈالے گا یا اس کی کوئی چیز اس کی مرضی کے بغیر لے گا تو قیامت کے دن میں اس کے خلاف گواہ بنوں گا۔ اقلیتوں کے بارے میں نبی کریم ؐ کی یہ حدیث اسلام کے اقلیتوں کے بارے میں رویے کا درس ہے۔ اقلیتوں کے بارے میں میرے والد محمد نوازشریف نے ہمیشہ اقلیت کہنے سے منع کیا۔ تعداد میں تو کم ہونگے مگر پاکستانیت اور انسانیت میں سے کسی سے کم نہیں۔ سکھ، ہندو اور عیسائی برادری کے ہر تہوار میں شامل ہونا ضروری سمجھت�� ہوں۔ سب سے پہلے مریم آباد چرچ میں گئی تو بتایا گیا کہ یہاں 103سال بعد کوئی حکمران آیا ہے۔ ہر کمشنر اور ڈپٹی کمشنر کو ہولی اورایسٹر سمیت کسی بھی مذہب کا تہوار پر اقلیتی عبادت گاہوں اور ان کے محلوں کو سجانے کی ہدایت کی۔وزیراعلیٰ مریم نوازشریف نے کہا کہ پاکستان کی تاریخ میں پہلی بلکہ پنجاب کی تاریخ میں پہلی مرتبہ مینارٹی کارڈ لانچ کیا ہے۔ منیارٹی کارڈ کے اجراء پرصوبائی وزیر اقلیتی امور رمیش سنگھ اروڑہ،ان کی ٹیم اور بینک آف پنجاب کا شکریہ ادا کرتی ہوں۔ ہماری حکومت نے اقلیتی امور کے ڈیپارٹمنٹ کے بجٹ کو بڑھایا ہے۔ مینارٹی کارڈ سے 50ہزار گھرانوں ساڑھے 10ہزار روپے ہر تین ماہ ملے گا۔ ساڑھے 10ہزار رقم کوئی زیادہ نہیں،آئندہ چند سالوں میں اس رقم کو بڑھائیں گے۔ 50ہزار گھرانوں کو 75ہزار گھرانوں تک لیکر جائیں گے۔انہوں نے کہا کہ ساڑھے 10ہزار روپے نہیں بلکہ محمد نوازشریف اور پنجاب حکومت کی طرف سے ہدیہ اور تحفہ ہے۔ہماری کوشش ہے کہ اقلیتی برادری کے عبادت گاہوں کو سجائیں گے۔اقلیتی برادری کو احساس دلایا ہے آپ بھی ہمارے دل کے بہت قریب ہیں۔انہوں نے کہاکہ تہواروں پر مینارٹی گرانٹ 10ہزار سے بڑھا کر 15 ہزار کر دی گئی ہے۔ اقلیتی برادری کے محلوں اور مذہبی مقامات کو بھی ڈویلپ کررہے ہیں۔ مسیحی برادری کیلئے قبرستان چند ماہ میں تیار ہوجائے گا۔ اقلیتی برادری کے لئے سالانہ ترقیاتی بجٹ میں 60فیصد اضافہ کر دیا گیا ہے۔
0 notes
Text
زندگینامه ویلیام شکسپیر: یکی از بزرگترین نویسندگان تاریخ ادبیات
ویلیام شکسپیر، نویسنده و شاعر برجسته انگلیسی، یکی از تأثیرگذارترین شخصیتهای تاریخ ادبیات جهان است. او آثار زیادی را به رشته تحریر درآورده است که هنوز هم در تئاترها و مدارس تدریس میشود. شکسپیر با نوشتن نمایشنامهها، غزلها و تراژدیهایی بینظیر، زبان انگلیسی را به سطحی جدید از پیچیدگی و زیبایی رساند و توانست مفاهیم عمیقی از زندگی انسانها را در قالب داستانهای جذاب بیان کند. این مقاله به بررسی زندگی نامه ویلیام شکسپیر و تأثیر او بر ادبیات جهانی میپردازد.
تولد و سالهای اولیه زندگی
ویلیام شکسپیر در تاریخ 23 آوریل 1564 در استراتفورد-آپن-آوون، یکی از شهرهای کوچک انگلستان، به دنیا آمد. پدر او جان شکسپیر، یک تاجر و شهردار محلی بود و مادرش مری آردن، از خانوادهای اصیل و زمیندار بود. شکسپیر در خانوادهای نسبتا متوسط و نسبتاً ثروتمند بزرگ شد، و از منابع آموزشی محدودی در آن زمان بهرهمند بود. به نظر میرسد که او تحصیلات خود را در مدرسهای محلی به نام "مدرسه گرامر استراتفورد" گذرانده است که به احتمال زیاد به او کمک کرد تا با زبان لاتین و ادبیات کلاسیک آشنا شود.
ورود به دنیای تئاتر
شکسپیر در جوانی از استراتفورد به لندن مهاجرت کرد. اطلاعات دقیقی از اینکه چرا او لندن را به عنوان مقصد خود انتخاب کرد، وجود ندارد، اما شایعاتی وجود دارد که او به عنوان بازیگر و نویسنده در تئاترهای لندن شروع به کار کرده است. شکسپیر به سرعت جایگاه خود را در تئاترهای لندن به دست آورد و با گروههای نمایشی مختلفی همکاری کرد. یکی از مهمترین اتفاقات دوران حرفهای شکسپیر، پیوستن به گروه تئاتری "منشی سلطنتی" یا "The Lord Chamberlain's Men" بود که بعداً به "The King's Men" تغییر نام داد. این گروه تئاتری برای اجرای آثار شکسپیر و دیگر نویسندگان مشهور زمان بسیار مهم بود.
آثار شکسپیر: نمایشنامهها، شعرها و تراژدیها
ویلیام شکسپیر بیش از 30 نمایشنامه نوشت که شامل تراژدی، کمدی و نمایشنامههای تاریخی میشود. از جمله آثار برجسته او میتوان به تراژدیهایی چون هملت، مکبث، شاه لیر و رومئو و ژولیت اشاره کرد. این نمایشنامهها همگی با بررسی عمیق انسانیت و مفاهیمی چون عشق، قدرت، خیانت و سرنوشت، به موضوعات مهمی پرداختهاند که هنوز هم در دنیای معاصر قابل درک و مهم هستند. علاوه بر این، شکسپیر 154 غزل نوشت که بسیاری از آنها به تأملات فلسفی و عاشقانه پرداختهاند و امروز از مهمترین آثار شعر انگلیسی محسوب میشوند.
تراژدیها و کمدیها
تراژدیهای شکسپیر از جمله آثار برجسته ادبیات جهانی هستند که به بررسی عواطف پیچیده انسانی مانند انتقام، قدرت و سقوط میپردازند. به عنوان مثال، هملت یکی از شناختهشدهترین تراژدیهای اوست که مفاهیم فلسفی عمیقی را مطرح میکند. از سوی دیگر، کمدیهای شکسپیر همچون رویای شب نیمه تابستان و دولت دوست ویژگیهای طنزآمیز و نقدهای اجتماعی را با هم ترکیب کردهاند. شکسپیر در هر دو ژانر توانست با ظرافت تمام به نمایش درآوردن روح انسان و پیچیدگیهای روانی او، تاثیرات عمیقی در ادبیات جهانی بگذارد.
سبک نوشتاری و زبان شکسپیر
یکی از ویژگیهای برجسته آثار شکسپیر استفاده بینظیر از زبان و گسترش آن بود. او در آثار خود زبان انگلیسی را به شیوهای ابتکاری به کار گرفت که هنوز هم در ادبیات معاصر مورد ستایش قرار میگیرد. شکسپیر توانست با ترکیب زبان ساده و زبانشناسی پیچیده، شخصیتها و موقعیتها را با عمق و رنگ خاصی به نمایش بگذارد. او همچنین بهطور گستردهای از استعارهها، ایهامها و دیگر تکنیکهای ادبی استفاده کرد که زبانشناسان و ادیبان هنوز به تحلیل آنها میپردازند.
مرگ و میراث شکسپیر
ویلیام شکسپیر در تاریخ 23 آوریل 1616، همزمان با سالگرد تولدش، درگذشت. بسیاری از مورخان بر این باورند که شکسپیر در طول زندگی خود، نه تنها به عنوان نویسنده، بلکه به عنوان یکی از بزرگترین فعالان فرهنگی دوران خود شناخته میشد. امروز، آثار او در بیش از 80 زبان ترجمه شدهاند و تئاترهای شکسپیر در سراسر جهان اجرا میشوند. از آثار او علاوه بر آثار تئاتری، سینما، تلویزیون و هنرهای نمایشی نیز تأثیرات بسیاری گرفتهاند. به ��مین دلیل، شکسپیر همچنان بهعنوان یک نماد جهانی در دنیای هنر و ادبیات شناخته میشود.
تأثیر شکسپیر بر ادبیات و فرهنگ
شکسپیر نه تنها به عنوان نویسندهای که زبان را به زیبایی به کار برده است شناخته میشود، بلکه به دلیل تأثیرات فرهنگی او نیز بسیار مهم است. آثار شکسپیر مفاهیم انسانی، اجتماعی و اخلاقی را به شیوهای بینظیر به مخاطب منتقل کردهاند. از طریق زبان و شخصیتپردازیهای خاصش، شکسپیر توانست جهانیان را با مسائلی چون هویت، سرنوشت، خیانت، عشق و قدرت آشنا کند. او در واقع نه تنها در عصر خود، بلکه در تمام دورانها الهامبخش نویسندگان و هنرمندان بوده است.
نتیجهگیری
ویلیام شکسپیر با آثار بینظیر خود توانسته است جایگاه ویژهای در تاریخ ادبیات جهانی پیدا کند. آثار او همچنان مورد مطالعه و اجرا قرار میگیرند و مف��هیم آنها در دنیای امروز نیز همچنان با ارزش و معنادار باقی مانده است. زندگی و آثار شکسپیر، نه تنها برای مطالعهگران ادبیات، بلکه برای همه کسانی که به دنبال درک بهتر انسانیت و پیچیدگیهای روانشناسی انسان هستند، همچنان یک منبع بیپایان الهام و تفکر است.
0 notes
Text
دعا برائے نیا سال
دعا برائے نیا سال
اے مہربان خالق، انسانیت کو امن، محبت اور اتحاد عطا فرما۔ ہمارے خاندان، دوستوں اور شریک کاروں کو خوشحالی اور ہم آہنگی نصیب کر۔ دکھوں کو دور کر، مشکلات میں گھروں کو سہارا دے، اور ہر دل کو امید سے بھر دے۔ یہ سال روشنی، مہربانی اور ترقی ہر روح کے لیے لے کر آئے۔ پاکستان اور کوریا کے تعلقات کو مزید مضبوط کر، تاکہ دونوں ممالک ایک دوسرے کو سمجھیں اور مل کر ترقی کریں۔ یہ سال باہمی تعاون، امن، اور کامیابی کا سال بنے.
آمین۔
دعا برائے نیا سال2025#
0 notes
Link
[ad_1] بسم اﷲ الرحمن الرحیمدینی مدارس اور سیکولرتعلیمی ادارے ۔ ڈاکٹر ساجد خاکوانی دینی مدارس کا آغازمحسن انسانیت ﷺ نے فرمایا جبکہ سیکولرتعلیمی ادارے مغربی نوآبادیاتی دورغلامی کی پیداوار ہیں۔معلم انسانیت ﷺنے صفہ کے چبوترے پراصحاب صفہ کی تعلیم و تربیت کا آغازکیا،یہ وہ اصحاب تھے جو اپنے گھربارچھوڑ کر حصول تعلیم کے لیے اس تعلیمی ادارے کے طلبہ بنے اورانتہائی نامساعدحالات میں بھی بھوک اور افلاس سے مقابلہ کرتے ہوئے علوم وحیہ کے حصول میں سرگرم عمل رہے۔اصحاب صفہ پر بعض اوقات ایسے حالات بھی آئے کہ نقاہت کے باعث وہ دیواروں کو تھام تھام کر چلتے لیکن اس کے باوجود ان کے پائے استقامت میں لرزش نہ آئی ۔جب کبھی دوردرازکاکوئی قبیلہ مسلمان ہوتا تو دینی مسائل سے آگاہی کے لیے اصحاب صفہ میں سے کچھ نوجوان وہاں بھیج دیے جاتے جو انہیں جملہ امورمعاشرت ودیگراحکامات شریعہ سے آگاہی فراہم کرتے۔ایک بار تودھوکے سے لے جانے والے اصحاب صفہ کی کثیرتعدادکو شہید بھی کر دیا گیا تھا جس کا کہ محسن انسانیت ﷺکوبے حد قلق ہوا۔’’صفہ‘‘کاسلسلہ خلافت راشدہ میں بھی جاری رہا اور حضرت عمر کے زمانے میں ’’گشتی تعلیمی ادارے‘‘ وجود میں آئے ،چندعلمائے دین اور اونٹنی پر دھراسامان خواندگی پرمشتمل یہ’’ قافلہ تعلیم‘‘ قبیلہ قبیلہ مطلقاََان پڑھ اور جاہل افراد کو تلاش کرتا اورلازمی تعلیم کے طورپر قرآن مجیدکے چند حصے حفظ کراتااورلکھنے پڑھنے کی ضروری تربیت بھی فراہم کرتا۔دینی کا تعلیم کے اس ادارے نے امت مسلمہ کا عروج اور زوال دیکھا،مسلمانوں کی آزادی اور دورغلامی دیکھااور عرب و عجم کے چہروں سے بھی آشنائی حاصل کی لیکن کسی نہ کسی طرح اپناوجود برقراررکھااور آج تک یہ ادارہ کسی نہ کسی شکل میں موجود ہے اور اپنا جواز بھی پیش کررہاہے۔ سیکولرتعلیمی اداروں کاموجد’’لارڈ میکالے ‘‘تھا جس نے یہ تعلیمی ادارے اس لیے بنائے کہ آزادقوم کے نوجوانوں کو ’’آداب غلامی‘‘سکھلائے جا سکیں۔گورے سامراج نے بڑی چابکدستی سے رزق کے دروازے صرف ان لوگوں کے لیے کھول دیے جو انہیں کے قائم کردہ سیکولرتعلیمی اداروں سے فارغ التحصیل تھے۔یورپی استعمارنے ان سیکولراداروں سے وہ سرنگوں قیادت پیداکی جس نے محض انگریزی زبان کے تفوق سے بدیسی حکمرانوں سے قربت جمائی اوران کے احکامات کواس سرزمین پر جاری و ساری کیا۔یہ ادارے آج تک اسی تہذیب وثقافت کے علمبردار ہیں اور آزادی کی فضا بھی ان اداروں کا کچھ بھی بھلا نہیں کرسکی۔ جب تک ان سیکولراداروں کا انتظام و انصرام خود گورے کے ہاتھ میں تھاتوان کا معیاراس لیے بہترتھا کہ گوروں کو مہیاہونے والی افرادی قوت دورآزادی کی پروردہ تھی جبکہ آزادی کے بعدآج اس نظام پر وہ لوگ مسلط ہیں جودورغلامی کے تربیت یافتہ ہیں۔چنانچہ آج کے سیکولرتعلیمی ادارے جس طرح کی پسماندہ سے پسماندہ ترین ذہنیت اور اخلاقیات سے عاری نوجوان فراہم کررہے ہیں اور اس کے نتیجے میں معاشرہ جس تیزی سے تنزل کی طرف گامزن ہے وہ نوشتہ دیوار ہے جو چاہے پڑھ لے۔ دینی مدارس اور سیکولرتعلیمی اداروں میں ایک خاص فرق یہ بھی ہے کہ دینی تعلیمی اداروں نے غلامی کو ذہنی طورپر قبول نہیں کیاتھا۔اگرچہ قومی بہاؤمیں انہیں بھی وقت کے دھارے کے ساتھ بہنا پڑالیکن انہوں نے اس کے باوجود بھی اپنا جداگانہ تشخص برقراررکھا،اس کے مقابلے میں سیکولر تعلیمی ادارے مغربی یورش کے ہر حملے کے آگے لیٹتے چلے گئے چنانچہ وہ ’’گورے‘‘نہ بن سکنے کی شرمندگی میں اپنے اصل حقیقت سے ہمیشہ منہ ہی چھپاتے رہے۔دورغلامی سے آج تک اس طبقے نے انگریزوں کے سے سو طرح کے رنگ ڈھنگ اپنائے لیکن یہ جب بھی گوروں کے سامنے گئے احساس ندامت ہی لے کر پلٹے ۔جبکہ دینی مدارس نے اپنی مقامی تہذیب و ثقافت کو دندان سخت جان سے دبائے رکھااورکتنے ہی معاشی و معاشرتی سخت سے سخت تر وار سہتے رہے لیکن اپنی اصل سے جڑے رہے اوراپنی پہچان سے دستبردار نہ ہوئے۔اس آزادمنش رویے نے انہیں تاریخ کے کچھ ایام میں تنہا بھی کردیااور ان کے ہاں سے کچھ ایسے فیصلے بھی صادرہوئے جسے وقت نے قبول نہ کیالیکن اس نقصان کی سرمایاکاری نے بھی انہیں کسی بھی بڑے خسارے سے محفوظ رکھاکیونکہ آزادی کا ایک خطیرخزانہ ان کے پہلوئے ملبوس میں موجود تھا۔ دینی مدارس اور سیکولرتعلیمی اداروں میں ایک فرق یہ بھی ہے کہ سیکولردینی ادارے چونکہ غلامی کی پیدارواہیں اس لیے ان کے فارغ التحصیل نوجوان ’’نوکری‘‘کی تلاش میں رہتے ہیں،لڑکپن سے ابتدائے شباب تک غلامی کے آداب سے روشناس نسل خود کچھ کرنے کے قابل نہیں رہتی اور اعلی سے اعلی تعلیم حاصل کرنے کے بعد بھی کسی آقا کی تلاش ان کے سر میں سمائی رہتی ہے جس کی نوکری سے ان کا پیٹ وابسطہ ہوناہے۔ایسے نوجوانوں سے سڑکیں اور بازار بھرے پڑے ہیں جن کے پاس لمبی لمبی ڈگریاں ہیں لیکن جب تک آقا میسر نہ آئے ان کی غلامانہ تعلیم بے فائدہ ہے ۔اس کے مقابلے میں دینی مدرسے کاکوئی طالب علم بے روزگار نظر نہیں آئے گا،شاید اس لیے کہ ان کے ذہنوں میں رزق حلال کے لیے تگ و دوکوعبادت قراردیاگیا ہے خواہ وہ کسی بھی درجے کی محنت و مشقت سے وابسطہ ہو۔چنانچہ اس آسمان نے بڑے بڑے جید علما��ے کرام کوحصول رزق حلا ل کے لیے طرح طرح کی مزدوریاں کرتے دیکھالیکن کسی کے آگے ہاتھ پھیلاکرنوکری کامنتظررہناان کے تعلیمی منہج کے خلاف تھا۔ آزادی اور غلامی کے فرق کواس طرح بھی سمجھاجاسکتاہے کہ آزادقومیں اپنی نسلوں کو اپنی روایات منتقل کرتی ہیں،اپنی زبان اوراپنی تہذیب و ثقافت سکھاتی ہیں اور اپنا لباس اور اپناپہناوے میں فخرمحسوس کرتی ہیں اور اپنے دیسی و مقامی کھانوں کے ذائقوں سے اپنے بچوں میں اپنائیت کو نفوذکرتی ہیں ۔جبکہ غلامانہ طبقات کا رویہ ان سے کلیۃ مختلف ہوتاہے۔ایک پروان چڑھتی ہوئی نسل جب سب کچھ اپنا سیکھے گی تو وہ سب کو اپنا سمجھے گی اس کے مقابلے میں بدیسی لباس،بدیسی زبان،بدیسی کھانے ور بدیسی طورواطوارسیکھنے والی نسل اپنے ہی معاشرے میں اجنبی ہوجائے گی تب وہ سیکولرتعلیمی اداروں کی پروردہ نسل اپنی اجنبیت کا انتقام لینے کے لیے عورتوں سے پرس چھینے گی ،بزرگوں کامذاق اڑائے گی،زوجیت اور سسرال کے تعلقات ان کے لیے محض حس مزاح کا باعث ہوں گے اوررشتہ داراور مہمان ان کے اخراجات پر بوجھ ثابت ہوں گے اورآنے والی نسل کووہ اپنی آرام دہ اور پرتعیش زندگی کا دشمن سمجھیں گے۔یہ سب غلامی کے ثمرات ہیں جبکہ دینی مدارس کے طلبہ کوان کی مقامی تہذیبی تعلیم و تربیت ان تمام مکروہات سے باز رکھتی ہے۔کتنی حیرانی کی بات ہے سالہاسال اکٹھے پڑھنے والے سیکولرتعلیمی اداروں کے نوجوان نوکری کے حصول کے لیے ’’مقابلے کاامتحان‘‘دیتے ہیں اور اپنے ہی ہم جولیوں سے اور جگری یاروں سے مقابلہ کرتے ہیں،جبکہ دینی مدارس میں ایثاراور قربانی کی تعلیم دی جاتی ہے اوردوسرے کے لیے بھی اپنے پہلو میں جگہ بنانے کو پسند کیاجاتاہے۔ سیکولرتعلیمی اداروں نے تعلیم جیسے شیوہ انبیاء علیھم السلام کوکاروبار کی شکل دے دی ہے ۔سیکولرازم نے استادکو باپ کے درجے سے گرادیاہے اور شاگردکوبیٹے کے مقام سے محروم کردیاہے ۔نوبت یہاں تک پہنچی ہے کہ استاد نے دکاندارکی شکل اختیارکرلی ہے اور شاگردکی حیثیت بازارمیں گاہک کی سی ہو چکی ہے۔اعلی انسانی اقدارکو چندبے حقیقت سکوں کی بھینٹ چڑھانااس سیکولر تعلیمی اداروں کا ماحاصل ہے۔اورخاص طور پر مخلوط تعلیم نے تواستاداورشاگرد کے تعلق کے ساتھ ساتھ ماحول کو جس قدر آلودہ کر دیاہے اس کا تو اندازہ ہی نہیں کیاجاسکتا۔ان اعلی انسانی معاشرتی اقدارکا مشاہدہ کرنا ہو تو دینی تعلیمی ادارے اس کی زندہ مثال پیش کرتے ہیں،جہاں آج بھی استاد کا کردار سگے باپ سے بڑھ کر ہے اور شاگرد وں کے درمیان مسابقت کا جذبہ موجود ہے کہ کون استادسے زیادہ شاباش حاصل کرتا ہے۔ دور دراز دیہاتوں،وادیوں ��ور جزیروں میں جہاں سیکولر تعلیمی اداروں کی جہالت عنقا ہے وہاں تو تعلیم صرف دینی تعلیم کے نام سے جانی جاتی ہے،کتاب کا عنوان صرف قرآن مجید پر صادق آتاہے اورقیادت صرف اسوۃ حسنہ ﷺکا ہی نام ہے۔چنانچہ وہاں آج بھی انسانیت موجود ہے،تہذیبی و ثقافتی شعائرموجود ہیں اورنسوانیت اپنی اصلی اور فطری شکل میں نظرآتی ہے۔ یہ ایک تاریخی حقیقت ہے کہ دینی مدارس کے باعث ہی امت مسلمہ نے غلامی کا طوق اتارپھینکاہے اورآزادی کے سفر میں ارتقاء بھی انہیں اداروں کا مرہون منت رہے گا۔غلامی نے جہاں پوری امت کوداغدارکیاہے وہاں باوجود سعی و جستجوکے دینی تعلیمی ادارے بھی کہیں نہ کہیں اس کا شکار ہوئے ہیں۔نصابات اور طرق تدریس میں عصری تقاضوں کی اہمیت سے انکارکی کوئی گنجائش نہیں۔گزشتہ ایک عرصہ سے دینی تعلیمی اداروں نے سیکولرازم کے وار سہے ہیں اور اپنا دفاع کرتے رہے ہیں اور آج تک اپنا وجود وجواز باقی رکھے ہوئے ہیں جبکہ سیکولرتعلیمی ادارے اپنا جواز کھو چکے ہیں اور انہوں نے قوم کو پژمردہ ،مفلوج،ذہنی پسماندہ ،اغیار سے شکست خوردہ اور مایوس کن افرادی قوت فراہم کی ہے ۔سیکولرتعلیمی اداروں کا اخلاقی انحطاط اب ایک جھٹکابھی سہ جانے کے قابل نہیں رہا۔آزادی کے بعد غلامی کی اس باقیات کو بھی جڑ سے اکھیڑپھینکناچاہیے۔قائداعظم ؒ نے اپنی زندگی میں صرف ایک ہی کمشن بنایا تھا،تعلیمی کمشن۔اس کمشن کی سفارشات آج بھی تشنہ تکمیل ہیں۔اﷲکرے کہ وطن عزیزکوبیدارمغزقیادت میسرآئے تاکہ غلامی کے منحوس سائے چھٹ سکیں اور پاکستان پوری امت کواور پوری دنیاکوایک شاندارقیادت فراہم کر سکے،آمین۔ Post Views: 47 Posted in تازہ ترین, مضامینTagged دینی مدارس اور سیکولرتعلیمی ادارے [ad_2] Source link
0 notes
Text
Can I tell you something useful?
”دنیا میں کوٸی بھی شخص مضبوط نہیں۔۔یہ سب بھرم ہیں۔ جو تمہیں حوصلہ دے رہا ہے وہ کسی اور سے لے رہا ہے۔ تم بھی کسی کے لیے پہاڑ کی طرح کھڑے ہو مگر اپنے اندر میں ڈھے چکے ہو۔ ہر انسان اندر سے ڈھے چکا ہے۔۔بس خدا نے سب کا بھرم رکھا ہوا ہے۔ اگر تم کسی کا کاندھا تلاش کرتے ہو تو تمہیں بھی کسی کو کاندھا دینا ہوگا۔ یہی انسانیت ہے۔“
"No one in the world is strong.. It's all illusions. Whatever is encouraging you is taking it from someone else. You too stand like a mountain for someone, but inside you you are drowned. Every human being has fallen from within.. Only God has done everything. The illusion of. If you look for someone's shoulder, you have to shoulder someone. This is humanity.
Excerpt from scattered thoughts
20 notes
·
View notes
Text
کھلا ہے جھوٹ کا بازار ، آؤ سچ بولیں
نہ ہو بلا سے خریدار ، آؤ سچ بولیں
سکوت چھایا ہے انسانیت کی قدروں پر
یہی ہے موقع اظہار ، آؤ سچ بولیں
ہمیں گواہ بنایا ہے وقت نے اپنا
بنامِ عظمت ِکردار ، آؤ سچ بولیں
سنا ہے وقت کا حاکم بڑا ہی مُنصف ہے
پکار کر سرِ بازار، آؤ سچ بولیں
تمام شہر میں کیا ایک بھی نہیں منصور
کہیں گے کیا رسن و دار ، آؤ سچ بولیں
بجا کہ خوئے وفا ایک بھی حسیں میں نہیں
کہاں کے ہم بھی وفادار، آو سچ بولیں
جو وصف ہم میں نہیں کیوں کریں کسی میں تلاش
اگر ضمیر ہے بیدار ، آؤ سچ بولیں
چھپائے سے کہیں چھپتے ہیں داغ چہرےکے
نظر ہے آئینہ بردار ، آؤ سچ بولیں
قتیل جن پہ سدا پتھروں کو پیار آیا
کدھر گئے وہ گنہ گار، آؤ سچ بولیں
قتیل شفائی
4 notes
·
View notes
Link
[ad_1] بسم اﷲ الرحمن الرحیمدینی مدارس اور سیکولرتعلیمی ادارے ۔ ڈاکٹر ساجد خاکوانی دینی مدارس کا آغازمحسن انسانیت ﷺ نے فرمایا جبکہ سیکولرتعلیمی ادارے مغربی نوآبادیاتی دورغلامی کی پیداوار ہیں۔معلم انسانیت ﷺنے صفہ کے چبوترے پراصحاب صفہ کی تعلیم و تربیت کا آغازکیا،یہ وہ اصحاب تھے جو اپنے گھربارچھوڑ کر حصول تعلیم کے لیے اس تعلیمی ادارے کے طلبہ بنے اورانتہائی نامساعدحالات میں بھی بھوک اور افلاس سے مقابلہ کرتے ہوئے علوم وحیہ کے حصول میں سرگرم عمل رہے۔اصحاب صفہ پر بعض اوقات ایسے حالات بھی آئے کہ نقاہت کے باعث وہ دیواروں کو تھام تھام کر چلتے لیکن اس کے باوجود ان کے پائے استقامت میں لرزش نہ آئی ۔جب کبھی دوردرازکاکوئی قبیلہ مسلمان ہوتا تو دینی مسائل سے آگاہی کے لیے اصحاب صفہ میں سے کچھ نوجوان وہاں بھیج دیے جاتے جو انہیں جملہ امورمعاشرت ودیگراحکامات شریعہ سے آگاہی فراہم کرتے۔ایک بار تودھوکے سے لے جانے والے اصحاب صفہ کی کثیرتعدادکو شہید بھی کر دیا گیا تھا جس کا کہ محسن انسانیت ﷺکوبے حد قلق ہوا۔’’صفہ‘‘کاسلسلہ خلافت راشدہ میں بھی جاری رہا اور حضرت عمر کے زمانے میں ’’گشتی تعلیمی ادارے‘‘ وجود میں آئے ،چندعلمائے دین اور اونٹنی پر دھراسامان خواندگی پرمشتمل یہ’’ قافلہ تعلیم‘‘ قبیلہ قبیلہ مطلقاََان پڑھ اور جاہل افراد کو تلاش کرتا اورلازمی تعلیم کے طورپر قرآن مجیدکے چند حصے حفظ کراتااورلکھنے پڑھنے کی ضروری تربیت بھی فراہم کرتا۔دینی کا تعلیم کے اس ادارے نے امت مسلمہ کا عروج اور زوال دیکھا،مسلمانوں کی آزادی اور دورغلامی دیکھااور عرب و عجم کے چہروں سے بھی آشنائی حاصل کی لیکن کسی نہ کسی طرح اپناوجود برقراررکھااور آج تک یہ ادارہ کسی نہ کسی شکل میں موجود ہے اور اپنا جواز بھی پیش کررہاہے۔ سیکولرتعلیمی اداروں کاموجد’’لارڈ میکالے ‘‘تھا جس نے یہ تعلیمی ادارے اس لیے بنائے کہ آزادقوم کے نوجوانوں کو ’’آداب غلامی‘‘سکھلائے جا سکیں۔گورے سامراج نے بڑی چابکدستی سے رزق کے دروازے صرف ان لوگوں کے لیے کھول دیے جو انہیں کے قائم کردہ سیکولرتعلیمی اداروں سے فارغ التحصیل تھے۔یورپی استعمارنے ان سیکولراداروں سے وہ سرنگوں قیادت پیداکی جس نے محض انگریزی زبان کے تفوق سے بدیسی حکمرانوں سے قربت جمائی اوران کے احکامات کواس سرزمین پر جاری و ساری کیا۔یہ ادارے آج تک اسی تہذیب وثقافت کے علمبردار ہیں اور آزادی کی فضا بھی ان اداروں کا کچھ بھی بھلا نہیں کرسکی۔ جب تک ان سیکولراداروں کا انتظام و انصرام خود گورے کے ہاتھ میں تھاتوان کا معیاراس لیے بہترتھا کہ گوروں کو مہیاہونے والی افرادی قوت دورآزادی کی پروردہ تھی جبکہ آزادی کے بعدآج اس نظام پر وہ لوگ مسلط ہیں جودورغلامی کے تربیت یافتہ ہیں۔چنانچہ آج کے سیکولرتعلیمی ادارے جس طرح کی پسماندہ سے پسماندہ ترین ذہنیت اور اخلاقیات سے عاری نوجوان فراہم کررہے ہیں اور اس کے نتیجے میں معاشرہ جس تیزی سے تنزل کی طرف گامزن ہے وہ نوشتہ دیوار ہے جو چاہے پڑھ لے۔ دینی مدارس اور سیکولرتعلیمی اداروں میں ایک خاص فرق یہ بھی ہے کہ دینی تعلیمی اداروں نے غلامی کو ذہنی طورپر قبول نہیں کیاتھا۔اگرچہ قومی بہاؤمیں انہیں بھی وقت کے دھارے کے ساتھ بہنا پڑالیکن انہوں نے اس کے باوجود بھی اپنا جداگانہ تشخص برقراررکھا،اس کے مقابلے میں سیکولر تعلیمی ادارے مغربی یورش کے ہر حملے کے آگے لیٹتے چلے گئے چنانچہ وہ ’’گورے‘‘نہ بن سکنے کی شرمندگی میں اپنے اصل حقیقت سے ہمیشہ منہ ہی چھپاتے رہے۔دورغلامی سے آج تک اس طبقے نے انگریزوں کے سے سو طرح کے رنگ ڈھنگ اپنائے لیکن یہ جب بھی گوروں کے سامنے گئے احساس ندامت ہی لے کر پلٹے ۔جبکہ دینی مدارس نے اپنی مقامی تہذیب و ثقافت کو دندان سخت جان سے دبائے رکھااورکتنے ہی معاشی و معاشرتی سخت سے سخت تر وار سہتے رہے لیکن اپنی اصل سے جڑے رہے اوراپنی پہچان سے دستبردار نہ ہوئے۔اس آزادمنش رویے نے انہیں تاریخ کے کچھ ایام میں تنہا بھی کردیااور ان کے ہاں سے کچھ ایسے فیصلے بھی صادرہوئے جسے وقت نے قبول نہ کیالیکن اس نقصان کی سرمایاکاری نے بھی انہیں کسی بھی بڑے خسارے سے محفوظ رکھاکیونکہ آزادی کا ایک خطیرخزانہ ان کے پہلوئے ملبوس میں موجود تھا۔ دینی مدارس اور سیکولرتعلیمی اداروں میں ایک فرق یہ بھی ہے کہ سیکولردینی ادارے چونکہ غلامی کی پیدارواہیں اس لیے ان کے فارغ التحصیل نوجوان ’’نوکری‘‘کی تلاش میں رہتے ہیں،لڑکپن سے ابتدائے شباب تک غلامی کے آداب سے روشناس نسل خود کچھ کرنے کے قابل نہیں رہتی اور اعلی سے اعلی تعلیم حاصل کرنے کے بعد بھی کسی آقا کی تلاش ان کے سر میں سمائی رہتی ہے جس کی نوکری سے ان کا پیٹ وابسطہ ہوناہے۔ایسے نوجوانوں سے سڑکیں اور بازار بھرے پڑے ہیں جن کے پاس لمبی لمبی ڈگریاں ہیں لیکن جب تک آقا میسر نہ آئے ان کی غلامانہ تعلیم بے فائدہ ہے ۔اس کے مقابلے میں دینی مدرسے کاکوئی طالب علم بے روزگار نظر نہیں آئے گا،شاید اس لیے کہ ان کے ذہنوں میں رزق حلال کے لیے تگ و دوکوعبادت قراردیاگیا ہے خواہ وہ کسی بھی درجے کی محنت و مشقت سے وابسطہ ہو۔چنانچہ اس آسمان نے بڑے بڑے جید علمائے کرام کوحصول رزق حلا ل کے لیے طرح طرح کی مزدوریاں کرتے دیکھالیکن کسی کے آگے ہاتھ پھیلاکرنوکری کامنتظررہناان کے تعلیمی منہج کے خلاف تھا۔ آزادی اور غلامی کے فرق کواس طرح بھی سمجھاجاسکتاہے کہ آزادقومیں اپنی نسلوں کو اپنی روایات منتقل کرتی ہیں،اپنی زبان اوراپنی تہذیب و ثقافت سکھاتی ہیں اور اپنا لباس اور اپناپہناوے میں فخرمحسوس کرتی ہیں اور اپنے دیسی و مقامی کھانوں کے ذائقوں سے اپنے بچوں میں اپنائیت کو نفوذکرتی ہیں ۔جبکہ غلامانہ طبقات کا رویہ ان سے کلیۃ مختلف ہوتاہے۔ایک پروان چڑھتی ہوئی نسل جب سب کچھ اپنا سیکھے گی تو وہ سب کو اپنا سمجھے گی اس کے مقابلے میں بدیسی لباس،بدیسی زبان،بدیسی کھانے ور بدیسی طورواطوارسیکھنے والی نسل اپنے ہی معاشرے میں اجنبی ہوجائے گی تب وہ سیکولرتعلیمی اداروں کی پروردہ نسل اپنی اجنبیت کا انتقام لینے کے لیے عورتوں سے پرس چھینے گی ،بزرگوں کامذاق اڑائے گی،زوجیت اور سسرال کے تعلقات ان کے لیے محض حس مزاح کا باعث ہوں گے اوررشتہ داراور مہمان ان کے اخراجات پر بوجھ ثابت ہوں گے اورآنے والی نسل کووہ اپنی آرام دہ اور پرتعیش زندگی کا دشمن سمجھیں گے۔یہ سب غلامی کے ثمرات ہیں جبکہ دینی مدارس کے طلبہ کوان کی مقامی تہذیبی تعلیم و تربیت ان تمام مکروہات سے باز رکھتی ہے۔کتنی حیرانی کی بات ہے سالہاسال اکٹھے پڑھنے والے سیکولرتعلیمی اداروں کے نوجوان نوکری کے حصول کے لیے ’’مقابلے کاامتحان‘‘دیتے ہیں اور اپنے ہی ہم جولیوں سے اور جگری یاروں سے مقابلہ کرتے ہیں،جبکہ دینی مدارس میں ایثاراور قربانی کی تعلیم دی جاتی ہے اوردوسرے کے لیے بھی اپنے پہلو میں جگہ بنانے کو پسند کیاجاتاہے۔ سیکولرتعلیمی اداروں نے تعلیم جیسے شیوہ انبیاء علیھم السلام کوکاروبار کی شکل دے دی ہے ۔سیکولرازم نے استادکو باپ کے درجے سے گرادیاہے اور شاگردکوبیٹے کے مقام سے محروم کردیاہے ۔نوبت یہاں تک پہنچی ہے کہ استاد نے دکاندارکی شکل اختیارکرلی ہے اور شاگردکی حیثیت بازارمیں گاہک کی سی ہو چکی ہے۔اعلی انسانی اقدارکو چندبے حقیقت سکوں کی بھینٹ چڑھانااس سیکولر تعلیمی اداروں کا ماحاصل ہے۔اورخاص طور پر مخلوط تعلیم نے تواستاداورشاگرد کے تعلق کے ساتھ ساتھ ماحول کو جس قدر آلودہ کر دیاہے اس کا تو اندازہ ہی نہیں کیاجاسکتا۔ان اعلی انسانی معاشرتی اقدارکا مشاہدہ کرنا ہو تو دینی تعلیمی ادارے اس کی زندہ مثال پیش کرتے ہیں،جہاں آج بھی استاد کا کردار سگے باپ سے بڑھ کر ہے اور شاگرد وں کے درمیان مسابقت کا جذبہ موجود ہے کہ کون استادسے زیادہ شاباش حاصل کرتا ہے۔ دور دراز دیہاتوں،وادیوں اور جزیروں میں جہاں سیکولر تعلیمی اداروں کی جہالت عنقا ہے وہاں تو تعلیم صرف دینی تعلیم کے نام سے جانی جاتی ہے،کتاب کا عنوان صرف قرآن مجید پر صادق آتاہے اورقیادت صرف اسوۃ حسنہ ﷺکا ہی نام ہے۔چنانچہ وہاں آج بھی انسانیت موجود ہے،تہذیبی و ثقافتی شعائرموجود ہیں اورنسوانیت اپنی اصلی اور فطری شکل میں نظرآتی ہے۔ یہ ایک تاریخی حقیقت ہے کہ دینی مدارس کے باعث ہی امت مسلمہ نے غلامی کا طوق اتارپھینکاہے اورآزادی کے سفر میں ارتقاء بھی انہیں اداروں کا مرہون منت رہے گا۔غلامی نے جہاں پوری امت کوداغدارکیاہے وہاں باوجود سعی و جستجوکے دینی تعلیمی ادارے بھی کہیں نہ کہیں اس کا شکار ہوئے ہیں۔نصابات اور طرق تدریس میں عصری تقاضوں کی اہمیت سے انکارکی کوئی گنجائش نہیں۔گزشتہ ایک عرصہ سے دینی تعلیمی اداروں نے سیکولرازم کے وار سہے ہیں اور اپنا دفاع کرتے رہے ہیں اور آج تک اپنا وجود وجواز باقی رکھے ہوئے ہیں جبکہ سیکولرتعلیمی ادارے اپنا جواز کھو چکے ہیں اور انہوں نے قوم کو پژمردہ ،مفلوج،ذہنی پسماندہ ،اغیار سے شکست خوردہ اور مایوس کن افرادی قوت فراہم کی ہے ۔سیکولرتعلیمی اداروں کا اخلاقی انحطاط اب ایک جھٹکابھی سہ جانے کے قابل نہیں رہا۔آزادی کے بعد غلامی کی اس باقیات کو بھی جڑ سے اکھیڑپھینکناچاہیے۔قائداعظم ؒ نے اپنی زندگی میں صرف ایک ہی کمشن بنایا تھا،تعلیمی کمشن۔اس کمشن کی سفارشات آج بھی تشنہ تکمیل ہیں۔اﷲکرے کہ وطن عزیزکوبیدارمغزقیادت میسرآئے تاکہ غلامی کے منحوس سائے چھٹ سکیں اور پاکستان پوری امت کواور پوری دنیاکوایک شاندارقیادت فراہم کر سکے،آمین۔ Post Views: 47 Posted in تازہ ترین, مضامینTagged دینی مدارس اور سیکولرتعلیمی ادارے [ad_2] Source link
0 notes