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पवित्र हिन्दू धर्मगुरु नहीं समझे गीता निर्मल ज्ञान
गीता अध्याय 4 का श्लोक 5 में गीता बोलने वाले प्रभु ने स्पष्ट कहा है कि हे परन्तप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ।
इस प्रमाण से स्पष्ट है कि गीता ज्ञान दाता (श्री कृष्ण जी उर्फ़ श्री विष्णु जी) नाशवान है। उसकी जन्म-मृत्यु होती है।
आश्चर्य की बात है पवित्र गीता जी में यह प्रमाण होते हुए भी हिन्दू अपने शास्त्रों के यथार्थ ज्ञान से अपरिचित हैं।
#श्राद्ध_करने_की_श्रेष्ठ_विधिsant rampal ji maharaj#पवित्रहिन्दूशास्त्रVSहिन्दूSant Rampal Ji Maharaj
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#पवित्रहिन्दूशास्त्रVSहिन्दू
पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू’’
गीता शास्त्र में पित्तर व भूत पूजा, देवताओं की पूजा निषेध कही है।
प्रमाण : गीता अध्याय 9 श्लोक 25
यान्ति, देवव्रताः, देवान्, पितृन्यान्ति, पितृव्रताः।
भूतानि, यन्ति, भूतेज्याः, यन्ति, मद्याजिनः, अपि, माम्।।25।।
परन्तु फिर भी हिन्दू समाज के धर्मगुरु हिंदुओं को इसके विपरीत विधि बताकर भूत पुजवा रहे हैं। यह सब काल का जाल है।
जागो हिन्दू भाई बहनों
Sant Rampal Ji Maharaj
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पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू
आश्चर्य:- शिक्षित हिन्दू श्रद्धालु प्रतिदिन श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। पुराणों को पढ़ना भी हिन्दू समाज की पूजा का अहम हिस्सा है।
रामायण ग्रन्थ व महाभारत ग्रन्थ का पढ़ना-सुनना मुख्य धर्म-कर्म है, परंतु हिन्दू श्रद्धालुओं को इन ग्रन्थों का यथारूप में ज्ञान कतई नहीं है। यही कारण है कि ढेर सारी पूजा करके भी प्यासे ही हैं, मोक्ष नहीं।
- जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज
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पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू
हिंदुओं के साथ हुआ धोखा
हिन्दू समाज का मानना है कि तीनों देवताओं कभी मरते नहीं हैं। इनका जन्म भी नहीं हुआ है, ये स्वयंभू हैं।
पेश है सच्चाई
प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123 पर ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शंकर जी स्वयं स्वीकार करते हैं कि उनका तो जन्म होता है और मृत्यु हुआ करती है।
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‘‘पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू’’
हिंदुओं के साथ हुआ धोखा
हिन्दू समाज का मानना है कि तीनों देवताओं के कोई माता-पिता नहीं हैं।
जबकि सच यह है कि दुर्गा इनकी माता है।
प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी, तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123
भगवान शंकर, भगवान ब्रह्मा तथा भगवान विष्णु स्वयं को माता दुर्गा से उत्पन्न हुआ बता रहे हैं।
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पवित्र हिन्दू शास्त्र VS हिन्दू’’
गीता शास्त्र में पित्तर व भूत पूजा, देवताओं की पूजा निषेध कही है।
प्रमाण : गीता अध्याय 9 श्लोक 25
यान्ति, देवव्रताः, देवान्, पितृन्यान्ति, पितृव्रताः।
भूतानि, यन्ति, भूतेज्याः, यन्ति, मद्याजिनः, अपि, माम्।।25।।
परन्तु फिर भी हिन्दू समाज के धर्मगुरु हिंदुओं को इसके विपरीत विधि बताकर भूत पुजवा रहे हैं। यह सब काल का जाल है।
जागो हिन्दू भाई बहनों।
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श्राद्ध क्रिया कर्म मनमाना आचरण है यह शास्त्रों में अविद्या कहा गया है बल्कि गीता अध्याय 16 श्लोज 23 और 24 में कहा है कि जो शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करते हैं उनकी ना तो गति होती है न ही उन्हें किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है इसलिए शास्त्र ही प्रमाण है
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भक्ति नहीं करने वाले व शास्त्रविरुद्ध भक्ति करने वाले, नकली गुरु बनाने वाले एवं पाप अपराध करने वालों को मृत्यु पश्चात् यमदूत घसीटकर ले जाते हैं और नरक में भयंकर यातनाएं देते हैं। तत्पश्चात् 84 लाख कष्टदायक योनियों में जन्म मिलता है।
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परमात्मा कबीर जी समझाते हैं कि हे भोले प्राणी! गरूड़ पुराण का पाठ उसे मृत्यु से पहले सुनाना चाहिए था ताकि वह परमात्मा के विधान को समझकर पाप कर्मों से बचता। पूर्ण गुरू से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करता। जिस कारण से वह न प्रेत बनता, न पितर बनता, न पशु-पक्षी आदि-आदि के शरीरों में
कष्ट उठाता
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संत रामपाल जी महाराज, सर्वसुख व पूर्णमोक्ष दायक शास्त्रानुकूल भक्ति साधना (धार्मिक अनुष्ठान) करवाते हैं, जिसके करने से साधक पितर, भूत नहीं बनता अपितु पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है तथा जो पूर्वज गलत साधना करके पित्तर भूत बने हैं, उनका भी छुटकारा हो जाता है।
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मार्कण्डेय पुराण (गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पृष्ठ 237) में श्राद्ध के विषय मे एक कथा का वर्णन मिलता है जिसमें रूची नामक एक ऋषि को अपने चार पूर्वज जो शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा कष्ट भोग रहे थे, दिखाई दिए। “पितरों ने कहा कि बेटा रूची हमारे श्राद्ध निकाल, हम दुःखी हो रहे हैं।" रूची ऋषि ने जवाब दिया की पित्रामहों वेद में कर्म काण्ड मार्ग (श्राद्ध, पिण्ड भरवाना आदि) को मूर्खों की साधना कहा है, अर्थात यह क्रिया व्यर्थ व शास्त्र विरुद्ध है।
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भूत पूजा तथा पितर पूजा क्या है?
इन पूजाओं के निषेध का प्रमाण पवित्र गीता शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक 25 में लिखा है जो आप जी को पहले वर्णन कर दिया है कि भूत पूजा करने वाले भूत बनकर भूतों के समूह में मृत्यु उपरांत चले जाऐंगे। पितर पूजा करने वाले पितर लोक में पितर योनि प्राप्त करके पितरों के पास चले जाऐंगे। मोक्ष प्राप्त प्राणी सदा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
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