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दिव्य शिशु संस्कार सम्मलेन १६ जनवरी २०१५
दिव्य शिशु संस्कार सम्मलेन १६ जनवरी २०१५
संतश्री आसाराम बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल की ओर से राष्ट्र स्तरीय दिव्य शिशु संस्कार सम्मेलन करवाया जा रहा है। इसमें पंजाब, महाराष्ट्र, यूपी आदि सभी बड़े-बड़े रा��्यों से महिलाएं पहुची है ।
Divya Shishu Sanskar Program
दिव्य शिशु संस्कार
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सुनी गोद भरनेवाला व्रत - भीष्म पंचक २ से ६ नवम्बर
सुनी गोद भरनेवाला व्रत – भीष्म पंचक २ से ६ नवम्बर
सुनी गोद भरनेवाला व्रत – भीष्म पंचक २ से ६ नवम्बर
स्त्री-रोग श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)- श्वते प्रदर में पहले तीन दिन तक अरण्डी का 1-1 चम्मच तेल पीने के बाद औषध आरंभ करने पर लाभ होगा। श्वेतप्रदर के रोगी को सख्ती से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पहला प्रयोगः आश्रम के आँवला-मिश्री के 2 से 5 ग्राम चूर्ण के सेवन से अथवा चावल के धोवन में जीरा और मिश्री के आधा-आधा तोला चूर्ण का सेवन करने से लाभ…
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संतान को भक्त, योगी या आत्मज्ञानी महापुरुष बनाने की इच्छा हो तो !! संतान को भक्त, योगी या आत्मज्ञानी महापुरुष बनाने की इच्छा हो तो !! माता-पिता ह्र्द्यपुर्वक गीता, भागवत, रामायण, श्री योगवासिष्ठ जैसे सद्ग्रंथों का रसपूर्वक श्रवण, पठन, मनन-चिंतन करें |प्राणायाम, ध्यान, आसन, कीर्तन, जप आदि करें | आपस में भक्ति, योग, आत्मज्ञान सबंधी चर्चा करें | यदि माता की क्षमता ये सभी करने की न हो तो केवल मानसिक जप, भगवत्कथा-श्रवण एवं आत्मज्ञान का श्रवण व विचार करे, जिससे माँ के शरीर में उत्पन्न हो रही धातुओं के अणु-प्रतिअणु में ये संस्कार समा जायें व गर्भस्थ बालक पर उसका प्रभाव पड़े | माँ को खूब रुचिपूर्वक भगवान की लीलाओं, संत-करितों, भक्तकथाओं, आत्मज्ञानी महापुरुषों के सत्संग-प्रवचनों को पढना-सुनना चाहिए | भगवान, सदगुरुदेव जिनमें भी श्रद्धा हो, उनका सतत ध्यान-स्मरण करना चाहिए | महापराक्रमी हनुमानजी, अर्जुन, भीम, शिवाजी जैसे वीर पुत्रों की इच्छा करनेवाले माता-पिता इनके पराक्रमों का वर्णन अत्यंत रसपूर्वक सुने-पढ़े व उसका सतत चिंतन करें | जिन्हें जिस प्रकार की संतान की इच्छा हो, उन्हें मन में उसी प्रकार के विचारों का मंथन करना चाहिए एवं उसके अनुरूप क्रियाएँ रसपूर्वक करनी चाहिए, जिससे उनके यहाँ इच्छित संस्कारों से सम्पन्न संतान आ सके एवं सद्गुणों को इच्छानुसार गर्भस्थ बालक में प्रस्थापित किया जा सके | इतिहास को देखें तो धर्मबल व नीतिबल से रहित रावण, हिरण्यकशिपु, कंस, दुर्योधन, सिकंदर, हिटलर, औरंगजेब जैसी संतानों में अपनी असा��ारण शक्ति से जगत में निरर्थक लढाइयाँ करके समाज को सुख-शांतिमय जीवन से वंचित किया | इसलिए धर्मबल व नीतिबल से युक्त उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए माता-पिता पहले से ही तैयार हो जायें तो उनका व विश्व का दोनों का मंगल होगा |
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जन्मदिवस पर क्या करें ?
जन्मदिवस पर क्या करें ?
जन्मदिवस के अवसर पर महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए घी, दूध, शहद और दूर्वा घास के मिश्रण की आहुतियाँ डालते हुए हवन करना चाहिए। ऐसा करने से आपके जीवन में कितने भी दुःख, कठिनाइयाँ, मुसीबतें हों या आप ग्रहबाधा से पीड़ित हों, उन सभी का प्रभाव शांत हो जायेगा और आपके जीवन में नया उत्साह आने लगेगा। मार्कण्डेय ऋषि का नित्य सुमिरन करने वाला और संयम-सदाचार का पालन करने वाला व्यक्ति सौ वर्ष जी सकता है –…
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गर्भ में ही बना दें बच्चों को सुसंस्कारी
वैज्ञानिक भले इस बात को अभी मान रहे हैं परंतु पूज्य बापूजी अपने सत्संगो में पिछले लगभग ५० वर्षो से यह बात बताते आया हैं | बापूजी का ब्रह्मसंक्ल्प है कि ये ही संस्कारी बालक आगे चलकर भारत को विश्वगुरु के पद पहुंचायेंगे |
पूज्य बापूजी कहते हैं : “वर्तमान यह में कई माता-पिता ऐसा सोचते हैं कि हमे ऐसे पुत्र क्यों हुए ? उन्हें यह बात समझ लेनी चाहिए कि आजकल स्त्री अथवा पुरुष गर्भाधान के लिए उचित-अनुचित…
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सिजेरियन डिलीवरी खतरनाक अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं सिजेरियन डिलीवरी खतरनाक विश्वमानव के सच्चे हितेषी पूज्य संत श्री आशारामजी बापू वर्षों से सत्संग में कहते आ रहे हैं कि ऑपरेशन द्वारा प्रसूति माँ और बच्चा दोनों के लिए हानिकारक है | अत: प्रसूति प्राकृतिक रूप से ही होनी चाहिए | प्रयोगों के पश्यात विज्ञान भी आज इस तथ्य को मानने के लिए बाध्य हो गया है कि प्राकृतिक प्रसूति ही माँ एवं बच्चे के लिए लाभप्रद है | जापानी वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध से यह सिद्ध हुआ है कि प्रसूति के समय स्त्रावित होनेवाले ९५% योनिगत द्रव्य हितकर जीवाणुओं से युक्त होते है, जो सामान्य प्रसूति में शिशु के शरीर में प्रविष्ट होकर उसकी रोगप्रतिकारक शक्ति और पाचनशक्ति को बढ़ाते है | इससे दमा, एलर्जी, श्वसन-संबंधी रोगों का खीरा काफी कम हो जाता है, जबकि ऑपरेशन से पैदा हुए बच्चे अस्पताल के हानिकारक जीवाणुओं से प्रभावित हो जाते है |
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माँ ! मुझे बचाओ…मेरा क्या कसूर ? गर्भपात ‘भ्रूणहत्या’ कहलाती है । इन्सान की हत्या से धारा ‘३०२’ की कलम लगती है, परन्तु भ्रूणहत्या ऋषि-हत्या के तुल्य है । परलोक में उसकी सजा अवश्य भुगतनी पडती है । अपने मन के साथ, अपने शरीर के साथ, अपनी संतानों एवं राष्ट्र के साथ जुल्म न करो । अपने शरीर को स्वस्थ रखो, संयमी बनो एवं राष्ट्र के लिये अपनी संतति को भी स्वस्थ एवं संयमी बनाओ । स्वयं भी महानता के पथ पर चलो और अपनी संतति को भी उसी पर अग्रसर करो । इसके लिये सत्शास्त्रों का अध्ययन, संतों का संग, सत्संग का श्रवण, जप-ध्यान, साधन-भजन करो ताकि आपकी बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आये... आपकी बुद्धि, बुद्धि न रहे, ऋतंभरा प्रज्ञा बन जाये... तभी आपका मानव जीवन सार्थक होगा, धन्य-धन्य होगा । आप भी तरोगे, अपने साथ कुल के भी तारणहार बनोगे । ॐ आनंद... ॐ... ॐ...
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अजन्मी बेटी का अपनी माँ के नाम खत
अजन्मी बेटी का अपनी माँ के नाम खत
मेरी प्यारी माँ ,
मैं खुश हूँ और भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि आप भी सुखी रहें । यह पत्र मैं इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि मैंने एक सनसनीखेज खबर सुनी है, जिसे सुनकर मैं सिर से पाँव तक काँप उठी । माँ आपको मेरे कन्या होने का पता चल गया है और आप मुझ मासूम को जन्म लेने से रोकने जा रही हैं | यह सुनकर मुझे तो यकीन नहीं हुआ । भला, मेरी प्यारी-प्यारी कोमल हृदय माँ ऐसा कैसे कर सकती है ? कोख में पल रही अपनी…
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भ्रूणहत्या ऋषि-हत्या के तुल्य है
भ्रूणहत्या ऋषि-हत्या के तुल्य है
डॉक्टरों की एक गुप्त बात है :-
पहले नंबर का काम पूरा हुआ कि नहीं ? पहले नंबर का काम क्या है ? गर्भ के अंदर जो बालक है उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े हुए कि नहीं ? आपके यहाँ जो निर्दोष नन्हा-मुन्ना आनेवाला था, जिसने आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा था, गर्भ में जिसके आने मात्र से आपको (गर्भ धारण करनेवाली पत्नी को) आनंद मिला था, ऐसे निर्दोष ऋषि (गर्भस्थ शिशु को अनेक जन्मों का ज्ञान होता है इसलिये श्रीमदभागवत…
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भारतवासियों ! अब जागो सोनोग्राफी करायी... कन्या है तो करवा दो गर्भपात... कई बार तो कन्या होती ही नहीं है, पुत्र होता है, परन्तु पैसों की लालच में सोनोग्राफीवाले कन्या बता देते हैं ।
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भौतिकवादी आँधी भगवान श्रीराम ने कहा है “निर्मल मन जन सो मोहि पावा” अर्थात निर्मल मन वाला मनुष्य ही मुझे प्राप्त कर सकता है | ईश्वर को भी निर्दोषता प्रिय है और सबसे निर्दोष प्राणी यदि कोई है तो वह है गर्भस्थ शिशु, ऐसे अबोध बालक की निर्मम हत्या करना | सम्पूर्ण विश्व में ऐसी कौन सी संस्कृति होगी जो इस कुकृत्य का पक्ष ले, और भारत जैसे देश में जहाँ के ऋषि-मुनि अजन्मे बालक को ऋषि अर्थात ज्ञानी कहते है | उस देश में गर्भपात जैसे विषय पर चर्चा करना वास्तव में देखा जाय तो यह बहुत ही व्यथा की बात है | परन्तु यह एक कटु सत्य है जो निरंतर बढ़ता ही जा रहा है | गर्भपात को समाज में फैशन के रूप में अपनाकर आये दिन मासूमो की हत्या की जा रही है और आश्चर्यजनक बात यह है कि अपने ही अजन्मे बालक की हत्या करते हुए माता पिता का हृदय भी द्रवित नही होता | भारत में आई भौतिकवादी आँधी तथा आधुनिक शल्य चिकित्सा (मोडर्न ऑॅपरेशन टेक्नीक) का प्रचार होने से स्वार्थ परायणता बढ़ती ही जा रही है | हालाँकि पूज्य बापूजी तथा स्वामी रामसुखदासजी जैसे संतों महापुरुषों के संकल्प से इस आँधी पर सरकार ने काफी हद तक रोक लगा दी है और समाज में एक नई जागृति भी आ रही है परन्तु आवश्यकता तो इस बात की है कि भारत में ये निर्मम, क्रूर कृत्य हो ही क्यों ? भारत में आवश्यकता है कि गर्भपात पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लगें समाज में व्याप्त इस निर्मम कृत्य के प्रति यदि विश्वमानव के मन में ही जागृति नहीं आयी तो अन्य उपाय तो बाह्य उपचार के तौर पर ही रहेंगे | वास्तविक घातकता का यदि विश्व मानव को पता चले, स्वयं के स्वास्थ्य की हानि पता चले तो वह ऐसा घोर कृत्य नहीं करेंगे | मानसिक एवं बौद्धिक जाग्रति का नियम सभी कानूनों से बढ़कर होगा | जैसे व्यसन मुक्ति अभियान पूज्य बापूजी के सत्संग तथा पावन सानिध्य में आने से करोड़ों लोगों ने सहज में ही व्यसन मुक्त जीवन में प्रवेश पाया है | इसी श्रृंखला में एक और गर्भपात रोको अभियान की शुरुआत की गयी है महिला उत्थान मंडल की सदस्याएँ इस पुस्तक के माध्यम से इसका और भी प्रचार करेंगी | इस पुस्तक को पढ़ने वाले सभी पवित्र आत्माओं से यह अनुरोध है कि इसका प्रत्येक क्षेत्र में प्रचार-प्रसार करें तथा इस भयानक पाप के भागीदारी न स्वयं बने न दूसरों को बनने दें |
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बहुत सो चुकी अब तो जागो !! बहुत सो चुकी अब तो जागो , ओ ! नारी कल्याणी.... परिवर्तन के स्वर में भर दो, निज गौरव की वाणी, तू ही अम्बा, तू ही भवानी, तू ही मंगलकारिणी, ओ, कल्याणी. ओ ! नारायणी..... देवी भागवत में आया, जो वेदवती सम त्याग हो कोई प्रलोभन डिगा न पाया, वैसा ही अनुराग हो मोह निशा से उठकर देखो, अब तो तू सजाग हो छूट जाए अब सारी बुराई, द्वेष न क्रोध न राग हो व्यर्थ में बीत न जाए तेरी, अमूल्य ये जिंदगानी तू ही अम्बा, तू ही भवानी, तू ही मंगलकारिणी, ओ, कल्याणी, ओ ! नारायणी..... जिजाबाई बनो देश को , वीर शिवाजी की फिर चाह सिवा तुम्हारे कौन बताएं बलिदानी वीरों को राह अगर न अब भी निद्रा, त्यागी होगी यह जगती गुमराह , वह जौहर दिखलाओ फिर से जग के मुहँ से निकले वाह वाह रच दो अपनी गौरव गरिमा, की फिर नई कहानी तू ही अम्बा, तू ही भवानी, तू ही मंगलकारिणी, ओ, कल्याणी, ओ ! नारायणी.....
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माता का कर्तव्य जिस घर की नारियाँ सत्यप्रिय, सदाचारी, संयमी और ईश्वरभक्त होती हैं, उसी घर में महान आत्माओं का अवतरण होता है । नारी वास्तव में शक्ति का ही स्वरूप है । यदि वह अपनी महिमा को जान ले तो पापात्मा को भी सज्जन बना सकती है और इसके विपरित यदि वह चरित्रवान न हो तो सज्जनों के पतन का कारण भी बन जाती है । इसलिए नारी में दैवी सम्पदा के सद्गुणों का होना आवश्यक है ।
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माँ की सीख विश्व के सभी देशों से अधिक मानवीय संवेदना, परहित की भावना, भगवत्श्रद्धा, दूसरों के दुःख में सहायरूप होने के संस्कार भारत में पाये जाते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के लगातार आक्रमण के बावजूद भी सनातन संस्कृति के इन दिव्य संस्कारों का उच्छेदन नहीं हुआ, बल्कि भारतवासियों के हृदयों में, रगों में ये अभी भी समाये हुए हैं। हमारे देश में आज भी कई घरों में माताएँ प्रातःकाल बच्चों को सिखाती हैं : ‘बेटा!
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माता : नारी का आदर्श स्वरुप धर्म (आचारसंहिता) की स्थापना भले आचार्यों ने की, पर उसे सँभाले रखना, विस्तारित करना और बच्चों में उसके संस्कारों का सिंचन करना – इन सबका श्रेय नारी को जाता है। भारतीय संस्कृति ने नारी को माता के रूप में स्वीकार करके यह बात प्रसिद्ध की है कि नारी पुरुष के कामोपभोग की सामग्री नहीं बल्कि वंदनीय, पूजनीय है। हिंदू धर्म नारी को माता के रूप में अधिक मूल्य देता है| उसने मातृस्वरूप में ईश्वर की कल्पना की है| हिंदुत्व एक ऐसी मानवता है जो जगत का संचालन एक शक्ति के सहारे हो रहा है ऐसा मानती है| वह शक्ति आद्य शक्ति, जगन्माया कही जाती है| वह खुद परम पुरुष परमात्मा, परब्रह्म की ही आह्लादिनी शक्ति है| उसी की सत्ता मात्र है| इसलिए हिंदू धर्म कई किस्सों में जब कि जगत का संचालन विकट हो गया होता है तब आद्य शक्ति को वहाँ अग्रसर करता है और मातृस्वरूप में उसे स्वीकारता है| यही कारण है कि हिंदू धर्म महाकाली और जगदम्बा की पूजा को उतना ही महत्व देता है जितना कि राम, कृष्ण और शिव की उपासना को| नारी को माता का आदर्श माना गया है क्योंकि नारी जनन, पोषण, रक्षण और संहार, इन चारों क्रियाओं में सफल सिद्ध हुई है| नारी का ह्रदय कोमल और स्निग्ध हुआ करता है। इसी वजह से वह जगत की पालक, माता के स्वरूप में हमेशा स्वीकारी गयी है। 'ब्रह्मवैवरत पुराण' के गणेश खण्ड के 40 वें अध्याय में आया हैः जनको जन्मदातृत्वात् पालनाच्च पिता स्मृतः। गरीयान् जन्मदातुश्च योऽन्दाता पिता मुने।। तयोः शतगुणे माता पूज्या मान्या च विन्दता। गभर्धारणपोषाभ्यां सा च ताभ्यां गरीयसी।। 'जन्मदाता और पालनकतार् होने के कारण सब पूज्यों में पूज्यतम जनक और पिता कहलाता है। जन्मदाता से भी अन्नदाता पिता श्रेष्ठ है। इनसे भी सौगुनी श्रेष्ठ और वंदनीया माता है, क्योंकि वह गभर्धारण तथा पोषण करती है।' इसिलिए जननी एवं जन्मभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ बताते हुए कहा गया हैः जननी जन्मभूमि स्वगार्दिप गरीयसी। सवर्तीथर्मयी माता सवर्देवमयो पिता.... माता सब तीर्थो कि प्रतिनिधि है । स्मृति कहती है कि माता का पद ��बसे ऊँचा है, माता कभी भी अपनी संतान का अहित नहीं सोचती| कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति| पुत्र कुपुत्र हो जाय परन्तु माता कभी कुमाता नहीं होती| माता माता ही रहती है| नारी को ‘मातृत्व’ करुणामयी जगन्माता का ही प्रसाद है| संतान को नौ महीने गर्भ में धारण करने एवं विविध कष्ट सहकर भी उसका पोषण करने के कारण माता की पदवी सबसे ऊँची है | लोक में यह बात प्रसिद्ध है कि जब किसी भी व्यक्ति पर बड़ा भारी आकस्मिक संकट पड़ता है तब वह ‘ओ मेरी माँ...’ ऐसा उच्चारण सहज में ही कर उठता है| आपदि मातैव शरणं |आपत्ति में माता ही शरण है | और समं नास्ति शरीरपोषनं | माता के समान शरीर का पोषक कोई नहीं है| जगत में माता ही ऐसी है जिसका स्नेह संतान पर जन्म से लेकर शैशव, बाल्य, यौवन एवं प्रौढावस्था तक बना रहता है| यह मातृप्रेम मनुष्येतर जातियों में भी देखने में आता है| माता बालक का निर्माण कैसा कर सकती है यह अपने इतिहास में सुविदित है| माता कुंती ने पांडवो को धर्म पर दृढ़ रहते हुए क्षात्रधर्म और प्रजा पालन करने का उपदेश दिया था, जिसके अनुसार चलकर वे सदा कृतकार्य रहे| माता कौशल्या को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जननी कहलाने का सौभाग्य मिला| शिवाजी की माता जीजाबाई, शिवाजी को वीर बनाने के गीत पालने में ही सुनाती थी| बच्चे उतने ही ऊँचे उठ सकते है, जितनी ऊँची स्थिति में उनकी माता होती है| जैसी माता वैसी संतान; जैसी भूमि वैसी उपज|
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सच्चे गहने
१९वीं शताब्दी का यह प्रसंग है। बंगाल के मेदिनापुर जिले के वीरसिंह गाँव के एक बालक ने अपनी माँ से कहा: ‘‘माँ! मेरी इच्छा है कि मैं तुम्हारे लिए कुछ गहने बनवाऊँ।” माँ बोली: ‘‘हाँ बेटा! बहुत दिनों से मुझे तीन गहनों की चाह है।” उत्सुकतापूर्वक बालक ने पूछा: ‘‘माँ! कौन-से तीन गहने?” ‘‘बेटा! इस गाँव में कोई विद्यालय नहीं है, इसलिए मेरी पहली चाह यह है कि यहाँ एक अच्छा विद्यालय हो। दूसरा, गाँववालों की…
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माँ के दिव्य संस्कार – आचार्य विनोबा भावे बालक विनोबा के घर-आँगन में कटहल का एक पेड़ था। उसके फल पकने पर उन्हें तोड़ा गया। बाँटकर खाना घर का नियम था। विनोबा की माता रुक्मिणी देवी ने यह शिक्षा विनोबा को एक अनोखी रीति से दी।
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