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खिड़की से हवा का एक झोंका आता। डेस्क पर रेत पसरती जाती। किताबों के पन्ने कुछ पल कांपते और ठहर जाते। जैसे कोई थका हुआ मजदूर गहरी नींद से अचानक उठ गया हो और फिर से सो गया हो। काम करते अचानक जब ऊब होने लगती तो आँखें कौने कौने को ऑब्जर्व करने लगती। ऊपर लगी खिड़की से आती रोशनी की परछाई में एक मकड़ी ने जाल बुना है। एक मकोड़ा कुछ देर उस जाल में फंसा छटपटाता है और फिर आहिस्ता आहिस्ता दम तोड़ देता है। जैसा कि एक रोज़ लालच से उपजे प्रेम का हाल होता है। मैं अपने कैबिन से बाहर आ जाता हूँ। टहलते हुए अचानक उलझन में खो जाता हूँ कि मकोड़े के हाल पर आश्चर्य किया जाए या दुःखी हुआ जाए। ऐसा सोचते मैं अचानक एक मकोड़े में बदल जाता हूँ और धूल भरी सड़क पर रेंगने लगता हूँ। चलते हुए अचानक पाता हूँ कि आगे किसी ने जाल बिछाया हुआ है। मैं कुछ पल को ठहर जाता हूँ। अचानक ख्याल आता है कि सबकी अपनी नियति होती है कि जिसे जहाँ जाना होता है वह उसी तरफ़ जाता है। हो सकता है कि उसके जाल में फंसना ही मेरी नियति हो। दूर से चमकती उसकी आँखें रेगिस्तान में पानी के भ्रम के जैसी थी। मैं अपने हाल पर मुस्कराता हूँ और आगे बढ़ जाता हूँ। कि इस दिल का आखिर क्या ही किया जा सकता है। #Rohankidiary #eveningthoughts #poetry #love #selfmusing #instagram https://www.instagram.com/p/CW5_zOhPVKR/?utm_medium=tumblr
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मुझे नहीं मालूम था कि तुम किस गली से गुज़रती होओगी। इसीलिए, मैं हर गली की दुकान से पेंसिल ख़रीदा करता था। मुझे अगर होता इल्म कि तुम चौराहे के आगे वाले इंस्टीट्यूट में पेंटिंग सिखाती हो, तो मैं एक लेखक की जगह एक पेंटर होता। किसी नदी किनारे बैठा तुम्हारा स्केच बना रहा होता। विंसेंट वेन वोग की तरह ख़ुद को मिटा रहा होता, समय की इरेजर से। मग़र मुझे तो यह तक नहीं पता था कि तुम कैसी दिखती हो, कहाँ रहती हो। मेरे पास सिर्फ़ एक खुशबु थी जो हमेशा मेरी कलाई में रहती थी। कि किसी ख्वाब में तुमने थामा था मेरा हाथ नई दिल्ली की उस गोल सड़क पर। उसी खुशबु को लिए ह��ए मैं भटकता रहा उम्र भर। कभी इधर कभी उधर। जब भी किसी गली से गुजरता, उसकी खुशबु अपनी कलाई से मिलाता। कि शायद तुम रहती हो उसी गली में ही कहीं। मैं आज भी अपनी कलाई को सूँघता हुआ गुजर रहा हूँ। कभी इस गली, कभी उस गली। सालों बाद आज किसी गली की खुशबु कुछ पहचानी सी लगी है। क्या मैं मान लूँ कि गली के आखिरी छोर पर तुम पेंसिल से मेरा स्केच बना रही होओगी, मेरा रास्ता देख रही होओगी? आऊंगा वहाँ तक तो तुम किस नाम से मिलोगी? #Rohankidiary #poetry #hindiwriting #selfmusing #love #inspiration #life #memories https://www.instagram.com/p/CWQ_jhgvcAc/?utm_medium=tumblr
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तेरी यादों को छुपा लूँ अपने ब्लॉग्स के ड्राफ़्ट में भेज दूँ अपनी तन्हाई तुझे, भरकर खाकी लिफाफे में लोग जब अपने घरों को लौटने लगते हैं जब दोपहर के वक्त पसरने लगती है उदासी तब न जाने ये कैसे खयाल आते हैं कंप्युटर, प्रिंटर, मेज़ सड़क से उड़ती रेत से ढंक जाते हैं जैसे बीते लम्हों की याद से बचना नामुमकिन हो पर एक दिन जब मिलेंगे हम किसी बस की आखिरी सीट पर टकरा जाएंगे किसी किस्से के एक दिलचस्प से इक मोड़ पर तब तुम मुझे याद दिलाना कि तुम से कोई बात कहनी है जिसे सुनकर तुम आँखों से मुस्कराओ और होंठो से मुझे देखो। #Rohankidiary #poetry #hindiwriting #selfmusing #instadiary https://www.instagram.com/p/CV-ucAdPLpE/?utm_medium=tumblr
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ट्रैफिक में फंसी कार की तरह साँसे चलती हैं और ठहर जाती है। दिल धड़कता है फिर चुप हो जाता है। सुबह होती है। दिन ढ़ल जाता है। शाम दूर जाती किसी टैक्सी की तरह बुझती जाती है। सड़क पर शोर बनते और बुझते हैं। बस की खिडकियों के शीशों से निकलती धुन एक सम्मोहन बाँधती हैं। मैं सड़क के किनारे बने तंबुओं को देखने लगता हूँ। एक कोई अधेड़ उम्र की महिला ईंटों का चूल्हा बनाकर रोटी सेंक रही है। अंदर बेड में कोई आदमी टीवी देखता लेटा हुआ है। वे बस में बैठे बैग लिए लोगों से कितने अलग हैं। उनके चेहरे पर कोई शिकायत नहीं है। जैसे कि वे जो चाहते थे उन्हें मिल गया हो। घर लौटने के इंतजार में घर आ जाता है। हम सड़क पर चलते हुए सोचते हैं कि किसी पुराने वक्त से टकरा जाएं। किसी से मिलने पर चाहने लगते हैं कि कुछ देर साथ ठहर कर बातें कर लें। और कभी किसी के साथ ठहरे हुए अचानक ऊब जाते हैं। असल में हम जो चाहते हैं वह हर पल घटित हो रहा है। हमने अपने ख्वाबों में जैसे जीवन के बीज बोए थे वे असल में खिल चुके हैं। जिस जीवन की हम कामना करते हैं असल में वह हमारे साथ ही चल रहा होता है। हम यह बात जानते भी हैं मग़र मानना नहीं चाहते। पता नहीं क्या चाहते हैं हम। तुम भी यह बात कब जान पाए हो रोहन। #Rohankidiary #poetry #hindiwriting #selfmusing #selfexploration Pic - Pinterest https://www.instagram.com/p/CVf4BzaPQkm/?utm_medium=tumblr
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किसी शातिर शिकारी की तरह, उसने बिछा दिया जाल अपनी आँखों का दिल बेचारा गिर पड़ा, उसके प्रेम में क्या कीजै। Pic - @arrahman #hindiwriting #Rohankidiary #instadiary #poetry https://www.instagram.com/p/CVVigffPQNl/?utm_medium=tumblr
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"There are two things to aim at in life: first, to get what you want; and, after that, to enjoy it. Only the wisest of mankind achieve the second." - Dale Carnegie, How to Stop Worrying and Start Living https://www.instagram.com/p/CVTAdrePFKA/?utm_medium=tumblr
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रेल्वे फाटक के सिग्नल की तरह दिल पता नहीं किसके इंतजार में खड़ा रहता है, हसरतों की सड़क पर। *** आजकल दिन चुपके से गुजर जाते हैं। शामें आहिस्ता से रात के पहलू में सिमट जाती हैं। मैं बस की पिछली सीट पर बैठा ये सोच रहा होता हूँ, कि हवा मेरे चेहरे पर लिखती जाती है कोई भीगा नग़मा। मैं आसमान में घर लौटते पंछियों से पूछता हूँ कि आज क्या जिया? कैसे पता करोगे कि ये दिन सिर्फ गुज़ारा भर है या जिया भी है? पेड़ से पत्ते गिरते हुए ठहर जाते हैं। पंछी चहक कर भूल जाते हैं अपनी चोंच बंद करना। ऑफिस की पास वाली गली में गुज़रते हुए मज़दूर फेंक देते हैं अपनी आधी बची सिगरेटों को। लड़कियां तोड़ देती हैं अपने बैग में छुपाया हुआ आईना। मैं ख़ुद से पूछता हूँ कि क्या बात है डियर, ये कैसे सवाल कर रहे हो? मन किसी डांट खाते बच्चे की तरह चुप खड़ा रहता है। दिल में कई हसरतें मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह बिखर जाती हैं। जब कोई जवाब नहीं मिलता तो मैं लिखने लगता हूँ ये छोटी छोटी बातें। एक झुंड पंछियों का शोर करता हुआ गुज़र जाता है शहर के ऊपर से। हसरतें। ख़्वाब। ज़िंदगी। शाम। तुम। 🤍 #poetry #instadiary #stories #Rohankidiary #eveningthoughts #railwayphotography #selfmusing https://www.instagram.com/p/CVN3I6nP5MD/?utm_medium=tumblr
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छत पर मूँगफली के छिलके बिखरे पड़े हैं उन्हीं के बीच पड़े हैं कुछ दाने ठुकराए हुए से जैसे कोई जरूरी कामों के बीच भूल गया हो प्रेम को। *** वह दोनों सड़क के किनारे शायद किसी बस के इंतजार में खड़े थे। लड़की ने अपने कंधे पर एक बड़ा सा डफल बैग टांग रखा था। लड़के के दोनों हाथ जीन्स की जेब में थे। उसने अपनी शर्ट के पॉकेट से लाइटर निकाला और एक सिगरेट जला ली। लड़की की आँखें हवा के हर झोंके के साथ धुएँ से भर जाती। लड़का उसकी तरफ़ देखता तो वह मुस्कुरा देती। प्रेम भी पता नहीं क्या चीज़ होती है। कोई कर के पछताता। कोई ना करके। *** दिल बेधड़क सुर बुनता जाता है। ज़िंदगी अपनी रफ़्तार से बीतती जाती है। दिन ऑफिस के कामों में कट जाता है। रात करवटें लेते गुजर जाती है। इसी बीच मुझे तुम्हें प्यार करना होता है। इन्हीं सब के बीच मैं तुम्हें याद करता हूँ। तुम्हारे लिए तोहफ़े सोचता हूँ, झुमके चुनता हूँ और पायलें लेता हूँ। जरूरी नहीं कि जो दिन भर मैसेज न करता हो वह याद भी न करता हो। समझा करो। कि जिंदगी बिखरी हुई है और उसे बुहारने वाला लापता है। #Rohankidiary #poetry #love #selfmusing https://www.instagram.com/p/CVBDeTYPGLl/?utm_medium=tumblr
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हर हकीकत एक सपने से शुरू होती है। सपने तुम्हारी हसरतों के पौधे होते हैं। जब भी वक्त मिले उनसे पूरे मन से मिलो। उनके पास बैठो, उन्हें गले लगाओ। ख़ुद से पूछो कि इस ख्वाब को ताबीर करने के लिए तुम्हें क्या करना होगा? लाइफ का असली मकसद जवाब ढूँढना नहीं, बल्कि वे सवाल ढूँढना है जिनके जवाब तुम्हारे अंदर छिपे हुए हैं। चियर्स! 💫 #dreams #jobs #Office #quotes #inspirationalquotes https://www.instagram.com/p/CU73KhUvBYy/?utm_medium=tumblr
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हॉट स्टार पर चलते आईपीएल की तरह ज़िन्दगी ठहर जाती है कई बार उलझनों की बफरिंग की वजह से। ऐसे में क्या मुझे ज़िन्दगी रिस्टार्ट कर देनी चाहिए मोबाईल की तरह? या फ़्लाइट मोड में डाल कर छोड़ देनी चाहिए कुछ देर के लिए कि सारी चिंताएँ ऐरोप्लेन की तरह उड़ जाएं सर के ऊपर से। कुछ नहीं सूझता। घर से ऑफिस जाते हुए बस में किताब खोल लेता हूँ। अपने सफ़र में खो जाता हूँ। आगे वाली सीट पर बैठी लड़की ने एक इयर पीस अपने लेफ्ट कान में लगा रखा है और एक को अपने दाँतों में। माइक उसकी गर्दन पर लटका हुआ है। उस पार से शायद किसी ने लव यू कहा हो कि वह कुछ देर राइट इयर पीस को अपनी अँगुली में घुमाती है और कुछ देर सोचने के बाद हल्के से कहती है 'टू यू ट'। उसने यह कहने से पहले कुछ देर क्या सोचा था? हर दिल चिटका हुआ है मोबाइल की स्क्रीन की तरह। हर शख्स तन्हा है चौराहे पर खड़ी की मूर्तियों की तरह। मैं मग़र तुम्हारी याद में ही भीगा रहता हूँ। जब चाहूँ तुम्हें छू सकता हूँ अपनी अँगुलियों में। तुम्हें देख सकता हूँ अपनी आँखों में। तुम्हारे होने को तुम्हारे होने की ज़रूरत नहीं है। ये तो मेरा लालच है कि तुम पास में हो तो तुम्हें बाहों में भर लूँ। #Rohankidiary #poetry #selfmusing https://www.instagram.com/p/CU5aqkNPbYU/?utm_medium=tumblr
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जादूगर मूँगफली वाले की तरह अपने पिटारे से तरह-तरह के अचम्भे निकालता जाता। लोग कपड़े की दुकान के आगे खड़े पुतले की तरह देखते जाते। लोगों को लगता कि वे जादू के सम्मोहन में है। मग़र असल में यह शाम थी जो उनकी आँखों में तिलिस्म फूँक रही थी। मैं इस मायाजाल में नहीं फंसता हूँ कि मेरी जेबों में तुम्हारे होंठो के गुलाबी फाहे रखे हैं। दिल में तुम्हारे बालों में फंसे क्लेचर की चुभन अटकी हुई है। गर्दन में तुम्हारे दाँतों की टीस है जो मुझे इस मायावी दुनिया से मुक्त रखती है। मैं एक शैतान हूँ और तुम शैतान की प्रेमिका। मेरे यह कहते ही तुम मेरे गालों पर अपने दांत गड़ा देती हो। हरी नीली बसें एक्सीलेटर छोड़कर ब्रेक लगा देती हैं। ट्राफिक पुलिस वाला सर पे हाथ रखकर बैठ जाता है एटीएम के बाहर बने फुटपाथ पर। मूँगफली वाला देखने लगता है दूसरी तरफ़ जैसे उसने कुछ देखा ही न हो अभी अभी। अभी तो सर्दियाँ शुरू भी नहीं हुई और तुम हो कि ओस की तरह गिरने लगी हो मुझपर। रहम करो कि बरबाद हो जाएगा ये शहर भी मेरी तरह। मैं और तुम। जैसे कोई कहानी। हैं भी और नहीं भी हैं हम। चियर्स। #Rohankidiary #poetry #writing https://www.instagram.com/p/CUup-OPvzUf/?utm_medium=tumblr
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ख्वाब कहानियाँ ख़त इबादत सब लिखे जाएंगे ।मैं इन दिनों खाली हूँ, कुछ काम दे दो यारों! #poetry #instadiary #stories #letters https://www.instagram.com/p/CUsk00WPPnh/?utm_medium=tumblr
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तस्वीरें तिरी हर शाम मैं सीने से लगा रखती हूँ। खिड़की के पास बैठी तेरी राह तकती हूँ । किस शहर में है वो किस हाल में रहता है। हर गुज़रते झोंके से ये सवाल किया करती हूँ। तू यूँ अलविदा कहे बिना। न जाने कहाँ चला गया मुझसे मेरा हाल पूछे बिना। खिड़कियाँ, दरवाज़��, मेहराबें पूछती है मुझसे कि आँखों का काजल क्यूँ ज़ाया करती हूँ?। मैं उन्हें क्या जवाब दूँ, ए दिलफरोश!?! #poem #hindipoem #poetry https://www.instagram.com/p/CUsRuanPiIa/?utm_medium=tumblr
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ठीक ठीक नहीं पता कि क्यूँ। मग़र शामें मुझे इंतजार से भरी ही लगती हैं। घर जाने के इंतजार में कैबिन के नीचे रखे जूते। घोंसले पर चिड़िया के आने के स्वागत में चोंच खोले बैठे चिड़िया के नन्हें बच्चे। पड़ोस से आती चाय की महक। बालकनी में खड़ी हर गुज़र को उम्मीद से देखती पत्नियाँ। जलने के इंतजार में चौराहे पर खड़ा एक लैम्पपोस्ट। कि कितना कुछ ठहरा हुआ है इंतजार में। मग़र हमें ऑफिस से भागते हुए घर जाने की इतनी जल्दी रहती है कि हम सामने से गुज़र रहे जीवन को देखना ही भूल जाते हैं। हमें सड़क के पहलू से उठती जाती धूप नहीं दिखती। हम देख ही नहीं पाते शहर के होंठो पर ठहरा हुआ किसी आने वाले का नाम। हम जीवन बनाने में इस कदर खोए होते हैं कि ठहर कर जीवन को महसूसना ही भूल जाते हैं। हमारी कहीं पहुँचने की चाहना हमें पास से गुज़रती आहटों के प्रति शून्य कर देती है। कि क्या ही हो सकता है हमारा। मैं मग़र इस बाईपास के नीचे फ़ैले चबूतरे पर बैठ जाना चाहता हूँ। हर गुज़रते शख्स को पढ़ना चाहता हूँ कि किताबों से अब ऊब होने लगी है। रुकी हुई बसों की तस्वीर उतार लेना चाहता हूं कि जान सकूँ रुके हुए चलते जाना ��्या होता है। सड़क किनारे स्टॉल पर चाय पीते हुए भर लेना चाहता हूँ इस शहर की शाम का एक लंबा कश। और बस इतनी सी ख्वाहिश और है कि किसी शाम हम अँगुलियों में अंगुलियाँ फंसाये इस अंडरपास के नीचे से गुजरें और इक दूजे से कुछ न बोलें। बस चलते जाएं। यूँ ही। *** तस्वीर कल शाम बुराड़ी बाईपास की है। मैं इंटरव्यू देकर यहाँ से गुज़र रहा था कि अचानक बादलों ने घेर लिया। बूँदों ने चेहरे को छूकर हाल जानना चाहा। सोचा इस मौसम के साथ बैठकर चाय पी जाए। बातों का सिलसिला चल पड़ा। डायरी का एक पन्ना भर गया। शुक्रिया। #Rohankidiary #eveningthoughts https://www.instagram.com/p/CUr3cZCFEfm/?utm_medium=tumblr
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खिड़की से हवा का झोंका रह रह कर आता। वह हर झोंके पर खिड़की के पल्लू को तह करता। ब्रश से स्ट्रोक तो इतने अच्छे लगा रहा था कि जैसे अपने अतीत को रंग रहा हो। मुझे तो जानबूझकर भटका हुआ रेल का कोई डिब्बा लगता है वो। खिड़की पर ब्रश से स्ट्रोक मारते मारते पता नहीं किसके ख्यालों में खो जाता है। हर बार जब ब्रश कलर की छोटी बाल्टी में डुबोता है, होंठ गोल करके पता नहीं कौन सी नज़्म प्ले करता है ये। खिड़की के पार छत पर कोई काजल का पर्दा भी नहीं है कि जिसके पार वह अपने होंठों की धुन पहुँचाना चाहता हो। मुझे तो सच में, बड़ा अज़ीब लड़का लग रहा है। पंखा बंद कर रखा है इतनी गर्मी में। कहता है पसीना न आए तो लगता ही नहीं कि दिन बीत रहा है। अपने ��ाथे पर आए हर पसीने की बूँद को अँगुलियों से इतनी नफ़ासत से संभाल कर ख़र्च करता है जैसे यही उसकी कमाई हो। शायद है भी। जब उसे कहा गया कि काम छोड़ो और चाय पी लो, तो इतनी ख़ुशी ख़ुशी सारा काम फ़ेंक कर बैठ गया जैसे किसी बच्चे को कह दो कि काम बंद करो तो वह अपनी पेंसिल और नोटबुक एक तरफ़ फ़ेंक देता है। कितना बचपना है इसमें। प्रोफ़ेसनालिटी नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं है इसमें! चाय का कप लेकर छत पर किसी छांव के टुकड़े तले बैठ गया वो। मैंने उससे कहा भैया कुर्सी पर बैठ जाओ तो किसी पोएट् की तरह क्या कहता है पता है...? बड़े फिलोसोफिकल अंदाज़ में बोला कि सर हम इसी मिट्टी से उगे हैं और एक दिन इसी में दब जाएंगे। और छत पर खड़ी धूप को देखने लगा। जैसे अपनी दुल्हन को देख रहा हो। मुझे तो इससे चिढ़ होने लगी है। सच में! मैं कितना बिजी बिजी हूँ, कितना कम कम ज़िंदगी जीता हूँ। मैंने कब इस कच्चे आर्टिस्ट की तरह अपनी छत पर खड़ी धूप को देखा है? कब थोड़ा सा वक़्त निकालकर हवा के होंठों से नमी पी? कब किसी गर्दन को जंगली होकर चूमा है दोपहर जितनी देर तक? मैं कब अपने बिजी शेड्यूल के बीच जीना भूल गया? कब मैंने आख़िरी बार प्रेम किया किसी से? ये मुझे क्या हो गया है?! तुम इस पेंटर से कहो कि जाए यहाँ से। वर्ना मैं आज जल जल कर सूरज हो जाऊँगा। अपनी धूप से हर जवानी की व्यस्तताएं जलाकर राख कर दूँगा! #Rohankidiary https://www.instagram.com/p/CUb-25KlkkI/?utm_medium=tumblr
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जब लिखते लिखते अनगिनत ऊब घेर लेती है तो मैं अपनी कलाई पर कान रखकर लेट जाता हूँ। अपने दिल से स्पंदित होती धड़कनों से ख़ुद संगीत बुनता हूँ। ख़ुद ही रक़्स करता हूँ। कि ख़ुद को जीवन से जोड़े रखने का काम सिर्फ़ आपका है। इसके लिए एम्पलोयीज़ हायर नहीं किए जा सकते। मैं ड्राफ़्ट सेव करके बालकनी में आता हूँ। शाम ठंडी हवा का हाथ थामे चली आ रही। शहर उनकी तरफ़ देखता हुआ अपने बदन से धूल झाड़ रहा है। पत्ते बज़बजाते हैं। पेड़ उनके स्वागत में शाख से पत्ते गिराते जाते हैं। अचानक एक आहट होती है और ख्याल उम्मीदों की तरह टूट जाते हैं। वह कॉल रखते हुए कहती है कि तुम्हें पहले बताना था न। अब मैं आगे क्या जवाब दूँगी? मैं सॉरी कहने को होता हूँ मग़र उस पार से कॉल कट हो जाती है। ज़िंदगी के बारे में मुझे कुछ नहीं पता मग़र यह कन्फर्म है कि यह अनप्रेडिक्टेबल है। हम जितना भी कह लें कि देख लेंगे। सब हो जाएगा। मग़र हम कुछ परिस्थितियों के लिए ख़ुद को कभी तैय्यार नहीं कर पाते। हम पानी से बाहर आकर गिरी रेत पर पड़ी मछली की तरह छटपटाते हैं कि कोई आए और हमें उठाकर पानी में फेंक दे। मग़र कोई हमारी हलचल को देख नहीं पाता। हमें ख़ुद ही ख़ुद को जीवन के करीब लाना होता है। ख़ुद ही ख़ुद को उठाकर खड़ा करना पड़ता है। कभी कभी लगता है कि जिंदगी पानी पर तैर रही एक नाव है जिसके बीच में एक बड़ा सा छेद है। मैं एक हाथ से पानी फेंकता जाता हूँ और दूजे से चप्पू चलाता जाता हूँ। क्या यह आगे बढ़ रही है? #Rohankidiary #lifeaajkal #writing https://www.instagram.com/p/CUX4wvVvL12/?utm_medium=tumblr
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