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riyajain2309-blog · 6 years
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गुनाहों का देवता
हम अक्सर यह सोचकर अपने नियमो का निर्धारण करते है कि कोई भी स्थिति,व्यक्ति,वस्तु से मैं कितना प्रभावित हो रहा हूँ।यह सोचनाआवश्यक नहीं समझते कि मेरे इस फैसले से हमारे चारों और के कितने लोग प्रभावित होंगे।
हम अक्सर किसी एक पक्ष को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेने के आदी हो जाते है या अपनी अल्पकालीन विचारधारा का निर्माण कर लेते है,इसका खामियाजा हमारे आस पास के कई लोगो को भरना होता हैं।
इसका खामियाजा चन्दर ने अपने वास्तविक स्वरुप को खो कर गुनाहों का देवता बन,पम्मी ने अपने स्वाभिमान को ठेस पंहुचा कर,बिनती ने अपने आप को कठोर व निःठुर बनाकर और सबसे बड़े त्याग के रूप में सुधा ने अपने आप को समर्पित कर भरा।
इस उपन्यास में समाज और व्यक्ति के प्रति विचारो में अंतर्द्वंद प्रतिलक्षित होता हैं। यदि समाज को केंद्र में रखकर विचार किया जाय तो विवाह जैसी संस्था को प्रेम से ऊपर रखना उचित प्रतीत होता हैं।आज हम यदि इतने सभ्य समाज में रहते है या उसकी कल्पना को साकार रूप प्रदान करने की बात करते है तो इन्ही संस्थाओ के आधार पर कर पाते है।यदि मानव को सभी प्राणियों म उच्च स्थान प्रदान किया गया है तो उसका एक कारण यह भी है कि वह समाज के कुछ अनिवार्य नियमो का पालन करता है।
परंतु जब हम एक व्यक्ति को केंद्र में रखकर विचार करते है तो पाते है कि प्रेम को विवाह से ऊँचा स्थान मिलना चाहिए।
परंतु वास्तविकता यह है कि दो व्यक्तियो के बीच का संबंध उनके मध्य आपसी समझ पर निर्भर करता है या यू कहे कि आपसी समझ के आधार पर ही विकसित होता है फिर चाहे वह प्रणय विवाह ही क्यों इसके बिना टूट ही जाता है क्योंकि आपसी समझ प्रेम की प्रारंभिक शर्त के रूप में स्थापित होती है।
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