prakashvaani-blog1
प्रकाशवाणी
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कुछ एहसास जो सिर्फ लिखे जा सकतें हैं...
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prakashvaani-blog1 · 7 years ago
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वेदना...
बिहारी आयोजन में लडकों को “तेरी अखियाँ दा वो काजल” पर थिरकते और "लोलीपॉप" गाने पर दिल्ली और हरियाणा को झूमते देखना....ये वो दो चीजे हैं जिसे एक साथ मिलाता हूँ तो थोड़ा थोड़ा हिन्दुस्तान दिखता है l पूरब के एक राज्य को पश्चिम के एक राज्य से मिलाने वाली यहीं वो कला की डोर हैं जिसे हम संस्कृति कहते हैं l
जहां से मैं सब्जी खरीदता हूँ वो मुसलमान हैं l मुझे पता नहीं था..पर जब दिवाली की एक शाम पहले मैं उसके दूकान पे था तो मुझे कुछ सूना सूना सा लगा l मैंने पूछ लिया कि दिवाली नहीं मनाना हैं क्या ? तो वो नन्हा लड़का अपने पिता कि तरफ देख के फिर हल्के से बोला कि हम मुसलमान हैं, दिवाली नहीं मनाते, तब पता चला कि उसका धर्म भी हैं l मैं उसके पिता से मुखातिब हुआ और बोला, “बाबा, लक्ष्मी और गणेश हिन्दू या मुसलमान हो सकते हैं ,पर दीयों और पटाखों का कोई धर्म नहीं होता l जो दीया हमारे मन्दिरों में जलता हैं वही आपके मजार पर भी जलता हैं l इस बच्चे को अगर आपने ये बताया हैं कि मुसलमान दिवाली नहीं मनाते...तो कहीं न कहीं नफरत में भागीदार आप भी हैं l” कहकर मैंने सब्जी ली और चला आया l यकीन मानिए...दिवाली की रात उसके दूकान पर भी 5-6 मोमबत्तियां जगमगा रहीं थी l
ये फर्क मिटाना हमारी और आपकी जिम्मेदारी हैं और इस फर्क को बरकरार रखना सियासत की l आप किस खेमे में हैं...बस इतना ही तय कर लीजिये l
जिस मुसलमान लड़के के साथ क्रिकेट खेल खेल के बचपन गुजरा है...वो अब बल्ले की जगह घर में हॉकी स्टिक रखने लगा हैं...l इस खौफ को जो मेरे भीतर हैं उससे कहीं ज्यादा उसके भीतर है..इस खौफ को महसूस कर सकते हैं तो कर लीजिये l राहुल द्रविड़ बना मैं और वसीम अकरम बना वो जब एक टीम में होकर दुसरे मोहल्ले को मैच हरा कर आधा आधा समोशा खाते लौटते थे तब ये सवाल नहीं पूछा जाता था कि उसका चहेता वसीम अकरम क्यूं हैं आशीष नेहरा क्यों नहीं l थाली में सजा कर आने वाली सेवईयां और जाने वाला ठेकुआ अब पुराने पेपरों के छोटे पैकेटो में सिमट कर रह गया हैं l जिस होली के 2-3 दिन पहले उस अकरम को बहाने से बुला कर रंगों से नहा देते थे और उसके बाद उसके घर में पकड़े गये तो उसकी अम्मा, बहन और वो मिल के चूल्हा लीपने वाली मिटटी से मेरी होली मना देती थी...वो होली अब सिर्फ मेरी यानी हिन्दुओं होली बन के रह गयी हैं l ये देन सियासत की हैं l ये देन सरकार की है l ये देन राजनीति की हैं l
ये फर्क मिटाना हमारी और आपकी जिम्मेदारी हैं और इस फर्क को बरकरार रखना सियासत की l आप किस खेमे में हैं...बस इतना ही तय कर लीजिये l
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