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newspackpost-blog · 6 years ago
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Meditation  can reduce anxiety
and stress on the heart
A single one-hour meditation session is enough to reduce anxiety and stress on the heart, a new study has found. Mindfulness programs have become hugely popular amid soaring rates of depression and round-the-clock demands for all workers.
A new study presented today by the American Physiological Society shows that the practice does indeed make an impact - and just one hour will start the process.
The findings suggest meditation could be reasonably prescribed as a first-line treatment for patients with anxiety to protect them from physical health issues. A new study presented  by the American Physiological Society shows that the practice does indeed make an impact on anxiety-related health woes, and just one hour will do a lot.
'Our results show a clear reduction in anxiety in the first hour after the meditation session, and our preliminary results suggest that anxiety was significantly lower one week after the meditation session,' said lead study author John J. Durocher, PhD, an assistant professor of physiology in the department of biological sciences at Michigan Technological University.
'Participants also had reduced mechanical stress on their arteries an hour after the session. 'This could help to reduce stress on organs like the brain and kidneys and help prevent conditions such as high blood pressure.'
It is widely-accepted that stress and anxiety aggravates physical health, increasing levels of inflammation that can cause heart issues and problems with all bodily functions. Patients can take a myriad of drugs for each condition - such as antidepressants for anxiety, aspirin for heart health.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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क्या चिप्स देखकर आपकी
जीभ भी लपलपाती है?
माना कि चिप्स या जंक फूड खाना इंसान की सेहत के लिए अच्छा नहीं है. लेकिन इसके बावजूद हर कोई चिप्स, फ्रेंच फ्राइस, आलू के पकोड़ों, मिठाई या केक की तरफ खिंचा चला जाता है. ऐसा क्यों होता है? वैज्ञानिक शोधों के मुताबिक ये चीजें वसा और कार्बोहाइ��्रेट से लबालब होती हैं. हमारा मस्तिष्क इस बात को भली भांति जानता है, इसीलिए जब ये चीजें सामने आती हैं तो मुंह में पानी आने लगता है. प्रकृति से मिलने वाले ज्यादातर आहारों में ऐसी कोई भी चीज नहीं जो पूरी तरह फैट और कार्बोहाइड्रेट से भरी हो. आलू, गेंहू, मक्का या धान जैसी चीजों में कार्बोहाइड्रेट तो बहुत होता है लेकिन फैट नहीं होता. वहीं बीजों में फैट बहुत होता है पर कार्बोहाइड्रेट बहुत कम होता है. सिर्फ एक ही प्राकृतिक आहार है, जिसमें ये दोनों पोषक तत्व खूब भरे होते हैं और वह है, मां का दूध. खौर जब आलू के चिप्स की बात आती है तो यह दुनियाभर में मशहूर है. अमेरिकन, ऑस्ट्रेलियन, कनाडियन, सिंगापुर, दक्षिणी अफ्रीका, हवाई इंग्लिश, भारतीय इंग्लिश तथा जमैका की इंग्लिश के साथ साथ अधिकांश यूरोपीय भाषाओं में चिप्स के नाम से, जबकि ब्रिटिश तथा आयरिश इंग्लिश में क्रिस्प्स, तथा न्यू ज़ीलैंड में चिपीस के नाम से जाना जाता है. दरअसल आलू की पतली फांक हैं, जिन्हें तला जाता है.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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फेफड़ों के कैंसर का कारण आज का दिन अगर सिख सम्राज्‍य के संस्‍थापक महाराज रणजीत सिंह और उड़नपरी पीटी ऊषा को याद करने का है, तो आज के दिन ही 1957 में पहली बार एक वैज्ञानिक रिपोर्ट में धूम्रपान और फेफड़ों के कैंसर के बीच सीधे संबंधों का दावा किया गया. 27 जून, 1957 को प्रकाशित हुई ब्रिटेन की मेडिकल रिसर्च काउंसिल की एक खास रिपोर्ट में पहली बार यह बताया गया कि धूम्रपान, फेफड़ों के कैंसर का सीधा कारण है. इन नतीजों पर पहुंचने से पहले रिसर्चरों ने बीते पच्चीस सालों में फेफड़ों के कैंसर से मरने वालों की बढ़ती संख्या का कारण ढूंढने की कोशिश की थी. इतने आंकड़ों का विश्लेषण करके पाया गया कि इनमें से बड़ी संख्या में प्रभावित लोग धूम्रपान करते थे. उस समय रिसर्चरों के इस दावे को सिगरेट और तंबाकू के दूसरे उत्पाद बनाने वाली कई कंपनियों ने सिरे से नकार दिया था. कईयों का कहना था कि यह सिर्फ 'नजरिए का मामला' है. रिपोर्ट में पाया गया कि 1945 में फेफड़ों के कैंसर से मरने वालों की मृत्यु दर 10 लाख लोगों में केवल 188 थी. दस साल के बाद यही मृत्यु दर करीब दोगुनी हो कर 388 तक पहुंच गई थी. इन नतीजों तक पहुंचने के लिए छह देशों में किए गए कई अनुसंधानों से तथ्य जमा किए गए थे. इन सबमें सिगरेट पीने वालों की संख्या और बढ़ती हुई मृत्यु दर में सीधा संबंध दिखाई दिया. फेफड़ों के कैंसर से आज हर साल हजारों जानें जाती हैं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस बात के कई सबूत मिल चुके हैं जो धूम्रपान से इसके गहरे संबंधों को स्थापित करता है. इसके अलावा तंबाकू के सेवन से कई तरह की दिल की बीमारियों और स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 2020 तक दुनिया भर में इससे मरने वालों की संख्या करीब एक करोड़ तक पहुंच जाएगी.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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नशा से तौबा करने का दिन  
इतिहास के पन्नों में कई खास बातें सिमटी हुई है, लेकिन आज का दिन अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस के रूप में मनाया जाता है. शराब, सिगरेट, तम्‍बाकू एवं ड्रग्‍स जैसे जहरीले पदार्थों का सेवन कर युवा वर्ग का एक बड़ा हि‍स्सा बड़ी आसानी से नशे का शिकार हो जाता है. नशा, एक ऐसी बीमारी बन चुकी है, जो कि युवा पीढ़ी को लगातार अपनी चपेट में लेकर उसे कई तरह से बीमार कर देती है.   लोगों को हैरत होती है जानकर कि वैसे बच्‍चे कैसे नशा कर सकते है, जिनके पास खाने को भी पैसा नहीं होता. सच तो यह है कि नशा करने के लिए सिर्फ मादक पदार्थो की ही जरुरत नहीं होती, बल्कि व्‍हाइटनर, नेल पॉलिश, पेट्रोल आदि की गंध, ब्रेड के साथ विक्स और आयो​डीन युक्त बाम का सेवन कर नशा किया जा सकता है. नशे की लत ने इंसान को उस स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब व्‍यक्‍ति मादक पदार्थों के सेवन के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, वह नशे के लिए जुर्म भी कर सकता है. नशे के मामले में महिलाएं भी पीछे नहीं है. महिलाओं द्वारा भी मादक पदार्थों का बहुत अधिक मात्रा में सेवन किया जाता है. व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में तनाव, प्रेम संबंध, दांपत्य जीवन व तलाक आदि कारण, महिलाओं में नशे की बढ़ती लत के लिए जिम्मेदार है. प्रकार -   1. मादक पदार्थों के सेवन में शराब, सिगरेट, ड्रग्‍स, हेरोइन, गांजा, भांग आदि शामिल हैं. 2. शोधकर्ताओं के अनुसार हर वह चीज जो आपको जिसकी आपको लत लग जाए, नशे की श्रेणी में ही आता है. 3. ऐसी ही कुछ आदतें हैं जिन्हें छोड़ना बेहद मुश्किल होता है जैसे मादक पदार्थों के अलावा चाय, काफी, वर्तमान समय के नवीन यंत्र जैसे - विडियो गेम्‍स, स्‍मार्ट फोन, फेसबुक आदि का ज्‍यादा मात्रा में उपयोग भी नशे की श्रेणी में आते है.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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आपातकाल की घोषणा
की ऐतिहासिक घटना
ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार 25 जून वर्ष का 176 वां होता है, लेकिन लीप वर्ष में यह 177 वां दिन गिना जाता है, का साल 1975 भारतवासियों के लिए काफी यादगार दिन रहा है. इस दिन को कई 'काले दिन' के तौर पर मनाते हैं, इसे अच्छा कहने वाले भी कम नहीं हैं. आइए जानते हैं इस दिन की कुछ खास बातें।
आज ही के दिन 1975 में देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की गई, जिसने कई ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म दिया, जो राजनीति और सत्ता परिवर्तन के लिहाज से खास साबित हुई.
26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल था. तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद और लोकतांत्रिक देश का काला काल माना गया. आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसे सबसे काले घंटों की संज्ञा दी थी.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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Health Benefits How much fiber do you eat?
Are you eating enough fiber ? What you need to know about getting your intake
Studies show we are barely getting half the recommended intake of roughage, which means we’re missing out on a host of health benefits.Bottom of FormThe answer is: probably not enough. We’re now advised to get 30g a day, yet the average Brit only manages 18g.
"Fiber is the forgotten food," says This Morning medic Dr Ranj Singh. "Unlike carbs, protein and fats, it’s not seen as important. Fiber has the image of being this bland, boring stuff. But from a medical point of view it’s very important. If you don’t consume enough, you’re missing out on so many health benefits."
When you’re eating a high-fiber diet, it’s important to drink plenty of water to help food move through your system and avoid getting bunged up.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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आज दुनिया में मुसलमानों के नाम पर जो लोग जिहाद और आतंक कीजिस कार्रवाई को खुदा का हुक्म बता रहे हैं और मरने के बाद हूरों के साथ जन्नत मेंअन्तहीन जीवन की कामनाओं को हवा दे रहे हैं, दरअसल यह पूरी कौम को गुमराह कर रहे हैं। इन हालात से मैं खुद को शर्मिन्दाअनुभव करता हूं। खुुदा पर ईमान का मतलब रब की तलाश है न कि उसके नाम पर कत्लेआम।जिसके दिल में रब का डर नहीं। वह इंसान नहीं।
ऐसे तमाम लोगों से मिलते जुलते और उनकी सोच के दायरे मेंकदम रखते हुए मेरी निगाहों ने जो कुछ देखा और कानों ने सुना और उसके जो नतीजेदेखने को मिले। मैंने हमेशा पूरी ईमानदारी से अपनी कलम का विषय बनाने औेर जमाने कोउसके गढ़े हुए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक,धार्मिक तथा पारंपरिक संरचना के दुष्परिणामों कोनतीजे के साथ पाठकों को अवगत कराने का प्रयास किया है।
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newspackpost-blog · 6 years ago
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मुंशी प्रेमचंद की सारी की सारी रचनाएं गांव से निकलती है। उनके ज्यादातर पात्रों के नाम में भी गांव के ही समावेशी होते हैं। हिन्दू संस्कृति में शादी में वर-वधु को सात फेरेे लेने पड़ते हैं। इन सात फेरांें में सात वचनों का पालन और उसके कर्तव्य का पाठ नव दम्पती को पढ़ाया जाता है। प्रस्तुत उपन्यास में संयोगवश दो बार ऐसा प्रसंग आता है कि शादी की रस्में तीन फेरे होकर रुक जाती हैं। आमतौर पर ऐसा अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है। और सच भी यह है कि तीन फेरों से शादी की सम्पूर्ण रस्म पूरी नहीं मानी जाती। अलग-अलग विद्वानों ने सात फेरों के महत्व को अपने - अपने तरीके से वर्णित किया है। मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि शादी बिना फेरों के भी सम्भव है। आजकल कोर्ट और मंदिरों में वर-वधु माला पहना कर शादी कर लेते हैं। फिल्म क्रान्ति में मैंने प्यार की परिभाषा इस प्रकार दी थी कि ’लाख गहरा हो सागर तो क्या प्यार से कुछ भी गहरा नहीं’ जिसे भारत के जन जन ने सराहा। इससे स्पष्ट है कि प्यार की गहराई आकाश पाताल की लम्बाई में या गज या मीटरों में नहीं मापी जा सकती। दो प्रेमियों के मन का सच्चा मिलन भी पारम्परिक शादी से ज्यादा अटूट बंधन हो सकता है। प्रस्तुत उपन्यास ’तीन फेरे बाद’ में पहली घटना उस समय घटती है जब जमींदार का प्रमुख नौकर बहादुर बेमेल शादी कराने पर तुला होता हैं। अचानक जमींदार ठाकुर श्यामदेव का उस शादी में आगमन होता है, और शादी तीन फेरे हो जाने के बाद रुक जाती है। ग्रामीण पृष्ठभूमि की यह कहानी एक बार फिर -तब विचित्र मोड़ लेती है, जब जमींदार ठाकुर श्यामदेव के बेटे के जीवन में भी उसी तरह की घटना घटती है। उसके पिता द्वारा बचपन में तय की गई लड़की की शादी किसी और के साथ जबरदस्ती करवायी जा रही होती है। इसे ��ेवता का वरदान कहें या कुदरत का करिश्मा, वहां भी शादी तीन फेरे बाद हो कर रुक जाती है। संभवतः इसी घटना से प्रेरित होकर लेखक ने इस उपन्यास का नाम तीन फेरे बाद रखा है। प्रेम प्यार की कहानियों में प्रायः दो तरह के पात्र होते हैं, एक बहुत ही सुलझा हुआ उदार हृदय वाला इंसान और दूसरा बद् और बदनाम। पुराने समय में अगर जमींदार भला इंसान होता था तो उसकी जनता का जीवन बेहद खुशहाल होता था और रियाया भी अपने जमींदार में भगवान की छवि देखती थी। जमींदार श्यामदेव अनेक अवसरांे पर लगान की माफी के साथ-साथ गरीब जनों के शादी विवाह जैसे मामलों में कई आवश्यक चीजें अपनी ओर से प्रदान करते थे। लेकिन सुख के दिन ज्यादा नहीं होते। ठाकुर श्यामदेव की अचानक मृत्यु के बाद, उसका भाई बलदेव के जमींदार बन जाने से रियाया को दमन के चक्रव्युह में पीसना पड़ता है। बलदेव को अपनी कोई संतान नहीं होती है।
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newspackpost-blog · 6 years ago
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विमान हुआ आतंकी हमले का शिकार
31 हजार फीट ऊंचाई पर हवाई जहाज में बम धमाका, प्लेन में सवार 329 यात्रियों में से कोई नहीं बचा.
23 जून 1985 के दिन एयर इंडिया का मॉन्ट्रियल से लंदन होते हुए नई दिल्ली आने वाला हवाई जहाज आतंकी हमले का शिकार हुआ. 9,400 मीटर यानी 31,000 फीट की ऊंचाई पर इस विमान में बम धमाका हुआ. बोईंग 747-237बी इस धमाके के साथ अटलांटिक महासागर में क्रैश हो गया. धमाके के समय विमान आयरलैंड की हवाई सीमा में उड़ रहा था. प्लेन में सवार 329 यात्रियों में से कोई नहीं बचा. इसमें 268 कनाडा के, 27 ब्रिटिश और 24 भारतीय नागरिक सवार थे. कनाडा के इतिहास और आयरलैंड की हवाई सीमा में होने वाला यह सबसे बुरा हवाई हादसा था. किसी जंबो जेट में हुई यह पहला बम धमाका था.
1988 में लॉकरबी बम धमाके में ऐसा ही तरीका इस्तेमाल कि��ा गया था. विस्फोटक एक रेडियो में रखा हुआ था और धमाका टाइमर से किया गया था. यह बम सूटकेस में था. 1985 में हुआ यह धमाका न���रिटा एयरपोर्ट पर हुए बम धमाके के एक घंटे के अंदर हुआ था. नारिटा में विस्फोटक विमान में पहुंचने से पहले ही फट गया. इस धमाके से मिले सबूतों से संकेत मिला था कि हमलावर दो विमानों को एक साथ उड़ाना चाहते थे. इस हमले की जांच और सुनवाई करीब 20 साल चली. कनाडा की अदालत जांच और सुनवाई के बाद इस नतीजे पर पहुंती कि धमाकों के मुख्य संदिग्ध बब्बर ��ालसा गुट के सिख चरमपंथी थे और उनके साथ कनाडा का एक गुट जुड़ा हुआ था. इन धमाकों में शामिल होने का दोषी सिर्फ इंदरजीत सिंह रेयात पाया गया. उन्हें बम बनाने और इन बमों का फ्लाइट 182और नैरिता में धमाका करने के दोष में 15 साल कैद की सजा हुई.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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दमदार आवाज वाले
मोंगेंबो का खुश होना
भारत के इतिहास में हर दिन की बहुत महत्वपूर्ण है. अगर इतिहास में पीछे पलटकर देखते हैं तो हर दिन कुछ विशेष घटना घटी है, जिसने अपना श्रेष्ठ दर्जा इतिहास में अंकित कर दिया है. 22 जून यानि आज के दिन भी इतिहास में किस तरह महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी होंगी, जानते हैं उनके बारे में।
डॉन कभी रांग नहीं होता...इस संवाद से बहुत ज्यादा दम उस आवाज में था, जिस पर टिका चेहरा नजर आते ही हॉल में सन्नाटा छा जाता था. दर्शकों को डराने वाले मोगेंबो के खुश होने में भी कुछ बात थी, जिसे भुलाए नहीं भूली जा सकती है.सिनेमाप्रेमियों को उनकी यादें हमेशा ताजा बनी रहेंगी. वह हैं अमरीश पूरी, जिनका जन्म 22 जून 1932 को अमरीश पुरी का जन्म पंजाब के नवांशहर में हुआ था. उनके बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी भी ��िल्म उद्योग में थे. अमरीश पुरी भी इसी काम में आना चाहते थे, लेकिन वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गए.
एम्प्लॉइज स्टेट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन में काम करने के साथ उन्होंने पृथ्वी थिएटर में काम करना शुरू किया था. इसी दौरान उन्हें रंगमंच पर नाटकों में भाग लेने का मौका मिला. सत्यदेव दुबे के नाटकों ने उन्हें खूब प्रसिद्धि दिलाई और 1979 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
बस इसके बाद विज्ञापनों और फिल्मों ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए. 40 की उम्र में उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया. हिन्दी की मिस्टर इंडिया जैसी फिल्मों से वो विलेन के तौर पर फेमस हो गए. अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में उन्होंने गांधी फिल्म में खान की भूमिका निभाई थी. इसके अलावा स्टीवन स्पीलबर्ग की इंडियाना जोन्स और टेम्पल ऑफ डूम ने भी उन्हें खूब प्रसिद्धि दिलाई. भारी आवाज और फेल्ट हैट वाले अमरीश पुरी की खलनायकी लंबे समय तक हिंदी फिल्मों में लोगों का गुस्सा और नफरत बटोरती रही. 12 जनवरी 2005 को ब्रेन हेमरेज के कारण उनकी मौत हो गई.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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गर्भावस्था एक महिला के लिए विशेष समय होता है जिसमें वह खुशी, उम्मीद और उत्सुकता महसूस करती है। महिला के शारीरिक रूप से स्वस्थ और भावनात्मक रूप से मजबूत होने का सीधा असर शिशु के शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक विकास पर पड़ता है। मन:स्थिति में उतार-चढ़ाव, थकान, टांगों में दर्द के साथ मरोड़ और सांस की बीमारियां गर्भावस्था का हिस्सा हैं,लेकिन गर्भवती महिलाएं योग के जरिये आसानी से इन समस्याओं का सामना कर सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान योग, जिसे प्रसव-पूर्व योग कहा जाता है, करने से गर्भवती महिला का चित्त शा��त रहता है।
गर्भावस्था के दौरान दो तरह के प्राणायाम अथवा श्वसन व्यायाम निर्धारित हैं : उज्जयी अर्थात लंबी, तेजस्वी और गहरी सांस लेना, जिससे गर्भवती महिला को मौजूदा स्थिति पर अपना ध्यान केंद्रित करने और चित्त को शांत रखने में मदद मिलती है तथा नाड़ी शोधन (बारी-बारी से अ���ग-अलग नासिका से सांस लेना), जिससे शरीर की ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित रखने में मदद मिलती है, लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि किसी भी तरह से सांस को रोक कर न रखा जाए और न ही अति वायु संचालन किया जाए। इससे शिशु की ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो सकती है। प्राणायाम को तीनों तिमाहियों में दिनचर्या में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे क्रोध और तनाव जैसे नकारात्मक मनोविकारों से मुक्ति मिलती है। गर्भावस्था की तीन तिमाहियों के दौरान शारीरिक मुद्रा और व्यायाम अलग-अलग चरणों में अलग-अलग होते हैं।
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newspackpost-blog · 6 years ago
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Yusra Mardini Yusra Mardini, 20, has escaped being bombed in a Syrian swimming pool and almost drowning in the Mediterranean Sea...
We were about halfway across the water between Turkey and Greece when the boat began to take on water. Twenty of us, crammed on a dinghy designed to take eight, not one of us a day over 30 and the youngest a six-year-old boy.
The engine spluttered to a stop, and no matter how many times we pulled on the engine cord, it wouldn’t restart. As the wind picked up, the boat began to spin, and everyone cried out in panic. We realised one wrong move could drown us all. Europe was in sight ahead of us, tantalisingly close but still a few miles away.
As the sun began to go down below the distant mountains, we threw our possessions overboard to lighten the load, saying silent goodbyes to the last things we had from home.
We were alone at the mercy of the sea and we all knew how much danger we were in. At the forefront of my mind were the thousands of desperate people who’d died in this water: old women, mothers and their babies, strong young men…
My older sister Sara and I slipped into the water in an attempt to stabilise the boat and pull it in the right direction, wrapping a thick rope around my wrist and pulling with all my might. Growing up in Damascus, Syria, my dad trained us to be strong swimmers from a young age, and we’d both competed at national level.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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कथा-कहानियों की झुरमुट से निकलकर जब  पुनर्जन्म   पर लोगों में यह बहस छिड़ गई कि आखिर इस बात में सच्चाई कितनी है। विज्ञान और प्रामाणिक युग में इस बात के सीधे-सपाट उदाहरण शायद  ही देखने को मिले, मगर आम आदमी से लेकर वैज्ञानिकों और विद्वानों तक में इस बात की ललक जाग उठी है कि तथ्यों की कसौटी पर पुनर्जीवन की कहानी कितनी सच्ची सहज व सरल है? विद्वानों और विशेषज्ञों के मत अलग जरूर हो सकते हैं, परन्तु मशहूर डा. लेखक वाल्टर सेमकीव की बात यदि मान ली जाय तो जरूर आपका भी कोई न कोई पिछला जन्म होगा और तब शायद आप मान भी लें कि उस अवतरण में आप कौन और क्या थे? इस विश्व प्रसिद्ध लेखक की कई किताबों की मिस्र में ‘मानक आध्यात्मिक कृतियों’ में गिनती की जाती है। सेमकीव का मानना है कि भविष्य में पुनर्जीवन की गहराई पर अवश्य ही खोज की जायेगी और यह वैज्ञानिकों के लिए  एक बेहतर विषय साबित होगा। वे बताते हैं कि फेशियल रेकोग्नि साॅफ्टवेयर, साइक्लाॅजिकल टेस्टिंग, लिंग्विस्टिक एनालाइसिस, व्यायस एनालाइसिस, डीएनए सिक्वेंसिंग जैसे अति उपयोगी साधनों से विभिन्न योनियों में जन्मे लोगों पर परीक्षण किया जा सकेगा।
निःसंदेह व���ल्टर सेमकीव के पास पिछले जन्म से जुड़े तमाम तथ्यों व संदेहों का जवाब है। किसी भी व्यक्ति की जिज्ञासा को वे अपने तार्किक बातों से संतुष्ट करने की क्षमता रखते हैं। वे कहते हैं, ‘‘संसार में सभी जीवित मनुष्यों का कोई न कोई पिछला जन्म जरूर होता है, जैसे कि मनुष्य की आत्मा का विकास होता है।’’ जबकि हिन्दू अवधारणा के अनुसार एक जातक का 84 लाख योनियों में प्रवेश होता है। यहां भी पुनर्जीवन की प्रासंगिकता से इनकार नहीं किया गया है। हालांकि विशेषज्ञ वाल्टर इस धारणा को नकारते हुए कहते हैं। ‘‘मनुष्य कभी भी जानवर में जन्म नहीं लेते, क्योंकि इस बात का कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है।’’
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newspackpost-blog · 6 years ago
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Machine learning researchers are a rarity in India. According to Global AI Talent 2018, there are less than 400 PhD-educated artificial intelligence researchers in India. This is rather tragic, especially in the light of Narendra Modi-led government’s growing ambitions in deploying AI in sectors like defence, education, healthcare, railways, agriculture, smart cities, infrastructure, smart mobility, and transportation.
Research in AI started soon after the Indian government launched the Knowledge-Based Computing Systems (KBCS) program in conjunction with the United Nations Development program in 1991. Later, a number of nodal centres were set up to focus on various research including expert systems in IIT Madras, a speech processing centre in Tata Institute of Fundamental Research, parallel processing in Indian Institute for Science, image processing in Indian Statistical Institute, and natural language processing in Centre for Development of Advanced Computing.
The top 10 names chosen by Analytics India Magazine were based on various parameters such as their PhD degree, patent papers and authored technical publications, pioneering work, knowledge and many more. We mined LinkedIn and H-Index data for the same. Here are top ten artificial intelligence and machine learning researchers presented in an alphabetical order.
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newspackpost-blog · 6 years ago
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With Counting Calories  
Watch Weight Loss
A calorie could be a unit of energy. Traditionally, scientists have outlined "calorie" to mean a unit of energy or heat that might come back from a range of sources, comparable to coal or gas. In a very biological process sense, all sorts of food - whether or not they square measure fats, proteins, carbohydrates or sugars - square measure vital sources of calories, which individuals got to live and performance.
"Our brains, our muscles — each cell in our body — need energy to operate in its best state," aforementioned Jennifer McDaniel, a registered dietitian nutritionist in Clayton, Missouri, and advocate for the Academy of Nutrition and bioscience. "So for one, we wish to nourish our body right and our brain right. If we tend to don’t get enough of these nutrients (that calories provide), there square measure negative consequences, whether or not its losing lean muscle mass, not having the ability to concentrate or not having the energy we'd like on a every day basis."
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newspackpost-blog · 6 years ago
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आज है इद का त्यौहार  
मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार ईद आज यानी 16 जून को है. दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम ने इसकी घोषणा 15 जून को की. इस्लाम के पाक महीने रमजान के बीतने के बाद चाँद दिखाई देने के अगले दिन ईद मनाया जाता है. चांद दिखाई देने के हिसाब से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ईद का त्यौहार अलग-अलग मनाया जाता है. हालांकि दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में ईद शुक्रवार(15जून) को मनाया गया. संयुक्त अरब अमीरात में भी शुक्रवार को ईद मनायी गई.
इतिहास के पन्नों को पलटें तो 16 जून को देश—दुनिया में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं. उन कुछ इस प्रकार है:—
विश्व में पहली महिला अंतरिक्ष पहुंची
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newspackpost-blog · 6 years ago
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With Counting Calories  
Watch Weight Loss
A calorie could be a unit of energy. Traditionally, scientists have outlined "calorie" to mean a unit of energy or heat that might come back from a range of sources, comparable to coal or gas. In a very biological process sense, all sorts of food - whether or not they square measure fats, proteins, carbohydrates or sugars - square measure vital sources of calories, which individuals got to live and performance.
"Our brains, our muscles — each cell in our body — need energy to operate in its best state," aforementioned Jennifer McDaniel, a registered dietitian nutritionist in Clayton, Missouri, and advocate for the Academy of Nutrition and bioscience. "So for one, we wish to nourish our body right and our brain right. If we tend to don’t get enough of these nutrients (that calories provide), there square measure negative consequences, whether or not its losing lean muscle mass, not having the ability to concentrate or not having the energy we'd like on a every day basis."
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