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#पूर्णगुरु_की_पहचान
कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि-
जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।
या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।
कबीर साहेब अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को इस वाणी में ये समझा रहे हैं कि जो मेरा संत सत भक्ति मार्ग को बताएगा उसके साथ सभी संत व महंत झगड़ा करेंगे। ये उसकी पहचान होगी।
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#पूर्णगुरु_की_पहचान
सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।
सतगुरु गरीबदास जी महाराज अपनी वाणी में पूर्ण संत की पहचान बता रहे हैं कि वह चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा।
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#पूर्णगुरु_की_पहचान
पूर्ण गुरु की पहचान
पूर्ण गुरु तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है।
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#पूर्णगुरु_की_पहचान
गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में गीता ज्ञान दाता ने तत्वदर्शी संत (सच्चा सतगुरु) की पहचान बताते हुए कहा है कि वह संत संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग अर्थात जड़ से लेकर पत्ती तक का विस्तारपूर्वक ज्ञान कराएगा।
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#पूर्णगुरु_की_पहचान
कबीर,सतगुरु के दरबार मे, जाइयो बारम्बार
भूली वस्तु लखा देवे, है सतगुरु दातार।
हमे सच्चे गुरु की शरण मे आकर बार बार उनके दर्शनार्थ जाना चाहिए और ज्ञान सुनना चाहिए।
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#शास्त्रविरुद्ध_शास्त्रानुकूल
शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
समाज में प्रचलित शिव जी भगवान की साधना विधि जैसे कांवड़ यात्रा करना, शिवरात्रि मनाना आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधना है। क्योंकि गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में तमोगुण (शिवजी) की साधना को व्यर्थ बताया है। जबकि शंकर भगवान स्वयं परमात्मा से प्राप्त मंत्र जाप करते हैं और वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज स्वयं नाम (मंत्र) जाप की विधि बताते हैं जो कि शास्त्रों के अनुकूल साधना है।
अधिक जानकारी के लिए देखिये Sant Rampal ji Maharaj Youtube Channel
Tattvadarshi Sant Rampal Ji
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#शास्त्रविरुद्ध_शास्त्रानुकूल
शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
मनमानी पूजा करना, हठ योग, मैडिटेशन, शास्त्र विरुद्ध कर्मकांड, श्राद्ध आदि शास्त्रों के विरुद्ध साधनाएं हैं।
संत रामपाल जी महाराज ने ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 1 सूक्त 11 मन्त्र 3, गीता अ. 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 से प्रमाणित करके नाम जप की विधि बताई है जो कि शास्त्र के अनुकूल साधना है।
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#शास्त्रविरुद्ध_शास्त्रानुकूल
शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
गीता अध्याय 7 श्लोक 20-23 में स्पष्ट कहा है कि जो लोग देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, वे अल्पबुद्धि हैं और उन्हें केवल क्षणिक फल प्राप्त होते हैं।
जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 4 व अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की भक्ति से परम शांति और सनातन परम धाम सतलोक की प्राप्ति होती है। जहाँ जाने के बाद दोबारा संसार में नहीं आना पड़ता।
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#शास्त्रविरुद्ध_शास्त्रानुकूल
शास्त्र विरुद्ध vs शास्त्र अनुकूल साधना
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 में कहा गया है कि जो लोग शास्त्र विरुद्ध साधना अर्थात अविद्या (देवी-देवताओं की पूजा) में लगे रहते हैं, वे अंधकार में जाते हैं।
जबकि वेदों के संक्षिप्त रूप गीता अध्याय 4 श्लोक 34, अध्याय 15 श्लोक 1 में कहा है कि तत्वदर्शी संत मिलने के पश्चात् परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक की खोज करनी चाहिए जहाँ गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात उनका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। जोकि शास्त्र अनुकूल साधना से संभव है।
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#आदिगणेश_सर्व_देवों_का_स्वामी
क्या श्री गणेश जी की भक्ति से हमारा मोक्ष हो सकता है।
मोक्ष प्राप्ति के लिए आदि गणेश अर्थात कबीर परमात्मा की भक्ति जरूरी है।
अधिक जानकारी के लिए देखें Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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#आदिगणेश_सर्व_देवों_का_स्वामी
रिद्धि सिद्धि के दाता गणेश जी को तो सब जानते हैं लेकिन वह आदि गणेश कौन है जिनकी भक्ति साधना से सर्व सिद्धियां, सर्व सुख तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है। देखें Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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#आदिगणेश_सर्व_देवों_का_स्वामी
इस गणेश चतुर्थी पर जरुर जानिए, गणेश जी को प्रसन्न करने का वास्तविक मंत्र क्या है?
जानने के लिए देखें Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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#आदिगणेश_सर्व_देवों_का_स्वामी
इस गणेश चतुर्थी पर अवश्य जानिए कि वह आदि गणेश कौन है जिसे पाने के बाद हमारा जन्म-मरण का रोग सदा के लिए समाप्त हो जाएगा तथा हमें शाश्वत स्थान मिलेगा।
अधिक जानकारी के लिए देखें Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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#आदिगणेश_सर्व_देवों_का_स्वामी
इस गणेश चतुर्थी पर अवश्य जानिए कि वह आदि गणेश कौन है जिसे पाने के बाद हमारा जन्म-मरण का रोग सदा के लिए समाप्त हो जाएगा तथा हमें शाश्वत स्थान मिलेगा।
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#Satlok_Vs_Mrityulok
सतलोक बनाम मृत्युलोक
सतलोक में गए हुए प्राणी आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहते हैं और एक-दूसरे से मधुर वाणी बोलते हैं। आपस में किसी प्रकार का कोई झगड़ा नहीं करते।
जबकि पृथ्वी अर्थात मृत्यु लोक में प्राणियों का आपस में कटु वचन बोलना, लड़ाई-झगड़ा करना आम बात है। साथ ही, यहाँ के प्राणी अनेक प्रकार के कष्ट एक-दूसरे को देते हुए दुखी रखते हैं।
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#Satlok_Vs_Mrityulok
सतलोक vs मृत्युलोक
सतलोक में गए हुए मानव को कभी वृद्धा अवस्था नहीं आती वह हमेशा जवान ही रहता है।
पृथ्वी (मृत्यु लोक) पर वृद्धावस्था के कारण आने वाले दुखों को प्रत्येक प्राणी को सहन करना पड़ता है।
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#Satlok_Vs_Mrityulok
सतलोक vs मृत्युलोक
सतलोक में मानव को जन्म-मरण के कष्ट से सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है।
मृत्यु लोक यानि पृथ्वी पर मानव को जन्म-मरण, 84 लाख योनियों के कष्टों को निरंतर सहना पड़ता है।
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