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कबीर जी ने गुरु की महिमा बताई है:- वाणी:- गुरु ते अधिक न कोई ठहरायी। मोक्षपंथ नहिं गुरु बिनु पाई।। राम कृष्ण बड़ तिहुँपुर राजा। तिन गुरु बंदि कीन्ह निज काजा।। सरलार्थ:- गुरु से अधिक किसी को नहीं मानें। गुरु के बिना मोक्ष का रास्ता (भक्ति विधि) प्राप्त नहीं हो सकती। उदाहरण बताया है कि श्री राम तथा श्री कृष्ण जी को तो आप हिन्दू भगवान मानते हैं। इनसे बड़े तो आप नहीं हैं। जब श्री राम तथा श्री कृष्ण ने भी गुरु बनाए और उनको अर्थात् अपने गुरुदेवों को नमन किया। उनके सामने एक भक्त की तरह आधीन बनकर रहे। उनकी आज्ञा का पालन किया तो आप जी को भी गुरु बनाकर उपदेश दीक्षा लेकर साधना करनी चाहिए। श्री राम तथा श्री कृष्ण तो तीन लोक में बड़े हैं। उन्होंने भी गुरु को बन्दगी (प्रणाम) करके अपने निजी कार्यों को किया, उनकी आज्ञा मानी।
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