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#आदिराम_का_संदेश
आदिराम की पूजा
के बिना पांचों विकार रूपी रावण जीव का जीवन लूट लेते हैं। कैसे करें साधना उस आदिराम की ?
कौन है आदिराम ?
Sant Rampal Ji Maharaj
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#Myth_Vs_Fact
धारणा: सब कहते हैं गीता जी का ज्ञान श्रीकृष्ण ने बोला।
खंडन: श्रीमद भगवत गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में बताया गया है कि अध्याय 11 के श्लोक 32 में काल भगवान कह रहा है कि मैं सर्व लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ काल हूँ।
Sant Rampal Ji Maharaj
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🪔कबीर साहेब की मगहर लीला🪔
कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं जो हर युग में आते रहे हैं जिसकी गवाही हमारे धर्म ग्रंथ भी देते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, पाखंड, मूर्ति पूजा, छुआछूत तथा हिंसा का विरोध किया। साथ ही हिन्दू -मुस्लिम में भेदभाव का पुरजो़र खंडन किया। इसी तरह इस अंधविश्वास को मिटाने के लिए कि आखिरी समय में मगहर (Maghar) में प्राण त्यागने वाला नरक जाएगा, अपने अंत समय में काशी से चलकर मगहर आए। जिसके बाद सबकी धारणा बदल गई।
कबीर साहिब जी ताउम्र काशी में रहे। परंतु 120 वर्ष की आयु में काशी से अपने अनुयायियों के साथ मगहर के लिए चल पड़े। 120 वर्ष के होते हुए भी उन्होंने 3 दिन में काशी से मगहर का सफर तय कर लिया। उन दिनों काशी के कर्मकांडी पंडितों ने यह धारणा फैला रखी थी कि जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा और जो काशी में मरेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा।
मगहर पहुंचने पर कबीर साहिब जी ने बिजली खाँ पठान से कहा कि , “मैं स्नान करूंगा”। इस पर बिजली खाँ पठान ने कहा “आपके लिए स्वच्छ जल ला रखा है गुरूवर”, परंतु कबीर जी ने कहा कि मैं बहते पानी (दरिया) में स्नान करूंगा।
बिजली खाँ पठान ने बताया कि यहां पास ही ‘आमी नदी’ है जो भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है। परमेश्वर कबीर जी ने नदी की और चलने का इशारा किया और नदी में पानी पूरे वेग से बहने लगा। वहां पर खड़े सब लोगों ने “सतगुरु देव की जय के जयकारे” लगाने शुरू कर दिए। आज भी मगहर में वह आमी नदी बहती है।
परमेश्वर कबीर साहब ने दो चादर मंगवाई और आदेश दिया कि एक चादर नीचे बिछाओ और दूसरी चादर साथ में रख दो। उसे मैं अपने ऊपर ओढूँगा।
परमेश्वर कबीर साहब ने बिजली खाँ पठान और बीर सिंह बघेल से पूछा, आप दोनों यहाँ अपनी अपनी से��ाएं क्यों लेकर आए हैं? इस पर दोनों शर्मसार हो गए और गर्दन नीची कर ली। जो कबीर साहेब से दीक्षित नहीं थे उन्होनें कहा कि, हम आपके शरीर छोड़ने के बाद आपके शरीर का अंतिम संस्कार हमारे धर्म के अनुसार करेंगे चाहे इसके लिए हमें लड़ाई ही क्यों ना करनी पड़े।
इस पर परमेश्वर कबीर साहिब ने सबको डांटते हुए बोला कि इतने दिनों में तुमको मैंने यहीं शिक्षा दी है। साथ ही समझाया कि दफनाने और जलाने में कोई अंतर नहीं है। मरने के बाद ये शरीर मिट्टी है जो मिट्टी में ही मिल जाएगा।
कबीर परमात्मा का शरीर नहीं बल्कि वहां सुगन्धित फूल मिले, जिसको दोनों राजाओं ने आधा-आधा बांट लिया। दोनों धर्मों के लोग आपस में गले लग कर खूब रोए। परमात्मा कबीर जी ने इस लीला से दोनों धर्मों का वैरभाव समाप्त किया।
वर्तमान समय में मगहर में कबीर जी की याद में मुस्लिम लोगों ने मज़ार और हिंदुओं ने समाधि बनाई हुई है। जिसमें मात्र सौ फीट की दूरी का अंतर है। समाधि के भवन की दीवारों पर कबीर के दोहे उकेरे गए हैं। इस समाधि के पास ही एक मंदिर भी है। इसके इलावा कुछ फूल लाकर एक चौरा (चबूतरा) जहां बैठकर कबीर साहेब सत्संग किया करते थे वहां काशी-चौरा नाम से यादगार बनाई गई है जहां अब बहुत बड़ा आश्रम है।
कबीर जी की याद में बने मंदिर तथा मस्जिद एक बहुत बड़े उदाहरण हैं। आज भी यहां के हिंदू तथा मुस्लिम एक दूसरे के साथ बहुत प्रेम से रहते हैं तथा कबीर जी के बताए मार्ग पर चलते हैं।
आज के समय में संत रामपाल जी महाराज जी ही कबीर जी द्वारा बताई हुई सत्य साधना हमारे धर्म ग्रंथों से प्रमाणित करके बताते हैं। संत रामपाल जी महाराज ने कलयुग में कबीर जी को परमेश्वर सिद्ध कर दिया है। हमारे सभी धर्म ग्रंथ भी इसकी गवाही देते हैं कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी ही हैं जिनकी भक्ति करने से मोक्ष प्राप्ति संभव है। इसलिए अपना और समय व्यर्थ ना गवांकर संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त करें तथा अपना कल्याण करवाएं।
#कबीरसाहेब_की_मगहर_लीला
#SantRampalJiMaharaj
अधिक जानकारी के लिए अवश्य download करें
पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
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🪔कबीर साहेब की मगहर लीला🪔
कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं जो हर युग में आते रहे हैं जिसकी गवाही हमारे धर्म ग्रंथ भी देते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, पाखंड, मूर्ति पूजा, छुआछूत तथा हिंसा का विरोध किया। साथ ही हिन्दू -मुस्लिम में भेदभाव का पुरजो़र खंडन किया। इसी तरह इस अंधविश्वास को मिटाने के लिए कि आखिरी समय में मगहर (Maghar) में प्राण त्यागने वाला नरक जाएगा, अपने अंत समय में काशी से चलकर मगहर आए। जिसके बाद सबकी धारणा बदल गई।
कबीर साहिब जी ताउम्र काशी में रहे। परंतु 120 वर्ष की आयु में काशी से अपने अनुयायियों के साथ मगहर के लिए चल पड़े। 120 वर्ष के होते हुए भी उन्होंने 3 दिन में काशी से मगहर का सफर तय कर लिया। उन दिनों काशी के कर्मकांडी पंडितों ने यह धारणा फैला रखी थी कि जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा और जो काशी में मरेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा।
मगहर पहुंचने पर कबीर साहिब जी ने बिजली खाँ पठान से कहा कि , “मैं स्नान करूंगा”। इस पर बिजली खाँ पठान ने कहा “आपके लिए स्वच्छ जल ला रखा है गुरूवर”, परंतु कबीर जी ने कहा कि मैं बहते पानी (दरिया) में स्नान करूंगा।
बिजली खाँ पठान ने बताया कि यहां पास ही ‘आमी नदी’ है जो भगवान शिव के श्राप से सूखी पड़ी है। परमेश्वर कबीर जी ने नदी की और चलने का इशारा किया और नदी में पानी पूरे वेग से बहने लगा। वहां पर खड़े सब लोगों ने “सतगुरु देव की जय के जयकारे” लगाने शुरू कर दिए। आज भी मगहर में वह आमी नदी बहती है।
परमेश्वर कबीर साहब ने दो चादर मंगवाई और आदेश दिया कि एक चादर नीचे बिछाओ और दूसरी चादर साथ में रख दो। उसे मैं अपने ऊपर ओढूँगा।
परमेश्वर कबीर साहब ने बिजली खाँ पठान और बीर सिंह बघेल से पूछा, आप दोनों यहाँ अपनी अपनी सेनाएं क्यों लेकर आए हैं? इस पर दोनों शर्मसार हो गए और गर्दन नीची कर ली। जो कबीर साहेब से दीक्षित नहीं थे उन्होनें कहा कि, हम आपके शरीर छोड़ने के बाद आपके शरीर का अंतिम संस्कार हमारे धर्म के अनुसार करेंगे चाहे इसके लिए हमें लड़ाई ही क्यों ना करनी पड़े।
इस पर परमेश्वर कबीर साहिब ने सबको डांटते हुए बोला कि इतने दिनों में तुमको मैंने यहीं शिक्षा दी है। साथ ही समझाया कि दफनाने और जलाने में कोई अंतर नहीं है। मरने के बाद ये शरीर मिट्टी है जो मिट्टी में ही मिल जाएगा।
कबीर परमात्मा का शरीर नहीं बल्कि वहां सुगन्धित फूल मिले, जिसको दोनों राजाओं ने आधा-आधा बांट लिया। दोनों धर्मों के लोग आपस में गले लग कर खूब रोए। परमात्मा कबीर जी ने इस लीला से दोनों धर्मों का वैरभाव समाप्त किया।
वर्तमान समय में मगहर में कबीर जी की याद में मुस्लिम लोगों ने मज़ार और हिंदुओं ने समाधि बनाई हुई है। जिसमें मात्र सौ फीट की दूरी का अंतर है। समाधि के भवन की दीवारों पर कबीर के दोहे उकेरे गए हैं। इस समाधि के पास ही एक मंदिर भी है। इसके इलावा कुछ फूल लाकर एक चौरा (चबूतरा) जहां बैठकर कबीर साहेब सत्संग किया करते थे वहां काशी-चौरा नाम से यादगार बनाई गई है जहां अब बहुत बड़ा आश्रम है।
कबीर जी की याद में बने मंदिर तथा मस्जिद एक बहुत बड़े उदाहरण हैं। आज भी यहां के हिंदू तथा मुस्लिम एक दूसरे के साथ बहुत प्रेम से रहते हैं तथा कबीर जी के बताए मार्ग पर चलते हैं।
आज के समय में संत रामपाल जी महाराज जी ही कबीर जी द्वारा बताई हुई सत्य साधना हमारे धर्म ग्रंथों से प्रमाणित करके बताते हैं। संत रामपाल जी महाराज ने कलयुग में कबीर जी को परमेश्वर सिद्ध कर दिया है। हमारे सभी धर्म ग्रंथ भी इसकी गवाही देते हैं कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी ही हैं जिनकी भक्ति करने से मोक्ष प्राप्ति संभव है। इसलिए अपना और समय व्यर्थ ना गवांकर संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त करें तथा अपना कल्याण करवाएं।
#कबीरसाहेब_की_मगहर_लीला
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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#Teachings_Of_LordKabir
कबीर परमात्मा जी ने समझाया है कि हे मानव शरीरधारी प्राणी! यह मानव जन्म बार-बार नहीं मिलता। इस शरीर के रहते-रहते शुभ कर्म तथा परमात्मा की भक्ति कर, अन्यथा यह शरीर समाप्त हो गया तो आप पुनः मानव शरीर को प्राप्त नहीं कर पाओगे।
Kabir Prakat Diwas 14June
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कौन तथा कैसा है, कहाँ रहता है, कैसे मिलता है, किसने देखा है पूर्ण परमात्मा?
जानने के लिए जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी की Official App "Sant Rampal Ji Maharaj" Download करें Playstore से।
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