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Quit'er
He isn't a quit'er. But he believes that if a girl says no it's only mean is NO.
#thakran
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तेरा आना....!!
तेरा आना भी सावन की पहली बारिश की तरह ही था जो जमीन पर गिरते ही उसकी हो जाती है या यूँ कहो उसमे मिल जाती है ओर मात्र छूने भर से भी सोंधी सी खुशबु का अहसास देती है।
कितने अजीब है ना ये दुनिया के रीति रिवाज, कम्भख्त यहाँ भी चलते है
या यूं कहो chemstry की वो 12th मे बैलेंस कराई गई equation की तरह बाद मे कुछ न्यूट्रॉन या प्रोटोन अस्तित्व मैं आ ही जाते है।
लोग भी आजकल किसी नए बच्चे के होने पर नगाड़े बजाने लगे है सुना है बच्चे का अस्तित्व भी दो आत्माओ का मिलनसार होता है।
अब तुम ही बताओ किस किस से करू तुम्हारी तुलना
आखिर हर बार तुमसे मिलने के बाद वो सोहन्दी ही खुशबु मुझमे बाकी रह ही जाती है।।
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इश्क़ ये अधूरा सही ,मगर इतना काम आया
जिक्र हुआ जब जब राधा का , लोगो के मुँह पर कृष्णा का नाम आया।।
आशीष
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जब सहारो ने ताने दिये
हमने बैसाखियां फेंक दी।।
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1 सितंबर,2018
भागदौड़ , जिंदगी का अनोखा पहलू
कॉलेज लाइफ खत्म ठीक से हुई भी नही थी कि इस भागदौड़ ने हम सबको अपनी गहराइयो का हिस्सा बना लिया ।
वो गहराइयां जिनकी उचाइयां नाप पाना जरा मेरे लिए मुश्किल है , ना जाने कितने सपने जो ना जाने कितनी आँखों ने होस्टल की बाल्कनी मैं देखे थे आज बस घर की चार दीवारों मे हर प्रयास के बाद बस खुद मैं ही दब चुके है
Daily लड़ते हैं वो खुद से आज माँ पापा को जाके बोल ही देता / देती हूँ , आज उनको सुननी पड़ेगी मेरी बातें , ओर वो भी मान जायेगे अरे be postive सब सही होगा
खुद से लड़ते झगड़ते कदम आगे बढ़े ही थे कि मन के किसी कोने से आवाज आ ही जाती हैं
क्या होगा अगर नही माने तो , क्या मैं आगे कभी बोल पाऊँगा/पाऊँगी ,
खैर इन सबके बीच पैर जमीन पर आते है , दरवाजा खुला ही था तो आवाज उसके कानों तक आ ही पहुचती है
"रिस्ता अच्छा है"
आगे बढ़ते कदम दरवाजे के पीछे झट से छुप जाते हैं, कानो की पावर आज बहुत तेज थी , हजारो मदोजेहद के बाद आखिर पर्दा उठ ही जाता है उस सच से जिसमे वो बॉलकनी मे बुने सपने आज फिर समाज की भागदौड़ का हिस्सा हो चुके थे ,
मन को समझाने मे ही जितना वक़्त लगा था उसका 1% भी उन कदमो को पीछे हटते नही लगा
ओर आज फिर ना जाने कितने सपने किसी होस्टल की किसी बालकनी मे 4 कॉफ़ी के कप के साथ ही दब गई।।
बातेे जो सुनी थी हमने ,वो आज समाज ने मिलकर झुटला दी
दे कर आजादी पढ़ने की ,बस ग्रेजुएशन पूरी होते ही नकार दी
सपनो में बुनी वो 4 सालो की जिंदगी,आज मिलकर हमने शिकार की
मन मे बसें हजारों सवाल, और उन सवालों पर ही जिंदगी की खुशियों वार दी
ओर कुछ इस तरह, आज उसने अपने ही हाथो से अपनी ही जिंदगी तार-तार की ।।
बाते जो सुनी थी हमने ,वो आज समाज ने मिलकर झुटला दी।।।
आशीष
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अगस्त 28,2018
हां यही वो लम्हा है
जिसे कुछ आजाद परिंदो ने घर के किसी पिंजरे मैं नही घर के घरोंदे मैं जिया था।
बाते अब सब चुप चाप सी थी मानो , मानो आने वाली खामोशियाँ इस बार जम के तयारी कर रही हो ।
इस बार भी सावन के उस दिन की तरह बारिश का ख्वाब मन मे अकेले टहल ही रहा था कि, की गलतफहमियां बोल उठी
सायद वो गलतफहमी बारिश की किसी बूंद के साथ उस परिंदे का चोला छोड़ने को राजी नही थी
ओर मेहनत पर गौर फरमाना जनाब ,
आज भी बादल उमड़ उमड़ कर आये
आज भी हवाये ठीक पहले की तरह उन जुल्फों मे हल्की सी सर सराहट के साथ गुजर गई ,
कानो के झुमके इस बार भी गालो को बार बार छू कर शांत हो गए ,
इस बार भी हाथ हवा मैं फेहले थे और सर ऊपर आसमान की तरफ इंतजार कर रहा था कि कब वो बारिश की पहली बूंद उस से आकर मिलेगी
लेकिन ,
लेकिन आज गलतफहमियां जीत चुकी थी और इसलिये आज भी वो......
कुछ चुप सा था , था तो कुछ अनजान सा
ख्वाबो मे बने कुछ महल सा
शिकार था या था कुछ मेहमान सा
हर कदम पर एक नई पहचान सा
कोई सुने या सुन कर चुप हो जाये
तब भी इंतजार करती हर राह पर चलते उस राहगीर सा
मखमली अंदाज़ मैं ,आज अंदाज वाकई कुछ और था
चेहरे पर खुसी दे जाए वो कोई
बस इसीलिये वो किसी बारिश की बूंद सा
आज,
आज कुछ चुप सा था , था तो अब वो कुछ अनजान सा।।
और तब घर के मालिक ने आसमान मे ओर उन परिंदो की ओर देखते हुए बोला
चलो ये बूंदे अब धरती पर नही आने वाली चलो तुम अब पिंजरों मै।
इसी बात के साथ खत्म हर वो बात थी सुरवात जिसकी परिंदो की चार कदमो के साथ थी ।।।
आशीष
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