ये मनुष्य जीवन हमे पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब की भक्ति करने के लिए प्राप्त हुआ है। इस मनुष्य का एक मात्र उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है। सर्व पवित्र ग्रन्थों का सार यह ही है की एक पूर्ण संत से नाम दीक्षा प्राप्त कर के इस जन्म मृत्यु के रोग से मुक्ति पानी चाहिए।
हम एक ऐसा मानव समाज तैयार कर रहे हैं, जो किसी भी क्षेत्र में ईमानदारी से कार्य करके सबको न्याय दिलाएगा।
छोटा बड़ा, अमीर-गरीब की खाई को मिटायेगा। आध्यात्मिक तत्वज्ञान के आधार से भारत विश्व का एक महान राष्ट्र होगा। अन्य सर्व राष्ट्र भारत वर्ष का अनुसरण करेंगे।
संत रामपाल जी महाराज जी अपने सभी शिष्यों को प्रथम दीक्षा के दौरान ब्रह्मा जी - सावित्री जी, विष्णु जी - लक्ष्मी जी, शिव जी - पार्वती जी, मां दुर्गा और गणेश जी की "साधना" करने की शास्त्रानुकूल विधि बताते हैं।
संत रामपाल जी महाराज हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा नहीं छुड़वाते।
संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि श्री ब्रह्मा जी की महिमा का गुणगान करते हुए संत गरीबदास जी ने बताया है कि
श्री ब्रह्मा जी की संतान कितनी महान हुई है। जैसे 33 करोड़ देवता भी श्री ब्रह्मा जी (रजगुण) के कुल में जन्मे हैं और 88 हजार ऋषि जी भी श्री ब्रह्मा जी का कुल है। यह सब विस्तार श्री ब्रह्मा जी के वंशजों का है।
संत गरीबदास जी को 10 वर्ष की उम्र में फाल्गुन मास सुदी द्वादशी के दिन के लगभग 10 बजे परमेश्वर कबीर जी एक जिन्दा महात्मा के वेश में मिले। उन्हें अपने अविनाशी लोक सतलोक को दिखाया जहां सर्व सुख है। तब गरीबदास जी ने बताया कि सृष्टि का रचनहार कबीर परमेश्वर है।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रती नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।
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