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इम्तिहान #3 (अंतिम भाग )
कहानी में अब तक आपने पढ़ा के सुहानी राघव को पसंद तो करती है पर संशय के चलते बहुत सोच विचार करने और राघव के अपने प्रति स्नेह और सम्मान के कारण वह ख़ुद को रोक नहीं पाती और उससे प्यार करने लगती है! सुहानी के घर पर उसके जन्मदिन के मौके पर राघव की मुलाक़ात एक बार फिर सुहानी की छोटी बहन रिया से होती है जिसके साथ उसके प्रेम सम्बन्ध पहले से रह चुके थे! इ�� दौरान आपने सुहानी के प्रति रिया के मन में भरे द्वेष के बारे में जाना! अब पढ़िए कहानी का अंतिम भाग: जन्मदिन की पार्टी ख़त्म हो चुकी थी, राघव सबसे विदा लेकर जा चूका था! सुहानी के माता पिता राघव से काफी प्रभावित लग रहे थे! देर रात सोने से पहले रिया सुहानी के कमरे में आई! "सो रही हो दी?" रिया ने पूछा! "नहीं रिया, अंदर आजा", सुहानी के बुलाने पर रिया अंदर आकर उसके पास बैठ गई! कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद रिया ने सुहानी से पूछा "क्या राघव सच में आपका सिर्फ दोस्त है दी?" सुहानी ने चौंक कर रिया की आँखों में गहराई से देखा! प्रश्न सिर्फ रिया की ज़ुबान ही नहीं उसकी आँखें भी पूछ रहीं थीं! "अरे हाँ पगली वह सिर्फ दोस्त ही है, सिर्फ एक अच्छा दोस्त", सुहानी ने झूठ तो बोला था पर उसकी वह झेंप उसके मासूम से चेहरे पर साफ़ दिख रही थी! एक बार तो रिया को सुहानी की मासूमियत पर तरस भी आया पर वह इस मौके को खोना नहीं चाहती थी! बात को हंसी में टालते हुए रिया कमरे से बाहर निकल गई, उसे अगली सुबह जल्दी कॉलेज जाकर अपने आखिरी वर्ष का एडमिशन भी कराना था! अगले दिन रिया कॉलेज में दाखिले की सारी ओपचारिकताएं लगभग पूरी कर चुकी थी कि तभी उसकी नज़र सामने से आ रहे राघव पर पड़ी जो उसी की तरफ आ रहा था! "अभी अभी सुहानी से मिलकर आ रहा हूँ रिया!", "तो? मुझे यहाँ क्या बताने आए हो?" रिया ने बेरुखी से जवाब दिया! "दरअसल मैं हैरान हूँ के तुमने उसे हमारे बारे में कुछ भी नहीं बताया! मेरी बुराइयां भी नहीं कीं?" राघव ने हैरत से पुछा! "वो इसलिए क्यूंकि तुम मेरे जीवन में कोई महत्त्व ही नहीं रखते!" रिया की बेरुखी जारी थी! "मैं ना सही पर तुम्हारी बहन तो कोई महत्त्व रखती होगी या नहीं? तुम तो यही चाहोगी ना कि तुम्हारी बहन मुझसे दूर रहे?" राघव रिया को कुरेदने की कोशिश कर रहा था! "क्या तुम जानते थे की हम दोनों बहनें हैं?" रिया ने तपाक से पूछा जिस पर राघव ने व्यंग भरी मुस्कान बिखेरी, "हाय! तुम्हारी यही अदा से तो प्यार हुआ था मुझे, लापरवाही से पहले सब बातें बता देती हो फिर ख़ुद ही भूल जाती हो, तुम दोनों बहनें दरअसल एक जैसी ही हो, तुम दोनों बातों बातों में मुझे अपने अपने फेसबुक वाले प्रोफाइल से एक दूसरे की तस्वीरें दिखा चुकी हो, अपने बारे में याद आया?" राघव के यह बताते ही रिया को एक झटके में सब याद आ गया कि कैसे बातों के बहाने राघव उसके फ़ोन में उसकी फेसबुक प्रोफाइल ��ेक किया करता था! "तो तुम अब सुहानी दीदी से क्या चाहते हो? रिया मुद्दे पर आ गई थी! "चाहतें तो मेरी तुम दोनों बहनों से बहुत हैं, ख़ैर, एक एक कर के बताता रहूँगा!" राघव का घिनोना चरित्र और बातें रिया के लिए नई नहीं थीं, फर्क सिर्फ इतना था की इस बार यह सब वह 2 साल के अंतराल के बाद देख-सुन रही थी! "मुझसे तो तुम जितना हो उतना दूर रहना, और आइंदा मुझसे दोबारा मिलने की कोशिश भी की तो नतीजा अच्छा नहीं होगा!" रिया का लहज़ा सख़्त हो गया था पर राघव को तो जैसे परवाह ही नहीं थी, वो बेहद आत्मविश्वास से बोला, "सिर्फ तुमसे दूर रहूँ, सुहानी से नहीं? अपनी बहन से भला तुम्हें क्या वास्ता? तुम तो वैसे भी उससे जलती आई हो! तुम लड़कियां ना तो आपस में दोस्ती निभा सकती हो और ना ही अच्छी बहनें बन सकती हो, एक दूसरे से जलना तुम औरतों की फितरत है" राघव के ये शब्द रिया को अंदर तक भेद गए थे, राघव से नफरत तो उसे पहले से ही थी लेकिन आज तो मन हो रहा था के उसकी जान ही ले ले! वह उस घड़ी को याद कर के पछता रही थी जब राघव को अपना मान कर उसने उसे अपने मन में सुहानी के लिए भरी इस कड़वाहट के बारे में बता दिया था! राघव तो अब जैसे रिया के मन को पढ़ चुका था! "क्या सोच रही हो? तुम्हारी बहन को तुम्हारी तरफ से मैं सबक सिखा दूंगा, तुम बस वह करो जो मैं चाहूँ!" राघव अपने असली रंग में आ चुका था! "और अगर मैं मना कर दूँ तो"? रिया ने पूछा! "तो फिर सुहानी के साथ टाइम पास तो हो ही रहा है, जब मन भर जाएगा तो तुम्हारी पोल भी खोल दूंगा उसके सामने, फिर देती रहना उसके सवालों के जवाब और मुझे याद कर कर के दोनों बहनें रोना-झगड़ना!" राघव ठहाका लगा कर हँसा! बाद में फ़ोन करने को कह कर राघव तो वहां से निकल गया लेकिन रिया को उलझनों में छोड़ गया! घर आकर रिया का सिर दर्द से फटा जा रहा था! उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो जीत रही थी या हार रही थी! उधर सुहानी उसका ख़्याल रखने में लगी हुई थी! ना जाने क्यूँ आज ��ुहानी को देख कर उसे उन दोनों के बचपन से लेकर अब तक के किस्से याद आ रहे थे! सुहानी और उसका साथ खेलना, हारने पर रिया का चिढ़ जाना और तब सुहानी का उसे ख़ुश करने के लिए जानबूझ कर हार जाना, स्कूल का पहला दिन जब सुहानी बार बार उसे उसकी क्लास में देखने आती, घर तक के सारे रास्ते उसका हाथ थाम के रखती, पापा की डांट से बचाना हो या होमवर्क में मदद करना, बड़ी होती रिया की समस्याओं का निवारण करना हो या सलाह देना, आजतक सुहानी ने हमेशा उसका साथ ही तो दिया था! रिया चाह कर भी कोई ऎसा वाक़या नहीं सोच पर रही थी जिसको आध���र बना कर वह सुहानी के प्रति अपने बदले की भावना को जायज़ ठहरा पाती! यही सोच सोच कर उसका सिर ओर ज़ोरों से दर्द करने लगा! और जैसे यह सब काफी नहीं था के उसे लगातार राघव के मिस्ड कॉल भी आने लगे! मजबूरी में उठकर और छुपते छुपाते उसने राघव से बात की, राघव उसपर अगले दिन मिलने का दबाव डाल रहा था! आज रिया के सब्र का बाँध टूट रहा था! उसने राघव से जितनी बार मिलने से मना किया, राघव उसे उतनी बार फ़ोन कर के परेशान करता रहा! सिर्फ राघव के मुंह खोल देने के डर से के कहीं उसकी प्रेम कहानी सुहानी को पता ना चल जाए और उसकी बदला लेने की योजना चौपट ना हो जाए, उसने मिलने के लिए हांमी भर दी! फ़ोन कटते ही जैसे रिया मानो फट पड़ी! वह फ़ोन पटक कर ज़ार ज़ार रोने लगी! उसे अपनी मजबूरी पर रोना भी आ रहा था और अपनी नफ़रत से भरी सोच पर घिन्न भी! हार जीत की परछाईं भी अगर रिश्तों पर पड़ने लगे तो इंसान को रिश्ता नहीं सिर्फ प्रतिद्वंदी ही दिखने लगता है! प्रतिद्वंदिता किसी का किया हुआ ना तो अच्छा ही देखती है और ना ही किसी का अच्छा करने ही देती है! प्रतिद्वंदी तो हमेशा इम्तिहान के मुहाने पर खड़ा रहता है जहाँ इम्तिहान से गुज़रता है उसका अपनों के साथ का रिश्ता! रिया और सुहानी का रिश्ता भी आज इम्तिहान से गुज़र रहा था! रिया अगर चाहती तो जो होता होने दे सकती थी, लगने दे सकती थी चोट सुहानी के आत्मसम्मान को, गुज़रने दे सकती थी सुहानी को भी उन भावनाओं से जिनसे ख़ुद वो गुज़रने का कष्ट झेल चुकी थी! लेकिन यहाँ तो उसके आंसू ज़ार ज़ार बह रहे थे? इन आंसुओं का कारण सुहानी तो नहीं थी पर राघव ज़रूर था! सुहानी ने भला उसका बिगाड़ा ही क्या था आज तक? बिगाड़ने पर तो राघव तुला हुआ था उन दोनों बहनों का! किसने हक़ दिया था राघव को, दो बहनों के कमज़ोर रिश्ते का फ़ायदा उठाने का? बात अब रिया की निजी भावनाओं से परे जा चुकी थी! ये अब उसके, सुहानी और उनके परिवार के आत्मसम्मान का प्रश्न भी बन चुका था! रिया चुप बैठने वाली लड़कियों में से नहीं थी, बदला तो उसे लेना ही था! आंसू पोंछे बगैर वो तेज़ क़दमों से सुहानी के कमरे में पहुंची, उसके मन में राघव के कहे शब्द गूँज रहे थे, "तुम लड़कियां ना तो आपस में दोस्ती निभा सकती हो और ना ही अच्छी बहनें बन सकती हो, एक दूसरे से जलना तुम औरतों की फितरत है!" सुहानी उसके चेहरे से टपक रहे आँसुओं को देख कर घबरा गई, उसे लगा जैसे रिया की तबीयत ज़्यादा ख़राब हो गई थी! उसने सबको आवाज़ देकर बुला लिया! उसके माता पिता और कुनाल घबरा कर फ़ौरन अंदर आ पहुंचे! इससे पहले कोई कुछ बोलता, रिया ने चुप्पी तोड़ी! आज जा कर रिया को समझ में आ रहा था कि इम्तिहान दरअसल में उसी का चल रहा था! फर्क सिर्फ इतना था कि आज उसे सही और ग़लत का अंदाज़ा अच्छे से हो चुका था! आज वह खुल कर अपने मन कि बातें कर रही थी, प���रानी से पुरानी परतें खुल रहीं थीं, पहले सुहानी के साथ अपने मन की कड़वाहट बाहर निकाली थी उसने और बाद में राघव और अपने रिश्ते का सच सबके सामने रखा था! एक एक बात आज साफ़ हो गई थी! जहाँ यह सब सुनकर घरवाले कभी गुस्से की तो कभी हैरानी की भावनाओं से गुज़र रहे थे तो वहीं सुहानी आवाक सी खड़ी रह गई थी! हालांकि उसका दिल और भरोसा दोनों टूट चुके थे लेकिन रिश्तों कि ख़ूबसूरती ही ये होती है के उन्हें नए सिरे से शुरू किया जा सकता है! इसमें वक़्त तो लगता ही है पर ज़रूरत होती है ख़ुद को बदल डालने की, सकारात्मकता के साथ नई शुरुआत करने की! आज ये शुरुआत रिया ने कर दी थी, उसे अपनी सोच और अपनी गलतियों पर पछतावा था! अब उसे अपने परिवार को सिर्फ वक़्त देना था, इस झटके से उबरने के लिए, उनको उसे नए सिरे से अपनाने के लिए! सुबह हो चुकी थी! नए दिन की भी और साथ ही में सुहानी और रिया के रिश्ते की भी! अब इसमें और कड़वाहट नहीं घुलने वाली थी! गिले-शिकवे मिट चुके थे, कुछ नाराज़गियां तो थीं लेकिन वो भी वक़्त के साथ मिट जाया करतीं हैं! रिया कॉलेज के बाहर लॉन में पहुंची जहाँ राघव उसके सामने था! "मुझे पता था तुम आओगी, पुराना प्यार जब भी आवाज़ देता है तो आना तो पड़ता ही है" राघव उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला! "माना तुम फॉर्मूले लगाने में माहिर हो राघव लेकिन सब लड़कियों का गणित एक सा नहीं होता! सब लड़कियां एक दूसरे से जलतीं नहीं हैं, वह लड़कों से बेहतर दोस्त भी होतीं हैं, 10 गुना बेहतर!" यह कहते ही रिया ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ राघव के मुंह पर रसीद कर डाला जिसकी आवाज़ पुरे कॉलेज में गूँज गई और जिसकी लाली राघव के गालों पर साफ़ देखी जा सकती थी! भरे कॉलेज की दबी हुई हँसियों और फुसफुसाहटों के बीच राघव को बेइज़्ज़त छोड़ कर रिया वहां से निकल गई लेकिन वो जानती थी की अब राघव कहाँ जाने वाला था! कुछ देर बाद राघव अपने कॉलेज में सुहानी के सामने खड़ा था! "चलो आज तुम्हें लॉन्ग ड्राइव पर ले चलूँ, कहीं दूर", राघव हमेशा की तरह सुहानी के सामने प्यार का नाटक करते हुए बोला! "अच्छा? पर ये तुम्हारा गाल क्यूँ लाल है, राघव?" सुहानी ने आगे से प्रश्न किया! "वह सब छोड़ो और चलो मेरे साथ!" राघव जल्दी से सुहानी का हाथ पकड़ते हुए बोला जिस पर सुहानी ने झटके से हाथ छुड़ा लिया! राघव नहीं जनता था के रिया के कॉलेज में हुआ वाक़या सुहानी छुप कर देख चुकी थी! "पहले जो बात रिया ने मेरे लिए अधूरी छोड़ दी है वो तो मुझे पूरी कर लेने दो राघव?", "रिया?" रिया का नाम सुनकर राघव के पैरों के नीचे से जैसे ज़मीन खिसकने लगी! "यही के लड़कियां एक दूसरे की दुश्मन नहीं होतीं, बिंदास बहनें भी होतीं हैं!" कहकर सुहानी ने भी एक झन्नाटेदार झापड़ राघव के दूसरे गाल पर रसीद कर दिया जिसकी ना गूँज पिछले वाले से कम थी ना ही राघव के दूसरे गाल पर छपी लाली! शर्म���ंदगी की हालत में राघव को वहाँ छोड़ कर सुहानी रिया के साथ निकल गई जो थोड़ी दूर से सारा नज़ारा छुप कर देख रही थी! आज सुहानी ने झूठा प्यार खो दिया था और राघव ने सच्चा! सुहानी आज ना सिर्फ एक झूठे रिश्ते के चंगुल से निकल गई थी बल्कि उसे रिया के रूप में बेहद प्यार करनी वाली बहन और दोस्त भी मिल गई थी! रिया भी ये जान गई थी के उसे सुहानी कभी बनना ही नहीं था क्यूंकि ख़ुद वो भी किसी से कम नहीं थी! आज दो बहनों ने मज़बूत रिश्ते की एक ऎसी नींव डाल दी थी जो जीवन के किसी भी इम्तिहान को पार कर जाने वाला था!
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इम्तिहान #1
सुहानी…तीन भाई बहनों रिया और कुनाल में सबसे बड़ी, माँ-बाप की लाडली बेटी थी। जीवन से प्रेम करने वाली..हंसने मुस्कुराने वाली..जिसकी आंखों में ढेर सारे सपने भी थे और अच्छे बुरे की समझ भी। हर लड़की की तरह उसका भी सपना था कि कोई राजकुमार आए और उसे ले जाए। देखने में सुहानी बेहद खूबसूरत थी! स्कूल की पढ़ाई के बाद उसने कॉलेज में दाखिला लिया था। वो और उसकी सहेलियां कॉलेज आकर बहुत खुश थीं, हंसतीं खेलतीं, घूमती फिरतीं, नए दोस्त बनातीं। सुहानी उम्र के इस दौर को खुल कर जी रही थी। देखते ही देखते कॉलेज का आखिरी साल शुरू हो चुका था। हमेशा की तरह सुहानी कॉलेज आई लेकिन आज पीली सलवार कमीज़ में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी। तभी उसपर राघव की नज़र पड़ी। राघव भी कॉलेज के अपने आखिरी साल की पढ़ाई कर रहा था लेकिन उसके विषय अलग थे जिस कारण सुहानी और उसका वास्ता ज़्यादा नहीं पड़ा था। सुहानी ने हांलाकि अपनी कुछ सहेलियों से राघव के बारे में सुन रखा था कि वो एक दिलफेंक लड़का था, लड़कियां भी उसकी दिवानीं थीं। उसका गोरा रंग, ऊंची कद काठी, आकर्षक चेहरा और व्यक्तित्�� किसी को भी अपनी ओर बरबस ही आकर्षित कर सकता था। माँ-बाप का इकलौता बेटा था वो जिसके पास पैसों की कौई कमी नहीं थी, ऐश से जीना उसका अंदाज़ था। सुहानी में सुन रखा था कि राघव को ना तो अपने भविष्य की कोई फिक्र थी और ना ही अपने साथ रहने वाले किसी इंसान की! वही राघव आज एकटक सुहानी को निहार रहा था जैसे किसी गहरी सोच में उलझ गया हो। सुहानी भी उसे बस एक नज़र देख कर उसके सामने से निकल गई। वो ये मान चुकी थी कि राघव अच्छा लड़का नहीं है पर राघव तो अब किसी भी तरह उससे दोस्ती करना चाहता था। उसने अंजली जो कि उसकीऔर सुहानी दोनों की अच्छी दोस्त थी को उन दोनों की दोस्ती करवाने के लिए मना लिया। काफी दिनों तक सुहानी अंजली को टालती रही पर एक दिन आखिरकार अंजली ने उसे राघव से सिर्फ एक बार मिल लेने को राज़ी कर ही लिया। वहां राघव भी हैरान था कि जहां लड़कियां खुद उससे दोस्ती करना चाहतीं थीं वहीं एक सुहानी भी थी जिसे सिर्फ मिलने के लिए भी सोचने का वक़्त चाहिए था। आखिर काफी कोशिशों के बाद राघव और सुहानी की एक छोटी सी मुलाकात हो पाई। सुहानी भी हांलाकि राघव के बाहरी व्यक्तित्व से प्रभावित तो थी लेकिन यही बात उसके लिए सब कुछ नहीं थी। सुहानी का अपने मन पर नियंत्रण भी था पर इस मुलाकात के बाद कुछ बदल गया था। राघव उसकी सोच से एकदम विपरीत पेश आया था! वह लगभग सारा समय उसकी बातें संयम से सुनता रहा। “तुम्हें सोचने के लिए वक़्त चाहिए ना? जितना समय चाहिए ले लो, तुम्हारा हर फैसला मुझे मंज़ूर होगा” ये शब्द राघव की जुबान से निकले थे। उस रात सुहानी को नींद नहीं आ रही थी। वह अब उलझन महसूस कर रही थी। दिल तो कह रहा था कि राघव को एक मौका देना चाहिए। वैसे भी सब सुनी सुनाई बातें ही तो थीं उसके बारे में। क्या पता उनमें से कुछ सच था भी या नहीं लेकिन दिमाग ये कह रहा था कि जब इतने लोग राघव के खिलाफ ही बोलते हों तो दाल में कुछ तो काला होगा ही। उलझन चाहे कितनी भी थी लेकिन सुहानी के दिल के कुछ एक तार तो ज़रूर छिड़ चुके थे। कुछ अलग सा ज़रूर महसूस हो रहा था उसे बाकी दिनों से। अचानक से एक ऊर्जा सी महसूस हो रही थी रह रह कर। देर सवेर कब जाकर उसे नींद आ गई ये खुद वो भी नहीं जान पाई। सुहानी आखिर क्या फैसला लेगी? क्या राघव सच में वैसा ही लड़का है जैसा सुहानी ने उसके बारे में सुन रखा है? जल्दी ही आप जानेंगे कहानी के दुसरे भाग में।
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इम्तिहान #2
कहानी के पिछले भाग में आपने सुहानी के बारे में पढ़ा! अपनी छोटी सी दुनिया में खुश सुहानी तब खुद को असमंजस की स्थिति में पाती है जब कॉलेज में बिगड़े हुए लड़के के रूप में मशहूर राघव उससे दोस्ती बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाने लगता है ! सुहानी भी पूरी तरह उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर पाती है और क्या फैंसला ले इसी उधेड़बुन में उलझ जाती है! अब पढ़िए आगे : सुहानी के जीवन का हमेशा से ही ये मूलमंत्र रहा था कि विश्वास रखना सच्चे इंसान होने कि सबसे बड़ी पहचान होती है ! चाहे कितनी भी उलझनें हों, ख़ुद पर भरोसा होना बहुत महत्व रखता है! ख़ुद पर यही विश्वास उसे दुसरे लोगों पर भरोसा करने की भी हिम्मत देता था ! हालांकि इस बात का एहसास ख़ुद सुहानी को भी होने में कुछ समय लगा पर अब संशय के बादल छंटने लगे थे! वह दिन भी आ गया जब सुहानी ने फैंसला ले लिया था! बहुत अपनेपन से उसने राघव से मिलकर उसे अपने दिल की बात बताई थी! सुहानी ने हाँ कर दी थी! अब सब कुछ पहले से भी कहीं अच्छा लगने लगा था! घंटों फ़ोन पर बातें होतीं, व्हाट्सअप पर गप्पे चलतीं! मौसम ज़्यादा खुशमिजाज़ सा हो गया था! दोस्ती से शुरू हुआ रिश्ता अब और गहरी दोस्ती और लगाव में बदल गया था! सुहानी नए और ख़ूबसूरत एहसासों से गुज़र रही थी जिनसे वह अब तक अनजान थी! वो महसूस कर पा रही थी कि प्यार इंसान के जीवन का कितना अनमोल एहसास होता है! घूमना-फिरना, साथ में वक़्त गुज़ारना, ये छोटी छोटी चीज़ें कैसे किसी ख़ास के साथ इतनी ख़ास बन जाती हैँ ये अब जाकर समझ में आया था, सुहानी को राघव से प्यार हो गया था! सब कुछ सपने जैसा चल रहा था, उन दोनों की अंतिम वर्ष की पढ़ाई अब लगभग पूरी हो चुकी थी, सुहानी का जन्मदिन भी आ रहा था! “राघव! समझने की कोशिश करो, तुम मेरे बर्थडे पर घर आओगे तो सब मुझसे ना जाने क्या क्या सवाल करेंगे, हम हमेशा अपने घर में अपनों के बीच में ही मेरा बर्थडे सेलिब्रेट करते आए हैँ आज तक”! राघव ज़िद पर अड़ गया था सुहानी के घर में उसके परिवार के साथ ही उसका जन्मदिन मानाने के लिए! सुहानी को यह एहसास हो चला था के राघव के बारे में उसने जो सुना था वो ग़लत ही था! दोनों पिछले काफी महीनों से साथ थे लेकिन इस बीच उसे ऐसा कभी भी नहीं लगा था के राघव के मन में किसी तरह का कोई खोट था! राघव उसे थोड़ा ज़िद्दी ज़रूर लगता था पर उसने सुहानी पर कभी किसी तरह का कोई दबाव नहीं डाला था! आज भी सुहानी थोड़ी देर और डटी रहती तो उसे ना आने के लिए मना लेती पर फिर यह सोचते हुए कि पापा से राघव को मिलाकर क्या पता उनके इस रिश्ते के भविष्य के बारे में कुछ नये रास्ते खुल जाएँ, उसने हिम्मत रखते हुए राघव को अपने जन्मदिन पर घर आने की स्वीकृति दे दी! सुहानी को इससे पहले अपने माता पिता या भाई बहन से किसी भी विषय में ��ात करते हुए इतनी झिझक कभी महसूस नहीं हुई थी ! “माँ! वो इस बार मेरे कॉलेज में पढ़ने वाले दोस्तों में से एक मेरे बर्थडे पर आना चाहता है! मैंने तो समझाया लेकिन वह मान ही नहीं रहा है” संकोच से भरकर सुहानी ने माँ को जैसे बिना मांगे किसी बात कि सफाई दी थी! इस पर माँ ने सुहानी के पिता कि और देखा! सुहानी के माता पिता एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे बिना बोले अपनी ही आँखों कि भाषा में बातें कर रहें हों! “कोई लड़का पसंद आ गया है क्या दी?” यह उससे 4 साल छोटे भाई कुनाल के शब्द थे जिनको सुनकर सुहानी के माता पिता हैरानी से सुहानी कि तरफ देखने लगे! झटके से तुरंत उबरते हुए सुहानी ने तुरंत कुनाल पर धावा बोला, “तू तो चुप ही रह, अपनी बाहरवीं क्लास कि पढाई पर ध्यान दे, मैं बताऊँ तेरे और कीर्ती के बारे में सबको?” यह सुनकर सुहानी के पिताजी सुहानी की माँ से बोले, “अब लग रहा है हमारे बच्चे काफी बड़े हों गए हैँ”’ सुहानी ने सफाई देने की कोशिश की, “ऐसी कोई बात नहीं है पापा, मैं उसको अभी मना क देती हूं” सुहानी अपनी भावनाओं को काबू में रखने की पूरी कोशिश कर रही थी! इस पर उसके पिता ने हँसते हुए कहा, “अरे मज़ाक कर रहे हैँ सब तुमसे बेटा ! ज़रूर बुलाओ अपने दोस्त को, हम सब मिलेंगे उससे, क्या नाम बताया तुमने उसका?”, “जी उसका नाम राघव है पापा!” सुहानी के नाम बताते ही कुनाल फिर से बीच में कूद पड़ा, “यह क्या नाम है बुड्ढों जैसा? ख़ुद भी बुड्ढा है क्या?” यह सुनते ही सुहानी समेत सबकी हंसी छूट गई! सुहानी कुनाल को पकड़ने के लिए उसकी और लपकी और दोनों भाई बहन मज़ाक में एक दूसरे से लड़ने लगे! आज सुहानी का जन्मदिन था! सुबह से नहा धोकर उसने पूजा कर ली थी! आज उसके मन में एक अलग सी ख़ुशी थी! राघव का मेसेज आ चूका था की वह शाम को वक़्त पर आ जाएगा! उमंग से भरी हुई सुहानी आज पहली बार खुल कर तैयार हुई थी! अपनी माँ की गुलाबी साड़ी जो उसे बेहद पसंद थी आज उसने पहन ली थी जिसमे वो बला की खूबसूरत लग रही थी ! आज पहली बार सुहानी की माँ को एहसास हुआ था कि सच में बेटियां बेटों से जल्दी बड़ी हों जाती हैँ! उन्होंने सुहानी को प्यार से गले लगा लिया! आज सुहानी से 2 साल छोटी उसकी बहन रिया भी घर पर थी! रिया ने भी अपने कॉलेज की दूसरे साल की पढ़ाई पूरी कर ली थी और अब अंतिम वर्ष में दाखिला लेने की तैयारी में थी, उसका कॉलेज भी सुहानी से अलग था! शाम का वक़्त था, सब लोग केक काटने की तैयारी में थे तभी डोरबेल की आवाज़ हुई! सुहानी जानती थी यह राघव था, उसने तुरंत जाकर दरवाज़ा खोला, बाहर राघव ही खड़ा था! क्रीम कलर की ट्रॉउज़र और लाइट ब्राउन कलर का ब्लेज़र पहने वह बेहद ख़ूबसूरत लग रहा था! वैसे भी राघव के लिए किसी को प्रभावित करना क���ई मुश्किल काम नहीं था! “आओ राघव! वेलकम!” कहकर सुहानी उसे अंदर सबके सामने ले आई! राघव को देखकर सबके चेहरों पर मुस्कान आ गई सिर्फ रिया सकपका सी गयी थी! सुहानी के पिता ने राघव से हाथ मिलाया, कुनाल भी ख़ुशी से मिला, सुहानी की माँ भी बेहद ख़ुश लग रहीं थीं! रिया और राघव एक दूसरे से मिले लेकिन उन दोनों के बीच वो ख़ुशी नहीं थी हालांकि इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया! केक काटने की रस्म पूरी हुई, राघव ने सुहानी को उसका लाया हुआ गिफ्ट दिया जिसमें सुहानी के मनपसंद लेखक की एक मशहूर किताब थी जिसे वो काफी समय से पढ़ना चाह रही थी! सब लोग राघव के व्यक्तित्वऔर उसके तौर तरीकों से प्रभावित लग रहे थे! चाय नाश्ता चल रहा था, सुहानी के पिता राघव से बातें कर रहे थे! इस बीच रिया भी वहीँ थी, चुप चाप ख़ामोशी से सुहानी पर नज़र रखे हुए उसके हाव भाव परख रही थी! वो जान चुकी थी की सुहानी के मन में राघव के लिए क्या भावनाएं उमड़ रहीं थीं! यह सब सोचते हुए उसके होंठों पर एक रहस्मयी सी मुस्कान तैर गई थी! इंसान रिश्तों से बंधा तो होता है लेकिन कई बार यह बंधन उससे उसकी स्वतंत्रता या उसकी पहचान छीनने लगते हैं, बेड़ियाँ बन जाते हैं! यही रिया कि सोच थी! हमेशा से वह इसी कसौटी पर परखी जाती रही थी कि जैसी सुहानी है उसे भी वैसी होना चाहिए, सर्वगुण संपन्न! वह चाह कर भी कभी इस कसौटी पर खरी नहीं उतर पाई थी! सालों से जैसे वो एक ही छत के नीचे अपनी बड़ी बहन के साथ नहीं बल्कि एक बड़े प्रतिद्वंदी के साथ रहती आई थी! सुहानी और परिवार के सभी सदस्य उससे बहुत प्यार करते थे, रिया भी सबको ख़ुश रखना चाहती थी पर वो बस कभी सुहानी जैसी नहीं बन पाई थी और ना ही अब बनना ही चाहती थी! बहुत अजीब बात थी कि घर के ऐसे खुले हुए या आज़ाद माहौल में भी एक क्रन्तिकारी लड़की पैदा हो चुकी थी! रिया के माता पिता या भाई बहन उसके इस पक्ष से अनभिज्ञ रह गए थे! उन्होंने तो कभी भी रिया से यह शर्त नहीं रखी थी कि वो दूसरी सुहानी बन जाए! ये तो रिया के अंतर्मन के अपने बंधन थे जो उसे सुहानी जैसा ना बन पाने के कारण हमेशा हार का एहसास कराते थे! यह छुपी हुई भावना अब द्वेष बन चुकी थी! आज राघव को यहाँ देख उसे पहले तो झटका लगा था, ये वही राघव था जिससे उसके प्रेम सम्बन्ध दो साल पहले रह चुके थे! कभी रिया के साथ ना जाने कितनी कसमें खा चूका राघव आज उसकी बड़ी बहन के साथ था! रिया का द्वेषपूर्ण व्यक्तित्व हो या राघव का ज़िद्दी व्यवहार, दोनों में टकराव होना ही था, उम्र के उस दौर में जहाँ दुर्भाग्य से दोनों में से कोई भी परिपक्व नहीं था, एक बेहद तमाशाई झगड़े के बाद दोनों के रिश्ते का अंत हुआ था! रिया जानती थी कि राघव के जीवन में लड़किया पहले भी आईं थीं और आगे भी आएंगी! वो ये भी जानती थीं कि राघव सुहानी के लायक नहीं था पर यही उसका अवसर था! कैसा होगा जब सर्वगुण संपन्न सुहानी के रिश्ते के किस्से एक दिलफेंक लड़के के साथ सुने जाएंगे, सारी कसौटियां मिट जाएंगी! फिर कोई सुहानी के उदाहरण नहीं देगा, कोई उन दोनों बहनों के बीच कि समानताएं या असमानताएं नहीं गिनाएगा! फिर तो दोनों बहनें एक सी हो जाएंगी! रिया और राघव के इस अतीत के बारे में घर में कोई नहीं जनता था! अब तो बस उसे इंतज़ार था के कब राघव अपना असली रंग दिखाए और सुहानी का तमाशा दुनिया के सामने बने ताकि सुहानी को भी एहसास हो जाए के कितना मुश्किल होता है इम्तिहान देना! इम्तिहान ख़ुद को साबित करने का! इम्तिहान सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने का! यही राज़ था रिया की ख़ामोशी का और उसकी उस रहस्मयी मुस्कान का!
क्या सुहानी और राघव के रिश्ते का कोई भविष्य होगा? क्या रिया कभी सुहानी के साथ अपने द्वेष भुला पाएगी? इन प्रशनों के उत्तर देने के लिए कहानी का तीसरा और अंतिम भाग जल्द प्रकाशित होगा आपको अब तक की कहानी कैसी लगी इस पर कमेंट् अवश्य करें!
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