प्रकृति को बचाने के लिए प्लास्टिक के जूते बनाकर खड़ा किया स्टार्टअप, जानिये आशय की कहानी
इस बात से हम सब वाकिफ हैं कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए कितनी हानिकारक है। प्लास्टिक की वस्तुएं प्रकृति को दिन-प्रतिदिन नुकसान पहुंचाती है। लेकिन फिर भी हम प्लास्टिक का उपयोग बंद नहीं करते हैं। हम छोटी से छोटी चीज़ के लिए प्लास्टिक की थैलियों, बोतलों का उपयोग करते हैं।
सरकार ने भी इन सबी चीजों पर रोक लगाने के उद्देश्य से कई शहरों पर प्लास्टिक के यूज़ पर पूरी तरह से बैन लगाया है। कई सामाजिक संस्थाओं ने नो मोर प्लास्टिक जैसे अभियानों की शुरुआत करके प्लास्टिक पर बैन लगाने की बात कही जा रही है। हालांकि अब कुछ युवाओं ने इसे अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इसके खिलाफ कदम उठाने शुरु कर दिए हैं।
प्रकृति को प्लास्टिक से हो रहे नुकसान को रोकने के लिए 23 वर्षीय युवा ने एक ऐसा स्टार्टअप तैयार किया है जिससे कई लोगों को रोजगार भी मिल रहा है और पर्यावरण भी शुद्ध हो रहा है। इनका नाम है आशय भावे।
जानकारी के मुताबिक, जुलाई 2021 में आशय ने अपनी कंपनी थैली की शुरुआत की थी। इस कंपनी के तहत वे प्लास्टिक की थैलियों और बोतलों का इस्तेमाल करके जूते-चप्पल आदि बनाते हैं। इस कंपनी के माध्यम से वे मुनाफा भी कमा कर रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंच रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रायोटेप टेक्नॉलाजीज़ नामक वेस्ट रिमूवल कंपनी से थैली का टाइअप है। यह कंपनी इन्हें प्लास्टिक की थैली, बैग प्रोवाइड करवाती है। पहले इस प्लास्टिक वेस्ट को गरम पानी से धोया जाता है फिर इनको धूप में सुखाया जाता है। बाद में हीटींग तकनकी से थैली "ThaelyTex" बनाती है। बता दें, "ThaelyTex" प्लास्टिक बैग्स से बना एक ऐसा मैटीरियल है जिसमें केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके बाद प्लास्टिक वेस्ट से जूते बनाए जाते हैं।
कंपनी का दावा है कि कस्टमर प्लास्टिक वेस्ट से बने और साधारण मटीरियल से बनकर तैयार होने वाले जूतों में फर्क नहीं समझ पाते हैं।
मालूम हो, फिल्हाल आशय की फैक्ट्री में 170 से अधिक मजदूर काम कर रहे हैं। ये मदजूर दिनरात मेहनत करके एक हफ्ते के भीतर 15000 जोड़ी जूते बनाकर तैयार करते हैं।
0 notes
फिल्म पुष्पा में दिखाया गया लाल चंदन आखिर है क्या? जानिए रियल स्टोरी
तमिल फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार अल्लु अर्जुन की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म पुष्पाः दा राइज़ ने बॉक्सऑफिस पर पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इस फिल्म ने खासी लोकप्रियता हांसिल की है। फिल्म की कहानी लाल चंदन की लकड़ी के इर्द-गिर्द घूमती है। मूवी में दिखाया जाता है कि इस लकड़ी की तस्करी करके एक साधारण सा मजदूर पुष्पा आखिर कैसे कुछ ही समय में करोंड़ो का मालिक बन जाता है।
लेकिन क्या आप इस लकड़ी के विषय में जानते हैं? बता दें, फिल्म की कहानी भले ही काल्पनिक हो लेकिन इसमें जिस लकड़ी के विषय में बात की जा रही है वह असली है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, रक्त चंदन नाम की यह लकड़ी भारत का वो खजाना है जिसके लिए कई देश करोंड़ो खर्च करते हैं।
भारत में चंदन सिर्फ एक लकड़ी के रुप में ही नहीं देखा जाता है बल्कि इसका संबंध धार्मिक परंपराओं से भी है। चंदन तीन प्रकार का होता है। सफेद, पीला और लाल। तीनों में अंतर बस यह है कि सफेद और पीले चंदन का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। इसकी लकड़ी से खुशबू आती है। जबकि चंदन की लकड़ी में कोई खुशबू नहीं होती। विज्ञान की भाषा में लाल चंदन को Pterocarpus santalinus कहते हैं।
इस चंदन की लकड़ी का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों को तैयार करने के लिए किया जाता है। इससे सजावट से लेकर वाद्य यंत्र तक तमाम सारे प्रोडक्ट्स तैयार किए जाते हैं। वहीं, इस लकड़ी का से शराब और कॉस्मेटिक्स का सामान भी बनाया जाता है।
लाल सोना कहे जाने वाले इस पेड़ की औसतन ऊंचाई 8-12 मीटर होती है। ये पेंड़ भारत के चुनिंदा इलाकों में ही पाए जाते हैं। जानकारी के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के नेल्लोर, कुरनूल, चित्तूर, कडप्पा में फैली शेषाचलम की पहाड़ियों में ये पेड़ पाए जाते हैं।
इंटरनेशनल मार्केट में लाल चंदन की मांग काफी मात्रा में होती है। चीन, जापान, सिंगापुर, यूएई, और आस्ट्रेलिया जैसे तमाम देशों में लाल चांदन का सबसे अधिक उपयोग होता है। इन सभी देशों में चीन सबसे इसका उपयोग होता है। चीन में इस लकड़ी से फर्नीचर, सजावटी सामान, पारंपरिक वाद्ययंत्र बनाए जाते हैं। यही कारण है कि इसकी स्मगलिंग भी जोरों-शोरों से होती है। विदेशी बाज़ार में इस लकड़ी के बदले करोंड़ो मिलते हैं। हालांकि, इस पेड़ को काटना कानून जुर्म है। इसकी सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस प्रशासन के साथ-साथ स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ को भी तैनात किया गया है।
0 notes
कोरोना ने छीना बेटी और पति को, महिला ने उठाया लोगों की मदद का जिम्मा, दान की एंबुलेंस
कोरोना ने दुनिया में बहुत तबाही मचाई है। इस भयानक महामारी से जन-जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया। ऐसे में बहुत से परिवारों ने अपने करीबियों को खोया। ना जाने कितने बच्चे कोरोना की व्यापक लहर में अनाथ हो गए।
इन पीड़ितों में जबलपुर की कृष्णा दास भी शामिल हैं। 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने कोरोना की दूसरी लहर में अपने पति और इकलौती बेटी को खो दिया। इसके बावजूद इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उठकर दूसरों की मदद के लिए आगी आईं।
बता दें, शहर की मोक्ष संस्था के साथ मिलकर कृष्णा दास ने जरुरतमंदों की सहायता के लिए 16 लाख रुपये की एंबुलेंस दान दी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बुजुर्ग महिला ने यह कदम अपने पति और पुत्री की आत्मा की शांति के लिए उठाया है। उन्होंने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान वे अस्पतालों की चौखट पर दर-दर भटकती रहीं लेकिन उनके बीमार पति और बेटी को जगह नहीं मिल���।
मालूम हो, कृष्णा दास के पति का नाम एस. के. दास था। उनकी उम्र 71 वर्ष थी। उनकी एक ही पुत्री थी जिसका नाम सुदेशना दास था। उसकी उम्र 36 वर्ष थी।
कृष्णा बताती हैं कि उनकी इकलौती बेटी सुदेशना मुंबई में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी। कोरोना की पहली लहर के दौरान वह जबलपुर आ गई और वर्क फ्रॉम होम करने लगी।
बुजुर्ग महिला ने आगे कहा कि 8 अप्रैल, 2021 को एस.के.दास बीमार हुए, जांच करवाने पर वे कोविड पॉज़िटिव पाए गए। बेटी और मेरी भी रिपोर्ट पॉज़िटिव आई। पूरा एक दिन घूमने के बाद भी हमें किसी अस्पताल में जगह नहीं मिली, आख़िर में विक्टोरिया अस्पताल में बेड मिला जिसमें मेरी बेटी को मैंने भर्ती करवाया। और मेरे पति आशीष अस्पताल में भर्ती थे।
कृष्णा ने बताती हैं कि 11 अप्रैल को उनकी बेटी की अचानक से तबीयत बिगड़ गई और 12 अप्रैल को उसकी मौत हो गई। कृष्णा कहती हैं कि वह दौर ऐसा था कि कोई आसपास आना तक मंजूर नहीं करता था। वे अपनी बेटी की मौत पर अकेले उसके शव के पास रोती रहीं। बाद में उनके पति के दोस्त एक पंडित को लेकर आए फिर कृष्णा ने खुद अपनी जवान पुत्री का अंतिम संस्कार किया।
उन्होंने बताया कि तब तक उनकी भी हालत खरबा हो चुकी थी इसलिए पुणे के एक रिश्तेदार ने उन्हें भी आशीष अस्पताल में भर्ती कराया। इसी अस्पताल में उनके पति भर्ती थे। कृष्णा ने बताया कि सुदेशना के गुज़रने के तीन दिन बाद 15 अप्रैल को उनके पति ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया।
गौरतलब है, जब कृष्णा के पति की मौत हुई उस वक्त उनका अंतिम संस्कार करने के लिए कोई मौजूद नहीं था। उस वक्त मोक्ष संस्था ने कृष्णा के पति एस. के. दास का पूरे-विधान से अंतिम संस्कार किया। कृष्णा बताती हैं कि वे इस सामाजिक संस्था के साथ मिलकर उन लोगों की मदद करना चाहती हैं जिनका कोई नहीं है।
0 notes
चीन में मिला फूल का 164 मिलियन साल पुराना जीवाश्म, जानिए
फूल प्रकृति का ऐसा तोहफा जिसने इंसान की ज़िंदगी में रंग भरने का काम किया। फूल की खुशबू से इंसान की जिंदगी महकने लगती है। ऐसे में कई लोग इसका व्यापार करते हैं और अपना जीवनोपार्जन करते हैं।
फूल का उपयोग इत्र बनाने के लिए भी किया जाता है। उत्तर प्रदेश का कन्नौज जिला इत्र के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस शहर में इत्र का व्यापार मुगलकाल से होता आ रहा है। यहां गुलाब, मोगरा, सूरजमुखी, बेला ना जाने कितने फूलों की खुशबू निकाली जाती है। कन्नौज में फूल की खुशबू को कांच की शीशी में बंद करके उसे देश-विदेश में बेचा जाता है।
आज हम आपको फूल की उत्तपत्ति को लेकर विशेष जानकारी देने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि फूलों की उत्पत्ति जुरासिक पीरियड यानी कि 145 मिलियन साल पहले हुई थी। हालांकि, चीन में फूल का एक ऐसा जीवाश्म मिला है जो वैज्ञानिकों के इस दावे को सिरे से खारिज करता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के इनर मंगोलिया क्षेत्र में में 164 मिलियन साल पुराने फूल का जीवाश्म पाया गया है। इसने सभी को चौंका कर रख दिया है। बता दें, इसकी लंबाई 4.2 सेंटीमीटर और चौड़ाई 2 सेंटीमीटर है। इसमें एक डंठल, पत्तियां और एक छोटी सी कली है। वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति का नाम फ्लोरिजेमिनिस जुरासिका रखा है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह पौधा ज्वालामुखी की राख से बने पीले रंग के पत्थरों में संरक्षित था। उनका दावा है कि ज्वालामुखी विस्फोट में पौधे के पत्ते तबाह हो गए लेकिन उनकी छाप हमेशा के लिए पत्थरों पर क़ैद हो गई।
गौरतलब है, पौधे दो प्रकार के होते हैं। पहला एंजियोस्पर्म और दूसरा जिम्नोस्पर्म। जो पौधे फूल देते हैं उन्हें एंजियोस्पर्म कहा जाता है जबकि जो पौधे फूल नहीं देते हैं उन्हें साइंस की भाषा में जिम्नोस्पर्म कहा जाता है।
जानकारी के मुताबिक, चीन में मिलने वाले जीवाश्म को देखकर दावा किया गया है कि ये एंजियोस्पर्म है। वहीं, अब तक जिन एंजियोस्पर्म के जीवाश्म पाए गए थे उनसे यही साबित हुआ था कि क्रेटेशियस पीरियड के थे यानी 6.6 करोड़ से 14.5 करोड़ साल के बीच एंजियोस्पर्म की उत्पत्ति नहीं हुई थी। हालांकि, जो जीवाश्म चीन के मंगोलिया क्षेत्र में मिला है उससे इन अवधारणाओं पर रोक लग जाती है।
0 notes
पब्लिक में इस गांव का नाम लेने पर पड़ सकती है मार, जानिये क्यों है खास
शास्त्रों के अनुसार, आचरण से व्यक्ति के कुल का पता चलता है। बोली से देश का पता लगता है। आदर-सत्कार से प्रेम का तथा शरीर को देखकर व्यक्ति के भोजन का पता चलता है।
इन सभी बातों से एक चीज़ तो आप समझ ही गए होंगे कि व्यक्ति की पहचान उसके घर, गांव, बोली, पहनावे और कर्मों से होती है। कई बार आपने लोगों को कहते सुना होगा हमारा घर ही हमारी पहचान। आप भी अपने कुल, गांव, अपनी मिट्टी का नाम बड़े गर्व से लेते होंगे। हर कोई अपने क्षेत्र का गुणगान गाता है।
लेकिन दुनिया में एक गांव ऐसा है जहां के लोग इस सुख से वंचित हैं। वे लोग अगर अपने गांव का नाम बताते हैं तो लोग या तो उनपर हंसते हैं या फिर उन्हें मारते हैं।
वहीं, अगर सोशल मीडिया पर वे लोग अपने गांव का नाम डालते हैं तो उनकी आईडी ब्लॉक कर दी जाती है। यही कारण है कि यहां के लोग अपने गांव का नाम बदलने के कई प्रयास कर चुके हैं।
बता दें, इस गांव का नाम फक है। यह स्वीडन में स्थित है। यहां के गांववासी अपने क्षेत्र के नाम से काफी परेशान रहते हैं। इस गांव का नाम ही ऐसा है जिसे सार्वजनिक जगहों पर बोलना, पढ़ना, लिखना सब गलत माना जाता है।
इतना ही नहीं इस शब्द पर लगी सेंसरशिप की वजह से अगर आप किसी भी सोशल मीडिया हैंडल पर इस शब्द का प्रयोग करते हैं तो आपका अकाउंट ब्लॉक हो सकता है।
गौरतलब है, अब यहां के ग्रामीणों ने इस नाम को बदलने के लिए याचिका भी दायर की है। जानकारी के अनुसार, स्वीडन के संविधान में उल्लेखित कल्चरल इनवॉरनमेंट एक्ट के ��हत किसी भी क्षेत्र का नाम बदलने का प्रावधान है। मामला अभी कोर्ट में चल रहा है जल्दी ही इसपर कोई ना कोई फैसला जरुर होगा।
वहीं, गांववासियों का कहना है कि यहां का माहौल अच्छा है। यहां ज्यादातर लोग शिक्षित हैं, लेकिन कई बार अपने जन्मस्थली के नाम को लेकर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। यही कारण वे लोग जल्द से जल्द इस गांव का नाम परिवर्तित करवाना चाहते हैं।
0 notes
50 सालों की इस परंपरा को मोदी सरकार ने एक झटके में बदल दिया, लिया वीर सैनिकों से जुड़ा बड़ा फैसला
अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए आजाद हिंद फौज का निर्माण करने वाले भारत माता के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेगा। 23 जनवरी को नताजी की 125वीं जयंती मनाई जाएगी। नेताजी की जयंती को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने पहले से ही तैयारियां प्रारंभ कर दी थीं। यही कारण था कि हाल ही में सराकर ने आदेश जारी किया था कि अब से प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस उत्सव का शुभारंभ 23 जनवरी से ही हो जाया करेगा।
अब भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस की जयंती से पहले बड़ी घोषणा की है। पीएम ने कहा है कि इंडिया के सामने नेताजी की ग्रेनाइट से बनी भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस विषय में पीएम मोदी ने शुक्रवार को ट्वीट कर जानकारी दी। पीएम ने लिखा कि ऐसे समय में जब पूरा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है तो मुझे आपसे यह साझा करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि ग्रेनाइट की बनी उनकी एक भव्य मूर्ति इंडिया गेट पर स्थापित की जाएगी। यह नेताजी के प्रति देश के आभार का प्रतीक होगा। उन्होंने आगे लिखा कि जब तक नेताजी की ग्रेनाइट की प्रतिमा बनकर तैयार नहीं हो जाती तब तक उस स्थान पर उनका एक होलोग्राम वाला स्टैच्यू लगाया जाएगा। मैं 23 जनवरी को नेताजी के जन्मदिन पर इसका लोकार्पण करूंगा।
मालूम हो, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाने के साथ-साथ इंडिया गेट के सामने जल रही अमर जवान ज्योति को हटाने का भी फैसला लिया गया था। सरकार द्वारा जारी किए गए निर्देशानुसार, 1971 और अन्य युद्धों में शहीद होने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि देती अमर जवान ज्योति को नेशनल वॉर मेमोरियल में शिफ्ट किया जाना था।
मोदी सरकार के इस आदेश के अनुसार, बीते दिन 50 सालों से जल रही अमर जवान ज्योति को आखिरकार इंडिया गेट से हटा दिया गया। अब इस ज्योति का विलय राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर जल रही लौ में कर दिया गया। बता दें, अमर जवान ज्योति की स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने करवाई थी। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए तमाम सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हुए पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को इसकी स्थापना की थी।
गौरतलब है, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी के हाथों साल 2019 में हुआ था। यह स्मारक इंडिया गेट से महज़ 400 मीटर की दूरी पर स्थापित है। इसमें 25,942 सैनिकों के नाम अंकित हैं।
0 notes
दुनिया का सबसे खराब घर, जिसकी कीमत तो 14 करोंड़ रुपये है लेकिन हालत 100 रुपये के बराबर भी नहीं!
इस दुनिया के हर व्यक्ति की सबसे पहली ज़रुरत रोटी, कपड़ा और मकान होती है। दुनिया हर एक शख्स यह सपना देखता है कि एक दिन वह भी अपने पैसों से खरीदे गए घर में रहेगा, उसे सजाएगा-सवांरेगा।
हर किसी की इच्छा होती है कि वह एक अच्छा घर खरीदे जिसकी कंडीशन ठीका-ठाक हो। उसके घर में बेडरुम, किचन, हॉल, बाथरुम आदि जैसी मूलभूत जगहों पर प्रॉपर स्पेस हो। घर का फर्नीचर बेस्ट क्वालिटी का हो, मतलब कि डेमेज ना हो।
लेकिन क्या आप कभी खंडहर हुए घर को खरीदना चाहेंगे? जी सही कहा आपने...नहीं....सही बात है जब आप इतना रुपया खर्च कर रहे हैं तो खंडहर लेकर क्या करेंगे। लेकिन दुनिया में एक ऐसा घर है जो पूरी तरह से कबाड़ा हो चुका है बावजूद इसके वह 14 करोंड़ रुपये में बिका है।
जी हां...14 करोंड़ क्या आप कभी किसी टूटे-फूटे घर के लिए इतने पैसे खर्च करेंगे? दरअसल, यह घर सैन फ़्रांसिस्को, अमेरिका में स्थित है। इसे $1.97 मिलियन में बेंचा गया है, जिसकी भारतीय बाज़ार में कुल कीमत 14 करोंड़ रुपये है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अपस्केल नोई वैली में बना यह घर उस इलाके का सबसे बर्बाद घरों में से एक है। इसकी फर्श भी पूरी तरह से खराब हो चुकी है। घर की सीढ़ियों को देखकर लगता है कि बस आज ही गिर जाएंगी। घर में सिर्फ एक हॉल, एक बाथरुम और एक किचन बना हुआ जिसकी भी हालत पूरी तरह से खस्ता ही है।
बाथरुम में एक बाथटब मौजूद है जो कि पूरी तरह से टूट चुका है, उसके आसपास लगे टाइल्स इतने गंदे हैं कि उन्हें उखाड़कर फेंकने के अलावा कोई चारा नहीं है।
जानकारी के मुताबिक, यह घर तकरीबन 120 साल पहले तैयार किया गया था। जिसमें फिलहाल कोई नहीं रहता। इस घर में लगे बिजली के उपकरणों को देखकर पता चलता है कि ये 20वीं शताब्दी में लगाए गए थे।
गौरतलब है, जिस इलाके में यह घर बना हुआ है वहां पर इसे कॉन्ट्रैक्टर्स स्पेशल के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ यह है कि एक बेहद ही खूबसूरत और पॉश इलाके का सबसे खराब और टूटा-फूटा घर। हालांकि, इस घर के आस-पास बने घर काफी खूबसूरत हैं।
0 notes
गाय के गोबर से तैयार की ईंट, सीमेंट और पेंट, अब बना रहे घर, जानिए कौन हैं डॉ. शिव दर्शन मलिक
कहते हैं दुनिया में पैसा कमाना सबसे आसान काम है, बस इसके लिए चाहिए तो वो है लगन। इंसान अगर म���हनती है तो वो कुछ भी करके अपनी दिनभर की रोजी-रोटी का इंतज़ाम कर ही लेगा। लेकिन जब कोई व्यक्ति पैसा कमाने के साथ-साथ प्रकृति को भी सुरक्षित रखने के विषय में सोंचता है तो बात कुछ अनोखी हो जाती है।
जहां समाज में हर कोई प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर अपनी जेबे भरने में लगा है वहां शिव दर्शन मलिक जैसे लोग भी हैं जिन्होंने गाय के गोबर का उपयोग करके एक ऐसा स्टार्टअप खड़ा किया है जिससे पर्यावरण को भी हानि नहीं पहुंच रही है और अन्य लोगों को भी रोजगार का मौका मिल रहा है।
बता दें, हरियाणा के रोहतक निवासी डॉ. शिव दर्शन मलिक ने पांच साल पहले एक स्टार्अप किया था। इसके तहत वे गोबर से ईंट, सीमेंट और पेंट को बनाने का काम करते हैं। उनकी यह खोज पर्यावरण के लिए ईको-फ्रेंडली साबित हो रही है।
गोबर की बनीं इन चीजों से वे लोगों को घर, मकान आदि चीजें बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
जानकारी के मुताबिक, गोबर की चीजों से घर को तैयार करने का आइडिया उन्हें अमेरिका और इंग्लैंड दौरे के दौरान आया था। वहां उन्होंने देखा कि लोग सीमेंट और ईंट की बजाए ईको-फ्रेंडली घरों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। वहां लोग भांग की पत्ती और चूने को मिलाकर घरों की दीवारों पर पुताई करते हैं जिससे सर्दियों में ठंड का एहसास नहीं होता है।
इस दौरान शिव दर्शन को याद आया कि पुराने ज़माने में लोग अपने घरों के बाहर गोबर से पुताई करते थे। ऐसा करने से सर्दियों में ठंड का एहसास नहीं होता था जबकि गर्मियों में ये घर को ठंडा रखता था। पूर्वजों द्वारा एजात की गई इस तकनीक को आज के ज़माने का रुप देने के लिए शिव दर्शन ने इस पर रिसर्च प्रारंभ की।
कई सालों की कड़ी मेहनत और रिसर्च के बाद उन्होंने सबसे पहले गोबर से बनीं सीमेंट तैयार की। जिसका उपयोग सबसे पहले उन्होंने खुद किया। लोगों को इसके इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से शिव दर्शन ने सबसे पहले अपना घर तैयार किया। गोबर की सीमेंट से बना उनका नया घर लोगों को काफी पसंद आया जिसके बाद उन्होंने गांव वालों को भी यह सीमेंट दी।
लोगों से मिली सकारात्मक प्रक्रिया ने शिव दर्शन को गोबर से बनीं ईंट तैयार करने की प्रेरणा दी। 2019 में काफी रिसर्च के बाद उन्होंने गोबर से बनी ईंट तैयार करके सभी को चौंका दिया। बाद में उन्होंने इससे बने पेंट पर भी काम किया और उसे भी तैयार कर लिया।
शिव दर्शन द्वारा किया गया यह प्रयास काफी फलीभूत साबित हुआ। देखते ही देखते उनके साथ हजारों की संख्या में लोग जुड़ गए। जिसके बाद शिव दर्शन ने बीकानेर में पहले तो अपना स्टार्टअप खड़ा किया। उसके बाद इसी शहर में उन्होंने एक ट्रेनिंग सेंटर भी खोला। यहां पर शिव दर्शन लोगों को गोबर से बनने वाली चीजों की पूरी प्रक्रिया के विषय में विधि विधान से समझाते हैं। इसमें सीखने वाले विद्यार्थियों को 21 हजार रुपये फीस जमा करनी होती है।
शिव दर्शन बताते हैं कि उनके सेंटर से ट्रेनिंग लेकर 100 से ज्यादा लोग झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, यूपी जैसे राज्यों में गोबर से ईंट बनाने का काम कर रहे हैं तथा इससे मुनाफा भी कमा रहे हैं।
0 notes
जानिए किस देश में पत्नी का जन्मदिन भूलने पर पति को हो जाती है जेल
दुनिया में हर मर्द की एक ही दवा है वो है औरत। लेकिन जब औरत दर्द देती है तो उसकी भरपाई को दवा, कोई दुआ नहीं कर पाती है। शादीशुदा मर्द इस बात से ताल्लुक रखते होंगे कि पत्नियों को छोटी-छोटी चीज़ों को याद रखने का कितना शौक होता है। अधिकतर महिलाएं अपने पतियों से भी यही उम्मीद करती हैं कि वे भी उनसे जुड़ी हर वो छोटी चीज़ को याद रखें। हालांकि, रोजाना की चिकल्लस में उलझकर पुरुष इन सब बातों को भूल जाते हैं और पत्नी की इन छोटी-छोटी बातों को दरकिनार कर देते हैं। कई बार तो मर्द अपने काम में इतना मशरुफ हो जाते हैं कि उन्हें अपनी पत्नी का जन्मदिन तक याद नहीं रहता।
भारत में पत्नी का बर्थडे भूलने पर संविधान के हिसाब से तो कोई सज़ा नहीं है लेकिन घर की मालकिन द्वारा लागू किए गए कानून के हिसाब से यह सबसे बड़ा गुनाह माना जाता है। इस गुनाह-ए-अज़ीम के लिए पति को कड़ी सज़ा दी जाती है जैसे कि कई दिनों तक पत्नियां बात नहीं करती हैं। कई बार घर में सबके लिए खाना बनता है लेकिन उसके लिए नहीं।
लेकिन दुनिया में एक देश ऐसा भी है जहां सज़ा घर पर नहीं पुलिस स्टेशन में मिलती है। जी हां, पत्नी का जन्मदिन भूलना कितना बड़ा गुनाह हो सकता है इस बात का अंदाज़ा आपको आगे लगेगा।
दरअसल, प्रशांत महासागर के पॉलिनेशियन क्षेत्र के समोआ देश अपनी खूबसूरती के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस आइलैंड पर पतियों की छोटी सी गलती पर उन्हें जेल भेज दिया जाता है। इस देश के कानून के मुताबिक, अगर कोई पति गलती से अपनी पत्नी का जन्मदिन भूल गया, तो यह एक बड़ा अपराध माना जाता है। इसके बाद पत्नी अगर शिकायत करती है तो पति को जेल जाना पड़ सकता है।
जानकारी के मुताबिक, अगर पति अपनी पत्नी का जन्मदिन पहली बार भूलता है तो उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता है। हालांकि, दूसरी बार करने पर उसे जेल भेज दिया जाता है।
गौरतलब है, मनोविज्ञान के मुताबिक महिलाओं को छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढ़ने की आदत होती है। उन्हें अपने जीवनसाथी से बहुत सारी उम्मीदे होती हैं। वे हमेशा चाहती हैं कि उनका जीवनसाथी उन्हें स्पेशल फील कराए। यही कारण है कि वे अपना सबसे खास दिन भूलने पर नाराज़ हो जाती हैं।
0 notes
शादी की चाहत में व्यक्ति ने डाला बैंक में डाका, पहुंच गया जेल
हिंदुस्तान में शादी एक सामाजिक रिवाज ही नहीं बल्कि दो दिलों और दो परिवारों के मिलन का प्रतीक होती है। यह लोगों के लिए उत्साह का एक माध्यम होती है। इसमें सिर्फ परिजन ही नहीं खुश होते बल्कि सारा शहर हर्षोल्लास से झूम उठता है। लेकिन इन सबमें लगता है रुपया।
जैसा कि आप सब जानते हैं कि भारत की ज्यादातर आबादी अपने भविष्य की अधिकतम योजनाओं को कर्ज के बलबूते ही धरातल पर ला पाती है। ऐसा ही मंज़र शादियों में भी देखने को मिलता है। अक्सर लोग शादियों में अपनी शान-ओ-शौकत का दिखावा करने के लिए खूब सारा पैसा खर्च करते हैं। इसके लिए उनके पास पहले से बजट मौजूद होता है या फिर वे किसी से कर्ज लेकर खर्चा करते हैं।
आज हम आपको ऐसे ही एक शख्स के विषय में बताने जा रहे हैं जिसने अपनी शादी के लालच में बैंक को ही लूट लिया और बन गया सरकारी दामाद।
मालूम हो, इस दौर में बैंक न्यूनतम ब्याज दर पर लोन देते हैं। इनमें हाउस लोन से लेकर मैरिज लोन तक सब शामिल है। लेकिन कर्नाटक का यह शख्स शायद इस बात से वाकिफ नहीं था। शायद वह बैंक से पैसा लेने का यही तरीका जानता था इसलिए उसने बैंक लूटने जैसा दंडनीय अपराध कर डाला।
इस महान कृत्य को करने वाले शख्स का नाम प्रवीण कुमार है। वह कर्नाटक के विजयपुरा में रहता है। 33 वर्षीय इस युवक पर लोगों का पहले से ही कर्ज था इसलिए उसने तय किया कि शादी के लिए वह और अधिक कर्ज नहीं लेगा जबकि सबकी तरह अपनी शादी भी धूमधाम से करेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मंगलवार को प्रवीण कर्नाटक के हुब्बल्ली के कोप्कर स्थित एसबीआई बैंक पहुंच गया। यहां उसने सबसे पहले स्थिति को समझा। उसने देखा कि बैंक में उस समय एक कैशियर, एक मैनेजर और 4-5 खाताधारक मौजूद थे। चोर की वेशभूषा में प्रवीन ने चाकू निकालकर कैशियर को धमकाया कि जल्दी सारा पैसा उसके हवाले कर दे। जिसपर कैशियर ने प्रवीण को 6 लाख 39 हजार रुपये थमा दिए। पैसे मिलते ही प्रवीण वहां से चंपत हो गया।
बैंक से निक��ते ही लोगों ने उसका पीछा करना शुरु किया और चोर-चोर कहकर चिल्लाने लगे। इस दौरान एक पुलिस कॉन्सटेबल, मंजुनाथ हालावर उसी सड़क से गुज़र रहे थे उन्होंने लोगों की चीख सुनी तो वे भी उस चोर के पीछे हो लिए। मंजुनाथ को चोर के पीछे भागता देख ड्यूटी पर तैनात ट्रैफिक हवलदार उमेश बांगड़ी ने भी चोर का पीछा किया। काफी मशक्कत के बाद वे दोनों हवलदार चोर को पकड़ने में सफल हुए। जिसके बाद उसे पास के ही पुलिस स्टेशन ले जाया गया।
गौरतलब है, पुलिस को प्रवीण ने बताया कि हुब्बल्ली वह अपनी शादी की शॉपिंग करने के लिए आया था। उसकी होने वाली पत्नी इसी शहर में रहती है। पैसे की कमी के कारण उसे यह कदम उठाना पड़ा। पुलिस के मुताबिक, 33 वर्षीय आरोपी प्रवीण कुमार पढ़ा-लिखा ��्यक्ति है। वह मैसूर स्थित टीवीएस मोटर्स की एक शाखा में कर्मचारी है। शादी में पैसों की कमी के चलते उसने बैंक को ही लूटने का प्लान बना डाला। वहीं, डीजी-आईजीपी प्रवीण सूद ने चोर को पकड़ने वाले दोनों पुलिसवालों के लिए 25000 रुपये नकद इनाम की घोषणा की है।
1 note
·
View note