#हमारे_समाज_में_लव_लव_मैरेज_और_सेक्स_टैबू_क्यूं_बना_हुआ_है?
हम वैसे तो अक्सर सीना तान के कहते हुए दिखाई देते हैं कि हम माडर्न हो गये हैं और पूर्वजों से अलग हैं रूढ़िवादिता को नहीं मानते लेकिन फिर हम ही इन बातों पर चुप्पी साध लेते हैं। महिला सशक्तिकरण का नाम तो लेते हैं लेकिन वहीं उन्हें आजादी के नाम पर हमारा समाज बस उन्हें कुछ चंद कपड़ों की छूट, पढ़ाई और मोबाइल थमा देने की बात करता है। इससे आगे की बात किजिएगा तो इज्जत नाम का रोड़ा लगा के नथुना फूला के बाप-दादाओं का नाम और जाति का पहचान देने लग जाते हैं।
समाज क्या कहेगा? तुम युवा लोग क्या जानो? समाज के लोग क्या कहेंगे? हमें समाज बहिष्कार कर देगा। हम मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे।
मतलब बस ऐसे-ऐसे बहाने की ख़ुद बहाना भी शरमा जाए।
ये जो अरेंज मैरेज का नाम लेकर अपनी मानसिकता और जिम्मेदारी थोपते हो उस समय शर्म नहीं आता? जो एक दूसरे को सही से जानते भी उनको जिंदगी भर का साथ के नाम पर शादी नाम का सजा सुना देते हो। थू है ऐसे समाज पर जहां इज्जत का नाम लेकर खुशियां का गला घोंटा जाता है, जहां खुशी एक बनावटी इज्जत के सामने छोटी पड़ जाती है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो खुद तो लव और लव मैरेज पर राज़ी हो तो जाते हैं लेकिन यहीं बात उनके घर के किसी बहन या बेटी पर आ जाए तो भौंहें चढ़ जाएगी।
थू है ऐसे लोगों पर भी जो दिखावे का चोला पहन कर घुम रहे हैं। हो सके तो अब दुनिया को उस बनावटी इज्जत के चश्मे से नहीं खुशियों के चश्मे से देखिए। वैसे जिस समाज का आप बात करते हैं ना वहीं समाज अगर आपके घर में एक शाम का अनाज नहीं हो तो खिलाएगा नहीं बल्कि कुछ तथाकथित लोगों के साथ मिलकर उपहास करेगा आपका। एक बार लड़िए समाज से , सब सही होगा। दो-तीन तक बातें चलेंगी फिर सब सही। आपसे समाज है समाज से आप नहीं। यह वही समाज है जो तलाकशुदा मर्द के शादी के पक्ष में तो रहता है लेकिन तलाकशुदा महिला के नहीं। वो महिला इनके अनुसार अपशकुन होती है और मर्द नहीं। यह है आपका दोगला समाज।
दूसरा मुद्दा है सेक्स। विज्ञान के अनुसार देखें तो मनुष्य के साथ पशु और पक्षियों के लिए भी यह अनिवार्य है। यहां सभी हिचकते हैं इस मुद्दे पर बात करने से। आप बस इसका नाम लिजिए दस में से नौ हंस पड़ेंगे। यहां इसके नाम पर व्यापार तक फैला हुआ है। वयस्क किताबें बेची गयी वयस्क फिल्में बनायी गयी लेकिन दुर्भाग्य ये जो फिल्में कामुकतापूर्ण होती हैं इन्होंने भी कुछ समझाया नहीं बस टैबू को टैबू रहने दिया। हम सिखे भी तो कैसे ? बस विधालय के कुछ कक्षाओ तक सीमित है इसका पढ़ाई वो भी संक्षिप्त मात्र ही है। घर में कोई बताएगा नहीं ना ही कोई सेफ सेक्स के बारे भी बात करेगा। गलती से भी सेक्सी बोल दिए तो आपको बिगड़े हुए का तमगा मिल जाएगा। हम आज भी इस तरह से कुंठाग्रस्त है कि हमें सेक्स का मतलब बस इतना पता है कि यह दो विपरीत लिंग धारियों के बीच होता है और इसका मूल कार्य बच्चा पैदा करना है। हमारे समाज ने समान लिंग वाले के रिलेशन को कभी सही से समझा ही नहीं और उन्हें एक मजाक का जरिया बना कर छोड़ दिया और दूसरी तरफ औरत को भोग का वस्तु समझ कर बच्चा पैदा करने का मशीन बनाने लगा। ना किसी ने कभी औरगैज्म को कभी सही से समझा ही नहीं। अगर कोई समझ कर किसी को सेक्स शिक्षा दे तो लोग यहीं बोलेंगे कि यह उसको बिगाड़ रहा है। थोड़ा बदलिए खुद को। बच्चों को जब तक आप यह शिक्षा नहीं देंगे तब तक वो किसी साइट या विज्ञापन या वयस्क किताबें या वयस्क फिल्मों के जरिए वो सीखेंगे जहां सिर्फ एक जानवर बनना सिखाया जाता है इंसान नहीं। प्रिवेंशन बताइए , सही उम्र समझाए,उपयोग और दुरूपयोग समझाइए। क्यूंकि यह सबका जरूरत है और जरूरत के चीजों अच्छे से समझने का सबका हक है और अभिभावक के तौर पर पहला कदम आप उठाएं तो बेहतर हो।
#समीर_कहिन
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