#जदयु
Explore tagged Tumblr posts
todaypostlive · 2 years ago
Text
दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन
दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन
दिल्ली। समाजवादी नेता और  जनता दल यूनाइडेट (जदयू) के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का गुरुवार को निधन हो गया है। वे 75 वर्ष के थे। गुरुग्राम के फ़ोर्टीस अस्पताल में उन्होंने आख़री सांस ली। यह जानकारी उनकी बेटी सुभाषिनी ने एक ट्वीट में दी। सुभाषिनी ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘पापा नहीं रहे’। जानकारी के अनुसार गुरुवार रात 10.19 बजे शरद यादव का फोर्टिस अस्पताल में निधन हुआ।  बता दें कि शरद यादव की तबीयत पिछले…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
sachtaknews · 3 years ago
Text
नितीश चले राष्ट्रपति बनने! बिहार के सियासत मे होने वाला है बवाल?
नितीश चले राष्ट्रपति बनने! बिहार के सियासत मे होने वाला है बवाल?
मौजूदा राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के जदयु में वापसी के बाद सियासी हलचल शुरू हो गई है। प्रशांत किशोर ने नितीश कुमार के समक्ष देश के सर्वोच्च पद के लिए प्रस्ताव रखा है और इसके लिए कई राजनैतिक हस्तियों से समर्थन मांगने के लिए संपर्क बनाने का काम शुरू कर दिया है। आप को ज्ञात हो कि 25 जुलाई 2022 को वर्तमान राष्ट्रपति डॉ॰ रामनाथ कोविन्द का कार्यकाल समाप्त हो रहा…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
viralnewsofindia · 3 years ago
Text
मनोज़ लाल दास मनु जदयु के प्रदेश सचिव मनोनीत
मनोज़ लाल दास मनु जदयु के प्रदेश सचिव मनोनीत
जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने मनोज लाल दास मनु को पार्टी का प्रदेश महासचिव मनोनीत किया है।पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पार्टी जनता पार्टी के छात्र संगठन छात्र जनता से जुड़ कर छात्र राजनीति शुरू करने बाले मनु आनन्द मोहन जी की बिहार पीपुल्स पार्टी और हाल में जदयू में विलय उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के भी प्रवक्ता रह चुके है। (more…)
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
avitaknews · 4 years ago
Text
सरकार के कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प
सरकार के कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प
फारबिसगंज । एक संवाददाता जदयु की नगर इकाई की ओर से सोमवार को नगर के Source link
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
rktiwari · 4 years ago
Text
रघुवंश थाम सकते हैं जदयु का दामन
रघुवंश थाम सकते हैं जदयु का दामन
संवाददाता; राम नरेश ठाकुर,बिहार पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी को लेकर,लगभग सभी राजनीतिक दलों में अफरा तफर�� के साथ द्वन्द की इस्थिति भी बरक़रार है। कहीं सीट के बटवारे को लेकर तो कहीं दल बदल कर आए माननीय को लेकर कमोवेस यथा इश्थिति बनी हुई है। राजद में पूर्व सांसद रामा सिंह के पार्टी में शामिल होने की खबर से नाराज वैशाली के सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह खासे नाराज…
View On WordPress
0 notes
biharkonnection · 4 years ago
Text
बिहार चुनाव पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान , मिलकर चुनाव लड़ेंगे भाजपा ,जदयु ,लोजपा
विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए जेपी नड्डा ने कहा कि बिहार और देश में विपक्ष पूरी तरीके से समाप��त हो चुका है। विपक्ष ��ेवल खोखली राजनीति करता है।
बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुट गई हैं। इस बीच बिहार बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक हुई। वर्चुअल तरीके से हुई इस बैठक में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल हुए। जेपी नड्डा ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ” बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। भाजपा, जदयू और लोजपा मिलकर चुनाव लड़ेंगे और जीत हासिल…
View On WordPress
0 notes
its-axplore · 4 years ago
Link
सदर प्रखंड प्रमुख श्वेत शिखा व उपप्रमुख साहब रहमानी पर लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गुरुवार को खारिज हो गया। बताया जाता है कि अविश्वास प्रस्ताव में भाग लेने के लिए गुरुवार को निर्धारित समय तक मात्र 17 पंचायत समिति सदस्य ही बैठक में भाग ले पाये। प्रमुख व उपप्रमुख समेत कुल 21 सदस्यों ने बैठक में भाग ही नहीं लिया।
प्रमुख व उपप्रमुख पर लाये गए अविश्वास प्रस्ताव को पारित कराने के लिए विपक्षी खेमे को कुल 20 मतों की आवश्यकता थी। जो विपक्षी खेमे के लोग पूरा करने में असमर्थ रहे। जानकारी के अनुसार सदर प्रखंड प्रमुख श्वेत शिखा एवं उप प्रमुख पर पंचायत समिति सदस्यों द्वारा बीते 11 जून 2020 को अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। गुरुवार को निर्धारित समय के अंदर अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले सदस्यों के द्वारा बहुमत सिद्ध नहीं होने के कारण अविश्वास प्रस्ताव को निर्धारित समय अनुसार सदर प्रखंड निर्वाची पदाधिकारी सह बीडीओ राजेश कुमार राजन ने खारिज कर दिया।
मात्र 17 पंचायत समिति सदस्यों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई विशेष बैठक में मात्र 17 पंचायत समिति सदस्यों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। जबकि प्रखंड प्रमुख व उपप्रमुख समेत 21 समिति सदस्यों के साथ बैठक में भाग ही नहीं लिया। पंचायती राज अधिनियम के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने की तिथि से 15 दिनों के अंदर प्रखंड प्रमुख द्वारा विशेष बैठक पर चर्चा करने का समय निर्धारित किया गया था। तय तिथि के अनुसार 25 जून को 11: 30 बजे बैठक की कार्रवाई शुरू की गई। दोपहर के 12:25 तक एक भी समिति सदस्यों ने बैठक में भाग नहीं लिया। 12: 30 बजे अविश्ववास प्रस्ताव लाने वाले एक पक्ष के 17 सदस्यों ने सदन में उपस्थिति दर्ज कराई।
सब कुछ वैसे ही हुआ जैसा की भास्कर ने 25 जून को बताया अविश्वास प्रस्ताव को लेकर चल रही राजनीतिक खींच तान के बीच सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा कि भास्कर ने 25 जून के अंक में बताया था। 25 जून को इस अविश्वास प्रस्ताव को लेकर लगाये जा रहे तमाम कयासों पर तब विराम लग गया जब प्रखंड प्रमुख खेमे की एक तस्वीर और कुछ वीडियो वायरल हुई थी। जिसमें 22 पंचायत समिति सदस्यों के प्रतिनिधि के साथ होने का दावा किया जा रहा था। मौके पर नगर परिषद के पूर्व सभापति सह जन अधिकार किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष मनोहर कुमार यादव ,जदयु नेता अशोक सिंह , नवीन गोयनका , पार्षद शिवराज यादव सहित अन्य थे।
बैठक में भाग लेने के लिए पहुंचे थे ये सदस्य इधर अविश्वास प्रस्ताव पर आयोजित बैठक में भाग लेने के लिए पंस सदस्य कुमकुम देवी, लवली देवी, नीलम देवी, नीलू देवी, रिंकू देवी, इंद्रदेव रजक, राधा देवी, सिक���दर राम, वीणा देवी, राज कुमारी यादव, पिंकी भारती, अंजली देवी, अजय कुमार, रंजू देवी, रघुनंदन पासवान, दढीबल कुमार व नुनुवती देवी ने भाग लिया।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2NuiCrh
0 notes
todaypostlive · 2 years ago
Text
बिहार के कुढ़नी में लहराया भाजपा का परचम
बिहार के कुढ़नी में लहराया भाजपा का परचम
मुजफ्फरपुर।  जिले की कुढ़नी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा के केदार गुप्ता ने महागठबंधन के उम्मीदवार मनोज कुशवाहा को हरा दिया है। मतगणना में भाजपा को 76648 जबकि जदयू को 73016 वोट मिले। जीत का अंतर 3632 का रहा। इस चुनाव में खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जोर-शोर से प्रचार किया था लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया।कुढ़नी में जीत के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
inshortsmarathi · 5 years ago
Text
लोकसभेपाठोपाठ राज्यसभेतही तिहेरी तलाक विधेयक मंजूर
लोकसभेपाठोपाठ राज्यसभेतही तिहेरी तलाक विधेयक मंजूर
लोकसभेपाठोपाठ बुधवारी राज्यसभेतही तिहेरी तलाक विधेयक मंजूर झाले. विधेयकाच्या बाजूने 99 मते तर विरोधात 84 मते पडली.  काँग्रेसने विधेयकाला विरोध केला मात्र जदयु, अण्णा द्रमुकने विरोध करीत सभात्याग केला. बिजू जनता दलाने विधयकाला  पाठिंबा दिला.
राज्यसभेत साडेचार तास वादळी चर्चा झाली. चर्चेला उत्तर देताना कायदामंत्री रविशंकर प्रसाद यांनी काँग्रेसवर हल्लाबोल केला. 1984 मध्ये 400 वर जागा जिंकणारी…
View On WordPress
0 notes
theresistancenews-blog · 7 years ago
Photo
Tumblr media
एक दिन पीएम मोदी कह दे – बीजेपी के साथ आ जाने से ही भ्रष्टाचार दूर हो जाता है रवीश कुमार भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए धर्मनिरपेक्षता का इस्तमाल नहीं हो सकता है। स्वागत योग्य कथन है। आजक��� हर दूसरे राजनीतिक लेख में ये लेक्चर होता है। ऐसा लगता है कि धर्मनिरपेक्षता की वजह से ही भारत में भ्रष्टाचार है। ऐसे बताया जा रहा है कि धर्मनिरपेक्षता न होती तो भारत में कोई राजनीतिक बुराई न होती। सारी बुराई की जड़ धर्मनिरपेक्षता है। मुझे हैरानी है कि कोई सांप्रदायिकता को दोषी नहीं ठहरा रहा है। क्या भारत में सांप्रदायिकता समाप्त हो चुकी है? क्या वाकई नेताओं ने भ्रष्टाचार इसलिए किया कि धर्मनिरपेक्षता बचा लेगी? भ्रष्टाचार से तंत्र बचाता है या धर्मनिरपेक्षता बचाती है ? हमारे नेताओं में राजनीतिक भ्रष्टाचार पर खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं बची है। लड़ने की बात छोड़ दीजिए। यह इस समय का सबसे बड़ा झूठ है कि भारत का कोई राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से लड़ रहा है। भारत में लोकपाल को लेकर दो साल तक लोगों ने लड़ाई लड़ी। संसद में बहस हुई और 2013 में कानून बन गया। 4 साल हो गए मगर लोकपाल नियुक्त नहीं हुआ है। बग़ैर किसी स्वायत्त संस्था के भ्रष्टाचार से कैसे लड़ा जा रहा है? लड़ाई की विश्वसनीयता क्या है? इसी अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हर बहाने को खारिज कर दिया और कहा कि लोकपाल नियुक्त होना चाहिए। नेता विपक्ष का नहीं होना लोकपाल की नियुक्ति में रुकावट नहीं है। अप्रैल से अगस्त आ गया, लोकपाल का पता नहीं है। क्या आपने भ्रष्टाचार के लिए धर्मनिरपेक्षता को ज़िम्मेदार ठहराने वाले किसी भी नेता को लोकपाल के लिए संघर्ष करते देखा है? 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एस आई टी का गठन किया था कि वो भ्रष्टाचार का पता लगाए। 2011 से 2014 तक तो एस आई टी बनी ही नहीं जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था। उसी के आदेश से जब मोदी सरकार ने 27 मई 2014 को एस आई टी का गठन किया तब सरकार ने इसका श्रेय भी लिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लड़ाई का प्रमाण यही है कि पहला आदेश इसी से संबंधित था। क्या आप जानते हैं कि इस एस आई टी के काम का क्या नतीजा निकला है? एस आई टी की हालत भी कमेटी जैसी हो गई है। इसके रहते हुए भी भारतीय रिजर्व बैंक उन लोगों के नाम सार्वजनिक करने से रोकता है जिन्होंने बैंकों से हज़ारों करोड़ लोन लेकर नहीं चुकाया है और इस खेल में भ्रष्टाचार के भी आरोप हैं। क्या भ्रष्टाचार से लड़ने वाले नेता नाम ज़ाहिर करने की मांग करेंगे? ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कुछ नहीं हो रहा है। जितना हो रहा है,उतना तो हर दौर में होता ही रहता है। लेकिन न तो बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है न सीधी लड़ाई। लड़ाई के नाम पर चुनिंदा लड़ाई होती है। बहुत चतुराई से नोटबंदी, जी एस टी और आधार को इस लड़ाई का नायक बना दिया गया है। काला धन निकला नहीं और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई का एलान भी हो गया है। नोटबंदी के दौरान कहा गया था कि पांच सौ और हज़ार के जितने नोट छपे हैं, उससे ज़्यादा चलन में हैं। जब ये नोट वापस आएंगे तो सरकार को पता चलेगा कि कितना काला धन था। नौ महीने हो गए मगर भारतीय रिज़र्व बैंक नहीं बता पाया कि कितने नोट वापस आए। अब कह रहा है कि नोट गिने जा रहे हैं और उसके लिए गिनने की मशीनें ख़रीदी जाएंगी। क्या बैंकों ने बिना गिने ही नोट रिज़र्व बैंक को दिये होंगे? कम से कम उसी का जोड़ रिजर्व बैंक बता सकता था। तर्क और ताकत के दम पर सवालों को कुचला जा रहा है। सिर्फ विरोधी दलों के ख़िलाफ़ इन्हें मुखर किया जाता है। यही रिज़र्व बैंक सुप्रीम कोर्ट से कहता है कि जिन लोगों ने बैंकों के हज़ारों करोड़ों रुपये के लोन का गबन किया है, डुबोया है, उनके नाम सार्वजनिक नहीं होने चाहिए। भ्रष्टाचार की लड़ाई में जब नेता का नाम आता है तो छापे से पहले ही मीडिया को बता दिया जाता है, जब कारपोरेट का नाम आता है तो सुप्रीम कोर्ट से कहा जाता है कि नाम न बतायें। ये कौन सी लड़ाई है? क्या इसके लिए भी धर्मनिरपेक्षता दोषी ��ै? पिछले साल इंडियन एक्सप्रेस ने पूरे अप्रैल के महीने में पनामा पेपर्स के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित किया। 500 से अधिक भारतीयों ने पनामा पेपर्स के ज़रिये अपना पैसा बाहर लगाया है। इसमें अदानी के बड़े भाई, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्य राय बच्चन, इंडिया बुल्स के समीर गहलोत जैसे कई बड़े नाम हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे का भी नाम आया। अभिषेक सिंह तो बीजेपी सांसद हैं। सबने खंडन करके काम चला लिया। सरकार ने दबाव में आकर जांच तो बिठा दी मगर उस जांच को लेकर कोई सक्रियता नहीं दिखती है जितनी विपक्ष के नेताओं के यहां छापे मारने और पूछताछ करने में दिखती है। अदानी के बारे में जब इकनोमिक एंड पोलिटकल वीकली में लेख छपा तो संपादक को ही हटा दिया गया। ठीक है कंपनी ने नोटिस भेजा लेकिन क्या सरकार ने संज्ञान लिया? क्या धर्मनिरपेक्षता को गरियाते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने वाले किसी नेता या दल ने जांच की मांग की। A FEAST OF VULTURES एक किताब आई है, इसके लेखक हैं पत्रकार JOSY JOSEPH। इस किताब में बिजनेस घराने किस तरह से भारत के लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं, उसका ब्योरा है। जोसेफ़ ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट की बनाई एस आई टी के सामने भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मामला अदानी ग्रुप का आया है। लेखक को प्रत्यर्पण निदेशालय के सूत्रों ने बताया है कि अगर सही जांच हो जाए तो अदानी समूह को पंद्रह हज़ार करोड़ रुपये का जुर्माना भरना पड़ सकता है। आप सभी जानते ही होंगे कि अदानी ग्रुप किस नेता और सत्ता समूह के करीबी के तौर पर देखा जाता है। क्या इस लड़ाई के ख़िलाफ़ कोई नेता बोल रहा है? सिर्फ दो चार पत्रकार ही क्यों बोलते है? उन्हें तो अपनी नौकरी गँवानी पड़ती है लेकिन क्या किसी नेता ने बोलकर कुर्सी गँवाने का जोखिम उठाया ? THEWIRE.IN ने जोसी जोसेफ़ की किताब की समीक्षा छापी है। कारपोरेट करप्शन को लेकर वायर की साइट पर कई ख़बरें छपी हैं मगर धर्मनिरपेक्षता को गरियाते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने वाले नेताओं और विश्लेषकों के समूह ने नज़रअंदाज़ कर दिया। लालू यादव के परिवार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार को लेकर लिखने वाले तमाम लेखकों का लेख छान लीजिए, एक भी लेख कारपोरेट भ्रष्टाचार के आरोपों पर नहीं मिलेगा जो मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठा से संबंध रखते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि लालू यादव के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कार्रवाई ग़लत है, ग़लत है यह कहना कि सरकार ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ रखा है। इसी फरवरी में प्रशा��त भूषण,योगेंद्र यादव और कालिखो पुल की पहली पत्नी ने प्रेस कांफ्रेंस की। अरुणालच प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कालिखो पुल ने आत्महत्या कर ली थी। उनके सुसाइड नोट को कोई मीडिया छाप नहीं रहा था। THEWIRE.IN ने छाप दिया। उसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों पर रिश्वत मांगने के संगीन आरोप लगाए गए थे। किसी ने उस आरोप का संज्ञान नहीं लिया। इसके बावजूद देश में एलान हो गया कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जंग हो रहा है। मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से लेकर महाराष्ट्र का सिंचाई घोटाला। सब पर चुप्पी है। ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। आज अगर सारे दल एकतरफ हो जाए, बीजेपी में शामिल हो जाएं तो हो सकता है कि एक दिन प्रधानमंत्री टीवी पर आकर एलान कर दें कि भारत से राजनीतिक भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है क्योंकि सभी मेरे साथ आ गए हैं। कांग्रेस के सारे विधायक आ गए हैं और बाकी सारे दल। लोकपाल की ज़रूरत नहीं है। बीजेपी के साथ आ जाने से ही भ्रष्टाचार दूर हो जाता है। राजनीति में भ्रष्टाचार और परिवारवाद धर्मनिरपेक्षता के कारण है, यह हमारे समय का सबसे बड़ा झूठ है। बीजेपी के भीतर और उसके तमाम सहयोगी दलों में परिवारवाद है। शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी, अपना दल, अकाली दल में परिवारवाद नहीं तो क्या लोकतंत्र है? क्या वहां परिवारवाद धर्मनिरपेक्षता के कारण फला फूला ह���। सबका सामाजिक जातिगत आधार भी तो परिवारवाद की जड़ में है। दक्षिण भारत के तमाम दलों में परिवारवाद है। तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के बेटे राज्य चला रहे हैं। तेलगु देशम पार्टी के मुखिया और एन डी ए के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू के बेटे भी वारिस बन चुके हैं। क्या बीजेपी नायडू पर परिवारवाद के नाम पर हमला करेगी? क्या नायडू के घर में भी धर्मनिरपेक्षता ने परिवारवाद को पाला है? बिहार के नए मंत्रिमंडल में रामविलास पासवान के भाई मंत्री बने हैं, जो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं, वो बिहार सरकार में मंत्री बने हैं। क्या इस परिवारवाद के लिए भी धर्मनिरपेक्षता दोषी है? कांग्रेस, राजद और सपा बसपा का परिवारवाद बुरा है। अकाली लोजपा, शिवसेना, टी डी पी, टी आर एस का परिवारवाद बुरा नहीं है। बीजेपी के भीतर नेताओं के अनेक वंशावलियां मिल जाएंगी। बीजेपी के इन वारिसों केलिए कई संसदीय क्षेत्र और विधानसभा क्षेत्र रिज़र्व हो गए हैं। एक ही बड़ा फर्क है। वो यह कि बीजेपी का अध्यक्ष पद कांग्रेस की तरह परिवार के नाम सुरक्षित नहीं है। लेकिन बीजेपी का अध्यक्ष भी उसी परिवारवादी परंपरा से चुना जाता है जिसे हम संघ परिवार के नाम से जानते हैं। वहां भी अध्यक्ष ऊपर से ही थोपे जाते हैं। कोई घनघोर चुनाव नहीं होता है। जिन दलों में परिवारवाद नहीं है, यह मान लेना बेवकूफी होगी कि वहां सबसे अच्छा लोकतंत्र है। ऐसे दलों में व्यक्तिवाद है। व्यक्तिवाद भी परिवारवाद है। कंचन चंद्रा की एक किताब है Dynasties: state, party and family in contemporary Indian Politics । कंचन चंद्रा ने बताया है कि तीन लोकसभा चुनावों के दौरान किस दल में परिवारवाद का कितना प्रतिशत रहा है। अभी 2014 के चुनाव के बाद चुने गए सांसदों के हिसाब से ही यह प्रतिशत देख लेते हैं। आई डी एम के में 16.22 प्रतिशत सांसद परिवारवादी हैं। भारतीय जनता पार्टी में 14.89 प्रतिशत सांसद परिवारवादी हैं। सी पी एम में भी परिवारवाद का प्रतिशत 11 है। सीपीआई में तो 100 फीसदी है। राजद और जदयु के सांसदों में परिवारवाद का प्रतिशत शून्य है। कांग्रेस में सबसे अधिक 47.73 प्रतिशत हैं। एन सी पी में 33.33 प्रतिशत है। अकाली दल में 25 प्रतिशत है। मतलब जितने सांसद चुन कर आए हैं उनमें से कितने ऐसे हैं जिनके परिवार के सदस्य पहले सांसद वगैरह रह चुके हैं। इस किताब के अनुसार 2004 में लोकसभा में 20 प्रतिशत सांसद ऐसे पहुंचे जो परिवारवादी कोटे से थे। 2009 में इनका प्रतिशत बढ़कर 30.07 हो गया और 2014 में घटकर 21.92 प्रतिशत हो गया क्योंकि कई दलों का खाता ही नहीं खुला। बीजेपी जो परिवारवाद से लड़ने का दावा करती है उसमें परिवारवादी सांसदों का प्रतिशत बढ़ गया। 2004 में चुने गए सांसदों में 14.49 प्रतिशत परिवारवादी थे, 2009 में 19.13 प्रतिशत हो गए और 2014 में 14.89 प्रतिशत। परिवारवाद बीजेपी में भी है, सहयोगी दलों में है और कांग्रेस से लेकर तमाम दलों में है। इससे मुक्त कोई दल नहीं है। इसलिए भारतीय राजनीति में परिवारवाद और भ्रष्टाचार के लिए धर्मनिरपेक्षता को दोषी ठहराना ठीक नहीं है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय राजनीति की आत्मा है। अब कोई इसे कुचल देना चाहता है तो अलग बात है। परिवारवाद के आंकड़े और भ्रष्टाचार के चंद मामलों से साफ है कि न तो कोई परिवारवाद से लड़ रहा है न ही भ्रष्टाचार से और न ही कोई धर्मनिरपेक्षता के लिए लड़ रहा है। बस परिवारवाद और भ्रष्टाचार को लेकर कोई ठोस सवाल न पूछे इसलिए धर्मनिरपेक्षता को शैतान की तरह पेश किया जा रहा है ताकि लोग उस पर पत्थर मारने लगें। किसी को धोखे में रहना है कि भ्रष्टाचार से लड़ा जा रहा है और कम हो रहा है तो उसका स्वागत है। चुनावी जीत का इस्तमाल हर सवाल के जवाब के रूप में किया जाना ठीक नहीं है। क्या कल यह भी कह दिया जाएगा कि चूंकि बीजेपी पूरे भारत में जीत रही है इसलिए भारत से ग़रीबी ख़त्म हो गई है, बेरोज़गारी ख़त्म हो गई? आज राजनीतिक दलों को पैसा कोरपोरेट से आता है। उसके बदले में कोरपोरेट को तरह तरह की छूट दी जाती है। जब भी किसी कारपोरेट का नाम आता है सारे राजनीतिक दल चुप हो जाते हैं। भ्रष्टाचार से लड़ने वाले भी और नहीं लड़ने वाले भी। आप उनके मुंह से इन कंपनियों के नाम नहीं सुनेंगे। इसलिए बहुत चालाकी से दो चार नेताओं के यहां छापे मारकर, उन्हें जेल भेज कर भ्रष्टाचार से लड़ने का महान प्रतीक तैयार किया है ताकि कोरपोरेट करप्शन की तरफ किसी का ध्यान न जाए। वर्ना रेलवे में ख़राब खाना सप्लाई हो रहा है। क्या यह बगैर भ्रष्टाचार के मुमकिन हुआ होगा? सी ए जी ने यह भी कहा गया कि बीमा कंपनियों को बिना शर्तों को पूरा किए ही तीन हज़ार करोड़ रुपये दे दिये गए। सी ए जी इन बीमा कंपनियों को आडिट नहीं कर सकती जबकि सरकार उन्हें हज़ारों करोड़ रुपये दे रही है। लिहाज़ा यह जांच ही नहीं हो पाएगा कि बीमा की राशि सही किसान तक पहुंची या नहीं। अब किसी को यह सब नहीं दिख रहा है तो क्या किया जा सकता है। बीजेपी से पूछना चाहिए कि उसने नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए थे क्या वे सभी झूठे थे? क्या बीजेपी ने इसके लिए माफी मांग ली है? क्या प्रधानमंत्री चुनावों के दौरान नीतीश कुमार पर झूठे आरोप लगा रहे थे? दरअसल खेल दूसरा है। धर्मनिरेपक्षता की आड़ में बीजेपी को इन सवालों से बचाने की कोशिश हो रही है ताकि उससे कोई सवाल न करे। आज समस्या राष्ट्रवाद की आड़ में सांप्रदायिकता है लेकिन उस पर कोई नहीं बोल रहा है। धर्मनिरपेक्षता सबसे कमज़ोर स्थिति में है तो सब उस पर हमले कर रहे हैं। बीजेपी के साथ जाने में कोई बुराई नहीं है। बहुत से दल शान से गए हैं और साथ हैं। भारत में खेल दूसरा हो रहा है। भ्रष्टाचार से लड़ने के नाम पर व्यापक भ्रष्टाचार को छुपाया जा रहा है। कोरपोरेट करप्शन पर चुप्पी साधी जा रही है। धर्मनिरपेक्षता का इस्तमाल उस व्यापक भ्रष्टाचार पर चुप्पी को ढंकने के लिए हो रहा है। यह सही है कि भारत में न तो कोई राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता को लेकर कभी ईमानदार रहा है न ही भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर। धर्मनिरपेक्षता का इस्तमाल सब करते हैं। जो इसमें यकीन करते हैं वो भी, जो इसमें यकीन नहीं करते हैं वो भी। इसी तरह भ्रष्टाचार का इस्तमाल सब करते हैं। लड़ने वाले भी और नहीं ल़ड़ने वाले भी। नोट: आपको एक जंत्री देता हूं। गांधी जी की तरह। अगर भ्रष्टाचार से लड़ाई हो रही है तो इसका असर देखने के लिए राजनीतिक दलों की रैलियों में जाइये। उनके रोड शो में जाइये। आसमान में उड़ते सैंकड़ों हेलिकाप्टर की तरफ देखिये। उम्मीदवारों के ख़र्चे और विज्ञापनों की तरफ देखिये। आपको कोई दिक्कत न हो इसलिए एक और जंत्री देता हूं। जिस राजनीतिक दल के कार्यक्रमों में ये सब ज़्यादा दिखे, उसे ईमानदार घोषित कर दीजिए। जीवन में आराम रहेगा। टाइम्स आफ इंडिया और डी एन ए को यह जंत्री पहले मिल गई थी तभी दोनों ने अमित शाह की संपत्ति में तीन सौ वृद्धि की ख़बर छापने के बाद हटा ली।
0 notes
viralnewsofindia · 7 years ago
Photo
Tumblr media
राष्ट्रपति चुनाव: मीरा कुमार होंगी कोविंद के खिलाफ विपक्ष की साझा प्रत्याशी नई दिल्ली:  राष्ट्रपति पद के लिये संभावित साझा उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाने के लिये विपक्ष की अहम बैठक से शुरू हो गई है। यह बैठक कांग्रेस की अगुवाई में हो रही है और इसमें 16 विपक्षी दल शामिल हैं। जदयु को छोड सभी दलों के नेता पहुंच चुके हैं। मीडिया की खबरों के अनुसार बैठक में मीरा कुमार को विपक्ष के साझाा उम्मीदवार के रूप में उतारने पर सहमति बनी है। बताया गया कि विपक्ष की बैठक में तीन नाम सामने आए जिनमें से मीरा कुमार पर सभी सहमत थे। मीरा कुमार के नाम का प्रस्ताव सोनिया गांधी ने रखा। बाद में प्रेस को सारी जानकारी कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने दी। लालू यादव ने कहा कि नीतीश कुमार को पुन: अपने फैसले पर विचार के लिए कहा जाएगा।
0 notes
todaypostlive · 2 years ago
Text
बिहार उपचुनाव : कुढ़नी में 57.9 प्रतिशत लोगों ने किया अपने मताधिकार का प्रयोग
बिहार उपचुनाव : कुढ़नी में 57.9 प्रतिशत लोगों ने किया अपने मताधिकार का प्रयोग
मुजफ्फरपुर। बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में सोमवार को संपन्न हुए मतदान में 57.90 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। यहां मुख्य मुकाबला जदयू के मनोज कुशवाहा और भाजपा के केदार गुप्ता के बीच में है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी एच आर श्रीनिवास ने सोमवार देर शाम प्रेसवार्ता में बताया कि कुढ़नी उपचुनाव में कुल 57.90 प्रतिशत मतदान हुआ है। उन्होंने बताया कि 2020 के…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
todaypostlive · 2 years ago
Text
सीबीआई की डायरेक्टर एंट्री पर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री में आपसी सहमति नहीं
सीबीआई की डायरेक्टर एंट्री पर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री में आपसी सहमति नहीं
पटना। सीबीआई की एंट्री को बैन करने को लेकर सीएम नीतिश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ��ें आपसी सहमति नहीं बन पायी है। राजद उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी के राज्य में सीबीआई की डायरेक्ट एंट्री को लेकर विवादित बयान से विवाद खड़ा हो गया था। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पता नहीं कौन क्या क्या बोलता है। मुझे इसकी जानकारी नहीं है। वहीं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) संसदीय बोर्ड…
View On WordPress
0 notes
todaypostlive · 2 years ago
Text
सीएम के नजदीकी एमएलसी देवेश चंद्र ने बिहार विधान परिषद के सभापति के लिए भरा नामांकन
सीएम के नजदीकी एमएलसी देवेश चंद्र ने बिहार विधान परिषद के सभापति के लिए भरा नामांकन
पटना।  सीएम के नजदीकी व जदयू के एमएलसी देवेश चंद्र ठाकुर ने बुधवार को बिहार विधान परिषद के सभापति पद के लिए नामांकन दाखिल किया है। इस मौके पर सीएम नीतिश कुमार, पूर्व सीएम राबड़ी देवी, उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित कई महागठबंधन के नेता मौजूद थे। महागठबंधन सदस्यो की संख्या को देखते हुए इस पद पर देवेश चंद्र ठाकुर का सभापति पद पर चुना जाना तय माना जा रहा है। मालूम हो कि जदयू की ओर से पहले ही इस पद…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
todaypostlive · 2 years ago
Text
नीतिश मंत्रिमंडल विस्तार में 31 मंत्रियों ने ली शपथ, सबसे ज्यादा यादव जाति के कुल 8 मंत्री बने
नीतिश मंत्रिमंडल विस्तार में 31 मंत्रियों ने ली शपथ, सबसे ज्यादा यादव जाति के कुल 8 मंत्री बने
पटना।  बिहार की महागठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार मंगलवार को हुआ। 31 मंत्रियों ने शपथ ली। मंत्रिमंडल विस्तार में जदयू के पुराने चेहरो को मौका मिला, तो राजद कोटे से 16 विधायको ने मंत्री पद की शपथ ली। हम पार्टी के एक और एक निर्दलीय को भी मंत्री बनाया गया है। राजभवन के राजेंद्र मंडपम में आयोजित शपथ समारोह में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, पूर्व सीएम राबड़ी देवी व जीतनराम…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes
todaypostlive · 2 years ago
Text
बिहार में फिर बनेगी महागठबंधन की सरकार , नीतिश बनेगें मुख्यमंत्री ,नीतीश ने कहा, पार्टी विधायकों-सांसदों के कहने पर लिया फैसला
बिहार में फिर बनेगी महागठबंधन की सरकार , नीतिश बनेगें मुख्यमंत्री ,नीतीश ने कहा, पार्टी विधायकों-सांसदों के कहने पर लिया फैसला
पटना। राजनीतिक उठा पटक के बीच मंगलवार को बिहार में पांच साल पुराना भाजपा जदयू गठबंधन टूट गया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने राज्यपाल भागू चौहान से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप दिया है और इसके साथ ही 160 विधायको का समर्थन पत्र भी सौंपा है। माना जा रहा है एक दो दिन के अंदर नीतिश कुमार पुन: मुख्यमंत्री पद का शपथ लेंगे। इधर हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने भी अपना समर्थन महागठबंधन सरकार…
Tumblr media
View On WordPress
0 notes