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Thalassemia and Genetics: What You Need to Know
Thalassemia is a genetic blood disorder that affects the body’s ability to produce hemoglobin, an essential protein in red blood cells. Hemoglobin is responsible for carrying oxygen throughout the body. When the body doesn’t produce enough of it, it leads to anemia, fatigue, and other health complications. Read more: https://bestbmtindelhi.blogspot.com/2024/09/thalassemia-and-genetics-what-you-need.html
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Blood donate camp i15 aug 2021 in Gorakhpur .. #socialcause #blooddonation #blooddonate #blooddonatecamp #gorekhpur #gorekhpurdiares #gorakhpur_city #gorakhpuriya #gorakhpur😍 #gorakhpurcity #blooddonor #blooddonationcamp #thalassemia #thalassemiamajor #thalassemiaminor #thalassemiasymptoms #thalassemiasymptom #savekids https://www.instagram.com/p/CSevl8cjVeO/?utm_medium=tumblr
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World Thalassemia Day: माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग, जानें क्या है थैलेसीमिया, इसके लक्षण और बचाव
चैतन्य भारत न्यूज हर वर्ष 8 मई को विश्व थैलेसिमिया दिवस (World Thalassemia Day) मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता फैलाना है तथा इसकी रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाना है। बता दें थैलसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है जो लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने की वजह से होती है। यह बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है, इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है। थैलेसीमिया क्या है? आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है। थैलेसीमिया एक स्थायी रक्त विकार (Chronic Blood Disorder) है। यह एक आनुवंशिक विकार है, जिसके कारण एक रोगी के लाल रक्त कणों (RBC) में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो ��ाता है और हर समय किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है। इस बीमारी के मरीजों को जीवित रहने के लिए हर दो से तीन सप्ताह बाद रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। यह बीमारी आनुवांशिक है, रिश्तेदारी के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। बीमारी का जन्म शिशु के साथ होता है, जो उम्रभर साथ नहीं छोड़ती। थैलेसीमिया के प्रकार थैलेसीमिया दो तरह का होता है। माइनर थैलेसीमिया या मेजर थैलेसीमिया. किसी महिला या पुरुष के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है। लेकिन अगर महिला और पुरुष दोनों व्यक्तियों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है। इसके कारण बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने बाद उसके शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है। थैलेसीमिया के लक्षण बार-बार बीमारी होना। सर्दी, जुकाम बने रहना। कमजोरी और उदासी रहना। आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना। शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना। सांस लेने में तकलीफ होना। कई तरह के संक्रमण होना। ऐसे कई तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। थैलेसीमिया का उपचार थैलेसीमिया का इलाज, रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। कई बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। बोन मैरो प्रत्यारोपण से इन रोग का इलाज सफलतापूर्वक संभव है लेकिन बोन मैरो का मिलान एक बेहद मुश्किल प्रक्रिया है। इसके अलावा रक्ताधान, बोन मैरो प्रत्यारोपण, दवाएं और सप्लीमेंट्स, संभव प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी करके भी इस गंभीर रोग का उपचार किया जा सकता है। कैसे करें थैलेसीमिया से बचाव विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जांच कराएं। गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं। मरीज का हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें। समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें। भारत में थैलेसीमिया के आंकड़े भारत दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी है, जिसमें 40 मिलियन थैलेसीमिया वाहक हैं और 1,00,000 से अधिक थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त हैं। इन लोगों को हर महीने रक्त की आवश्यकता होती है। इलाज की कमी के कारण देश भर में 1,00,000 से अधिक मरीज 20 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले मर जाते हैं। भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था। हर साल भारत में थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त 10,000 बच्चे पैदा होते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) थैलेसेमिया सहित आनुवंशिक विकारों से पीड़ित बच्चों को प्रारंभिक जांच और उपचार प्रदान करता हैं। विवाह से पूर्व चिकित्सीय जांच के लिए विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं उपलब्ध हैं। थैलिसीमिया के बारे में अधिक जानकारी जानने के लिए www.nhp.gov.in पर जाएं। ये भी पढ़े... मजदूर दिवस 2021: जानें क्यों मनाया जाता है यह दिवस, क्या है इसका इतिहास, महत्व और मनाने का तरीका आयुष्मान भारत दिवस: देश के 50 करोड़ लोगों का सहारा बनी आयुष्मान भारत योजना, जानिए क्या हैं इसके लाभ विश्व मलेरिया दिवस : देश में हर साल 15 लाख लोग होते हैं मलेरिया का शिकार, जानें इस बीमारी के लक्षण और बचाव के उपाय विश्व हीमोफीलिया दिवस 2021: शाही बीमारी कहा जाने वाला हीमोफीलिया रोग क्या है? जानें इसके प्रकार और लक्षण Read the full article
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thalassemia / health carehealth fitnessthalassemia treatmentthalassemia symptomscauses of thalassemiaشادی سے پہلے اب آپ کو یہ اہم ٹیسٹ کرانا پڑے گااعلان کر دیا گیاtypes of thalassemiasymptoms of thalassemiathalassemia minor side effectshow to cure thalassemia naturallycauses of thalassemiatypes of thalassemia
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How Long Do Thalassemia Patients Live? And How To Cure It?
Thalassemia is a genetic blood disorder that affects the body's ability to produce healthy red blood cells. The life expectancy of thalassemia patients can vary depending on the type and severity of the condition. With proper medical care, individuals with thalassemia major, the most severe form, can live into their 30s, 40s, or even longer. Those with milder forms, like thalassemia minor, often have a normal life expectancy and may not require extensive treatment. Read more: https://bestbmtindelhi.blogspot.com/2024/08/how-long-do-thalassemia-patients-live.html
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World Thalassemia Day: माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग, जानें क्या है थैलेसीमिया, इसके लक्षण और बचाव
चैतन्य भारत न्यूज हर वर्ष 8 मई को विश्व थैलेसिमिया दिवस (World Thalassemia Day) मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता फैलाना है तथा इसकी रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाना है। बता दें थैलसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है जो लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने की वजह से होती है। यह बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है, इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है। थैलेसीमिया क्या है? आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है। थैलेसीमिया एक स्थायी रक्त विकार (Chronic Blood Disorder) है। यह एक आनुवंशिक विकार है, जिसके कारण एक रोगी के लाल रक्त कणों (RBC) में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है और हर समय किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है। इस बीमारी के मरीजों को जीवित रहने के लिए हर दो से तीन सप्ताह बाद रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। यह बीमारी आनुवांशिक है, रिश्तेदारी के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। बीमारी का जन्म शिशु के साथ होता है, जो उम्रभर साथ नहीं छोड़ती। थैलेसीमिया के प्रकार थैलेसीमिया दो तरह का होता है। माइनर थैलेसीमिया या मेजर थैलेसीमिया. किसी महिला या पुरुष के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है। लेकिन अगर महिला और पुरुष दोनों व्यक्तियों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है। इसके कारण बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने बाद उसके शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है। थैलेसीमिया के लक्षण बार-बार बीमारी होना। सर्दी, जुकाम बने रहना। कमजोरी और उदासी रहना। आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना। शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना। सांस लेने में तकलीफ होना। कई तरह के संक्रमण होना। ऐसे कई तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। थैलेसीमिया का उपचार थैलेसीमिया का इलाज, रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। कई बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। बोन मैरो प्रत्यारोपण से इन रोग का इलाज सफलतापूर्वक संभव है लेकिन बोन मैरो का मिलान एक बेहद मुश्किल प्रक्रिया है। इसके अलावा रक्ताधान, बोन मैरो प्रत्यारोपण, दवाएं और सप्लीमेंट्स, संभव प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी करके भी इस गंभीर रोग का उपचार किया जा सकता है। कैसे करें थैलेसीमिया से बचाव विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जांच कराएं। गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं। मरीज का हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें। समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें। भारत में थैलेसीमिया के आंकड़े भारत दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी है, जिसमें 40 मिलियन थैलेसीमिया वाहक हैं और 1,00,000 से अधिक थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त हैं। इन लोगों को हर महीने रक्त की आवश्यकता होती है। इलाज की कमी के कारण देश भर में 1,00,000 से अधिक मरीज 20 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले मर जाते हैं। भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था। हर साल भारत में थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त 10,000 बच्चे पैदा होते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) थैलेसेमिया सहित आनुवंशिक विकारों से पीड़ित बच्चों को प्रारंभिक जांच और उपचार प्रदान करता हैं। विवाह से पूर्व चिकित्सीय जांच के लिए विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं उपलब्ध हैं। थैलिसीमिया के बारे में अधिक जानकारी जानने के लिए www.nhp.gov.in पर जाएं। ये भी पढ़े... मजदूर दिवस 2020: जानें क्यों मनाया जाता है यह दिवस, क्या है इसका इतिहास, महत्व और मनाने का तरीका आयुष्मान भारत दिवस: देश के 50 करोड़ लोगों का सहारा बनी आयुष्मान भारत योजना, जानिए क्या हैं इसके लाभ विश्व मलेरिया दिवस : देश में हर साल 15 लाख लोग होते हैं मलेरिया का शिकार, जानें इस बीमारी के लक्षण और बचाव के उपाय विश्व हीमोफीलिया दिवस 2020: शाही बीमारी कहा जाने वाला हीमोफीलिया रोग क्या है? जानें इसके प्रकार और लक्षण Read the full article
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World Thalassemia Day: माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग, जानें क्या है थैलेसीमिया, इसके लक्षण और बचाव
चैतन्य भारत न्यूज हर वर्ष 8 मई को विश्व थैलेसिमिया दिवस (World Thalassemia Day) मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य थैलेसीमिया के बारे में जागरूकता फैलाना है तथा इसकी रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाना है। बता दें थैलसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है जो लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने की वजह से होती है। यह बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है, इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने बाद ही हो पाती है। थैलेसीमिया क्या है? आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है। थैलेसीमिया एक स्थायी रक्त विकार (Chronic Blood Disorder) है। यह एक आनुवंशिक विकार है, जिसके कारण एक रोगी के लाल रक्त कणों (RBC) में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है। जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है और हर समय किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है। इस बीमारी के मरीजों को जीवित रहने के लिए हर दो से तीन सप्ताह बाद रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। यह बीमारी आनुवांशिक है, रिश्तेदारी के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। बीमारी का जन्म शिशु के साथ होता है, जो उम्रभर साथ नहीं छोड़ती। थैलेसीमिया के प्रकार थैलेसीमिया दो तरह का होता है। माइनर थैलेसीमिया या मेजर थैलेसीमिया. किसी महिला या पुरुष के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है। लेकिन अगर महिला और पुरुष दोनों व्यक्तियों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है। इसके कारण बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने बाद उसके शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है। थैलेसीमिया के लक्षण बार-बार बीमारी होना। सर्दी, जुकाम बने रहना। कमजोरी और उदासी रहना। आयु के अनुसार शारीरिक विकास न होना। शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना। सांस लेने में तकलीफ होना। कई तरह के संक्रमण होना। ऐसे कई तरह के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। थैलेसीमिया का उपचार थैलेसीमिया का इलाज, रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। कई बार थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। बोन मैरो प्रत्यारोपण से इन रोग का इलाज सफलतापूर्वक संभव है लेकिन बोन मैरो का मिलान एक बेहद मुश्किल प्रक्रिया है। इसके अलावा रक्ताधान, बोन मैरो प्रत्यारोपण, दवाएं और सप्लीमेंट्स, संभव प्लीहा या पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी करके भी इस गंभीर रोग का उपचार किया जा सकता है। कैसे करें थैलेसीमिया से बचाव विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जांच कराएं। गर्भावस्था के दौरान इसकी जांच कराएं। मरीज का हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें। समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा लें। भारत में थैलेसीमिया के आंकड़े भारत दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी है, जिसमें 40 मिलियन थैलेसीमिया वाहक हैं और 1,00,000 से अधिक थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त हैं। इन लोगों को हर महीने रक्त की आवश्यकता होती है। इलाज की कमी के कारण देश भर में 1,00,000 से अधिक मरीज 20 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले मर जाते हैं। भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था। हर साल भारत में थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त 10,000 बच्चे पैदा होते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) थैलेसेमिया सहित आनुवंशिक विकारों से पीड़ित बच्चों को प्रारंभिक जांच और उपचार प्रदान करता हैं। विवाह से पूर्व चिकित्सीय जांच के लिए विभिन्न सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं उपलब्ध हैं। थैलिसीमिया के बारे में अधिक जानकारी जानने के लिए www.nhp.gov.in पर जाएं। ये भी पढ़े... मजदूर दिवस 2020: जानें क्यों मनाया जाता है यह दिवस, क्या है इसका इतिहास, महत्व और मनाने का तरीका आयुष्मान भारत दिवस: देश के 50 करोड़ लोगों का सहारा बनी आयुष्मान भारत योजना, जानिए क्या हैं इसके लाभ विश्व मलेरिया दिवस : देश में हर साल 15 लाख लोग होते हैं मलेरिया का शिकार, जानें इस बीमारी के लक्षण और बचाव के उपाय विश्व हीमोफीलिया दिवस 2020: शाही बीमारी कहा जाने वाला हीमोफीलिया रोग क्या है? जानें इसके प्रकार और लक्षण Read the full article
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