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Matra Pitru Bhakt Shravan Kumar ki kahani : भक्त श्रवण कुमार का नाम इतिहास में मातृभक्ति और पितृभक्ति के लिए अमर रहेगा । उसके माँ - बाप अंधे थे ।
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Prerak Kahani
#कहानी: #गुरु का स्थान, #श्रेष्ठ!
#एक #राजा को #पढने लिखने का बहुत शौक था। एक बार उसने #मंत्री-परिषद् के #माध्यम से अपने लिए एक #शिक्षक की व्यवस्था की। शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा। राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ। गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस #शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था। राजा बड़ा परेशान, गुरु की #प्रतिभा और #योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही #प्रसिद्द और #योग्य #गुरु थे। आखिर में एक दिन #रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का #जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये।
राजा ने एक दिन हिम्मत करके #गुरूजी के सामने अपनी #जिज्ञासा रखी, हे #गुरुवर #क्षमा कीजियेगा, मैं कई महीनो से आपसे #शिक्षा #ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई #लाभ नहीं हो रहा है। ऐसा क्यों है ?
गुरु जी ने बड़े ही #शांत स्वर में जवाब दिया, #राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…
गुरुवर #कृपा कर के आप #शीघ्र इस #प्रश्न का #उत्तर #दीजिये, #राजा ने विनती की।...
... *पूरी कहानी #पढ़ने के लिए नीचे दिए #लिंक पर #क्लिक करें* 👇
📲 https://www.bhaktibharat.com/prerak-kahani/guru-ka-sthan-shreshth
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दृष्टि दान-hindi story| hindi kahaniyan | रबिन्द्रनाथ टैगोर की श्रेष्ठ कहानी :सुना है कि आजकल बहुत - सी भारतीय लड़कियों को अपनी कोशिश से अपने लिए पति
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कहानी पोस्टमास्टर | रबीन्द्रनाथ टैगोर की श्रेष्ठ कहानियां :- टैगोर की श्रेष्ठ कहानियां रबीन्द्रनाथ ठाकुर बंगला साहित्य में कहानियों के प्रणेता माने
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कहानी व्यवधान-रबीन्द्रनाथ टैगोर की श्रेष्ठ कहानियां रवीन्द्रनाथ ठाकुर( 7 मई सन 1861) बंगला साहित्य में कहानियों के प्रणेता माने जाते हैं । व्यवधान
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Prerak Kahani
#कहानी: #गुरु का स्थान, #श्रेष्ठ!
#एक #राजा को #पढने लिखने का बहुत शौक था। एक बार उसने #मंत्री-परिषद् के #माध्यम से अपने लिए एक #शिक्षक की व्यवस्था की। शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा। राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ। गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस #शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था। राजा बड़ा परेशान, गुरु की #प्रतिभा और #योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही #प्रसिद्द और #योग्य #गुरु थे। आखिर में एक दिन #रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का #जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये।
राजा ने एक दिन हिम्मत करके #गुरूजी के सामने अपनी #जिज्ञासा रखी, हे #गुरुवर #क्षमा कीजियेगा, मैं कई महीनो से आपसे #शिक्षा #ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई #लाभ नहीं हो रहा है। ऐसा क्यों है ?
गुरु जी ने बड़े ही #शांत स्वर में जवाब दिया, #राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…
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राजा ने एक दिन हिम्मत करके #गुरूजी के सामने अपनी #जिज्ञासा रखी, हे #गुरुवर #क्षमा कीजियेगा, मैं कई महीनो से आपसे #शिक्षा #ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई #लाभ नहीं हो रहा है। ऐसा क्यों है ?
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