#pramatma kabir hi hai
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773946 · 29 days ago
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#दीपावली_मनाने_का_सही_तरीका
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sprasadsworld · 2 years ago
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Sansar ke sare pavitra grantho se parmanit hai ki purn pramatma kabir saheb hi hain.
💎मगहर में हुआ अद्भुत चमत्कार💎
गीता अध्याय 2 श्लोक 17 तथा क़ुरान शरीफ सूरह अल फुरकान 25 आयत 58 अविनाशी परमात्मा की ओर संकेत करती है।
आखिर कौन है वो अविनाशी परमात्मा जिसका कभी नाश नहीं होता, अर्थात मृत्यु नहीं होती तथा कहां प्रमाण है, क्या आधार है?
कविर्देव( कबीर परमेश्वर) ही वास्तव में पूर्ण परमात्मा हैं जो अविनाशी हैं। कबीर साहेब चारों युगों में आते हैं, माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। सतलोक से सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं। कलयुग में ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) को काशी में कमल के पुष्प पर प्रकट हुए तथा माघ मास की शुक्ल एकादशी वि.सं.1575 सन् 1518 को मगहर से सशरीर सतलोक गये।
कबीर साहेब ने पाखण्डवाद पर गहरा प्रहार किया, कुप्रथाओं का घोर विरोध किया, सबको मानवता के एक सूत्र में पिरोया जिस कारण से हिन्दू और मुसलमानों के धर्मगुरु परमात्मा को न पहचान कर उनका विरोध करने लगे।
नकली ब्राह्मणों ने एक ग़लत धारणा बना रखी थी कि काशी में मरने वाला स्वर्ग तथा मगहर में मरने वाला नर्क में जाता है। इसी भ्रम को दूर करने के लिए कबीर परमेश्वर मगहर आये और स्वर्ग से भी उच्च स्थान सतलोक गये। जब पंडितों ने अपने पतरे खोले तो आश्चर्यचकित रह गये।
क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा।
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा।।
कबीर परमात्मा तीन ताप को भी काट देता है।
काशी से मगहर में पहुंचते ही परमात्मा कबीर जी ने जब बहते पानी में स्नान करने की इच्छा जताई तो बिजली खां ने कहा कि यहां एक आमी नदी है जो शिवजी के श्राप से सूखी हुई है। परमात्मा कबीर जी ने नदी के किनारे पर पहुंचकर इशारे से वर्षों से सूखी नदी में जल प्रवाहित कर दिया।
1518 में कबीर साहेब ने मगहर से सशरीर सतलोक जाते समय हिन्दू - मुसलमानों के बीच होने वाले भयँकर युद्ध को टाल दिया था, तथा सबको आपस में मिलकर रहने की प्रेरणा की।
जब कबीर साहेब के अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुसलमानों में विवाद बन रहा था कि हम अपनी रीति से कबीर साहेब का अंतिम संस्कार करेंगे। तब कबीर परमेश्वर ने कहा कि एक चद्दर नीचे बिछाओ, एक मैं ऊपर ओढ़ूँगा, जो वस्तु मिले उसे आधा-आधा बांट लेना, लड़ना मत। थोड़ी देर बाद आकाशवाणी हुई कि "उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा।"
चद्दर उठाई तो शव के स्थान पर सुगंधित फूलों का ढेर मिला। जहाँ हिन्दू और मुसलमानों के बीच कत्लेआम होने वाला था, परमात्मा की दया से दोनों धर्म के लोग आपस गले लगकर रोने लगे। कहने लगे कि हमने परमात्मा को नहीं पहचाना।
मलूक दास जी ने कहा है:-
काशी तज गुरु मगहर गए, दोऊ दीन के पीर।
कोई गाड़ै कोई अग्नि जलावै, नेक न धरते धीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
धर्मदास जी ने कबीर साहेब की महिमा लिखी है:-
हिन्दू के तुम देव कहाये, मुसलमान के पीर।
दोनो दीन का झगड़ा छिड़ गया, टोहे न पाये शरीर।।
कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
हिन्दू-मुस्लिम भाइचारे के प्रतीक के तौर पर याद किए जाने वाले कबीर साहेब धार्मिक सामंजस्य की जो विरासत छोड़कर गए हैं, उसे मगहर में आज भी जीवंत रूप में देखा जा सकता है।
मगहर में जहाँ कबीर जी सहशरीर सतलोक गए थे, वहा�� अब यादगार बना दिया गया है।
आज कबीर साहेब के अवतार संत रामपाल जी महाराज समाज को वहीं संदेश दे रहे हैं जो कबीर साहेब ने 600 वर्ष दिया। पाखण्डवाद, कुप्रथाएं मिटाकर सत्य ज्ञान की अलख जगा रहे हैं। जातिवाद, साम्प्रदायिकता, नशाखोरी, भ्रष्टाचार समाप्त कर स्वच्छ समाज का निर्माण कर रहे हैं।
#कबीरसाहेब_की_मगहर_लीला
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