मटकी पुर के अंजनी दुबे और चैटजीपीटी
#Blog मटकी पुर के अंजनी दुबे और चैटजीपीटी
ग्रामीण जीवन को - अगर लोग मेहनती हैं - एआई बेहतर ही बनायेगा। उनके काम को अपग्रेड करेगा और शहराती लोगों से कहीं बेहतर तरीके से वे जी सकेंगे। अंजनी कुमार का भविष्य बेहतर ही होगा।
दो बिल्कुल अलग अलग बातें कैसे एक दूसरे से जुड़ जाती हैं। पहली है वाशिंगटन पोस्ट की खबर। एक महिला की नौकरी स्टोरी राइटिंग की थी। काम ठीक चल रहा था। तब पिछली साल नवम्बर में चैट जीपीटी आया। एक बारगी उसे लगा कि कहीं उसका काम चैट जीपीटी को तो नहीं मिल जायेगा। पर उसे कम्पनी में एश्योरेंस मिला कि ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन स्थितियां (तेजी से) बदलती गयीं। उसके सहकर्मी दबी जुबान में मजाक करने लगे। उसके नाम…
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मड़ैयाँ डेयरी का एक चरित्र
#Blog मड़ैयाँ डेयरी का एक चरित्र
साधारण सा आदमी। उसकी सफेद कमीज साफ नहीं है। बांई ओर की जेब फटी है और उसे सिलने के लिये जो धागा उसने या उसकी पत्नी ने इस्तेमाल किया है, वह सफेद नहीं किसी और रंग का है। उसके बाल बेतरतीब हैं...
पारा चालीस के पार चल ही रहा है। दो तीन दिन से तो चव्वालीस से पार है। परसों छियालीस था। घर में स्टेशनरी साइकिल झाड़-पोंछ कर तैयार की गयी है। कोशिश की जायेगी कि कमरे में ही साइकिल चलाई जाये और घर के अंदर ही पैदल चला जाये।
उर्दू मुझे नहीं आती, पर उसकी टांग तोड़ कर लिखा जाये तो गर्मी बाहर-ए-नाबर्दाश्त है। बाहर निकलते ही झुलसने लगता है शरीर।
अशोक – वाहन चालक – को कहा है कि देर से आने की बजाय आठ बजे तक…
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मड़ैयाँ डेयरी का दूध कलेक्शन सेण्टर और लड़कियां
#Blog - मड़ैयाँ डेयरी का दूध कलेक्शन सेण्टर और लड़कियां
उनके पहनावे में भी बदलाव है। सलवार कुरता की बजाय टॉप और जींस दिखते हैं। दूध सेण्टर पर देने के बाद ये लड़कियां घर पर काम भी करती होंगी और पढ़ाई भी करती होंगी। अनपढ़ जैसी तो नहीं ही हैं।
मुझे गांव में शिफ्ट हुये सात साल हो गये हैं। जब आया था तब खेतों में झुण्ड बना कर काम करती लड़कियां दिखती थीं। पर साइकिल ले कर स्कूल जाती नहीं। अब वे बहुत संख्या में नजर आती हैं। बारह से सोलह साल की लड़कियां।
अब सवेरे छ बजे दूध डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर लड़कियों को आते देखता हूं। चार किमी दूर से भी साइकिल चला कर अकेले, बर्तनों में दूध लियी आती हैं।
लड़कियों के आत्मविश्वास के स्तर में भी गजब का…
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दूध कलेक्शन सेण्टर और उमा शंकर यादव
#Blog दूध कलेक्शन सेण्टर और उमा शंकर यादव
उमाकांत जी से 2-3 मिनट की बातचीत मुझे भीषण डिस्टोपियन भाव से ग्रस्त कर देती है। आम आदमी का कोई धरणी-धोरी नहीं है। सरकारें आती-जाती हैं। शिलिर शिलिर परिवर्तन होते हैं। रामराज्य कभी आयेगा? शायद नहीं...
मैं मडैयाँ डेयरी से दूध खरीद कर निकला तो बाहर उन सज्जन को नाली की मुंडेर पर बैठे अखबार पढ़ते पाया। अखबार भी शायद डेयरी वालों का होगा। उनका दूध का बर्तन/बाल्टा लाइन में लगा होगा और वे अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुये अखबार पढ़ ले रहे थे।
बाहर उन सज्जन (उमाकांत यादव) को नाली की मुंडेर पर बैठे अखबार पढ़ते पाया।
मैने पूछा – कितनी देर हो गयी इंतजार करते?
बताया करीब पच्चीस मिनट। समय से आ जायें – जल्दी…
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मंगत यादव, भैंस का दूध और अमूल
#Blog मंगत यादव, भैंस का दूध और अमूल
"इहै तो गलत करत रहे। अमूल का तो कभी न लेना चाहिये। वह तो खूब घोल कर दूध में से ताकत खींच लेता है। बचा दूध जो देता है, उसमें कौन सेहत बनेगी?" - मंगत जी ने वह ज्ञान मुझे दिया जो अमूमन गांवदेहात में चल जाता है।
पहले पहल मंगत यादव मंगत यादव मिले थे तो कहा था – गाय का दूध लिया करें, भैंस के दूध से बुद्धि मोटी हो जाती है। वे खुद डेयरी सेण्टर पर अपनी भैंसों का दूध ले कर आते हैं। उनकी उम्दा क्वालिटी के दूध के कारण दाम अच्छे मिलते हैं उन्हें। हम लोग लगभग एक ही समय पंहुचते हैं तो बहुधा उनका ही दूध मेरे लिये उपलब्ध होता है। वे ग्वाला हैं, डेयरी के पटेल जी आढ़तिया और मैं उपभोक्ता।
आज यह बात चलने पर कि मुझे…
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सुकुआर हो गये हैं लोग। कुल्ला करने भी मोटर साइकिल से जाते हैं।
#Blog सुकुआर हो गये हैं लोग। कुल्ला करने भी मोटर साइकिल से जाते हैं।
"सुकुआर (नाजुक) हो गये हैं लोग। अब मेहनत नहीं करते। अब यह हाल है कि कुल्ला करने (खेत में हगने) भी मोटर साइकिल से जाने लगे हैं। ट्रेक्टर से खेती करते हैं। वह भी आलस से।
मिश्री पाल पर पोस्ट 2016 में लिखी थी। उसके बाद अब मड़ैयाँ डेयरी पर मिलना हो रहा है आजकल। चौदह अप्रेल को मिले थे। उनपर लिखा भी था। आज फिर मिले। कुर्सी पर बैठे थे। मुझे देख कुर्सी मेरे लिये खाली कर दी और बगल में पशु आहार की बोरी पर बैठ गये।
मैंने उनसे यूं ही पूछा – उनके बैल अब कैसे हैं? उनसे खेती कर रहे हैं लोग?
फरवरी 2016 की पोस्ट में है कि उनके पास दो बैल थे और लोग किराये पर ले जाते थे खेती के…
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आज की सुबह
#Blog आज की सुबह
घर पर आते आते थक जाता हूं मैं। एक कप चाय की तलब है। पत्नीजी डिजाइनर कुल्हड़ में आज चाय देती हैं। लम्बोतरा, ग्लास जैसा कुल्हड़ पर उसमें 70 मिली लीटर से ज्यादा नहीं आती होगी चाय। दो तीन बार ढालनी पड़ती है।
दूध लाना होता है। अखब���र लाना होता है। यह काम न भी करूं तो चल सकता है। वाहन चालक अशोक नौ बजे आता है। उससे दूध मंगाया जा सकता है। अखबार तो दर्जनो मिलते हैं मेग्जटर पर। पर नहीं, सवेरे पौने पांच बजे उठ कर घण्टे भर में साइकिल निकाल दूध की डेयरी जाना है। साइकिल चलाने का व्यायाम तो करना ही है।
कल परिवार चला गया है प्रयागराज। तो दूध कम लेना है। दो ही आदमी हैं अब हम। एक लीटर बहुत होगा। आगे बढ़ कर अखबार…
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गाई क ल, भैंसिया से बुद्धी मोटि होई जाये!
#Blog गाई क ल, भैंसिया से बुद्धी मोटि होई जाये!
देश की डेयरियां और लोग भैंस के दूध की बदौलत चल रहे हैं। अमूल - जो विश्व के बीस सबसे बड़ी डेयरियों में है; भैंस के दूध के बल पर है। अगर भैंस का दूध बुद्धि कुंद करता है तो अमूल को ब्लैकलिस्ट कर देना चाहिये।
सवेरे छ बजे भी सात आठ लोग थे कलेक्शन सेण्टर पर दूध देने के लिये। वजन लेने के प्लेटफार्म पर भी 50-60 लीटर दूध था कैन-कण्डाल में। लोग और जल्दी आना शुरू हो गये हैं। सूर्योदय अब पौने छ से पहले होने लगा है।
पिण्टू दूध का फैट नाप रहा था लेक्टो-स्कैनर से। उसने मुझे इंतजार करने को कहा। गाय के दूध वाले ग्राहक चल रहे थे। मुझे भैंस वाला लेना था।
कलेक्शन सेण्टर पर लोग और जल्दी आना शुरू हो गये हैं। सूर्योदय…
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ईंटवाँ के मऊ यादव
मडैयाँ डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर मैं सवेरे नौ बजे के आसपास दूध लेने जाता हूं। बहुत कुछ उस तरह जैसे सवेरे अपने बंसी-कांटा लिये लोग गंगा किनारे जाते हैं। वे वहां त्राटक साध कर मछली पकड़ते हैं और मैं डेयरी की गहमागहमी, लोगों की चेंचामेची में ब्लॉग लिखने के विषय और चरित्र तलाशता हूं। मेरे लिये मेरे स्मार्ट फोन और फीचर फोन मेरे बंसी-कांटा हैं। वहां के चरित्र और उनकी बातचीत मेरे लिये मछलियाँ हैं।…
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डेयरी से परिवर्तन, अजय दुबे, मटकीपुर
#Blog डेयरी से परिवर्तन, अजय दुबे, मटकीपुर
आज के चरित्र थे अजय दुबे। वे 5-7 अलग अलग पशुओं का दूध डिब्बों में ले कर आये थे। सब की पर्चियां एक साथ निकलीं। एक मीटर लम्बा था प्रिण्ट आउट। सब पर अंकित मूल्य को मैंने जोड़ा तो नौ सौ- हजार के आसपास निकला।
अजय पटेल की मडैयाँ डेयरी दूध कलेक्शन सेण्टर पर भीड़ बढ़ती जा रही है। अब आसपास के ही नहीं, दूर से भी पशुपालक अपना दूध देने आते हैं। हर रोज नये नये चरित्र मिलते हैं। हर एक के बारे में लिखा जाये तो एक डेयरी चरित सागर ग्रंथ रचा जा सकता है।
वहां भीड़ होने के कारण मुझे प्रतीक्षा भी करनी होती है। वह खलती नहीं। दूध ले कर आये लोगों को देखना एक अनूठा अनुभव है।
आज के चरित्र थे अजय दुबे। वे पांच सात अलग अलग…
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मडैयाँ डेयरी और जंगला के संतोष यादव
ब्लॉग:- जंगला के संतोष यादव
संतोष सवेरे चार बजे उठते हैं। अपने घर के गाय गोरू की देखभाल करते और दुधारू पशुओं को दुहने के बाद अपने गांव के करीब 35-40 भैंसों-गायों को दुहते हैं।
[...] दुहने में लगी मेहनत से उनकी उंगलियों की बनावट ही बदल गयी है।
मडैयाँ डेयरी पर दूध लेने जाता हूं मैं। रोज। आम तौर पर बहुत भीड़ रहती है। सवेरे सात बजे से दस बजे तक 150 से ऊपर दूध के सेम्पल ले कर किसानों, पशुपालकों से दूध लेते हैं मड़ैयाँ डेयरी के अजय और सुभाष। एक सेम्पल में लगभग एक मिनट का समय लगता है। सेम्पल लेने, उसे मिक्स करने और लैक्टोस्कैन कर उसके फैट के आधार पर उसकी स्लिप निकालने और किसान को कैश में दाम देने में एक मिनट तो कम से कम लगते ही हैं। सिर उठाने…
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