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कर्म बंधन से कैसे मुक्त हों? | पाप और पुण्य से मुक्ति का मार्ग |
इस अध्याय में अर्जुन अपने सम्मुख उत्पन्न स्थिति का सामना करने में स्पष्ट रूप से अपनी असमर्थता को दोहराता है और युद्ध करने के अपने कर्तव्य का पालन करने से मना कर देता है। तत्पश्चात वह औपचारिक रूप से श्रीकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाने और जिस स्थिति में वह स्वयं को पाता है, उसका सामना करने के लिए उचित मार्गदर्शन प्रदान करने की प्रार्थना करता है। परम प्रभु उससे कहते हैं कि आत्मा, जो शरीर के नष्ट होने पर भी नहीं मरती, के अमरत्व की शिक्षा देकर दिव्य ज्ञान प्रदान करते हैं। आत्मा एक जन्म से दूसरे जन्म में उसी प्रकार से शरीर परिवर्तित करती है जिस प्रकार से मनुष्य पुराने वस्त्र त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है। इसके प��्चात श्रीकृष्ण सामाजिक दायित्त्वों के विषय की ओर आगे बढ़ते हैं। वे अर्जुन को स्मरण कराते हैं कि धर्म की मर्यादा हेतु योद्धा के रूप में युद्ध लड़ना उसका कर्त्तव्य है। वे स्पष्ट करते हैं कि किसी के द्वारा अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन करना एक पुण्य का कार्य है जो स्वर्ग जाने का द्वार खोलेगा किन्तु कर्त्तव्यों से विमुख होने से केवल तिरस्कार और अपयश प्राप्त होगा। लौकिक स्तर पर अर्जुन को प्रेरित करने के पश्चात श्रीकृष्ण गहनता के साथ कर्मयोग के ज्ञान पर प्रकाश डालते हैं। वे अर्जुन को फल की आसक्ति के बिना निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। फल की कामना से रहित कर्म करने के विज्ञान को वे 'बुद्धियोग' या 'बुद्धि का योग' नाम देते हैं। बुद्धि का प्रयोग मन को कर्मफल की लालसा करने से रोकने के लिए करना चाहिए। इस चेतना के साथ सम्पन्न किए गए कर्म 'बंधनयुक्त कर्मों' से 'बंधन मुक्त कर्मों' में परिवर्तित हो जाते हैं। अर्जुन दिव्य चेतना में स्थित मनुष्य के लक्षणों के संबंध में जानना चाहता है। श्रीकृष्ण उसे बताते हैं कि किस प्रकार से दिव्य चेतना में स्थित होकर मनुष्य आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त हो जाता है और सभी परिस्थितियों में उसकी इन्द्रियाँ उसके वश में हो जाती हैं और उसका मन सदा के लिए भगवान की भक्ति में तल्लीन हो जाता है। अब वे क्रमानुसार स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार से मानसिक संताप, काम-वासना और लोभ विकसित होता है और किस प्रकार से इनका उन्मूलन किया जा सकता है।
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श्रीमद भगवद गीता सार | अध्याय 1 | Part- 12 | संपूर्ण गीता | Bhagawad Gee...
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श्रीमद भगवद गीता सार | अध्याय 1 | Part- 13 | संपूर्ण गीता | Bhagawad Gee...
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श्रीमद भगवद गीता सार | अध्याय 1 | Part- 14 | संपूर्ण गीता | Bhagawad Gee...
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रश्मि रथी का अद्भुत प्रसंग | Rashmirathi | पाडंव लौटे वन से | रश्मि थी |
रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाओं में 'कुरुक्षेत्र', 'उर्वशी', 'रश्मिरथी', 'चक्रव्यूह', 'संस्कृति के चार अध्याय', 'लोकदेव नेहरू' आदि प्रमुख हैं. साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उन्होंने लेखन किया. दिनकर की कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश, क्रान्ति और कोमल शृंगारिक भावनाएं का बहुत ही खूबसूरत संयोजन देखने को मिलता है #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil
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श्रीमद भगवत गीता सार- अध्याय 18 |Shrimad Bhagawad Geeta With Narration |...
श्रीमद भगवत गीता सार- अध्याय 18 |Shrimad Bhagawad Geeta With Narration |Chapter 18 | Shahaji Pati lगीता का उद्देश्य ही परमात्मा के ज्ञान, आत्मा के ज्ञान और सृष्टि विधान के ज्ञान को स्पष्ट करना है। गीता वास्तव में चरित्र निर्माण का सबसे बड़ा और उत्तम शास्त्र है। इसके माध्यम से भगवान ने कहा है कि चरित्र कमल पुष्प समान संसार में रहकर और श्रेष्ठ कर्मों से बनेगा कि घर-बार छोड़ने और कर्म संन्यास क्रियाएं करने से। eetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil
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मनुष्य को अपने हर कर्म का फल अवश्य मिलता है | Shree Krishna | Geeta Updesh
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मनुष्य को अपने किए गए हर कर्म का फल अवश्य मिलता है: कर्मों का फल इस जन्म या अगले जन्म में मिलता है. अच्छे कर्म करने से सुख और आनंद मिलता है, जबकि बुरे कर्म करने से दुख और पीड़ा मिलती है. कर्मों का फल मिलने की प्रक्रिया को कर्म फल कहते हैं. कर्मों का निर्माण हमारे विचार, बातें, और कामों से होता है. कर्मों का फल मिलने के लिए जितना कर्म करना चाहिए, उतना नहीं किया होता, तो फल नहीं मिलता. कर्मों का फल मिलने का समय अलग-अलग होता है. कुछ कर्मों का फल तुरंत मिल जाता है, तो कुछ का कुछ समय बाद. कर्मों का फल मिलने के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन". इसका मतलब है कि कर्म करने का अधिकार सभी को है, लेकिन फल भगवान की इच्छा से मिलते हैं #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil मनुष्य को अ��ने हर कर्म का फल अवश्य मिलता है | Shree Krishna | Geeta Updesh संपूर्ण गीता सार | Shrimad Bhagwat Geeta Saar |
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श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग | बुद्धि का उपयोग |
गीता में योग शब्द को एक नहीं बल्कि कई अर्थों में प्रयोग हुआ है, लेकिन हर योग अंतत: ईश्वर से मिलने मार्ग से ही जुड़ता है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। गीता में योग के कई प्रकार हैं, लेकिन मुख्यत: तीन योग का वास्ता मनुष्य से अधिक होता है। ये तीन योग हैं, ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। महाभारत युदध् के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातों में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को बताया था कि जीवन में सबसे बड़ा योग कुछ है तो वह है, कर्म योग। उन्होंने बताया था कि कर्म योग से कोई भी मुक्त नहीं हो सकता, वह स्वयं भी कर्म योग से बंधे हैं। कर्म योग ईश्वर को भी बंधन में बांधे हुए रखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि भगवान शिव से बड़ा तपस्वी कोई नहीं हैं और वह कैलाश पर ध्यान योग मुद्रा में लीन रह��े हैं। श्रीकृष्ण योग ने अर्जुन को 18 प्रकार के योग मुद्रा के बारे में जानकारी देकर उनके मन के मैल को साफ किया था। क्या हैं ये 18 योग मुद्राएं? गीता में उल्लेखित श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को आइए हम भी जानें। #motivation #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil संपूर्ण गीता सार | Shrimad Bhagwat Geeta Saar | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग | बुद्धि का उपयोग |
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श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग |सचेतन समता |
गीता में योग शब्द को एक नहीं बल्कि कई अर्थों में प्रयोग हुआ है, लेकिन हर योग अंतत: ईश्वर से मिलने मार्ग से ही जुड़ता है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। गीता में योग के कई प्रकार हैं, लेकिन मुख्यत: तीन योग का वास्ता मनुष्य से अधिक होता है। ये तीन योग हैं, ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। महाभारत युदध् के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातों में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को बताया था कि जीवन में सबसे बड़ा योग कुछ है तो वह है, कर्म योग। उन्होंने बताया था कि कर्म योग से कोई भी मुक्त नहीं हो सकता, वह स्वयं भी कर्म योग से बंधे हैं। कर्म योग ईश्वर को भी बंधन में बांधे हुए रखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि भगवान शिव से बड़ा तपस्वी कोई नहीं हैं और वह कैलाश पर ध्यान योग मुद्रा में लीन रहते हैं। श्रीकृष्ण योग ने अर्जुन को 18 प्रकार के योग मुद्रा के बारे में जानकारी देकर उनके मन के मैल को साफ किया था। क्या हैं ये 18 योग मुद्राएं? गीता में उल्लेखित श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को आइए हम भी जानें। #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil संपूर्ण गीता सार | Shrimad Bhagwat Geeta Saar | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग |सचेतन समता |
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श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग | बुद्धि का उपयोग |
संपूर्ण गीता सार | Shrimad Bhagwat Geeta Saar | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग | बुद्धि का उपयोग | गीता में योग शब्द को एक नहीं बल्कि कई अर्थों में प्रयोग हुआ है, लेकिन हर योग अंतत: ईश्वर से मिलने मार्ग से ही जुड़ता है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। गीता में योग के कई प्रकार हैं, लेकिन मुख्यत: तीन योग का वास्ता मनुष्य से अधिक होता है। ये तीन योग हैं, ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। महाभारत युदध् के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातों में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को बताया था कि जीवन में सबसे बड़ा योग कुछ है तो वह है, कर्म योग। उन्होंने बताया था कि कर्म योग से कोई भी मुक्त नहीं हो सकता, वह स्वयं भी कर्म योग से बंधे हैं। कर्म योग ईश्वर को भी बंधन में बांधे हुए रखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि भगवान शिव से बड़ा तपस्वी कोई नहीं हैं और वह कैलाश पर ध्यान योग मुद्रा में लीन रहते हैं। श्रीकृष्ण योग ने अर्जुन को 18 प्रकार के योग मुद्रा के बारे में जानकारी देकर उनके मन के मैल को साफ किया था। क्या हैं ये 18 योग मुद्राएं? गीता में उल्लेखित श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को आइए हम भी जानें। #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil
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KARMA YOGA (कर्म योग) | CONVERSATION OF KRISHNA & ARJUN | KRISHNA JANMAS... गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को फल की इच्छा छोड़कर कर्म पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे फल भी उसी के अनुरूप मिलता है। इसलिए व्यक्ति को अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। श्रीकृष्ण के अनुसार व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता, इसलिए स्वयं का आकलन करना बेहद जरूरी है #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil
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भगवान श्रीकृष्ण से सीखें जीवन के मंत्र |Learnings from Lord Shri Krishna...
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