#kadaknathcontractfarming
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wingsgrowllp · 4 years ago
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Benefits of Kadaknath Chicken or Black Meat Chicken
1- कड़कनाथ (Kadaknath)माँस की माँग देश के अलावा विदेशो मे बहुत ज्यादा होने के  कारण एक अच्छा व्यापार युवाओं के लिए उपलब्ध कराता है| 2- ओरिजनल कड़कनाथ माँस में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है और वसा न के बराबर होता है इसीलिए  इसको  सभी खिलाडियों को खाने की सलाह दी जाती है |
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  3- कड़कनाथ माँस के सेवन से न केवल  शारीरिक वृद्धि बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है और अनेकों बीमारियों से बचा जा सकता है 4- कड़कनाथ होम्योपेथी चिकित्सा और तंत्रिका विकार में विशेष औषधि का काम करता है और आदिवासी लोग इसके रक्त से पुरातन और चिरकालीन गंभीर रोगों के इलाज करते है| 5- मनुष्य इसके मांस  का उपयोग कामोत्तेजक के रूप में लैंगिक ताकत बढ़ाने के लिए प्रयोग करते है|
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wingsgrowllp · 4 years ago
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Method of giving grains and water in Kadaknath Chick
पानी देने का तरीका- पानी हमेशा साफ़ व ताज़ा पिलाना चाहिए| पानी देने से पूर्व पानी के बर्तन को हमेशा निरमा से स्वच्छ कर लेना चाहिए तत्पश्चात बर्तन धूप में सुखा कर साफ़ कपड़े से पोंछकर फिर ताज़ा पानी लगाना चाहिए| पानी में विटामिन या कोई भी अन्य दवा देना हो तो, सुबह के समय पहले पानी में देना चाहिए| दवाइयां पिलाने के लिए कम पानी का उपयोग करना चाहिए| जिससे कि दवायुक्त  पूरा पानी चूजे पी सके| दवायुक्त पानी  समाप्त हो जाने के बाद सादा पानी लगा देना चाहिए|
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दाना देने का तरीका:- दाना देने से पूर्व दाने के बर्तनों की सफाई आवश्यक रूप से कर लेना चाहिए एवं दाना फीडरों में इतना भरना चाहिए कि दाना गिरने न पायें| दाना भरने के बर्तनों को सप्ताह में दो बार निरमा या ब्लीचिंग से अवश्य धोना चाहिए| प्रत्येक दो घंटे में दाना डालना चाहिए या तो फीडरों में खाली हाथ चलाना चाहिए ताकि दाने में जो पाउडर हो वह भी दाने के बड़े टुकड़ों के साथ उठता (खपत) जाए क्योंकि दाने में जो पाउडर होता है,आवश्यक तत्व उसी में अधिक मात्रा में पाये जाते है|
दाना मिलाने का तरीका- यदि दाने में कोई दवा मिलाना हो तो दवा की सही मात्रा तौलकर पहले थोड़े से दाने में मिला लेना चाहिए| इसके बाद दवा मिले हुए दाने को, जितने दाने में मिलाना हो उसके ऊपर बुरक लेना चाहिए बुरकते समय ध्यान रखना चाहिए कि दवा मिले दाने का पाउडर न उड़ने पाये नहीं तो दवा की मात्रा भी उड़ जायेगी| इसके लिए सावधानी पूर्वक दाने में दवा मिलानी चाहिए| दाने में दवा का बुरकाव कर लेने के बाद दाने के ढेर को फावड़े की सहायता से पहले दो बार मिलाना चाहिए| इसके बाद फावडे को घुमा-घुमा कर दाना मिक्स करना चाहिए मिक्स दाने को खुला नहीं छोड़ना चाहिए इसे पुन: बोरे में भरकर रखना चाहिए| दाना मिलते समय यह देखना आवश्यक है कि दाने में नमी, फफूंद आदि तो नहीं है यदि है तो ऐसे दाने का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए या नमी युक्त ढेलों को छानकर अलग कर लेना चाहिए एवं दाने को सुखा लेना चाहिए| ध्यान रहे नमी युक्त  ढेले, दाने में मिक्स नहीं करना चाहिए| मुर्गी व्यवसाय में हमेशा अच्छा दाना , अच्छी दवा , अच्छा पानी, अच्छे चूजों का उपयोग करना चाहिए| मुर्गियों के लिए उपयोग में लाने वाला देना अधिक दिनों तक तैयार करके नहीं रखना चाहिए क्योंकि इसमें विषाक्त पदार्थ बनने लगते है जो कि मुर्गियों के लिए हानिकारक है|
दाना रखने में सावधानियां: 1. दाना हमेशां सूखी व् साफ़ जगह पर रखना चाहिए 2. दाने को लकड़ी के तख्ते के ऊपर रखना चाहिए ताकि दाने में नमी का प्रभाव न पड़ सके| 3. लकड़ी के तख्ते को दीवार से थोड़ा दूर रखना चाहिए 4. आवश्यकता से अधिक स्टॉक नहीं करना चाहिए 5. दाना गोदाम में पुराने बोरे या पुराना दाना नही रखना चाहिए 6. दाना के गोदाम में बिजली बोर्ड या बिजली के तार खुले नहीं छोड़ना चाहिए|
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wingsgrowllp · 4 years ago
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Kadaknath Brooding Management
ब्रूडिंग व्यवस्था चूजों के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है| क्योकि ब्रूडिंग में ही पक्षी का भविष्य, उत्पादन एवं लाभ व हानि निर्धारित होती है| इसलिए ब्रूडिंग का सही प्रबंधन पहले दिन से लेकर 4-6 सप्ताह तक की आयु तक में करना चाहिए| जब तक की चूजा  अपने आप में सक्षम नहीं हो जाता है तब तक उन्हें सेयना पड़ता है|ब्रूडिंग का समय कड़कनाथ पालन के लिए बहुत ��ठिन होता है| यदि कुक्कुट पालक ब्रूडिंग के समय सही व्यवस्था नहीं कर पाता तो चूजों के मरने की संख्या प्रथम सप्ताह में ही 7 से 10 प्रतिशत हो जाती है|
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ब्रूडर क्या है:- यह अधिकतर बांस की टोकनी या चद्दर का बना होता है|जो चूजों को गर्मी प्रदान करता है, इन ब्रूडरो में 100 से 200 वाट के बल्ब लगे रहते है जिनके जलने से गर्मी पैदा होती है जो चूजों के लिए ठण्ड के दिनों में आवश्यक है| ब्रूडरों की ऊंचाई प्रथम सप्ताह में 6 से 10 इंच तक होनी चाहिए| स्थिति अनुसार ऊंचाई घटाई एवं बढ़ाई जा सकती है| चिक गार्ड:- यह चद्दर या कार्ड बोर्ड का बना होता है| इसकी ऊंचाई लगभग 1 फीट से 1.5 फिट तक होती है तथा पट्टी की लम्बाई 8 फिट से 10 फिट तक होती है| चिक गार्ड को ब्रूडर से 25- 30 इंच की  दूरी से घेर देना चाहिए| वातावरण के मुताबिक इसकी ऊंचाई घटाई एवं बढ़ाई जा सकती है| ब्रूडर के बाहर  चिक गार्ड के अंदर दाने एवं पानी के बर्तन लगा देना चाहिए|  6 से 10 दिन के अंदर ब्रूडर की ऊंचाई बढ़ा देना चाहिए एवं चिक गार्ड की आवश्यकता न हो तो निकल कर अलग कर देना चाहिए या दो चिक गार्ड मिलाकर एक कर देना चाहिए| गर्मी के दिनों में 1-2 वाट बिजली प्रति चूजे के लिए पर्याप्त होती है लेकिन ठंडी के दिनों में 4-5 वाट बिजली की खपत प्रति चूजों पर होती है एक चिक गार्ड में ज्यादा से ज्यादा  250 से 300 चूजों की ब्रूडिंग की जा सकती है| ब्रूडिंग तापमान:- सही तापमान बनाए रखने को ही ब्रूडिंग कहते है| अच्छे परिणाम  प्राप्त करने के लिए प्रथम सप्ताह में 35°C से 37°C या 90°f  से 95 °f होना अति आवश्यक है| प्रथम सप्ताह के बाद प्रति सप्ताह 2.5°C  या 5°C तापमान कम करते जाना चाहिए| अंतिम तापमान 21°C  से 23°C  या 65°f से 70°f तक होना चाहिए| तापमान मापने की इकाई थर्मामीटर होती है लेकिन थर्मा मीटर पर आश्रित नहीं रहना चाहिए| सबसे अच्छा तरीका यह है कि चूजों की स्तिथि (रहन-सहन) से तापमान का अंदाजा लगाना चाहिए| यदि चिक गार्ड के अंदर स्वतंत्र रूप  से  विचरण कर  रहे हो तो ��सी स्तिथि में यह समझाना चाहिए कि तापमान चूजों के अनुकूल है|
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wingsgrowllp · 4 years ago
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बर्ड फ्लू  के कारण व् बचाव
यह पक्षियों में होने वाले विषाणु जानिक संक्रामक रोग है| सामान्तयः यह पक्षियों को ही संक्रमित करताहै परन्तु यह सूकर व् अश्व को भी संक्रमित कर सकता है| इसके अतिरिक्त विपरीत परिस्थितियों में स्पीसीज बैरियर को क्रॉस कर यह मनुष्य को भी संक्रमित कर सकता है|
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रोग का कारण- यह विषाणु द्वारा होने वाला रोग है यह पशु पक्षी व मनुष्यों को भी संक्रमित करता है| व��षाणु  ए.बी.व् सी प्रकार का होता हैजिसमे ' ए ' टाइप पोल्ट्री, सूकर व्  अश्व में संक्रमण करता है| विषाणु वर्तमान में एच. एन. प्रकृति का है|
इन्क्यूवेशन अवधि- विषाणु के पक्षी में प्रवेश करने से कुछ घंटो से 3 दिन तक| यह अवधि विषाणु की प्रकृति, मात्रा , प्रवेश का मार्ग, तथा पक्षी के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है|
पक्षियों में रोग का प्रसार- संक्रमित पक्षियों की आंख, स्वाँस नलिका तहत बीट के संपर्क में आने से पक्षियों में फैलता है संक्रमित पक्षियों व कुक्कुट प्रक्षेत्र के प्रयोग में आने से रोग फैल सकता है| विदेशी, प्रवासी व् जंगली पक्षी इस रोग के कैरियर है अतः इनके संपर्क से पक्षियों में रोग फैल सकता है
पक्षियों के मुख्य लक्षण- • हरे व लाल रंग की बीट| • पक्षी को ज्वर आना| • पक्षियों के गर्दन तथा आँखों के निचले हिस्से में सूजन| • फैटल कलगी व् पैरो का बैगनी हो जाना|
मृत पक्षी में लीजन- • यकृत, तिल्ली व गुर्दे पर नेक्रोटिक फोकाई | • संदेहास्पद या आउट ब्रेक की स्थिति में किसी भी प्रकार से पोस्टमार्टम न किया जाये| • स्वांस तंत्र में फाइब्रिनस द्रव का भरा होना| • पैरों का बैगनी होना तथा कलगी का लाल होना| • मृत पक्षी को सील बंद कर कोल्ड चेन में एच. एस. ए.डी. एल प्रयोगशाला भोपाल को जाँच हेतु भेजना होता है|
रोग से बचाव हेतु सुझाव: • पक्षी फार्म, पक्षी अभ्यारण्य, जलाशय, झील के आस पास न हों| • पक्षी फार्म के आस पास सूअर पालन न करें| • फार्म के आस पास साफ सफाई रखें तथा कूड़ा करकट व गंदगी न इकठ्ठा होने दें|मृत पक्षियों का डिस्पोजल/निस्तारण गड्डे में दबाकर किया जाये • नियमित रूप से फार्म का लीटर बदलते रहे तथा समय समय पर (प्रति 15 दिन पश्चात) विसंक्रमण कार्यवाही करते रहे|
       “कुक्कुट उत्पाद खाने से नही कोई नुकसान|         अंडा, मांस खूब पकाकर खाए अगर इंसान||”
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wingsgrowllp · 4 years ago
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शीत कालीन मौसम में कड़कनाथ कुक्कुट आवास का प्रबंधन- Wingsgrow
ठंड के दिनों में मुर्गी आवास को गर्म रखने के लिए कुक्कुट पालक को पहले से सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि तब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है तब आवास के शीशे से ओस की बूंदे टपकती है इससे बचने के लिए कुक्कुट पालक को मजबूत ब्रूडिंग कराना तो आवश्यक है ही साथ ही मुर्गी आवास के ऊपर पैरा,बोरे  या फट्टी आदि बिछा देना चाहिए एवं साइड के परदे मोठे मोठे  के लगाना चाहिए, ताकि ठंडी हवा के प्रभाव को रोका जा सके|
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ब्रूडिंग- चूजों के सही प्रकार से विकास के लिए ब्रूडिंग सबसे जयदा आवश्यक है अगर ब्रूडिंग में गलती हुई तो आपके चूजेकुछ दिनों में कमजोर हो जायेंगे और आपके सही दाना के इस्तेमाल करने पर भी उनका विकास सही तरीके से नही हो पायेगा जिस प्रकार मुर्गी अपने चूजों को कुछ कुछ समय में अपने पंखों के नीचे रखकर गर्मी देती है उसी प्रकार चूजों को फार्म में भी जरुरत के अनुसार तापमान देना पड़ता है| ब्रूडिंग कई प्रकार से किया जाता है- बिजली के ब्लब से , गैस ब्रूडर से या अंगीठी/सिंगड़ी से |
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