#jabalpurhighcourt
Explore tagged Tumblr posts
seemabhatnagar · 1 year ago
Text
Hijaab Row
India is known in the world as a Secular Country but see day by day the Secular fabric is tearing off. You belong to a particular faith so you are free to profess your religion, practices and faith but you can't compel people belonging to other faith to profess your religious practices. This is what done in the present case which recently came before Hon'ble Jabalpur High Court where in the Ganga Jamuna Higher Secondary School Urdu is being taught as compulsory subject and students are compelled to recite prayers belonging to muslim faith in school.
On the other hand students belonging to Hindu or Jain Sect are restrained to wear Kalawa or to put Tilak on their forehead but are forced to wear Hijaab and salwar kurti.
Background
This is a case of #HijabRow where  #Non-Muslim students studying in Ganga Jamuna Higher Secondary School, Futera Ward, Damoh, Jabalpur Madhya Pradesh were #forced to wear salwar kurti, head scarf (#Hijaab) and dupatta (#scarf) right from Nursery to Class XII and forcefully #restrained from putting #tilak on the forehead or# tying sacred thread (#kalawa) on their wrist and if #someone #wears the sacred thread (kalawa) or put tilak, she is being #forcibly #prevented, by the teachers.
Fact
A #complaint in this regard was received. Matter was inquired & Investigation was conducted & head Scarves were seized. Statement of the girl students were recorded and #FIR was #KotwaliDamoh of Damoh District for the offences punishable under Sections 295A, 506 and 120B of the IPC, Section 75 and 87 of Juvenile Justice Act (Care and Protection of Children) Act, 2015 and Section 3/5(1) of the Madhya Pradesh Freedom of Religion Act, 2021.
FIR was registered against the #Principal Asfa Sheikh, #teacher Anas Athar and Peon Rustom Ali and management of the school for commission of the aforesaid offences. They were #arrested and are in detention since 11.06.2023.
Submission of the Counsel of the Applicant
1.     It was contended by the Counsel of the detenues that they are innocent and are falsely implicated.
2.     The counsel also submitted a copy of the resolution accordingly it is the #SchoolManagement and #Director of the #School Mohd, Idris who had #prescribed #dresscode for all girl students and made it compulsory to wear scarf.
3.     The detenues were #acting as per the #instructions of the #SchoolManagement. The counsel prayed for the release as in the matter after investigation, charge sheet was submitted.
Submission of the Counsel of the State
1.     The counsel of the #State #opposed the #bail application as the statements of the girl students demonstrated that they were compelled to wear head scarf (Hijaab).
2.     whereas minority institutions cannot compel the students belonging to other religion to wear head scarf (Hijaab)
3.     and it also cannot prevent students of other religion from wearing sacred thread (kalawa) and putting tilak on the forehead.
4.     It also cannot compel them to read Urdu language necessarily and to recite the prayers belonging to Islam faith.
Observation of the Court
1.     Charge sheet has been filed against the applicants who are principal, teachers and peon.
2.     The main allegations are against management of the school.
3.     Trial of the case will take considerable time.
4.     Therefore, without expressing any opinion on the merits of the case, but having taken into consideration all the facts and circumstances of the case, I am of the view that it is a case in which applicants may be released on bail.
Order
Bail application is allowed subject to the conditions:
1.     Applicants shall not repeat commission of offence.
2.     They shall not prevent students of other religion from wearing the essentials of their own religion.
3.     They shall not compel the students of other religion to read/study any material or language which has not been prescribed or approved by the Madhya Pradesh Education Board.
4.     They shall not provide any religious education or material belonging to Islam faith to the students of other religion and shall impart only modern education as contained in Section 53(1)(iii) of the Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015.
5.     Girl students of other religion i.e. Hindu and Jain etc. shall not be compelled to wear head scarf anywhere in the school premises or in the class rooms.
6.     Further applicants - Asfa Sheikh, Anas Athar and Rustom Ali be released on bail on their furnishing a personal bond incorporating the aforesaid conditions, in the sum of Rs.50,000/- each with one solvent surety each in the like amount to the satisfaction of the trial Court, for their regular appearance before the trial Court during trial with a condition that they shall appear before the concerned Court on all the dates fixed by it during trial.
7.     The order is effective till the end of the trial and in case of breach of any of the conditions the order shall become ineffective.
Seema Bhatnagar
Tumblr media
1 note · View note
chaitanyabharatnews · 4 years ago
Text
MP : हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अब बेटियां भी होंगी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार, चाहे वह शादीशुदा ही क्यों न हो
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज जबलपुर. मध्यप्रदेश की जबलपुर हाई कोर्ट ने सोमवार को बेटियों के हक में अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले से शादीशुदा बेटियों के लिए भी अनुकंपा नियुक्ति का रास्ता खोल दिया है। कोर्ट ने कहा कि, 'शादीशुदा बेटी भी अनुकंपा नियुक्ति पान��� की हकदार है।' आदेश में कोर्ट ने साफ किया है कि, 'किसी सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद उसके आश्रितों में बेरोजगार बेटा न हो तो बेटी भी आवेदन कर सकती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह शादीशुदा है या कुंवारी।' कोर्ट ने एक याचिका का इस फैसले के साथ निराकरण किया कि याचिकाकर्ता को विवाहित पुत्री होने के बावजूद अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की जाए। दरअसल, सतना की रहने वाली प्रीति सिंह ने हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई थी। वकील अनिरुद्ध पांडे ने प्रीति की तरफ से दलीलें रखीं। याचिका में प्रीति सिंह ने कहा कि, 'उनकी मां मोहिनी सिंह कोलगवां पुलिस स्टेशन सतना में ASI के पद पर तैनात थीं। 23 अक्टूबर, 2014 को सुबह नौकरी पर जाते समय सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई।' फिर प्रीति ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए एप्लाई किया था। लेकिन भोपाल पुलिस हेडक्वॉर्टर ने उनकी एप्लीकेशन निरस्त करते हुए कहा कि शादीशुदा बेटी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार नहीं है। बेटियों के लिए नजीर बनेगा फैसला सुनवाई के दौरान प्रीति सिंह के वकील ने अपनी दलील में कहा कि, 'भारतीय संविधान के आर्टिकल-14 में समानता का अधिकार शामिल है। इस कारण अनुकंपा नियुक्ति के मामले में भी भेदभाव नहीं किया जा सकता। जब ��ादीशुदा बेटा अनुकंपा नियुक्ति पा सकता है, तो बेटी क्यों नहीं?' इसके बाद जज संजय द्विवेदी ने प्रीति के वकील की दलीलों से सहमत होकर उन्हें अनुकंपा नियुक्ति दिए जाने का आदेश दिया। इस आदेश में कहा गया कि, याचिकाकर्ता को शादीशुदा होने के बावजूद अनुकंपा नियुक्ति दी जाए। यह आदेश कई बेटियों के लिए नजीर की तरह है। Read the full article
0 notes
chaitanyabharatnews · 6 years ago
Text
एससी-एसटी एक्ट में सिर्फ शिकायतकर्ता के बयान पर्याप्त नहीं, ठोस सबूत होना भी आवश्यकः हाई कोर्ट का फैसला
Tumblr media
चैतन्य भारत न्यूज जबलपुर. मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने गुरुवार को एससी-एसटी एक्ट के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला लेने के साथ ही यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि, एससी-एसटी एक्ट के मामले में अगर कोई पुख्ता सबूत न हों तो सिर्फ शिकायतकर्ता द्वारा दिया गया बयान आरोपित के खिलाफ अभियोजन चलाने का आधार नहीं बन सकता। मामले की सुनवाई जस्टिस जेपी गुप्ता की एकल पीठ कर रही थी। पीठ ने यह भी कहा कि यह सिद्धांत उस केस में और महत्वपूर्ण हो जाता है जब विश्वसनीय साक्ष्य और गवाह शिकायतकर्ता के बयान को झूठा साबित करते हों। एकल पीठ ने इस मामले में यह भी कहा कि, 'यह जिम्मेदारी सभी अदालतों की है कि वे हर स्तर पर इस बात का ध्यान रखें कि किसी भी तरह से अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो। इसी के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता सुशांत पुरोहित के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर और ट्रायल कोर्ट की प्रक्रिया को रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह भी बताया कि इस मामले में विवाद मजदूरी के भुगतान और फसल कटाई में देरी को लेकर था। इससे नाराज होकर महिला ने झूठा प्रकरण दर्ज कराया था। यह है मामला शिकायतकर्ता महिला 5 अप्रैल 2016 को सुशांत नामक व्यक्ति के खेत में काम कर  रही थी। थाने में दर्ज हुई शिकायत के अनुसार, महिला को फसल की कटाई करने में देरी हो गई थी जिसके चलते सुशांत ने उसके साथ मारपीट की और उसका घर जलाने की कोशिश भी की थी। जब इस मामले में थाना प्रभारी ने जांच की तो उन्होंने सभी आरोप झूठे पाए। स्थानीय लोगों ने भी इस तरह की किसी भी घटना होने से साफ इनकार कर दिया। इस मामले में पुलिस अधिकारी ने एसडीओ को रिपोर्ट पेश कर दी। शिकायतकर्ता महिला फिर हाई कोर्ट पहुंची और सुशांत के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की। इसके बाद हाई कोर्ट ने नरसिंहपुर एसपी को महिला की शिकायत पर फिर से विचार करने के निर्देश दिए। इसके बाद सुशांत के खिलाफ एससी- एसटी एक्ट में मामला दर्ज कर कोर्ट में चालान पेश किया गया। फिर सुशांत ने भी हाई कोर्ट में याचिका लगाई। महिला ने शिकायत के बाद बनवाया था जाति प्रमाण-पत्र सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्श मुनि त्रिवेदी ने कोर्ट को बताया कि घटना के समय उनका मुवक्किल यह बात नहीं जानता था कि महिला एससी-एसटी वर्ग की है। महिला ने मुस्लिम से शादी की है, इसलिए शादी के बाद उसे उक्त वर्ग का नहीं माना जा सकता। इसके अलावा अभियोजन ने चालान पेश करते के दौरान जो जाति प्रमाण-पत्र पेश किया वह महिला ने केस दर्ज करने के बाद बनवाया था। त्रिवेदी ने कोर्ट को बताया कि अभियोजन ने चालान में ऐसा कोई सबूत भी पेश नहीं किया कि अभियुक्त उक्त वर्ग का नहीं है, जो कि ऐसे मामलों में एक अहम तथ्य होता है। Read the full article
0 notes