#bhatihistory
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Derawal fort #bhatihistory#bhatiking👑 worldhistory#rajputana#yaduvanshi🚩देवराज ने अपने भुटा मामा की सेवा चाकरी की। तब मामा ने प्रसन्न होकर उन्हें भूमि प्रदान की। देवराज को देवी श्रीआवड माता ने उन्हें एक दिव्य खांडा भेंट किया जिसकी सहायता से उसने 52 परगनों के प्रमुखों को अपने अधीन किया और उन्हें 121 वर्ष शासन करने का आशीर्वाद दिया। तवारीख जैसलमेर(लखमीचंद) के पृ.सं. 19 पर लिखा हुआ हैं कि ‘देवराजजीउपवासकर कुल देवी आराधी जब प्रष्ण हो राज तेज बढ़ने का वर्दान व शत्रु जीतने के लिये 1 खड़ग दिया उससे 52 प्रवाडे़ जीते पीछे ही हर पीड़ी में फ़तह पाई चुनाचे घडसी जी से दिल्ली में इस खड़ग के प्रताप बादशाह महरबान हुए सो हाल थोडा सामओ के पर लिखा हैं और वो खड़ग घड़सीजी का खांडा नाम से मौजूद हैं मेघाडम्बर छत्र जैसा ही मुबार्क जानके दशेरे दीवाली वग़ेरह की पूजा होती है’ंभगवती श्रीआवड़ माता ने देवराज को किले का निर्माण पुनः नये प्रकार से प्रारम्भ करने का आदेश देते हुए कहा कि किले की दीवार के बाहर की एक पक्की ईंट स्वयं (देवराज) के नाम की और दीवार के भीतर की एक कच्ची ईंट उनके (देवी श्रीआवडजी के नाम) की रखे। इस प्रकार एक पक्की ईंट और एक कच्ची ईंट बाहर-भीतर बारी-बारी से रखते हुए किले की दिवारों को ऊँचा उठाया। बावन प्राचीरों और चारों कोनों पर चार बुर्जों वाला किला वि0स0 909 (852 ई0) में बनकर तैयार हुआ जिसका कवित्त जैसलमेर री ख्यात देरावर किले की प्रतिष्ठा वि0स0 909 माघ सुदी पंचमी (वसन्त पंचमी) सोमवार,पुष्य नक्षत्र (20 जनवरी 852ई0) के दिन करवायी। देवराज के नाम से किले का नामकरण देरावर या देशवाल रखा गया। भाटी युवराज को देरावर की राजगद्दी पर बैठाकरउन्होंनेउनकाराज्याभिषेक करके उन्हें ‘रावल’ की पदवी से सुशोभित किया और उन्हें ‘सिद्ध’ की पदवी से सम्बोधित किया। उनके सभी वंशजरावल’कहलाए।तवारीख जैसलमेर के पृ.सं. 22 पर रावल देवराज के बारे में लिखा हैं कि ‘श्रीलक्ष्मीनाथजी व श्रीस्वांगीयाजी का दर्शन करके आम दरबार में तखत बिराजे’रावल सिद्ध देवराज ने अपने संकटकाल में सहयोग करने वाले देवायत पुरोहित के पुत्र रतनू की खोज करने के लिए अपने आदमी सौराष्ट्र भेजे। उसके आदमी रतनू को मान मनवार करके वापस ले आये। इससे रावल देवराज को बडी खुशी हुई। उसने रतनू को अपना पोल पाटवी बारहठ बनाया और उसे ‘मेघाडम्बर छत्र’ का छोटा प्रतिरुप भेंट किया। इसलिए भाटी शासक का विरुंद ‘छत्राला’ हैं।जैसलमेर री ख्यात में रतनू चारण का कहा छप्पय इस प्रकार मिलता रावल सिद्ध देवराज ने देरावर के दुर्ग का निर्माण https://www.instagram.com/p/CfVTyy3BNHv/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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Ludrawa fort(parmar rajput fort)..rawal devraj bhati ka adhikaar.."chatrala yadavpati".. #bhatihistory #bhatiking👑 #rajputana काक नदी की पतली धारा किनारों से विरक्त सी होकर धीरे धीरे सरक रही थी, आसमान ऊपर चुपचाप पहरा दे ��हा था और नीचे लुद्रवा देश की धरती, जिसे उत्तर भड़ किवाड़ भाटी आजकल जैसलमेर कहा जाता है । प्रभात काल में खूंटी तानकर सो रही थी, नदी के किनारे से कुछ दूरी पर लुद्रवे का प्राचीन दुर्ग ग���मसुम सा खड़ा रावल देवराज का नाम स्मरण कर रहा था | ‘कैसा पराक्रमी वीर था ! अकेला होकर जिसने बाप का बैर लिया | पंवारों की धार पर आक्रमण कर आया और यहाँ युक्ति, साहस और शौर्य से मुझ पर भी अधिकार कर लिया | साहसी अकेला भी हुआ तो क्या हुआ ? हाँ ! अकेला भी अथक परिश्रम,ज्ञासाहस और सत्य निष्ठा से संसार को अपने वश में कर लेता है ….| (सन् 841 ई.) में तणोट में भाटियों का तीसरा शाका था। इससे पहले सन् 477 ई. में गजनी मे पहलाऔर वि.सं. 535 (सन् 479 ई.) में भटनेर का दूसरा शाका हुआथा। भटनेर के शाके के समय राजा रेणसी भाटी शासक थे। वहां का किला झंडू के अधिकार में था और जगस्वात मांडणोत किले की कमान संभाले हुए थे।पिता और पुत्र, राव तणुजी और जुगराज विजयरावचूडाला दोनों ने उसी वर्ष वि.सं. 898 (सन् 841 ई.) में प्राणत्याग(saka johar veergati) दिये उसके साथ अपना लम्बा-चौड़ा विस्तृत राज्य भी खो दिया और उनके निर्वासित युवराज देवराज निष्ठावानव्यक्तियों के संरक्षण में थे। शत्रुओं ने तणोट, मारोठ,मूमणवाहण, बींझनोट, केहरोड़ और भटनेर के छहों किलों परअधिकार करके उन्हें आपस में सुविधानुसार बांट लिया। पूरे माडप्रदेश का भाटी अपना अधिकार गंवा बैठा था।जुगराज विजयराव चुड़ाला(father devraj)का राजकुमार लौट करतणोट वापस नहीं गया, सन् 841-852 ई तक ग्यारह वर्षों कीअल्पावधि में राज्यविहीन रहने के पश्चात अपने नाना जूझेराव भुटो (solanki rajput)द्वारा दी गई भूमि में अपने नाम से देवराजगढ या देरावर के एक छोटे से राज्य के शासक बने। किन्तु वह अपने राज्य सीमित क्षेत्र एवं देरावर के किले के स्थापन से संतुष्ट नहीं थे।इसलिए उन्होंने अपनी शक्ति पुष्ट करके पांच साल बाद सन् लुद्रवा (parmar rajput fort)पर अधिकार कर लिया और अपनी राजधानी देरावर से वहां सन 873 ई. में ले गए । 973 ई तक पूरे 100 वर्षोतक वहां राज किया। इतिहास में वे 'राव' के स्थान पर 'रावल' कहला��े वाले प्रथम भाटी राजा थे जो आज 'महारावल' के नाममें परि��र्तित हो गया वर्तमान जैसलमेर के भाटी शासक महारावल' की उपाधि से सुशोभित है। https://www.instagram.com/p/CfF0xwBBS1Q/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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King vijayrav bhati chudal. #bhatihistory #bhatiking👑 #rajputana बींझनोट दुर्ग की स्थापना विजयराव भाटी जिन्हें विजैराव चूडा़ला और राव बींजा ��ी बोला जाता है, ने ७५७ ईसवी में 'हाकड़ा' नदी के किनारे माँ आवड़ की कृपा से की थी!विजयराव को माता ने प्रसन्न होकर एक 'चूड़' प्रदान की थी जिसके कारण वह 'चूडा़ला' कहलाया! तणुराव जी के द्वारा तनोट की स्थापना से पूर्व इस विशाल दुर्ग का निर्माण राव विजैराव ने किया था! कहते हैं यहाँ पर देवी के आशीर्वाद से काफी बड़ा भूमिगत खजाना भी प्राप्त हुआ था! वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान के चोलिस्तान जिले की रोही में स्थित है!कर्नल टॉड ने भी संक्षिप्त में बींझनोट के किले के लिए संदर्भित #Bhati #history https://www.instagram.com/p/CfDvbrHulh6/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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#jaisalmerfort #bhatihistory #bhatiking👑 #rajputana राजस्थान के प्रथम इतिहासकार मुंहता नैणसी ने अपनी ख्यात में जैसलमेर के इतिहास की एक ऐसी ही शादी की घटना दर्ज की है , नैणसी के अनुसार - “ सारे राजपूत मरने के लिए तैयार बैठे थे , उनमें धाऊ मेछला नाम का एक कुंवर राजपुत्र 15 वर्ष की अवस्था का था | वह रावल दूदा की पगतली सहला रहा था , उसने एक निसास छोड़ा , रावल ने कहा कि ऐसा क्यों , अपने तो स्वर्ग में पहुँचाने वाले हैं , फिर तुझे इस वक्त यह दिलगीरी कैसे आई ? युवक कहने लगा कि मुझे और तो कोई चिंता नहीं , परन्तु शास्त्र पुराणों में ऐसा सुना है कि कुंवारे को गति नहीं , स्त्री स्वर्ग का मार्ग बताती है । रावल ने विचारा कि मेरी कन्या भी कुंवारी है और यह अच्छा राजपूत है इसी को ब्याह दूँ | तत्काल दोनों का विवाह कर दिया । दूसरे दिन वह बाला जौहर की आग में कूद पड़ी और जब रावल दूदा शाका करने के निमित्त गढ़ के दरवाजे खोल युद्ध के मैदान में उतरे तो उनके साथ वह 15 वर्षीय युवक धाऊ मेछला भी युद्ध के मैदान में उतरा | अब वह निश्चिन्त था कि उसकी शादी हो चुकी है , उसकी नववधु जौहर की ज्वाला में कूद कर स्वर्ग पहुँच चुकी है अत : अपनी नववधु से मिलने की मन में हसरत पाले वह अपनी तलवार के जौहर दिखलाता हुआ , दुश्मनों के दांत खट्टे करता हुआ , अपनी मातृभूमि जैसलमेर की स्वतंत्रता के लिए मुस्लिम आततायियों से लड़ता हुआ , अपने प्राणों का उत्सर्ग कर अपनी मातृभूमि की गोद में चिर निंद्रा में सो गया | किसी भी व्यक्ति द्वारा शादी गृहस्थी बसाने , भावी जीवन को सुखमय बनाने के लिए की जाती है , लेकिन राजस्थान के इतिहास में शादियों के ऐसे उदाहरण भी भरे पड़े है , जो गृहस्थ जीवन आरम्भ करने के लिए नहीं बल्कि युद्ध में अपने प्राणोत्सर्ग के बाद स्वर्ग में जाने यानी गति प्राप्त करने के लिए की शादियाँ की गई | दरअसल उस काल माना जाता था कि कुंवारे की गति नहीं होती , स्त्री ही स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करती है अत : ऐसे युद्धों में जहाँ मरना तय होता था , मरने से पहले योद्धाओं की शादियाँ की जाती थी | ऐसे अवसरों पर योद्धा के प्राणोत्सर्ग से पहले उसकी नव वधु जौहर की ज्वालाओं में कूद पड़ती थी | https://www.instagram.com/p/CfA4Vucr11r/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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