#The challenge of filling the vacant posts of teachers - Arvind Jayatilak
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शिक्षकों के खाली पदों को भरने की चुनौती-अरविंद जयतिलक
ऐसे समय में जब केंद्र की सरकार नई शिक्षा नीति लागू करने की दिशा में अग्रसर है वहीं देश के 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 18 हजार से अधिक पदों का खाली होना नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में किसी चुनौती से कम नहीं है। गौर करें तो नई शिक्षा नीति में शिक्षकों के शत-प्रतिशत पद भरे जाने की बात कही गयी है। इसी तरह शिक्षा अधिकार कानून में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और हर स्कूली छात्र को प्रशिक्षित शिक्षकों से पढ़ाए जाने का प्रावधान किया गया है। यहां ध्यान देना होगा कि बड़े पैमाने पर शिक्षकों के खाली पदों की जानकारी किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने संसद में एक प्रश्न के जवाब में दिया है। उन्होंने कहा है कि देश के 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से शिक्षकों के 6,210 और गैर शिक्षा कार्य से जुड़े कर्मचारियों के 12,437 पद रिक्त है���। इसके अलावा इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी में 196 शिक्षकों एवं 1090 गैर शिक्षकों के पद खाली हैं।
अगर राज्य स्तर के विश्वविद्यालयों एवं उससे संबंद्ध कालेजों के रिक्त पदों को जोड़ लिया जाए तो यह आंकड़ा लाखों में पहुंच जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक हर विश्वविद्यालय में तकरीबन 30 से 40 फीसद शिक्षकों के पद रिक्त हैं। इसी तरह गैर शिक्षा कार्य से जुड़े कर्मचारियों के पद भी खाली है। यानी केंद्रीय एवं राज्य स्तर के विश्वविद्यालयों एवं कालेजों में 60 से 70 फीसद शिक्षकों एवं कर्मचारियों के जरिए पठन-पाठन एवं अन्य शैक्षिक कार्य को संचालित किया जा रहा है। गौर करें तो यह स्थिति तब है जब यूजीसी द्वारा गत वर्ष 4 जून, 2019 को विश्वविद्यालयों एवं कालेजों के खाली पदों को भरने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं। निःसंदेह रिक्तियों का होना और उन्हें भरना एक सतत प्रक्रिया है और उसमें समय लगता है। लेकिन अगर विश्वविद्यालयों और कालेजों के शिक्षकों एवं कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति से 6 महीना पहले ही चयन प्रक्रिया पूरी कर ली जाए तो फिर इतने बड़े पैमाने पर पद खाली नहीं रहेंगे।
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शिक्षकों की कमी के बीच प्रत्येक वर्ष विश्वविद्यालयों और कालेजों में छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जबकि उस अनुपात में गुणवत्तापूर्ण कालेज और विश्वविद्यालय नहीं खुल रहे हैं और न ही शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है। शिक्षाविदों का कहना है कि अगर भविष्य में भारत को सकल दाखिला अनुपात का लक्ष्य 30 फीसद लक्ष्य हासिल करना है एवं शोध छात्रों की संख्या बढ़ानी है तो उसे आने वाले वर्षों में विश्वविद्यालयों का इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के साथ 800 विश्वविद्यालयों और 35000 कालेजों की स्थापना करनी होगी। मौजूदा समय में देश में तकरीबन 500 के आसपास विश्वविद्यालय और 22000 कालेज हैं। लेकिन इनसे उच्च शिक्षा की सुलभता साकार नहीं हो पा रही है। याद होगा गत वर्ष पहले जी0 के0 चड्ढा पे रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट से भी उद्घाटित हुआ था कि देश भर में 44.6 फीसद प्रोफेसरों क�� पद और 51 फीसद रीडरों के पद रिक्त हैं। इसी तरह 52 फीसद पद लेक्चरर के रिक्त हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस दरम्यान केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा शिक्षकों के काफी पद भरे गए हैं। एक आंकड़े के मुताबिक देश में सरकारी, स्थानीय निकाय और सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों के तकरीबन 45 लाख पद हैं। लेकिन स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल समेत देश के 8 आठ राज्यों में शिक्षकों के लाखों पद रिक्त हैं। अच्छी बात यह है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा शिक्षकों के खाली पड़े पदों को तेजी से भरे जाने का प्रयास हो रहा है।
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लेकिन शिक्षक भर्ती समेत अन्य कई विभागों में नियुक्ति संबंधी मामले न्यायालय में लंबित है जिसकी वजह से पदों को भरने में बिलंब हो रहा है। देश के अन्य राज्यों की भी कमोवेश स्थिति ऐसी ही है। बिडंबना यह कि उपलब्ध शिक्षकों में भी तकरीबन 20 फीसद शिक्षक योग्यता मानकों के अनुरुप नहीं हैं। उचित होगा कि इन्हें शैक्षिक प्रशिक्षण दिया जाए। एक आंकड़े के मुताबिक सर्वशिक्षा अभियान के तहत नियुक्त शिक्षकों में 5 लाख से अधिक अप्रशिक्षित हैं।जबकि शिक्षा अधिकार कानून में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और हर स्कूली छात्र को प्रशिक्षित शिक्षकों से पढ़ाने का प्रावधान है। पिछले दिनों एक मामले में देश की शीर्ष अदालत ने राज्य सरकारों को ताकीद किया कि छात्रों को प्रशिक्षित शिक्षकों से पढ़ाया जाए। ध्यान देना होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भी समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। गत वर्ष पहले एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि देश के 53 फीसद से अधिक बच्चे दो अंकों वाले घटाने के सवाल हल करने में सक्षम नहीं हैं। आधे से अधिक बच्चे गणित विषय में बेहद कमजोर हैं। भाषा पर भी उनकी पकड़ को कमजोर बताया गया। कहा गया कि चार में से एक युवा एक वाक्य तक नहीं पढ़ सकता। भारत में शिक्षा किस कदर बदहाल है |
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इसी से समझा जा सकता है कि गत वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र की एजुकेशनल फाॅर आॅल ग्लोबल माॅनिटरिंग की एक रिपार्ट में कहा गया था कि भारत में निरक्षर युवाओं की तादाद तकरीबन 28 करोड़ 70 लाख है। गौर करें तो यह आंकड़ा दुनिया भर के निरक्षर युवाओं की कुल तादाद का तकरीबन 37 फीसद है। हालांकि रिपोर्ट में शिक्षा की बदहाली के कई कारण गिनाए गए जिसमें से एक शिक्षा पर होने वाले खर्च में भारी असमानता भी जिम्मेदार है। उचित होगा कि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें विश्वविद्यालयों, कालेजों एवं स्कूलों में रिक्त पड़े शिक्षकों एवं गैर शिक्षण कार्य से जुड़े कर्मचारियों के पदों को अति शीध भरे ताकि पठन-पाठन के अलावा नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में किसी तरह का अवरोध उत्पन न हो।
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