#“गीता में ऐसे किसी भी मंत्र का उल्लेख नहीं है
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#“गीता में ऐसे किसी भी मंत्र क�� उल्लेख नहीं है#फिर अमित आचार्य “ॐ नमो भगवते हनुमते नमः” का झूठ क्यों फैला रहे हैं?इन पाखंडी बाबाओं की सच्चा
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पाखंडीबाबाओं_झूठ_से_बाज_आजाओ शर्म करो शर्म करो
जया किशोरी जी स्वयं सीहरे राम हरे राम राम राम हरे हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे "मंत्र को देती है और स्वयं ओम नमः शिवाय का जब करती है जबकि ऐसे किसी भी मंत्र का उल्लेख गीता वेद और पुराणों में नहीं है।
सच्चाई जानने के लिए अवश्य देखें हमारे यूट्यूब चैनल फैक्ट फुल डिबेट पर।
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जया किशोरी जी के बयान पर गौर करने पर यह सवाल उठता है कि क्या वाकई मंत्रों के जाप से भगवान मिल जाते हैं?
साथ में जग्गी वासुदेव जी के क्या विचार है ये भी जाने।
गीता और वेद में ऐसे किसी मंत्र का उल्लेख नहीं है!💐💐
#पाखंडी_बाबाओं_झूठसे_बाज_आजाओ शर्म करो शर्म करो
कथावाचकों की सच्चाई
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जया किशोरी जी के बयान पर गौर करने पर यह सवाल उठता है कि क्या वाकई मंत्रों के जाप से भगवान मिल जाते हैं?
साथ में जग्गी वासुदेव जी के क्या विचार है ये भी जाने।
गीता और वेद में ऐसे किसी मंत्र का उल्लेख नहीं है!
#पाखंडी_बाबाओं_झूठसे_बाज_आजाओ शर्म करो शर्म करो
कथावाचकों की सच्चाई जानने के लिए देखिए Factful Debates YouTube Channel पर।
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जया किशोरी जी के बयान पर गौर करने पर यह सवाल उठता है कि क्या वाकई मंत्रों के जाप से भगवान मिल जाते हैं?
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गीता और वेद में ऐसे किसी मंत्र का उल्लेख नहीं है!
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क्या है भक्ति, कैसे करें सुफल भक्ति:
कैसा हो भक्ति का स्वरुप:
भक्ति का आशय भक्त अपने इष्टदेव अथवा देवी, ईश्वर (भगवत व भगवती) के प्रति संपूर्ण समर्पण होता है। अर्थात् सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि भक्त की आत्मा का परमात्मन् की डोर से बंध जाना।
महंत श्री पारस भाई जी की नजरों में भक्ति का तात्पर्य है " स्नेह, लगाव, श्रद्धांजलि, विश्वास, प्रेम, पूजा, पवित्रता, समर्पण "। इसका उपयोग मूल रूप से हिंदू धर्म में एक भक्त द्वारा व्यक्तिगत भगवान या प्रतिनिधि भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम का उल्लेख करते हुए किया गया था।
भक्ति का स्वरुप कैसा होना चाहिए:
संक्षेप में कहा जा सकता है कि भक्ति में तीन मुख्य गुण अर्थात् भक्त का भाव निष्कपट, निःस्वार्थ, निष्ठा समर्पण होना चाहिए। परमेश्वर अथवा ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला साधक ही सत्यप्रिय (निष्ठावान) भक्त है।
संध्यावन्दन, योग, ध्यान, तंत्र, ज्ञान, कर्म के अतिरिक्त भक्ति भी मुक्ति का एक मार्ग है। भक्त��� भी कई प्रकार ही होती है। इसमें श्रवण, भजन-कीर्तन, नाम जप-स्मरण, मंत्र जप, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, पूज��-आरती, प्रार्थना, सत्संग आदि शामिल हैं। इसे नव��ा भक्ति कहते हैं।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि भक्ति में तीन मुख्य गुण अर्थात् भक्त का भाव निष्कपट, निःस्वार्थ, निष्ठा समर्पण होना चाहिए। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि परमेश्वर अथवा ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला साधक ही सत्यप्रिय (निष्ठावान) भक्त है।
ध्यान उपासना करने हेतु दिशा:
ध्यान आराधना करते समय भक्त का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व को उत्तमोत्तम दिशा माना गया है क्योंकि उत्तर-पूर्व को ईशान कोण कहा जाता है ।
वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा गृह में कभी भी पूर्वजों की तस्वीर न तो लगानी चाहिए व ना हीं रखनी चाहिए। भगवान् की किसी प्रतिमा या मूर्ति की पूजा करते समय भक्त उपासक का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। यदि पूर्व दिशा में मुंह नहीं कर सकते तो पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजा करना भी उचित है।
वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खाना खाने से सभी तरह के रोग मिटते हैं पूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना जाता है तथा पूर्व दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से देवताओं की कृपा और आरोग्य की प्राप्ति होती है एवं आयु में वृद्धि होती है।
दक्षिण-पूर्व दिशा में भगवान् के विराट स्वरूप की चित्र लगाएं। यह ऊर्जा का सूचक है। समस्त ब्रह्माण्ड को स्वयं में समाए असीम ऊर्जा के प्रतीक भगवान् श्रीकृष्ण समस्त संसार के भोक्ता हैं.।
भागवत भक्ति क्यों की जाती है:
संक्षेप में हम यह मानते व जानते एवं जानते हैं कि आराधक निज मनोरथ-पूर्ति हेतु ईश्वर (भगवत व भगवती) की भक्ति करते हैं। मनुष्य इसलिए ईश्वर के समीप जाता है कि वह ईश्वर-भक्ति करके अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सके। परमेश्वर एक है। गुरु एवं गोविन्द भी एक है।
क्या है भगवान् की भक्ति:
जब भक्त सेवा अथवा आराधना के माध्यम से परमात्मन् से साक्षात संबंध स्थापित कर लेता है तो इसे ही गीता में भक्तियोग कहा गया है। नारद के अनुसार भगवान् के प्रति मर्मवेधी (उत्कट) प्रेम ही भक्ति है। ऋषि शांडिल्य के अनुसार परमात्मा की सर्वोच्च अभिलाषा ही भक्ति है। नारद के अनुसार भगवान् के प्रति परितस अथवा उत्कट प्रेम होने पर भक्त भगवान् के रङ्ग में ही रंग जाते हैं।
महंत श्री पारस भाई जी के कहा कि जिसके विचारों में पवित्रता हो, साथ ही जो अहंकार से दूर हो और जो सबके प्रति समान भाव रखता हो, ऐसे व्यक्ति की भक्ति सच्ची है और वही सच्चा भक्त है।
भक्त कितने प्रकार के ह��ते हैं:
भक्ति विविध प्रकार की होती है। भक्ति में श्रवण, भजन-कीर्तन, नाम जप-स्मरण, मंत्र जप, पाद-सेवन, पूजन-अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, पूजा-आरती, प्रार्थना, सत्संग इत्यादि शामिल हैं।
चार तरह के भक्त:
श्रीमद भगवद् गीता के सप्तम अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण पार्थ (अर्जुन) विभिन्न प्रकार के भक्तों के विषय में वर्णन करते हुए कहते हैं कि
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥०७-१६॥
सार: हे अर्जुन! आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी एवं ज्ञानी ऐसे चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं। इन चारों भक्तों में से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है। उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, तथा जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी है।
अर्थार्थी: अर्थार्थी भक्त वह है जो भोग, ऐश्वर्य तथा सुख प्राप्त करने के लिए भगवान् का भजन करता है। उसके लिए भोगपदार्थ व धन मुख्य होता है एवं ईश्वर का भजन गौण।
आर्त: आर्त भक्त वह है जो शारीरिक कष्ट आ जाने पर या धन-वैभव नष्ट होने पर अपना दु:ख दूर करने के लिए भगवान् को पुकारता है।
जिज्ञासु: जिज्ञासु भक्त अपने शरीर के पोषण के लिए नहीं वरन् संसार को अनित्य जानकर भगवान् का तत्व जानने एवं उन्हें प्राप्त करने के लिए भजन करता है।
ज्ञानी: आर्त, अर्थार्थी एवं जिज्ञासु तो सकाम भक्त हैं किंतु ज्ञानी भक्त सदैव निष्काम होता है। ज्ञानी भक्त परमात्मन् के अतिरिक्त कोई अभिलाषा नहीं रखता है। इसलिए परमात्मन् ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है। ज्ञानी भक्त के योगक्षेम का वहन भगवन् स्वयं करते हैं।
चारों भक्तों में से कौन-सा भक्त है संसार में सर्वश्रेष्ठ:
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः॥१७॥
अर्थात् परमात्मन् श्रीकृष्णः श्रीमद भगवद् गीता में कुंतीपुत्र अर्जुन (कौन्तेय) से कहते हैं कि
सार: इनमें से जो परमज्ञानी है तथा परमात्मन् की शुद्ध भक्ति में लीन रहता है वह सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूं एवं वह मुझे अतिसय प्रिय है। इन चार वर्गों में से जो भक्त ज्ञानी है वह साथ ही भक्ति में लगा रहता है, वह सर्वश्रेष्ठ है।
कलयुग में भगवान् को कैसे प्राप्त करें:
श्रीमद्भागवत के अनुसार कलयुग दोषों का भंडार है। किन्तु इसमें एक महान सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान् के ध्यान, तप एवं त���रेता युग में यज्ञ-अनुष्ठान, द्वापर युग में आराधक को भक्त तप व पूजा-अर्चन से जो फल प्राप्त होता था, कलयुग में वह पुण्य परमात्मन् श्रीहरिः के नाम-सङ्कीर्तन मात्र से ही सुलभ हो जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं इस कलयुग में शुद्ध भक्ति, प्रेम का वह उच्चतम रूप है जिसका जवाब भगवान बिना शर्त, प्रेम और ध्यान के साथ देते हैं।
कलयुग में चिरजीविन् देव:
वैसे तो महर्षि मार्कण्डेय, दैत्यराज बलि, परशुराम, आञ्जनेय (महावीर्य हनुमन्त् अवा हनुमत्), लङ्केश विभीषण, महर्षि वेदव्यास, कृप व अश्वत्थामन् किन्तु महाबली हनुमन् को समस्त युगों में जगदीश्वर सदाशिवः, चिरजीविन् नारायणः, पितामह ब्रह्मदेव व धर्मराज यमदेव एवं अन्य समग्र देवगणों के आशीर्वचन के अनुसार अतुलित बलधामन् हनुमन्त् अथवा हनुमत् को चिरजीविन् बने रहने का वरदान प्राप्त है। पुरुषोत्तम श्रीरामः ने भी निज साकेत लोक में जाने के पूर्व आञ्जनेय को चिरजीविन् रहने का ��रदान दिया था।
गोसाईं तुलसीदास जी रामायण में लिखते हैं कलियुग में भी हनुमान् जी न केवल जीवंत रहेंगे अपितु चिरजीविन् बने रहेंगे एवं उनकी कृपा से ही उन्हें (महात्मा तुलसीदास) पुरुषोत्तम श्रीराम व लक्ष्मण जी के साक्षात दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्हें सीताराम जी से आशीर्वाद स्वरूप अजर अमर होने का वर प्राप्त है।
हनुमान् जी का वास स्थान:
कहते हैं कि कलियुग में आञ्जनेय (हनुमन्त्) गन्धमादन (गंधमादन) गिरि पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पाण्डव (महाराज पाण्डुपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल सहदेव व द्रौपदी सहित गंधमादन पर्वत के निकट पहुंचे थे।
#devotional#daily devotional#parasbhaiji#parasparivaar#mahadev#motivating quotes#jaimatarani#jaimatadi#krishna
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#कबीर_वाणी
मैं रोवत हूं सृष्टि को सृष्टि रोवत है मोहे हम दोनों के बियोग को समझ सकता ना कोई ❓❓
अर्थ
भगवान कह रहे हैं कि मैं इन सभी जीव आत्माओं को रो रहा हूं जो मुझसे दूर हो चुके हैं और जो सभी सृष्टि पर जीव आत्माएं हैं वह सभी भगवान को रो रही हैं
मनुष्य प्राणी कैसा भी हो उसे भगवान की अवश्य होती है इसीलिए कोई मंदिर में चर्च में मस्जिद में गुरुद्वार में जाता है और हम सभी को ज्ञान ना होने के कारण अज्ञानी गुरु के कहने पर चलने के कारण हम सत भक्ति नहीं कर पा रहे और भक्ति का सही लाभ नहीं उठा पा रहे इस सृष्टि करें किसी भी मनुष्य को पूर्ण ज्ञान ना होने के कारण और एक लोक वेद को ज्ञान का आधार मानकर चल रहे हैं इसी कारण से हमें दुखों का सामना करना पड़ता है और हमारी भक्ति का गुलाब नहीं मिलता जो मीराबाई भक्ति ध्रुव को मिला .
इसीलिए तो रामायण में कहा गया है ❓ .
गुरु बिन वेद पढ़े जो ज्ञानी समझे ना सार रहे अज्ञानी❓ .
इससे सिद्ध होता है कि जो हमारे धर्म गुरु हैं उन्हें .#पवित्र शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान नहीं है .
और उन्हें यह पता नहीं है कि जो प्रभु हमें जन्म देता है और मारता है उसमें किस प्रभु का स्वार्थ है अर्थात जो हमें कष्ट देता है .
इन धर्म गुरुओं को शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान ना होने के कारण काल के जाल से नहीं तो वह खुद बच पा रहे हैं और नहीं हम जीवो को इस काल के जाल से निकाल पा रहे हैं और इसी कारण से हमें अपने किए हुए कर्मों का फल भोगना पड़ता है यहां तक की शास्त्रों में तो लिखा है सत भक्ति करने से अगले जन्मों के भी पाप कर्मों को काट देते हैं .
❓❓❓ अब आप खुद देखें प्रमाण सहित .
❓वेदों में वर्णन है कि भगवान संपूर्ण शांतिदायक है।वेदों में वर्णन है कि भगवान संपूर्ण शांतिदायक है। वह जो हमारे सारे पाप नष्ट करके हमें सुख प्रदान करता है। उसे ही सच्चा एवं सर्वोच्च भगवान कहा गया है।
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 भगवान के निम्न गुणों का वर्णन करता है:
उशिगसी कविरंघारिसि बम्भारिसि...
उशिगसी = (सम्पूर्ण शांति दायक) ��विरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5
गीताजी अध्याय 5 श्लोक 29 में गीता ज्ञान दाता काल–ब्रह्म कह रहा है कि अज्ञानी लोग जो मुझे जगत का स्वामी और संपूर्ण सुखदायी भगवान मानकर मेरी साधना पर आश्रित हैं, वह मेरे से मिलने वाली अश्रेष्ठ(अस्थाई) शांति को प्राप्त होते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप वे लोग पूर्ण परमात्मा से मिलने वाली शांति से वंचित रह जाते हैं, अर्थात् उनका पूर्ण मोक्ष नहीं होता। उनकी शांति समाप्त हो जाती है और अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ते हैं। इसलिए अध्याय 18 के श्लोक 62 में गीता ज्ञानदाता ने कहा है –
“हे अर्जुन! पूर्ण शांति की प्राप्ति के लिए तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सदा रहने वाला सत स्थान/धाम/लोक को प्राप्त होगा।”
इसका प्रमाण अध्याय 7 के श्लोक 18 में भी है।
महत्वपूर्ण: काल (ब्रह्म) भगवान तीनों लोकों के भगवानों (ब्रह्मा - विष्णु - महेश) के और इक्कीस ब्रह्मांडो के स्वामी हैं, वे देवताओं के देवता हैं। इसलिए उन्हें महेश्वर (महादेव) भी कहा जाता है। अज्ञानतावश, मूर्ख समुदाय इस काल को दयावान परमात्मा मानते हुए इससे शांति प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए एक कसाई अपने पशुओं को चारा और पानी उपलब्ध कराता है, और उन्हें आश्रय प्रदान करके गर्मी और ठंड से बचाता है। इसके कारण वे जानवर कसाई को दयालु मानकर उससे प्यार करते हैं। लेकिन वास्तव में कसाई उनका दुश्मन है। वह अपने स्वार्थ पूर्ण उद्देश्य के लिए उन सभी जानवरों को काटता है, मारता है।
इसी तरह, काल भगवान दयालु दिखाई देता है लेकिन सभी जीवों को खाता है। इसलिए, यह कहा गया है कि उनकी शांति समाप्त हो जाती है अर्थात वे अत्यंत कष्ट का अनुभव करते हैं।
गीताजी अध्याय 15 के श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष, अर्थात श्रेष्ठ ईश्वर तो कोई और है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सभी का धारण-पोषण करता है। वह वास्तविक अमर परमात्मा है। उसे ही भगवान कहा जाता है। अपने बारे में गीता ज्ञान दाता ने अध्याय 11 के श्लोक 32 में कहा है कि “अर्जुन, मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। सभी लोकों (मनुष्यों) को खाने के लिए प्रकट हुआ हूं।” जिसके दर्शन मात्र से अर्जुन जैसा पराक्रमी भी अपनी शांति खोकर थरथर कांपने लगा। इसलिए इसी अध्याय 5 के श्लोक 24 से 26 में, गीता ज्ञानदाता के अतिरिक्त एक अन्य शांतिदायक ब्रह्म का उल्लेख है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि गीता ज्ञान दाता शांति दायक ब्रह्म नहीं है, अर्थात् काल है।
विचार करें: वह, जो किसी को गधा बनाता है, किसी को कुत्ता बनाता है, जो किसी के पैर काट देता है (क्योंकि यहां सभी भक्तात्माओं का मानना है कि सब कुछ भगवान की कृपा से होता है। यहां तक कि एक पत्ता भी उनके आदेश के बिना नहीं हिलता है), जो सभी को खाता है, और अर्जुन जैसे योद्धा को डराकर युद्ध का कारण बनता है और फिर युद्ध में किए गए पापों के परिणाम स्वरूप युधिष्ठिर को बुरे सपने भी देता है, फिर जो कृष्ण जी के माध्यम से यह बताता है कि आपको यज्ञ करना चाहिए क्योंकि युद्ध में आपके द्वारा किए गए पाप कष्ट दे रहे हैं, जो उनसे हिमालय में तप करवा कर उनके शरीर गलवाता है और फिर उन्हें नर्क भी भेजता है; ऐसे प्रभु को शांति दायक परमात्मा नहीं कहा जा सकता। अब पाठक स्वयं चिंतन कर सकते हैं।
वो दयालु भगवान कबीर साहिब जी हैं, जो सतलोक के स्वामी हैं। वो सुख के सागर हैं। सतलोक में कोई भी आत्मा दुखी नहीं है। काल लोक में यदि कोई भक्त सुख चाहता है तो उसे परमपिता परमात्मा, पूर्ण ब्रह्म, सनातन प्रभु, कबीर परमात्मा की भक्ति करनी होगी और पूरा जीवन उनकी शरण में रहकर जीना होगा।
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मेडिटेशन (ध्यान) करने का तरीका, फायदे और नियम – Meditation Benefits and Tips in Hindi
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मेडिटेशन (ध्यान) करने का तरीका, फायदे और नियम – Meditation Benefits and Tips in Hindi
Ankit Rastogi Hyderabd040-395603080 August 16, 2019
भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान इस कदर व्यस्त है कि अपनी सेहत के लिए भी समय नहीं निकाल पाता। फलस्वरूप, आप आसानी से कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। इन सभी मुसीबतों से पीछा छुड़ाने का एक बेहतरीन विकल्प है योग और मेडिटेशन यानी कि ध्यान लगाना। इसे करने के कई तरीके हैं, जिसके लिए न तो आपको अपनी दिनचर्या में बड़ा बदल��व करना होगा और न ही कोई खास तैयारी करनी होगी। स्टाइलक्रेज के इस लेख में हम आपको मेडिटेशन क्या है, इसके कुछ आसान प्रकार, उपयोग और फायदों के बारे में बताएंगे। साथ ही लेख के माध्यम से आपको इसे करने के सही नियम और समय से संबंधित जानकारी भी देंगे।
मेडिटेशन के प्रकार और फायदों के बारे में जानने से पहले जरूरी होगा कि मेडिटेशन करने के तरीके के बारे में अच्छे से जान लें।
विषय सूची
मेडिटेशन (ध्यान) कैसे करें – How to Meditate in Hindi
ध्यान लगाना हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है, लेकिन कई लोगों में मेडिटेशन को लेकर सवाल उठता है कि आखिर मेडिटेशन कैसे करें। बता दें मेडिटेशन करने के तरीके में कुछ खास नियम शामिल हैं। इन्हें ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इन्हें अपनाकर आप मेडिटेशन की शुरुआत कर सकते हैं (1)।
बैठने की प्रक्रिया- सबसे पहले आप वज्रासन, सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएं। बैठने की स्थिति में ध्यान रहे कि आपकी रीढ़ सीधी रहे, ताकि आप सही से सांस ले सकें। वहीं, अगर आप किसी वजह से इन आसनों में बैठ पाने में समर्थ नहीं हैं, तो कुर्सी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
आराम की अवस्था- सबसे पहले अपने पूरे शरीर को आराम की अवस्था में ले जाएं। पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें, ताकि सभी मांसपेशियों को आराम मिल सके। इस प्रक्रिया को पैरों से शुरू करके अपने चेहरे तक लाएं। सुनिश्चित करें कि पूरा शरीर आराम की अवस्था में हो।
सांस लेना- आराम की अवस्था को हासिल करने के बाद अपने सांस लेने की प्रक्रिया पर ध्यान दें। अपने शरीर को प्राकृतिक रूप से सांस लेने के लिए प्रेरित करें। इसके बात धीरे-धीरे गहरी सांस लें और फिर उसे उसी प्रकार बाहर निकालें। ध्यान के लाभ को हासिल करने के लिए इस क्रिया को पूरे मन से कई बार दोहराएं।
किसी एक बिंदु पर ध्यान केन्द्रित करें- तीसरे चरण में अब अपना ध्यान किसी एक बिंदु पर केंद्रित करने का प्रयास करें। इसके लिए आप अपनी आत्मा या अंतर्मन पर ध्यान केंद्रित करें। इसके लिए आप एक से पांच तक गिनती करें। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराएं। वहीं, आप किसी ऐसी चीज या विचार पर भी ध्यान केंद्रित करने का प्रयास कर सकते हैं, जो आपको सुख का अनुभव देता हो।
सकारात्मक रवैया अपनाएं- अगर आप ��हली बार मेडिटेशन कर रहे हैं, तो संभव है कि आपका मन बार-बार अन्य विचारों की ओर जाएगा। इस कारण जरूरी होगा कि मन में संतुलन की अवस्था को बनाने की कोशिश करें और मन को भटकने न दें। अगर मन किसी कारण भटक जाए, तो उसे दोबारा केंद्रित करने का प्रयास करें।
भ्रम जाल से बचाव- नींद आना, खुजली का होना, भावनाओं का अनुभव, दिवास्वप्न (जागते हुए सपने देखना), कई प्रकार के विचारों का लगातार आना और जाना आदि कुछ ऐसे भ्रम जाल हैं, जो मेडिटेशन को तोड़ने का काम करते हैं। इसलिए, जरूरी होगा कि आप अपने मन को समझाएं कि यह केवल आपको विचलित करने वाले कारक है, जो आपके मेडिटेशन के रास्ते में रोड़ा बन सकते हैं। इनसे बचने का प्रयास करें और मन को एकाग्र करें। इन सभी बाधाओं को पार करने के बाद ध्यान की चरम सीमा को हासिल कर सकते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए नियमित अभ्यास की जरूरत होती है।
मेडिटेशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अपनी हथेलियों को रगड़कर आंखों पर लगाएं। उसके बाद धीरे-धीरे अपनी आंखों को खोलकर ध्यान की अवस्था से बाहर आएं और अपनी हथेलियों को देखें।
मेडिटेशन कैसे करें इस बारे में जानने के बाद आगे के लेख में हम मेडिटेशन कितने प्रकार का होता है इस बारे में बताएंगे।
मेडिटेशन के प्रकार – Types of Meditation in Hindi
मेडिटेशन के प्रकारों की बात करें, तो इसे करने के कई तरीके हैं, जिन्हें अनेक भागों में विभाजित कर दिया गया है। इनमें से कुछ खास के बारे में हम आपको बताने का प्रयास करेंगे (2) (3)।
1. आध्यात्मिक मेडिटेशन
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आध्यात्मिक ध्यान आपको मोह-माया से अलग दुनिया को देखने में मदद करता है। इसके निरंतर उपयोग से आप अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में समर्थ होते हैं। इससे विचारों और अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए नई मानसिक ऊर्जा का आप में संचार होता है।
2. विपश्यना मेडिटेशन
ध्यान का यह तरीका सबसे प्राचीन माना गया है। बताया जाता कि ध्यान के इस तरीके को करीब 2500 साल पहले महात्मा बुद्ध ने प्रचारित और प्रसारित किया गया था। मेडिटेशन का यह प्रकार आज व्यापक रूप से उपयोग में लाया जाता है। इसकी सहायता से मनुष्य अपने मन के भीतर झांक कर खुद को समझने की कोशिश करता है। इसकी सहायता से मनुष्य अपने विचारों व भावनाओं को नियंत्रित करने के साथ सही और गलत में फर्क करने की क्षमता को विस्त���र देने में समर्थ होता है।
3. जेन मेडिटेशन
मेडिटेशन का यह प्रकार चीनी बौध धर्म द्वारा प्रचारित और प्रसारित किया गया। बता दें कि ध्यान का यह तरीका माइंडफुलनेस मेडिटेशन के अंतर्गत आता है, जिसमें दिमाग को एकाग्र करने पर खास ध्यान दिया जाता है। ध्यान की इस मुद्रा में आपको सुखासन मुद्रा में बैठकर और हाथों को आपस में मिलाते हुए बैठना होता है। ध्यान की इस स्थिति में आपको मुख्य रूप से अपने दैनिक कार्यों पर ध्यान लगाने की आवश्यकता होती है। ध्यान का यह प्रकार आपको दिमागी रूप से विकसित और समृद्ध बनाने में सहायक माना जाता है।
4. शिव मेडिटेशन
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शिव ध्यान आध्यात्मिक ध्यान का ही एक प्रकार है। इसमें आप एक आध्यात्मिक ऊर्जा को केंद्र बिंदु मानकर अपना ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करते हैं। यह प्रक्रिया आपको चेतन मन के परे ले जाकर अपने अचेतन मन में झांकने के लिए प्रेरित करती है। इससे दुनिया को समझने और उसे अनुभव करने के नजरिए में बदलाव महसूस होता है।
5. राजयोग मेडिटेशन
ध्यान के इस प्रकार का उल्लेख सबसे पहले श्रीमद्भगवत गीता में किया गया था। वहीं, 19वीं शताब्दी में स्वामी विवेकानंद ने इस प्रकार को प्रचारित और प्रसारित किया। ध्यान का यह प्रकार आपको शांत रहने और खुद का निरीक्षण करने में मदद करता है। इससे आपके व्यक्तित्व में गंभीरता का भाव पनपता है। इस योग की खास बात यह है कि इसमें किसी प्रकार के मंत्रों का उपयोग नहीं किया जाता। योग की इस प्रक्रिया में आप अपनी आंखें खुली रख कर ध्यान लगा सकते हैं।
6. ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन
मेडिटेशन के इस प्रकार में मनुष्य अपने भीतर यानी अचेतन मन में झांकने का प्रयास करता है। इसके लिए किसी खास मंत्र का उपयोग भी किया जा सकता है। यह आपको भौतिक बाधाओं (दुख, सुख, खुशी और गम) से दूर ले जाकर अपने अस्तित्व का एहसास कराता है। जो आपको यह समझने में मदद करता है कि भौतिक चीजों का दुनिया में कोई भी मोल नहीं हैं।
7. मंत्र मेडिटेशन
मंत्र मेडिटेशन ध्यान का एक ऐसा प्रकार है, जो ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन के अंतर्गत ही आता है। इसमें अपने ध्यान को केंद्रित करने के लिए मंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है। ध्यान रहे यहां मंत्रों से अर्थ किसी धार्मिक परिवेश से जुड़ा हुआ नहीं है। यहां मंत्र का अर्थ किसी शब्द, वाक्य, गाने या कुछ और जिसे बोलने से आपको खुशी या संतुष्टि का एहसास हो सकता है, उससे से है।
8. मूवमेंट मेडिटेशन
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मेडिटेशन का यह प्रकार माइंडफुलनेस मेडिटेशन के अंतर्गत आता है। बता दें कि ध्यान के इस प्रकार में किसी एक कार्य को लक्ष्य मानकर प्रयास किया जा सकता है। इसे हठ योग भी कहा जा सकता है। मेडिटेशन की यह प्रक्रिया किसी विशेष कार्य की पूर्ति होने तक उस पर आपका ध्यान केंद्रित करने में आपकी मदद करती है। ध्यान के इस प्रकार की खास बात यह है कि इसे चलते-फिरते किया जा सकता है।
9. फोकस मेडिटेशन
ध्यान का यह प्रकार विपश्यना मेडिटेशन के अंतर्गत ही आता है। इसमें व्यक्ति किसी मूर्ती, वस्तु या फिर अपनी अंतरात्मा पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया को नियमित अपनाने से इंसान का दिमागी ��िकास होता है। साथ ही किसी काम को केंद्रित होकर करने की क्षमता पैदा होती है।
इसके प्रकारों को जानने के बाद हम मेडिटेशन के लाभ के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मेडिटेशन के फायदे – Benefits of Meditation in Hindi
मेडिटेशन के लाभ कई होते हैं, जिनमें से कुछ के बारे में हम आपको कुछ बिन्दुओं के माध्यम से समझाएंगे (1)।
तनाव में कमी- नियमित रूप से मेडिटेशन करने से तनाव कम होता है और दिमागी शांति का अनुभव होता है।
चिंता और अवसाद में कमी- मेडिटेशन के उपयोग से चिंता और अवसाद से भी छुटकारा पाने में सफलता हासिल की जा सकती है।
दिमागी विकास- मेडिटेशन दिमागी विकास के लिए भी काफी लाभकारी माना जाता है। कारण यह है कि इसकी सहायता से तनाव, चिंता और अवसाद जैसे दिमागी विकारों से छुटकारा मिलता है। इनसे बचाव के साथ दिमाग के कार्य करने की क्षमता प्रबल हो जाती है।
दर्द से छुटकारा- ध्यान करने की क्रिया शरीर में रक्त प्रवाह को संतुलित करती है और दिमाग को शांत करती है। इस कारण इसकी मदद से आत्मिक और भौतिक (शारीरिक) दोनों प्रकार के दर्द से छुटकारा मिल जाता है।
ब्लड प्रेशर- मेडिटेशन ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने का भी एक उत्तम उपाय माना जाता है। कारण यह है कि इसका उपयोग दिमागी शांति प्रदान करता है। साथ ही शरीर में रक्त प्रवाह को भी नियंत्रित करने का काम करता है। ये दोनों ही ब्लड प्रेशर से संबंधित जोखिम कारक हैं, इसलिए इसके नियमित उपयोग से ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में भी सहायता मिलती है।
ह्रदय स्वास्थ्य- मेडिटेशन को ह्रदय स्वास्थ्य से संबंधित सभी जोखिम कारकों जैसे :- तनाव, चिंता और ब्लड प्रेशर को कम करने में सहायक माना गया है (4)।
नींद में सुधार : माइंडफुलनेस मेडिटेशन को नींद में सुधार के लिए फायदेमंद माना जाता है। वहीं, इस संबंध में किए गए एक शोध में इस बात की पुष्टि की गई है कि इसका उपयोग नींद से संबंधित समस्याओं को दूर करने में लाभदायक माना जा सकता है (5)।
फायदों को जानने के बाद अब उपयोग में लाई जाने वाली कुछ जरूरी मेडिटेशन टिप्स के बारे में बताएंगे।
मेडिटेशन (ध्यान) के टिप्स – Meditation Tips in Hindi
1. सही समय
मेडिटेशन के लिए समय का अपना एक अलग महत्व होता है। यही वजह है कि मेडिटेशन करने के लिए सूर्योदय के समय को सबसे अच्छा माना जाता है। कारण यह है कि सुबह के समय आपका शरीर तनाव मुक्त और नई ऊर्जा से भरपूर होता है। इसलिए, अगर आप मेडिटेशन करने की सोच रहे हैं, तो सुबह 6 से 7 बजे के बीच का समय चुनाव के लिए बेहतर माना जा सकता है (6)।
2. शांत वातावरण
मेडिटेशन करने के लिए दिमाग का शांत होना बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर आपका ध्यान अन्य चीजों में लगा रहेगा, तो मन को एकाग्रचित कर पाने में आप सक्षम नहीं हो पाएंगे। इसलिए, शांत वातावरण यानी एकांत का होना बहुत जरूरी है (7), नहीं तो मेडिटेशन करने में आपको दिक्कत महसूस होगी। साथ ही व्यापक परिणाम भी हासिल नहीं हो पाएंगे। इसलिए, जरूरी है कि मेडिटेशन को शुरू करने से पहले आप यह सुनिश्चित कर लें कि इसके लिए आपने जिस जगह का चुनाव किया है, वह शोर-शराबे से मुक्त हो।
3. आरामदायक कपड़ों का चयन
मेडिटेशन में कपड़ों का चुनाव भी अहम भूमिका निभाता है। कारण यह है कि अगर आप चुस्त कपड़ों का चयन करते हैं, तो वह आपके ध्यान को भटकाने का काम कर सकते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि इस दौरान हल्के और आरामदायक कपड़ों को इस्तेमाल में लाया जाए (8)।
4. वार्म अप
अब आती है मेडिटेशन के लिए अंतिम पड़ाव की बात। बता दें सही समय, शांत दिमाग और सही कपड़ों का चयन करने के बाद मेडिटेशन शुरू करने से पहले हल्का वार्म अप (15 से 20 मिनट) जरूर करें (9)। इससे पूरे शरीर में खून का संचार होना शुरू हो जाएगा, जो मेडिटेशन की प्रक्रिया में मददगार साबित होता है। इसके बाद आप मेडिटेशन के कई तरीकों में से किसी एक का चुनाव कर इस प्रक्रिया को अंजाम दे सकते हैं। मेडिटेशन के नियमों को जानने के बाद अब हम आपको इसके प्रकारों के बारे में बताएंगे।
5. पेट खाली होना
विशेषज्ञों के मुताबिक मेडिटेशन खाली पेट ही करना चाहिए (6)। इससे आप अपने शरीर की सारी ऊर्जा का इस्तेमाल ध्यान केंद्रित करने में कर पाएंगे। साथ ही यह आपको बेहतर परिणाम हासिल करने में मदद करेगा।
6. गहरी सांस
मेडिटेशन के दौरान आप��ो गहरी सांस लेनी चाहिए और फिर उसे धीरे-धीरे बाहर छोड़ना चाहिए। साथ ही आपको इस प्रक्रिया को करने में अपने पूरे ध्यान को लगाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने से मन शांत होता है और ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है (10)।
मेडिटेशन टिप्स जानने के बाद अब हम इससे संबंधित कुछ सावधानियों के बारे में बात करेंगे।
मेडिटेशन के लिए कुछ सावधानियां – Precautions for Meditation In Hindi
मेडिटेशन के दौरान आपको कुछ सावधानियों का भी ध्यान रखना चाहिए, जिसके बारे में हम आपको कुछ बिन्दुओं के माध्यम से समझाएंगे (1)।
अगर आप अपने मेडिटेशन को एक निश्चित समय के लिए करना चाहते हैं, तो आप ऐसी घड़ी को सामने रखें, जो किसी प्रकार की आवाज न करे, क्योंकि आवाज या अलार्म वाली घड़ी ध्यान लगाने में बाधा पैदा कर सकती है।
भारी मात्रा में खाना खाने के बाद मेडिटेशन नहीं करना चाहिए।
व्यायाम के फौरन बाद मेडिटेशन करने से बचना चाहिए।
नींद से जागने के तुरंत बाद या नींद के एहसास में मेडिटेशन नहीं करने की सलाह दी जाती है।
मेडिटेशन क्या होता है, अब तो आप इस बारे में अच्छे से जान ही गए होंगे। साथ ही आपको इससे संबंधित लाभों के बारे में भी पूरी जानकारी हासिल हो गई होगी। लेख में आपको ध्यान के प्रकार और उनसे जुड़ी सभी खास बातों को भी समझाया जा चुका है। वहीं, आपको इसे करने के तरीकों से जुड़ी जानकारी भी दी जा चुकी है। ऐसे में अगर आप भी मेडिटेशन को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करने के बारे में सोच रहे हैं, तो पहले लेख में बताई गई सभी बातों को ध्यान से पढ़ें। उसके बाद ही उन्हें अमल में लाएं। आशा करते हैं कि यह लेख आपकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर कर स्वस्थ जीवन जीने में आपकी सहायता करेगा। इस विषय में किसी अन्य प्रकार के सुझाव और सवालों के लिए आप हमसे नीचे दिए कमेंट बॉक्स के माध्यम से जुड़ सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
मेडिटेशन का सबसे आसान तरीका क्या है?
बता दें कि ध्यान करने का कोई भी आसान तरीका नहीं है। इसके लिए आपको नियमित रूप से अभ्यास करने की जरूरत होती है। साथ ही मन को एकाग्र करने का कौशल सीखना होता है, ताकि मन को भटकने से रोका जा सके। फिर भी आप चाहे तो थोड़ी देर के लिए सुखासन में शांत मुद्रा में बैठ जाएं। आंखें बंद करके अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा को महसूस करने का प्रयास करें। इस दौरान आप चाहें तो कुछ मंत्रों जैसे: गायत्री या अन्य जो आपको याद हो, उसका उपयोग कर सकते हैं।
मैं एक दिन में कितनी देर तक ध्यान कर सकता हूं?
मेडिटेशन के शुरुआती दौर में आपको 10 से 15 मिनट तक ध्यान करने का प्रयास करना चाहिए। जब आप इस समय तक ध्यान करने के अभ्यस्त हो जाएं, तो समय को अपनी इच्छा के अनुसार आधे घंटे या एक घंटे तक बढ़ा सकते हैं।
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Ankit Rastogi
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Source: https://www.stylecraze.com/hindi/meditation-ke-fayde-tarika-aur-niyam-in-hindi/
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