#होलिका दहन
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the-sound-ofrain · 2 years ago
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आग की लपटे प्रह्लाद के लिए केवल एक चादर बन गईं, क्योंकि उसके मन में नारायण थे । वही आग की लपटे तेरे अंतरमन को शववस्त्र बन लपेट रही है, क्योंकि तूने हिरण्यकशयप को शय दे रखी है ।
- अय्यारी
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astroera11 · 10 months ago
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होलिका दहन 2024 तिथि समय और महत्व
रंगों के त्योहार होली से पहले आता है होलिका दहन, जिसका भारत में बड़े हर्षोल्लास से स्वागत किया जाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जहां हम अतीत के दुखों को जलाकर नए उत्साह के साथ भविष्य का स्वागत करते हैं। तो आइए साल 2024 में होलिका दहन की तिथि, समय और इसके महत्व को जानें।
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vocaltv · 2 years ago
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होलिका दहन आज, जाने शुभ मुहूर्त
होलिका दहन आज, जाने शुभ मुहूर्त #HOLI #HappyHoli #HolikaDahan
हर वर्ष फाल्गुन मास में पवित्र त्यौहार होली मनाया जाता है. जिसके ठीक 1 दिन पहले रात के समय होलिका दहन का कार्यक्रम होता है. होलिका दहन को देश के तमाम प्रांतों में छोटी होली के नाम से जाना जाता है. इस साल होलिका दहन 7 मार्च यानी मंगलव��र के दिन है. इससे ठीक अगले दिन 8 मार्च के दिन होली खेली जाएगी. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि होलिका दहन पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में ही की जाए तो…
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bestcareerprection · 2 years ago
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Holashtak Date: फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक माना जाता है होलाष्टक. होली के 8 दिन पहले से प्रारंभ हो जाते हैं होलाष्टक। इस वर्ष 27 फरवरी से 07 मार्च तक रहेंगे होलाष्टक। इन 8 दिनों में नहीं होता है कोई भी मांगलिक कार्य
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप के पुत्र थे प्रह्लाद
भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे प्रह्लाद
हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी भगवान विष्णु की भक्ति
उसने भक्त प्रह्लाद को मारने हेतु उन्हें आठ दिनों तक दी थी यातनाएं
होली से पूर्व ये आठ दिन प्रह्लाद के लिए थे बेहद कष्टकारी।
इसलिए इन्हे माना जाता है अशुभ।
होलाष्टक में वर्जित हैं ये कार्य।
इन दिनों में नहीं किए जाते हैं नामकरण, मुंडन और विवाह।
इन दिनों में कोई भी कीमती वस्तु व वाहन ख़रीदना है निषेध।
यदि आप होलीका दहन/Holika Dahan ओर होली/Holi 2023 पुजा शुभ मुहुर्त जानना चाहते है तो आज का पंचांग/Today's Panchang पढे।
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astroclasses · 8 months ago
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noisilytremendousmiracle · 2 years ago
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होली 2023 में कब है | Holi 2023 Date | होलिका दहन 2023 | Holi kab hai 20...
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helpukiranagarwal · 2 years ago
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समस्त देश व प्रदेश वासियों को होलिका दहन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
 इस पावन पर्व पर आपके समस्त दुःखों का अंत हो, खुशियों के नए द्वार खुले और जीवन में सुख, समृद्धि एवं धन-वैभव का आगमन हो ।
 #HolikaDahan_2023
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helputrust · 2 years ago
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समस्त देश व प्रदेश वासियों को होलिका दहन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
 इस पावन पर्व पर आपके समस्त दुःखों का अंत हो, खुशियों के नए द्वार खुले और जीवन में सुख, समृद्धि एवं धन-वैभव का आगमन हो ।
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drrupal-helputrust · 2 years ago
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समस्त देश व प्रदेश वासियों को होलिका दहन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
 इस पावन पर्व पर आपके समस्त दुःखों का अंत हो, खुशियों के नए द्वार खुले और जीवन में सुख, समृद्धि एवं धन-वैभव का आगमन हो ।
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helputrust-drrupal · 2 years ago
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समस्त देश व प्रदेश वासियों को होलिका दहन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
 इस पावन पर्व पर आपके समस्त दुःखों का अंत हो, खुशियों के नए द्वार खुले और जीवन में सुख, समृद्धि एवं धन-वैभव का आगमन हो ।
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helputrust-harsh · 2 years ago
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समस्त देश व प्रदेश वासियों को होलिका दहन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
 इस पावन पर्व पर आपके समस्त दुःखों का अंत हो, खुशियों के नए द्वार खुले और जीवन में सुख, समृद्धि एवं धन-वैभव का आगमन हो ।
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astrovastukosh · 3 months ago
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"रक्षा बंधन 2024: भाई-बहन के प्यार का शाश्वत बंधन, भद्रा - बहुत काम की छोटी बातें, शुभ मुहूर्त को न चूकें!
भद्रा - बहुत काम की छोटी बातें
19 अगस्त को रक्षाबंधन है रक्षाबंधन तथा होली पर भद्रा की चर्चा सभी जगह होने लगती है भद्रा क्या है? आज पहली बार इसे जानते हैं - -पंचांग के 5 अंग होते हैं तिथि, वार, नक्षत्र , योग और करण ! पांचों अंगों में एक अंग का ��ाम करण है करण 11 होते हैं तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं एक करण का नाम विष्टि भी है इसी का पर्याय भद्रा होता है
ज्योतिष महर्षियों ने अपने अनुभव से इस करण को शुभ नहीं माना वरन यहां तक लिखा है कि "भद्रा में जो व्यक्ति जीवित रहना चाहे अर्थात स्वस्थ रहना चाहे तो उसे भद्रा में शुभ कार्य नहीं करना चाहिये
विशेषकर रक्षाबंधन और होली के लिए कहा गया है कि ~ भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा! श्रावणी नृपति हन्ति ग्राम दहती फाल्गुनी! इस श्लोक में श्रावणी का अर्थ रक्षाबंधन तथा फाल्गुनी का अर्थ फाल्गुन की पूर्णिमा अर्थात होली से है इसका अर्थ है कि यदि भद्रा मे रक्षाबंधन कर दिया जाए तो राजा अर्थात घर के मुखिया को भारी कष्ट होता है तथा होली के दिन भद्रा में होलिका दहन कर दिया जाए तो राष्ट्र तथा ग्राम का नाश होता है पुराणों में भद्रा को सूर्य की पुत्री तथा शनि की बहिन माना गया है इसकी उपस्थिति मांगलिक कार्य में वर्जित मानी गई है यह भी मान्यता है कि भद्रा में लगाया गया भोग भद्रा को ही प्राप्त होता है इसके बाद लगाया गया भोग भगवान को प्राप्त होता है
19 अगस्त को भद्रा दोपहर 1:30 तक रहेगी दोपहर 1:48 से सायंकाल 4:22 तक तथा सायंकाल 6-57 से 9-10 तक का समय राखी बांधने के लिए सर्वोत्तम रहेगा
यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि राजा दशरथ द्वारा अनजाने में श्रवण कुमार के तीर लग जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी राजा को बहुत दुख हुआ उसने प्रायश्चित स्वरूप यह घोषणा की कि रक्षाबंधन के दिन श्रवण कुमार की पूजा की जाएगी तथा पहली राखी श्रवण कुमार को भेंट की जाएगी तभी से यह परंपरा आज तक चल रही है
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aartividhi · 6 months ago
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श्री हनुमान बाहुक पाठ | Sri Hanuman Bahuk
श्री हनुमान बाहुक पाठ | Sri Hanuman Bahuk
श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीमद्-गोस्वामी-तुलसीदास-कृत छप्पय सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु । भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।। गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव । जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।। कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट । गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ।।१।। स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन । उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ।। पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन । कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।। कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट । संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ।।२।। झूलना पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो । बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ।। जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो । दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ।।३।। घनाक्षरी भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो । पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।। कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो। बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ।।४।। भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो । कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ।। बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो । नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ।।५ गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो । द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ।। संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो । साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ।।६ कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो । जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ।। कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो । भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ।।७ दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो । सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ।। दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो । ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ।।८ दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को । पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को ।। लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को । राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ।।९।। महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को । कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को ।। दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को । सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ।।१०।। रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो । धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिम-भानु भो ।। खल-दुःख दोषिबे को, जन-परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो । आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ।।११।। सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को । देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ।। जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को । सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ।।१२।। सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी । लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ।। केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की । बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ।।१३।। करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोद-महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ । बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।। आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ । मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ।।१४।। मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं । देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं । बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं । बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ।।१५।। सवैया जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो । ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।। साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो । दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ।।१६।। तेरे ��पे उथपै न मह��स, थपै थिरको कपि जे घर घाले । तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।। संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले । बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ।।१७।। सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से । तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ।। तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से । बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से ।।१८।। अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो । बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ।। राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो । पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ।।१९।। घनाक्षरी जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये । सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ।। अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये । साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ।।२०।। बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये । रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ।। बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये । केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ।।२१।। उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये । राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।। साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये । पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ।।२२।। राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये । मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ।। कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये । महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मार��ये ।।२३।। लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये । कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ।। खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये । बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिक���लि ही उखारिये ।।२४।। करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी । बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।। आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी । पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ।।२५।। भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की । करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ।। पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की । आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ।।२६।। सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है । लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ।। तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है । भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ।।२७।। तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की । तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ।। साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की । आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ।।२८।। टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है । कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ।। इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है । सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ।।२९।। आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है । औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ।। करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है । चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ।।३०।। दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को । बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ।। एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को । थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ।।३१।। देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे ��ड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं । पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ।। घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं । क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ।।३२।। तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के । तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ।। तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के । तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ।।३३।। पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये । भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये ।। अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये । बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ।।३४।। घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है । बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है ।। करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है । खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ।।३५।। सवैया राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो । पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।। बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो । श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ।।३६।। घनाक्षरी काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे । बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ।। लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे । भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ।।३७।। पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है । देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ।। हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है । कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ।।३८।। बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं । राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत ��ूत कहा मेरे मान हैं ।। सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं । तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ।।३९।। बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं । परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ।। खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं । तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ।।४०।। असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को । तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ।। नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को । ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ।।४१।। जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को । तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ।। मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को । भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ।।४२।। सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै । मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ।। ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै । कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ।।४३।। कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये । हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ।। माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये । तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ।।४४।। Read the full article
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vikaskumarsposts · 8 months ago
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#राम_रंग_होरी_हो
होली पर होलिका दहन से पहले भक्त प्रह्लाद तथा होलिका की पूजा की जाती है। आपको बता दें की इस पूजा का वर्णन पवित्र वेदों था गीता जी में कहीं पर भी नहीं मिलता। जिस से यह शास्त्र विरुद्ध तथा व्यर्थ पूजा साधना है। 
जिस प्रकार देश दुनिया के लोग एकसाथ मिलजुलकर रंगों की होली हर्ष और उल्लास के साथ खेलते हैं ठीक उसी तरह शाश्वत सनातन परमधाम अर्थात सतलोक में हंस आत्माएं राम नाम का रंग चढ़ा कर सदा हमेशा के लिए होली का आनंद उठाते हैं। वर्तमान में केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही एकमात्र सच्चे संत हैं जिन्होंने असली तथा नकली होली के अंतर को प्रमाण सहित बताया है। आप सभी से निवेदन है कि होली की य��ार्थता जानने के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग Satlok Ashram News YouTube channel पर अवश्य देखें।
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iammanhar · 8 months ago
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Day☛1247✍️+91/CG10☛In Home☛26/03/24 (Tue) ☛ 21:44
अब तो होली भी मना लिया ,साल का पूरा त्यौहार मना लिया ,अब कोई त्यौहार नहीं बचा है ,अब शादी का सीजन आ गया | अपना तो शादी और होली दोनों पूरा हो गया है | अपुन को क्या .....😂🤣
आज ऑफिस बंद था ,होली के एक दो दिनों तक ऑफिस बंद ही रहता है ,होली एक ऐसा त्यौहार है जिसका रंग सप्ताह तक रहता है ,धीरे धीरे बेरंग होते है , आज पूरा दिन घर में डाटा सिलेक्शन का काम किया हूँ ,आज 4 सौ टीचर्स का ��ोबाइल नंबर छांट कर निकाला हूँ जिनका उपयोग telecalling में किया जायेगा ,अब अकेले काम नहीं करना है टीम वर्क के साथ अपने काम को अन्जाम देना है ,अकेले काम करके देख लिया ,रिजल्ट कम आता है ,अगर लाइफ में कुछ बड़ा करना है तो बड़ा सोचना पड़ेगा और बड़ा प्लान भी बनाना पड़ेगा |
बचपन का वह दिन जब हम छोटे छोटे थे ,दा��ा जी जिन्दा थे ,वे होली में होलिका दहन के जगह जाते थे ,घर से कंडा (उपले ) लेकर जाते थे ,उसे जलाकर राख बनाकर लाते थे ,उसे घर में संभालकर रखते थे ,हाथ पैरों में राख को लगाते थे ,यह सोचकर कि खसरा रोग न हो जाये ,ऐसी मान्यता थी कि होलिका वाली राख को शारीर में लगाने से खसरा खुजली वाली बीमारी नहीं होती है | मैंने तो वह राख लगाया है भाई ,दुनिया की बात नहीं जानता ,दादा जी ऐसा बोलते थे तो उनकी बातों को मानकर | एक बात आज तक प्रमाणित है कि मुझे खसरा खुजली की बीमारी सच में नहीं हुई है ,वही जो बच्चो को होती है,मुझे ही नहीं हम सभी भाई बहन को ऐसी बीमारी हुई नहीं है | मतलब दादा जी एकदम राईट थे .................👌👍💪
बेबी आज अपने बुआ के घर में है ,पहली बार अपने बुआ के घर गई है ,पहली बार हमारी मैडम भी गीता के घर गई है ,आज ही शाम की वे दोनों वहां पहुंचे है ,शायद कल वहां से घर आ जाए ,नए नए जगहों पर घुमने जाना चाहिए , जान पहचान बढती है ,रिश्ते नाते की खोज खबर होती है ,खैर ...............
सोचता हूँ कि youtube पर कुछ विडियो बनाकर अपलोड करू ,रील बनाऊ ,जैसे की बहुत सारे लोग आजकल करते है ,मगर विचार आता है कि कौन यह सब झंझट करे ,सीधा सा काम तो ढंग से हो नहीं रहा है ,फिर ये रील वील का झंझट अपने से नहीं होगा ,अच्छा है ब्लॉग तक सिमित रहे | अपना अपना स्टाइल है |
आज शेयर मार्केट तीन दिन बाद खुला ,बढ़िया moment देखने को मिला है ,शेयर मार्केट ही अब अपना उद्धारकर्ता है ,उसी को अपना अंतिम विकल्प मानकर आगे बढ़ना चाहता हूँ |.....
ओके गुड नाईट
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kanpursamachar · 8 months ago
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होलिका दहन के बाद उडा़ अबीर गुलाल
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