#हिंदी सिनेमा की फ्लॉप फिल्मों
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indlivebulletin · 22 hours ago
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शाहरुख-अक्षय से अजय-रणवीर तक, कार्तिक आर्यन ने एक ही फिल्म से इन 4 बड़े सितारों को धो डाला!
शाहरुख खान, अक्षय कुमार, अजय देवगन और रणवीर सिंह हिंदी सिनेमा के बड़े सितारे हैं. शाहरुख खान तो बॉलीवुड के बादशाह भी हैं, सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में उनकी 1000 करोड़ी ‘जवान’ और ‘पठान’ का नाम भी शामिल हैं. अजय देवगन और अक्षय कुमार का हाल एक जैसा ही मान लेते हैं, जब-जब इन दोनों सितारों की फिल्में चलती हैं, तो छप्परफाड़ कमाई करती हैं. हालांकि इनकी फ्लॉप फिल्मों के रिकॉर्ड भी गजब के हैं.…
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sabkuchgyan · 4 years ago
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बॉलीवुड सुपरस्टार होते हुए भी जनता ने नहीं दिया प्यार इनकी इन फिल्मो को , जानकर चौंक जायेंगे
सुपरस्टार होते हुए भी जनता ने नहीं दिए प्यार इनकी इन फिल्मो को , जानकर चौंक जायेंगे #bollywood #entertainment #movies #flop #shahrukh #salman #priyankachopra #trending #kites
बॉलीवुड में एक साल में लगभग 1000 फिल्में बनती हैं और इसकी कमाई भी दुनिया भर में चर्चा का विषय बन जाती है। हालाँकि, दूसरी तरफ, बॉलीवुड की कुछ ऐसी फिल्में हैं, जो फ्लॉप हुईं और फिल्म निर्माता को भारी नुकसान हुआ।
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rudrjobdesk · 2 years ago
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Prabhas Fees: 'Radheshyam' फ्लॉप देने के बाद भी 100 करोड़ लेने वाले प्रभास ने फिर बढ़ाई फीस, जानिए
Prabhas Fees: ‘Radheshyam’ फ्लॉप देने के बाद भी 100 करोड़ लेने वाले प्रभास ने फिर बढ़ाई फीस, जानिए
Prabhas Fees Hike: प्रभास देश के सबसे महंगे स्टार माने जाते हैं और उन्होंने फिल्मों की फीस के मामले में न सिर्फ साउथ बल्कि हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार्स को भी पछाड़ दिया है. बाहुबली से पहले अभिनेता का स्टारडम सिर्फ दक्षिण सिनेमा तक ही सीमित था लेकिन अब वे देशभर के चहेते स्टार बन गए हैं. राजामौली (SS Rajamouli) की फिल्म ने उन्हें ग्लोबल स्टार बना दिया, जिससे न सिर्फ उनकी लोकप्रियता बढ़ी बल्कि फीस…
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abhay121996-blog · 4 years ago
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सलमान खान कभी इस सुपरस्टार जैसा स्टारडम हासिल नहीं कर सकता: सलीम खान Divya Sandesh
#Divyasandesh
सलमान खान कभी इस सुपरस्टार जैसा स्टारडम हासिल नहीं कर सकता: सलीम खान
नई दिल्ली। बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान के पिता सलीम खान ने कहा कि मेरे बेटे की फैन्स के बीच उनकी जबरदस्त फैन फॉलोइंग है, लेकिन वह कभी राजेश खन्ना जैसा स्टारडम नहीं पा सकता। राजेश खन्ना की हिट फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ की स्क्रिप्ट लिखने वाले सलीम खान कहते हैं कि हिंदी सिनेमा में अब राजेश खन्ना जैसा स्टारडम शायद ही किसी को मिल पाएगा। 
राजेश खन्ना ��र लिखी गई पुस्तक ‘द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज फर्स्ट सुपरस्टार’ की प्रस्तावना में सलीम खान ने बेटे सलमान की तुलना राजेश खन्ना से करते हुए लिखा है कि वह कभी ‘काका’ जैसा स्टारडम हासिल नहीं कर सकते। आज मेरा बेटा सलमान खान बड़ा स्टार है। मेरे घर के बाहर उसकी एक झलक देखने के लिए लोग उमड़े होते हैं। कई लोग मेरे पास आए और कहा कि उन्होंने सलमान खान जैसा स्टारडम किसी का नहीं देखा। लेकिन मैं उन्हें बताता हूं कि यहां से कुछ ही दूरी पर कार्टर रोड स्थित बंगले आशीर्वाद के बाहर मैंने ऐसे तमाम नजारे देखे हैं। 
राजेश खन्ना के बाद वैसी दीवानगी और स्टारडम मैंने किसी और के लिए नहीं देखी।’ सलीम खान कहते हैं कि राजेश खन्ना के दीवाने हर उम्र के लोग थे। 6 साल से लेकर 60 साल तक की आयु के लोग राजेश खन्ना के फैन थे। खासतौर पर लड़कियां तो उनके लिए बेहद ही रोमांचित रहती थीं। 
सलमान के पिता ने आगे लिखा कि मैं एक बार राजेश खन्ना के साथ तमिलनाडु गया था और वहां राजेश खन्ना को देखने के लिए भारी जमावड़ा था। उस दौर में भी तमिल इंडस्ट्री के पास बड़े स्टार थे और वहां हिंदी सिनेमा को पसंद करने वालों की संख्या भी कम थी। फिर भी राजेश खन्ना को देखने के लिए इतने लोगों का उमड़ना बताता था कि ‘काका’ की लोकप्रियता किस हद तक थी। 
हालांकि सलीम खान ने राजेश खन्ना की फिल्मों के फ्लॉप होने के सिलसिले के बारे में भी लिखा है। वह कहते हैं कि इसकी बड़ी वजह यह थी कि राजेश खन्ना हमेशा खुद को स्टार ही मानते रहे और कभी कुछ अलग करने का प्रयास नहीं किया। इसके अलावा उनके ऐटिट्यूड के चलते फिल्म इंडस्ट्री के तमाम निर्देशकों ने उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया था। 
राजेश खन्ना ने कहा था, माउंट एवरेस्ट से गिरा हूं, खुद राजेश खन्ना ने अपने करियर में ढलान को लेकर कहा था, ‘यह सही है कि मैं नीचे गिरा हूं औैर इससे आहत हुआ हूं। यदि मुझे थोड़ी बहुत सफलता मिली होती तो एडजस्ट कर सकता था, लेकिन इतनी ज्यादा ऊंचाई से गिरने पर मैं टूट गया। इससे मैं अंदर से बेहद दुखी हो गया। दुख बहुत ज्यादा था क्योंकि मैं माउंट एवरेस्ट से गिरा था।’ 
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bollywoodpapa · 4 years ago
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लोगो की पहली पंसद बन चुकी आयशा ने अचानक छोड़ दी थी फिल्म इंडस्ट्री, इंटीमेट सीन को लेकर कर अभिनेत्री किया था विवाद!
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लोगो की पहली पंसद बन चुकी आयशा ने अचानक छोड़ दी थी फिल्म इंडस्ट्री, इंटीमेट सीन को लेकर कर अभिनेत्री किया था विवाद!
दोस्तों 90 के दशक की खूबसूरत अभिनेत्री आयशा जुल्का एक उस समय डायरेक्टर की पहली पंसद हुआ करती थी,  ‘खिलाड़ी’, ‘जो जीता वही सिकंदर’, ‘बलमा’, ‘रंग’ और ‘वक्त हमारा है’ जैसी कामयाब फिल्में करने वालीं आयशा जुल्का नज़र आ चुकी हैं। आज आयशा का जन्मदिन है, वो 48 साल की हो गई हैं। 28 जुलाई 1972 को श्रीनगर में आयशा का जन्म हुआ था। कई साल पहले बॉलीवुड छोड़कर एक बिजनेस वुमन बन चुकी�� आयशा अपने बॉलीवुड करियर के दौरान अक्षय कुमार, नाना पाटेकर और मिथुन चक्रवर्ती के साथ अफेयर को लेकर चर्चा में रहीं।
बता दे की तेलुगू फिल्म ‘नेति सिद्धार्थ’ से आयशा ने अपने करियर की शुरुआत की थी और बॉलीवुड इंडस्ट्री में उन्होंने ‘कुर्बान’ फिल्म से कदम रखा। आयशा जुल्का ने हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगू और कन्नड़ फिल्मों में काम किया है।  साल 1992 में फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ में उन्होंने आमिर खान के साथ किया। इस फिल्म ने उनके करियर को शिखर पर पहुंचा दिया था।
आयशा ने मिथुन चक्रवर्ती के साथ फिल्म दलाल में काम किया था। इस फिल्म को लेकर खूब विवाद हुआ। दरअसल आयशा का आरोप था कि उन्हें बताए बिना फिल्मकार पार्थ घोष और प्रकाश मेहरा ने फिल्म में एक अंतरंग दृश्य के लिए उनके बॉडी डबल का इस्तेमाल किया था, जबकि आयशा ने फिल्म साइन करने से पहले ही निर्देशकों से सख्ती से कहा था कि वह फिल्म में कोई इंटीमेट सीन नहीं करेगी। बोल्डनेस का यह मामला कोर्ट तक भी पहुंचा था और इसके बाद आयशा का करियर खत्म हो गया।
उन्होंने अपने करियर में 52 फिल्में की, जिनमें से कई सुपरहिट हुईं। आयशा ने एक इंटरव्यू में बॉलीवुड छोड़ने के सवाल पर कहा था कि करियर खत्म करने के लिए फिल्मों के फ्लॉप होने का इंतजार करने से बेहतर है सही समय पर आगे बढ़ जाना। आज आयशा के फैंस सोशल मीडिया से लेकर हर जगह उनकी तलाश करते हैं लेकिन आयशा अपने फैंस से जुड़ी हुई नहीं हैं। वह फिल्मी चकाचौंध से दूर अपने बिजनेस पर ध्यान लगा रही हैं।
साल 2003 में उन्होंने बिजनेसमैन समीर वाशी से गुपचुप शादी रचाई और कुछ समय के बाद फिल्मी दुनिया को छोड़ पति के साथ मिलकर बिजनेस संभालने लगीं। आयशा ने शादी के बाद अपना स्पा खोला और अब वो इसी बिजनेस में बिजी हैं। उन्होंने न न केवल हिंदी सिनेमा में बल्कि उड़िया, कन्नड़ और तेलेगु फिल्मों में भी काम किया है। उन्होंने अपने एक्टिंग करियर में अपनी अलग पहचान बनाई।
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manishajain001 · 5 years ago
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साल 2014 में रिलीज हुई फिल्म हम तुम को आज पूरे 16 साल हो चुके हैं। रानी मुखर्जी, सैफ अली खान और ऋषि कपूर स्टारर इस फिल्म को दर्शकों का खूब प्यार मिला। 16 साल पूरे होने पर फिल्म के डायरेक्टर कुणाल कोहली ने इससे जुड़ी कई दिलचस्प बातें शेयर की हैं।
ऋषि कपूर जी ने किया था इनकार
जब मैं यह फिल्म ऋषि कपूर जी के पास लेकर गया था तब इस फिल्म में उनके मात्र 7 सीन थे और उन्होंने यह कहकर मना कर दिया था कि वह बड़ी फिल्में करना पसंद करते हैं मात्र 7 सीन वाली फिल्में नहीं। लेकिन जब मैंने उन्हें हर सीन को पढ़कर सुनाया तब उन्हें स्क्रिप्ट पसंद आई और उन्होंने इस फिल्म को करने में हामी भर दी।
जब सैफ के साथ झगड़ा हो गया था
��ूटिंग के सेट पर'हम तुम' मेरे करियर की दूसरी फिल्म थी जबकि पहली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा नहीं चली थी। 'हम तुम' की शूटिंग के दौरान मेरा सैफ के साथ सेट पर झगड़ा हो गया था। उस वक्त ऋषि जी भी वहां मौजूद थे और उन्होंने हम दोनों को डांटा और कहा कि बड़ों के जैसे बिहेव करो बच्चों की तरह मत लड़ो। फिर मैंने सैफ से जाकर बात की और उन्हें यह समझाया कि यह फिल्म हम दोनों के करियर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है उस वक्त सैफ की भी कुछ फिल्में फ्लॉप हो गई थीं। उसके बाद सैफ ने सिचुएशन को समझा और उसके बाद हम लोगों ने दोस्ती कर ली और फिर कभी झगड़ा नहीं किया।
एनिमेशन यूज करने के लिए लोगों ने किया था विरोध
आज भी हिंदी फिल्मों में ज्यादा एनिमेशन इस्तेमाल नहीं किया जाता है तो 16 साल पहले एनिमेशन इस्तेमाल करना एक बहुत बड़ा कदम था। उस वक्त यशराज के भी कई लोगों ने मुझे कहा था कि मुझे फिल्म से एनिमेशन हटा देना चाहिए और इससे फिल्म में कोई बदलाव नहीं होगा। एनिमेशन का टोटल बजट पचास लाख रुपए था और मुझे यह कहा गया था कि इतने में तो मैं एक गाना शूट कर सकता हूं, लेकिन फिर भी मैं चाहता था कि इस हम तुम के एनिमेशन को सैफ एक कार्टूनिस्ट की तरह दिखाएं और फिल्म रिलीज के बाद सभी लोगों को मेरा यह कांसेप्ट बेहद पसंद आया।
रानी मुखर्जी को मिला था पहला बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड
उस वक्त रानी मुखर्जी कई सुपरहिट फिल्मों का हिस्सा रह चुकी थी लेकिन फिर भी वह सेट पर बहुत कॉर्पोरेट करती थीं। हम सब बहुत प्रेशर में थे क्योंकि फिल्म बहुत ही छोटे बजट में बनी थी। मुझे याद है कि यह पहली फिल्म थी जिसने रानी मुखर्जी को बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड दिलवाया था।आज भी इंडस्ट्री में रोमांटिक कॉमेडी फिल्म बनाने से हिचकिचाते हैं लोगमैं यही मानता हूं कि हम तुम ने हिंदी सिनेमा में एक बदलाव लाया है और इस फिल्म के सफल होने के बाद ही लोग रोमांटिक कॉमेडी बनाने की कोशिश करने लगे।अगर 'हम तुम' नहीं होती तो शायद 'जब वी मेट' भी नहीं होती और भी कई रोमांटिक कॉमेडी फिल्में इसके बाद आई गई पर इस प्रथा की शुरुआत हम तुम ने की थी।
सैफ नहीं थे इसकी पहली च्वाइस
जहां स्क्रिप्ट खत्म होते ही मैंने अभिनेत्री के रूप में रानी मुखर्जी को इस फिल्म के लिए चुन लिया था उसी तरह यह फिल्म पहले रितिक रोशन, आमिर खान और विवेक ओबेरॉय को सुनाई गई थी जब इन तीनों एक्टर्स ने इस फिल्म को करने से मना कर दिया, तब सैफ अली खान को इस फिल्म के लिए अप्रोच किया गया था। मुझे यह लगता है कि अगर सैफ हम तुम का हिस्सा नहीं होते तो शायद यह फिल्म बनती ही नहीं।
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Saif Ali Khan and Director kunal kohli gets into a fight in dset of hum tum film, rishi kapoor sorted out matter
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trendingpark · 5 years ago
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एक दौर में बॉलीवुड की अदाकारा परवीन बॉबी (parveen babi) अपनी फिल्मों से ज्यादा अपने प्यारे के किस्से को लेकर मशहूर हुआ करती थीं. उनके प्यार के किस्से आज भी लोगों की जुंबा पर रहते हैं. उस जमाने में परवीन बॉलीवुड की टॉप अभिनेत्रियों में से एक थीं. जिनके साथ फिल्में करने के लिए डायरेक्टर्स की लाइन लगी होती थी. परवीन और फेमस डायरेक्टर महेश भट्ट (mahesh bhatt) के प्यार के किस्सों ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं. पर ऐसा कहा जाता है कि, परवीन का नाम कबीर बेदी और डैनी के साथ भी जुड़ा था. मगर उनकी शादी किसी से नहीं हो सकी. परवीन के आने से मिली कामयाबी परवीन और अपने रिश्ते को लेकर महेश भट्ट (mahesh bhatt parveen babi) ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि, परवीन जब उनकी लाइफ में आई तब वह हिंदी सिनेमा की काफी जानी-मानी एक्ट्रेस थीं. हर कोई उनका दीवाना हुआ करता था. मगर महेश उस समय हिट फिल्मों के बजाय फ्लॉप फिल्में बना रहे थें. उसी दौरान दोनों की मुलाकातें प्यार में बदल गईं और महेश अपनी पत्नी और बेटी को छोड़कर परवीन के साथ लिव इन में रहने लगे. यह जानते हुए कि, वह पहले से शादीशुदा हैं और बेटी के पिता हैं. जब परवीन ने रखी शर्त महेश भट्ट ने एक रात के किस्से के बारे में बताया कि, बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थीं और मैं परवीन के साथ बेडरूम में था. इस बीच परवीन ने अचानक उनसे सवाल किया कि, 'यूजी या उनमें से किसी को चुन लें यूजी कृष्णमूर्ति एक (फिलॉसफर और गुरु) थे. दरअसल, यूजी को परवीन की तबीयत की काफी चिंता थी और इस वजह से वह नहीं चाहते थे कि, परवीन फिल्मों में काम करें और इसी कारण से परवीन उन्हें पसंद नहीं करती थी. पर परवीन के इस सवाल पर महेश भट्ट बिना जवाब दिए बेडरूम से बाहर उठकर जाने लगे. यह देख परवीन रोने लगी और महेश को रोकने की काफी कोशिश की पर उन्होंने एक नहीं सुनी. बिना कपड़ों के भागीं थी पीछे महेश भट्ट को जाते देख परवीन बॉबी उस वक्त बिना कपड़ों के ही उनके पीछे भागने लगीं थीं और जब यह महेश ने देखा तो, वह हैरान रह गए और उन्होंने रोकना भी चाहा. पर वह चाहते हुए भी परवीन को रोक नहीं पाए और बिना कुछ कहे ही चले गए. कहा जाता है कि, इसी रात के बाद दोनों के प्यार के अंत हो गया था. महेश बताते हैं कि, उस रात को याद कर वह काफी परेशान हो गए थे. इसके अलावा महेश अपनी कामयाबी का श्रेय परवीन बॉबी को ही देते हैं. पर खूबसूरत परवीन ने 20 जनवरी 2005 में 55 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया और परवीन का अंतिम संस्कार भी खुद महेश ने किया था. ये भी पढ़ेंः- हेमा मालिनी की वजह से शाहरुख-गौरी की सुहागरात हो गई थी बर्बाद, ऐसे ��गाया था रोड़ा
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its-axplore · 5 years ago
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कोरोनावायरस के लॉकडाउन का असर दुनिया की हर इंडस्ट्री पर स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहा है। एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री भी इससे अछूती नहीं है। बात अकेले बॉलीवुड की करें तो यहां 19 मार्च से हर तरह की शूटिंग, प्रोडक्शन और रिलीज पर प्रतिबंध लगा हुआ है। इसके चलते कई पूरे साल का शेड्यूल बिगड़ गया है। कई A-लिस्टर्स के सामने तो यह संकट खड़ा हो गया है कि क्या उनकी कोई भी फिल्म इस साल रिलीज हो पाएगी।
दूसरे साल भी आमिर खाली हाथ बॉलीवुड में लॉकडाउन से पहले आमिर खान अपनी फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' की शूटिंग चंडीगढ़ में कर रहे थे, जो पिछले एक महीने से रुकी हुई है। अद्वैत चंदन के निर्देशन में बन रही यह फिल्म इसी साल क्रिसमस के मौके पर रिलीज होने वाली थी। लेकिन कोरोनावायरस के कारण बनी परिस्थितियों के कारण यह आगे बढ़ गई है। पिछले दिनों कई रिपोर्ट्स में फिल्म के राइटर अतुल कुलकर्णी के हवाले से लिखा गया था कि यह फिल्म क्रिसमस की बजाय अगले साल रिलीज हो सकती है। अगर यह सच है तो ये लगातार दूसरा साल होगा जब आमिर की कोई फिल्म रिलीज नहीं हो पाएगी। इससे पहले 2018 में उनकी 'ठग्स ऑफ हिन्दोस्तां' रिलीज हुई थी, जो बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई थी।
लाल सिंह चड्ढा' हॉलीवुड फिल्म 'फॉरेस्ट गंप' की आधिकारिक हिंदी रीमेक है। टॉम हैंक्स को इसके लिए लगातार दूसरा बेस्ट एक्टर का ऑस्कर अवॉर्ड मिला था।
शाहरुख खान की भी रिलीज जीरो शाहरुख खान की आखिरी फिल्म 'जीरो' 2018 में रिलीज हुई थी। इसके बाद उन्होंने कोई फिल्म साइन नहीं की है। उम्मीद जताई जा रही थी कि इस साल के अंत तक उनकी कोई न कोई फिल्म ��ॉक्स ऑफिस पर आ सकती है। लेकिन लॉकडाउन ने उनके फैन्स के इस सपने को तोड़ दिया है। पिछले दिनों जब शाहरुख ने ट्विटर पर #AskSRK सेशन होस्ट किया था, कुछ लोगों ने उनके अपकमिंग प्रोजेक्ट्स के बारे में पूछा था और शाहरुख का जवाब था कि उन्होंने अभी तक कोई फिल्म साइन नहीं की है। साथ ही उन्होंने अपने फैन्स से परेशान न होने की अपील भी की थी और कहा था कि जल्दी ही वे फिल्में साइन करेंगे।
सलमान खान की भी मुश्किल सलमान खान की इकलौती फिल्म 'राधे : योर मोस्ट वांटेड' फिल्म इस साल ईद पर 22 मई को रिलीज होने वाली थी। लेकिन लॉकडाउन के चलते इसकी करीब पांच दिन की शूटिंग अटकी हुई है। फिर इसके पोस्ट प्रोडक्शन का काम भी बाकी है। वहीं, 3 मई तक लॉकडाउन घोषित है और उसके बाद भी स्थिति सामान्य होने की संभावनाएं कम ही हैं। ऐसे में लगभग तय है कि 'राधे' तय समय पर ��िलीज नहीं हो पाएगी। अगर ट्रेड एक्सपर्ट्स की मानें तो सिनेमा जगत में स्थिति अगस्त-सितंबर तक ही सामान्य हो पाएगी और ऑडियंस का रिस्पॉन्स देखने के लिए छोटे बजट की फिल्मों को पहले रिलीज किया जाएगा। ऐसे में संदेह है कि राधे इस साल रिलीज हो पाएगी या नहीं।
'राधे : योर मोस्ट वांटेड' का निर्देशन प्रभुदेवा कर रहे हैं। सलमान और दिशा इस फिल्म के लिए दूसरी बार साथ काम कर रहे हैं। इससे पहले दोनों ने 'भारत' में स्क्रीन शेयर की थी।
वरुण धवन की 'कुली नं.1 ' वरुण धवन की 'कुली नं. 1' इसी साल एक मई को रिलीज होने वाली थी। लेकिन लॉकडाउन के चलते ऐसा नहीं हो पाएगा। क्योंकि 3 मई तो पूरे देश में लॉकडाउन घोषित है। ऐसे में इस फिल्म की नई रिलीज डेट लॉकडाउन, खासकर सिनेमा हॉल्स खुलने के बाद ही अनाउंस हो पाएगी।
वरुण धवन और सारा अली खान स्टारर यह फिल्म 1995 में आई 'कुली न.1' की रीमेक है। दोनों फिल्मों के निर्देशक डेविड धवन हैं।
कार्तिक आर्यन भी फंसे कार्तिक आर्यन की एक फिल्म 'लव आज कल' इस साल 14 फरवरी को रिलीज हो चुकी है। लेकिन लॉकडाउन के बाद उनकी इस साल किसी और फिल्म की रिलीज पर संदेह है। दरअसल, उनकी अगली फिल्म 'भूल भुलैया 2' थी, जो 31 जुलाई को आने वाली थी। हालांकि, अभी इस फिल्म की शूटिंग भी पूरी नहीं हो पाई है। फरवरी में कार्तिक और बाकी टीम फिल्म की शूटिंग के लिए जयपुर गए थे। मार्च में फिल्म का करीब एक महीना लंबा शेड्यूल लखनऊ में शुरू होना था। लेकिन इसी बीच लॉकडाउन घोषित हो गया और शेड्यूल रद्द करना पड़ा। ऐसे में इस फिल्म की रिलीज निश्चित तौर पर आगे बढ़ेगी।
यह फिल्म अक्षय कुमार स्टारर हॉरर कॉमेडी 'भूल भुलैया' का सीक्वल है, जो 2007 में रिलीज हुई थी।
अमिताभ के पास 'चेहरे' की रिलीज का मौका अमिताभ बच्चन की इस साल तीन फिल्में कतार में थीं, जिनमें से एक 'गुलाबो सिताबो' 17 अप्रैल को आने वाली थी और पोस्टपोन हो चुकी है। उनकी अगली फिल्म 8 मई को आनी थी, लेकिन उसका टलना भी निश्चित है। क्योंकि मई में सिनेमा हॉल्स खुलने की कोई संभावना नहीं है। हां, अगर स्थिति सामान्य हो जाती है तो उनकी 'चेहरे' जरूर तय समय पर रिलीज हो सकती है। यह फिल्म 17 जुलाई के प्रस्तावित है।
रूमी जाफरी के डायरेक्शन में बनीं 'चेहरे' में अमिताभ के अलावा इमरान हाशमी, क्रिस्टल डिसूजा, रिया चक्रबर्ती, सिद्धांत कपूर और अन्नू कपूर की भी अहम भूमिका होगी।
आलिया भट्ट की 'सड़क 2' आ सकती है आलिया भट्ट की 'सड़क 2' बनकर तैयार है और इसकी रिलीज डेट 10 जुलाई है। अगर स्थिति सामान्य हो गई और सिनेमा हॉल खुले तो यह तय समय पर रिलीज हो सकती है। लेकिन उनकी दूसरी फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' की रिलीज डेट अटक सकती है। संजय लीला भंसाली के निर्देशन में बन रही यह फिल्म 11 सितंबर को रिलीज होनी है। लेकिन अब इस फिल्म का तय समय पर रिलीज होना मुश्किल लग रहा है। दरअसल, फिल्म की शूटिंग जनवरी में शुरू हुई थी और मई में इसका रैपअप होना था। लेकिन ��ॉकडाउन के चलते 19 मार्च से इसकी शूटिंग रुकी हुई है। ऐसे में अगर मई में लॉकडाउन हट भी जाता है तो इसे सितंबर तक कम्प्लीट कर पाना संभव नहीं होगा।
'गंगूबाई काठियावाड़ी' में आलिया एक लेडी डॉन गंगूबाई का किरदार निभा रही हैं। ये फिल्म हुसैन जैदी की किताब 'माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई' पर आधारित है। गंगूबाई 60 के दशक में मुंबई माफिया का बड़ा नाम थीं।
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आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' और सलमान खान की 'राधे' की शूटिंग लॉकडाउन के कारण अटकी हुई है।
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nehakhosla · 5 years ago
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नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा विलेन के बिना अधूरी हैं। बॉलीवुड में साल 1960 से लेकर अब तक कई कलाकारों ने फिल्मों में खलनायक का किरदार ���दा किया है। लेकिन उनमें से कुछ ही कलाकार हैं जिनकी अदाकारी ने लोगों अपनी दिवाना बनाया हो। ऐसे ही एक कलाकार थे अजीत खान (Actor Ajit Khan) । अजीत हिंदी सिनेमा के इकलौते ऐसा विलेन थे जो हमेशा सौम्य नजर आते थे । आज अजीत थान की बर्थ एनिवर्सरी (Ajit Khan Birthday Special) है। 27 जनवरी 1922 को जन्मे अजीत खान ने 22 अक्टूबर 1998 में हैदराबाद में अंतिम सांस ली। अजीत जब पैदा हुए तो उनके माता पिता ने उनका नाम हामिद अली खान रखा था। लेकिन जब वे बॉलीवुड की दुनिया में आए तो एक अजीत खान के नाम से आए।
SRK से लेकर बिग बी समेत कई बॉलीवुड हस्तियों ने फैंस को दी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं, जानिए किसने क्या कहा..
अजीत बचपन से ही हीरो बनने के शौक था लेकिन उनके घर वाले उनको ये काम नहीं करने देना चाहते थे। जिसके चलते वे ��र से भागकर मुंबई आ गए थे। घर तो छोड़ दिया था लेकिन ना उनके पास कोई काम था ना ज्यादा पैसा। जिसके बाद पेट पालने के लिए उन्होंने छोटे मोटे काम करने शुरू कर दिए।साल 1940 में अजीत ने अपने सपने को साकार करने का रास्ता मिल गया। वे हीरो बन गए। कई फिल्में की लेकिन सब की सब फ्लॉप। जिसके बाद वे विलेन बन गए।
अजीत केवल फिल्मों में ही विलेन नहीं थे। जब वे मुंबई आए थे तो उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। तो वे काफी वक्त तक नालों की पाइपों में रह कर अपना समय बिताया।उन दिनों लोकल एरिया के गुंडे उन पाइपों में रहने वाले लोगों से पैसा लेते थे। जो पैसा देता था वो रहता था जो नहीं देता उसे पीट कर भगा देते। एत दिन गुंडे अजीत के पास पैसे लेने आए। उन्हें धमकाने लगे की पैसे दो वर्ना मार देगें। अजीत को गुस्सा आ गया। और उन्होंने गुंड़ो को पीट दिया।ऐसा करके वो खुद गुंडा बन गए।आस पास के लोग उनसे डरने लगे डर की वजह से उन्हें खाना-पीना मुफ्त में मिलने लगा और रहने का भी बंदोबस्त हो गया।
कभी एक-एक रुपए के लिए तरसने वाले रवि तेजा आज करते हैं करोड़ों की फिल्में, जानें कैसे मिली सफलता
अजीत ने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया है, जिनमें से ज्यादातर वो विलेन ही थे।अजीत ने तो वैसे कई फिल्मों में काम किया लेकिन उनको असली पहचान साल साल 1976 में रिलीज हुई फिल्म कालीचरण से मिली। इस फिल्म में उनका डायलॉग ‘सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है। और, इस शहर में मेरी हैसियत वही है, जो जंगल में शेर की होती है।' ने हिंदी सिनेमा का लॉयन बना दिया
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sabkuchgyan · 2 years ago
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Ajay Devgan Drishyam 2: अजय देवगन की दृष्टि टू की धमाकेदार शुरुआत, सप्ताहांत में 50 करोड़ रुपये बटोरने की उम्मीद
Ajay Devgan Drishyam 2: अजय देवगन की दृष्टि टू की धमाकेदार शुरुआत, सप्ताहांत में 50 करोड़ रुपये बटोरने की उम्मीद
Ajay Devgan Drishyam 2: हाल के दिनों में हिंदी सिनेमा की कई फिल्में फ्लॉप या औसत रही हैं। बॉलीवुड की एक-दो फिल्मों को छोड़कर रिलीज के शुरूआती दिनों में फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं कर पाईं। लेकिन अजय देवगन की श्‍याम टू बॉक्‍स ऑफिस पर कलेक्‍शन कर रही है। धमाकेदार ओपनिंग से बॉलीवुड निर्माताओं को उम्मीद है कि फिल्म वीकेंड में ही करीब 50 करोड़ रुपये का कलेक्शन कर लेगी. कुमार मंगत के बेटे…
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suryasamachar1 · 5 years ago
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अब वेब सीरीज 'BULBUL' में अनुष्का शर्मा आएँगी नजर
बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा अपनी छुट्ठिया ख़त्म करके अब काम पर लग गई हैं. फिल्म जीरो के फ्लॉप होने के बाद से अनुष्का शर्मा ने कोई भी नई फिल्म साइन नहीं की है. लेकिन इन दिनों अनुष्का वेब सीरीज पर फोकस कर रही हैं.
अनुष्का शर्मा एक वेब सीरीज 'बुलबुल' में ज़ल्द दिखाई देंगी. 'बुलबुल' अविनाश तिवारी और तृप्ति डिमरी स्टारर प्रोडक्शन हाउस की पहली वेब सीरीज है. आपको बता दे की इस शो के लॉन्च होने से पहले ही अनुष्का शर्मा ने नेटफ्लिक्स के साथ एक और वेब सीरीज साइन कर ली है.
नेटफ्लिक्स के साथ उनकी दूसरी सीरीज के अलावा कुछ और वेब फिल्मों व सीरीज पर भी अनुष्का नज़र आ सकती हैं. शाहरुख खान के बाद अनुष्का हिंदी सिनेमा की दूसरी ऐसी सेलेब्रिटी हैं जो नेटफ्लिक्स के साथ दो या उससे ज्यादा सीरीज पर एक साथ काम कर रही हैं.
बॉलीवुड बादशाह का प्रोडक्शन हाउस 'रेड चिलीज' इन दिनों नेटफ्लिक्स के लिए तीन सीरीज बना रहा है. नेटफ्लिक्स के लिए पहली सीरीज में शाहरुख ने इमरान हाशमी के साथ बार्ड ऑफ ब्लड और बॉबी देओल के साथ क्लास ऑफ 83 सीरीज बना रहे हैं. और तीसरी सीरीज पर भी काम शुरू हो चूका हैं जो एक हॉरर सीरीज होगी.
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chaitanyabharatnews · 4 years ago
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जन्मदिन विशेष: शशि कपूर को विरासत में मिली थी अभिनय की दुनिया, जानिए उनसे जुड़ीं दिलचस्प बातें
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चैतन्य भारत न्यूज अपने सादे अंदाज और खूबसूरत मुस्कान से दर्शकों का दिल जीतने वाले अभिनेता शशि कपूर का आज जन्मदिन है। शशि कपूर अपनी खास मुस्कान के लिए भी जाने जाते थे, इसी का एक अंदाज देखने के लिए फिल्म 'जब जब फूल खिले' का गाना 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' में उनका मुस्कुराता चेहरा ही काफी है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं शशि के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें... (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
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हिंदी सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले पृथ्वीराज कपूर के घर 18 मार्च, 1938 को जन्मे शशि कपूर पृथ्वीराज की चार संतानों में सबसे छोटे थे। उनकी मां का नाम रामशरणी कपूर था। आकर्षक व्यक्तित्व वाले शशि के बचपन का नाम बलबीर राज कपूर था। पिता और उनकी नाट्य मंडली के संपर्क में रहते हुए शशि ने छोटी उम्र से ही अभिनय करना शुरू कर दिया था। उन्होंने बाल कलाकार के रूप में 'आग' (1948) और 'आवारा' (1951) में अपने बड़े भाई राज कपूर के बचपन की भूमिका निभाई।
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शशि ने पहली बार 1961 में यश चोपड़ा के निर्देशन में बनीं फिल्म 'धर्मपुत्र' में लीड रोल निभाया था। शशि की 1961 से लेकर 1964 तक बनीं सभी सोलो फिल्में फ्लॉप हुईं थी। इसके बाद 1975 में आई फिल्म 'दीवार' के लिए शशि कपूर को फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के अवार्ड से नवाजा गया था। उन्होंने दो अन्य फिल्मफेयर बेस्ट फिल्मअवार्ड भी मिले थे, जिसमें वह प्रोड्यूसर और हीरो की भूमिका में थे। यह दोनों फिल्में 'जुनून' (1979) और 'कलयुग' (1981) थी। अपने फिल्मी करियर के दौरान उन्होंने राखी, शर्मिला टैगोर, जीनत अमान, हेमा मालिनी, परवीन बॉबी, नीतू सिंह और मौसमी चटर्जी समेत कई अभिनेत्रियों के साथ काम किया।
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शशि ने अमिताभ बच्चन के साथ कुल 11 फिल्मों में काम किया था, जिनमें से सिर्फ चार फिल्में 'दीवार', 'त्रिशूल', 'नमक हलाल' और 'सुहाग' ही सुपरहिट हुई थी। जबकि एक फिल्म 'काला पत्थर' औसतन हिट और अन्य 6 फिल्में फ्लॉप हो गई थी। अपनी फिल्म 'जुनून' के लिए उन्हें बतौर निर्माता राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, 'न्यू डेल्ही टाइम्स' में अपने अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2011 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान मिला। इसके अलावा हिंदी सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2014 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया।
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शशि अपने समय (1970-75) के दूसरे सबसे अधिक पेड किए जाने वाले एक्टर रहे हैं। उनके साथ इस पायदान पर देवानंद थे। जबकि तीसरे पायदान पर 1976 से 1982 के दौरान एक्टर विनोद खन्ना थे। वहीं पहले स्थान पर पेड एक्टर के रूप में राजेश खन्ना को जाना जाता रहा है। वह 1970 से 1987 तक हाइएस्ट पेड एक्टर रहें थे।
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शशि की पत्नी का नाम जेनिफर किंडेल था। इनके कुल तीन बच्चे हैं। उनकी शादी की स्टोरी भी काफी दिलचस्प है। पृथ्वी थिएटर में काम करने के दौरान वह भारत यात्रा पर आए गोदफ्रे कैंडल के थिएटर ग्रुप 'शेक्सपियेराना' में शामिल हो गए। थियेटर ग्रुप के साथ काम करते हुए उन्होंने दुनियाभर की यात्राएं कीं और गोदफ्रे की बेटी जेनिफर के साथ कई नाटकों में काम किया। इसी बीच उनका और जेनिफर का रिश्ता परवान चढ़ा और 20 साल की उम्र में ही उन्होंने खुद से पांच साल बड़ी जेनिफर से शादी कर ली। जेनिफर की मौत 1984 में हो गई थी। उनकी आकस्मिक मृत्यु का शशि पर गहरा असर पड़ा। साल 2017, 4 दिसंबर को उनका निधन हो गया।
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latesthindinewsindia · 6 years ago
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ऐश्वर्या की तरह दिखने वाली ये एक्ट्रेस इन फिल्मों के बाद हुई फ्लॉप
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दुनिया भर में कई ऐसे चेहरे हैं जो हूबहू किसी ना किसी से मिलते हैं। ऐसे हैं बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय की तरह दिखने वाली एक्ट्रेस स्नेहा उल्लाल हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में साल 2005 में अपने कॅरियर की शुरूआत की थी। स्नेहा को लॉन्च करने वाले कोई और नहीं सिनेमा जगत के ‘भाईजान’ सलमान खान थे। उन्होंने कई एक्टर और एकट्रेस को फिल्मों में लॉन्च किया है। इनमें से कुछ सुपरहिट हुए तो कुछ सुपर फ्लॉप। इन्हीं में से स्नेहा भी हैं। कुछ सालों तक हिन्दी फिल्मों में काम करने के बाद उन्होंने इससे किनारा कस लिया।
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कॅरियर
माना जाता है कि अभिनेत्री स्नेहा उल्लाल को सलमान ने इसलिए बॉलीवुड में लॉन्च किया था। क्योंकि वह ऐश्वर्या राय की तरह दिखती थीं और स्नेहा की मुलाकात से पहले ही सलमान और ऐश का ब्रेकअप हुआ था। जिसके बाद भाईजान ने उन्हें बॉलीवुड में लॉन्च करने की ठानी। ऐश्वर्या की तरह दिखने वाली इस एक्ट्रेस को देख सबकी आंखे खुली की खुली रह गई। स्नेहा हिंदी सिनेमा में कदम रखने से पहले साउथ फिल्मों में भी काम कर चुकी थीं।
उन्होंने अपने कॅरियर की शुरूआत साल 2005 में आई फिल्म ‘लकी- नो टाइम फोर लव’ से की थी। लेकिन ये मूवी बॉक्स ऑफिस पर खास कमाल नहीं कर पाई थी। इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की लेकिन कॅरियर में कुछ खास परिवर्तन नहीं आया। उनकी आखिरी फिल्म ‘बेजुबान इश्क’ साल 2015 में आई थी। जिसके बाद उन्होंने हिंदी फिल्मों की ओर से किनारा कस लिया था।
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इसलिए बनाई फिल्मों से दूरियां
माना जाता है कि स्नेहा उल्लाल ने हिंदी सिनेमा से दूरियां इसलिए नहीं बनाई थी कि उनकी फिल्में हिट नहीं हो रही थी या फिर उनकी एक्टिंग में कोई कमी हो बल्कि वह किसी गंभीर बिमारी से जूझ रही थीं। जिसके कारण वह फिल्मों से दूर हो गईं।
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bollywoodpapa · 5 years ago
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वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं 'महाभारत' के 'देवराज इंद्र' सतीश कौल, एक समय में थे करोडो की सम्पति के मालिक!
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वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं 'महाभारत' के 'देवराज इंद्र' सतीश कौल, एक समय में थे करोडो की सम्पति के मालिक!
दोस्तों पंजाबी फिल्मों का अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले अभिनेता सतीश कौल करोडो के मालिक होने के बाद अपने अंतिम समय में बहुत बुरे स्थिति में गुजारने को मजबूर है। वही सतीश कौल, जो किसी जमाने में करोड़पति थे और बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक उनके साथ काम करने का सपना देखते थे। क्या आप जानते हैं कि उन्हीं सतीश कौल ने बी.आर. चोपड़ा के ‘महाभारत’ सीरियल में भी काम किया था।
80 के दशक में प्रसारित इस सीरियल में अभिनेता सतीश कौल ने ‘देवराज इंद्र’ की भूमिका निभाई थी। हालांकि इन दिनों वे काफी बुरे दौर से गुजर रहे हैं। सतीश कौल ने अपने ऐक्टिंग करियर की शुरुआत पंजाबी फिल्मों से की थी। साल 1979 में उनका करियर शुरू हुआ और एक के बाद एक जबरदस्त पंजाबी हिट फिल्में दीं। पंजाबी सिनेमा में ही काम करते-करते उनकी एंट्री बॉलिवुड में हुई और ‘कर्मा’, ‘आंटी नंबर वन’, ‘प्यार तो होना ही था’, ‘प्यार का मंदिर’, ‘खूनी महल’ जैसी कई फिल्मों में काम किया। सतीश कौल ने 300 से ज्यादा हिंदी और पंजाबी फिल्मों में काम किया था।
पंजाबी और हिंदी सिनेमा में धाक जमाने के साथ-साथ सतीश कौल ने टीवी की दुनिया में चमक बिखेरी। उन्होंने बी.आर. चोपड़ा के हिट सीरियल ‘महाभारत’ में इंद्र देव का किरदार निभाया था। वही इंद्र जिन्होंने एक ब्राह्मण का रूप धारण करके दानवीर कर्ण से उसका कवच और कुंडल मांग लिए थे। इंद्र देव के किरदार में सतीश कौल को काफी पसंद किया गया। सतीश कौल ‘महाभारत’ में काम करने से पहले ही पंजाबी सिनेमा पर राज कर रहे थे। लेकिन बताया जाता है कि वहां 80 के दशक में फैले आतंकवाद के साए के कारण सतीश कौल का करियर गर्त में जाने लगा। एक न्यूज पोर्टल को सालों पहले दिए इंटरव्यू में सतीश कौल ने इसका जिक्र किया था और बताया कि इसी वजह से उन्होंने टीवी का रुख किया।
सतीश कौल ने रामानंद सागर के सीरियल ‘विक्रम और बेताल’ में भी काम किया। इसमें वह युवराज आनंदसेन, प्रिंस अजय, मधुसूदन, वैद्य, सत्वशील, राजकुमार वज्रमुक्ति, सेनापति और सूर्यमल जैसे दर्जनों किरदारों में दिखे। सतीश कौल ने लुधियाना में अपना एक ऐक्टिंग स्कूल भी खोला था। बताया जाता है कि उनका वह ऐक्टिंग स्कूल फ्लॉप हो गया और उसमें लगे सारे पैसे भी डूब गए। जो ऐक्टर कभी करोड़ों में खेलता था, उसके पास इतने पैसे भी नहीं बचे कि खर्च चला पाता। कहा जाता है कि इसी चक्कर में सतीश कौल की बीवी और बेटा भी उन्हें छोड़कर अमेरिका जाकर बस गए।
इंटरनेट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, सतीश कौल अब लुधियाना के विवेकानंद वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। उनके पास न तो खाने-पीने के पैसे हैं औ न ही दवाइयों का खर्च उठाने के।इससे पहले वह लुधियाना के एक हॉस्पिटल में भर्ती थे, जहां वह अपने बिल त��� भर पाने में असमर्थ थे। दुख की बात है कि कभी शोबिज में चमकने वाला सितारा आज इस तरह की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। किसी जमाने में सतीश कौल करोड़पति थे और आज उनकी हालत एकदम दयनीय है।
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jodhpurnews24 · 6 years ago
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डांस बार ने बदल दी थी इस निर्देशक की जिंदगी, इंडस्ट्री के टॉप निर्देशकों में हुए शुमार
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बॉलीवुड के जाने माने निर्देशक, पटकथा लेखक और निर्माता मधुर भंडारकर ‘चांदनी बार’, ‘पेज 3’, ‘ट्रैफिक सिग्नल’ और ‘फैशन’ जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। उन्हें फिल्म ‘ट्रैफिक सिग्नल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सहायक निर्देशक के रूप में की शुरुआत: मधुर ने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत बतौर सहायक निर्देशक के रूप में की। उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में सफलता वर्ष 2001 में आई फिल्म ‘चांदनी बार’ से मिली। फिल्म की समीक्षकों द्वारा काफी प्रशंसा की गई। इस फिल्म की सफलता ने उन्हें हिंदी सिनेमा के टॉप निर्देशकों में शुमार कर दिया। उन्हें इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इस फिल्म के बनने के पीछे भी एक रोचक कहानी है।
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  शराबखाने से बदली जिंदगी: दरअसल ‘चांदनी बार’ से पहले उनकी एक फिल्म रिलीज हुई थी। यह फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गई थी। मधुर अपनी पिछली फिल्म की नाकामी से टूट चुके थे। एक दिन मधुर भंडारकर का एक दोस्त उन्हें डांस बार ले गया। मधुर वहां जाने को तैयार नहीं थे लेकिन दोस्त की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा। मधुर जब दोस्त के साथ डांस बार पहुंचे तो वहां लड़कियां शिफॉन की साड़ी पहनकर, घाघरा चोली पहनकर नाच रही थीं। मधुर इस बात से डर रहे थे कि कोई उन्हें पहचान ना ले नहीं तो लोग कहेंगे कि फिल्म की नाकामी भुलाने के लिए वो शराबखाने आए हैं।
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  करीब 60 बार गए डांस बार और बदल गई जिंदगी: उस रात तो मधुर जल्दी आ गए लेकिन डांस बार के दृश्य उनकी आंखों के सामने घूम रहे थे। अगले दिन उन्होंने अपने दोस्त से खुद ही कहा कि डांस बार चलना है। उनके दोस्त को पहले तो लगा कि शायद मधुर को डांस बार में कोई लड़की पसंद आ गई। इसके बाद मधुर कई बार डांस बार गए। कुल मिलाकर मधुर करीब 60 डांस बार में गए और वहां लोगों से मिले।
मेकअप रूम में भी चले जाते थे: मधुर कई बार डांस बार के मेकअप रूम में भी चले जाते थे। उन्होंने वहां के लोगों को बता रखा था कि वे एक लेखक हैं और किताब लिख रहे हैं। धीरे धीरे डांस बार की कई लड़कियों की कहानियां मधुर ने जमा कर ली। इस पर उन्होंने फिल्म बनाई ‘चांदनी बार’। इस फिल्म ने मधुर भंडारकर की जिंदगी को बदल दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस फिल्म से वे बॉलीवुड के टॉप निर्देशकों में शुमार हो गए।
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asksabhaniblog · 7 years ago
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गीतकार वर्मा मलिक(13/04/1925-15/03/2009) शादियों में दो फिल्मी गीत अनिवार्य रूप से बजतेहैं. बिदाई के समय मोहम्मद रफी का गाया गीत 'बाबुल की दुआएं लेती जा' (गीतकार : साहिर लुधियानवी) और बारात के समय मोहम्मद रफी का ही गया गीत 'आज मेरे यार की शादी है'-इतने लोकप्रिय गीत को लिखने वाले गीतकार का नाम है वर्मा मलिक।पंजाबी फिल्मों में गीत लिखकर करियर शुरू करने वाला यह गीतकार एक समय में वक्त की धुंध में खो गया क्योंकि हिंदी फिल्मों में आकाश पाने की जद्दोजहद करते करते वर्मा मलिक हताश हो चुके थे। अकसर अचानक एक घटना जीवन की धारा बदल देती है और वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ।
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बरकत राय मलिक उर्फ वर्मा मलिक फरीदाबाद (अब पाकिस्तान में) के रहने वाले थे। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। वो दौर आजादी की लड़ाई का था। स्कूल में पढ़ रहे वर्मा मलिक अंग्रेज़ों के खिलाफ गीत लिखकर कांग्रेस के जलसों और सभाओं में ��ुनाया करते थे। वो कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य बन गए। इसका अंजाम यह हुआ कि उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, लेकिन कम उम्र होने की वजह से वो जल्द ही रिहा भी कर दिए गए। अभी वो अपने गीतों की प्रशंसा और सराहना में मग्न ही थे कि देश का विभाजन हो गया। ख़ौफनाक परिस्थितियों में वर्मा ज़ख्मी हालत में फ़रीदाबाद से जान बचाकर भागे।विभाजन के हंगामे में उन्हें पैर में गोली लगी। उन्होंने दिल्ली में शरण ली। दिल्ली आकर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि पेट पालने के लिए वो क्या करें। संगीत निर्देशक हंसराज बहल के भाई वर्मा मलिक के दोस्त थे उनके कहने पर वर्मा ने मुंबई की राह पकड़ी। हंसराज बहल ने वर्मा को पंजाबी फ़िल्म 'लच्छी' में गीत लिखने का काम दिया और देखते देखते वर्मा पंजाबी फ़िल्मों के हिट गीतकार बन गए। इसी समय उनके मित्रों ने उन्हें नाम बदलने की सलाह दी और बरकत राय मलिक, वर्मा मलिक के नाम से फ़िल्मी दुनिया में पहचाने जाने लगे।हंसराज बहल की निकटता में वर्मा ने संगीत की समझ भी विकसित की और यमला जट सहित तीन पंजाबी फ़िल्मों में संगीत भी दिया। बहुमुखी प्रतिभा के मालिक इस शख़्स ने करीब 40 पंजाबी फ़िल्मों में गीत लिखे, दो तीन फ़िल्मों के संवाद लिखे और तीन फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। लेकिन छठा दशक शुरू होते होते मुंबई में पंजाबी फ़िल्मों का बाज़ार ठप्प पड़ गया। नतीजा यह हुआ कि पंजाबी फ़िल्मों के सबसे लोकप्रिय गीतकार वर्मा मलिक बेरोजगार हो गए। हांलाकि 1953 में उन्होंने हिंदी फ़िल्म 'चकोरी' के गीत लिखने का मौक़ा मिला था इसके निर्देशक भी हंसराज बहल थे, लेकिन फिल्म हिट नहीं हो सकी कुछ और फ़िल्मों में भी वर्मा ने हिदी गीत लिखे।फ़िल्म 'दिल और मोहब्बत' के लिए ओपी नैयर के संगीत निर्देशन में लिखा गीत 'आंखों की तलाशी दे दे मेरे दिल की हो गयी चोरी' लोकप्रिय भी हुआ, लेकिन वर्मा मलिक को हिंदी फ़िल्मों के गीत लिखने के और मौके नहीं मिले। पंजाबी फिल्मों की व्यस्त्तता की वजह से वर्मा ने भी अधिक भागदौड़ नहीं की। मूल रूप से पंजाबी और उर्दू जानने वाले वर्मा मलिक को मुंबई आते ही हिंदी की अहमियत का एहसास हो गया था। पंजाबी गीत लिखने के दौर में उन्होंने बाक़ायदा हिंदी लिखनी पढ़नी सीखी। उन्होंने इस भाषा को कितनी गहराई से पढ़ा इसका सुबूत फ़िल्म 'हम तुम और वो' के इस गाने से मिलता है प्रिये प्राणेश्वरी.. हृदयेश्वरी, यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्रीगणेश करें..." । यह इकलौता ऐसा गाना था जिसमें गूढ़ हिंदी शब्दों का प्रयोग किया गया और गाना बेहद हिट हुआ। बेरोज़गारी का दौर लंबा होने लगा तो वर्मा मलिक गुमनाम से हो गए। उन्होंने काफी ��ागदौड़ की मगर कोई फायदा नहीं हुआ। विभाजन के बाद वर्मा मलिक के जीवन का सबसे कड़ा समय खिंचता ही चला गया। हताश होकर उन्होंने फ़ैसला कर लिया कि वो गीत लिखने की तलाश बंद कर अब कोई दूसरा काम शुरू कर देंगे क्योंकि घर का खर्च चलाना नामुमकिन हो गया था। अब सवाल ये था कि वे क्या काम करें इसी उधेड़ बुन में भटकते हुए के दिन वर्मा फेमस स्टूडियो के सामने से गुज़रे तो उन्हें अपने मित्र मोहन सहगल की याद आयी। उनसे मिलने के दौरान ही कल्याण जी आंनंद जी का ज़िक्र हुआ और गीत लिखने के मौके की तलाश में वर्मा कल्याण जी के घर जा पहुंचे। उस समय मनोज कुमार कल्याण जी के साथ बैठे हुए थे। मनोज कुमार वर्मा मलिक को जानते थे और उनके पंजाबी गीतों के प्रशंसक भी थे। मनोज कुमार ने वर्मा मलिक से पूछा कि क्या नया लिखा है वर्मा ने उन्हें तीन चार गीत सुनाए जिसमें एक गीत यह भी था रात अकेली, साए दो हुस्न भी हो और इश्क भी हो तो फिर उसके बाद इकतारा बोले तुन तुन, मनोज को यह गीत पसंद आ गया और उन्होंने अपनी फ़िल्म 'उपकार' के लिये गीत चुन लिया, लेकिन बदकिस्मती से उपकार में इस गीत की सिचुएशन नही निकल पायी। मनोज कुमार न ये गीत भूले न ही वर्मा मलिक को भूल पाए। उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म 'यादगार' के लिये इस गाने को सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखने को कहा तो वर्मा मलिक ने गीत को इस तरह बदल दिया बातें लंबीं मतलब गोल, खोल न दे कहीं सबकी पोल तो फिर उसके बाद इकतारा बोले तुन तुन, फिल्म 'यादगार' हिट हुई और ये गाना भी। फ़िल्मों में एक हिट से किस्मत बदल जाती है। वर्मा मलिक के साथ भी ऐसा ही हुआ। इसके बाद वर्मा के हाथ में काम ही काम आ गया। सफलता और लोकप्रियता के उजाले ने निराशा और हताशा के अंधेरे को खत्म कर दिया।
रेखा की पहली फ़िल्म 'सावन भादों' में वर्मा के लिखे इस गीत ने कई साल तक धूम मचाए रखी 'कान में झुमका चाल में ठुमका कमर पे चोटी लटके हो गया दिल का पुर्जा पुर्जा लगे पचासी झटके', हो तेरा रंग है नशीला अंग-अंग है नशीला'
इसके बाद 'पहचान', 'बेईमान', 'अनहोनी', 'धर्मा', 'कसौटी', 'विक्टोरिया न. 203', 'नागिन', 'चोरी मेरा काम', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'संतान', 'एक से बढ़कर एक', जैसी फिल्मों में हिट गीत लिखने वाला ये गीतकार जिंदगी को भरपूर अंदाज़ में जीने लगा। गीतकार के लिए सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान फ़िल्मफेयर ट्रॉफ़ी ने दो बार वर्मा मलिक के हाथों को चूमा। पहली बार 'पहचान' फ़िल्म के गीत सबसे बड़ा नादान वही है गीत के लिए और फिर फिल्म 'बेइमान' के गीत जय बोलो बेइमान की जय बोलो के लिये। वर्मा मलिक को जब भी मौका मिला अपने गीतों में सामाजिक जागरूकता को शामिल किया। आम आदमी की समस्याएं उनके गीतों में अक्सर मुखर हो उठती थीं। व्यंगात्मक शैली में गीत कहने का उनका अपना अंदाज़ था। उनके साथ करीब 35 फिल्मों में संगीत देने वाली जोड़ी सोनिक-ओमी के ओमी, वर्मा मलिक को याद करते हुए कहते हैं कि डायरेक्टर के सिचुएशन बताते ही गीत का मुखड़ा लिख देने की अद्भुत क्षमता के कारण ही वे वर्मा से बहुत प्रभावित हुए। उस समय ओमी हंसराज बहल की सोहबत में रहा करते थे वहीं उनकी वर्मा से मुलाकात हुई थी। जब ओमी को सोनिक के साथ मिल कर फ़िल्मों में संगीत देने का मौक़ा मिला तो अपनी एक शुरूआती दौर की फ़िल्म 'सज़ा' में उन्होंने वर्मा मलिक से गाने लिखवाए, लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गयी। इसके बाद 1970 में फिल्म 'सावन भादो' में ओमी ने वर्मा मलिक से फिर गीत लिखवाए। 'सावन भादों' हिट रही। उसका संगीत भी लोकप्रिय हुआ और वर्मा के गीत भी। कई और फ़िल्में साथ-साथ करने के बाद धर्मा में सोनिक ओमी और वर्मा मलिक की तिकड़ी ने धमाल मचा दिया.खासकर उस फिल्म की कव्वाली इशारों को अगर समझो राज़ को राज़ रहने दो तो सुपरडुपर हिट हुई। ओमी का मानना है कि वर्मा मलिक जनता के लेखक थे। वो आम आदमी के प्यार और परेशानियों को उन्हीं की ज़ुबान में लिखते थे। इतना ही नहीं संगीत की बेहद अच्छी समझ रखने की वजह से वर्मा मलिक गीत की धुन भी तैयार कर देते थे। वर्मा मलिक को हिंदी फिल्मों में प्रवेश दिलाने में अहम भूमिका अदा करने वाले मनोज कुमार भी कहते हैं कि बहुत सहज और सरल वर्मा में बेहद प्रतिभा थी। बेइमान, यादगार, पहचान और सन्यासी फ़िल्मों में उन्होंने न सिर्फ़ गाने लिखे बल्कि इन फ़िल्मों के कई गानों की धुनें वर्मा मलिक ने तैयार की थीं। आठवें दशक में फ़िल्म संगीत में बहुत बदलाव आना शुरू हो गया था। इसी समय वर्मा मलिक की जीवन संगिनी की मौत हो गयी। इस घटना ने वर्मा मलिक पर ऐसा असर डाला कि उनकी जिंदगी से दिलचस्पी खत्म हो गयी। ऐसे में गीत लिखने का सिलसिला भी रूक गया। धीरे-धीरे वो फिल्मी दुनिया से ही नहीं पूरी दुनिया से कट कर अपने कमरे में सिमट गए। उनके पुत्र राजेश मलिक असिस्टेंट डायरेक्टर हैं लेकिन उनके बहुत कहने पर भी वर्मा मलिक ने कलम नहीं उठायी। 2009 में 15 मार्च को उन्होंने बहुत ख़ामोशी से दुनिया से विदा ले ली। इतनी ख़ामोशी से कि उनके मरने का जि़क्र अगले दिन किसी अख़बार में भी नहीं हुआ।
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