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#हमें कहाँ जाना ह
rahulpatil1919 · 2 days
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#संसार_उत्पत्ति_यथार्थजानकारी
#GodKabir_CreatorOfUniverse
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#SantRampalJiMaharaj
हम सब कहां से आए, हमें कहाँ जाना है?
जानिए रहस्य
देखिए Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel
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trendswire · 2 years
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digi0099 · 3 years
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What is Digital Marketing
Digital Marketing is Easy :-
आज कल के समय में  Digital Marketing बहुत ज़रूरी हिस्सा हो गया है हमारी ज़िंदगी में Digital Marketing को पहले 1980 के Time में लाने की सोच रहे थे लेकिन ये उस Time हो नहीं पाया फिर इसे  1990 में  लाया गया और इसका नाम भी पड़ा Digital Marketing। Digital Marketing के बहुत से फायदे है इससे आपके कारोबार में बहुत सारी हेल्प मिलती है। Digital Marketing की मदद से हम अपने Buisness की जानकारी हर एक आदमी के पास पंहुचा सकते है पहले के समय में हम अपने Buisness को प्रमोट करने के लिए लोगो की ज़रूरत पड़ती थी बहुत सारे Banner Pumplit ये सब छपवाने पड़ते थे। लेकिन Digital Marketing के ज़रिये से हम अपने Buisness की जानकारी और डिलीवरी लोगो तक बहुत ही कम समय में  पंहुचा सकते है। आज के Time में जैसा आप लोग जानते है की हर एक इंसान फ़ोन इस्तेमाल करता है। तो आप कुछ ही  समय में अपने Buisness की एड्स और जानकारी लोगो को दिखा सकते है।  क्यों Digital Marketing के बिना आपका Buisness सफल नहीं है क्युकी आज कल लोगो को हर एक चीज़ आसानी से पानी होती है कोई कही जाकर कुछ जानकारी लेना नहीं चाहता है लोग अब हर एक जानकारी अब अपने फ़ोन Laptop और Computer इत्यादि से ले लेते है आगे हम बात करते है की Digital Marketing काम कैसे करता है।
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Why Digital Marketing?
Digital Marketing ही क्यों अगर आप ये सोच रहे है की हमारा Buisness तो Success है।  हमे Digital Marketing की क्या ज़रुरत है तो भी आप सही है लेकिन Digital Marketing के ज़रिये से आप लोगो से attract हो पाएंगे।  लोगो को क्या चाहिए, लोग क्या मांग रहे है इन सब की जानकारी भी आपको मिलती रहेगी।  साथ ही साथ आप लोगो से जुड़े रहेंगे और आप अपने Buisness को और भी उचाईयों पर ले जा सकते है।  इसका सीधा example ये है की पहले अगर आपको कोई Application form अप्लाई करना रहता था तो आपको अपने स्कूल या कॉलेज या फिर किसी cyber cafe में जाना पड़ता था।  अब आप बहुत ही ज्यादा आसानी से अपने खुद के phone और Laptop से फॉर्म को fill  कर सकते है। अगर आपको बैंक जाना पड़ता था या फिर किसी को पैसे ट्रांसफर करने रहते थे तो आप लोगो को बहुत ही लम्बी भीड़ से गुज़ारना पड़ता था। बात करे अब के समय की तो किसी को भी upi payment कर सकते है paytm,Phonepayऔर भी बहुत से एप्लीकेशन है जिससे आप बहुत ही आसानी से पेमेंट से कर सकते  है और किसी से पेमेंट ले भी सकते ह। या फिर कोई भी और बैंक का काम है तो भी बहुत ही ज्यादा आसानी से कर सकते है। किसी को Time करनी है तो वो अब Shop या किसी मॉल में जाना नहीं चाहता कुइकी लोगो को पता है वही साड़ी चीज़े उनको घर पर ही मिल जायेगी ऐसी बहुत सी साइट्स है जिसके द्वारा हम अपनी मनपसंद Time कर सकते है और दिए हुए वक़्त पर अपना Product ले सकते है क्यूई अब कोई इंसान Time के लिए Shop पर जाकर अपना Time बर्बाद नहीं करना चाहता है लोगो का Time बहुत ही ज्यादा Important है।  हमे अगर राशन लेना है या कोई भी खाने पीने की चीज़ लेनी रहती है तो हम किसी Shop पर जाकर सामान लेते ह। Shop वाला हमे देर तक इंतज़ार करवाता है फिर कही जाकर हमे सामान दे paata है। हम यही सब चीज़े अब ऑनलाइन भी ले सकते है और हमे Discount भी अच्छा मिल जाता है बस इन्ही सब चीज़ो और सुविधा की वजह से Digital Marketing बहुत ज़रूरी है।
Part of Digital Marketing:-
Digital Marketing हम बहुत से तरीके से कर सकते या हम कहे की लोगो को हर जगह जागरूक कर सकते है जैसे हमारे Consumer हमारा एड्स या हमारा Product कहाँ देख सकता या उसे हमारे Product की जानकारी कहाँ से मिल सकती है जिससे देख कर वो उस चीज़ का फायदा / जानकारी ले सके ऐसे बहुत सी जगहों पर हम अपने Consumer से Attract हो सकते है। जैसे आज कल लोग बहुत सी social sites पर active रहते है या किसी Website पर एक्टिव हो तो उसे हम अपने Product की जानकारी दे सकते है। हम बात करते है ऐसी कौन सी चीज़ है जिससे हम आसानी से Digital Marketing कर सकते है।
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Search Engine Optimization (SEO) :-
Search Engine से आप लोग समझ ही रहे होंगे की यहाँ बात याहू, गूगल, या और भी बहुत से Search Engine होंगे जहाँ पर हम अपनी Website को Optimized कर सकते है मतलब की हम अपनी Website को गूगल में  बहुत ही अच्छी Position पर ला सकते है जिससे हम अपनी Website की Knowledge और Product या किसी अन्य की जानकारी लोगो तक बहुत ही ज्यादा आसानी से पंहुचा सकते है। और लोग इसका लाभ भी उठा सकते है SEO करने के लिए हमें कुछ tools की ज़रुरत पड़ती है आगे हम इसको बहुत ही ज्यादा अच्छे से आपको बताएँगे तब तक के लिए आप यू समझिये की जो Website की रैंक ज्यादा है या जिस पर Traffic ज्यादा हो उन - उन साइट्स पर अपनी Profile बनाये और अपने Website के बारे में कुछ लिखे।
Social Media Optimization (SMO) :-
किसी Product की Marketing अब Banner या Pumplit या फिर Website तक ही सीमित नहीं है लोगो तक जागरूकता  फैलाने के लिए अब Social Networking Sites के ज़रिये भी इनफार्मेशन दी जा सकती है। हम सब जानते है आज कल के young Blood और ज्यादातर हर कोई किसी न किसी Social Sites से जुड़ा है और बहुत सी Social Sites है जो Marketing भी करती है जैसे Facebook , Instagram,Linkedin,Twitter,और भी Social Sites है जहाँ पर लोग ज्यादा एक्टिव है और इन्ही sites की मदद से हम कैंपेन या एड्स चला सकते है और ज्यादा से ज्यादा लोगो तक अपने Product या अन्य जानकारी दे सकते है।
Youtube Marketing:-
Youtube Marketing वो होती है जो हम Youtube पर एड्स लगाते है Youtube पर एड्स ज्यादा पॉवरफुल माने जाते है क्युकी Youtube पर हम बहुत तरह के वीडियोस एड्स चला सकते है और लोग Youtube पर भी ज्यादा एक्टिव रहते है Youtube में हम अलग -अलग तरह के वीडियोस एड्स चला के लोगो को जागरूक कर सकते है।  
Email Marketing :-
Email Marketing के ज़रिये हम अपने Product Website या कोई अन्य जानकारी लोगो को Email  द्वारा भी दिखा सकते है। अपने कोई भी टेम्पलेट बना कर लोगो तक पंहुचा सकते है या दिखा सकते है Email Marketing में  हम गूगल पर अपने keywords के थ्रू बहुत से Email collect कर सकते है फिर उन Email को अपने एड्स या टेम्पलेट बना कर लोगो को Email कर सकते है।
Affiliate Marketing :-
Affiliate Marketing हम किसी दुसरे के Product को अपनी साइट पर लाकर सेल करते है और उससे पैसा भी कमा सकते है Affiliate Marketing आज कल बहुत trend में है आप किसी के Product की लिंक अपनी Bani हुई साइट पर लगा सकते है और उनके Product की जानकारी भी दे सकते है जब भी कोई कोई आपके Website के  through Product परचेस करता है तो उस पर आपको कमिशन मिलता है और इससे आप अच्छी इनकम generate कर सकते है।
Google Ads :-
Google Ads बहुत ही ज्यादा पॉवरफुल एड्स होती है Digital Marketing की दुनिया में 2 ही प्लेयर रैंक कर रहे है फेसबुक Marketing और Google Ads Marketing Google Ads जो है वो फेसबुक एड्स से काफी बड़ा है लोग फेसबुक एड्स से ज्यादा Google Ads को प्रेफर करते है Google Ads में 4 तरह की एड्स पायी जाती है।
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Google Search Ads
Google Shopping Ads
Google Display Ads
Youtube Ads
ये एक Overlook था Digital Marketing की काफी basic information थी आगे हम Digital Marketing से रेलेटेड सारी जानकारी साझा करेंगे उम्मीद करता हूँ आपको Digital Marketing में होता क्या है समझ आ गया होगा आगे हम पड़ेंगे की Digital Marketing मई काम क्या होता है कैसे हम लोग डिजिटल मार्केटर बने हर basic से basic चीज़े साझा करेंगे ताकि आप लोगो को वर्क करने में या Digital Marketing समझने में परेशानी न हो।
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परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II
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पिछली सभा के दौरान हमने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय को साझा किया। क्या तुम लोगों को याद है कि वह क्या था? मैं इसे दोहराता हूँ। हमारी पिछली संगति का विषय था: परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर। क्या यह तुम लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है? इसका कौन सा भाग तुम लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है? परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव या स्वयं परमेश्वर? तुम लोगों को किस में सबसे ज्यादा रूचि है? तुम लोग किस भाग के बारे में सबसे अधिक सुनना चाहते हो? मैं जानता हूँ कि तुम लोगों के लिए इस प्रश्न का उत्��र देना कठिन है, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव उसके कार्य के हर एक पहलू में देखा जा सकता है, और उसका स्वभाव हमेशा उसके कार्य और सभी स्थानों में प्रकट होता है और वस्तुतः यह स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है; परमेश्वर की समग्र प्रबंधन योजना में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव, और स्वयं परमेश्वर एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते हैं।
परमेश्वर के कार्य के बारे में हमारी पिछली संगति की विषय-वस्तु बाइबल के वृत्तान्त थे जो बहुत पहले घटित हुए थे। वे सभी परमेश्वर और मनुष्य के बारे में कहानियाँ थीं, और वे मनुष्य के साथ घटित हुईं और साथ-साथ वे प���मेश्वर की भागीदारी और अभिव्यक्ति को शामिल करती थीं, इसलिए ये कहानियाँ परमेश्वर को जानने में विशेष मूल्य और महत्व रखती हैं। मनुष्य का सृजन करने के तुरन्त बाद, परमेश्वर ने मनुष्य के साथ संलग्न होना और मनुष्य से बात करना शुरू किया, और उसका स्वभाव मनुष्य पर व्यक्त होना आरम्भ हुआ। दूसरे शब्दों में, जब से पहली बार परमेश्वर मनुष्य के साथ संलग्न हुआ तब से वह बिना रुके अपने सार और स्वरूप को मनुष्य पर सार्वजनिक करने लगा। संक्षेप में, इस बात की परवाह किए बिना कि पहले के लोग या आज के लोग इसे देखने या समझने में समर्थ हैं या नहीं, परमेश्वर अपने स्वभाव को प्रकट करते हुए और अपने सार को अभिव्यक्त करते हुए मनुष्य से बात करता है और मनुष्य के बीच कार्य करता है—जो कि एक तथ्य है, और किसी भी व्यक्ति के द्वारा नकारा नहीं जा सकता है। इसका अर्थ यह भी है कि जब परमेश्वर मनुष्य के साथ कार्य करता और संलग्न होता है तो, परमेश्वर का स्वभाव, परमेश्वर का सार और उसका स्वरूप निरन्तर जारी और प्रकट होता रहता है। उसने किसी भी चीज़ को मनुष्य से कभी नहीं छिपाया है या कभी भी गुप्त नहीं रखा है, बल्कि इसके बजाय वह बिना कुछ छिपाए अपने स्वयं के स्वभाव को सार्वजनिक और जारी करता है। इस प्रकार, परमेश्वर आशा करता है कि मनुष्य उसे जान सकता है और उसके स्वभाव और सार को समझ सकता है। वह नहीं चाहता है कि मनुष्य उसके स्वभाव और सार के साथ ऐसे व्यवहार करे जैसे कि वे अनन्त रहस्य हों, न ही वह यह चाहता है कि मनुष्यजाति परमेश्वर को ऐसा समझे कि वह एक पहेली है जिसको कभी नहीं सुलझाया जा सकता है। जब मनुष्यजाति परमेश्वर को जान लेती है केवल तभी मनुष्य आगे का मार्ग जान सकता है और परमेश्वर के मार्गदर्शन को स्वीकार करने में समर्थ हो सकता है, और केवल इस तरह की मनुष्यजाति ही सचमुच में परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन जीवन बिता सकती है, प्रकाश में जीवन बिता सकती है और परमेश्वर को आश��षों के बीच जीवन बिता सकती है।
परमेश्वर के द्वारा जारी और प्रकट किए गए वचन और स्वभाव उसकी इच्छा को दर्शाते हैं, और वे उसके सार को भी दर्शाते हैं। जब परमेश्वर मनुष्य के साथ संलग्न होता है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह क्या कहता या करता है, या वह कौन सा स्वभाव प्रकट करता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य परमेश्वर के सार और उसके स्वरूप के बारे में क्या सोचता है, वे सभी मनुष्य के लिए परमेश्वर की इच्छा को दर्शाते हैं। इसकी परवाह किए बिना कि मनुष्य कितना कुछ एहसास करने, बूझने या समझने में समर्थ है, यह सब परमेश्वर की इच्छा—मनुष्य के लिए परमेश्वर की इच्छा—को दर्शाता है! यह सन्देह से परे है! मनुष्यजाति के लिए परमेश्वर की इच्छा है कि जिस प्रकार वह लोगों से अपेक्षा करता है वे उसी प्रकार के हों, जो वह उनसे अपेक्षा करता है वे उसे करें, जिस प्रकार वह उनसे अपेक्षा करता है वे उसी प्रकार जीवन जीएँ और जिस प्रकार वह उनसे अपेक्षा करता है वे उसी प्रकार परमेश्वर की इच्छा की सम्पूर्णता को पूरा करने में समर्थ बनें। क्या ये चीज़ें परमेश्वर के सार से अवियोज्य हैं? दूसरे शब्दों में, परमेश्वर अपने स्वभाव और स्वरूप को उसी समय जारी करता है जब वह मनुष्य से माँगें कर रहा होता है। इसमें कुछ असत्य नहीं है, कोई बहाना नहीं है, कोई छिपाव नहीं है, और कोई अलंकरण नहीं है। फिर भी मनुष्य जानने में क्यों असमर्थ है, और क्यों वह परमेश्वर के स्वभाव को कभी भी स्पष्ट रूप से महसूस करने में समर्थ नहीं रहा है? और क्यों उसने कभी भी परमेश्वर की इच्छा का एहसास नहीं किया है? जो परमेश्वर के द्वारा जारी और प्रकट किया जाता है यह वही है जो स्वयं परमेश्वर का स्वरूप है और उसके सच्चे स्वभाव का हर एक छोटा सा भाग और पहलू है—तो मनुष्य क्यों नहीं देख सकता है? क्यों मनुष्य पूरे ज्ञान के काबिल नहीं है? इसका एक महत्वपूर्ण कारण है। और यह कारण क्या है? सृजन के समय से ही, मनुष्य ने कभी भी परमेश्वर के साथ परमेश्वर जैसा व्यवहार नहीं किया है। प्राचीनतम समयों में, चाहे परमेश्वर मनुष्य के सम्बन्ध में कुछ भी करे, वह मनुष्य जिसे बस अभी-अभी सृजित किया गया था, उस मनुष्य ने उसके साथ एक साथी जैसा व्यवहार ही किया था, कोई ऐसा जिस पर भरोसा किया जा सकता था, और उसे परमेश्वर का कोई ज्ञान या समझ नहीं थी। जिसका मतलब है कि, वह नहीं जानता था कि इस अस्तित्व—यह अस्तित्व जिस पर वह भरोसा करता था और जिसे अपने साथी के रूप में देखता है—के द्वारा जो जारी किया गया था, वह परमेश्वर का सार था, न ही वह जानता था कि यह प्रभावशाली अस्तित्व वही एकमात्र परमेश्वर है जो सभी चीज़ों के ऊपर शासन करता है। आसान शब्दों में कहें तो, उस समय के लोग परमेश्वर को बिल्कुल नहीं पहचानते थे। वे नहीं जानते थे कि स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी चीज़ें उसी के द्वारा बनायी गई हैं, और वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि वह कहाँ से आया, और ये भी नहीं जानते थे कि वह क्या था। निस्संदेह, उस बीते समय में परमेश्वर मनुष्य से अपेक्षा नहीं करता था कि वह उसे जाने, या उसे समझे, या वह सब कुछ समझे जो उसने किया था, या उसकी इच्छा के बारे में जाने, क्योंकि ये मनुष्यजाति के सृजन के बाद के प्राचीनतम समय थे। जब परमेश्वर ने व्यवस्था के युग के कार्य की तैयारियाँ आरम्भ की, तब परमेश्वर ने मनुष्य के लिए कुछ किया और मनुष्य से कुछ माँगे भी करनी शुरू की, यह बताते हुए कि किस प्रकार परमेश्वर को भेंट चढ़ाएँ और उसकी आराधना करें। केवल तभी मनुष्य ने परमेश्वर के बारे में कुछ साधारण विचारों को प्राप्त किया, केवल तभी उसने मनुष्य तथा परमेश्वर के बीच के अन्तर को जाना, और यह कि परमेश्वर ही एकमात्र है जिसने मनुष्यजाति का सृजन किया था। जब मनुष्य जान गया कि परमेश्वर परमेश्वर है और मनुष्य मनुष्य है, तो उसके और परमेश्वर के बीच में एक निश्चित दूरी बन गई, मगर तब भी परमेश्वर ने नहीं चाहा कि मनुष्य को परमेश्वर के बारे और अधिक ज्ञान या गहरी समझ हो। इस प्रकार, परमेश्वर अपने कार्य के चरणों और परिस्थितियों के आधार पर मनुष्य से भिन्न-भिन्न अपेक्षाएँ करता है। इसमें तुम लोग क्या देखते हो? तुम लोग परमेश्वर के स्वभाव के किस पहलू को महसूस करते हो? क्या परमेश्वर वास्तविक है? क्या मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाएँ उचित हैं? परमेश्वर के द्वारा मनुष्यजाति के सृजन के बाद प्राचीनतम समयों के दौरान, जब परमेश्वर ने मनुष्य पर विजय और सिद्धता का कार्य अभी तक नहीं किया था, और उससे बहुत सारे वचन नहीं कहे थे, तब उसने मनुष्य से थोड़ी सी ही माँग की थी। चाहे मनुष्य ने जो भी किया और उसने जिस प्रकार का भी व्यवहार किया—भले ही उसने कुछ ऐसे कार्य किए हों जिनसे परमेश्वर का अपमान हुआ हो—परमेश्वर ने इस सब को क्षमा कर दिया, और इस सब को अनदेखा कर दिया। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर जानता था कि उसने मनुष्य को क्या दिया है, मनुष्य के भीतर क्या है, और इसलिए वह उन अपेक्षाओं के मानक को जानता था जो उसे मनुष्य से करनी चाहिए। यद्यपि उस समय उसकी अपेक्षाओं का मानक बहुत निम्न था, फिर भी इसका अर्थ यह नहीं है कि उसका स्वभाव महान नहीं था, या उसकी बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता सिर्फ खोखले वचन थे। मनुष्य के लिए, परमेश्वर के स्वभाव और स्वयं परमेश्वर को जानने का केवल एक ही तरीका है: परमेश्वर के प्रबंधन और मनुष्यजाति के उद्धार के कार्य के कदमों का अनुसरण करने, और उन वचनों को स्वीकार करने के द्वारा जो परमेश्वर मनुष्यजाति से कहता है। परमेश्वर के स्वरूप को जान कर और परमेश्वर के स्वभाव को जान कर भी, क्या मनुष्य परमेश्वर से अपना वास्तविक व्यक्तित्व उसे दिखाने को कहेगा? मनुष्य ऐसा नहीं कहेगा, और ऐसा कहने की हिम्मत नहीं करेगा, क्योंकि परमेश्वर के स्वभाव और उसके स्वरूप को समझने के बाद, मनुष्य पहले ही स्वयं सच्चे परमेश्वर को देख चुका होगा, और पहले ही उसके वास्तविक व्यक्तित्व को देख चुका होगा। यह अवश्य अपरिहार्य परिणाम है।
जब परमेश्वर के कार्य और योजना ने निरन्तर आगे प्रगति की, और जब परमेश्वर ने मनुष्य के साथ एक चिह्न के रूप में बादल में इंद्रधनुष की वाचा स्थापित की कि वह जलप्रलय का उपयोग करके दोबारा कभी संसार का अन्त नहीं करेगा उसके पश्चात्, परमेश्वर को ऐसे लोगों को प्राप्त करने की उत्तरोत्तर तीव्र इच्छा हुई जो उसके जैसे दृष्टिकोण वाले हो सकते थे। इसलिए भी, परमेश्वर को ऐसे लोगों को प्राप्त करने की कामना थी, जो पृथ्वी पर उसकी इच्छा को पूरा करने में समर्थ थे, और, इसके अतिरिक्त, अंधकार की शक्तियों को तोड़कर आज़ाद होने में समर्थ, शैतान के द्वारा न बँधने वाले और पृथ्वी पर उसकी गवाही देने में समर्थ लोगों के एक समूह को प्राप्त करने की अत्यावश्यक अभिलाषा हुई। परमेश्वर की लम्बे समय से इच्छा थी कि वो लोगों के ऐसे समूह को प्राप्त करे वह सृजन के समय से ही इसकी प्रतीक्षा कर रहा था। इस प्रकार, चाहे संसार का विनाश करने के लिए परमेश्वर के द्वारा जलप्रलय का उपयोग हो या मनुष्य के साथ उसकी वाचा का उपयोग हो, परमेश्वर की इच्छा, मनोदशा, योजना, और आशाएँ सभी वैसी ही बनी रहीं। जो वह करना चाहता था, जिसकी उसने सृजन के समय के बहुत पहले से लालसा की थी, वह मनुष्यजाति में से उन लोगों को प्राप्त करना था जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता था—लोगों के ऐसे समूह को प्राप्त करना जो उसके स्वभाव को बूझने और जानने में, उसकी इच्छा को समझने में समर्थ था, ऐसा समूह जो उसकी आराधना करने में समर्थ था। लोगों का ऐसा समूह सचमुच में उसके लिए गवाही देने में समर्थ होता है, और ऐसा कहा जा सकता है कि ���े उसके विश्वासपात्र हैं।
आओ, आज हम परमेश्वर के पदचिह्नों पर विचार करना और उसके कार्य के चरणों अनुसरण करना जारी रखें, ताकि हम परमेश्वर के विचारों और मतों को, और प्रत्येक उस चीज़ को अनावृत कर सकें जिसका परमेश्वर से सम्बन्ध है, जिन्हें बहुत लम्बे से "भण्डारण में रखा" गया है। इन चीज़ों के माध्यम से हमें परमेश्वर के स्वभाव का पता चल जाएगा, हम परमेश्वर के सार को समझ जाएँगे, परमेश्वर को अपने हृदयों में आने देंगे, और हममें से प्रत्येक, परमेश्वर से अपनी दूरियों को कम करते हुए, धीरे-धीरे परमेश्वर के और करीब आ जाएगा।
पिछली बार हमने जिस बारे में बात की थी उसका एक भाग इस बात से सम्बन्धित है कि परमेश्वर ने मनुष्य के साथ वाचा क्यों बाँधी। इस बार, हम पवित्र शास्त्र के निम्नलिखित अंशों के बारे में संगति करेंगे। आओ हम पवित्र शास्त्र को पढ़ने के द्वारा आरम्भ करें।
क. अब्राहम
1. परमेश्वर अब्राहम को एक पुत्र देने की प्रतिज्ञा करता है
उत्पत्ति 17:15-17 फिर परमेश्‍वर ने अब्राहम से कहा, "तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा। मैं उसको आशीष दूँगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूँगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूँगा कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य-राज्य के राजा उत्पन्न होंगे।" तब अब्राहम मुँह के बल गिर पड़ा और हँसा, और मन ही मन कहने लगा, "क्या सौ वर्ष के पुरुष के भी सन्तान होगी और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्र जनेगी?"
उत्पत्ति 17:21-22 परन्तु मैं अपनी वाचा इसहाक ही के साथ बाँधूँगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्‍त समय में उत्पन्न होगा। तब परमेश्‍वर ने अब्राहम से बातें करनी बन्द की और उसके पास से ऊपर चढ़ गया।
2. अब्राहम इसहाक की बलि देता है
उत्पत्ति 22:2-3 उसने कहा, "अपने पुत्र को अर्थात् अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा; और वहाँ उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊँगा होमबलि करके चढ़ा।" अत: अब्राहम सबेरे तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब निकल कर उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्‍वर ने उससे की थी।
उत्पत्ति 22:9-10 जब वे उस स्थान को जिसे परमेश्‍वर ने उसको बताया था पहुँचे; तब अब्राहम ने वहाँ वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपने पुत्र इसहाक को बाँध कर वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया। फिर अब्राहम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपने पुत्र को बलि करे।
कोई भी उस कार्य को बाधित नहीं कर सकता है जिसे करने का परमेश्वर संकल्प लेता है
तो, तुम सभी लोगों ने अभी-अभी अब्राहम की कहानी सुनी। जब बाढ़ ने संसार को नष्ट कर दिया उसके पश्चात् उसे परमेश्वर के द्वारा चुना गया था, उसका नाम अब्राहम था, जब वह सौ वर्ष का था, और उसकी पत्नी सारा नब्बे वर्ष की थी, तब परमेश्वर की प्रतिज्ञा उस तक आयी। परमेश्वर ने उससे क्या प्रतिज्ञा की थी? परमेश्वर ने वह प्रतिज्ञा की थी जिसका संकेत हमें पवित्रशास्त्र में मिलता हैः "और मैं उसको आशीष दूँगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूँगा।" परमेश्वर के द्वारा उसे पुत्र दिए जाने के पीछे क्या पृष्ठभूमि थी? पवित्रशास्त्र निम्नलिखित विवरण प्रदान करते हैं: "तब अब्राहम मुँह के बल गिर पड़ा और हँसा, और मन ही मन कहने लगा, 'क्या सौ वर्ष के पुरुष के भी सन्तान होगी और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्र जनेगी?'" दूसरे शब्दों में, यह बुज़ुर्ग दम्पत्ति इतने वृद्ध थे कि सन्तान उत्पन्न नहीं कर सकते थे। जब परमेश्वर ने अब्राहम से अपनी प्रतिज्ञा की तो उसके पश्चात् उसने क्या किया? वह हँसता हुआ अपने मुँह के बल गिर पड़ा, और उसने मन में कहा, "क्या सौ वर्ष के पुरुष के भी सन्तान होगी?" अब्राहम मानता था कि यह असम्भव है—जिसका अर्थ था कि वह मानता था कि उससे की गयी परमेश्वर की प्रतिज्ञा एक मज़ाक के अलावा और कुछ नहीं है। मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से, यह मनुष्य के लिए अप्राप्य था, और उसी तरह परमेश्वर के द्वारा भी अप्राप्य थी, असंभव थी। कदाचित्, अब्राहम के लिए, यह हँसी की बात थी: परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, फिर भी ऐसा लगता है कि वह यह नहीं जानता है कि कोई इतना वृद्ध व्यक्ति सन्तान उत्पन्न करने में अक्षम होता है; उसे लगता है कि वह मुझे सन्तान उत्पन्न करने की अनुमति दे सकता है, वह कहता है कि वह मुझे एक पुत्र देगा—निश्चित रूप से यह असम्भव है! और इस प्रकार, अपने मन में यह सोचते हुए अब्राहम हँसते हुए मुँह के बल गिर पड़ा कि: निश्चित रूप से ये असम्भव है—परमेश्वर मुझसे मज़ाक कर रहा है, यह सत्य नहीं हो सकता है! उसने परमेश्वर के वचनों को गम्भीरता से नहीं लिया। इसलिए, परमेश्वर की नज़रों में, अब्राहम किस प्रकार का व्यक्ति था? (धार्मिक।) यह कहाँ कहा गया था कि वह एक धार्मिक मनुष्य है? तुम लोगों को लगता है कि वे सभी जिन्हें परमेश्वर बुलाता है वे धार्मिक, और सिद्ध, और ऐसे लोग होते हैं जो परमेश्वर के साथ चलते हैं। तुम लोग सिद्धान्त से चलते हो! तुम लोगों को स्पष्ट रूप से देखना चाहिए कि जब परमेश्वर किसी को परिभाषित करता है, तो वह ऐसा मनमाने ढंग से नहीं करता है। यहाँ, परमेश्वर ने यह नहीं कहा कि अब्राहम धार्मिक है। अपने हृदय में, परमेश्वर के पास प्रत्येक व्यक्ति को मापने के लिए एक मानक हैं। यद्यपि परमेश्वर यह नहीं कहता है कि अब्राहम किस प्रकार का व्यक्ति है, फिर भी अपने आचरण के लिहाज से, अब्राहम को परमेश्वर में किस प्रकार का विश्वास था? क्या यह थोड़ा सा अमूर्त था? या वह बड़े विश्वास वाला व्यक्ति था? नहीं, वह नहीं था! उसकी हँसी और विचारों ने यह प्रकट किया कि वह कौन था, इसलिए तुम लोगों का विश्वास कि वह धार्मिक था सिर्फ तुम लोगों की कल्पना की उपज है, यह सिद्धान्त को आँख बन्द करके लागू करना है, यह एक गैरज़िम्मेदार मूल्यांकन है। क्या परमेश्वर ने अब्राहम की हँसी और उसके हाव-भाव देखे थे, क्या वह उनके बारे में जानता था? परमेश्वर जानता था। परन्तु क्या परमेश्वर उस कार्य को बदल देता जिसे करने का उसने संकल्प लिया था? नहीं! जब परमेश्वर ने योजना बनाई और संकल्प लिया कि वह इस मनुष्य को चुनेगा, तो वह मामला पहले ही पूरा हो चुका था। न तो मनुष्य के विचार और न ही उसका आचरण परमेश्वर को जरा सा भी प्रभावित कर सकता या परमेश्वर के साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकता; परमेश्वर अपनी योजना को मनमाने ढंग से नहीं बदलेगा, न ही वह मनुष्य के आचरण की वजह से अपनी योजना को बदलेगा या उसमें उलट-पलट करेगा, जो कि मूर्खतापूर्ण भी हो सकता है। तो उत्पत्ति 17:21-22 में क्या लिखा है? "परन्तु मैं अपनी वाचा इसहाक ही के साथ बाँधूँगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्‍त समय में उत्पन्न होगा। तब परमेश्‍वर ने अब्राहम से बातें करनी बन्द की और उसके पास से ऊपर चढ़ गया।" जो कुछ अब्राहम ने सोचा या कहा परमेश्वर ने उन पर जरा सा भी ध्यान नहीं दिया। उसकी उपेक्षा का कारण क्या था? इसका कारण यह था कि उस समय परमेश्वर ने यह माँग नहीं की कि मनुष्य बड़ा विश्वास वाला हो, या वह परमेश्वर के बारे में अत्यधिक ज्ञान को रखने में समर्थ हो, या जो कुछ परमेश्वर के द्वारा किया और कहा गया वह उसे पूरी तरह से समझने में समर्थ हो। इस प्रकार, उसने यह माँग नहीं की कि जो कुछ उसने करने का संकल्प किया था, या जिन लोगों को चुनने का उसने निर्णय लिया था, या उसके कार्यों के सिद्धान्तों को मनुष्य पूरी तरह से समझे, क्योंकि मनुष्य की कद-काठी पूरी तरह से अपर्याप्त थी। उस समय, अब्राहम ने जो कुछ भी क��या और जिस प्रकार उसने आचरण किया उसे परमेश्वर ने सामान्य माना। उसने निंदा नहीं की, या फटकार नहीं लगाई, बल्कि सिर्फ़ इतना ही कहाः "इसहाक सारा अगले वर्ष केइसी नियुक्‍त समय में उत्पन्न होगा।" जब उसने इन वचनों की घोषणा की उसके पश्चात्, परमेश्वर के लिए, ये वचन, यह मामला कदम दर कदम सत्य होता गया; परमेश्वर की नज़रों में, जिसे उसकी योजना के द्वारा पूरा किया जाना था उसे पहले से ही पूरा कर लिया गया था। इन सबकी व्यवस्थाएँ पूरी करने के बाद, परमेश्वर चला गया। जो कुछ मनुष्य करता या सोचता है, जो कुछ मनुष्य समझता है, मनुष्य की योजनाएँ—इनमें से किसी का भी परमेश्वर से कोई संबंध नहीं है। सब कुछ परमेश्वर की योजनाओं के अनुसार, उन समयों और चरणों के अनुरूप आगे बढ़ता है जिन्हें परमेश्वर के द्वारा नियत किया जाता है। परमेश्वर के कार्य का सिद्धान्त ऐसा ही है। मनुष्य जो कुछ भी सोचता है या जानता है परमेश्वर इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता है, फिर भी मनुष्य के विश्वास न करने या न समझने के कारण न तो वह अपनी योजनाओं को छोड़ता है, न ही अपने कार्यों को त्यागता है। इस प्रकार से तथ्य परमेश्वर की योजना और विचारों के अनुसार पूरे होते हैं। यह बिलकुल वही है जिसे हम बाइबल में देखते हैं: परमेश्वर ने इसहाक को अपने द्वारा नियत समय में जन्म लेने दिया। क्या तथ्य साबित करते हैं कि मनुष्य के व्यवहार और आचरण ने परमेश्वर के कार्य में बाधा डाली थी? उन्होंने परमेश्वर के कार्य में बाधा नहीं डाली थी! क्या परमेश्वर में मनुष्य के थोड़े से विश्वास, परमेश्वर के बारे में उसकी धारणाओं और कल्पना ने परमेश्वर के कार्य को प्रभावित किया? नहीं, उन्होंने प्रभावित नहीं किया! जरा सा भी नहीं! परमेश्वर की प्रबन्धन योजना किसी भी मनुष्य, मामले, या परिवेश से अप्रभावित रहती है। वह सब कुछ जिसे करने का वह संकल्प करता है, समय पर तथा उसकी योजना के अनुसार खत्म और पूर्ण होगा, उसके कार्य में किसी भी मनुष्य के द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। परमेश्वर मनुष्य की कुछ मूर्खताओं और अज्ञानताओं को, और यहाँ तक उसके प्रति मनुष्य के कुछ प्रतिरोध और धारणाओं को भी अनदेखा कर देता है; उन पर ध्यान दिए बिना वह उस कार्य को करता रहता है जो उसे अवश्य करना चाहिए। यह परमेश्वर का स्वभाव है, और उसकी सर्वशक्तिमत्ता का प्रतिबिम्ब है।
परमेश्वर द्वारा मनुष्यजाति के उद्धार और प्रबंधन का कार्य अब्राहम द्वारा इसहाक की बलि के साथ आरम्भ होता है
अब्राहम को एक पुत्र देने के बाद, जो वचन परमेश्वर ने अब्राहम से कहे थे वे पूरे हो गए थे। इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर की योजना यहाँ पर रुक गयी थी; इसके विपरीत, मनुष्यजाति के प्रबन्धन और उद्धार की परमेश्वर की महाप्रतापी योजना का बस आरम्भ ही हुआ था, और अब्राहम को दी गयी सन्तान की आशीष उसकी सम्पूर्ण प्रबन्धन योजना का एक प्रस्तावना मात्र था। उस पल, कौन जानता था कि जब अब्राहम ने इसहाक की बलि दी थी तब शैतान के साथ परमेश्वर का युद्ध ख़ामोशी से आरम्भ हो चुका है।
परमेश्वर मनुष्य के मूर्ख होने की परवाह नहीं करता है—वह केवल यह माँग करता है कि मनुष्य सच्चा हो
आओ आगे देखें कि परमेश्वर ने अब्राहम के साथ क्या किया। उत्पत्ति 22:2 में, परमेश्वर ने अब्राहम को निम्नलिखित आज्ञा दी: "अपने पुत्र को अर्थात् अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा; और वहाँ उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊँगा होमबलि करके चढ़ा।" परमेश्वर का आशय बिल्कुल स्पष्ट था: परमेश्वर ��ब्राहम से अपने इकलौते पुत्र को, जिससे वह प्रेम करता था, होमबलि के रूप में देने के लिए कह रहा था। आज इस पर नज़र डालें तो, क्या परमेश्वर की आज्ञा अभी भी मनुष्य की धारणाओं से विपरीत है? हाँ! जो कुछ परमेश्वर ने उस समय किया वह मनुष्य की धारणाओं के बिलकुल विपरीत और मनुष्य की समझ से बाहर था। उनकी धारणाओं में, लोग निम्नलिखित पर विश्वास करते हैं: जब एक मनुष्य ने विश्वास नहीं किया, इसे असम्भव माना, तो परमेश्वर ने उसे एक पुत्र दिया, और उसे एक पुत्र प्राप्त हो जाने के बाद, परमेश्वर ने उससे अपने पुत्र की बलि देने के लिए कहा—कितना अविश्वसनीय है! परमेश्वर ने वास्तव में क्या करने का इरादा किया था? परमेश्वर का वास्तविक उद्देश्य क्या था? उसने अब्राहम को बिना शर्त एक पुत्र दिया, मगर उसने कहा कि अब्राहम एक बेशर्त बलि दे। क्या यह अतिशय था? किसी तीसरे पक्ष के दृष्टिकोण से, यह न केवल अतिशय था बल्कि कुछ-कुछ "बिना बात के मुसीबत खड़ा करने" का मामला था। परन्तु अब्राहम ने स्वयं यह नहीं माना कि परमेश्वर बहुत ज़्यादा माँग रहा है। हालाँकि उसके मन में कुछ मामूली विचार आये थे, और उसे परमेश्वर पर थोड़ा सन्देह हुआ था, तब भी वह बलि देने के लिए तैयार था। इस स्थिति में, तुम क्या देखते हो जो यह साबित करता है कि अब्राहम अपने पुत्र की बलि देने के लिए तैयार था? इन वाक्यों में क्या कहा जा रहा है? मूल पाठ निम्नलिखित विवरण प्रदान करता है: "अत: अब्राहम सबेरे तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब निकल कर उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्‍वर ने उससे की थी" (उत्पत्ति 22:3)। "जब वे उस स्थान को जिसे परमेश्‍वर ने उसको बताया था पहुँचे; तब अब्राहम ने वहाँ वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपने पुत्र इसहाक को बाँध कर वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया। फिर अब्राहम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपने पुत्र को बलि करे" (उत्पत्ति 22:9-10)। जब अब्राहम ने अपने हाथ को आगे बढ़ाया, और अपने बेटे को मारने के लिए छुरा लिया, तो क्या उसके कार्यकलापों को परमेश्वर के द्वारा देखा गया था? उन्हें देखा गया था। सम्पूर्ण प्रक्रिया ने—आरम्भ से, जब परमेश्वर ने कहा कि अब्राहम इसहाक का बलिदान करे से लेकर, उस समय तक जब अब्राहम ने अपने पुत्र का वध करने के लिए वास्तव में छुरा उठा लिया—परमेश्वर को अब्राहम का हृदय दिखाया, परमेश्वर के बारे में उसकी पहले की मूर्खता, अज्ञानता और ग़लतफ़हमी चाहे जो भी रही हो, उस समय अब्राहम का हृदय परमेश्वर के प्रति सच्चा, और ईमानदार था, और वह परमेश्वर के द्वारा दिये गए पुत्र, इसहाक को सचमुच में परमेश्वर को वापस देने जा रहा था। परमेश्वर ने उसमें आज्ञाकारिता—उसी आज्ञाकारिता को देखा जिसकी उसने इच्छा की थी।
मनुष्य के लिए, परमेश्वर बहुत कुछ करता है जो समझ से बाहर है और यहाँ तक कि अविश्वसनीय भी है। जब परमेश्वर किसी को आयोजित करने की इच्छा करता है, तो यह आयोजन प्रायः मनुष्य की धारणाओं के विपरीत होता है, और उसकी समझ से परे होता है, फिर भी यह निश्चित रूप से ये असंगति और अबोधगम्यता ही परमेश्वर द्वारा मनुष्य का परीक्षण और परीक्षा हैं। इसी बीच, अब्राहम अपने भीतर ही परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता को प्रदर्शित करने में समर्थ था, जो परमेश्वर की अपेक्षाओं को संतुष्ट करने में उसके समर्थ होने की सबसे प्रमुख शर्त थी। जब अब्राहम परमेश्वर की माँग को मानने में समर्थ हुआ, जब उसने इसहाक को अर्पित किया, केवल तभी परमेश्वर ने मनुष्यजाति के प्रति—अब्राहम के प्रति, जिसे उसने चुना था—सचमुच में आश्वासन और स्वीकृति महसूस की। केवल तभी परमेश्वर आश्वस्त हुआ कि यह व्यक्ति जिसे उसने चुना था एक अत्यंत महत्वपूर्ण अगुवा है जो उसकी प्रतिज्ञा और उसके बाद की प्रबंधन योजना का उत्तरदायित्व ले सकता था। यद्यपि यह सिर्फ एक परीक्षण और परीक्षा थी, फिर भी परमेश्व��� ने संतुष्टि महसूस की, उसने अपने लिए मनुष्य के प्रेम को महसूस किया, और उसे मनुष्य के द्वारा ऐसा आराम महसूस किया जैसा उसे पहले कभी नहीं महसूस हुआ था। जिस पल अब्राहम ने इसहाक को मारने के लिए अपना छुरा उठाया था, क्या परमेश्वर ने उसे रोका? परमेश्वर ने अब्राहम को इसहाक की बलि नहीं देने दी, क्योंकि परमेश्वर का इसहाक का जीवन लेने का कोई इरादा ही नहीं था। इसलिए, परमेश्वर ने अब्राहम को बिलकुल सही समय पर रोक दिया। परमेश्वर के लिए, अब्राहम की आज्ञाकारिता ने पहले ही परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया था, जो कुछ उसने किया वह पर्याप्त था, और परमेश्वर ने उस परिणाम को पहले से ही देख लिया था जो उसने इरादा किया था। क्या यह परिणाम परमेश्वर के लिए संतोषजनक था? ऐसा कहा जा सकता है कि यह परिणाम परमेश्वर के लिए संतोषजनक था, कि यही वह परिणाम था जो परमेश्वर चाहता था, और जिसे देखने की परमेश्वर ने लालसा की थी। क्या यह सही है? यद्यपि, भिन्न-भिन्न संदर्भों में, परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति की परीक्षा लेने के लिए भिन्न-भिन्न तरीकों का उपयोग करता है, किन्तु अब्राहम में परमेश्वर ने वह देखा जो वह चाहता था, उसने देखा कि अब्राहम का हृदय सच्चा था, और यह कि उसकी आज्ञाकारिता बेशर्त थी, और यह यही "बेशर्त" आज्ञाकारिता परमेश्वर इच्छा की थी। लोग प्रायः कहते हैं, मैंने पहले ही चढ़ावा चढ़ा दिया है, मैंने पहले ही उसका परित्याग कर दिया है—तब भी परमेश्वर मुझ से संतुष्ट क्यों नहीं है? क्यों वह मुझे परीक्षाओं के अधीन करता रहता है? क्यों वह मेरी परीक्षा लेता रहता है? यह एक तथ्य को प्रदर्शित करता हैः परमेश्वर ने तुम्हारे हृदय को नहीं देखा है, और तुम्हारे हृदय को प्राप्त नहीं किया है। कहने का तात्पर्य है कि, उसने ऐसी ईमानदारी नहीं देखी जैसी तब देखी थी जब अब्राहम अपने ही हाथ से अपने पुत्र को मारने के लिए छुरा उठाने, और उसे परमेश्वर के लिए बलि देने में समर्थ था। उसने तुम्हारी बेशर्त आज्ञाकारिता को नहीं देखा है, और उसे तुम्हारे द्वारा आराम नहीं पहुँचाया गया है। तो यह स्वाभाविक है कि परमेश्वर तुम्हारी परीक्षा लेता रहे। क्या यह सही नहीं है? हम इस विषय को यहीं पर छोड़ देंगे। इसके बाद, हम "अब्राहम के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा" को पढ़ेंगे।
3. अब्राहम के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा
उत्पत्ति 22:16-18 "यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूँगा; और निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूँगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।"
यह परमेश्वर के द्वारा अब्राहम को दिए गए आशीष का भरा-पूरा विवरण है। यद्यपि यह संक्षिप्त है, फिर भी इसकी विषय-वस्तु समृद्ध हैः यह परमेश्वर के द्वारा अब्राहम को दिए गए उपहार के कारण को, और उसकी पृष्ठभूमि को, और वह क्या था जो उसने अब्राहम को दिया था उसे सम्मिलित करता है। यह उस आनन्द और उत्साह से भरा है जिसके साथ परमेश्वर ने इन वचनों को कहा, और साथ ही उसके वचनों को सुनने में समर्थ लोगों को प्राप्त करने की उसकी लालसा की अत्यावश्यकता से भी व्याप्त है। इसमें, हम परमेश्वर के वचनों और उसकी आज्ञाओं का पालन करने वाले लोगों के वास्ते परमेश्वर के दुलार, और उसकी सहृदयता को देखते हैं। हम उस कीमत को भी देखते हैं जो वह लोगों को प्राप्त करने के लिए चुकाता है, और उस देखभाल और विचार को देखते हैं जो वह इन लोगों को प्राप्त करने में लगाता है। इसके अतिरिक्त, वह अंश, जिसमें ये वचन "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ" हैं, हमें, उसकी प्रबन्धन योजना के पर्दे के पीछे, सिर्फ और सिर्फ परमेश्वर के द्वारा सही गई कड़वाहट और दर्द का ज़बरदस्त अनुभव कराते हैं। यह एक विचारने पर मजबूर करने वाला अंश है, एक ऐसा अंश है जो बाद में आने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है, और उन पर दूरगामी प्रभाव डालता है।
मनुष्य अपनी ईमानदारी और आज्ञाकारिता की वजह से परमेश्वर के आशीष प्राप्त करता है
क्या परमेश्वर के द्वारा अब्राहम को दिया गया आशीष, जिसके बारे में हम यहाँ पढ़ते हैं, महान था? यह आखिर कितना महान था? यहाँ एक मुख्य वाक्य हैः "और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी," जो यह दिखाता है कि अब्राहम ने ऐसे आशीषों को प्राप्त किया था जो पहले या बाद में आने वालों में से किसी और को नहीं दिये गए थे। परमेश्वर के द्वारा माँगा जाने पर, जब अब्राहम ने अपने इकलौते पुत्र—अपने प्रिय इकलौते पुत्र—को परमेश्वर को लौटा दिया (टिप्पणी: यहाँ पर हम "बलि दे दिया" शब्द का उपयोग नहीं कर सकते हैं; हमें यह कहना चाहिए कि उसने अपने पुत्र को परमेश्वर को लौटा दिया), तब परमेश्वर ने न केवल अब्राहम को इसहाक की बलि देने की अनुमति नहीं दी, बल्कि उसने उसे आशीष भी दिया। उसने अब्राहम को किस प्रतिज्ञा का आशीष दिया? उसके वंश को बहुगुणित करने की प्रतिज्ञा का आशीष। और उन्हें कितनी मात्रा में बहुगुणित होना था? पवित्रशास्त्र हमें निम्नलिखित अभिलेख प्रदान करता है: "... आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा: और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।" वह सन्दर्भ क्या था जिसमें परमेश्वर ने इन वचनों को कहा था? कहने का तात्पर्य है कि, अब्राहम ने परमेश्वर के आशीषों को कैसे प्राप्त किया था? उसने उन्हें ठीक वैसे ही प्राप्त किया जैसा परमेश्वर ने पवित्रशास्त्र में कहा है: "क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।" अर्थात्, क्योंकि अब्राहम ने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया था, क्योंकि उसने, जरा सी भी शिकायत के बिना, वह सब कुछ किया जो परमेश्वर ने कहा, माँगा और आदेश दिया था, इसलिए परमेश्वर ने उससे ऐसी प्रतिज्ञा की। इस प्रतिज्ञा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण वाक्य है जो उस समय परमेश्वर के विचारों को थोड़ा स्पर्श करता है। क्या तुम लोगों ने इसे देखा है? हो सकता है कि तुम लोगों ने परमेश्वर के इन वचनों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया हो कि "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ।" उनका मतलब है कि, जब परमेश्वर ने इन वचनों को कहा, तो वह अपनी ही शपथ खा रहा था। जब लोग कसम खाते हैं तो वे किसकी शपथ लेते हैं? वे स्वर्ग की शपथ लेते हैं, कहने का अभिप्राय है कि, वे परमेश्वर की कसम खाते हैं और परमेश्वर की शपथ लेते हैं। हो सकता है कि लोगों के पास उस घटना की ज़्यादा समझ न हो जिसके द्वारा परमेश्वर ने अपनी ही शपथ ली थी, परन्तु जब मैं तुम लोगों को सही व्याख्या प्रदान करूँगा तो तुम लोग समझने में समर्थ हो जाओगे। ऐसे मनुष्य के साथ आमना-सामना होने पर, जो उसके वचनों को केवल सुन सकता था किन्तु उसके हदय को नहीं समझ सकता हो, परमेश्वर ने एक बार फिर से एकाकी और खोया हुआ महसूस किया। ऐसा कहा जा सकता है कि, हताशा में—औरअवचेतन रूप से—परमेश्वर ने कुछ बहुत ही स्वाभाविक किया: अब्राहम को यह प्रतिज्ञा प्रदान करते समय परमेश्वर ने अपना हाथ अपने हृदय पर रखा और स्वयं को संबोधित किया, और इससे मनुष्य ने परमेश्वर को कहते सुना "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ।" परमेश्वर के कार्यों के माध्यम से, तुम शायद स्वयं के बारे में सोचो। जब तुम अपना हाथ अपने हृदय पर रखते हो और स्वयं से कहते हो, तो क्या तुम्हें स्पष्ट विचार होता है कि तुम क्या कह रहे हो? क्या तुम्हारी प्रवृत्ति ईमानदार होती है? क्या तुम खुल कर, अपने हृदय से बात करते हो? इस प्रकार, हम यहाँ देखते हैं कि जब परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, तो वह सच्चा और ईमानदार था। जब अब्राहम से बात कर रहा और उसे आशीष दे रहा था, उसी समय परमेश्वर स्वयं से भी बोल रहा था। वह अपने आप से कह रहा थाः मैं अब्राहम को आशीष दूँगा, और उसकी संतति को आकाश के तारों के समान अनगिनत, और समुद्र के किनारे की रेत के समान असंख्य कर दूँगा, क्योंकि उसने मेरे वचनों का पालन किया है और मैं इसे ही चुनता हूँ। जब परमेश्वर ने कहा "मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ," तो परमेश्वर ने संकल्प किया कि वह अब्राहम में इस्राएल के चुने हुए लोगों को उत्पन्न करेगा, जिसके बाद वह अपने कार्य के साथ तेजी से इन लोगों की आगे अगुवाई करेगा। अर्थात्, परमेश्वर अब्राहम के वंशजों से परमेश्वर के प्रबन्धन के कार्य धारण करवाएगा, और परमेश्वर का कार्य और परमेश्वर के द्वारा जिन बातों को व्यक्त किया गया था वे अब्राहम के साथ आरम्भ होंगे, और अब्राहम के वंशजों में जारी रहेंगे, इस प्रकार वे मनुष्य को बचाने की परमेश्वर की इच्छा को साकार करेंगे। जो तुम लोग कहते हो, क्या यह एक आशीषित बात नहीं है? मनुष्य के लिए, इससे बड़ा और कोई आशीष नहीं है; ऐसा कहा जा सकता है कि यह सबसे धन्य बात है। अब्राहम के द्वारा प्राप्त किया गया आशीष उसकी संतान का बहुगुणित होना नहीं था, बल्कि अब्राहम के वंशजों में परमेश्वर के प्रबंधन, उसके आदेश, और उसके कार्य की उपलब्धि थी। इसका अर्थ है कि अब्राहम के द्वारा प्राप्त किए गए आशीष अस्थायी नहीं थे, बल्कि जैसे-जैसे प्रबंधन की परमेश्वर की योजना प्रगति करती गई वे लगातार जारी रहे। जब परमेश्वर बोला, जब परमेश्वर ने अपनी ही शपथ खाई, तब वह पहले ही एक संकल्प कर चुका था। क्या इस संकल्प की प्रक्रिया सही थी? क्या यह वास्तविक थी? परमेश्वर ने संकल्प किया कि, उस समय के बाद से, उसके प्रयास, इसके द्वारा चुकाई गई कीमत, उसका स्वरूप, उसका सब कुछ, और यहाँ तक कि उसका जीवन भी अब्राहम और अब्राहम के वंशजों को दे दिया जाएगा। इसलिए भी परमेश्वर ने यह संकल्प किया कि, लोगों के इस समूह से आरम्भ करके, वह अपने कर्मों को प्रदर्शित करेगा, और मनुष्य को अपनी बुद्धि, अधिकार और सामर्थ्य को देखने देगा।
                                                                   स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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