#स्त्री हूं रिश्ते सभी निभाती हूं।।
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#ज्ञान के आभूषण से अलंकृत#महत्वकांक्षी#आत्मसम्मान से भरी#जीवन के संघर्षो से नही हारी#सशक्त हूं तृष्णाओं से परे हूं ।।#ओज की ज्वाला जलाकर#मैं मर्यादा के गहनों से ही#अपनी नित देह को सजाती हूं#स्त्री हूं रिश्ते सभी निभाती हूं।।#तपकर खुद को मैंने स्वर्ण बनाया#जीता ��िल तब देवी नाम पाया ।#कोई उपहास उड़ाये व्यर्थ भी तो#मैं शांत ही स्वयं निकल जाती हूं।।#अपने कर्तव्य पालन#कर्मों से#घर को मैं ही स्वर्ग बनाती हूं#संस्कारों से सजी हुई नारी हूं#स्वाभिमानी मैं कहलाती हूं।।#आत्मविश्वास जगा कर खुद#ईश्वर वंदना से पवित्र मन मेरा#सबके लिए आधार बने आदर्श#तब घर की देवी कहलाती हूं ॥#आशी प्रतिभा दुबे
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