#सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य
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सोयाबीन किसानों को बड़ी राहत: पीएम मोदी ने MSP बढ़ाकर 6,000 रुपये करने का किया ऐलान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के हित में एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाकर 6,000 रुपये प्रति क्विंटल करने की घोषणा की है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों के किसान सोयाबीन की गिरती कीमतों से परेशान हैं। पीएम मोदी ने अपनी घोषणा में कहा कि “साथियों हमारी सरकार सोयाबीन किसानों को संकट से उबारने को अलग से 5000 रुपये दे रही…
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धान और कपास की फसलों पर अपनी निर्भरता को कैसे समाप्त कर सकता है तेलंगाना
धान और कपास की फसलों पर अपनी निर्भरता को कैसे समाप्त कर सकता है तेलंगाना
ए. अमरेंद्र रेड्डी, प्रमुख वैज्ञानिक (कृषि अर्थशास्त्र)
आईसीएआर-सेंटर रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड एग्रीकल्चर हैदराबाद
अपनी हाल की यात्राओं में, मैंने देखा कि तेलंगाना की फसल पैटर्न केवल दो फसलों - धान और कपास की ओर अत्यधिक विषम हैं। दो फसलों पर इस अति निर्भरता से उत्पादन और मूल्य जोखिमों में वृद्धि होती है, कीटों और बीमारियों के प्रकोप के कारण पूरी तरह से तबाही होती है, और पर्यावरणीय खतरे होते हैं।
हालांकि राज्य सरकार फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली है। एक समग्र रणनीति न केवल जोखिमों को कम कर सकती है बल्कि किसानों को उच्च आय प्राप्त करने में भी मदद कर सकती है।
तेलंगाना में कुल बोया गया क्षेत्र लगभग 135.63 लाख एकड़ है और सकल फसल क्षेत्र 203 लाख एकड़ था। राज्य में शुद्ध सिंचित क्षेत्र लगभग 55 लाख एकड़ है जिसमें 78.1 लाख एकड़ सकल सिंचित क्षेत्र है। राज्य के 59.48 लाख किसानों में से 65% के पास 1 हेक्टेयर (1 हेक्टेयर = 2.47 एकड़) से कम की छोटी जोत है।
कपास (बोए गए क्षेत्र का 45%) और धान (39%) हैं, जिसमें लाल चना, मक्का और सोयाबीन की खेती के तहत एक छोटा हिस्सा है। बरसात के बाद के मौसम के दौरान, अधिकांश खेती वाले क्षेत्र में धान (77%), कुछ क्षेत्रों में मक्का (7%), बंगाल चना (5%) और मूंगफली (4%) की खेती होती है।
तेलंगाना धान का सबसे बड़ा उत्पादक और भारत में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। फसल उत्पादन राज्य के कृषि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 43% हिस्सा है, शेष का योगदान पशुधन, डेयरी और कुक्कुट आदि द्��ारा किया जाता है।
राज्य में धान और कपास की एक फसल की वजह से खरीद में समस्या आ रही है, साथ ही कीमत और उपज के जोखिम का अत्यधिक जोखिम और कीटों और बीमारियों के अचानक संभावित प्रकोप भी हो रहे हैं। यह पिछले साल हुआ था, जब तेलंगाना के कुछ हिस्सों में मिर्च की फसल खराब हो गई थी। फसल के पूर्ण नुकसान के साथ, किसानों को प्रति एकड़ 1.3-1.5 लाख रुपये का नुकसान हुआ।
यद्यपि धान की उपज 22-25 क्विंटल प्रति एकड़ के साथ काफी अच्छी है, राज्य में कपास की पैदावार 2.8 क्विंटल प्रति एकड़ कम है, लेकिन कपास को कुछ वर्षों में उच्च बाजार कीमतों से फायदा हुआ है। बरसात के मौसम में सोयाबीन, मक्का और लाल चने जैसी फसल वैकल्पिक फसल के रूप में उभर रही है, जबकि रबी सीजन में मक्का, बंगाल चना और मूंगफली वैकल्पिक फसलें हैं।
एक जिला-एक उत्पाद दृष्टिकोण के तहत, फसल कॉलोनियों को बढ़ावा दिया जाता है ताकि किसानों को उच्च मूल्य वाली फसलों पर स्विच करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और प्रत्येक जिले में एक विशेष वस्तु के आसपास आवश्यक बुनियादी वस्तु-विशिष्ट बुनियादी ढांचे, जैसे प्रसंस्करण इकाइयों और कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे की पहचान की जा सके। . कृषि विभाग भी प्रदर्शनों, कृषि मशीनीकरण और मूल्यवर्धन, और अन्य साइट-विशिष्ट गतिविधियों के माध्यम से वैकल्पिक फसलों का प्रचार कर रहा है।
तेलंगाना में ताड़ के तेल, बागवानी, बांस और कृषि-वानिकी के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए फसल विविधीकरण के उद्देश्य से कई योजनाएं चल रही हैं। ताड़ के तेल जैसी वैकल्पिक फसलों की खेती के लिए नकद और तरह के प्रोत्साहन भी मौजूद हैं, लेकिन बहुत कम सफलता मिली है।
24 घंटे मुफ्त बिजली जैसी नीतियों के चलते राज्य के कई हिस्सों में बोरवेल के नीचे भी दो सीजन में धान की खेती हो रही है. यह लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है और सरकार और किसानों दोनों के लिए बहुत महंगा साबित होगा।
धान एक पानी की खपत वाली फसल है, जिसमें दलहन और तिलहन (लगभग 900 लीटर प्रति किलो अनाज) की तुलना में लगभग तीन से पांच गुना (3,000 से 5,000 लीटर प्रति किलो अनाज) अधिक पानी की खपत होती है। फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए लंबे समय तक चलने वाली स्थिर नीतियां समय की मांग हैं। दलहन, तिलहन और अन्य वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देने के लिए पिछली नीतियां धान से बदलाव को ट्रिगर करने के लिए पर्याप्त स्थिर नहीं हैं।
हालांकि वैकल्पिक फसलें कुछ वर्षों में अधिक मूल्य प्राप्त करती है���, वे पैदावार और कीमतों दोनों के मामले में जोखिम भरी होती हैं। इसके अलावा, इन वैकल्पिक फसलों के उच्च बाजार मूल्य कम पैदावार की भरपाई करने में सक्षम नहीं थे। इसलिए, राज्य में वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देने के लिए, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से किसी प्रकार की मूल्य गारंटी को लागू करना होगा, इसके अलावा, सरकार को उपज बढ़ाने वाले को अपनाने को बढ़ावा देने के प्रयास करने चाहिए।
एमएसपी पर गारंटीकृत खरीद के बिना, दलहन और तिलहन की कीमतें 'कोबवेब चक्र' का पालन करती हैं, जिसमें किसान फसल की अवधि के दौरान पूर्वानुमानित कीमतों के आधार पर नहीं, बल्कि पिछले वर्ष की कीमतों के आधार पर उत्पादन निर्णय लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव होता है।
इस परिदृश्य में, वैकल्पिक भरमार और कमी हो सकती है। इससे बचने के लिए, बुवाई से पहले आगामी फसल अवधि के लिए सटीक मूल्य पूर्वानुमान का प्रसार महत्वपूर्ण है, इसलिए किसान पिछले वर्ष की कीमत के बजाय पूर्वानुमानित कीमतों के आधार पर रकबा निर्णय ले सकते हैं। ऐसा करने का एक तरीका एमएसपी की घोषणा करना है जो पर्याप्त खरीद द्वारा समर्थित होगा ताकि किसान आगामी फसल अवधि के लिए मूल्य संकेत के रूप में एमएसपी पर भरोसा करें और कोबवे चक्र में गिरने के बजाय उसके अनुसार अपने रकबे की योजना बनाएं।
स्थिर मूल्य नीति के अलावा, सरकार को वैकल्पिक फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास और प्रसार पर ध्यान देना होगा। भूजल सिंचाई धान के विविधीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह नियंत्रित पानी छोड़ने की सुविधा प्रदान करती है, जो सब्जियों, फलों, मिर्च और कपास जैसी फसलों को उगाने के लिए एक पूर्वापेक्षा है। इस कारण से भूजल पर अधिक निर्भर जिलों (जैसे बोरवेल सिंचाई) को फसल विविधीकरण योजनाओं में उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
एक अन्य प्राथमिकता हस्तक्षेप फसल की जरूरतों के अनुसार पानी की नियंत्रित रिहाई की सुविधा के लिए नहर सिंचाई प्रणाली का प्रबंधन करना है। पानी की यह नियंत्रित रिहाई किसानों को उनकी लाभप्रदता के आधार पर फसलों का चयन करने की अनुमति देगी।
यह ध्यान देने योग्य है कि तेलंगाना में आदिलाबाद और तटीय आंध्र प्रदेश जैसे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में, पूरक सिंचाई प्रदान करने के लिए जल संचयन संरचनाओं (जैसे गाँव के तालाबों या खेत के तालाबों) को बढ़ावा देकर न केवल फसल विविधता को बढ़ाने के लिए बल्कि फसल की तीव्रता को भी बढ़ाने की अधिक गुंजाइश है। जिससे धान की कटाई के बाद सब्जियों, दालों और तिलहन की खेती का दायरा बढ़ेगा।
नियंत्रित सिंचाई के अलावा, नीति आयोग के अध्ययनों ने सं��ेत दिया है कि बेहतर बाजार बुनियादी ढांचे, जैसे ग्रामीण सड़कों, गांव भंडारण बुनियादी ढांचे और अच्छी तरह से जुड़े बाजारों ने बागवानी फसलों (फल और सब्जियां) जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर फसल विविधीकरण में मदद की है। है, जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है।
कुल मिलाकर, फसल विविधीकरण योजना को सफल बनाने के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए (i) वैकल्पिक फसलों के लिए एमएसपी का कार्यान्वयन; (ii) वैकल्पिक फसलों के लिए उपज बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रसार; (iii) नियंत्रित सिंचाई के तहत क्षेत्र का विस्तार; और (iv) ग्रामीण बुनियादी ढांचे, सड़कों और बाजारों सहित।
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विदेशों में तेजी, मांग बढ़ने से बीते सप्ताह लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में सुधार Divya Sandesh
#Divyasandesh
विदेशों में तेजी, मांग बढ़ने से बीते सप्ताह लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में सुधार
नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) वैश्विक बाजारों में तेजी तथा निर्यात के साथ-साथ स्थानीय मांग के कारण दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, सीपीओ और पामोलीन सहित लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में सुधार देखने को मिला। बाजार सूत्रों ने कहा कि सरसों की रोक-रोक कर बिक्री करने का काम किसान कर रहे हैं और मंडियों में कम उपज ला रहे हैं। आयातित तेलों के मुकाबले सस्ता होने के कारण सरसों में चावल भूसी (राइस ब्रान) जैसे सस्ते तेलों की मिलावट नहीं हो रही है और उपभोक्ताओं को शुद्ध सरसों तेल खाने को मिल रहा है। सूत्रों ने कहा कि सरसों की भारी मांग और आपूर्ति की कमी होने से सरसों तेल-तिलहन कीमतों में सुधार आया। उन्होंने कहा कि बीते सप्ताह रुपये के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने से सभी तेल कीमतों में सुधार आया है। सूत्रों ने कहा कि ऊंचा भाव होने के कारण व्यापारियों एवं किसानों के पास सोयाबीन का स्टॉक नहीं है। जबकि पॉल्ट्री वालों की घरेलू मांग के साथ सोयाबीन के तेल रहित खल के निर्यात की भारी मांग है। सरसों और मूंगफली के डीओसी की भी मांग है जिसके कारण समीक्षाधीन सप्ताह में इनके तेल-तिलहन कीमतों में सुधार आया। उन्होंने कहा कि निर्यात के साथ-साथ स्थानीय मांग बढ़ने से मूंगफली तेल-तिलहनों के भाव में भी पर्याप्त सुधार दर्ज हुआ। उन्होंने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में तेजी के बीच सीपीओ और पामोलीन तेल की मांग बढ़ने से सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में सुधार आया। सूत्रों ने कहा कि सरकार को इस बात पर ध्यान देना होगा कि किन कारणों से देश तेल-तिलहन मामने में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया। ��्रमुख तेल तिलहन विशेषज्ञ पवन गुप्ता ने कहा कि देश के विभिन्न अग्रणी तेल संगठन सरकार के सामने तेल-तिलहन के मामले में गलत तस्वीर पेश करते आये हैं और सही समस्याओं को सरकार के सामने नहीं रखते। उदाहरण के लिए उन्होंने बताया कि बीते कई सालों में उन्होंने सरकार को आगाह नहीं किया कि खाद्य तेलों के बढ़ते आयात को रोकने के लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिए। इसी प्रकार उन्होंने मंडियों में सरसों, सोयाबीन या अन्य किसी देशी तेल के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम होने की स्थिति में हाय-तौबा नहीं मचाई और न ही सरकार को आगाह किया। लेकिन जब आयात शुल्क में वृद्धि हुई और किसानों को सरकार ने तेल-तिलहनों के अच्छे दाम दिलाये, तो तेलों के दाम बढ़ने की चिंता व्यक्त करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि तेल-तिलहनों के लिए यदि किसानों को अच्छे दाम मिलते हैं, तो इससे महंगाई बढ़ने के बजाय किसानों के पास पैसा आयेगा और वे अधिक तिलहन उत्पादन के लिए प्रेरित होंगे, आयात पर निर्भरता कम होगी, खाद्य तेलों के आयात पर होने वाले करोड़ों के डॉलर की विदेशी मुद्रा बचेगी और अर्थव्यवस्था मजबूत होने के साथ रोजगार बढ़ेंगे। पिछले सप्ताह सरसों दाना का भाव 750 रुपये बढ़कर 7,000-7,100 रुपये प्रति क्विन्टल हो गया जो इससे पिछले सप्ताहांत 6,310-6,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ था। सरसों दादरी तेल का भाव भी 1,600 रुपये सुधरकर 14,500 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुआ। सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी टिनों के भाव भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 175-175 रुपये सुधार के साथ क्रमश: 2,205-2,285 रुपये और 2,385-2,415 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए। विदेशों में तेजी के रुख के बीच सोयाबीन के तेल रहित खल की स्थानीय पॉल्ट्री फर्मो के अलावा विदेशों से भारी मांग है जिससे सोयाबीन तेल-तिलहन कीमतों में सुधार देखा गया। सोयाबीन दाना और लूज का भाव क्रमश: 500 रुपये और 600 रुपये का सुधार दर्शाता क्रमश: 7,250-7,300 रुपये और 7,150-7,200 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुआ। सोयाबीन दिल्ली, इंदौर और सोयाबीन डीगम का भाव क्रमश: 850 रुपये, 650 रुपये और 880 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 15,200 रुपये, 14,800 रुपये और 13,950 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुआ। निर्यात मांग के कारण मूंगफली दाना 75 रुपये सुधरकर 6,560-6,605 रुपये, मूंगफली गुजरात 100 रुपये के सुधार के साथ 16,000 रुपये क्विन्टल तथा मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड का भाव 15 रुपये के सुधार के साथ 2,545-2,605 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ। सप्ताह के दौरान कच्चा पाम तेल (सीपीओ) का भाव 320 रुपये बढ़कर 12,100 रुपये प्रति क्विन्टल हो गया। पामोलीन दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल के भाव समीक्षाधीन सप्ताहांत में क्रमश: 450 रुपये और 300 रुपये का सुधार दर्शाते क्रमश: 14,000 रुपये और 12,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गये। बाकी तेलों में तिल मिल डिलिवरी का भाव 400 रुपये के सुधार के साथ 15,200-18,200 रुपये प्रति क्विन्टल हो गया। बिनौला मिल डिलिवरी हरियाणा 1,100 रुपये बढ़कर 14,600 रुपये हो गया। वहीं मक्का खल का भाव भी 100 रुपये सुधरकर 3,800 रुपये क्विन्टल ��र बंद हुआ। तैयार खाद्य वस्तु निर्माता कंपनियों और शादी ब्याह में मक्का रिफाइंड की मांग बढ़ रही है जिसे काफी बेहतर माना जाता है।
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इसे कहते हैं सिर मुड़ाते ही ओले पड़े। पिछले महीनेभर से तीन कृषि कानूनों के पक्ष में सरकार के पास एक ही दलील थी: तीन कानूनों की चिंता मत करो, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) सुरक्षित रहेगा। कुछ दरबारी पत्रकार पूछते थे: ‘अरे भाई प्रधानमंत्री ने आश्वासन दे दिया है, अब आप उनकी बात पर भी भरोसा नहीं करते।’
इसी बीच खरीफ की फसल कटकर मंडी में आ रही थी। फसल के दाम के आंकड़े स्थानीय अखबारों व सरकार की वेबसाइट पर छप रहे थे। राष्ट्रीय मीडिया इनसे बेखबर था। पिछले सप्ताह में मीडिया ने कुछ सुध ली तो सरकारी दावों की पोल खुल गई।
‘द हिंदू’ अखबार ने देश की 600 प्रमुख मंडियों में पिछले एक महीने (14 सितंबर से 14 अक्टूबर) में 10 प्रमुख फसलों के भाव के आंकड़े इकट्ठे किए। गौरतलब है कि इस आंकड़े का स्रोत सरकार की अपनी वेबसाइट एग्रीमार्क नेट है। इन 1,80,000 आंकड़ों के विश्लेषण से पता लगा कि पिछले महीने में 32% सौदों में किसान को सरकारी एमएसपी या उसके ऊपर भाव मिल पाया।
यानी जिसे सरकार खुद किसान का न्यूनतम भाव मानती है, वह केवल एक तिहाई किसानों को ही मिल पाया। सबसे बुरी हालत बाजरा व सोयाबीन की है जहां 5% किसानों को भी एमएसपी नहीं मिल पाया। मूंगफली, मक्का, रागी में भी एक चौथाई से कम किसानों को न्यूनतम दाम मिल पाया।
बाजार के प्रकोप से फिलहाल मूंग, उड़द, तूर और तिल जैसी दलहन व तिलहन बचे हैं। इनका दाम अभी एमएसपी से ऊपर है। यह मौसम धान खरीद का है। सरकारी खरीद के बड़बोले दावों के बावजूद 30% से भी कम धान एमएसपी या इसके ऊपर बिक पाया है।
गौरतलब है कि सरकार ने धान की सामान्य किस्म यानी परमल ही खरीदी है। वह बासमती धान की कोई एमएसपी तय नहीं करती क्योंकि वह बाजार में बहुत ऊंचे दाम पर बिकता है। इस साल स्थिति ��ह है कि बासमती की 1509 नामक किस्म सामान्य धान के लिए तय न्यूनतम सरकारी मूल्य ₹1868 से भी नीचे बिक रहा है।
वास्तविक स्थिति इन आंकड़ों से भी बदतर है। ये आंकड़े सरकारी मंडी में दर्ज सौदों पर आधारित है। वास्तव में बहुत से किसान तो मंडी पहुंच ही नहीं पाते। और मंडी में होने वाले कई सौदे औपचारिक रिकॉर्ड में लिखे नहीं जाते। मंडी के बाहर और बिना दर्ज किए अनौपचारिक सौदे एमएसपी से कहीं नीचे होते हैं।
अगर इन्हें भी जोड़ लिया जाए तो एमएसपी या इसके ऊपर हाने वाले सौदे 20% भी नहीं होंगे। जहां सरकारी एमएसपी पर खरीद हो रही है उसकी स्थिति का अनुमान मुझे पिछले हफ्ते हरियाणा की मंडियों की यात्रा के दौरान हुआ। दक्षिणी और पश्चिमी हरियाणा के 7 जिलों (नूह, गुरुग्राम, रेवाड़ी महेंद्रगढ़ दादरी भिवानी और हिसार) की मंडियों से यह साफ हो गया कि दाना-दाना खरीदने के सरकारी दावे बस जुमले हैं।
सच यह है कि किसान की सारी फसल एमएसपी पर खरीदने की सरकार की ना तो नीति है, न नीयत। इन इलाकों की मुख्य फसल बाजरा है। सरकार ने 1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक 45 दिन का समय सरकारी खरीद के लिए तय किया है। एक तिहाई से अधिक समय बीतने के बावजूद इन मंडियों में सिर्फ 5-10% किसानों की फसल खरीदी गई थी।
सरकारी नीति ही ऐसी है कि किसान की सारी फसल खरीदनी ना पड़े। बाजरे की कटाई सितंबर के महीने में हो जाती है लेकिन सरकारी खरीद 1 अक्टूबर से शुरू होती है। सिर्फ उन्हीं किसानों की फसल खरीदी जाएगी जिन्होंने सरकारी पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा रखा है।
इस इलाके में अच्छा किसान प्रति एकड़ 10-12 क्विंटल बाजरा पैदा कर लेता है, लेकिन सरकार ने 8 क्विंटल/एकड़ की सीमा बांध रखी है। इस पर यह नियम भी है कि चाहे जितनी भी जमीन या पैदावार हो, एक दिन में 40 क्विंटल से ज्यादा खरीद नहीं होगी। कपास किसान की स्थिति और बुरी है, क्योंकि इन सात जिलों में सिर्फ दो कपास खरीद केंद्र हैं, जिसमें एक ही काम करता है।
नीति की खामियों के ऊपर नीयत का दोष भी किसान की स्थिति दूभर बनाता है। कोरोना की आड़ में हर मंडी में रोज सिर्फ 100 किसानों को फसल बेचने बुला रहे हैं। जबकि रजिस्ट्रेशन देखते हुए कम से कम 400-500 को बुलाना चाहिए। कुछ किसान सॉफ्टवेयर की गलतियों का शिकार होते हैं, तो कुछ पटवारी द्वारा वेरिफिकेशन में की गई शरारत की चपेट में आ जाते हैं।
सुनवाई करने की ना व्यवस्था है, न इच्छा। किसान की फसल खरीद नहीं होती, लेकिन इधर-उधर के राज्यों से मंगाकर व्यापारी किसान के नाम पर खरीद करवा देते हैं। हरियाणा और पंजाब में तो फिर भी सरकार की ��रफ से कुछ खरीद हो रही है। देश के बाकी राज्यों में स्थिति बदतर है। धान की छिटपुट खरीद के अलावा किसी फसल की सरकारी खरीद नहीं हो रही। अधिकांश इलाकों में एमएसपी किस चिड़िया का नाम है, यही किसान को पता नहीं है।
इसलिए अगर आपको टीवी चैनल पर भाजपा के प्रवक्ता ताल ठोक कर कहते हुए मिलें कि ‘एमएसपी थी, है और रहेगी’, तो उसका अर्थ समझ जाइए: एमएसपी जैसी थी, वैसी ही है और ऐसी ही रहेगी। कागज पर थी, कागज पर ही है और कागज पर ही रहेगी। जैसा हरियाणा में बिगड़ैल गाड़ी के पीछे लिखा होता है: ‘या तो न्यूं ही चालेगी’।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष, स्वराज इंडिय
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ये रहेगा धान, कपास सहित अन्य खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वर्ष 2020-21 के लिए
ये रहेगा धान, कपास सहित अन्य खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वर्ष 2020-21 के लिए | Kharif Crops Prices #MSP 2020
धान, कपास, ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, सोयाबीन, तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है ? kharif fasal samarthan mulya 2020-21 | Minimum Support Prices (MSP) for Kharif Crops for marketing season 2020-21
Kharif Crops Prices MSP 2020:आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने साल 2020-21 के लिये 17 ख़रीफ़ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price-MSP) में उत्पादन लागत पर…
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#Kharif Crops#kharif fasal samarthan mulya#Minimum Support Prices#MSP#खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य
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ये तीन स्थितियां हैं। इनसे समझ जाइए कि आने वाले दिन कैसे हो सकते हैं।
यूपी के बिजनौर जिले के किसान विपिन कुमार के पास एक हेक्टेयर से कम जोत है। वह खेती के साथ दूध बेचकर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। वह जिस दूधिये को ��ूध बेचते हैं, उसने लाॅकडाउन के दो दिनों बाद से ही करीब 10 लीटर कम दूध लेना शुरू कर दिया है। इसकी वजह भी है- एक, घर-परिवार तक का उस पर दबाव है कि ज्यादा न भटको, जिंदगी रही तो फिर कमा खा लेंगे। दो- गांव से शहर तक में चाय-पान की दुकानें बंद हो गई हैं, जबकि ढाबों में मांग कम हो गई है। इस वजह से विपिन- जैसों को दोहरा घाटा हो रहा है। एक तो दूध की मांग का नुकसान, दूसरा कि ट्रकों वगैरह की आवाजाही सीमित होने की वजह से पशुओं के चारे का संकट हो गया है, तो वह महंगा होने लगा है। लाॅकडाउन के चार दिन बाद ही चारे की कीमत में 500 रुपये तक की बढ़ोतरी हो गई।
मध्य प्रदेश में संतरे की खेती करने वाले किसान पंकज पाटीदार हों या राजस्थान के भीलवाड़ा में गुलाब और गेंदे की खेती करने वाला आशुतोष- बिल्कुल बर्बाद हो गए हैं। ये कैश क्राॅप हैं, पर बाजार तक पहुंच मुश्किल है, इसलिए सबकुछ खेतों में सड़ रहा है। संतरे मार्केट तक पहुंचाना मुश्किल है जबकि मंदिर से लेकर सारे इवेंट तक बंद रहने से फूलों की कुछ भी मांग नहीं है। आशुतोष ने तो फूलों को खेतों में ही छोड़ दिया है।
घर की जरूरतों और गन्ने की बुआई के लिए खाद और कीटनाशक दवाई के लिए गन्ने का आया भुगतान लेने बिजनौर जिले की नजीबाबाद तहसील के किसान सुमित जब बैंक पहुंचे तो वहां उन्हें मात्र पांच हजार रुपये देकर चलता कर दिया गया। शहर जब खाद और दवा लेने गए तो रास्ते से ही पुलिस ने ट्रैक्टर वापस कर दिया। पड़ोसी गांव से कुछ खाद उधार लेकर उन्होंने जैसे-तैसे गन्ने की बुआई की है।
ये केवल बानगी भर हैं और इनसे ही अंदाजा लग सकता है कि आने वाले दिनों में कैसे दूध से लेकर सब्जियों, फलों की कीमतें कैसे और क्यों बढ़ती जाएंगी और इसके साथ ही, आने वाले दिनों में किसान कैसे मुश्किल में पड़ते जाएंगे। सबसे अधिक प्रभावित गन्ना किसान दिखाई दे रहा है। मुजफ्फरनगर के रसूलपुर जाटान के किसान सचिन मलिक बताते हैं कि पूरा गन्ना मिल पर नहीं जा पाता। बचे गन्ने को गुड़ के कोल्हू पर बेचना मजबूरी है।
लेकिन होली के बाद से कोल्हू चले ही नहीं। पहले वे बारिश की वजह से बंद रहे, उसके बाद कोरोना के चक्कर में लेबर को पुलिस ने भगा दिया। अब सरकार की तरफ से कोल्हू चलाने की मनाही नहीं है, लेकिन गुड़ का उठान न होने की वजह से इलाके में इक्का-दुक्का क��ल्हू ही चल रहे हैं। वहां भी गन्ने का रेट सरकार के रेट से बहुत कम है। इस दौरान किसानों को 75 से 100 रुपये प्रति क्विंटल कम रेट पर गन्ना बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।
खेती के जानकार धर्मेंद्र मलिक का कहना है कि पश्चिम में सबसे ज्यादा घाटे में गन्ना किसान रहने वाले हैं। एक तो मिलों में भी लेबर कम होने की वजह से पिराई कम हो रही है। वहीं, राजस्थान से आने वाले सल्फर और भट्टी चूना की कम आवक से मिल चलाने का भी संकट खड़ा हो गया है। सरकार ने भले ही मिलों को ईंधन की ढुलाई के लिए राहत दी है, लेकिन खदानों में मजदूर कम होने से दिक्कत हो रही है। हालात यही रहे तो चीनी मिलों को चलाना मुश्किल हो जाएगा। अभी जो स्थिति है, उसमें 25 से 30 फीसदी तक गन्ना खेत में ही खड़ा है।
गेहूं किसानों पर सबसे अधिक मार
पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में गेहूं और सरसों की कटाई शुरू हो चुकी है। सरकार ने भी एक अप्रैल से फसल उठाने का कार्यक्रम तय किया था, लेकिन अब कोरोना की मार की वजह से इसकी तारीख में संशोधन करना पड़ा है। हरियाणा सरकार ने अब 15 अप्रैल से सरसों और 20 अप्रैल से गेहूं खरीद करने की घोषणा की है। साथ ही कहा है कि अगर किसान अपने पास फसल रखता है, तो उसे 50 से 100 रुपये प्रति क्विंटल सब्सिडी दी जाएगी। बाकी राज्यों ने भी लॉकडाउन के बाद 15 अप्रैल से गेहूं और सरसों की खरीद का लक्ष्य रखा है।
देश भर में 341.32 लाख टन खरीद में अकेले पंजाब में पिछले साल केंद्रीय पूल के लिए 129.12 लाख टन की खरीद का लक्ष्य था, जबकि मध्यप���रदेश का योगदान केवल 67.25 लाख टन था। पंजाब में गेहूं किसानों का रजिस्ट्रेशन का भी प्रावधान नहीं है। यहां गेहूं की खरीद आढ़तियों के माध्यम से की जाती है। पंजाब में करीब 200 मंडियों में 3 से 4 लाख दिहाड़ी मजदूरों की जरूरत पड़ती है। ये मजदूर बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल से आते हैं। कोरोना की वजह से अधिकांश मजदूर पलायन कर चुके हैं, ऐसे में गेहूं खरीद, बोरी में भरवाना और ट्रक में लदवाने के साथ सरकारी गोदामों तक पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आने वाली है। बाड़दाना यानि गेहूं और सरसों के लिए टाट की बोरी की कमी भी किसान और सरकार को परेशानी में डालेगी।
यही हाल उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी होना तय है। इसमें किसानों को दोहरी मार पड़ेगी। एक, उसे खेत से फसल उठाकर मंडी तक लाने में पसीना बहाना पड़ेगा और उसके बाद बिचैलिये के हाथों एमएसपी से कम दाम पर फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। महाराष्ट्र में खेती-किसानी के जानकार और किसान संगठन से जुड़े विजय जवांधिया का कहना है कि गेहूं और गन्ना के अलावा कपास, सोयाबीन और मक्का के किसानों की हालत भी खराब है।
उन्होंने बताया कि 5,000 रुपये क्विंटल वाला सोयाबीन 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। इस��� तरह 1,800 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला मक्का 1,300 रुपये में बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। इसका कारण पाॅल्ट्री फार्म में इसकी खपत कम होने से इसके दाम नीचे आ गए हैं। यही हाल मसूर, चना और अन्य तिलहन फसलों का भी हो रहा है। इससे पहले खराब मौसम और ओलावृष्टि ने पहले से ही गेहूं और दहलन-तिलहन की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है।
इसका गणित इस बात से भी समझा जा सकता है कि इस बार सरसों का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) सरकार ने 4,425 रुपये निर्धारित किया है, लेकिन हकीकत यह है कि राजस्थान और अलवर की मंडियों में उसके दाम गिरकर 3,600 रुपये प्रति क्विंटल आ चुके हैं। यही हाल चने का भी हो रहा है। महाराष्ट्र और लातूर की मंडियों में चने के दाम गिरकर 3,650 रुपये प्रति कुंतल आ गए हैं, जबकि चने का एमएसपी 4,875 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित किया गया है।
शहरके किसान भी मुसीबत में
कोरोना की वजह से गांव ही नहीं शहर के किसान भी मुसीबत में हैं। दिल्ली और आसपास के महानगरों के बीच में आए गांव के किसान अधिकांश फूल-फल, साग-सब्जी उगाने के साथ डेयरी के कारोबार में लगे हैं। कृषि विशेषज्ञ युद्धवीर सिंह का कहना है कि सरकारों को इन शहरी मझोले किसानों और खेतिहर किसानों की ओर ध्यान देना होगा, क्योंकि सीमाएं सील होने से अपनी फसल को मंडियों तक पहुंचाने में किसान पापड़ बेल रहा है। पुलिस के रवैये से उसका काम धंधा चौपट हो गया है। फूल उगाने वाला किसान तो चौपट ही हो गया। सब्जियां खेत से उठ नहीं रहीं, फिर भी मंडियों में रेट बढ़ रहे हैं। तुरंत इन मुनाफाखोरों पर रोक लगाने की जरूरत है। वहीं, दूध के व्यवसाय में लगे किसानों को जानवरों के लिए चारे का प्रबंध करने में मदद करनी होगी, वरना वह भी घाटे में कब तक धंधा करेगा। शहरों में पशु चारा और जानवरों की खाद्य सामग्री के रेट बेतहाशा बढ़ गए हैं।
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नई दिल्ली। स्थानीय तेल तिलहन बाजार में सोमवार को मिला जुला रुख रहा। सटोरियों के दबाव से जहां सरसों और सोयाबीन में गत शनिवार की तुलना में गिरावट का रुख रहा, वहीं विदेशों के दबाव में पॉम तेल में भी नरमी रही। बाजार सूत्रों ने कहा कि विदेशों में पाम तेल का स्टॉक जमा है और इसके लिवाल नहीं हैं। इस स्थिति के चलते आयात भाव कुछ नीचे आये हैं लेकिन घरेलू बाजार में वायदा और हाजिर बाजार भाव इससे भी नीचे बोले जा रहे हैं। आयात का पड़ता नहीं है।
यह स्थिति तेल कारोबारियों के लिये कारोबार में फंसने जैसी बनी हुई है। उनका कहना है कि जो स्थिति बनी है उसमें तो भारत को खाद्य तेल का आयातक नहीं बल्कि निर्यातक होना चाहिये। सूत्रों के मुताबिक निर्यात मांग से मूंगफली तेल मिल डिलीवरी गुजरात 150 रुपये चढ़कर 11,750 रुपये क्विंटल पर बोला गया। जबकि वायदा कारोबार नीचे आने से सोयाबीन मिल डिलीवरी दिलली 10 रुपये और सोयाबीन इंदौर 40 रुपये घटकर क्रमश: 8,440 रुपये, 8,300 रुपये क्विंटल रह गये।
सरसों हाजिर बाजार में 25 रुपये घटकर 4,140- 4,175 रुपये क्विंटल रही। यह रबी मौसम के न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी नीचे का भाव है। वहीं सोयाबीन में भी नई आवक के दबाव और वायदा बाजार में भाव नीचे आने से 50 रुपये की गिरावट रही। सोयाबीन का डिलीवरी भाव 3850- 3900 रुपये और सोयाबीन खुले ��ें 50 रुपये घटकर 3,600- 3,650 रुपये ��्विंटल पर बोला गया। मक्का खल सरिस्का 3,400 रुपये पर टिकी रही।
कारोबारियों का कहना है कि क्रूड पॉम तेल का आयात मूल्य मार्च के पहले पखवाड़े के लिये कम किये जाने के बावजूद अभी भी आयातकों के लिहाज से करीब 100 डालर ऊंचा है। वहीं पामोलिन का भाव 135 डालर और सोयाबीन का करीब 45 डालर प्रति टन ऊंचा है। आयात शुल्क मूलय में इतनी कटौती से आयातकों का भावांतर कुछ कम होगा। इससे बैंकों के कर्ज फंसने की आशंका को भी कम किया जा सकेगा। पामोलिन कांडला 100 रुपये और आरबीडी पामोलिन दिल्ली का भाव 100 रुपये क्विंटल नीचे बोला गया। सोमवार को भाव इस प्रकार रहे- (भाव- रुपये प्रति क्विंटल)-
सरसों तिलहन – 4,140 – 4,175 रुपये।मूंगफली – 4,585 – 4,610 रुपये।वनस्पति घी- 965 – 1,225 रुपये प्रति टिन।मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात)- 11,750 रुपये।मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल 1,840 – 1,885 रुपये प्रति टिन।सरसों तेल दादरी- 8,340 रुपये प्रति क्विंटल।सरसों पक्की घानी- 1,345 – 1,495 रुपये प्रति टिन।सरसों कच्ची घानी- 1,370 – 1,515 रुपये प्रति टिन।
तिल मिल डिलिवरी तेल- 10,000 – 15,000 रुपये।सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 8,440 रुपये।सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 8,300 रुपये।सोयाबीन तेल डीगम- 7,450 रुपये।सीपीओ एक्स-कांडला- 6,400 रुपये।बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 7,350 रुपये।पामोलीन आरबीडी दिल्ली- 7,700 रुपये।पामोलीन कांडला- 7,000 रुपये (बिना जीएसटी के)।नारियल तेल- 2,560- 2,610 रुपये।सोयाबीन तिलहन डिलिवरी ��ाव 3,850- 3,900, लूज में 3,600–3,650 रुपये।मक्का खल- 3,400 रुपये।
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अन्नदाताओं को मिला दिवाली का बड़ा तोहफा, 2900 किसानों के खातों में हुआ 31 करोड़ रुपए भुगतान
जयपुर ।
राजफैड ने त्योहारी सीजन को देखते हुए किसानों के खातों में 31 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि का आॅनलाइन भुगतान कर दिया है। 2 हजार 956 किसानों के खातों में यह भुगतान किया गया है। राजफैड ने यह भुगतान किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी गई मूंग, उड़द, सोयाबीन और मूंगफली के एवज में किया है। यह भुगतान उन किसानों को किया गया है जिन्होंने फसल बेचान के दौरान मूल गिरदावरी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी। बाकी किसानों को भी जल्द ही भुगतान किया जाएगा।
READ : नोटबंदी के बाद अब इस चीज़ पर हुई सख्ती, व्यापारियों से लेकर आम जनता परेशान!
राजफैड की प्रबंध निदेशक डॉ वीणा प्रधान ने बताया कि 6 अक्टूबर तक 15 हजार 991 किसानों से 187 करोड़ रुपए की मूंग, 5 हजार 228 किसानों से 48 करोड़ की उड़द, 1 हजार 384 किसानों से 14.63 करोड़ रुपए की मूंगफली और 1 हजार 155 किसानों से 7.64 करोड़ रुपए की सोयाबीन की खरीद की गई है। उपज खरीद के लिए राज्य में 295 खरीद केन्द्र बनाए हैं।
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राजफैड ने त्योहारी सीजन को देखते हुए किसानों के खातों में 31 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि का आॅनलाइन भुगतान कर दिया है। 2 हजार 956 किसानों के खातों में यह भुगतान किया गया है। राजफैड ने यह भुगतान किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी गई मूंग, उड़द, सोयाबीन और मूंगफली के एवज में किया है। यह भुगतान उन किसानों को किया गया है जिन्होंने फसल बेचान के दौरान मूल गिरदावरी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी थी। बाकी किसानों को भी जल्द ही भुगतान किया जाएगा।
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मोदी सरकार पूंजीपतियों के फायदे के लिए किसानों को बर्बाद कर रही है देश का किसान आखिर सड़क पर क्यों उतर रहा है ? 4 साल 4 महीने बीतने के बाद आखिर में सरकार ने क���सानों को MSP का झुनझुना पकड़ा दिया है। जो यथार्थ के धरातल पर महज एक जुमला साबित हुआ है। अभी तक सिर्फ पूंजीपतियों के फायदे के लिए देश मे फसलों का पर्याप्त उत्पादन होने के बावजूद भी भारी-भरकम रकम खर्च करके विदेशो से खाद्य उत्पादों का आयात किया जा रहा था। आयात करने वाले बीजेपी को चंदा देने वाले मोटे सेठ लोग थे। मोदी जी अपने इन्ही वित्तपोषकों के चुनावी चंदे की क़िस्त चुकाने विदेश जाते हैं। याद कीजिये मोज़ाम्बिक से दाल, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से गेहूं, आलू, ब्राज़ील से राॅ शुगर, मेक्सिको और अफ्रीका से सरसों, सोयाबीन और यहां तक कि पाकिस्तान से प्याज़ और शक्कर का आयात किया गया था। इन्ही पूंजीपतियों के फायदे के लिए अनाजों, दालों पर इम्पोर्ट ड्यूटी हटाकर या कम कर आयात सस्ता किया गया। जबकि देश का किसान अपनी उपज घोषित सरकारी मूल्य से भी कम दामो में मंडी में बेचने को मजबूर किया गया। कोई आरटीआई एक्सपर्ट हो तो कृषि और वाणिज्य मंत्रालय से सूचना प्राप्त कर पुष्टि कर सकता है। देश मे इस साल 4.5 मिलियन टन दाल का उत्पादन हुआ है,जबकि कुल घरेलू मांग 3.2 मिलियन टन है। इसके बावजूद भारत सरकार के केंद्रीय वाणिज्य एवम उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशक ने इसी 11 जून को आदेश पारित किया है कि 31 अगस्त तक म्यांमार एवम अफ्रीकी देशों से 199891 मीट्रिक टन अरहर दाल,149964 मीट्रिक टन मूंगदाल,149982 मीट्रिक टन उड़द दाल मंगा लिए जाए। यह आदेश मोदी जी के वर्ष 2016 के म्यांमार एवम अफ्रीकी देशों की यात्रा के दौरान किये गए समझौतों के अनुपालन में दिए गए थे। पिछले साल बाजरे का समर्थन मूल्य 1405 रु घोषित किया था।1100- 1200 के बीच बिका।इस साल के लिए 1900 रु से ऊपर तय किया है तो मंडी में 1150 रु में बिक रहा है। इस साल दाल का समर्थन मूल्य 5050 रु प्रति कुंतल था जबकि किसान खुले बाजार में 4000 रु प्रति कुंतल बेचने पर मजबूर हुआ है। गेँहू का समर्थन मूल्य 1735 रु प्रति कुंतल था लेकिन किसान का गेँहू मंडी में 1450 - 1530 रु कुंतल में गया। अभी तक देश के गन्ना किसानों का 22 हजार करोड़ रु भुगतान नही हुआ औऱ दूसरी तरफ पाकिस्तान से चीनी मंगा ली गयी। लागत मूल्य में बाजीगरी कर अब न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना दाम देने की बात से किसानों को गुमराह किया गया। मंडी और व्यापारियों के चक्रव्यूह को भेदना इतना आसान होता तो किसान अपने फसली उत्पाद औऱ दूध सड़को पर न फेंक रहा होता। दूध के नाम पर याद आया ,तनिक सहकारी डेयरी में पशुपालकों द्वारा बेचे गए दूध के दाम तो ��ेक कीजिये। पिछले दो साल की तुलना में अब पौने रेट मिल रहे हैं,जबकि पशु आहार के दाम ड्योढ़े हो चुके हैं। पूंजीवादियों की पोषक इस सरकार ने पहले खाद ,यूरिया की 50 किलो की बोरी का वजन 5 किलो घटा कर 45 किलो कर दिया फिर दाम बढ़ा दिए। डीजल के बढ़े दामो का सीधा प्रभाव खेती की लागत पर पड़ता है। कीटनाशकों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। कभी शक्कर,चिप्स, कोल्डड्रिंक के दाम घटते सुने हैं ? नही न ,इसी से सरकारी नीतियों में किसानों पर व्यापारियों की महत्ता का अंदाजा लगा लीजिये। धन्नासेठ उद्योगपतियों को कर्जमाफी और अन्नदाता किसानों को गोली लाठी ? अब ये नही चलेगा। एक झूठे ने 2014 से पहले हर चुनावी रैली और पोस्टरों में झूठे वायदे कर जनता को ठग लिया था। अब नही ठग पायेगा। गाँव वाले बड़े परपंची होते हैं। टाइम भी खूब है। सरकार को जबाब तो मिलेगा ही।
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धान और कपास की फसलों पर अपनी निर्भरता को कैसे समाप्त कर सकता है तेलंगाना
धान और कपास की फसलों पर अपनी निर्भरता को कैसे समाप्त कर सकता है तेलंगाना
ए. अमरेंद्र रेड्डी, प्रमुख वैज्ञानिक (कृषि अर्थशास्त्र) आईसीएआर-सेंटर रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड एग्रीकल्चर हैदराबाद
अपनी हाल की यात्राओं में, मैंने देखा कि तेलंगाना की फसल पैटर्न केवल दो फसलों - धान और कपास की ओर अत्यधिक विषम हैं। दो फसलों पर इस अति निर्भरता से उत्पादन और मूल्य जोखिमों में वृद्धि होती है, कीटों और बीमारियों के प्रकोप के कारण पूरी तरह से तबाही होती है, और पर्यावरणीय खतरे होते हैं।
हालांकि राज्य सरकार फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली है। एक समग्र रणनीति न केवल जोखिमों को कम कर सकती है बल्कि किसानों को उच्च आय प्राप्त करने में भी मदद कर सकती है।
तेलंगाना में कुल बोया गया क्षेत्र लगभग 135.63 लाख एकड़ है और सकल फसल क्षेत्र 203 लाख एकड़ था। राज्य में शुद्ध सिंचित क्षेत्र लगभग 55 लाख एकड़ है जिसमें 78.1 लाख एकड़ सकल सिंचित क्षेत्र है। राज्य के 59.48 लाख किसानों में से 65% के पास 1 हेक्टेयर (1 हेक्टेयर = 2.47 एकड़) से कम की छोटी जोत है।
कपास (बोए गए क्षेत्र का 45%) और धान (39%) हैं, जिसमें लाल चना, मक्का और सोयाबीन की खेती के तहत एक छोटा हिस्सा है। बरसात के बाद के मौसम के दौरान, अधिकांश खेती वाले क्षेत्र में धान (77%), कुछ क्षेत्रों में मक्का (7%), बंगाल चना (5%) और मूंगफली (4%) की खेती होती है।
तेलंगाना धान का सबसे बड़ा उत्पादक और भारत में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। फसल उत्पादन राज्य के कृषि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 43% हिस्सा है, शेष का योगदान पशुधन, डेयरी और कुक्कुट आदि द्वारा किया जाता है।
राज्य में धान और कपास की एक फसल की वजह से खरीद में समस्या आ रही है, साथ ही कीमत और उपज के जोखिम का अत्यधिक जोखिम और कीटों और बीमारियों के अचानक संभावित प्रकोप भी हो रहे हैं। यह पिछले साल हुआ था, जब तेलंगाना के कुछ हिस्सों में मिर्च की फसल खराब हो गई थी। फसल के पूर्ण नुकसान के साथ, किसानों को प्रति एकड़ 1.3-1.5 लाख रुपये का नुकसान हुआ।
यद्यपि धान की उपज 22-25 क्विंटल प्रति एकड़ के साथ काफी अच्छी है, राज्य में कपास की पैदावार 2.8 क्विंटल प्रति एकड़ कम है, लेकिन कपास को कुछ वर्षों में उच्च बाजार कीमतों से फायदा हुआ है। बरसात के मौसम में सोयाबीन, मक्का और लाल चने जैसी फसल वैकल्पिक फसल के रूप में उभर रही है, जबकि रबी सीजन में मक्का, बंगाल चना और मूंगफली वैकल्पिक फसलें हैं।
एक जिला-एक उत्पाद दृष्टिकोण के तहत, फसल कॉलोनियों को बढ़ावा दिया जाता है ताकि किसानों को उच्च मूल्य वाली फसलों पर स्विच करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और प्रत्येक जिले में एक विशेष वस्तु के आसपास आवश्यक बुनियादी वस्तु-विशिष्ट बुनियादी ढांचे, जैसे प्रसंस्करण इकाइयों और कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे की पहचान की जा सके। . कृषि विभाग भी प्रदर्शनों, कृषि मशीनीकरण और मूल्यवर्धन, और अन्य साइट-विशिष्ट गतिविधियों के माध्यम से वैकल्पिक फसलों का प्रचार कर रहा है।
तेलंगाना में ताड़ के तेल, बागवानी, बांस और कृषि-वानिकी के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए फसल विविधीकरण के उद्देश्य से कई योजनाएं चल रही हैं। ताड़ के तेल जैसी वैकल्पिक फसलों की खेती के लिए नकद और तरह के प्रोत्साहन भी मौजूद हैं, लेकिन बहुत कम सफलता मिली है।
24 घंटे मुफ्त बिजली जैसी नीतियों के चलते राज्य के कई हिस्सों में बोरवेल के नीचे भी दो सीजन में धान की खेती हो रही है. यह लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है और सरकार और किसानों दोनों के लिए बहुत महंगा साबित होगा।
धान एक पानी की खपत वाली फसल है, जिसमें दलहन और तिलहन (लगभग 900 लीटर प्रति किलो अनाज) की तुलना में लगभग तीन से पांच गुना (3,000 से 5,000 लीटर प्रति किलो अनाज) अधिक पानी की खपत होती है। फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए लंबे समय तक चलने वाली स्थिर नीतियां समय की मांग हैं। दलहन, तिलहन और अन्य वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देने के लिए पिछली नीतियां धान से बदलाव को ट्रिगर करने के लिए पर्याप्त स्थिर नहीं हैं।
हालांकि वैकल्पिक फसलें कुछ वर्षों में अधिक मूल्य प्राप्त करती हैं, वे पैदावार और कीमतों दोनों के मामले में जोखिम भरी होती हैं। इसके अलावा, इन वैकल्पिक फसलों के उच्च बाजार मूल्य कम पैदावार की भरपाई करने में सक्षम नहीं थे। इसलिए, राज्य में वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देने के लिए, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से किसी प्रकार की मूल्य गारंटी को लागू करना होगा, इसके अलावा, सरकार को उपज बढ़ाने वाले को अपनाने को बढ़ावा देने के प्रयास करने चाहिए।
एमएसपी पर गारंटीकृत खरीद के बिना, दलहन और तिलहन की कीमतें 'कोबवेब चक्र' का पालन करती हैं, जिसमें किसान फसल की अवधि के दौरान पूर्वानुमानित कीमतों के आधार पर नहीं, बल्कि पिछले वर्ष की कीमतों के आधार पर उत्पादन निर्णय लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव होता है।
इस परिदृश्य में, वैकल्पिक भरमार और कमी हो सकती है। इससे बचने के लिए, बुवाई से पहले आगामी फसल अवधि के लिए सटीक मूल्य पूर्वानुमान का प्रसार महत्वपूर्ण है, इसलिए किसान पिछले वर्ष की कीमत के बजाय पूर्वानुमानित कीमतों के आधार पर रकबा निर्णय ले सकते हैं। ऐसा करने का एक तरीका एमएसपी की घोषणा करना है जो पर्याप्त खरीद द्वारा समर्थित होगा ताकि किसान आगामी फसल अवधि के लिए मूल्य संकेत के रूप में एमएसपी पर भरोसा करें और कोबवे चक्र में गिरने के बजाय उसके अनुसार अपने रकबे की योजना बनाएं।
स्थिर मूल्य नीति के अलावा, सरकार को वैकल्पिक फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास और प्रसार पर ध्यान देना होगा। भूजल सिंचाई धान के विविधीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह नियंत्रित पानी छोड़ने की सुविधा प्रदान करती है, जो सब्जियों, फलों, मिर्च और कपास जैसी फसलों को उगाने के लिए एक पूर्वापेक्षा है। इस कारण से भूजल पर अधि�� निर्भर जिलों (जैसे बोरवेल सिंचाई) को फसल विविधीकरण योजनाओं में उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
एक अन्य प्राथमिकता हस्तक्षेप फसल की जरूरतों के अनुसार पानी की नियंत्रित रिहाई की सुविधा के लिए नहर सिंचाई प्रणाली का प्रबंधन करना है। पानी की यह नियंत्रित रिहाई किसानों को उनकी लाभप्रदता के आधार पर फसलों का चयन करने की अनुमति देगी।
यह ध्यान देने योग्य है कि तेलंगाना में आदिलाबाद और तटीय आंध्र प्रदेश जैसे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में, पूरक सिंचाई प्रदान करने के लिए जल संचयन संरचनाओं (जैसे गाँव के तालाबों या खेत के तालाबों) को बढ़ावा देकर न केवल फसल विविधता को बढ़ाने के लिए बल्कि फसल की तीव्रता को भी बढ़ाने की अधिक गुंजाइश है। जिससे धान की कटाई के बाद सब्जियों, दालों और तिलहन की खेती का दायरा बढ़ेगा।
नियंत्रित सिंचाई के अलावा, नीति आयोग के अध्ययनों ने संकेत दिया है कि बेहतर बाजार बुनियादी ढांचे, जैसे ग्रामीण सड़कों, गांव भंडारण बुनियादी ढांचे और अच्छी तरह से जुड़े बाजारों ने बागवानी फसलों (फल और सब्जियां) जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर फसल विविधीकरण में मदद की है। है, जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है।
कुल मिलाकर, फसल विविधीकरण योजना को सफल बनाने के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए (i) वैकल्पिक फसलों के लिए एमएसपी का कार्यान्वयन; (ii) वैकल्पिक फसलों के लिए उपज बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रसार; (iii) नियंत्रित सिंचाई के तहत क्षेत्र का विस्तार; और (iv) ग्रामीण बुनियादी ढांचे, सड़कों और बाजारों सहित।
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ऊंचे भाव पर मांग कमजोर पड़ने से सरसों में नरमी, पामोलिन, सोयाबीन के दाम चढ़े Divya Sandesh
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ऊंचे भाव पर मांग कमजोर पड़ने से सरसों में नरमी, पामोलिन, सोयाबीन के दाम चढ़े
नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) खाद्य तेल बाजार में बीते सप्ताह सतत मजबूती का रुख जारी रहा। गत तीन अप्रैल को समाप्त सप्ताह के दौरान सरसों तेल को छोड़कर अन्य सभी तिलहन और तेलों में जोरदार तेजी का रुख रहा। विदेशों में भाव ऊंचे बने रहने से सोयाबीन डीगम और पाम तेल में मजबूती बरकरार है। वहीं ऊंचे भाव पर उठाव कुछ कमजोर पड़ने से सरसों तेल सप्ताह के दौरान कुछ नरम पड़ गया, हालांकि ��रसों तिलहन में मजबूती का रुख बना हुआ है। बाजार सूत्रों द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक पिछले सप्ताह में मंडियों में सरसों की आवक कुछ कमजोर पड़ी है। पहले जहां 10 से 11 लाख बोरी सरसों की आवक हो रही थी वहीं अब किसानों ने माल लाना कम कर दिया है और सप्ताहांत आते-आते यह आवक कम होकर आठ से नौ लाख बोरी रह गई। यही वजह है कि सरसों का भाव सप्ताह के दौरान 115 रुपये बढ़कर 5,985 से लेकर 6,025 रुपये क्विंटल के दायरे में पहुंच गया। सप्ताह भर पहले 27 मार्च को यह 5,860- 5,910 रुपये क्विंटल पर चल रही था। वहीं इस दौरान तेल सरसों मिल डिलिवरी ऊंचे पर मांग कमजोर पड़ने से 150 रुपये गिरकर 12,400 रुपये क्विंटल रह गया। सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी टिनों के भाव में भी 105 से 110 रुपये तक निकल गये। हालांकि बाजार में अंतरधारणा मजबूती की बनी हुई है। विदेशों में भाव ऊंचे बने रहने से सोयाबीन और पामोलिन तेल में लगातार तेजी का रुख बना हुआ है। सोयाबीन की तेल रहित खल की निर्यात मांग जारी रहने से भी सोयाबीन में तेजी जारी है। सोयाबीन तिलहन मिल डिलिवरी का भाव 300 रुपये तक उछल गया और सप्ताहांत 6,300 से 6,350 रुपये क्विंटल के दायरे में बोला गया। वहीं लूज का भाव भी इतना ही बढ़कर 6,250- 6,300 रुपये क्विंटल पर रहा। सरिस्का मक्का खल का भाव भी मजबूती में रहते हुये 3,610 रुपये क्विंटल हो गया। यही स्थिति सोयाबीन तेल में भी है। सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली सप्ताह के दौरान 130 रुपये बढ़कर 13,950 रुपये क्विंटल पर पहुंच गया, सोयाबीन तेल इंदौर 150 रुपये बढ़कर 13,750 रुपये क्विंटल हो गया। कांडला पोर्ट पर यह 300 रुपये बढ़कर 12,720 रुपये क्विंटल तक बोला गया। यही हाल पाम तेल का है। कच्चा पाम तेल एक्स कांडला सप्ताह के दौरान 170 रुपये बढ़कर 11,580 रुपये और आरबीडी पामोलिन, दिल्ली 40 रुपये बढ़कर 13,200 रुपये क्विंटल हो गया। बिनौला तेल में भी मांग का जोर है। बिनौला मिल डिलिवरी हरियाणा 200 रुपये बढ़कर 13,100 रुपये हो गया। वहीं मूंगफली तेल सप्ताह के दौरान 250 रुपये बढ़कर 15,500 रुपये क्विंटल पर पहुंच गया। हालांकि, मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल 2,470- 2,530 रुपये प्रति टिन पर टिका रहा। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत तिलहन और खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल कर लेता है तो वह फिर एक बार सोने की चिड़िया बन सकता है। किसानों को सरसों, सूरजमुखी, सोयाबीन, मूंगफली तिलहनों के भाव यदि अच्छे मिलें तो वह उनका उत्पादन बढ़ाने को प्रोत्साहित होंगे। इस समय सरसों और सोयाबीन के मामले में स्थिति काफी अनुकूल बनी हुई है। इनके भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊंचे बने हुये हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक दरअसल विदेशों से पाम तेल और सोयाबीन डीगम का सस्ता आयात अक्सर घरेलू तेल तिलहन बाजार पर हावी हो जाता है। इन दिनों विदेशों में भी भाव ऊंचे हैं इसलिये घरेलू बाजार में भी तेजी का रुख बना हुआ है लेकिन यदि विदेशों में बाजार टूटा तब घरेलू बाजार को किस प्रकार संतुलित स्तर पर रखा जा सकता है इसको लेकर नीति-निर्माताओं को सोच विचार करना चाहिये। जानकारों के मुताबिक यदि देश में सोयाबीन, मूंगफली, सरसों तेल तिलहन के उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता हे तो न केवल विदेशों से हर साल होने वाला सवा लाख ��रोड़ रुपये से अधिक का खाद्य तेलों के आयात पर अंकुश लगेगा बल्कि सोयाबीन खली, मूंगफली का निर्यात भी बढ़ेगा और करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा भी कमाई जा सकेगी। इसके साथ ही उद्योग में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। सरकार यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है, तो तिलहन उत्पादक किसा��� बाजार में यह भाव मिलने की भी इच्छा रखते हैं।
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एग्री कमोडिटीज पर दबाव, क्या हो रणनीति
एग्री कमोडिटीज पर दबाव, क्या हो रणनीति
सबसे पहले फोकस करते हैं एग्री कमोडिटीज पर। सरकार खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 1.5 गुना कर सकती है इस पर बुधवार को फैसला हो सकता है। इसके साथ ही गन्ना किसानों को भी राहत देने की तैयारी है, मॉनसून भी रफ्तार पकड़ रहा है। मॉनसून के रफ्तार पकड़ने ने से आज भी एग्री कमोडिटीज पर दबाव देखने को मिल रहा है। हल्दी, कॉटन, ग्वार, सोयाबीन में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिल रही है।
गन्ना किसानों को…
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यशवंत सिन्हा ने किसान आंदोलन वापस लिया has been published on PRAGATI TIMES
यशवंत सिन्हा ने किसान आंदोलन वापस लिया
अकोला (महाराष्ट्र),(आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसानों की सात प्रमुख मांगें मान लिए जाने के बाद बुधवार को तीन दिन चला किसान आंदोलन स्थगित करने की घोषणा की।
सिन्हा ने बुधवार देर शाम पत्रकारों से कहा, “मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने आज हमसे बातचीत की। हमारी बातचीत लाभकारी रही। उन्होंने हमें भरोसा दिलाया है कि किसानों की सारी मांगें मान की जाएंगी। तदनुसार आंदोलन वापस ले लिया गया है।” 80 वर्षीय पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री ने हालांकि स्पष्ट किया कि इसे किसी की ‘विजय या पराजय’ के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह महाराष्ट्र और बाकी देश के संपूर्ण किसान समुदाय के हित में है। शेतकरी जागरण मोर्चा की मांगों में पिंक बॉलवर्म के हमले से किसानों को हुई क्षति की भरपाई, नकली बायोटेक बीज निर्माता व विक्रेता कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई, मूंग, उड़द पव सोयाबीन की फसलों में हुए नुकसान के लिए किसानों को पूरा मुआवजा, कृषि पंपों के लिए बिजली आपूर्ति बंद नहीं करने, किसानों के लिए प्रदेश सरकार की ��र सोने को बंधक रखने की स्कीम में छूट की अनुचित शर्तो को हटाने, नैफेड की ओर से घोषित सभी कृषि फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद और 15 जनवरी तक योग्य किसानों के कर्ज की माफी शामिल हैं। किसानों के तीन दिन के आंदोलन को सत्ताधारी भाजपा को छोड़कर प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त था। बुजुर्ग नेता सिन्हा इससे पहले नोटबंदी और जीएसटी पर सवाल उठा चुके हैं।
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दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह कारोबार का मिलाजुला रुख Divya Sandesh
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दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बीते सप्ताह कारोबार का मिलाजुला रुख
नयी दिल्ली, 21 मार्च (भाषा) विदेशी बाजारों में तेजी के रुख और देश में त्योहारी मांग बढ़ने के बीच पिछले सप्ताह खाद्य तेलों के आयात शुल्क मूल्य को बाजार से कम भाव पर निर्धारित किये जाने की वजह से तेल-तिलहन बाजार में कारोबार का मिलाजुला रुख दिखाई दिया। सरसों, सोयाबीन तेल तथा सीपीओ एवं पामोलीन के भाव जहां हानि के रुख के साथ बंद हुए, वहीं बीते सप्ताह मूंगफली दाना सोयाबीन दाना और बिनौला मिल डिलीवरी तेल (हरियाणा) के भाव लाभ दर्शाते बंद हुए। बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि सीपीओ का बाजार भाव 1,170 डॉलर प्रति टन था लेकिन आयात शुल्क मूल्य 1,071 डॉलर प्रति टन निर्धारित किया गया। इससे सरकार को 250 रुपये प्रति क्विन्टल के राजस्व का नुकसान हो रहा है। इसी प्रकार सोयाबीन के 1,285 डॉलर प्रति टन के बाजार भाव के मुकाबले आयात शुल्क मूल्य 1,210 डॉलर प्रति टन रखा गया है। इसमें भी लगभग 200 रुपये प्रति क्विन्टल के सरकारी राजस्व का नुकसान होता है, साथ ही स्थानीय किसानों पर दबाव बनता है। सूत्रों ने कहा कि आयात शुल्क मूल्य बाजार भाव से तीन-चार प्रतिशत कम भाव पर निर्धारित किये जाने की वजह से तेल आयातक परेशान हैं। उन्होंने कहा कि आयात शुल्क मूल्य बाजार भाव से कम कीमत पर निर्धारित किये जाने से उपभोक्ताओं को कोई लाभ नहीं पहुंचता बल्कि उन्हें तेल महंगे दाम पर ही मिलता है। कारोबारियों ने बताया कि इस समय नयी सरसों की पूरे राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत सभी मंडियों में रोज आठ—दस बोरी की आवक हो रही है। अगले माह सूरजमुखी की बिजाई शुरू होने जा रही है। तेल उद्योग का मानना है कि इस समय सरसों और सोयाबीन के दाम अच्छे मिल रहे हैं। इसे यदि सुनिश्चित किया जा सके, तो किसान धन और गेहूं की जगह तिलहनों की खेती को प्रेरित होंगे और उत्पादन दोगुना हो सकता है। इससे तेल आयात पर निर्भरता भी कम हो सकती है और सवा से डेढ़ लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा का फायदा होगा। उन्होंने कहा कि सोयाबीन के तेल रहित खल (डीओसी) की देश के साथ-साथ विदेशों से निर्यात की भारी मांग है। इसकी वजह से सोयाबीन दाना और लूज की कीमतों में सुधार देखने को मिला है। सोयाबीन डीओसी का भारत का निर्यात फरवरी, 2020 में 1.28 लाख टन था, जो फरवरी, 2021 में 3.93 लाख टन रहा। मंडियों में सोयाबीन तिलहन की आवक कम है और सोयाबीन की बड़ियां बनाने वाली कंपनियों को सोयाबीन के बेहतर दानों को लगभग 6,800 रुपये क्विन्टल के भाव खरीद करनी पड़ रही है। सोयाबीन की आगामी फसल के लिए सरकार को इसके बेहतर दानों का अभी से इंतजाम रखना होगा और मौजूदा बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को देखते हुए इसका अगला उत्पादन काफी बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि गुजरात में मूंगफली के साथ बिनौला तेल की मांग रहती है। बिनौला तेल की पेराई अब बंद होने के कगार पर है। बिनौला तेल की कमी को देखते हुए मूंगफली की मांग बढ़ी है। इस स्थिति में मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में सुधार आया है। बिनौला तेल की मांग बढ़ने से बिनौला तेल कीमतों में भी सुधार देखने को मिला। इसके साथ विदेशों ��ें बिनौला खल की मांग बढ़ने से कीमतों में 250 रुपये क्विन्टल की तेजी आई। मक्का खल के भाव में तेजी है। यह गुणवत्ता वाली खल मानी जाती है। सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन दाना और लूज के भाव पिछले सप्ताहांत के मुकाबले क्रमश: 135 रुपये और 125 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 5,690-5,720 रुपये और 5,525-5,575 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। दूसरी ओर सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सीयाबीन डीगम तेल का भाव क्रमश: 350 रुपये, 350 रुपये और 210 रुपये की हानि दर्शाते क्रमश: 13,650 रुपये, 13,300 रुपये और 12,440 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुआ। बाजार में त्योहारी मांग होने और बाकी तेलों के मुकाबले सस्ता होने के साथ साथ मिलावट से मुक्त होने के बावजूद आयात किये जाने वाले दो प्रमुख तेल सीपीओ और सोयाबीन डीगम के आयात शुल्क मूल्य बाजार से कम भाव पर निर्धारित किये जाने का असर सरसों पर दिखा। गत सप्ताहांत सरसों दाना 70 रुपये की हानि दर्शाता 5,900-5,950 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल 500 रुपये की गिरावट के साथ 12,700 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। सरसों पक्की घानी और कच्ची धानी तेल की कीमत 35-35 रुपये की हानि के साथ क्रमश: 2,040-2,130 रुपये और 2,170 -2,285 रुपये प्रति टिन पर बंद हुई। दूसरी ओर निर्यात गतिविधियों में आई तेजी और स्थानीय त्योहारी मांग के कारण मूंगफली दाना सप्ताहांत में 30 रुपये के सुधार के साथ 6,245-6,310 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। मूंगफली गुजरात तेल 150 रुपये लाभ के साथ 15,300 रुपये क्विन्टल और मूंगफली सॉल्वेंट रिफाइंड की कीमत भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 25 रुपये सुधरकर 2,465-2,525 रुपये प्रति टिन बंद हुई आयात शुल्क मूल्य बाजार भाव के हिसाब से नहीं निर्धारित किये जाने की वजह से समीक्षाधीन सप्ताहांत में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 150 रुपये घटकर 11,350 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। जबकि पामोलीन दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल के भाव क्रमश: 250 – 250 रुपये घटकर क्रमश: 13,150 रुपये और 12,150 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। समीक्षाधीन सप्ताहांत में बिनौला तेल का भाव 130 रुपये का सुधार दर्शाता 12,680 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ वहीं मक्का खल की मांग बढ़ने से इसका भाव 35 रुपये सुधरकर 3,600 रुपये क्विन्टल हो गया।
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शादी-ब्याज, त्योहारी सीजन की मांग से सभी तेल-तिलहनों की कीमतो में सुधार Divya Sandesh
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शादी-ब्याज, त्योहारी सीजन की मांग से सभी तेल-तिलहनों की कीमतो में सुधार
नयी दिल्ली, 14 मार्च (भाषा) शादी-विवाह के सीजन और त्योहारी मांग बढ़ने के साथ-साथ खाद्य तेलों का स्टॉक खाली होने से बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में विभिन्न खाद्य तेल-तिलहन कीमतों में सुधार का रुख रहा और कीमतों में पर्याप्त सुधार आया। बाजार के जानकार सूत्रों ने बताया कि सोयाबीन उत्पादक देश अर्जेन्टीना में गर्मी की वजह से लगभग 2,000 हेक्टेयर में लगी फसल झुलस गई, जबकि दूसरे उत्पादक देश ब्राजील में अधिक बरसात की वजह से सोयाबीन उत्पादन में पर्याप्त गिरावट आ सकती है। उन्होंने कहा कि विदेशी आयातित तेलों के महंगा होने की वजह से सरसों और देशी तेलों की मांग बढ़ी है और हालत यह है कि राजस्थान में लगभग 30 साल से बंद पड़ी सरसों मिलों को दोबारा काम मिलना शुरू हो गया है। बाजार सूत्रों का मानना है कि खाद्य तेल कीमतों की वैश्विक तेजी से जहां तेल-तिलहनों की घरेलू कीमतों में भी सुधार हुआ है, वहीं इसकी वजह से देश में आगे तिलहन उत्पादन के बढ़ने की भी संभावना है। मौजूदा साल में सरसों और सोयाबीन के लिए जिस तरह किसानों को बढ़ा हुआ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिला, वह आगे जारी रहा तो किसान गेहूं और धान की जगह तिलहनों की बुवाई का रकबा बढ़ा सकते हैं। इससे न केवल खाद्य तेलों के आयात पर करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा बचेगी, बल्कि अधिशेष उत्पादन के निर्यात होने से हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी। सूत्रों ने कहा कि मौजूदा स्थिति देश को तिलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने के लिहाज से बहुत उपयुक्त है। सरकार को बस इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह किसानों को दिया जाने वाला समर्थन आगे जारी रखे और बाजार टूटने की स्थिति में आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को बढ़ा दे। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में सरकार को सूरजमुखी की बिजाई और इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिहाज से दिय��� जाने वाले प्रोत्साहनों को बढ़ाना चाहिये ताकि इसका उत्पादन लगभग दोगुना किया जा सके और पहले की ही तरह इसका बिल्कुल भी आयात न करना पड़े। सूत्रों ने कहा कि मांग बढ़ने से जहां सरसों तेल-तिलहनों में सुधार आया वहीं स्थानीय के साथ-साथ निर्यात मांग के कारण मूंगफली तेल-तिलहनों की कीमतें भी लाभ में रहीं। सूत्रों ने कहा कि मौजूदा आयात शुल्क मूल्य के हिसाब से सोयाबीन डीगम की कीमत देश में 136 रुपये किलो बैठती है जबकि सरसों का दाम 132 रुपये किलो बैठता है। इसलिए सरसों में मिलावट की संभावना भी कम रह जाती है, जो उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिहाज से एक बेहतर खबर है। उन्होंने कहा कि कुछ तेल कारोबारियों ने 90,000 टन खाद्य तेल आपूर्ति के फर्जी सौदे किये थे जिसकी मार्च-अप्रैल में आपूर्ति होनी थी लेकिन तेल रिफाइनिंग करने वाली कंपनियों को इनकी डिलिवरी नहीं हो पा रही है। इसमें से 60,000 टन सोयाबीन डीगम तेल भी था। इसके अलावा 20,000 टन सरसों के सौदे थे और 10,000 टन पामोलीन के सौदे थे। पामोलीन की वैश्विक मांग बढ़ने के बीच मौजूदा स्थितियों में सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में भी सुधार आया। मलेशिया और शिकॉगो एक्सचेंज में भी बीते सप्ताह ज्यादातर तेजी का रुख बना रहा। उन्होंने कहा कि बीते सप्ताह घरेलू के साथ विदेशों में सोयाबीन के तेल रहित खल (डीओसी) की भारी मांग होने से सोयाबीन तेल-तिलहनों के भाव में भी पर्याप्त सुधार दर्ज हुआ। वित्त वर्ष 2019-20 के अक्टूबर से फरवरी माह के दौरान 3.45 लाख टन डीओसी का निर्यात हुआ था, जो 2020-21 की समान अवधि में लगभग चार गुना होकर 14 लाख 35 हजार टन हो गया है।उन्होंने कहा कि पूरे वैश्विक स्तर पर सोयाबीन की मांग बढ़ी है। विशेषकर देश में सोयाबीन की बड़ियां बनाने वाली कंपनियों को सोयाबीन के बेहतर दाने 6,600 रुपये क्विन्टल के रिकॉर्ड भाव पर खरीदना पड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीते सप्ताह सोयाबीन का भाव अपने पिछले सप्ताहांत के 1,250 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1,325 डॉलर हो गया जबकि सीपीओ का भाव पहले के 1,120 डॉलर से बढ़कर 1,170 डॉलर प्रति टन हो गया। वहीं सूरजमुखी तेल का भाव देश में 205 रुपये किलो की रिकॉर्ड ऊंचाई पर जा पहुंचा है। गर्मी के मौसम शुरू होने के साथ वैश्विक स्तर पर पामोलीन की मांग काफी बढ़ी है। इसके अलावा देश में शादी-विवाह के सीजन और त्योहारी मांग के कारण सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में पर्याप्त सुधार आया। सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन दाना और लूज के भाव पिछले सप्ताहांत के मुकाबले क्रमश: 155 रुपये और 170 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 5,535-5,585 रुपये और 5,400-5,450 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सीयाबीन डीगम तेल का भाव क्रमश: 900 रुपये, 950 रुपये और 650 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 14,000 रुपये, 13,650 रुपये और 12,650 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुआ। बाजार में मांग बढ़ने से सरसों के भाव में सुधार रहा और गत सप्ताहांत सरसों दाना 70 रुपये का सुधार दर्शाता 5,970-6,020 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल 900 रुपये सुधार के साथ 13,200 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। सरसों पक्की घानी तेल की कीमत 65-65 रुपये लाभ के साथ क्रमश: 2,075-2,165 रुपये और 2,205 -2,320 रुपये प्रति टिन पर बंद हुई। दूसरी ओर निर्यात गतिविधियों में आई तेजी के बीच मूंगफली दाना सप्ताहांत में 195 रुपये सुधार के साथ 6,215-6,280 रुपये क्विन्टल और मूंगफली गुजरात तेल 300 रुपये के सुधार के साथ 15,150 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ। मूंगफली सॉल्वेंट रिफाइंड की कीमत भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में 60 रुपये सुधरकर 2,440-2,500 रुपये प्रति टिन बंद हुई। समीक्षाधीन सप्ताहांत में कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 500 रुपये सुधरकर 11,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। जबकि पामोलीन दिल्ली और पामोलीन कांडला तेल के भाव क्रमश: 900 रुपये और 700 रुपये सुधरकर क्रमश: 13,400 रुपये और 12,400 रुपये प्रति क्विन्टल पर बंद हुए। बीते सप्ताह तिल मिल डिलिवरी 500 रुपये सुधरकर 14,000-17,000 रुपये, बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा) 550 रुपये सुधरकर 12,550 रुपये और मक्का खल 35 रुपये सुधरकर 3,565 रुपये क्विन्टल पर बंद हुआ।
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