#सिख धर्म के पहले शहीद
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directsellingnow · 5 months ago
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Guru Arjan Dev Shaheedi Diwas 2024: क्यों कहलाए शहीदों के सरताज?
Guru Arjan Dev Shaheedi Diwas 2024: ‘तेरा कीया मीठा लागै॥ हरि नामु पदार्थ नानक मांगै॥’ – श्री गुरु अर्जुन देव जी!! यानि परमात्मा आपका हर आदेश मुझे मीठे के समान स्वीकार है। यह श्री गुरु अर्जुन देव जी का संगत को एक बड़ा संदेश है कि इंसान को हमेशा परमेश्वर की रजा में राजी रहना चाहिए। 1606 में जब जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन देव जी को आग के समान तप रही तवी पर बिठा दिया गया था, तब भी वो इन शब्दों को…
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singersanjaysinghalbela · 5 years ago
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सिख धर्म के पहले शहीद और पांचवें सिख गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत को मेरा सादर नमन। शांति के पुंज, मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के सच्चे रक्षक, तथा अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। #SingerSanjaySinghAlbela #SanjayAlbelaJagranParty http://bit.ly/2EHZ12u
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ashokgehlotofficial · 3 years ago
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Spoke to media in Delhi (13 March):
सवाल- 5 राज्यों के नतीजे आए हैं और आज सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलाई गई है, कांग्रेस को काफी बड़ी शिकस्त मिली है, पंजाब में जिस तरह से आम आदमी पार्टी का आना हुआ है, कैसे देखते हैं?
जवाब- देखिए राजनीति में कई तरह की परिस्थिति बन जाती हैं, उससे घबराना नहीं चाहिए और बहुत ही हम लोगों ने लंबे समय से देखा है, उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, यही भारतीय जनता पार्टी जो आज सत्ता में हैं, इनको 542 में से सिर्फ 2 सीटें मिली थीं पार्लियामेंट में, सिर्फ 2 सीटें, वो भी दिन हमने द��खा है। इसलिए चुनाव में हार-जीत होती रहती है, हम उनसे घबराते नहीं हैं और कांग्रेस का इतना लंबा अनुभव है देश के लिए, आजादी के पहले का भी, बाद का भी, कांग्रेस का कैडर घबराने वाला नहीं है, अभी दमखम है कार्यकर्ताओं में भी, वो स्थितियां समझता है। ये कोई जीत है क्या? आप अगर धर्म के नाम पर राजनीति करो, ध्रुवीकरण कर दो, उसके बाद में क्या बचता है? देश के अंदर आप हिंदुत्व, ध्रुवीकरण, ये करके कुछ भी कर सकते हो, महानता उसके अंदर है कि आप धर्मनिरपेक्षता की बात करो, सबको साथ लेकर चलने की बात करो, सभी धर्म, ये ��ंदेश है हमारे देश का, हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई-पारसी-जैन, जातियां हैं हमारे यहां पर, हम लोग इन सबको साथ लेकर चलेंगे देश के अंदर, तभी तो देश एक रहेगा, अखंड रहेगा और अगर हम लोग जातिवाद फैलाएंगे, धर्म के नाम पर राजनीति करेंगे और ध्रुवीकरण कर देंगे राजनीति का, क्या बचता है? ये सीना फुला-फुलाकर जो बातें करते हैं न नेता लोग बीजेपी के, इनमें क्या नैतिक बल है इनमें? जो लोग ध्रुवीकरण करके राजनीति कर रहे हैं देश को बर्बाद कर रहे हैं, उनकी हम चिंता करेंगे क्या? अल्टीमेटली जीत सत्य की होगी और सत्य कांग्रेस के साथ में है। जहां इंदिरा जी ने जान दे दी अपनी, पर खालिस्तान नहीं बनने दिया, राजीव गांधी ने जान दे दी अपनी, शहीद हो गए देश के लिए, सरदार बेअंत सिंह जी थे, वो शहीद हो गए, परंतु नेस्तेनाबूत कर दिया आतंकवाद को। ये नई पीढ़ी को गुमराह कर रहे हैं जिस रूप में, नई पीढ़ी को चाहिए कि वो ध्यान रखे इन बातों का क्योंकि कल का भविष्य देश का नई पीढ़ी के कंधों पर है, मुझे चिंता उसकी है क्योंकि मीडिया पूरा इनके दबाव के अंदर है, मीडिया इनका साथ दे रहा है, इसलिए आज नई पीढ़ी ग़ुमराह हो रही है, उसकी चिंता हम लोगों को है। बाकी सत्ता में तो, आती है सत्ता, सरकारें बनती हैं, नहीं बनती हैं, चलता रहता है, उसमें राहुल गांधी जी ने कभी परवाह नहीं की। आप देखते हो कि जिस रूप में उनकी सोच है, आज अकेला व्यक्ति दमखम के साथ में नरेंद्र मोदी जी का मुकाबला कर रहा है और नरेंद्र मोदी जी को भी राहुल गांधी जी को टार्गेट करके ही अपनी स्पीच शुरू करनी पड़ती है और उसका अंत करना पड़ता है। आप समझ सकते हो कि इसका क्या मतलब है, अगर देश का प्रधानमंत्री भी राहुल गांधी को ट्वीट करे, या उसके ऊपर अटैक करे, उनको टारगेट करके फिर अपना राजनीतिक भाषण शुरू करे और परिवारवाद की बात करे, राहुल गांधी जी भी सवाल पूछते हैं उनको कि कितने परिवारवाद वाले लोगों को आपने ले लिया, प्रियंका जी ने कहा कि कितने परिवारवादी लोगों को आपने एक्सेप्ट किया है कांग्रेस से अपनी पार्टी में? क्यों किया फिर आपने? तो ये तमाम बातें जो हैं, ये कथनी व करनी में अंतर बताता है इन लोगों का। मीडिया के माध्यम से राजनीति हो रही है देश के अंदर, लोकतंत्र की हत्या हो रही है, संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, सारी एजेंसियां इनकी दबाव के अंदर हैं, सीबीआई, इनकम टैक्स, ईडी, ज्यूडीशियरी, प्रधानमंत्री जी बोल रहे थे 3 दिन पहले, इन एजेंसियों को बदनाम कर रही हैं विपक्षी पार्टियां, बताइए बदनाम कर रहे हैं हम लोग? पूरे देश में आतंक मचा रखा है इन एजेंसियों ने इनके इशारे पर, गृह मंत्रालय म��निटरिंग करता है पूरी इनकी, तब जाकर ये एजेंसियां मजबूरी के अंदर, एजेंस��� में इतने अच्छे लोग बैठे हुए हैं वो नहीं चाहते छापा डालना, रेड डालना, ऐसे लोग भी हैं, 7-7 दिन तक जाकर घरों में बैठ जाओ इनके, जिनके घरों में छापे पड़ते हैं, 7 दिन तक वहीं बैठे रहो, कुछ मिला ही नहीं वहां पर, भई आप यहां क्यों बैठे हुए हो, कहते हैं कि जब तक ऊपर से आदेश नहीं आएगा, तब तक हम बाहर निकलेंगे ही नहीं आपके घर से। जिस मुल्क में ये हालात बन जाएं, उसके लिए प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि विपक्षी पार्टियां इन एजेंसियों को बदनाम कर रही हैं, आप बताइए। तो देश किस दिशा में जा रहा है, किस दिशा में जाएगा, ये बहुत ही चिंता वाली बात प्रत्येक नागरिक के लिए होनी चाहिए ये मेरा मानना है।
सवाल- चुनाव में हमने देखा कि जैसे रोटी-कपड़ा-मकान-स्वास्थ्य से रोजगार बातें होनी चाहिए थीं, वो मुद्दे पीछे छूट गए और केवल इमोशनल इश्यूज पर चुनाव लड़े गए?
जवाब- यही हुआ है, सब जगह यही हुआ है, यही हुआ है, बिलकुल ठीक है। नॉन-इश्यू को इश्यू को बनाते हैं ये लोग, नॉन-इश्यू को इश्यू बनाकर धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण करके आप राजनीति कर रहे हो। तो इसलिए मैं समझता हूं कि कुछ गलतियां हमसे भी हुई हैं, पंजाब के अंदर आपस में ही कांग्रेस की आपस में जो नाइत्तेफाकी हुई, या आपस में जो आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे, तो जनता ने स्वीकार नहीं किया इन बातों को। कांग्रेस की नीतियों को, उसके कार्यक्रमों को, सिद्धांतों को अस्वीकार नहीं किया है देश के अंदर कहीं पर भी किसी राज्य के अंदर भी, पर जो लोकल स्थितियां होती हैं, उसके अनुसार वोटिंग पैटर्न होता है, उसी रूप में पंजाब के हालात हमारे सामने हैं। हम जीत रहे थे चुनाव वहां पर, मिस्टर चन्नी ने अच्छे मैसेज दिए थे, पर माहौल ऐसा बन गया वहां पर, आप पार्टी का उदय हो गया वहां पर। पर मेरा मानना है कि आज भी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस पार्टी है, जिसकी चौकियां, जिसकी इकाइयां पूरे देश के हर गांव में, हर घर के अंदर हैं, देश उम्मीद करता है कि कांग्रेस मजबूत होकर उभरकर आए, बल्कि देश चिंतित है आज कांग्रेस को लेकर, मेरा मानना है, मेरा अनुभव है कि लोग जिस रूप में सोच रहे हैं आम नागरिक, वो सोचता है कि देश में कांग्रेस मजबूत होकर उभरकर आए और मुख्य विपक्षी दल आज है, कल सरकार में भी हम लोग आएंगे, ये हमें कॉन्फिडेंस है क्योंकि अल्टीमेटली जो महात्मा गांधी के जमाने के जो सिद्धांत हैं, जो नीतियां हैं, जो कार्यक्रम हैं, वो इस देश को एक रख सकते हैं, अखंड रख सकते हैं, आगे बढ़ा सकते हैं और अनुभव कहता है 70 साल का, आज जहां हम पहुंचे हैं 70 साल में, क्या था 70 साल के पहले? न लोग समझते थे कि बिजली क्या होती है, पानी की कोई योजनाएं नहीं थीं, न श��क्षा, न स्वास्थ्य, न सड़कें थीं, तो उस मुल्क को आज बनाया तो कांग्रेस ने बनाया है, ये देश जानता है।
सवाल- ममता बनर्जी ने कहा है कि ये चुनाव की जीत जो है वो ईवीएम की जीत है?
जवाब- मैं इन बातों पर नहीं जाना चाहता, मैं तो ये बात मानता हूं कि जिस रूप में, ईवीएम की बात अगर उन्होंने कही ममता बनर्जी जी ने कही तो सोच-समझकर कही होगी, तो मेरा मानना ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने अगर सुब्रहमण्यम स्वामी जी के जो केस उन्होंने किया था, उसके आधार पर अगर सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट का प्रोविजन किया मशीनों के अंदर, ईवीएम की मशीनों के अंदर, इसके मायने हैं कि सुप्रीम कोर्ट मान गया कि मशीनों में गड़बड़ हो सकती है। मैं इसको इस चुनाव के परिणामों से नहीं जोड़ रहा हूं, पर मैं कहना चाहूंगा कि आज देश को विश्वास क्यों नहीं है मशीनों पर? इसका समाधान भी इलेक्शन कमीशन को करना चाहिए। जब सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि वीवीपैट लगाओ, तो prima facie ही सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया कि मशीनों में टेंपरिंग हो सकती है, मान लिया। जब मान लिया है, तो उसका समाधान होना चाहिए, वीवीपैट समाधान नहीं हो सकता है। अगर मशीनों में टैंपरिंग हो सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने माना है, तभी वीवीपैट को अलाऊ किया है और वीवीपैट के बाद में भी शिकायत वो की वो रही है। तो यह एक बहस का विषय है देश के अंदर, दुनिया के मुल्कों में जहां ईवीएम आई थी, ईवीएम को विड्रॉ कर लिया उन्होंने और बैलेट पेपर से वापस चुनाव होने लग गए कई मुल्कों के अंदर दुनिया के अंदर। तो हमारे मुल्क में डेमोक्रेसी कैसे बचे, इसके लिए जो करना है वो करना चाहिए इलेक्शन कमीशन को, उसकी जिम्मेदारी बहु�� बड़ी होती है, दुर्भाग्य से वो भी दबाव के अंदर है इनके, जो बनते हैं इलेक्शन कमिश्नर बनते हैं, चीफ इलेक्शन कमिश्नर बनते हैं, वो दबाव में बनते हैं इनके, दबाव में रहते हैं और उसके कारण से सही फैसले नहीं कर पाते हैं, ये भी एक दुर्भाग्य की बात है।
सवाल- संजय राउत जो शिवसेना के हैं, उन्होंने कहा है कि मायावती और ओवैसी को जो है भारत रत्न और पद्म विभूषण से सम्मानित किया जाना चाहिए भाजपा को जिताने के लिए?
जवाब- बिलकुल उनकी बात में दम है, बात में दम है, जिस प्रकार से मायावती जी ने खेल खेला है, ये देश उनसे उम्मीद नहीं करता था। हमारे उनसे विचार नहीं मिलते होंगे, परंतु एक विचारधारा को रीप्रजेंट कर रही थीं वो। दलितों का कैसे उद्धार हो और डॉ. अंबेडकर की विचारधारा का कैसे प्रचार-प्रसार हो, जो काशीराम जी जो पूंजी इनको सौंपकर गए थे, आज वो काशीराम जी पर क्या बीत रही होगी स्वर्ग के अंदर। जिस प्रकार से धोखा दिया है बीएसपी को मायावती जी ने और उनके जो मिश्रा जी जो हैं उन्होंने। अपनी पार्टी को खत्म करने के कॉस्ट पर सपोर्ट कर दिया बीजेपी को, नाम ले रहे हैं सपा का नाम ले रहे हैं, बर्बाद इन्होंने किया है, जान��ूझकर आत्महत्या की है। मायावती जी ने क्या मजबूरी है यह तो शोध का विषय है, मायावती जी ने अपनी पार्टी को जिस रूप में खत्म किया है, आत्महत्या के रूप में मैं इसको मानता हूं, लाखों जो कार्यकर्ता हैं बीएसपी के देश के अंदर, उन पर क्या बीत रही होगी, वो समय बताएगा और वो बच नहीं सकतीं यह कहकर कि हमें बी टीम बता दिया, इसलिए हम हार गए चुनाव। एक सीट आई है, कभी सोच सकते थे बीएसपी की, जिस बीएसपी के साथ में कांग्रेस ने ब्लंडर किया अलायंस करके, हमारा सबसे बड़ा ब्लंडर यूपी में ये रहा है कि जब हमने 91-92-93 के अंदर जो चुनाव हुए थे उस जमाने के अंदर, उसमें जो हमने बीएसपी के साथ में अलायंस किया और जूनियर पार्टी बनी कांग्रेस, सबसे बड़ी गलती कांग्रेस की उस वक्त हुई, एक तिहाई तो बने कांग्रेस के उम्मीदवार खड़े हुए, दो तिहाई सीटें दी गईं बीएसपी को, दो तिहाई जगहों पर कांग्रेस साफ हो गई, आज तक खड़ी नहीं हो पा रही है। ये तो प्रियंका गांधी जी ने कम से कम ये मैसेज दे दिया देशवासियों को कि लड़ाई लड़ी जा सकती है, अगर आप तय कर लो, चुनाव में हार-जीत अलग बात है, पर आज उन्होंने 403 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, बहुत बड़ी उपलब्धि मैं मानता हूं उनकी। इस माहौल के अंदर जहां पर 30 साल से कांग्रेस नहीं आ रही है, वहां पर आपने सब सीटों पर खड़े कर दिए उम्मीदवार, आपने 40 पर्सेंट टिकट की बात की महिलाओं को, तो देकर रहीं वो और जिस प्रकार से माहौल बनाया इस चुनाव के अंदर, कैंपेन किया, उसका लोहा पूरा देश मानता है और मैं ये मानता हूं कि प्रियंका जी का कदम बहुत ठीक था और उसके बाद में जो हालात बने हैं वहां पर, आप देख लीजिए कि ध्रुवीकरण किस तरह का हुआ है कि बीएसपी हो, चाहे कांग्रेस हो, जो वोट की पर्सेंटेज है वो बताएगी आपको कि ध्रुवीकरण बहुत बड़े रूप में हुआ है, करीब 100 सीटों पर तो 2 ही पार्टियां रह गईं, सपा और बीजेपी रही है, ये इतना बड़ा ध्रुवीकरण है, इसका मुकाबला हम लोग करेंगे, दमखम हम लोगों में है।
सवाल- सीडब्ल्यूसी की बैठक के बारे में क्या कहेंगे?
जवाब- सीडब्ल्यूसी की बैठक सोनिया जी ने टाइमली बुलाई है। वहां बैठकर डिस्कशन करेंगे हम लोग, पोस्टमार्टम भी होगा, आगे कैसे बढ़ना है आगे, नए सिरे से कैसे काम करना है, कहां कमी हमारी दूर करेंगे। किस प्रकार से हम देशवासियों को विश्वास दिलाएं कि कांग्रेस आपके सुख दुख में हमेशा खड़ी रहेगी, यह मेरा मानना है।
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karanaram · 3 years ago
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🚩गुरु गोविन्दसिंह के वीर सपूतों ने प्राण दे दिए पर धर्म नहीं बदला - 8 जुलाई 2021
🚩सनातनियों को प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि धर्म की खातिर प्राण देने पड़े तो देंगे लेकिन अत्याचारियों के आगे कभी नहीं झुकेंगे। विलासियों द्वारा फैलाये गये जाल, जो आज हमें व्यसन, फैशन और चलचित्रों के रूप में देखने को मिल रहे हैं, उनमें नहीं फँसेंगे। अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहेंगे।
🚩फतेहसिंह और जोरावरसिंह सिख धर्म के दसवें गुरु गोविन्दसिंहजी के सुपुत्र थे। आनंदपुर के युद्ध में गुरुजी का परिवार बिखर गया था। चार पुत्रों में से दो छोटे पुत्र गुरु गोविन्दसिंह की माता गुजरी देवी के साथ बिछुड़ गये। उस समय जोरावरसिंह की उम्र मात्र सात वर्ष ग्यारह माह तथा फतेहसिंह की उम्र पाँच वर्ष दस माह थी। दोनों अपनी दादी के साथ जंगलों, पहाड़ों को पार करके एक नगर में पहुँचे। गंगू नामक ब्राह्मण, जिसने बीस वर्षों तक गुरुगोविन्दसिंह के पास रसोइये का काम किया था, उसके आग्रह पर माता जी दोनों नन्हें बालकों के साथ उसके घर गयीं। गंगू ने रात्रि को माता गुजरी देवी के सामान में पड़ी सोने की मोहरें चुरा लीं, इतना ही नहीं इनाम पाने की लालच में कोतवाल को उनके बारे में बता भी दिया।
कोतवाल ने दोनों बालकों सहित माता गुजरी देवी को बंदी बना लिया। माता गुजरी देवी दोनों बालकों को उनके दादा गुरु तेगबहादुर और पिता गुरुगोविन्दसिंह की वीरतापूर्ण कथाएँ सुनाकर अपने धर्म में अडिग रहने के लिए प्रेरित करती रहीं।
सुबह सैनिक बच्चों को लेने पहुँच गये। दोनों बालक नवाब वजीर खान के सामने पहुँचे। शरीर पर केसरी वस्त्र, पगड़ी तथा कृपाण धारण किये इन नन्हें योद्धाओं को देखकर एक बार तो नवाब का भी हृदय पिघल गया। उसने कहाः "बच्चों! हम तुम्हें नवाबों के बच्चों की तरह रखना चाहते हैं। एक छोटी सी शर्त है कि तुम अपना धर्म छोड़कर हमारे धर्म में आ जाओ।"
नवाब की बात सुनकर दोनों भाई निर्भीकतापूर्वक बोलेः "हमें अपना धर्म प्राणों से भी प्यारा है। जिस धर्म के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने प्राणों की बलि दे दी उसे हम तुम्हारी लालचभरी बातों में आकर छोड़ दें, यह कभी नहीं हो सकता।"
नवाबः "तुमने हमारे दरबार का अपमान किया है। यदि जिंदगी चाहते हो तो..."
नवाब अपनी बात पूरी करे इससे पहले ही नन्हें वीर गरजकर बोल उठेः "नवाब! हम ��न गुरु तेगबहादुर के पोते हैं जो धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गये। हम उन गुरु गुरु गोविन्दसिंह के पुत्र हैं, जिनका नाम सुनते ही तेरी सल्तनत थर-थर काँपने लगती है। तू हमें मृत्यु का भय दिखाता है? हम फिर से कहते हैं कि हमारा धर्म हमें प्राणों से भी प्यारा है। हम प्राण त्याग सकते हैं परंतु अपना धर्म नहीं त्याग सकते।"
इतने में दीवान सुच्चानंद ने बालकों से पूछाः "अच्छा, यदि हम तुम्हें छोड़ दें तो तुम क्या करोगे?"
बालक जोरावरसिंह ने कहाः "हम सेना इकट्ठी करेंगे और अत्याचारी मुगलों को इस देश से खदेड़ने के लिए युद्ध करेंगे।"
दीवानः "यदि तुम हार गये तो?"
जोरावरसिंह (दृढ़तापूर्वक): "हार शब्द हमारे जीवन में ही नहीं है। हम हारेंगे नहीं, या तो विजयी होंगे या शहीद होंगे।"
बालकों की वीरतापूर्ण बातें सुनकर नवाब आगबबूला हो उठा। उसने काजी से कहाः "इन बच्चों ने हमारे दरबार का अपमान किया है तथा भविष्य में मुगल शासन के विरूद्ध विद्रोह की घोषणा की है। अतः इनके लिए क्या दंड निश्चित किया जाय?"
काजीः "इन्हें जिन्दा दीवार में चुनवा दिया जाय।"
फैसले के बाद दोनों बालकों को उनकी दादी के पास भेज दिया गया। बालकों ने उत्साहपूर्वक दादी को पूरी घटना सुनायी। बालकों की वीरता देखकर दादी गदगद हो उठी और उन्हें हृदय से लगाकर बोलीः "मेरे बच्चों! तुमने अपने पिता की लाज रख ली।" दूसरे दिन दोनों वीर बालकों को एक निश्चित स्थान पर ले जाकर उनकी चारों ओर दीवार बनानी प्रारम्भ कर दी गयी। धीरे-धीरे दीवार उनके कानों तक ऊँची उठ गयी। इतने में बड़े भाई जोरावरसिंह ने अंतिम बार अपने छोटे भाई फतेहसिंह की ओर देखा और उसकी आँखों में आँसू छलक उठे।
जोरावरसिंह की इस अवस्था को देखकर वहाँ खड़ा काजी ने समझा कि ये बच्चे मृत्यु को सामने देखकर डर गये हैं। उसने कहाः "बच्चों! अभी भी समय है। यदि तुम हमारे धर्म में आ जाओ तो तुम्हारी सजा माफ कर दी जायेगी।"
जोरावरसिंह ने गरज कर कहाः "मूर्ख काजी! मैं मौत से नहीं डर रहा हूँ। मेरा भाई मेरे बाद इस संसार में आया परंतु मुझसे पहले धर्म के लिए शहीद हो रहा है। मुझे बड़ा भाई होने पर भी यह सौभाग्य नहीं मिला इसलिए मुझे रोना आता है।" सात वर्ष के इस नन्हें से बालक के मुख से ऐसी बात सुनकर सभी दंग रह गये। थोड़ी देर में दीवार पूरी हुई और वे दोनों नन्हें धर्मवीर उसमें समा गये।
कुछ समय पश्चात दीवार को गिरा दिया गया। दोनों बालक बेहोश पड़े थे परंतु अत्याचारियों ने उसी स्थिति में उनकी हत्या कर दी।
🚩विश्व के किसी अन्य देश के इतिहास में इस प्रकार की घटना नहीं है, जिसमें सात और पाँच वर्ष के दो नन्हें सिंहों की अमर वीरगा��ा का वर्णन हो।
🚩धन्य हैं ऐसे धर्मनिष्ठ बालक! धन्य है भारत माता, जिसकी पावन गोद में ऐसे वीर बालकों ने जन्म लिया।
🚩भारतवासियों! तुम भी अपने देश और संस्कृति की सेवा और रक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना।
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hindijankari · 5 years ago
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भगत सिंह का जीवन परिचय , शिक्षा, आन्दोलन और मृत्यु का कारण
शहीद भगत सिंह जी के बारे में क��छ ऐसी बातें जो किसी ने कभी नहीं सुनी है। भगत सिंह का जीवन परिचय में अगर कुछ बात रहती है तो पूछिए हम जवाब देने का पूरा प्रयास करेंगे। भगत सिंह की जीवनी हिंदी में
नामशहीद भगत सिंहजन्म28 सितम्बर 1907जन्मस्थलगाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में)मृत्यु23 मार्च 1931मृत्युस्थललाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान में)आन्दोलनभारतीय स्वतंत्रता संग्रामपितासरदार किशन सिंह सिन्धुमाताश्रीमती विद्यावती जीभाई-बहन
रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर
चाचाश्री अजित सिंह जीप्रमुख संगठन
नौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन
शहीद भगत सिंह की जीवनी हिंदी में
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भागत सिंह जी के बारे में बात करे तो भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।
सरदार भगत सिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप में लिया जाता है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिन्धु और माता का नाम श्रीमती विद्यावती जी था।
भारत के सबसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह भारत देश की महान ताकत है जिन्होंने हमें अपने देश पर मर मिटने की ताकत दी है और देश प्रेम क्या है ये बताया है।
भगत सिंह जी को कभी भुलाया नहीं जा सकता उनके द्वारा किये गए त्याग को कोई माप नहीं सकता। उन्होंने अपनी मात्र 23 साल की उम्र में ही अपने देश के लिए अपने प्राण व अपना परिवार व अपनी युवावस्था की खुशियाँ न्योछावर कर दी ताकि आज हम लोग चैन से जी सके।
भारत की आजादी की लड़ाई के समय, भगत सिंह का जीवन परिचय सिख परिवार में जन्मे और सिख समुदाय का सीर गर्व से उंचा कर दिया।
भगत सिंह जी ने बचपन से ही अंग्रेजों के अत्याचार देखे थे, और उसी अत्याचार को देखते हुए उन्होने हम भारतीय लोगों के लिए इतना कर दिया की आज उनका नाम सुनहरे पन्नों में है। उनका कहना था कि देश के जवान देश के लिए कुछ भी कर सकते है, देश का हुलिया बदल सकते है और देश को आजाद भी करा सकते है। भगत जी का जीवन ही संघर्ष से परिपूर्ण था।
Bhagat Singh History in Hindi
भगत सिंह जी सिख थे और भगत सिंह जी के जन्म के समय उनके पिता सरदार किशन सिंह जी जेल में थे, भगत जी के घर का माहौल देश प्रेमी था, उनके चाचा जी श्री अजित सिंह जी स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी। उनके साथ सैयद हैदर रजा भी थे।
भगत सिंह का जीवन परिचय
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भगत जी के चाचा जी के नाम 22 केस दर्ज थे, जिस कारण उन्हें ईरान जाना पड़ा क्योंकि वहाँ वे बचे रहते अन्यथा पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती। भगत जी का दाखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में कराया था।
सन् 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह का खून खोल उठा और महात्मा गांधी जी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन का उन्होंने पूरा साथ दिया। भगत सिंह जी अंग्रेजों को कभी भी ललकार दिया करते थे जैसे कि मानो वे अंग्रेजो को कभी भी लात मार कर भगा देते।
भगत जी ने महात्मा गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे, भगत जी की ये नटखट हरकतें उनकी याद दिलाती है और इन्हें सुन कर, पढ़कर आंखों में आंसू आ जाते है।
चौरी चौरा हुई हिंसात्मक गतिविधि पर गांधी जी को मजबूरन असहयोग आन्दोलन बंद करना पड़ा, मगर भगत जी को ये बात हजम नहीं हुई उनका गुस्सा और भी उपर उठ गया और गांधी जी का साथ छोड़ कर उन्होंने दूसरी पार्टी पकड़ ली।
लाहौर के नेशनल कॉलेज से BA कर रहे थे और उनकी मुलाकात सुखदेव, भगवती चरण और कुछ सेनानियों से हुई और आजादी की लड़ाई और भी तेज हो गयी, और फिर ��्या था उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आजादी के लिए लड़ाई में कूद पड़े।
Essay on Bhagat Singh in Hindi
भगत सिंह जी की शादी के लिए उनका परिवार सोच ही रहा था की भगत जी ने शादी के लिए मना कर दिया और कहा “अगर आजादी से पहले मैं शादी करूँ तो मेरी दुल्हन मौत होगी.”
भगत सिंह जीवनी: 
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भगत जी कॉलेज में बहुत से नाटक आदि में भाग लिया करते थे वे बहुत अच्छे एक्टर भी थे, उनके नाटक में केवल देशभक्ति शामिल थी उन नाटकों के चलते वे हमेशा नव युवकों को देश भक्ति के लिए प्रेरित किया करते थे और अंग्रेजों का मजाक भी बनाते थे और उन्हें नीचा दिखाते थे। क्योंकि अंग्रेजों का इरादा गलत था।
भगत सिंह जी मस्तमौला इंसान थे और उन्हें लेक लिखने का बहुत शौक था। कॉलेज में उन्हें निबंध में भी कई पुरस्कार मिले थे।
क्रन्तिकारी जीवन
1921 में जब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया तब भगत सिंह ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। वर्ष 1922 में जब महात्मा गांधी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए। अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र उपयोगी रास्ता है। 
अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विधालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा, सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये।
विवाह से बचने के लिए भगत सिंह घर से भाग कर कानपुर चले गए। यहाँ वह गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी के संपर्क में आये और क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। जब उन्हें अपनी दादी माँ की बीमारी की खबर मिली तो भगत सिंह घर लौट आये। उन्होंने अपने गावं से ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा। 
वह लाहौर गए और ‘नौजवान भारत सभा’ नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। उन्होंने पंजाब में क्रांति का सन्देश फैलाना शुरू किया। वर्ष 1928 में उन्होंने दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा ��िया और चंद्रशेखर आज़ाद के संपर्क में आये। दोनों ने मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का ग��न किया। इसका प्रमुख उद्देश्य था सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना।
फरवरी 1928 में इंग्लैंड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था – भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतंत्र में भागेदारी। पर इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध का फैसला किया। लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ नारेबाजी करते समय लाला लाजपत राय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। 
भगत सिंह ने लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट, जो उनकी मौत का जिम्मेदार था, को मारने का संकल्प लिया। उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर छोड़ना पड़ा।
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया। ‘डिफेन्स ऑफ़ इंडिया ऐक्ट’ के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से सम्बंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। 
केन्द्रीय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया। फिर भी अँगरेज़ सरकार ने इसे ‘जनता के हित’ में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया।
 भगत सिंह ने स्वेच्छा से केन्द्रीय विधान सभा, जहाँ अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था, में बम फेंकने की योजना बनाई। यह एक सावधानी पूर्वक रची गयी साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मारना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित करना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जायेगा।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। 
अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया। जेल में उन्होंने जेल अधिकारियों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की।
शहीद भगत सिंह को फ��ंसी कब दी गयी थी?
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भगत सिंह की मृत्यु 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन देश के लोगों ने उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन किये थे जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर लगा की अगर भगत जी को आजाद कर दिया तो वे ब्रिटिश सरकार को जिंदा नहीं छोड़ेंगे इसलिए 23 मार्च 1931 को शाम 7 बज कर 33 मिनट पर जाने से पहले भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उनसे पूछा गया की उनकी आखिरी इच्छा क्या है तो भगत सिंह जी ने कहा की मुझे किताब पूरी कर लेने दीजिए।
कहा जाता है कि उन्हें जेल के अधिकारियों ने बताया की उनकी फांसी दी जानी है अभी के अभी तो भगत जी ने कहा की “ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले” फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो”
मरने का डर बिल्कुल उनके मुख पे नहीं था डरने के वजह वे तीनों ख़ुशी से मस्ती में गाना गा रहे थे।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे; मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माय रँग दे बसन्ती चोला…
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को फांसी दे दी गयी। ऐसा भी कहा जाता है कि महात्मा गांधी चाहते तो भगत जी और उनके साथियों की फांसी रुक जाती, मगर गांधी जी ने फांसी नहीं रुकवाई।
भगत सिंह जी के बेदर्दी से टुकड़े टुकड़े किये थे अंग्रेजों ने
फांसी के बाद कहीं आन्दोलन न भड़क जाए इस डर की वजह से अंग्रेजों ने पहले मृत शरीर के टुकड़े टुकड़े किये और बोरियों में भरकर फिरोजपुर की तरफ ले गए.
मृत शरीर को घी के बदले मिटटी किरोसिन के तेल से जलाने लगे और गाँव के लोगों ने जलती आग के पास आकर देखा तो अंग्रेज डर के भागने लगे और अंग्रेजों ने आधे जले हुए शरीर को सतलुज नदी में फैंक दिया और भाग गए.
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गाँव वालों ने पास आकर शहीद भगत सिंह जी के टुकड़े को इकठ्ठा किया और अंतिम संस्कार किया.
लोगों ने अंग्रेजों के साथ साथ गांधी जी को भी भगत सिंह जी की मृत्यु का दोषी ठहराया और गांधी जी लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया और कई जगह तो गांधी जी पर हमला हुए और सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया नहीं तो गाँधी जी को मार दिया जाता.
भगत सिंह जी का व्यवहार – History of Bhagat Singh in Hindi
भगत सिंह जी ने जेल के दिनों में जो खत आदि लिखे थे उससे उनके सोच और विचार का पता चलता है। उनके अनुसार भाषाओं में आई हुई विशेषता जैसे की पंजाबी के लिए गुरुमुखी व शाहमुखी तथा हिंदी अरबी जैसी अलग अलग भाषा की वजह से जाति और धर्म में आई दूरियाँ पर दुःख व्यक्त किया।
अगर कोई हिन्दू भी किसी कमजोर वर्ग पर अत्याचार करता था तो वो भी उन्हें ऐसा लगता था जैसे कोई अंग्रेज हिंदुओं पर अत्याचार करते है।
भगत सिंह जी को कई भाषाएँ आती थी और अंग्रेजी के अलावा बांगला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। उनका विश्वास था की उनकी शहादत से भारतीय जनता और जागरूक हो जायेगी और भगत सिंह जी ने फांसी की खबर सुनने के बाद भी माफीनामा लिखने से मना कर दिया था।
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए- ज़फ़ा क्या है? हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चंद्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी। उन्हें भुलाया भी नहीं भुलाया जा सकता।
शहीद भगत सिंह जी को प्राप्त ख्याति और सम्मान
भगत सिंह जी के शहीद होने की ख़बर को लाहौर के दैनिक ट्रिब्यून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा। उसके बाद कई मार्क्सवादी पत्रों में उन पर लेख छापे गए, पर क्योंकि भारत में उन दिनों मार्क्सवादी पत्रों के आने पर रोक लगी हुई थी इसलिए भारतीय बुद्धिजीवियों को इसकी ख़बर नहीं थी। देशभर में उनकी शहादत को याद किया गया.
आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता ��गत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिन्दगी देश के लिये समर्पित कर दी.
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rajeshksahu · 5 years ago
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गुरु अर्जुनदेव को तपते तवे पर शहीद करने के बाद मुगलों का विनाश हुआ शुरू
गुरु अर्जुनदेव को तपते तवे पर शहीद करने के बाद मुगलों का विनाश हुआ शुरू
06 जून 2019 www.azaadbharat.org
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शक्ति और शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी कि शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत कि सेवा में लगे रहते थे। श्री गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे।
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#भारतीय #दशगुरु परम्परा के #पंचम #गुरु श्री…
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latesthindinewsindia · 6 years ago
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पितृ पक्ष में पितरों को मनाने के लिए जरूर करें पितरों की आरती एवं चालीसा का पाठ
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।। पितर देवों की आरती ।।
  जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी । शरण पड़यो हूँ थारी बाबा, शरण पड़यो हूँ थारी ।।
  आप ही रक्षक आप ही दाता, आप ही खेवनहारे । मैं मूरख हूँ कछु नहिं जाणूं, आप ही हो रखवारे ।। जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।।
  आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी, करने मेरी रखवारी । हम सब जन हैं शरण आपकी, है ये अरज गुजारी ।। जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।।
  देश और परदेश सब जगह, आप ही करो सहाई । काम पड़े पर नाम आपको, लगे बहुत सुखदाई ।। जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।।
  भक्त सभी हैं शरण आपकी, अपने सहित परिवार । रक्षा करो आप ही सबकी, रटूँ मैं बारम्बार ।। जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।।
  जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी । शर��� पड़यो हूँ थारी बाबा, शरण पड़यो हूँ थारी ।। जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।।
  आरती समाप्त *******************
पितर चालीसा
दोहा हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद, चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ । सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी । हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी ।।
  चौपाई पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर । परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा। मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे । जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं ।
  अथ चालीसा
चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा। नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का। प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुन��ते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते। झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे।
  प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा। पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी। तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे। नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।
  छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते। तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी। भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे। ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।
  सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी। शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते। जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई।
  हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा। गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की। बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा। चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।
  जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते। धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है। श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी। निशिदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।
  तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई। चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी। नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई। जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।
  सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी। जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे। सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे। तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।
  सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई। तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई। मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी। अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै।
  दोहा पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम। श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम। झुंझनू धाम विरा��े हैं, पित्तर हमारे महान। दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान।। जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझनू धाम। पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान।।
  चालीसा समाप्त *******************
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ocean-media-house · 7 years ago
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दिल्ली कमेटी ने विशाल नगर कीर्तन सजाया Rohit Sharma Photojournalist :- इतिहास अनुसार “हिन्द की चादर” श्री गुरू तेग बहादर जी की शहादत के बाद चांदनी चौंक से गुरू साहिब का शीश भाई जैता जी लेकर श्री आनंदपुर साहिब पहुंचे। आज गुरू साहिब के शहीदी दिवस के अवसर पर उसी मार्ग से “शीश मार्ग यात्रा” गुरूद्वारा शीश गंज से श्री आनंदपुर साहिब की ओर प्रस्थान करवाने के बाद दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा साहिब श्री गुरू तेग बहादर जी के शहीदी पर्व के संबंध में साहिब श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी छत्र-छाया अधीन एवं पांच प्यारे साहिबान के नेतृत्व में नगर कीर्तन गुरुद्वारा शीशगंज साहिब से सजाया गया। अरदास के बाद आरंभ होकर नगर कीर्तन दिल्ली एवं नई दिल्ली के विभिन्न बाजारों जैसे चांदनी चौंक, नई सड़क,चावड़ी बाजार,हौज काजी,अजमेरी गेट,पुल पहाड़ गंज, देशबंधु गुप्ता रोड,चूना मंडी,मेन बाजार पहाड़ गंज,बसंत रोड, पंचकुईया रोड,गुरूद्वारा बंगला साहिब रोड,ग���ल डाकखाना, बंगला साहिब एवं पंडित पंत मार्ग होता हुआ गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में पहुंच कर समाप्त हुआ। इस अवसर पर कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने संगतों को संबोधित करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान में जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा हिन्दु धर्म एवं संस्कृति को तबाह करने के लिए हुक्म जारी किया गया तो उस समय केवल गुरू तेग बहादर जी ही इस संस्कृति को बचाने के लिए आगे आये। मुगल हकुमत द्वारा सख्ती का दौर इतना भयानक था कि सताये हुए लोगों का दुख सुनने को कोई भी तैयार नहीं था। कश्मीर में यह अत्याचार और भी जयादा बढ़ रहा था। उन्हांने बताया कि कश्मीरी पंडितों का एक दल हिन्दु धर्म को बचाने की फरियाद लेकर गुरु तेग बहादर साहिब के पास श्री आनंदपुर साहिब पहुंचा थाए तब 9वें पातिशाह ने उनके धर्म की रक्षा के लिए स्वयं दिल्ली जा कर शहादत दी। उनकी शहीदी से पहले भी तीन भाई मती दासए भाई सती दास और भाई दयाला जी को भयानक यातनाएें देकर गुरू साहिब के सामने शहीद कर दिया गया था। ��गर कीर्तन में पालकी साहिब के पहुंचने की जानकारी संगतों को देने के लिए कमेटी द्वारा अपनी वैबसाईट पर जो जीपीएस की सुविधा दी गई थी उसका संगतों की ओर से भारी समर्थन मिलने की जानकारी सामने आई है। नगर कीर्तन में नगारा गाड़ी, गुरू महाराज की लाडली फौज घुडसवार, बैंड बाजे, खालसा स्कूलों के बच्चे नगर कीर्तन की शोभा बढ़ा रहे थे। साथ ही एम्बूलेंस ब्रिगेड एवं छबील सेवक जत्थे भी संगतों की सेवा कर रहे थे। शस्त्र विद्या दल के गतकई अखाड़े शस्त्रों द्वारा अपना कला के जौहर दिखा रहे थे। श्री गुरू ग्रंथ साहिब की पालकी के स्वागत में जगह-जगह गुरू महाराज के सम्मान में इलाके की संगतों ने स्वागती गेट बनाये थे। शब्दी कीर्तनी जत्थे, अखंड कीर्तनी जत्थे संगतों को नाम सिमरिन करवा रहे थे। इस अवसर पर धर्मप्रचार कमेटी के चेयरमैन परमजीत सिंह राणा, पूर्व अध्यक्ष अवतार सिंह हित,कमेटी सदस्य चमन सिंह,भूपिन्दर सिंह भुल्लर,हरजीत सिंह पप्पा,विक्रम सिंह रोहिणी,जतिन्दर पाल गोल्डी,अमरजीत सिंह पिंकी,सर्वजीत सिंह विर्क,रणजीत कौर, डा. निशान सिंह मान, हरविन्दर सिंह के.पी.,जगदीप सिंह काहलों,महिन्दर सिंह भुल्लर,पूर्व कमेटी सदस्य सतपाल सिंह,हरदेव सिंह धनौआ, जत्थेदार बलदेव सिंह राणीबाग,पूर्व सदस्य जत्थेदार कुलदीप सिंह भोगल आदि अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने बड़ी संख्या में हाजिरी भरी।
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karanaram · 4 years ago
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🚩 टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था भगत सिंह का वामपंथ -23 मार्च 2021
🚩 अमर क्रांतिकारी भगत सिंह को वामपंथी अक्सर अपने गुट का दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उन्हें ऐसे चित्रित किया जाता है, जैसे वो वामपंथ के अनुयायी रहे हों और वो वही वामपंथ है, जो आज जेएनयू में कुछ ‘छात्रों’ द्वारा और देश के कई हिस्सों में नक्सलियों द्वारा फॉलो किया जाता है। देश के लिए बलिदान देने वाले एक राष्ट्रवादी को इस तरह से एक संकीर्ण विचारधारा के भीतर बाँधना वामपंथियों की एक चाल है।
🚩 जैसा कि हम जानते हैं, भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की उम्र में भारत माता के लिए शूली पर चढ़ गए थे। इतने कम उम्र में क्रांतिकारी, विद्वान और चिंतक होने का अर्थ है कि उन्होंने काफी कम समय में देश-द��निया की कई विचारधाराओं को पढ़ा और कई क्रांतिकारियों का अध्ययन किया।
🚩 भगत सिंह के नास्तिक होने की बात को ऐसे प्रचारित किया जाता है, जैसे वे हिन्दू धर्म से और देवी-देवताओं से घृणा करते हों। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। वामपंथी स्वतंत्रता सेनानियों में भी विचाधारा के हिसाब से बँटवारा करते हैं। वीर सावरकर उनके लिए मजाक का विषय हैं और उन्हें ‘माफ़ी माँगने वाला’ बताया जाता है। यहाँ हम इस प्रपंच पर बात करेंगे, लेकिन उससे पहले कुछेक घटनाओं को देखते हैं।
शुरुआत उसी संगठन के मैनिफेस्टो से क्यों न करें, जिसके भगत सिंह अहम सदस्य थे? हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मैनिफेस्टो में ही लिखा हुआ था कि वे भारत के समृद्ध इतिहास के महान ऋषियों के नक्शेकदम पर चलेंगे। इसमें कहा गया था कि कमजोर, डरपोक और शक्तिहीन व्यक्ति न तो अपने लिए और न ही देश के लिए कुछ कर सकता है। क्या वामपंथी इस संगठन को भी गाली देंगे, जिसके तहत भगत सिंह काम करते थे?
🚩 वीर सावरकर से काफी प्रभावित थे भगत सिंह
अंग्रेजों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को ‘सिपाही विद्रोह’ साबित करने की भरसक कोशिश की, लेकिन वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक के जरिए इस धारणा को तोड़ दिया। क्या आपको पता है कि इस पुस्तक का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने भी प्रकाशित किया था?
उनके सहयोगी राजाराम शास्त्री ने कहा था कि वीर सावरकर की इस पुस्तक ने भगत सिंह को काफी प्रभावित किया था। उन्होंने राजाराम शास्त्री को भी ये पुस्तक पढ़ने के लिए दी और फिर प्रकाशन के लिए योजना बनाई। उन्होंने ही प्रेस का प्रबंध किया और रात को प्रूफ रीडिंग के लिए शास्त्री के पास वो पन्ने भेजते और सुबह ले जाते। सुखदेव ने भी इस काम में बखूबी साथ दिया था। राजर्षि टंडन ने इसकी पहली प्रति खरीदी।यहाँ तक कि 1929-30 में भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ़्तारी के समय भी अंग्रेजों को उनके पास से वीर सावरकर की पुस्तक की काफी प्रतियाँ मिलीं। लेकिन, आज के वामपंथी भगत सिंह को तो गले लगाते हैं, लेकिन वीर सावरकर के बारे में क्या सोचते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव से पहले उन्हें भारत रत्न देने का वादा किया तो सीपीआई इसका विरोध करने वाली पहली पार्टी थी।
🚩 सीपीआई ने कहा था कि एक मिथक बना दिया गया है कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और राष्ट्रवादी थे। पार्टी ने आरोप लगाया था कि एक साजिश के तहत सावरकर जैसे ‘सांप्रदायिक व्यक्ति’ को आइकॉन बनाया जा रहा है। उन्हें ‘डरपोक’ लिखा गया। कॉन्ग्रे�� नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब सावरकर के योगदानों पर चर्चा की तो सीपीआई ने उन पर भी निशाना साधा। अब जब यही वामपंथी भगत सिंह को गले लगाने का नाटक करें तो इसे क्या कहा जाए? अर्थात, वामपंथी कहते हैं कि सावरकर ‘सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी’ हैं, लेकिन भगत सिंह ने वीर सावरकर की पुस्तकों को न सिर्फ छपवाया बल्कि वो इससे काफी प्रभावित भी थे- इस पर वो कन्नी काट जाते हैं। ड्रामेबाज वामपंथियों का ये दोहरा रवैया बताता है कि भगत सिंह को ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का हिस्सा बताने के लिए वो पागल हो रहे हैं। जिनकी श्रद्धा भारत से ज्यादा चीन के लिए है, वो देश के बलिदानियों पर भला क्यों गर्व करें?
🚩 लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं वामपंथी?
भगत सिंह ने ब्रिटिश एएसपी जॉन सॉन्डर्स का वध क्यों किया था? भारत की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के लिए लंदन से साइमन कमीशन को भेजा गया। भारत में ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने इसका प्रचंड विरोध किया। लाहौर में इसके विरोध के दौरान उन्हें लाठी लगी। इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसने भगत सिंह सहित ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सभी क्रांतिकारियों को आक्रोशित कर दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही भगत सिंह और उनके साथियों ने अपनी जान को दाँव पर लगाया था। लाला लाजपत राय की मृत्यु के ठीक 1 महीने बाद भगत सिंह ने अपना बदला पूरा किया और आर्य समाज के नेता रहे लालाजी को अपनी तरफ से श्रद्धांजलि दी। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ‘शहीद भगत सिंह- क्रांति में एक प्रयोग’ में लिखा है कि भगत सिंह, लाला लाजपत राय के समर्पण और देशसेवा के सामने अपना सिर झुकाते थे।उन्होंने लिखा है कि कैसे जब भगत सिंह ने उस प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय को अंग्रेजों की लाठी खा कर जमीन पर गिरता हुआ देखा तो उनके अंदर जालियाँवाला बाग़ नरसंहार के बाद जो गुस्सा भर गया था वो और धधक उठा। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि गोरे एक भलेमानुष के साथ ऐसा व्यवहार कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद इन क्रांतिकारियों की जो बैठक हुई, उसमें ऐसा गम का माहौल था जैसे उनके घर के किसी बुजुर्ग की हत्या कर दी गई हो।
🚩 अब वापस उन वामपंथियों पर आते हैं, जो भगत सिंह को तो अपना मानने का नाटक करते हैं, लेकिन उन्होंने किसके लिए बलिदान दिया- इससे वो अनजान बन कर रहना चाहते हैं और लोगों को भी अनजान रखना चाहते हैं। लेकिन, वो लोग लाला लाजपत राय के बारे में क्या सोचते हैं, जरा वो देखिए। इतिहासकार विपिन चंद्रा ने अपनी पुस्तक ‘India’s Struggle for Independence, 1857-1947‘ में उन्हें लिबरल और मॉडरेट कम्युनिस्ट साबित करने का प्रयास किया है।
🚩 लाला लाजपत राय ��क राष्ट्रवादी थे और हिंदुत्व को लेकर उनकी श्रद्धा अगाध थी। वो आर्य समाजी थे। भारत में हिंदुत्व भावना को पुनर्जीवित कर लोगों में अपने प्राचीन इतिहास के प्रति गौरव जगाने वालों में तिलक और लाला लाजपत राय का नाम आता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और छत्रपति शिवाजी का चरित्र लिखा। लाला लाजपत राय वेदों को हिन्दू धर्म की रीढ़ मानते थे। वो कहते थे कि विश्व के सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है।जबकि आज के वामपंथी असहिष्णुता की ढपली बजाते हैं। भगत सिंह के गुरु लाला लाजपत राय जिस हिन्दू धर्म को विश्व को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते थे, वामपंथी उसे गाली देते हैं। जिन वेदों को भी हिंदू धर्म की रीढ़ मानते थे, उन्हें वामपंथी ब्राह्मणों का ‘प्रोपेगेंडा’ कहते हैं। जब गुरु के लिए वामपंथियों के मन में कोई सम्मान नहीं है तो उसके शिष्य के लिए कैसे हो सकता है? क्यों न इसे ड्रामा माना जाए?
🚩 जनेऊधारी आजाद और भगत सिंह
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की तस्वीरों में आपने उन्हें नंगे बदन मूँछों पर ताव देते हुए और जनेऊ व धोती पहने हुए देखा होगा। वो ब्राह्मण थे। वो वाराणसी में संस्कृत के छात्र थे और उन्होंने इस भाषा के ज्ञान के कारण हिन्दू ग्रंथों का भी अध्ययन किया। भगत सिंह का उनके साथ अच्छा सम्बन्ध था। देश के लिए दोनों ने साथ मिल कर काम भी किया। लेकिन कभी भगत सिंह को इससे दिक्कत नहीं हुई।
🚩 वहीं आज के वामपंथी जनेऊ के बारे में क्या सोचते हैं? आज यही वामपंथी यज्ञोपवीत को अत्याचार का प्रतीक मानते हैं। वो कहते हैं कि ये ब्राह्मणों के खुद को श्रेष्ठ दिखाने की निशानी है। क्या भगत सिंह ने कभी चंद्रशेखर आजाद से ऐसा कहा होगा? बिलकुल नहीं। फिर किस मुँह से ये वामपंथी खुद की विचारधारा के भीतर भगत सिंह को बाँधने की कोशिश करते हैं? वीर सावरकर, लाला लाजपत राय और चंद्रशेखर आजाद के विचारों का ये सम्मान क्यों नहीं करते?जबकि इन तीनों के प्रति ही भगत सिंह की अपार श्रद्धा थी। भगत सिंह के पार्थिव शरीर को जलाने की अंग्रेजों ने कोशिश की थी, गुपचुप तरीके थे। लेकिन, बाद में परिवार ने पूरे वैदिक तौर-तरीके से रावी नदी के किनारे उनके शरीर को मुखाग्नि दी। क्या ये वामपंथी भगत सिंह के परिवार को भी कोसेंगे? उनका परिवार को स्वामी दयानन्द सरस्वती के आर्य समाज आंदोलन से काफी ज्यादा प्रभावित था।
आज वाले वामपंथी नहीं थे भगत सिंह, उनके कुछ सवाल थे
🚩 भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह ने दयानन्द सरस्वती को सुना था और वो उनसे खासे प्रभावित थे। वो माँस-शराब का सेवन नहीं करते थे, संध्या वंदन करते थे और यज्ञोपवीत धारण करते थे। उन्होंने एक पुस्तक लिख कर दिखाया कि कैसे सिख गुरु भी ��ेदों की शिक्षाओं को मानते थे। ‘ईश्वर की उपस्थिति’ और भारत के बड़े-बड़े संतों ने चर्चा की है ��र इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि वे सारे वामपंथी हैं।
🚩 भगत सिंह का वामपंथ टुकड़े-टुकड़े वाला नहीं था।1962 के युद्ध में चीन का समर्थन करने वाले और हालिया भारत-चीन तनाव के दौरान चीन की निंदा तो दूर, अपनी ही सरकार के स्टैंड का विरोध करने वाले वामपंथियों को समझना चाहिए कि भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर चिंतन किया था और अपने अध्ययन और विचारों के हिसाब से लेख लिखे, जिनके आधार पर उन्हें वामपंथी ठहराना सही नहीं है।भगत सिंह ने कभी ऐसा नहीं लिखा कि वो हिन्दू धर्म को नहीं मानते या फिर वो हिन्दू देवी-देवताओं से घृणा करते हैं। उनके पास बस कुछ सवाल थे, जो उनके लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ में सामने आता है। उनके विचार था कि फाँसी के बाद उनकी ज़िंदगी जब समाप्त होगी, उसके ब���द कुछ नहीं है। वो पूर्ण विराम होगा। वे पुनर्जन्म को नहीं मानते थे। वो प्राचीन काल में ईश्वर पर सवाल उठाने वाले चार्वाक की भी चर्चा करते थे।
🚩 उन्होंने लिखा है: “मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं। एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा। वहाँ सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घण्टों गायत्री मंत्र जपा करता था। उन दिनों मैं पूरा भक्त था। बाद में मैंने अपने पिता के साथ रहना शुरू किया। जहाँ तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं। उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतन्त्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली। किन्तु वे नास्तिक नहीं हैं। उनका ईश्वर में दृढ़ विश्वास है। वे मुझे प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ।”
ऊपर की पंक्तियों को देख कर और भगत सिंह के इस लेख को पढ़ कर स्पष्ट होता है कि कुछ रूढ़िवादी चीजें थीं, जिनसे उन्हें दिक्कतें थीं। वो ये मानने को तैयार नहीं थे कि मनुष्य अपने पुनर्जन्म के पापों की सज़ा इस जन्म में भोग रहा है। उनके सवाल थे कि राजा के विरुद्ध जाना हर धर्म में पाप क्यों है? उनके सारे धर्मों के बारे में एक ही विचार थे। वे दो समुदाय के लोगों के बीच धर्म को लेकर होने वाले तनाव के खिलाफ थे।
आज का वामपंथ, आज के वामपंथी, और भगत सिंह
🚩 स्वतंत्रता सेनानियों में सिर्फ बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय ही नहीं थे, जो हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान में विश्व रखते हुए धर्म और राष्ट्र को एक साथ देखते थे, बल्कि क्रांतिकारियों में भी कई ऐसे थे जो कर्मकांड करते थे, प्रखर हिंदूवादी थे। ‘बिस्मिल’ खुद आर्यसमाजी थे। बटुकेश्वर दत्त पूजन-वंदन किया करते थे।पंडित मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म की शिक्षा को महत्ता देते थे। इन सबके बारे में भगत सिंह के क्या ख्याल हैं? असल में आज का वामपंथ देश को खंडित करने वाला, चिकेन्स नेक को काट कर चीन को भारत पर हमला करने का मौके देने वाला और ‘नरेंद्र मोदी भ@वा है’ का नारा लगाने वाला है। जबकि भगत सिंह की विचारधारा क्रांति की थी। वो रूस के क्रांतिकारियों से इसीलिए प्रभावित थे, क्योंकि उन्हें उनलोगों से क्रान्ति के तौर-तरीकों की सीख मिलती थी। वो उन्हें अध्ययन कर के भारत के परिप्रेक्ष्य में आजमाने के तरीके ढूँढ़ते थे।
🚩 आज वामपंथियों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वे अपने देश की सेना का सम्मान कर सकें, तो फिर वो देश के लिए बलिदान देने वाले को अपनी विचारधारा का व्यक्ति कैसे बता सकते हैं? अरुंधति रॉय जैसे लोग तो विदेश में जाकर भारतीय सेना को अपने ही लोगों पर ‘अत्याचार करने वाला’ बताते हैं, क्या भगत सिंह किसी भी कीमत पर इस चीज को बर्दाश्त करते? देश के खिलाफ बोलने वालों के लिए क्रांति सिर्फ अपने ही देश के लोगों को मारना है।
🚩 आज नक्सली झारखण्ड से लेकर महाराष्ट्र तक सरकारी कर्मचारियों को मारते हैं, अपने ही देश के लोगों का खून बहाते हैं और संविधान को नहीं मानते हैं। क्या भगत सिंह को अपना बनाने का नाटक करने वाले वामपंथी वामपंथ के इस हिस्से की निंदा करने का भी साहस जुटा पाते हैं? नहीं। आज का वामपंथ चीनपरस्ती का वामपंथ है, जो अपने ही देश के इतिहास और संस्कृति से घृणा करता है, भगत सिंह का नाम भी लेने का इन्हें कोई अधिकार नहीं।
🚩 और हाँ, यज्ञोपवीत को ब्राह्मणों का आडम्बर और अत्याचार का प्रतीक बताने वाले वामपंथियों को ये बात भी पसंद नहीं आएगी कि भगत सिंह का भी यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। एक पत्र में उन्होंने अपने पिता को याद दिलाया है कि वे जब बहुत छोटे थे, तभी बापू जी (दादाजी) ने उनके जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि उन्हें वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1374190412810743809?s=19
🚩 आज के वामपंथी ये जान कर अच्छा महसूस नहीं करेंगे कि भगत सिंह ने देशसेवा का जो वचन निभाया, वो उनके यज्ञोपवीत संस्कार से उनके ही पूर्वजों ने दिया था। वामपंथ ने नहीं। किसी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी का नाम अपने निहित स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना कर उसके प्रेरकों को गाली देना, ये भगत सिंह का अपमान नहीं तो और क्या है? अखंड भारत के लिए लड़ने वाला ‘टुकड़े-टुकड़े’ के नारे लगाने वालों का आइडल कैसे हो सकता है?
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karanaram · 3 years ago
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🚩 गुरु अर्जुनदेव जी को शहीद होनेके बाद मुगलो का विनाश शुरू हो गया... 14 जून 2021
🚩शक्ति और शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी कि शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत कि सेवा में लगे रहते थे। श्री गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे।
🚩भारतीय दशगुरु परम्परा के पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी गुरु रामदास के सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ था। प्रथम सितंबर 1581 को वे गुरु गद्दी पर विराजित हुए। 8 जून 1606 को उन्होंने धर्म व सत्य कि रक्षा के लिए 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
🚩संपादन कला के गुणी गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन भाई गुरदास की सहायता से किया। उन्होंने रागों के आधार पर श्री ग्रंथ साहिब जी में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझ-बूझ का ही प्रमाण है कि श्री ग्रंथ साहिब जी में 36 महान वाणीकारों की वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के कुल 5894 शब्द हैं, जिनमें 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज के हैं। पवित्र बीड़ रचने का कार्य सम्वत 1660 में शुरू हुआ तथा 1661 में यह कार्य संपूर्ण हो गया।
🚩ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत कि, की ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है लेकिन बाद में जब अकबर को वाणी की महानता का पता चला, तो उन्होंने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढाके माध्यम से 51 मोहरें भेंट कर खेद ज्ञापित किया।
🚩अकबर कि मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर गद्दी पर बैठा जो बहुत ही कट्टर विचारों वाला था। अपनी आत्मकथा ‘तुजुके-जहांगीरी’ में उसने स्पष्ट लिखा है कि वह गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ रहे प्रभाव से बहुत दुखी था। इसी दौरान जहांगीर का पुत्र खुसरो बगावत करके आगरा से पंजाब की ओर आ गया।
🚩जहांगीर को यह सूचना मिली थी कि गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरो की मदद की है इसलिए उसने 15 मई 1606 ई. को गुरु जी को परिवार सहित पकड़ने का हुक्म जारी किया। उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर घरबार लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया।
🚩गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 17 जून 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा’ के तहत लोहे कि गर्म तवी प�� बिठाकर शहीद कर दिया गया। यासा के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है।
🚩गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो इन्हें ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया जहां गुरु जी का पावन शरीर रावी में आलोप हो गया। जिस स्थान पर आप ज्योति ज्योत समाए उसी स्थान पर लाहौर में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) का निर्माण किया गया है। गुरुजी ने लोगों को विनम्र रहने का संदेश दिया। आप विनम्रता के पुंज थे। कभी भी आपने किसी को दुर्वचन नहीं बोले।
🚩गुरवाणी में आप फरमाते हैं :
‘तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई॥
मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई॥
तरस पइया मिहरामत होई सतगुर साजण मिलया॥
नानक नाम मिलै ता जीवां तनु मनु थीवै हरिया॥’
🚩श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत के समय दिल्ली में मध्य एशिया के मुगल वंश के जहांगीर का राज था और उन्हें राजकीय कोप का ही शिकार होना पड़ा। जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुनदेव जी को मरवाने से पहले उन्हें अमानवीय यातानाएं दी।
🚩मसलन चार दिन तक भूखा रखा गया। ज्येष्ठ मास की तपती दोपहर में उन्हें तपते रेत पर बिठाया गया। उसके बाद खौलते पानी में रखा गया। परन्तु श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने एक बार भी उफ तक नहीं की और इसे परमात्मा का विधान मानकर स्वीकार किया।
🚩बाबर ने तो श्री गुरु नानक जी को भी कारागार में रखा था। लेकिन श्री गुरु नानकदेव जी ने तो पूरे देश में घूम-घूम कर हताश हुई जाति में नई प्राण चेतना फूंक दी। जहांगीर के अनुसार उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया।
🚩तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाई बन गया। तपती रेत ने भी उनकी निष्ठा भंग नहीं की। गुरु जी ने प्रत्येक कष्ट हंसते-हंसते झेलकर यही अरदास की-
🚩तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नाटीयनक मांगे॥
🚩जहांगीर द्वारा श्री गुरु अर्जुनदेव जी को दिए गए अमानवीय अत्याचार और अन्त में उनकी मृत्यु जहांगीर की योजना का हिस्सा थी। श्री गुरु अर्जुनदेव जी जहांगीर की असली योजना के अनुसार ‘इस्लाम के अन्दर’ तो क्या आते, इसलिए उन्होंने विरोचित शहादत के मार्ग का चयन किया। इधर जहांगीर कि आगे की तीसरी पीढ़ी या फिर मुगल वंश के बाबर की छठी पीढ़ी औरंगजेब तक पहुंची। उधर श्री गुरुनानकदेव जी की दसवीं पीढ़ी श्री गुरु गोविन्द सिंह तक पहुंची।
🚩यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही श्री नानकदेव की दसवीं पीढ़ी ने मुगलवंश की नींव में डायनामाईट रख दिया और उसके नाश का ��तिहास लिख दिया।
🚩संसार जानता है कि मुट्ठी भर मरजीवड़े सिंघ रूपी खालसा ने 700 साल पुराने विदेशी वंशजों को मुगल राज सहित सदा के लिए ठंडा कर दिया।
🚩100 वर्ष बाद महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में भारत ने पुनः स्वतंत्रता कि सांस ली। शेष तो कल का इतिहास है लेकिन इस पूरे संघर्षकाल में पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी कि शहादत सदा सर्वदा सूर्य के ताप की तरह प्रखर रहेगी।
🚩गुरु जी शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी थे। वे अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे । मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन शुभ कार्य किए।
🚩गुरु जी के शहीदी पर्व पर उन्हें याद करने का अर्थ है धर्म कि रक्षा आत्म-बलिदान देने को भी तैयार रहना। उन्होंने संदेश दिया कि महान जीवन मूल्यों के लिए आत्म-बलिदान देने को सदैव तैयार रहना चाहिए, तभी कौम और राष्ट्र अपने गौरव के साथ जीवंत रह सकते हैं।
🚩आज भी हिन्दू संतो को सताया जा रहा है, कहि हत्या की जा रही है तो कहि झूठे केस बनाकर जेल भिजवाया जा रहा है ऐसा लग रहा है कि अभी भी मुगल काल चल रहा है जो साधु-संत ईसाई धर्मान्तरण रोकते है, विदेशी प्रोडक्ट बन्द करवाकर स्वदेशी अपनाने के लिए करोड़ो लोगो को प्रेरित करते है, विदेशों में जाकर हिन्दू धर्म की महिमा बताते है, करोड़ो लोगों का व्यसन छुड़वाते है, करोड़ो लोगो को सनातन हिन्दू संस्कृति के प्रति प्रेरित करते हैं, जन-जागृति लाते है, गरीबों में जाकर जीवनुपयोगी वस्तुओं का वितरण करते है, गौशालायें खोलते है उन महान संतो को विदेशी ताकतों के इशारे पर मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस में जेल भिजवाया जा रहा है इससे साफ पता चलता है कि मुगल तो गये लेकिन आज भी उनकी नस्ले देश में है जो ये षड्यंत्र करवा रही है।🚩वर्तमान में भी हिन्दू समाज को जगे रहना जरूरी है नही तो विदेशी ताकते देश को गुलाम बनाने कि ताक में बैठी है।
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rajeshksahu · 6 years ago
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गुरु अर्जुन देवजी सबसे पहले शहीद हुए थे, उसके बाद मुगलो का विनाश शुरू हो गया...
गुरु अर्जुन देवजी सबसे पहले शहीद हुए थे, उसके बाद मुगलो का विनाश शुरू हो गया…
16 June 2018 http://azaadbharat.org श्री गुरु अर्जुन देवजी शहीदी दिवस – 17जून
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शक्ति और शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी कि शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत कि सेवा में लगे रहते थे। श्री गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले…
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rajeshksahu · 7 years ago
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श्री गुरु अर्जुन देवजी शहीदी दिवस - 8 जून
श्री गुरु अर्जुन देवजी शहीदी दिवस – 8 जून
श्री गुरु अर्जुन देवजी शहीदी दिवस – 8 जून शक्ति और शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी की शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते थे। श्री गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे। Arjun Dev Shahidi diwas #भारतीय…
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