#WednesdayMotivation #Wednesdaythoghts #Santrampalji कबीर परमात्मा ही सृष्टि के रचयिता है। संख्या नं 920 सामवेद के उतार्चिक अध्याय 5, खंड 4, श्लोक 2 सर्व सृष्टि रचन हार अविनाशी परमात्मा भक्ति के पाप कर्मों को भी नष्ट करके पवित्र करने वाला स्वयं कबीर देव है।
कबीर, बेद मेरा भेद है, हम बेदन के माहीं।
जौन बेद से मैं मिलूं, बेद जानते नाहीं।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि चारों वेद मेरी महिमा बता रहे हैं। वेदों में वर्णित भक्ति विधि अधूरी है। इसलिए इन चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) में वर्णित विधि से मैं नहीं मिल सकता। जिस सूक्ष्म वेद (सूक्ष्मज्ञान=तत्त्वज्ञान) में मेरे पाने की सम्पूर्ण विधि है, उसका ज्ञान चारों वेदों में नहीं है।
वर्तमान समय में सैकड़ों गुरु हो गए हैं और सभी कहते हैं कि उनकी भक्ति करने से मोक्ष होगा, वे ही पूर्ण गुरु हैं। लेकिन पूर्ण गुरु कौन है, इसकी पहचान गीता जी के अध्याय 15 श्लोक 1 में बताई गई है कि जो संत संसार रूपी उलटे लटके हुए वृक्ष के सभी विभागों को वेदों के अनुसार बता देगा, वह तत्वदर्शी संत होगा। इस रहस्य को जानने वाले तत्वदर्शी संत वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
पूर्ण गुरु से ही मोक्ष संभव है और वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज ही पूर्ण गुरु हैं। वे गीता के अध्याय 17 श्लोक 23, सामवेद मंत्र संख्या 822 और कुरआन शरीफ के सूरह शूरा 42 आयत 2 में वर्णित पूर्ण परमात्मा की भक्ति के सांकेतिक मंत्रों का रहस्य उजागर कर अपने अनुयायियों को प्रदान कर रहे हैं। इन मंत्रों का सुमिरन करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पवित्र हिन्दू समाज में चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। माना जाता है कि वेदों में परमेश्वर की पूजा व साधना का सर्वोत्तम ज्ञान है। आश्चर्य की बात है कि 80% हिन्दू समाज वेदों के विपरीत भक्ति कर्म करते हैं तथा 80% हिन्दुओं ने वेदों की शक्ल भी नहीं देखी है।
(विशेष:- हिन्दू समाज श्रीमद्भगवत गीता को चारों वेदों का सार तथा संक्षिप्त रूप मानते हैं। गीता में वेद ज्ञान निष्कर्ष रूप में संक्षेप में कहा है। यह भी निर्विरोध राय है।)