जानना जरूरी है:आखिर जोमैटो, पेटीएम और LIC को IPO लाने की जरूरत क्यों? IPO में हम कैसे पैसा लगा सकते हैं और 2021 में निवेशकों को IPO से कितनी कमाई हुई?
अजय शर्मा । बिज़नेस : IT सेक्टर की दिग्गज कंपनी इंफोसिस का नाम तो आपने सुना ही होगा। इसका IPO फरवरी 1993 में लॉन्च हुआ। इसमें एक शेयर की कीमत 95 रुपए थी और एक्सचेंज पर शेयर की लिस्टिंग 145 रुपए के प्रीमियम पर 14 जून 1993 को हुई। आज ये शेयर 1600 के करीब चल रहा है। अगर आपने इंफोसिस के 100 शेयर्स के लिए 1993 में केवल 10,000 रुपए का निवेश किया होता, तो आज आप लखपति बन गए होते।
कोरोना के दौरान यानी मार्च 2020 से अब तक IPO बाजार गुलजार रहा है। 2021 में अब तक 28 IPO आ चुके हैं। इस साल कुछ IPOs से निवेशकों को 90% तक का रिटर्न मिला है। इस साल पेटीएम समेत 10 बड़े IPO आने वाले हैं।
ऐसे में हम आपको यहां समझा रहे हैं कि IPO होता क्या है, क्यों किसी कंपनी को IPO लाने की जरूरत होती है, हम इसमें कैसे पैसा लगा सकते हैं और 2021में अभी तक आए IPOs से निवेशकों की कितनी कमाई हुई?
IPO क्या होता है?
जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर्स को आम लोगों के लिए जारी करती है तो इसे इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी IPO कहते हैं। कंपनी को कारोबार बढ़ाने के लिए पैसे की जरूरत होती है। ऐसे में कंपनी बाजार से कर्ज लेने के बजाय कुछ शेयर पब्लिक को बेचकर पैसा जुटाती है। इसी के लिए कंपनी IPO लाती है।
IPO में कौन प���सा लगा सकता है?
कोई भी वयस्क व्यक्ति IPO में पैसा लगा सकता है, जो कानूनी अनुबंध की समझ रखता हो। इसके लिए कुछ आवश्यक शर्तें भी हैं…
IPO में शेयर खरीदने के इच्छुक निवेशक के पास देश के आयकर विभाग द्वारा जारी किया गया पैन कार्ड होना चाहिए।
वैलिड डीमैट अकाउंट भी होना चाहिए।
IPO में कितना पैसा लगा सकते हैं?
आप IPO में बिल्कुल आसानी से पैसा लगा सकते हैं। कोई भी कंपनी पब्लिक इश्यू के जरिए पैसा जुटाने के लिए IPO 3-10 दिन तक ओपन रखती है। मतलब कोई भी निवेशक IPO को 3 से 10 दिनों के बीच ही खरीद सकता है। हालांकि, ज्यादातर कंपनियों का IPO 3 दिन के लिए खुला होता है।
इसमें कंपनियां प्रति शेयर प्राइस तय करती हैं और उसी हिसाब से लॉट साइज भी तय किया जाता है। एक लॉट में उतने ही शेयर शामिल होते हैं, जिनका कुल अमाउंट 15 हजार रुपए से ज्यादा नहीं होता। लॉट, शेयर्स का एक बंडल होता है।
निवेशक IPO में कंपनी की ऑफिशियल साइट पर जाकर या रजिस्टर्ड ब्रोकरेज के जरिए पैसा लगा सकते हैं या फिर आप अपने मोबाइल ऐप से भी पैसा लगा सकते हैं। लेकिन एक आम निवेशक 2 लाख रुपए से ज्यादा का इश्यू नहीं खरीद सकता है।
IPO में शेयर्स की कीमत कैसे तय होती है?
IPO की कीमत प्राइस बैंड या फिक्स्ड प्राइस इश्यू से तय होती है। IPO में प्राइस बैंड और न्यूनतम लॉट साइज कंपनी के प्रमोटर्स और शेयरहोल्डर्स, IPO मैनेजर के साथ विचार-विमर्श के बाद तय करते हैं।
IPO में पैसा लगाते समय किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?
ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) जरूर देखें: यह बताता है कि कंपनी जुटाए गए फंड का इस्तेमाल कहां करेगी। साथ ही निवेशकों के लिए संभावित रिस्क की भी जानकारी देती है।
IPO से जुटाए गए फंड का इस्तेमाल कहां होगा: ज्यादातर कंपनियां IPO से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल कर्ज चुकाने और बिजनेस को बढ़ाने पर करती हैं। अगर ऐसा है तो बेहतर रिटर्न की संभावना बढ़ जाती है।
कंपनी के कारोबार को समझें: IPO में निवेश करने से पहले बतौर निवेशक इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए कि कंपनी का कारोबार क्या है? उस कारोबार में ग्रोथ की संभावनाएं कैसी हैं? अगर कंपनी का कारोबार अच्छा चल रहा है और ग्रोथ की संभावनाएं अच्छी हैं तो निवेश किया जा सकता है।
प्रमोटर बैकग्राउंड और मैनेजमेंट टीम: एक निवेशक को जरूर जान लेना चाहिए कि कंपनी कौन चला रहा है? कंपनी के जुड़े सभी कामों में अहम भूमिका निभाने वाले प्रमोटर्स और मैनेजमेंट कैसा है? क्योंकि कंपनी को आगे बढ़ाने में मैनेजमेंट की भूमिका सबसे अहम होती है।
बाजार में कंपनी की क्षमता: कंपनी के पास अच्छा बिजनेस मॉडल होना चाहिए। अगर कंपनी फंड जुटाने के बाद अच्छा प्रदर्शन करती है, तो निवेशकों को IPO के दौरान किए गए निवेश पर अच्छा रिटर्न मिल सकता है।
कंपनी की स्ट्रेंथ और स्ट्रैटजी: निवेशक DRHP से कंपनी की स्ट्रेंथ और स्ट्रैटजी के बारे में पता लगा सकते हैं। यहां इंडस्ट्री में कंपनी की क्या पोजिशन है इसे जानने की कोशिश की जानी चाहिए।
कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ और वैल्यूएशन: निवेशकों को IPO में पैसा लगाने से पहले कंपनी की फाइनेंशियल कंडीशन को समझना चाहिए। पिछले सालों में कंपनी को कितना फायदा या घाटा हुआ है और आय में कितनी कमी या बढ़ोतरी हुई है।
सेगमेंट की अन्य कंपनियों के साथ तुलना: IPO लाने वाली कंपनी की तुलना उसी सेगमेंट की अन्य कंपनी के साथ करनी चाहिए। इसके लिए DRHP में फाइनेंशियल नंबर और वैल्यूएशन के डीटेल को आधार बनाना चाहिए।
रिस्क फैक्टर: DRHP से रिस्क फैक्टर यानी कंपनी से जुड़ी वो बातें जान सकते हैं, जो भविष्य में कंपनी के लिए खतरा बन सकती हैं। जैसे, कंपनी पर किसी तरह के मुकदमे दर्ज हैं या नहीं।
निवेशकों का निवेश पर स्पष्ट रहना: IPO में पैसे लगाते समय यह साफ कर लेना चाहिए कि निवेश लिस्टिंग गेन के लिए है या फिर लॉन्ग टर्म निवेश के लिए। क्योंकि लिस्टिंग गेन बाजार के सेंटीमेंट पर निर्भर करता है और लॉन्ग टर्म निवेश कंपनी की ग्रोथ और कामकाज पर निर्भर करता है।
IPO में पैसा लगाने के बाद हमें कितने दिन बाद शेयर मिलेगा और एक्सचेंज पर शेयर कब लिस्ट होगा?
पब्लिक इश्यू बंद होने के 3 कारोबारी (वर्किंग) दिन बाद शेयर अलॉट होते हैं। यानी निवेशक के डीमेट अकाउंट में शेयर आ जाएंगे। शेयर्स की लिस्टिंग की बात करें तो यह IPO बंद होने के अगले 6 कारोबारी दिन बाद दोनों एक्सचेंज BSE और NSE पर लिस्ट होते हैं। स्टॉक मार्केट में लिस्ट होने के बाद शेयर सेकेंड्री मार्केट में खरीदे और बेचे जा सकते हैं।
IPO बंद होने के बाद शेयरों का अलॉटमेंट कैसे होता है?
मान लीजिए कोई कंपनी IPO में अपने 100 शेयर लेकर आई है, लेकिन 200 शेयरों की मांग आ जाए तो क्या होता है? इसके लिए कंप्यूटराइज्ड लॉटरी के जरिए आई हुई अर्जियों का चयन होता है। जैसे, किसी निवेशक ने 10 शेयर मांगे हैं तो उसे 5 शेयर भी मिल सकते हैं या किसी निवेशक को शेयर नहीं मिलना भी संभव होता है।
क्या एक्सचेंज पर शेयर्स की लिस्टिंग बाजार के मूड पर भी निर्भर होती है?
हां, अगर मार्केट सेंटीमेंट पॉजिटिव रहा तो ज्यादातर मौकों पर शेयर अपने इश्यू प्राइस से ऊपर लिस्ट होते हैं। इसे प्रीमियम पर लिस्टिंग कहते हैं, लेकिन मार्केट में बिकवाली रहे तो शेयर अपने इश्यू प्राइस से कम भाव पर लिस्ट होता है, जिसे डिस्काउंट पर लिस्टिंग कहते हैं।
IPO में पैसा लगाने वाली कैटेगरी कौन-कौन सी हैं?
2 लाख रुपए तक के शेयर्स के लिए आवेदन करने वाले इनवेस्टर्स को रिटेल यानी आम निवेशकों की कैटेगरी में रखा जाता है।
रिटेल निवेशकों से ज्यादा निवेश करने वाले को नॉन-इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स (NII) कहते हैं।
एक अन्य कैटेगरी क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIB) की है, जिनमें पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस कंपनियां और इनवेस्टमेंट बैंक शामिल होते हैं। ये स्टॉक मार्केट में बड़ी वॉल्यूम में ट्रेडिंग करते हैं।
अगर IPO में कंपनी के शेयर नहीं बिकते हैं तो क्या होगा?
मान लीजिए कोई कंपनी अपना पब्लिक इश्यू (IPO) लाती है और निवेशकों ने शेयर नहीं खरीदा। फिर ऐसी स्थिति में कंपनी अपना IPO वापस ले सकती है। मार्केट रेगुलेटर सेबी का नियम कहता है कि अगर IPO 90% से कम सब्सक्राइब हुआ, तो इसे फेल माना जाता है।
ग्रे मार्केट क्या होता है और इसके क्या मायने हैं?
ग्रे मार्केट IPO में डील करने का अनाधिकारिक प्लेटफॉर्म है। ये गैर-कानूनी होने के बावजूद काफी पॉपुलर है। हालांकि, इसमें चुनिंदा लोग ही ट्रेडिंग करते हैं। इसमें आपसी भरोसे के साथ फोन पर ट्रेडिंग होती है। इसके लिए ऑपरेट करने वाले का पर्सनल कॉन्टैक्ट होना जरूरी है। ग्रे मार्केट में डील पूरा होने की गारंटी नहीं होती। डील एक्सचेंजों पर लिस्टिंग के दिन के लिए रिजर्व होते हैं। अहमदाबाद, मुंबई, दिल्ली, राजकोट IPO ग्रे मार्केट के बड़े सेंटर हैं। जयपुर, इंदौर, कोलकाता में भी ये कारोबार होता है।
14-16 जुलाई के दौरान ऑनलाइन फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो का IPO आया, जो 38 गुना से ज्यादा भरा। एक्सचेंज पर इसकी लिस्टिंग 116 रुपए पर हुई, जबकि इश्यू प्राइस 72-76 रुपए प्रति शेयर ही थी। यानी निवेशकों को प्रति शेयर 40 रुपए का मुनाफा हुआ। IPO को मिल रहे शानदार रिस्पॉन्स की बड़ी वजह देश में बढ़ रहे रिटेल निवेशकों की संख्या और निवेश से जुड़ी जानकारी है। अब निवेशकों को आने वाले दिनों में पेटीएम और LIC जैसे बड़े और धमाकेदार IPO का बेसब्री से इंतजार है।
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Exclusive: कोरोना से कराह रही काशी को पीएम के दूत अरविंद शर्मा ने कैसे उबारा, उन्हीं की जुबानी Divya Sandesh
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Exclusive: कोरोना से कराह रही काशी को पीएम के दूत अरविंद शर्मा ने कैसे उबारा, उन्हीं की जुबानी
लखनऊ
अप्रैल महीने में कोरोना की दूसरी लहर के वक्त पूर्वांचल में हालात बेकाबू हो रहे थे। प्रदेश से सर्वाधिक प्रभावित 3 जिलों में वाराणसी जिला भी शामिल था। वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण मीडिया के सेंटर में था और स्थितियों के खराब होने की रिपोर्ट्स हर रोज सामने आ रही थीं। इन सब के बीच पीएम के दूत के रूप में पूर्व IAS अफसर को वाराणसी पहुंचकर कोरोना नियंत्रण की जिम्मेदारी सौंपी गई। पीएम मोदी के सबसे खास अफसर कहे जाने वाले अरविंद शर्मा ने
नवभारत टाइम्स के
श्रेयांश त्रिपाठी से अपनी खास बातचीत में बताया कि किस तरह वाराणसी समेत पूरे पूर्वांचल में कोरोना नियंत्रण की चुनौतियों का दिन रात की मेहनत के बाद अंत किया गया..
सवाल:
कोरोना के संक्रमण काल में आपको एक बड़ा काम दिया गया। जब आप दिल्ली से वाराणसी पहुंचे तो पहली चुनौतियां क्या थीं और उसको कैसे हैंडल किया?
जवाब: मुझे 13 तारीख को दोपहर के वक्त प्रधानमंत्री कार्यालय से निर्देश मिले। ये निर्देश संयुक्त रूप से पीएमओ और माननीय मुख्यमंत्री जी की ओर से थे। मैं दिल्ली से पहले लखनऊ पहुंचा और फिर वाराणसी के लिए निकला।मुझे दो कमिश्नरी की जिम्मेदारी दी गई थी। एक वाराणसी का मंडल था जिसमें चार जिले आते हैं और दूसरा, आजमगढ़ जिसमें 3 जिले आते हैं।
मैंने दोनों कमिश्नरी में बात करना शुरू किया कि क्या स्थिति है? उन लोगों ने मुझे इनपुट दिया कि यहां वेंटिलेटर, दवा आदि की कमी है। इसके बाद मैंने इस पर सोचना शुरू किया कि इन चीजों की कमी कैसे पूरी कर सकते हैं? ऐसे में बनारस से लखनऊ जाने के रास्ते में जो समय था, उसमें मैंने सोचने की कोशिश की कि ये चीजें कहां से मिल सकती हैं? बनारस पहुंचने से पहले मोटी-मोटी चीजें कि इनकी सप्लाई कहां से हो सकती है, इसका आइडिया दिमाग में आ गया था।
जब मैं वाराणसी पहुंचा तो कमिश्नर से चर्चा की। मुझे बताया गया कि एचएफएससी वेंटिलेटर, जिससे हाई फ्लो के साथ मरीज को ऑक्सिजन दी है, उसकी कमी है। उस रात कुल 54 मशीनें पूरे बनारस जिले में थीं। इसकी डिमांड काफी बढ़ गई थी। दूसरी बात कही गई कि ऑक्सिजन सिलेंडर न होने की वजह से ऑक्सिजन गैस का वितरण नहीं हो पा रहा है। तीसरी बात ऑक्सिजन प्लांट बनाने की।
‘रात 1 बजे महाराष्ट्र के अफसरों से मांगी मदद’
अगर ये हो जाए काफी मदद होगी। पता चला कि इसे लगाने वाली एजेंसियां कम हैं। एक औरंगाबाद में एजेंसी है। उसी की मोनोपॉली है। इसके बाद मैंने उसका डिटेल लेकर अपने कुछ महाराष्ट्र कैडर के अधिकारी मित्रों से रात 1 बजे बात की। मैंनें उन अफसरों से कि डीएम से बोलिए कि हमारी मदद करें। सुबह उन्होंने बताया कि उसके पास बहुत ऑर्डर है। वो किसी को हां नहीं बोल रहा है और नया ऑर्डर भी नहीं ले रहा है। हमने कहा कि कुछ भी करो कि वह हमारा ऑर्डर ले और उसको प्राथमिकता दे। इसमें हमने प्रधानमंत्री का भी नाम लिया कि ऐसे काम को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इसके बाद अगले दिन एक वेंडर वहां से मशीन लेकर रवाना हुआ।
‘तुर्की और गुजरात से काशी पहुंची मदद’
वेंटिलेटर के लिए मैंने भारत सरकार से बात की। कुछ प्राइवेट कंपनियों से भी बात की गई। दोनों तरफ से लोग काम पर लग गए। खुशी की बात है कि तीन-चार दिन के अंदर ही 40 वेंटिलेटर वाराणसी पहुंच गए। इनमें से 25 भारत सरकार की ओर से आए थे और 15 प्राइवेट कंपनियों से मंगाए गए। इसी तरह से ऑक्सिजन सिलेंडर की भी व्यवस्था की गई। इनमें से 2800 सिलेंडर स्थानीय उद्योगों से और 400 गुजरात से ट्रेन से मंगाए गए। एक हफ्ते के अंदर ही वो भी वाराणसी आ गए थे। इसके अलावा सीएसआर कंपनियों से ऑक्सिजन कंसंट्रेटर के लिए बात की। उन्होंने कहा कि हम मदद कर सकते हैं, लेकिन देश में कंसंट्रेटर उपलब्ध नहीं है। हम सभी ने इन कंपनियों से कहा कि देश-विदेश से कहीं से कंसंट्रेटर का इंतजाम कीजिए। इस अनुरोध को स्वीकार किया गया और इसके बाद ऑक्सिजन कंसंट्रेटर की पहली खेप तुर्की से आई। ऐसे ही रेमडेसिविर इंजेक्शन गुजरात में बनती है। हमने पुराने संबंधों का और प्रधानमंत्री जी के नाम का उपयोग करके उसकी सप्लाई सुनिश्चित की। मुझे खुशी है कि तीन-चार दिन के अंदर हमने व्यवस्था में सभी गैप भरना शुरू कर दिया और स्थिति नियंत्रण में आ गई।
‘स्थानीय स्तर पर बनाया गया स्पेशल कंट्रोल रूम’
अरविंद शर्मा ने आगे कहा, ‘अस्पतालों में बेड्स की संख्या बढ़ाने के लिए तो स्थानीय स्तर पर ही काम करना था। सभी अस्पतालों में जा-जाकर पता लगाया। लोगों से बातचीत की। बात करने से रास्ता निकलता ही है। इस तरह से काम हुआ। दूसरे हफ्ते काफी अफरा-तफरी मची थी। हमने सोचा कि महामारी मानवीय कंट्रोल की बात नहीं है। ऐसे में मेरे विचार में आया कि क्यों न कंट्रोल रूम बनाया जाए। इसके बाद सिगरा में इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर का अध्ययन किया। हमें पता चला कि कंट्रोल रूम में लिमिटेड संख्या में फोन हैं और और उसका कोई डेडिकेटेड फोकस भी नहीं था।
‘स्पेशल ट्रेनिंग देकर बताया, मरीजों से कैसे करें बात’
इसके बाद मैंने वहां से बाकी विषयों पर काम करने वाले लोगों को कहा कि आप अपने-अपने ऑफिस में जाकर काम करें और फिर हमने उसका नाम काशी कोविड रिस्पॉन्स सेंटर कर दिया। यहां पर कोरोना के मरीजों से बात करने की व्यवस्था कराई गई। कुछ प्रोटोकॉल निर्धारित किए कि फोन करने वाले से क्या प्रश्न पूछने हैं। वहां काम करने वाले हर किसी को ट्रेनिंग दी गई। कंट्रोल रूम बनाने से लोगों को मार्गदर्शन मिला, जो उस समय काफी घबराए हुए थे।
सवाल:
ऑक्सिजन सिलेंडर के वितरण का काम डीएम के हवाले करना पड़ा। इसकी जरूरत कैसे पड़ी।
जवाब: सिलेंडर के लिए दो तरह की व्यवस्था की गई थी। डीएम उनमें इन्वॉल्व थे। डीएम जो कर रहे थे, वो अस्पतालों के लिए था। डीएम और कमिश्नर दोनों ने इसे अच्छे से हैंडल किया। इसके अलावा समानांतर रूप से एक एनजीओ की मदद से लोगों को प्राइवेट ऑक्सिजन सिलेंडर खरीदने के लिए भी व्यवस्था की गई।
सवाल: छोटे जिलों के अस्पतालों में वेंटिलेंटर चलाने के स्टाफ की कमी की बात सामने आई थी। इस समस्या को कैसे दूर किया गया और इसके लिए थर्ड वेव को देखते हुए क्या प्लान बनाया गया है?
जवाब: ऐसा मामला बलिया में सामने आया था। वहां जब बात की गई थी तो पता चला कि वेंटिलेटर तो है लेकिन वह ऐक्टिवेट नहीं हो पा रहा है। इसके बाद वहां कंपनी वालों को बुलवाया गया और वेंटिलेटर को ऐक्टिवेट कराया गया। आने वाले वक्त के लिए भी हम ऐसी व्यवस्था कर रहे हैं कि जिन जिलों में वेंटिलेटर हैं, उन्हें चलाने की पर्याप्त व्यवस्था कर दी जाए।
सवाल: वाराणसी के बीएचयू पर आसपास के जिलों का भी काफी लोड है। इसकी क्या व्यवस्था की जा रही है?
जवाब: निश्चित रूप से ये बात सही है। वाराणसी के अस्पतालों में पूर्वांचल के मरीजों का ��ोड है। फिलहाल कोरोना के वक्त में हमने आजमगढ़ के मेडिकल कॉलेज को एक वैकल्पिक सेंटर बनाया है। इस अस्पताल को हमने ऑक्सिजन कंसंट्रेटर, वेंटिलेटर और दवाएं उपलब्ध कराया है, ताकि वाराणसी के लिए आने वाले मरीजों को एक व्यवस्था मिल सके और वाराणसी में लोड कम हो।आजमगढ़ के मेडिकल कॉलेज को सेकेंड्री प्लैटफॉर्म के रूप में खड़ा किया। इसके अलावा मऊ और बलिया में भी मदद भेजी गई। पिछले तीन दिन में 50 ऑक्सिजन सिलिंडर बलिया में, 40 मऊ में 40 आजमगढ़ में भेजे गए हैं।
सवाल: कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनजर अब क्या तैयारियां हैं?
जवाब: हाल ही में मैंने कुछ अफसरों और बाल रोग विशेषज्ञों की एक मीटिंग बुलाई थी कि थर्ड वेव में क्या करना चाहिए? इस मीटिंग में यह निष्कर्ष निकलकर आया कि स्थानीय स्तर पर पहले अस्पतालों को चिह्नित किया जाए और उनकी कमियों को दूर किया जाए। दवाओं का प्रोटोकॉल निर्धारित किया जाना चाहिए। स्टाफ को भी वेंटिलेटर-कंसंट्रेटर चलाने की ट्रेनिंग के लिए प्रोग्राम बनाया गया है। मैंने पिछले हफ्ते इस तरह की ट्रेनिंग के वर्कशॉप का उद्घाटन किया। इसमें पूर्वांचल के काफी जिलों के लोग जुड़े थे।
सवाल: वाराणसी में साढ़े 700 बेड का जो अस्पताल बनवाया गया है वह तीसरे वेव में जारी रहेगा?
जवाब: इसमें कोई शक नहीं है। इस अस्पताल को अभी जारी रखा जाएगा। फिलहाल इसे हटाने का कोई भी प्रस्ताव नहीं है और सरकार इसे जारी रखने के पक्ष में है।
सवाल: कोरोना की दूसरी लहर में आपसे व्यक्तिगत किसी ने मदद के लिए अप्रोच किया कि नहीं?
जवाब: मुझे भी आप सभी की तरह ही दिन में सैकड़ों फोन आते थे। हर बार प्रयास किया जाता था। उद्देश्य होता था कि उन लोगों की खास मदद की जाए जो गंभीर हैं। इसके अलावा कई ऐसे मरीज होते थे, जिन्हें ये नहीं पता होता था कि कोरोना हो जाए तो करना क्या है। ऐसे लोगों की कॉल्स को कंट्रोल रूम में ट्रांसफर कर दिया जाता था ताकि वहां बैठी टीम उन्हें गाइड कर सके। कई बार छोटे-छोट��� सवाल आते थे कि टीका और टेस्टिंग के लिए कहां जाएं? इसके लिए एक मैप बनवाकर टेक्नॉलजी की मदद से डॉक्टरों के नंबर और केंद्रों जैसे पब्लिक इन्फॉर्मेशन को कवच ऐप के जरिए लोगों तक पहुंचाया। कई लोगों को ऐंबुलेंस-बेड नहीं मिल रहा था, इनमें से कई मामले को कंट्रोल रूम की मदद से समाधान तक पहुंचाया गया। सारे प्रयासों से कोरोना पर रोक लगने लगी और धीरे-धीरे लोगों के फोन आने कम हो गए।
सवाल: गांवों में बुजुर्गों का टीकाकरण एक बड़ी समस्या है? वो नहीं मानते कि हमको टीका लगवाना है। इसके लिए क्या प्लान है?
जवाब: बुजुर्गों के टीकाकरण को लेकर एक प्लान बनाया गया है और इसकी एक विस्तृत योजना पर काम करना होगा। जैसे-जैसे टीकाकरण के काम में आगे बढ़ेंगे, इसमें जो गैप्स हैं, उनको भरना ही पड़ेगा। इसके लिए मोबाइल यूनिट्स लेकर वाहनों पर गांव-गांव टीकाकरण के लिए जाना पड़ेगा। इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
सवाल: सरकार और व्यवस्था पर ये आरोप लगता है कि वैक्सीन की पर्याप्त सप्लाई नहीं है?
जवाब: वैक्सीन का वॉल्युम बढ़ना ही है। पीएम ने कहा कि और भी लोग आ रहे हैं। स्वाभाविक रूप से सप्लाई बढ़ाने पर जोर है और ये काम जल्दी ही हो जाएगा। लॉजिस्टिक की जो समस्या है, वह भी जल्दी ही सुलझा ली जाएगी। इसमें कोई संशय की बात नहीं है। लोगों के मन में शंका है कि वैक्सीन को नहीं लगवाना चाहिए। आपके माध्यम से यही कहूंगा कि लोगों को किसी भी प्रकार का शक नहीं रखना चाहिए। वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित है।
सवाल: कोरोना की पहली लहर के दौरान आप अफसर की भूमिका में थे, इस बार भूमिका MLC की है।
ब्यूरोक्रेट और राजनेता, दोनों में कौन सी भूमिका आपको पसंद है?
जवाब: मैं तो कहूंगा कि मुझे दोनों ही परिस्थितियां अच्छी लगती थीं। दोनों ही काम उतनी ही निष्ठा और तत्परता से किया। पहली बार जब कोरोना की लहर आई तो उस समय भी प्रधानमंत्री कार्यालय में ही था। पीएम की ओर से जो टीम बनाई गई थी, उसमें इक्विपमेंट जुटाने का जिम्मा हम पर था। मीटिंग में हम परेशान थे, कि हमारे देश में पीपीई किट, मास्क हमारे देश में बनते नहीं थे। फिर हमने कई प्राइवेट कंपनियों से बात की। मैंने स्वयं बहुत सी कंपनियों से बात की कि भाई तुम तौलिया बनाते हो तो मास्क क्यों नहीं बनाते हो। फिर उन लोगों ने बनाना शुरू किया। 15 दिन के अंदर वो गैप्स पूरे हो गए और जल्द ही भारत मास्क और पीपीई किट का एक्सपोर्टर हो गया। तो उसका (अफसरी) अपना अलग आनंद था। जनप्रतिनिधि बनने का अपना आनंद है।
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