#संसाधनों का संरक्षण
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helputrust · 2 years ago
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अपने अपने संसाधनों से गौरैया के संरक्षण में सभी अपना योगदान अवश्य दें – हर्ष वर्धन अग्रवाल 
लखनऊ 20.03.2023 | विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा "सेव द स्पैरो अवेयरनेस प्रोग्राम" के अंतर्गत ट्रस्ट के सेक्टर 25, इंदिरा नगर, कार्यालय में शहतूत के पेड़ पर गौरैया संरक्षण हेतु घोसले लगाए गए तथा गौरैया संरक्षण की अपील की गई |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि "विश्व गौरैया दिवस (World Sparrow Day) हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है | विश्व के कई देशों में गौरैया पाई जाती है परंतु बढ़ते प्रदूषण सहित कई कारणों से गौरैया की संख्या में काफी कमी आई है | गौरैया हमारी प्रकृति के अनुकूल होते हुए भी, उनकी संख्या में कमी होती जा रही है। इससे न केवल हमारे प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन बिगड़ रहा है बल्कि उनके अस्तित्व को खतरा भी है । विश्व गौरैया दिवस लोगों में गौरैया के प्रति जागरुकता बढ़ाने और उसके संरक्षण के लिए मनाया जाता है | आज इस दिवस पर आइए हम सब यह संकल्प लें कि अपने आसपास के पर्यावरण को शुद्ध रखते हुए तथा पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का वहन करते हुए पशु पक्षियों की रक्षा करेंगे तथा संपूर्ण वातावरण को चिड़ियों की मधुर आवाज से आनंदमई रखेंगे|" हम आप सभी से अपील करते हैं कि आप भी अपने संसाधनों से गौरैया के संरक्षण में अपना योगदान दें ।
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hardinnews0207 · 1 year ago
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Rajasthan's Evolving Geopolitical Landscape: A Look at the State's New Map
परिचय
क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जीवंत परंपराओं और विविध भूगोल के लिए जाना जाता है। यह राजसी राज्य पूरे इतिहास में कई साम्राज्यों और राजवंशों का उद्गम स्थल रहा है, जो अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गया है जो इसकी पहचान को आकार देती रहती है। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान की भौगोलिक सीमाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे गए हैं, और हाल के दिनों में, एक नया मानचित्र सामने आया है, जो राज्य के भू-राजनीतिक परिदृश्य को फिर से परिभाषित करता है। इस लेख में, हम राजस्थान के विकसित होते मानचित्र और इन परिवर्तनों में योगदान देने वाले कारकों का पता लगाएंगे।
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ऐतिहासिक सीमाएँ
नए मानचित्र पर गौर करने से पहले राजस्थान की ऐतिहासिक सीमाओं को समझना जरूरी है। राज्य का भूगोल हमेशा वैसा नहीं रहा जैसा हम आज जानते हैं। राजस्थान का इतिहास विभिन्न राजवंशों के उत्थान और पतन के कारण क्षेत्रीय विस्तार और संकुचन के उदाहरणों से भरा पड़ा है। राजस्थान के क्षेत्र ने राजपूत वंशों, मुगलों, मराठों और अंग्रेजों का शासन देखा है, जिनमें से प्रत्येक ने राज्य की सीमाओं पर अपनी छाप छोड़ी है।
आधुनिक राजस्थान का निर्माण
आधुनिक राजस्थान राज्य, जैसा कि हम आज इसे पहचानते हैं, का गठन 30 मार्च, 1949 को हुआ था, जब राजस्थान की रियासतें एक एकीकृत इकाई बनाने के लिए एक साथ आईं। इस एकीकरण से पहले, राजस्थान रियासतों का एक समूह था, जिनमें से प्रत्येक का अपना शासक और प्रशासन था। इन रियासतों के एकीकरण ने राजस्थान के लिए एक नए युग की शुरुआत की, जिसमें विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं को एक बैनर के नीचे एक साथ लाया गया।
राजस्थान का नया मानचित्र
हाल के वर्षों में, राजस्थान के मानचित्र में ऐसे परिवर्तन देखे गए हैं, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों का ध्यान आकर्षित किया ��ै। ये परिवर्तन मुख्य रूप से प्रशासनिक सीमाओं के पुनर्गठन और नए जिलों के निर्माण के इर्द-गिर्द घूमते हैं। यहां कुछ उल्लेखनीय विकास हैं:
नये जिलों का निर्माण: राजस्थान के मानचित्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव नए जिलों का निर्माण है। राज्य सरकार ने प्रशासनिक दक्षता में सुधार और शासन को लोगों के करीब लाने के लिए यह पहल की है। उदाहरण के लिए, 2018 में, राज्य सरकार ने सात नए जिलों, अर्थात् प्रतापगढ़, चूरू, सीकर, झुंझुनू, उदयपुरवाटी, दौसा और नागौर के निर्माण की घोषणा की। इन परिवर्तनों का उद्देश्य नागरिकों को बेहतर प्रशासन और सेवा वितरण करना था।
सीमा विवाद: राजस्थान की सीमाएँ गुजरात, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश सहित कई पड़ोसी राज्यों के साथ लगती हैं। सीमा विवाद एक लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा रहा है, जो अक्सर क्षेत्र और संसाधनों पर विवादों का कारण बनता है। इन विवादों के परिणामस्वरूप कभी-कभी राजस्थान के मानचित्र में परिवर्तन होता है क्योंकि संघर्षों को हल करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों को फिर से तैयार किया जाता है। ऐसे विवादों के समाधान में अक्सर राज्य सरकारों और केंद्रीय अधिकारियों के बीच बातचीत शामिल होती है।
बुनियादी ढांचे का विकास: बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाएं राजस्थान के मानचित्र को भी प्रभावित कर सकती हैं। नई सड़कों, राजमार्गों और रेलवे का निर्माण राज्य के भीतर विभिन्न क्षेत्रों की पहुंच और कनेक्टिविटी को बदल सकता है। ऐसी परियोजनाओं से भौगोलिक सीमाओं की धारणा में बदलाव के साथ-साथ कुछ क्षेत्रों में आर्थिक विकास भी हो सकता है।
शहरीकरण: राजस्थान में हाल के वर्षों में तेजी से शहरीकरण हो रहा है। जैसे-जैसे शहरों और कस्बों का विस्तार होता है, उनकी सीमाएँ अक्सर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों को घेरती हुई बढ़ती हैं। इस शहरी फैलाव के परिणामस्वरूप जिलों और नगरपालिका क्षेत्रों की प्रशासनिक सीमाओं में बदलाव हो सकता है, जो राज्य के मानचित्र में परिलक्षित हो सकता है।
प्रभाव और निहितार्थ
राजस्थान के मानचित्र में बदलाव के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हैं। सकारात्मक पक्ष पर, नए जिलों के निर्माण और प्रशासनिक सुधारों से अधिक प्रभावी शासन, बेहतर सेवा वितरण और बेहतर स्थानीय विकास हो सकता है। यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों के बेहतर प्रतिनिधित्व और भागीदारी को भी सुविधाजनक बना सकता है।
हालाँकि, इन परिवर्तनों के साथ चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। सीमा विवाद कभी-कभी पड़ोसी राज्यों के बीच तनाव का कारण बन सकते हैं और ऐसे विवादों के समाधान के लिए राजनयिक प्रयासों और बातचीत की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, जबकि शहरीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास आर्थिक अवसर ला सकता है, वे पर्यावरण संरक्षण, भूमि उपयोग और संसाधन प्रबंधन से संबंधित चुनौतियां भी पैदा करते हैं।
निष्कर्ष
राजस्थान का नया नक्शा इसके भू-राजनीतिक परिदृश्य की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है। राज्य में क्षेत्रीय परिवर्तनों का एक समृद्ध इतिहास है, और इसकी सीमाएँ ऐतिहासिक, प्रशासनिक और विकासात्मक कारकों के कारण समय के साथ विकसित हुई हैं। हालाँकि इन परिवर्तनों का शासन, सीमा विवाद और शहरीकरण पर प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन ये बेहतर प्रशासन और विकास के अवसर भी प्रदान करते हैं।
जैसे-जैसे राजस्थान का विकास और विकास जारी है, नीति निर्माताओं, प्रशासकों और नागरिकों के लिए यह आवश्यक है कि वे इन परिवर्तनों के निहितार्थों पर विचार करें और यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करें।
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rightnewshindi · 12 days ago
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हिमाचल में चार महीने के लिए ट्राउट मछली पकड़ने पर लगा पूर्ण प्रतिबंध, उल्लंघन होने पर होगी कार्यवाही
Himachal News: हिमाचल प्रदेश में ट्राउट मछली के प्रजनन को बढ़ावा देने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए चार महीने के लिए ट्राउट मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। यह प्रतिबंध 1 नवंबर 2024 से 28 फरवरी 2025 तक प्रभावी रहेगा। इस दौरान, मत्स्य विभाग ने ट्राउट जल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष व्यवस्था की है, जिसमें निगरानी बल की तैनाती और विभागीय कर्मचारियों की छुट्टियों का…
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deshbandhu · 2 months ago
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Smart Agriculture: Aapake Liye Rojagaar ke Dwar
परिचय भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का विशेष स्थान है। यहां की एक बड़ी आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। बदलते समय के साथ खेती में भी तकनीकी परिवर्तन हो रहे हैं और इसे अब "स्मार्ट एग्रीकल्चर" के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल खेती के तरीकों में क्रांति ला रहा है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी प्रदान कर रहा है। स्मार्ट एग्रीकल्चर से तात्पर्य है ऐसी तकनीकें और प्रणालियां जो पारंपरिक कृषि को अधिक प्रभावी, उत्पादक और पर्यावरण के अनुकूल बनाती हैं। इस आधुनिक कृषि प्रणाली ने रोजगार के कई नए द्वार खोले हैं, विशेष रूप से उन युवाओं के लिए जो आधुनिक तकनीक और नवाचार में रुचि रखते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर क्या है? स्मार्ट एग्रीकल्चर या स्मार्ट खेती आधुनिक प्रौद्योगिकी और कृषि के सम्मिल�� का एक ऐसा मॉडल है जिसमें सटीक उपकरणों, सेंसर, ड्रोन्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तहत किसानों को जमीन की उपजाऊता, मौसम की जानकारी, फसल की स्थिति और बाजार के रुझानों के बारे में सटीक जानकारी मिलती है। इससे कृषि के सभी पहलुओं को सही ढंग से मॉनिटर कर बेहतर परिणाम प्राप्त किए जाते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत आधुनिक यंत्रों और नई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जिससे किसानों को अपने खेतों की बेहतर देखभाल करने में मदद मिलती है। इससे न केवल उत्पादकता में वृद्धि होती है बल्कि पानी, खाद, बीज और अन्य संसाधनों का सही उपयोग भी सुनिश्चित होता है।
खेती में रोजगार के अवसर स्मार्ट एग्रीकल्चर के बढ़ते प्रसार के साथ खेती में रोजगार के अवसरों में भी व्यापक विस्तार हुआ है। पहले जहां कृषि में मुख्य रूप से शारीरिक श्रम का महत्व था, अब तकनीकी ज्ञान रखने वाले युवाओं के लिए भी यहां संभावनाएं खुल रही हैं। नीचे कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा की जा रही है, जहां स्मार्ट एग्रीकल्चर के माध्यम से रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं:
प्रौद्योगिकी आधारित कृषि उपकरणों का निर्माण और वितरण
स्मार्ट एग्रीकल्चर में विभिन्न प्रकार के सेंसर, ड्रोन्स, और स्वचालित उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है। इन उपकरणों के निर्माण, वितरण और मरम्मत के क्षेत्र में रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। युवा उद्यमी इस क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं या बड़े उद्योगों से जुड़ सकते हैं जो ऐसे उपकरणों का निर्माण और विपणन करते हैं।
कृषि सलाहकार सेवाएं
कृषि सलाहकार सेवाएं एक और प्रमुख क्षेत्र है, जहां तकनीकी ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों के लिए रोजगार के नए अवसर हैं। स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य, बीज के चयन, जल प्रबंधन, फसल की देखभाल और बाजार की जानकारी देने वाले कृषि सलाहकारों की मांग बढ़ी है। यदि किसी व्यक्ति के पास कृषि और तकनीक का ज्ञान है, तो वे इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं।
डेटा एनालिसिस और कृषि सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट
स्मार्ट एग्रीकल्चर में सेंसर और अन्य उपकरणों से लगातार डेटा उत्पन्न होता है। इस डेटा का सही ढंग से विश्लेषण करना और इसके आधार पर निर्णय लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। डेटा एनालिसिस के क्षेत्र में कृषि तकनीशियनों की मांग तेजी से ��ढ़ी है। साथ ही, ऐसे सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की भी आवश्यकता है जो किसानों के लिए अनुकूल ऐप्स और सॉफ्टवेयर विकसित कर सकें। ये ऐप्स किसानों को मौसम की जानकारी, फसल की स्थिति, बाजार के दाम आदि की सटीक जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे उनकी खेती को और बेहतर बनाया जा सके।
कृषि में ड्रोन और रोबोटिक्स तकनीक
ड्रोन्स का इस्तेमाल कृषि में तेजी से बढ़ रहा है। फसलों की निगरानी, कीटनाशक का छिड़काव, और अन्य गतिविधियों के लिए ड्रोन तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। ड्रोन ऑपरेटर्स, मेनटेनेंस इंजीनियर और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए यहां रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं। इसके अलावा, रोबोटिक्स तकनीक का इस्तेमाल भी कृषि में बढ़ रहा है, जिससे फसलों की देखभाल और उत्पादन की प्रक्रिया को स्वचालित किया जा रहा है।
सस्टेनेबल एग्रीकल्चर और ग्रीन जॉब्स
आज के समय में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता पर जोर दिया जा रहा है। सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए कृषि की तकनीकों का विकास किया जाता है। इसके अंतर्गत जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में सस्टेनेबिलिटी एक्सपर्ट्स, पर्यावरण वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों की आवश्यकता बढ़ी है। ग्रीन जॉब्स के रूप में इसे देखा जा सकता है।
कृषि उत्पादों का प्रोसेसिंग और मार्केटिंग
स्मार्ट एग्रीकल्चर के तहत बेहतर उत्पादन प्राप्त होने पर उसे प्रोसेस कर बाजार में बेचना भी महत्वपूर्ण है। कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों के लिए यहां अपार संभावनाएं हैं। स्मार्ट मार्केटिंग तकनीकों का उपयोग करके किसान अपने उत्पादों को सही कीमत पर बेच सकते हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में उद्यमिता को भी बढ़ावा मिल रहा है, जिससे नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
स्मार्ट इरिगेशन और जल प्रबंधन
कृषि में पानी का सही उपयोग करना हमेशा से एक चुनौती रहा है। स्मार्ट इरिगेशन और जल प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। पानी की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों में सटीक सिंचाई प्रणाली और जल प्रबंधन सेवाओं की मांग बढ़ी है। इसके लिए तकनीकी विशेषज्ञों और इरिगेशन इंजीनियरों की आवश्यकता होती है, जो इस क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
स्मार्ट एग्रीकल्चर में रोजगार के अवसरों की संभावनाएं स्मार्ट एग्रीकल्चर में न केवल तकनीकी विशेषज्ञों के लिए बल्कि ग्रामीण युवाओं के लिए भी रोजगार के अवसर हैं। वे जो अपने खेतों में नई तकनीकों को अपनाकर उत्पादन में वृद्धि करना चाहते हैं, वे भी इस क्रांति के हिस्सेदार बन सकते हैं। साथ ही, इस क्षेत्र में वित्तीय सेवाओं, बीमा, और कृषि से जुड़ी कानूनी सेवाओं में भी रोजगार की संभावनाएं हैं। सरकार और निजी क्षेत्र की ओर से भी इस क्षेत्र में निवेश किया जा रहा है, जिससे रोजगार के अवसर और भी बढ़ेंगे।
निष्कर्ष स्मार्ट एग्रीकल्चर न केवल कृषि के तरीके को बदल रहा है, बल्कि यह एक नया रोजगार क्षेत्र भी बना रहा ह���। "खेती में रोजगार के अवसर" अब केवल पारंपरिक श्रमिकों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि तकनीकी विशेषज्ञों, उद्यमियों और नवाचारकर्ताओं के लिए भी इसमें असीमित संभावनाएं हैं। भारत जैसे देश में, जहां कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, स्मार्ट एग्रीकल्चर रोजगार के नए द्वार खोलकर युवाओं को बेहतर भविष्य की दिशा में ले जा रहा है।
यह स्पष्ट है कि भविष्य की खेती तकनीकी नवाचारों पर आधारित होगी, और इसके साथ ही रोजगार के नए रूप सामने आएंगे। स्मार्ट एग्रीकल्चर एक ऐसी ही दिशा है, जो रोजगार के साथ-साथ समृद्धि की ओर भी ले जा रही है।
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drrupal-helputrust · 3 months ago
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राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पर शपथ | Pledge on National Energy Conservation Day
लखनऊ 14.12.2022 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2022 के अवसर पर ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय 25/2G में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया I आयोजन में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों व सिलाई कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर रही लाभार्थियों ने पर्यावरण संरक्षण व देश की प्रगति में अपना योगदान देने हेतु आमजन से ऊर्जा बचाने का अनुरोध किया व ऊर्जा के संसाधनों को आवश्यकतानुसार प्रयोग करने का संकल्प लिया |
न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने शपथ दिलवाई कि "पृथ्वी पर ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं और हमें उसका अत्याधिक व फिजूल उपयोग नहीं करना है I बेहतर भविष्य के लिए ऊर्जा संरक्षण बेहद आवश्यक है व हमें इसके समुचित उपयोग को प्रोत्साहन देना है I
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बेवजह नहीं चलाना है तथा देश के जिम्मेदार नागरिक की तरह ऊर्जा संरक्षण करके दिखाना है I
आज राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस के अवसर पर हम सभी यह शपथ लेते हैं कि पर्यावरण संरक्षण हेतु ऊर्जा का आवश्यकतानुसार प्रयोग करेंगे व देश की प्रगति में अपना योगदान देंगे | जय हिंद जय भारत" |
#राष्ट्रीय_ऊर्जा_संरक्षण_दिवस2022 #NationalEnergyConservationDay #energyconservation #energyefficiency #sustainability #energy #renewableenergy #ecofriendly #solarenergy #sustainableliving #sustainable #solarpanels #gogreen #saveenergy #cleanenergy #solarpower #solar #electricvehicle
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helpukiranagarwal · 3 months ago
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राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पर शपथ | Pledge on National Energy Conservation Day
लखनऊ 14.12.2022 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2022 के अवसर पर ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय 25/2G में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया I आयोजन में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों व सिलाई कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर रही लाभार्थियों ने पर्यावरण संरक्षण व देश की प्रगति में अपना योगदान देने हेतु आमजन से ऊर्जा बचाने का अनुरोध किया व ऊर्जा के संसाधनों को आवश्यकतानुसार प्रयोग करने का संकल्प लिया |
न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने शपथ दिलवाई कि "पृथ्वी पर ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं और हमें उसका अत्याधिक व फिजूल उपयोग नहीं करना है I बेहतर भविष्य के लिए ऊर्जा संरक्षण बेहद आवश्यक है व हमें इसके समुचित उपयो��� को प्रोत्साहन देना है I
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helputrust-drrupal · 3 months ago
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राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पर शपथ | Pledge on National Energy Conservation Day
लखनऊ 14.12.2022 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2022 के अवसर पर ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय 25/2G में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया I आयोजन में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों व सिलाई कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर रही लाभार्थियों ने पर्यावरण संरक्षण व देश की प्रगति में अपना योगदान देने हेतु आमजन से ऊर्जा बचाने का अनुरोध किया व ऊर्जा के संसाधनों को आवश्यकतानुसार प्रयोग करने का संकल्प लिया |
न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने शपथ दिलवाई कि "पृथ्वी पर ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं और हमें उसका अत्याधिक व फिजूल उपयोग नहीं करना है I बेहतर भविष्य के लिए ऊर्जा संरक्षण बेहद आवश्यक है व हमें इसके समुचित उपयोग को प्रोत्साहन देना है I
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बेवजह नहीं चलाना है तथा देश के जिम्मेदार नागरिक की तरह ऊर्जा संरक्षण करके दिखाना है I
आज राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस के अवसर पर हम सभी यह शपथ लेते हैं कि पर्यावरण संरक्षण हेतु ऊर्जा का आवश्यकतानुसार प्रयोग करेंगे व देश की प्रगति में अपना योगदान देंगे | जय हिंद जय भारत" |
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sharpbharat · 3 months ago
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tata steel joins hand for sustainablity : टाटा स्टील फाउंडेशन और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने झारखंड में इंटीग्रेटेड वाटरशेड और जलवायु संरक्षण परियोजना पर सहयोग के लिए मिलाया हाथ, पश्चिम सिंहभूम जिले में होगा जलछाजन पर काम
जमशेदपुर : टाटा स्टील फाउंडेशन और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के नोआमुंडी ब्लॉक में इंटीग्रेटेड वाटरशेड (जलछाजन) और जलवायु संरक्षण परियोजना को लागू करने के लिए एक नया सहयोगात्मक प्रयास शुरू किया है. इस पहल का लक्ष्य वाटरशेड परियोजना क्षेत्र में मिट्टी और जल संसाधनों का संरक्षण करना और 15 गांवों के 1500 परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करना है. यह कार्यक्रम…
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adani-hasdeo · 3 months ago
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अडानी हसदेव परियोजना एक ऐसा मुद्दा है जिसमें विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। यह परियोजना राज्य के विकास के लिए अवसर प्रदान करती है, लेकिन साथ ही पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के लिए भी खतरा पैदा करती है। इस जटिल मुद्दे का समाधान ढूंढने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
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helputrust · 2 years ago
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लखनऊ 14.12.2022 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2022 के अवसर पर ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय 25/2G में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया गया I आयोजन में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल, ट्रस्ट के स्वयंसेवकों व सिलाई कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर रही लाभार्थियों ने पर्यावरण संरक्षण व देश की प्रगति में अपना योगदान देने हेतु आमजन से ऊर्जा बचाने का अनुरोध किया व ऊर्जा के संसाधनों को आवश्यकतानुसार प्रयोग करने का संकल्प लिया |
न्यासी डॉ रूपल अग्रवाल ने शपथ दिलवाई कि "पृथ्वी पर ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं और हमें उसका अत्याधिक व फिजूल उपयोग नहीं करना है I बेहतर भविष्य के लिए ऊर्जा संरक्षण बेहद आवश्यक है व हमें इसके समुचित उपयोग को प्रोत्साहन देना है I
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बेवजह नहीं चलाना है तथा देश के जिम्मेदार नागरिक की तरह ऊर्जा संरक्षण करके दिखाना है I
आज राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस के अवसर पर हम सभी यह शपथ लेते हैं कि पर्यावरण संरक्षण हेतु ऊर्जा का आवश्यकतानुसार प्रयोग करेंगे व देश की प्रगति में अपना योगदान देंगे | जय हिंद जय भारत" |
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stressmanagement01 · 7 months ago
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आयुर्वेद का पुनर्जागरण
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भारतीय परंपरागत चिकित्सा विज्ञान, आयुर्वेद, वर्तमान में एक महत्वपूर्ण और गरिमामय चरम स्थिति की ओर अग्रसर है। आज की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में, आयुर्वेद का पुनर्जागरण एक विशेष महत्ता रखता है जो भारतीय समाज को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य में संतुलन प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है।
प्राचीन आयुर्वेदिक शास्त्रों में बताया गया है कि व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए नियमित रूप से आहार, व्यायाम, ध्यान, और आचार-व्यवहार का महत्व है। आयुर्वेद न केवल रोगों का उपचार करता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। यह शास्त्र न केवल उपचार के लिए वनस्पतियों का उपयोग करता है, बल्कि व्यक्ति को अपनी संपूर्ण जीवनशैली के संरक्षण के लिए भी प्रेरित करता है।
आयुर्वेद का पुनर्जागरण न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी आयुर्वेदिक प्रणाली के लोकप्रिय होने का परिणाम है। भारतीय संस्कृति और विज्ञान के इस मेलजोल के कारण, आयुर्वेद विश्व स्तर पर स्वास्थ्य और वेलनेस के क्षेत्र में एक प्रमुख नाम बन गया है।
आयुर्वेद का पुनर्जागरण
आयुर्वेद के पुनर्जागरण के पीछे कई कारण हैं। पहला, आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के अंधविश्वासों और साइड इफेक्ट्स की वजह से, लोग अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए प्राकृतिक उपचारों की ओर मुख मोड़ रहे हैं। दूसरा, आयुर्वेद की योग्यता और उसके व्यापक विवेचन के कारण, लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं।
वैज्ञानिक मान्यता:
आयुर्वेद के पुनर्जागरण की वैज्ञानिक मान्यता उसकी प्राचीन साक्ष्य और वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्राप्त हुई है।
वैज्ञानिक समुदाय ने आयुर्वेद के रोग प्रतिरोधक क्षमता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और रोगों के निदान में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को समझा है।
आयुर्वेद के पुनर्जागरण के साथ, वैज्ञानिक समुदाय ने आधुनिक चिकित्सा की दिशा में एक अद्वितीय योगदान किया है, जिससे समाज को समृद्धि और स्वास्थ्य की दिशा में अधिक प्रामाणिक विकल्प मिले।
वैज्ञानिक अनुसंधानों ने आयुर्वेदिक उपचारों की कार्यक्षमता और सुरक्षा को स्पष्टतः सिद्ध किया है, जिससे इसे सामान्य चिकित्सा पद्धतियों का एक प्रमुख विकल्प बना दिया गया है।
आयुर्वेद के पुनर्जागरण से संघर्ष करते समय, वैज्ञानिक समुदाय ने आयुर्वेद के मौलिक सिद्धांतों को स्वीकार किया है और उन्हें आधुनिक विज्ञान के साथ मेल करने का प्रयास किया है।
प्राकृतिक चिकित्सा की मान्यता:
यह चिकित्सा पद्धति रोगों के निदान, उनके कारणों का खोज, और उनके निवारण के लिए प्राकृतिक उपायों को प्राथमिकता देती है।
वैज्ञानिक समुदाय ने आयुर्वेद के रोग प्रतिरोधक क्षमता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और रोगों के निदान में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को समझा है।
आयुर्वेदिक पुनर्जागरण की प्राकृतिक चिकित्सा का मूल मंत्र है कि शरीर को स्वास्थ्य और संतुलन में रखने के लिए प्राकृतिक तत्वों का सही उपयोग किया जाए।
यह चिकित्सा प्रणाली शरीर में सामान्य संतुलन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करती है।
पुनर्जागरण की प्राकृतिक चिकित्सा में औषधियों, पौधों, और योग का प्रयोग किया जाता है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं।
पुनर्जागरण की प्राकृतिक चिकित्सा में संतुलित जीवनशैली, प्राणायाम, और ध्यान की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
व्यक्ति को इस चिकित्सा पद्धति के अनुसा�� अपने आहार, व्यायाम, और व्यवहार में परिवर्तन करके अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने की सलाह दी जाती है।
समृद्धि का प्रतीक:
आयुर्वेद के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ा है।
सरकारों द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सा को समर्थन और प्रोत्साहन मिल रहा है।
जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपचारों के प्रति लोगों की रुचि में वृद्धि हुई है।
आयुर्वेद के विभिन्न आसनों, प्राणायाम और ध्यान की महत्वपूर्णता को मान्यता मिली है।
समुदायों में आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रचार-प्रसार की गति बढ़ी है।
आयुर्वेद के प्रयोग से लोगों के स्वास्थ्य स्थिति में सुधार आया है।
आयुर्वेद के गुणों को विश्वभर में मान्यता मिलने की दिशा में कदम बढ़ा है।
आधुनिक प्रणालियों का सम्मिलन:
आधुनिक युग में आयुर्वेद का पुनर्जागरण एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। आज के दौर में, आयुर्वेद के पुनर्जागरण के साथ-साथ नई और आधुनिक प्रणालियों का सम्मिलन हो रहा है जो संसाधनों, प्रौद्योगिकियों और विज्ञान के आधार पर आयुर्वेदिक चिकित्सा को और भी प्रभावी बना रहा है।
आयुर्वेद के लक्षण, रोग, और उनके उपचार को वैज्ञानिक तथ्यों और शोध के साथ संदर्भित किया जा रहा है। आधुनिक चिकित्सा उपकरणों, जैसे कि जीनोमिक्स, उत्पादन प्रक्रियाएं, तथा बायो-मार्कर्स, का उपयोग करके, आयुर्वेदिक उपचारों की प्रभावकारिता को बढ़ाया जा रहा है।
आयुर्वेद के प्रयोग में डिजिटलीकरण का भी बड़ा योगदान है। आज के समय में, अनलाइन प्लेटफॉर्म्स, मोबाइल एप्लिकेशन्स, और वेबसाइट्स के माध्यम से, आयुर्वेद की जानकारी, उपचार तथा संबंधित उत्पादों तक पहुंच बढ़ाई जा रही है। यह उपचार की सुविधा, ज्ञान का साझा करना और रोगी के साथ संपर्क को अधिक सहज बनाता है।
आयुर्वेद के पुनर्जागरण में यह सभी तत्व - वैज्ञानिक शोध, तकनीकी उन्नति, और डिजिटलीकरण - साथ मिलकर, आयुर्वेद को एक नई दिशा में ले जा रहे हैं, जिसमें यह समृद्धि, उपचार की प्रभावता, और सामुदायिक संप्रेषण के साथ-साथ समर्थन और संरक्षण की एक उन्नत स्तर पर प्रस्तुति करता है।
सामुदायिक सहयोग:
सामुदायिक संगठनों की सहायता से आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्रों का संचालन किया जा सकता है, जिससे लोगों को सस्ते और प्रभावी चिकित्सा सेवाएं प्राप्त हो सकें।
अनेक संगठन और समुदाय आयुर्वेद कैम्प्स, व्यायाम ग्रुप्स, और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं।
समुदाय के सहयोग से औषधियों की उत्पादन में सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को सहायता मिलती है, जो कि लोगों के लिए सस्ते और प्राकृतिक उपचार उपलब्ध कराते हैं।
सामुदायिक सहयोग आयुर्वेदिक अनुसंधान और उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिससे नई औषधियों और उपायों का विकास हो सकता है।
सामुदायिक संगठनों के माध्यम से रोगनिरोधक उपायों की जानकारी और प्रचार-प्रसार होता है, जो लोगों को स्वस्थ जीवनशैली के लिए प्रेरित करता है।
निष्कर्ष
आयुर्वेद का पुनर्जागरण एक संवैधानिक प्रक्रिया है जो हमें प्राकृतिक जीवनशैली की ओर दिशा प्रदान कर रहा है। इससे न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य का समर्थन हो रहा है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को भी सुधारा जा रहा है। आयुर्वेद का पुनर्जागरण हमारे जीवन को संतुलित, ��मृद्ध और स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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rightnewshindi · 2 months ago
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कल सुंदरनगर में सोनम वांगचुक का होगा भव्य स्वागत, सर्वजन संरक्षण समिति ने सभी लोगों से की साथ आने की अपील
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Mandi News: लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने व पर्यावरण संरक्षण सम्बंधी मांगों और हिमालय क्षेत्र की संस्कृति व हकों की सुरक्षा को लेकर प्रसिद्ध अन्वेषक व पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लगभग 150 सदस्यों के साथ लेह से दिल्ली तक पदयात्रा पर हैं और यह यात्रा हिमाचल प्रदेश में प्रवेश कर मंडी होते हुए दिनांक: 22-09-2024 को सुंदर नगर में प्रवेश करेगी।  हिमाचल प्रदेश के संसाधनों…
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rimaakter45 · 10 months ago
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नैतिक शाकाहारी भोजन: एक स्वस्थ, दयालु और अधिक टिकाऊ जीवन शैली
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परिचय:
हाल के वर्षों में, नैतिक शाकाहार ने महत्वपूर्ण आकर्षण प्राप्त किया है, और अच्छे कारण से। पशु कल्याण, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता के बारे में बढ़ती चिंताओं के साथ, बढ़ती संख्या में लोग नैतिक शाकाहारी जीवन शैली का विकल्प चुन रहे हैं। यह लेख की अवधारणा पर प्रकाश डालता हैनैतिक शाकाहारी भोजन, आम गलतफहमियों को दूर करते हुए जानवरों, मानव स्वास्थ्य और ग्रह के लिए इसके लाभों की खोज करना।
पशु कल्याण
नैतिक शाकाहार के पीछे प्राथमिक प्रेरणा जानवरों को होने वाले नुकसान को कम करने की इच्छा है। नैतिक शाकाहारी मांस, डेयरी, अंडे और शहद सहित किसी भी पशु उत्पाद का सेवन करने से बचते हैं। इस जीवनशैली को अपनाकर, व्यक्तियों ने सक्रिय रूप से खाद्य उद्योग में जानवरों के शोषण को समाप्�� कर दिया।
फैक्ट्री फार्मिंग, जहां जानवरों को भीड़भाड़, कैद और क्रूर प्रथाओं का शिकार बनाया जाता है, एक बड़ी चिंता का विषय है। नैतिक शाकाहारी इन उद्योगों से अपना समर्थन वापस लेने का विकल्प चुनते हैं, सक्रिय रूप से एक दयालु विकल्प को बढ़ावा देते हैं। पशु उत्पादों का बहिष्कार करके, नैतिक शाकाहारी लोग जानवरों की पीड़ा को कम करने में योगदान देते हैं, एक ऐसी दुनिया की वकालत करते हैं जो सभी संवेदनशील प्राणियों का सम्मान और महत्व करती है।
स्वास्थ्य सुविधाएं
आम धारणा के विपरीत, नैतिक शाकाहार कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने वाला सिद्ध हुआ है। एक सुनियोजित शाकाहारी आहार इष्टतम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान कर सकता है। शाकाहार व्यक्तियों को फलों, सब्जियों, साबुत अनाज, नट्स और बीजों का सेवन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्वों से भरपूर आहार मिलता है जिसमें संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल कम होता है।
अध्ययनों से लगातार पता चला है कि शाकाहारी लोगों में हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मोटापा और कुछ कैंसर की दर कम होती है। पौधे-आधारित आहार पाचन तंत्र पर भी हल्का होता है, जिससे ऊर्जा का स्तर बढ़ता है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसके अलावा, पशु उत्पादों को खत्म करने से मांस और डेयरी उपभोग से जुड़ी खाद्य जनित बीमारियों का खतरा काफी कम हो जाता है।
पर्यावरणीय प्रभाव
पशु कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता। पशुधन खेती को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वनों की कटाई, भूमि क्षरण, जल प्रदूषण और प्रजातियों के विलुप्त होने में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में पहचाना गया है। नैतिक शाकाहारी जीवनशैली अपनाकर, व्यक्ति जलवायु परिवर्तन से निपटने और भावी पीढ़ियों के लिए ग्रह को संरक्षित करने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
यह सिद्ध हो चुका है कि पशु उत्पादों से भरपूर आहार की तुलना में पौधे आधारित आहार में कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। कृषि पशुओं को खिलाने के लिए आवश्यक फसलों के लिए बड़ी मात्रा में भूमि और जल संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे अंततः वनों की कटाई और पानी की कमी होती है। पौधों के स्रोतों से सीधे उपभोग करके, नैतिक शाकाहारी पानी के संरक्षण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जैव विविधता की रक्षा करने में मदद करते हैं।
गलतफहमियों को दूर करना
नैतिक शाकाहार के पक्ष में ढेर सारे सबूत होने के बावजूद, कई गलतफहमियाँ बनी हुई हैं। शाकाहार के खिलाफ सबसे आम तर्कों में से एक यह धारणा है कि पौधे-आधारित आहार में आवश्यक पोषक तत्वों, विशेष रूप से प्रोटीन और ��िटामिन बी 12 की कमी होती है। हालाँकि, उचित योजना और ज्ञान के साथ, शाकाहारी लोग विभिन्न प्रकार के पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों को शामिल करके अपनी सभी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को आसानी से पूरा कर सकते हैं।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि नैतिक शाकाहार प्रतिबंधात्मक भोजन या अभाव का पर्याय नहीं है। शाकाहार की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, कई स्वादिष्ट पौधे-आधारित विकल्प सामने आए हैं, जो नैतिक शाकाहारियों को उनके मूल्यों से समझौता किए बिना, उन स्वादों और बनावटों का आनंद लेने की अनुमति देते हैं जो उन्हें हमेशा से पसंद रहे हैं।
निष्कर्ष:
नैतिक शाकाहार केवल एक आहार विकल्प से कहीं अधिक है; यह एक ऐसी जीवनशैली है जो करुणा, स्वास्थ्य और स्थिरता को बढ़ावा देती है। पशु कल्याण की रक्षा करके, व्यक्तिगत स्वास्थ्य में सुधार करके और पर्यावरणीय क्षति को कम करके, नैतिक शाकाहारी सक्रिय रूप से एक दयालु, स्वस्थ और अधिक टिकाऊ दुनिया के निर्माण में योगदान करते हैं। नैतिक शाकाहारी भोजन को अपनाने से न केवल व्यक्तियों बल्कि हमारे ग्रह के सामूहिक भविष्य की भी सेवा होती है।
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currenthunt · 10 months ago
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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शिमला विकास योजना 2041 को मंज़ूरी दी गई
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शिमला विकास योजना 2041 को मंज़ूरी दी गई है, जिसका उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के राजधानी शहर में निर्माण गतिविधियों को टिकाऊ बनाने के साथ विनियमित करना है। शिमला विकास योजना 2041 - शिमला योजना क्षेत्र 2041 के लिये विकास योजना का मसौदा फरवरी 2022 में प्रकाशित किया गया था। - विकास योजना भारत सरकार की अमृत (कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन),उप-योजना के अंर्तगत हिमाचल प्रदेश के नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग द्वारा तैयार की गई है। - योजना GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली) आधारित है। यह हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम, 1977 के प्रावधानों के अंर्तगत शिमला नगर निगम तथा इसके आसपास के क्षेत्रों को कवर करता है। - योजना में कहा गया है कि "नगर नियोजन NGT के दायरे में नहीं आता है"। विधिक लड़ाई की पृष्ठभूमि - योजना की प्रारंभिक मंज़ूरी पिछली राज्य सरकार द्वारा फरवरी 2022 में दी गई थी। - राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) के अनुसार, योजना को असंवैधानिक घोषित करने के साथ वर्ष 2017 में लगाए गए पहले के निर्णयों का उल्लंघन माना गया था, जिसने हस्तक्षेप किया और मई 2022 में स्थगन आदेश जारी किये। - NGT के वर्ष 2017 के निर्णय ने शिमला योजना क्षेत्र में दो मंज़िला तथा दो मंजिल से ऊपर की इमारतों के निर्माण पर रोक लगा दी थी। - NGT ने पाया कि योजना ने प्रतिबंधित क्षेत्रों में अधिक मंज़िलों के साथ नए निर्माण की अनुमति देकर प्रतिबंध का उल्लंघन किया है। NGT ने राज्य में जारी रहने पर कानून, पर्यावरण तथा सार्वजनिक सुरक्षा में हानि की चेतावनी दी। - राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की तथा मई 2023 में  सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को विकास योजना के मसौदे पर आपत्तियों का समाधान करने के साथ छह सप्ताह के भीतर अंतिम योजना जारी करने का निर्देश दिया। क्या है सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय - शिमला विकास योजना 2041 को जनवरी 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने NGT के पहले के निर्णयों को पलटते हुए मंज़ूरी दे दी थी। न्यायालय ने तर्क दिया कि राज्य सरकार को विकास योजना का मसौदा तैयार करने के बारे में निर्देश देना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। - न्यायालय ने उल्लेख क���या कि NGT राज्य सरकार को योजना तैयार करने का आदेश नहीं दे सकती है, लेकिन योजना की गुणवत्ता के आधार पर जाँच कर सकती है। - न्यायालय ने माना कि वर्ष 2041 की विकास योजना संतुलित एवं सतत् प्रतीत होती है, लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि पक्ष अभी भी योजना के विशिष्ट पहलुओं को उनकी योग्यता के आधार पर चुनौती देने के लिये तैयार हैं। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) - यह पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम (2010) के अंर्तगत स्थापित एक विशेष निकाय है। - NGT की स्थापना के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड के बाद एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया, साथ ही ऐसा करने वाला पहला विकासशील देश बन गया। - सात निर्धारित कानून (अधिनियम की अनुसूची-I में सूचीबद्ध) जल अधिनियम 1974, जल उपकर अधिनियम 1977, वन संरक्षण अधिनियम 1980, वायु अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम 1991 तथा जैवविविधता अधिनियम 2002 हैं। जिन्होंने विवाद के साथ NGT अधिनियम की विशेष भूमिका को जन्म दिया। - NGT को आवेदन या अपील दायर करने के 6 महीने के भीतर अंतिम रूप से उसका निपटान करना अनिवार्य है। - NGT की बैठक के पाँच स्थान हैं, नई दिल्ली बैठक का प्रमुख स्थान है और साथ ही भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई अन्य चार स्थान हैं। - न्यायाधिकरण का अध्यक्ष, जो प्रधान पीठ की अध्यक्षता करते हैं, के साथ ही न्यूनतम 10 न्यायिक सदस्य तथा अधिकतम 20 विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं। - न्यायाधिकरण के निर्णय बाध्यकारी होते हैं। न्यायाधिकरण के पास अपने निर्णयों की समीक्षा करने की शक्तियाँ हैं। यदि ऐसा नहीं होता है तब 90 दिनों के भीतर निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। Read the full article
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manishprajapati3311 · 11 months ago
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अयोध्या में निर्माणाधीन श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की विशेषताएं:
1. मंदिर परम्परागत नागर शैली में बनाया जा रहा है।
2. मंदिर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
3. मंदिर तीन मंजिला रहेगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। मंदिर में कुल 392 खंभे व 44 द्वार होंगे।
4. मुख्य गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बालरूप (श्रीरामलला सरकार का विग्रह), तथा प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।
5. मंदिर में 5 मंडप होंगे: नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप
6. खंभों व दीवारों में देवी देवता तथा देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
7. मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
8. दिव्यांगजन एवं वृद्धों के लिए मंदिर में रै��्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
9. मंदिर के चारों ओर चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दि��ाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
10. परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
11. मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
12. मंदिर परिसर में प्रस्तावित अन्य मंदिर- महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या को समर्पित होंगे।
13. दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णो‌द्धार किया गया है एवं तथा वहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
14. मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है।
15. मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
16. मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
17. मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
18. 25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
19. मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
20. मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।
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sharpbharat · 11 months ago
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Jamshedpur rural attack on hemant govt : हेमंत सरकार ने झारखंड को भ्रष्टाचार के दलदल में धकेला- डॉ दिनेशानंद गोस्वामी, डॉ गोस्वामी ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ बोला जोरदार हमला
बहरागोड़ा : भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेशानंद गोस्वामी ने कहा है कि हेमंत सरकार ने झारखंड को भ्रष्टाचार के दलदल में धकेल दिया है. राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की धड़ल्ले से ��ूट-खसोट हो रही है,  सरकारी पदाधिकारियों की साठगांठ और सत्तारूढ़ दल के नेताओं के संरक्षण में बालू का धड़ल्ले से अवैध खनन हो रहा है. विकास योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं, सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला है. अंचल…
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