#संसद तक किसान ट्रैक्टर मार्च आज
Explore tagged Tumblr posts
kisansatta · 4 years ago
Photo
Tumblr media
राकेश टिकैत ने एक बार फिर हुंकार भरते हुए कहा- 'संसद तो किसानों का अस्पताल हैं। वहां हमारा इलाज होगा।
Tumblr media
नई दिल्ली: किसान आंदोलन के 7 महीने पूरे हो गए हैं। इस मौके पर किसानों ने शनिवार को अनेक राज्यों में राज्यपालों के आवास तक मार्च निकालने का प्रयास किया। वहीं भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने एक बार फिर हुंकार भरते हुए कहा कि हमारे जिन पदाधिकारियों को पकड़ा हैं उन्हें या तो तिहाड़ जेल भेजो या फिर राज्यपाल से इनकी मुलाकात कराओ। हम आगे बताएंगे कि दिल्ली का क्या इलाज करना है। दिल्ली बगैर ट्रैक्टर के नहीं मानती है। लड़ाई कहां होगी, स्��ान और समय क्या होगा यह तय कर बड़ी क्राांति होगी।
टिकैत ने कहा, ‘संसद तो किसानों का अस्पताल हैं। वहां हमारा इलाज होगा। हमें पता चला हैं कि किसानों का इलाज एम्स से अच्छा तो संसद में होता है। हम अपना इलाज वहां कराएंगे। जब भी दिल्ली जाएंगे हम संसद में जाएंगे।’ उन्होंने आगे की योजना बताते हुए कहा कि आज की बैठक में हमने अपने आंदोलन को मजबूत करने का फैसला किया है। हमने दो और रैलियां करने का फैसला किया है; 9 जुलाई को ट्रैक्टर रैली होगी, जिसमें शामली और बागपत के लोग मौजूद होंगे, ये 10 जुलाई को सिंघू बार्डर पहुंचेगे। एक और रैली 24 जुलाई को होगी, इसमें बिजनौर और मेरठ के लोग शामिल होंगे। 24 जुलाई की रात वे मेरठ टोल पर रुकेंगे और 25 जुलाई को रैली यहां (दिल्ली-गाजीपुर) पहुंचेगी।
किसान वापस लें आंदोलन: कृषि मंत्री
वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से आंदोलन समाप्त करने की अपील करते हुए तीनों विधेयकों के प्रावधानों पर वार्ता बहाल करने की पेशकश की। तोमर ने ट्वीट किया, ‘मैं आपके (मीडिया के) माध्यम से बताना चाहता हूं कि किसानों को अपना आंदोलन समाप्त करना चाहिए …. देश भर में कई लोग इन नए कानूनों के पक्ष में हैं। फिर भी, कुछ किसानों को कानूनों के प्रावधानों के साथ कुछ समस्या है, भारत सरकार उसे सुनने और उनके साथ चर्चा करने के लिए तैयार है।’
https://kisansatta.com/%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%95%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%9f%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%a4-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%8f%e0%a4%95-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%b9/ #कसनआदलन, #कसनवपसलआदलन, #रकशटकत #किसान आंदोलन, #किसान वापस लें आंदोलन, #राकेश टिकैत Farming, National #Farming, #National KISAN SATTA - सच का संकल्प
0 notes
abhay121996-blog · 4 years ago
Text
New Post has been published on Divya Sandesh
#Divyasandesh
देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता
डेस्क। किसान आंदोलन और लाल किले पर ऐसे खालिस्तानी झंडा फहराना भारत की प्रभुसत्ता को ललकारना है। यह बात तो सच है कि आज इन प्��ोटेस्टर्स की काली करतूत देश के सामने आ गई। आज ये आंदोलन पूरी तरह से नंगा हो गया। इनके प्रति इतने दिनों से देश की जो सहानुभूति थी वह सब खत्म हो गई. सारा देश अब  इन पर थु-थू कर रहा है। जब हम सब सारे भारतवासी राष्ट्रीय पर्व मनाने में ��्यस्त थे तब ये घटिया मानसिकता के लोग, देश की राजधानी में हिंसा और अराजकता फैला रहे थे। 
कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों का ट्रैक्टर मार्च  हिंसक हो गया। कई जगहों पर किसानों और पुलिस के बीच झड़प हुई पिछले करीब दो महीने से दिल्ली-हरियाणा सीमा पर स्थित सिंघू बॉर्डर पर जमे किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली, इस दौरान पुलिस और किसानों के बीच जमकर हिंसक झड़प हुई. प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर बैरेकेडिंग तोड़ते हुए दिल्ली के अंदर घुस गए और जबरन तोड़फोड़ की । 
दिल्ली की सीमाओं पर किसानों ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दिए, कई जगहों पर पुलिस ने बवाल मचा रहे किसानों को तितर बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया. कई जगहों पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए , इस दौरान पुलिस के साथ कई झड़प के दृश्य भी सामने आए। सेंट्रल दिल्ली के आईटीओ में प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए पुलिस की तरफ से आंसू गैस के गोले छोड़े गए लेकिन, प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड को तोड़कर पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया और पुलिस की गाड़ियों में तोड़फोड़ की, हालांकि किसानों के उग्र प्रदर्शन से किसान नेताओं ने पल्ला झाड़ लिया है। गौरतलब है कि किसान संगठन केन्द्र सरकार की तरफ से सितंबर महीने में लाए गए तीन नए कृषि कानूनों का विरोधस्वरुप पिछले करीब महीने से भी ज्यादा वक्त से दिल्ली और इसके आसपास के सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शनकारी किसानों की मांग है कि सरकार नए कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ ही एमएसपी को कानून का हिस्सा बनाए जबकि सरकार का कहना है कि इन कानूनों के जरिए कृषि क्षेत्र में सुधार होगा और नए निवेश के अवसर खुलेंगे।
किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020  किसानों को अपनी उपज को कृषि उपज मंडी  बाजारों के बाहर बेचने की अनुमति देता है।  इसलिए, किसानों के पास स्पष्ट रूप से अधिक विकल्प हैं कि वे किसे बेचना चाहते हैं. मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, 2020 पर किसान सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता विधेयक अनुबंध खेती के लिए एक रूपरेखा की स्थापना के लिए प्रावधान करता है। किसान और एक खरीदार उत्पादन होने से पहले एक सौदा कर सकते हैं. किसानों की आपत्तियां देखे तो वो कहते है कि अध्यादेशों की घोषणा के समय और बाद में संसद के माध्यम से विधेयकों को आगे बढ़ाने के दौरान केंद्र सरकार द्वारा कोई परामर्श नहीं किया गया था । कृषि बाजारों ��ें वैश्विक अनुभव यह दर्शाता है कि किसानों के लिए एक सुनिश्चित भुगतान गारंटी बड़े व्यवसाय के हाथों किसानों के शोषण का परिणाम है । इससे छोटे और सीमांत किसानों को खतरा है जो कुल किसानों का 86% हिस्सा हैं।
हरीश दामोदरन कृषि अर्थशास्त्री के अनुसार अनुबंध पर खेती अधिनियम पर आपत्ति करने के लिए बहुत कम तर्क है जो केवल अनुबंध खेती को सक्षम बनाता है। कंपनियों और किसानों के बीच इस तरह के विशेष समझौते आलू, टमाटर जैसे विशेष प्रसंस्करण ग्रेड की फसलों में पहले से ही चालू हैं.अनुबंध की खेती प्रकृति में स्वैच्छिक है यह प्रावधान प्रकृति में सुधारवादी है जब यह एपीएमसी की बात आती है, तो किसान, अपने हिस्से के लिए, अपनी उपज की आवाजाही, स्टॉकिंग और निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं चाहते हैं विपणन के मामले में – विशेष रूप से एपीएमसी के एकाधिकार को समाप्त करने – किसानों, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में, किसी को और कहीं भी बेचने के लिए “स्वतंत्रता की पसंद” के बारे में बहुत आश्वस्त नहीं हैं। इस विवाद का कारण धान, गेहूं और बढ़ती दाल, कपास, मूंगफली और सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद है इस प्रकार देखे तो तीनों बिल पूरी तरह किसान हितैषी ही तो है।
मगर किसानों कि आड़ में ये मुद्दा राजनैतिक हो गया है ये कौन सा तरीका है कि संसद द्वारा बनाये गए कानूनों को ऐसे आंदोलन ले जरिये बदलने की कोश्शि की जाये. संसद की गरिमा कहाँ रह जाएगी फिर? क्या संसद के बहुमत की कोई महत्ता नहीं है?  लाल किले पर 26  जनवरी के दिन खालिस्तानी  झंडा लहराना भारत के वजूद को ख़त्म करने की गहरी साजिश प्रतीत हुआ, किसान आंदोलन और लाल किले पर ऐसे खालिस्तानी झंडा फहराना भारत की प्रभुसत्ता को ललकारना है। यह बात तो सच है कि आज इन प्रोटेस्टर्स की काली करतूत देश के सामने आ गई आज ये आंदोलन पूरी तरह से नंगा हो गया. इनके प्रति इतने दिनों से देश की जो सहानुभूति थी  वह सब खत्म हो गई. सारा देश अब  इन पर थु-थू कर रहा है जब हम सब सारे भारतवासी राष्ट्रीय पर्व मनाने में व्यस्त थे तब ये घटिया मानसिकता के लोग, देश की राजधानी में हिंसा और अराजकता फैला रहे थे।
सरकार ने अब तक पूरे मामले में बड़ा शांतिपूर्ण साथ दिया है हमारे पुलिस कर्मी भाई-बहन देश की आन-बान के लिए घायल हुए, उनको तहदिल से सलाम ,सरकार की नींव आज और मजबूत हुई है और पूरे देश ने देखा कि आंदोलनकारी किसान नहीं है और न ही वर्तमान सरकार द्वारा लाये गए बिल किसान विरोधी है. धरने पर बैठे लोग सोच-समझी राजनीति कर रहें हैं। ये ऐसे लोग है जो अपनी घटिया मानसिकता के कारण देश को अस्थिर करना चाहते है। सुप्रीम कोर्ट को अब इस मामले को दोबारा से सुनना चाहिए, ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश देने चाहिए जो हमारी राष्ट्रीय एकता और संविधान पर चोट करें, वो भी पूरी तरह ��्लानिंग के जरिये ये किसान आंदोलन नहीं है ये भारत की संप्रभुता पर आतंकी हमला है इस तरह के हमलों को सरकार को कुचल देना चाहिए। दूसरी तरफ असली किसान नेताओं को सामने आकर भारत सरकार से सीधी बात करनी चाहिए। ऐसे घटिया लोगों के नाम सामने आने चाहिए जो अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिए देश के किसान को आगे कर अपना घिनौना खेल रच रहें है उनको ये सच बताना ही होगा कि देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता।
(यह लेखक ने निजी विचार है)
 डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
0 notes