#श्रीकृष्ण का जीवन
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लखनऊ, 11.12.2024 | ‘भगवद् गीता जयंती’ के शुभ अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में “पुष्प अर्पण” कार्यक्रम का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम में ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ॰ रूपल अग्रवाल एवं ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने भगवान श्रीकृष्ण के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर अपनी श्रद्धा और आस्था प्रकट की ।
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “यह दिन हमें जीवन के वास्तविक उद्देश्य और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है । भगवद् गीता, जो महाभारत के युद्ध क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश के रूप में दी गई, केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन का मार्गदर्शन करने वाला अमूल्य ज्ञान है । गीता हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, हमें अपने धर्म और कर्तव्यों का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए । यह ग्रंथ हमें कर्म, भक्ति और ज्ञान का संतुलन सिखाता है । श्रीकृष्ण का संदेश है कि हम अपने कर्म करें और फल की चिंता न करें । आज के दिन, हम सभी को गीता के उपदेशों को अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लेना चाहिए । आइए, हम अपने जीवन को सत्य, निष्ठा और अनुशासन के मार्ग पर चलाने के लिए प्रेरित हों ।“
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तुम्हारा यह सुझाव बहुत अच्छा है कि वृन्दावन का भ्रमण करने वाले भक्तों को प्रचार और कीर्तन जैसे कार्यों में संलग्न होना चाहिए। श्रीकृष्ण की सेवा के लिए ��मने अपना जीवन बलिदान कर दिया है, फिर सोने और व्यर्थ बातें करने का समय ही कहाँ है? तुम मेरा उदाहरण देख सकते हो, मेरा एक भी क्षण व्यर्थ नहीं जाता। गुरुदास को लिखा पत्र, 5 फरवरी 1977
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गीता वाला काल कौन?गीता ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहांअध्याय 11 श्लोक 21 व 46 में अर्जुनकह रहा है।कि भगवन्! आप तो ऋषियों,देवताओं तथा सिद्धों को भी खा रहे हो, जोआप का ही गुणगान पवित्र वेदों के मंत्रों द्वाराउच्चारण कर रहे हैं तथा अपने जीवन कीरक्षा के लिए मंगल कामना कर रहे है। कुछआपके दाढ़ों में लटक रहे हैं, कुछ आपकेमुख में समा रहे हैं। हे सहस्रबाहु अर्थात्हजार भुजा वाले भगवान! आप अपने उसीचतुर्भुज रूप में आईये। मैं आपके विकरालरूप को देखकर धीरज नहीं रख पा रहा हूँ।श्री कृष्ण जी तो अर्जुन के साले थे। श्री कृष्णकी बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआथा। क्या व्यक्ति अपने साले को भी नहींजानता? इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नहीं कहा, काल ब्रह्म ने बोला था।जगतगुरु तत्वदरशी संत रामपाल जीमहाराज
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जीवनपद्धतीचे सर्व सार ज्यात समाविष्ट आहे!
त्या पवित्र श्रीमद् भगवतगितेला नमन !!
समस्त देश व प्रदेश वासियों को #श्रीमद्भागवत_गीता की #सांकेतिक_जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ।
#जगतज्ञानी #परमेश्वर #भगवान #श्रीकृष्ण के #अनमोल_वचन आज भी हमारे जीवन में #समता #त्याग एवं #कर्म करने का #दर्शन देती है ।
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जीवनपद्धतीचे सर्व सार ज्यात समाविष्ट आहे!
त्या पवित्र श्रीमद् भगवतगितेला नमन !!
समस्त देश व प्रदेश वासियों को #श्रीमद्भागवत_गीता की #सांकेतिक_जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ।
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67. संबद्ध आणि असंबद्ध
श्रीकृष्ण आपल्याला खात्री देतात की अनासक्तीने कृती केल्याने, म्हणजे आसक्ती आणि अलिप्ततेच्या पलीकडे जाऊन, व्यक्ती सर्वोच्च स्थितीला प्राप्त करतो (3.19) आणि राजा जनकाचे उदाहरण देतो, ज्याने केवळ कृतीद्वारे सिद्धी प्राप्त केली (3.20).
श्रीकृष्ण सांगतात की विलासात मग्न असलेला आणि अनेक जबाबदाऱ्या असलेला राजासुद्धा सर्व कार्ये अलिप्ततेने करून परमात्म्याला प्राप्त करू शकतो. याचा अर्थ असा आहे की आपणही आपल्या परिस्थितीला न जुमानता याच मार्गाने सर्वोच्च स्थानी पोहोचू शकतो.
इतिहासात अशी फार कमी उदाहरणे आहेत जिथे दोन ज्ञानी व्यक्तींनी संवाद साधला असेल. असाच एक संभाषण राजा जनक आणि ऋषी अष्टावक्र यांच्यात आहे, ज्याला अष्टावक्र गीता म्हणून ओळखले जाते, जे साधकांसाठी सर्वोत्तम मानले जाते.
असे म्हणतात की एकदा एका गुरूंनी आपल्या एका शिष्याला, जो लंगोटी आणि भिक्षेची वाटी घेऊन राहत होता, राजा जनकाकडे त्याच्या शेवटच्या पाठासाठी पाठवले. तो जनकाकडे येतो आणि त्याला आश्चर्य वाटते की त्याच्या गुरूंनी त्याला या माणसाकडे का पाठवले जो ऐशोआरामात राहतो पण गुरूंच्या आज्ञेनुसार तो राजवाड्यातच राहतो. एके दिवशी सकाळी जनक त्याला आंघोळीसाठी जवळच्या नदीवर घेऊन जातो. डुबकी मारताना त्यांना बातमी मिळते की राजवाडा जळून खाक झाला आहे. विद्यार्थ्याला त्याच्या लंगोटीबद्दल काळजी वाटते तर पालक निश्चिंत राहतात. त्याच क्षणी विद्यार्थ्याच्या लक्षात आले की सामान्य लंगोटीची देखील आसक्ती आहे आणि ती सोडण्याची गरज आहे.
आसक्तीशिवाय कार्य करणे ही गीतेची मूळ शिकवण आहे. ही संबद्ध असण्याची तसेच असंबद्ध असण्याची अवस्था आहे. भौतिक जगात, एखाद्याला पूर्णपणे संबद्ध पाहिजे आणि दिलेल्या परिस्थितीत सर्वोत्तम कार्य करावे लागेल. त्याच वेळी, तो आंतरिकपणे असंबद्ध आहे कारण अशा कृतींचे परिणाम त्याच्यावर होणार नाहीत. परिणाम केलेल्या प्रयत्नांनुसार असू शकतात किंवा ते प��र्णपणे विरुद्ध असू शकतात आणि कोणत्याही परिस्थितीत, तो चिंतित किंवा अस्वस्थ नाही. ‘कार्य-जीवन’ संतुलन राखण्याची ही गुरुकिल्ली आहे.
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79. समय से परे
श्रीमद्भगवद्गीता दो स्तरों का एक सुसंगत समिश्रण है और हमें गीता को समझने के लिए इसके बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है। कभी-कभी श्रीकृष्ण मित्र या मार्गदर्शक के रूप में अर्जुन से व्यवहार करके मनुष्यों के सामने आने वाली दैनिक समस्याओं को समझाते हैं। कभी-कभी वह परमात्मा के रूप में आते हैं और उस अवस्था में वह कहते हैं कि मैंने यह अविनाशी योग विवस्वत को दिया था, जो उत्तराधिकार में राज-ऋषियों को सौंप दिया गया था (4.1) और समय के साथ यह योग लुप्त हो गई थी (4.2)।
विवस्वत का अनुवाद सूर्य-भगवान के रूप में किया गया है, जो प्रकाश का एक रूपक है। यह स्वीकार किया जाता है कि इस ब्रह्माण्ड की शुरुआत प्रकाश से हुई और बाद में पदार्थ का गठन हुआ। मगर श्रीकृष्ण संकेत कर रहे हैं कि वे प्रकाश से भी पहले थे।
श्रीकृष्ण राज-ऋषियों को संदर्भित करते हैं जो समय के विभिन्न बिंदुओं पर प्रबुद्ध लोगों के अलावा और कुछ नहीं हैं। यह ज्ञान लुप्त हो गया क्योंकि समय के साथ यह एक अनुभवात्मक स्तर से कर्मकांड या अनुष्ठान में बदल गया। अभ्यास कम और उपदेश अधिक हो गया एवं धर्मों और संप्रदायों का आकार ले लिया।
अर्जुन प्रश्न करते हैं कि श्रीकृष्ण ने सूर्य को यह कैसे सिखाया क्योंकि उनका जन्म हाल ही में हुआ है (4.4)। श्रीकृष्ण जवाब देते हैं कि मेरे और आपके कई जन्म हुए और आप उनके बारे में नहीं जानते, जबकि मैं जानता हूँ (4.5)। अर्जुन का यह प्रश्न मानवीय स्तर पर बहुत स्वाभाविक और तार्किक है। इस स्तर पर, हम जन्म और मृत्यु का अनुभव करने के लिए समय के नियंत्रण में रहते हैं। जन्म से पहले क्या था और मृत्यु के बाद क्या होगा, इसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।
श्रीकृष्ण का उत्तर परमात्मा के स्तर पर है जो समय से परे है। इससे पहले, श्रीकृष्ण ने आत्मा के बारे में समझाया था जो शाश्वत है और भौतिक शरीरों को बदल देती है जैसे कि हम पुराने कपड़ों को त्याग देते हैं। जो कोई भी उस शाश्वत अवस्था तक पहुँच जाता है वह समय से परे है। उदाहरण के लिये एक फूल को अपनी खिलने की शक्ति का पता नहीं होता है जबकि यह शक्ति पहले भी थी और फूल के जीवन के बाद भी रहेगी।
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20 फरवरी 2025 : आपका जन्मदिन
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
*🚩🔱ॐगं गणपतये नमः🔱🚩*
🌹 *सुप्रभात जय श्री राधे कृष्णा*🌹
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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👍🏻👍🏻आध्यात्मिक गुरु 👍🏻राधे राधे 8764415587, 9610752236
जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत है #वास्तु_ऐस्ट्रो_टेक_सर्विसेज_टिप्स की विशेष प्रस्तुति में। यह कॉलम नियमित रूप से उन पाठकों के व्यक्तित्व और भविष्य के बारे में जानकारी देगा जिनका उस दिनांक को जन्मदिन होगा। पेश है दिनांक 20 को जन्मे व्यक्तियों के बारे में जानकारी : दिनांक 20 को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 2 होगा। आप अत्यधिक भावुक होते हैं। आप स्वभाव से शंकालु भी होते हैं। दूसरों के दु:ख-दर्द से आप परेशान हो जाना आपकी कमजोरी है। ग्यारह की संख्या आपस में मिलकर दो होती है इस तरह आपका मूलांक दो होगा। इस मूलांक को चंद्र ग्रह संचालित करता है। चंद्र ग्रह मन का कारक होता है।
चंद्र के समान आपके स्वभाव में भी उतार-चढ़ाव पाया जाता है। आप अगर जल्दबाजी को त्याग दें तो आप जीवन में बहुत सफल होते हैं। आप मानसिक रूप से तो स्वस्थ हैं लेकिन शारीरिक रूप से आप कमजोर हैं। चंद्र ग्रह स्त्री ग्रह माना गया है। अत: आप अत्यंत कोमल स्वभाव के हैं। आपमें अभिमान तो जरा भी नहीं होता।
शुभ दिनांक : 2, 11, 20, 23, 25, 27, 29
शुभ अंक : 2, 11, 20, 29, 56, 65, 92
शुभ वर्ष : 2027, 2029, 2031, 2033
ईष्टदेव : श्रीकृष्ण, शनि महाराज के ईष्ट दे, भगवान शिव, बटुक भैरव
शुभ रंग : सफेद, हल्का नीला, सिल्वर ग्रे
कैसा रहेगा यह वर्ष
लेखन से संबंधित मामलों में सावधानी रखना होगी। बगैर देखे किसी कागजात पर हस्ताक्षर ना करें। किसी नवीन कार्य योजनाओं की शुरुआत करने से पहले बड़ों की सलाह लें। व्यापार-व्यवसाय की स्थिति ठीक-ठीक रहेगी। स्वास्थ्य की दृष्टि से संभल कर चलने का वक्त होगा। पारिवारिक विवाद आपसी मेलजोल से ही सुलझाएं। दखलअंदाजी ठीक नहीं रहेगी।
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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*🔱माघ एकादशी महत्तम🔱*
🚩🌹💥माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर जया एकादशी व्रत रखा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जया इस व्रत करने से व्यक्ति को विष्णु जी की कृपा के साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.
🚩📌हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बड़ा महत्व माना जाता है. एकादशी का दिन पूर्ण रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित माना जाता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है. हर माह में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है. माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है, जो कि विशेष महत्व रखती है. जया एकादशी को भीष्म एकादशी या भूमि एकादशी भी कहा जाता है. जया एकादशी माघ माह की दूसरी एकादशी होती है.
💥🍀धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को भगवान विष्णु के साथ ही ��न की देवी लक्ष्मी जी की भी कृपा प्राप्त होती है. अब आपको जया एकादशी के बारे में तो पता चल गया लेकिन क्या आप जानते हैं कि जया एकादशी का व्रत क्यों रखा जाता है? अगर नहीं,
*✨️🌟जया एकादशी का महत्व क्या है?*
‘पद्म पुराण’ में श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को “जया एकादशी” कहा जाता है. यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है और इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच आदि योनि से मुक्ति मिल जाती है. भगवान श्री कृष्ण ने इस संदर्भ में युधिष्ठिर को एक कथा भी सुनाई थी.
*🌞📍जया एकादशी व्रत करने से क्या होता है?*
‘पद्म पुराण’ के साथ ही अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी जया एकादशी के महत्व के बारे में बताया गया है. जया एकादशी व्रत के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि यह व्रत करने से ‘ब्रह्म हत्या’ जैसे पाप से भी मुक्ति मिल सकती है. ऐसा भी माना जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को पूरे श्रद्धाभाव से करता है, उसे भूत-प्रेत और पिशाच योनि की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती हैं.
💥🌞📌धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जया एकादशी का व्रत करने से विष्णु जी के साथ-साथ धन की देवी लक्ष्मी जी की भी आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इसके साथ ही जया एकादशी का व्रत करने से जाने-अनजाने में किए गए पापों का अंत भी होता है.
*😄🌞💥जया एकादशी व्रत के नियम*
जया एकादशी व्रत में आप फलाहार कर सकते हैं और व्रत रखकर दिन में सोना नहीं चाहिए. जया एकाशी का व्रत रखने के लिए दशमी तिथि से ही चावल नहीं खाने चाहिए और व्रत का पारण हमेशा चावल खाकर करना चाहिए. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में किया जाता है. जया एकादशी व्रत में श्रीहरि की पूजा के दौरान तुलसी के पत्ते जरूर अर्पित करने चाहिए. हालांकि, पूजा में पत्ते चढ़ाने के लिए दशमी तिथि पर ही तुलसी के पत्ते तोड़कर रख लें, क्योंकि एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित होता है.
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#अध्यात्म_ज्ञान_गंगा
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📗भगवान राम व भगवान कृष्ण जी सतयुग में नहीं थे। तब किस राम की भक्ति होती थी?जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
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📗मनमानी पूजा करने से कभी मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती।
जानिए मोक्ष पाने का सच्चा मार्ग। अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
📗पवित्र गुरु ग्रन्थ साहेब में नानक जी ने धानक शब्द परमात्मा के लिए लिखा है।
वह परमात्मा कौन है ? जानने के लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक ज्ञान गंगा।
📗पवित्र कुरान सुरत-फुर्कानि 25 आयत नंबर 52 से 59 में जिस बाखबर की बात कही गयी है, उसकी पहचान क्या है?
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फिर हमको दुख देने वाला कौन है?
पढ़ें अनमोल पुस्तक ज्ञान गंगा और जानें कई गहरे राज़।
📗ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी भक्ति में लगे रहते हैं। आओ ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़कर जानें ये तीनों भगवान किस परमात्मा की भक्ति करते हैं।
📗सभी प्रभु की भक्ति करते हैं
फिर भी संसार में दुख और रोग क्यों हैं?
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🌟कौन हैं सबसे बड़े भगवान? जानें उनका असली स्वरूप | कौन है सबका पालनहार? | Sant Rampal Ji LIVE 🌟
इस वीडियो में हम जानेंगे:
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✅ गीता और वेदों के अनुसार कौन हैं अविनाशी परमात्मा?
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1️⃣ क्या ब्रह्मा, विष्णु, शिव और दुर्गा जी अविनाशी हैं?
2️⃣ कबीर साहेब को वेदों और शास्त्रों में परमात्मा क्यों कहा गया है?
3️⃣ कैसे कबीर परमात्मा ने भक्तों की रक्षा के लिए अद्भुत चमत्कार किए?
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मैं केवल सलाह दे सकता हूँ और जहाँ तक सम्भव हो उसका पालन किया जा सकता है, किन्तु मैं किसी के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता। आख़िरकार, मुझसे प्रेम के कारण ही आप सभी श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए इतना कठिन परिश्रम कर रहे हैं, इसलिए यदि प्रेम है तो जबरदस्ती का प्रश्न ही नहीं उठता। हमें कभी भी किसी के साथ ना ही जबरदस्ती का प्रयास करना चाहिए ना ही इस संस्था को एक व्यापारी संस्थान जैसा बनाना चाहिए। इससे सबकुछ नष्ट हो जायेगा। प्रत्येक प्रयास में हमारा एकमात्र उद्देश्य आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना अथवा श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना है। भक्तदास को पत्र, 9 अप्रैल 1972
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जैवत है सुकुंवार ।
सरस सुगंध उठत उछगारें भरि खिचरी के थार ।।
पापर कचरी तलप कटाक्षन भृकुटी मुरन को अचार ।
जुरे परस्पर नैन दुहुन के प्रेम रूप को अहार ।।
पहिलै प्रियहिं जिवाँवत जैवत रहत है वदन निहार ।
ऐसी विधि सों जेंवत प्यारे हित सुख की ज्यौनार ।।
प्यारे श्री राधावल्लभ लाल प्रेम के रस में सराबोर होकर इस पद के भावों को दर्शाते हैं। यह प्रेम का वह दिव्य स्वरूप है, जिसमें राधा-कृष्ण के बीच के सरल, सजीव और गहन भावों का आदान-प्रदान होता है।
श्रीकृष्ण, जो स्वयं प्रेम के केंद्र हैं, आनंदपूर्वक जीवन का रस ले रहे हैं। खिचड़ी, पापड़, कचरी, और अचार जैसे प्रतीकों के माध्यम से यह दिखाया गया है कि उनका प्रेम केवल भोजन तक सीमित नहीं, बल्कि उनकी आत्माओं के मेल का अहसास है।
राधा रानी, अपने प्रियतम के सुख के लिए, प्रेम और भक्ति से परिपूर्ण भावों को भोजन की तरह परोसती हैं। उनकी आंखों का मिलना, उनके हृदयों को प्रेम रूपी भोजन से तृप्त करता है। यह मिलन केवल दृष्टि का नहीं, बल्कि आत्माओं का मिलन है, जो जीवनदायी है।
यह पद श्री राधावल्लभ लाल के प्रेम और आनंद के उस रस को व्यक्त करता है, जो हर पल को दिव्यता से भर देता है।
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श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग | बुद्धि का उपयोग |
गीता में योग शब्द को एक नहीं बल्कि कई अर्थों में प्रयोग हुआ है, लेकिन हर योग अंतत: ईश्वर से मिलने मार्ग से ही जुड़ता है। योग का मतलब है आत्मा से परमात्मा का मिलन। गीता में योग के कई प्रकार ��ैं, लेकिन मुख्यत: तीन योग का वास्ता मनुष्य से अधिक होता है। ये तीन योग हैं, ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। महाभारत युदध् के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातों में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को बताया था कि जीवन में सबसे बड़ा योग कुछ है तो वह है, कर्म योग। उन्होंने बताया था कि कर्म योग से कोई भी मुक्त नहीं हो सकता, वह स्वयं भी कर्म योग से बंधे हैं। कर्म योग ईश्वर को भी बंधन में बांधे हुए रखता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि भगवान शिव से बड़ा तपस्वी कोई नहीं हैं और वह कैलाश पर ध्यान योग मुद्रा में लीन रहते हैं। श्रीकृष्ण योग ने अर्जुन को 18 प्रकार के योग मुद्रा के बारे में जानकारी देकर उनके मन के मैल को साफ किया था। क्या हैं ये 18 योग मुद्राएं? गीता में उल्लेखित श्रीकृष्ण के इस ज्ञान को आइए हम भी जानें। #motivation #geetagyan #geetaupdesh #geetasaar #gita #gitagyan #gitaupdesh #krishnastatus #krishnavani #krishnamotivationalspeech #krishnaupdesh #krishnaquotes #krishnamotivation #krishnamotivationalvideo #shahajipatil संपूर्ण गीता सार | Shrimad Bhagwat Geeta Saar | श्रीमद भगवद गीता | Shrimad Bhagavad Gita | सांख्य योग | बुद्धि का उपयोग |
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Gita Updesh: गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है सुखी जीवन का राज, आसपास भी नहीं भटकेगा दुख
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