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#श्रीकृष्ण का जीवन
iskconchd · 6 months
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मैं केवल सलाह दे सकता हूँ और जहाँ तक सम्भव हो उसका पालन किया जा सकता है, किन्तु मैं किसी के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता। आख़िरकार, मुझसे प्रेम के कारण ही आप सभी श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए इतना कठिन परिश्रम कर रहे हैं, इसलिए यदि प्रेम है तो जबरदस्ती का प्रश्न ही नहीं उठता। हमें कभी भी किसी के साथ ना ही जबरदस्ती का प्रयास करना चाहिए ना ही इस संस्था को एक व्यापारी संस्थान जैसा बनाना चाहिए। इससे सबकुछ नष्ट हो जायेगा। प्रत्येक प्रयास में हमारा एकमात्र उद्देश्य आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करना अथवा श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना है। भक्तदास को पत्र, 9 अप्रैल 1972
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helpukiranagarwal · 10 months
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जीवनपद्धतीचे सर्व सार ज्यात समाविष्ट आहे!
त्या पवित्र श्रीमद् भगवतगितेला नमन !!
समस्त देश व प्रदेश वासियों को #श्रीमद्भागवत_गीता की #सांकेतिक_जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ।
#जगतज्ञानी #परमेश्वर #भगवान #श्रीकृष्ण के #अनमोल_वचन आज भी हमारे जीवन में #समता #त्याग एवं #कर्म करने का #दर्शन देती है ।
#GeetaJayanti
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helputrust · 10 months
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त्या पवित्र श्रीमद् भगवतगितेला नमन !!
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helputrust-drrupal · 10 months
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जीवनपद्धतीचे सर्व सार ज्यात समाविष्ट आहे!
त्या पवित्र श्रीमद् भगवतगितेला नमन !!
समस्त देश व प्रदेश वासियों को #श्रीमद्भागवत_गीता की #सांकेतिक_जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ।
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sampannamayapvt · 2 years
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गोवर्धन पूजा हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। लोग इसे #अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं ।
यह #दिवाली के दूसरे दिन ही मनाया जाता है । #गोवर्धनपूजा को पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है । इस पर्व पर भगवान श्री #कृष्ण के गोवर्धन स्वरुप की पूजा की जाती है और उन्हें छप्पन भोग और अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाया जाता है ।
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दूसरे दिन को "परीवा" कहा जाता है और इसी दिन गोवर्धन पूजा की जाती है ।
इस पर्व पर लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं । कहते हैं कि सही मुहूर्त पर गोवर्धन की पूजा की जाए तो बहुत ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
कहते हैं द्वापर युग में भगवान नारायण ने पृथ्वी पर धर्म स्थापना हेतु श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। ब्रजभूमि में जन्मे श्री कृष्ण एक ग्वाले थे और उन्हें प्रकृति से विशेष लगाव था। उस युग में ब्रजभूमि के लोग भगवान इंद्र को अपना अस्तित्व मानते थे । मगर श्रीकृष्ण का मानना था कि जो पर्वत ब्रिज वासियों को फल - फूल और अन्य सुविधाएं देता है उसे छोड़कर देवराज इंद्र की पूजा क्यों की जाती है? जब देवराज इंद्र की पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा ब्रिज वासियों ने की तो देवराज इंद्र ने लगातार बारिश कर पूरी ब्रजभूमि को पानी मय कर दिया था । तब भगवान श्रीकृष्ण ने देवराज इंद्र को अहंकार का नाश करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपने हाथों की सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया था और ब्रज वासियों की रक्षा की थी ।
तब से गोवर्धन पूजा हर साल धूमधाम से हर घर में की जाती है ।
पूजा सामग्री के लिए #संपन्नमाया अगरबत्ती के द्वारा बताई हुए समस्त सामग्रियाँ आसानी से हर जगह उपलब्ध हैं | www.sampannamaya.com पर अवश्य जाकर देखें | यह अत्यंत शुद्ध है और आपके जीवन को सुगंध-मय बना देता हैl
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gitaacharaninhindi · 8 days
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55. दुष्चक्र और गुणी चक्र
दुष्चक्र और गुणी चक्र घटनाओं का एक क्रम है जहां एक घटना दूसरे की ओर ले जाती है और परिणामस्वरूप क्रमश: आपदा या खुशी में परिवर्तित हो जाती है। इसे उस तरह से समझने कि जरूरत है, यदि खर्च आय से अधिक है तो व्यक्ति उधार और कर्ज के जाल में फंस जाता है, तो यह एक दुष्चक्र है। यदि व्यय आय से कम है, जिसके परिणामस्वरूप बचत और धन का संचय होता है, तो यह एक गुणी चक्र है। श्रीकृष्ण इन चक्रों का उल्लेख श्लोक 2.62 से 2.64 में करते हैं।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘‘विषयों का चिंतन करनेवाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पडऩे से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से अत्यन्त मूढ़भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है’’ (2.62-2.63)। यह पतन का दुष्चक्र है।
दूसरी ओर, श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘‘अपने अधीन किये हुए मन वाला साधक अपने वश में की हुई, राग-द्वेष से रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ मन की शांति और प्रसन्नता को हासिल करता है’’ (2.64)। यह और कुछ नहीं बल्कि शांति और आनंद का एक गुणी चक्र है।
हम सभी दैनिक जीवन में इन्द्रिय विषयों के बीच घूमते रहते हैं। हम इन इंद्रिय विषयों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, यह हमारी यात्रा की दिशा निर्धारित करता है।
गुणी चक्र के मामले में, व्यक्ति इंद्रिय विषयों के प्रति राग और द्वेष से मुक्त हो जाता है, जबकि एक दुष्चक्र में व्यक्ति राग या द्वेष के प्रति लगाव विकसित करता है। यह यात्रा द्वेष का त्याग करते हुए शुरू करना आसान है, इस अहसास के साथ कि द्वेष एक प्रकार का जहर है जो अंतत: हमें नुकसान पहुंचाएगा। जब द्वेष का त्याग हो जाता है, तो इसका ध्रुवीय विपरीत ‘राग’ भी छूट जाता है। यह सच्चा और बिना शर्त वाले प्यार की अवस्था है जैसे कि एक फूल सुंदरता और सुगंध बिखेरता है।
राग और द्वेष की अनुपस्थिति गीता में एक मूल उपदेश है और श्रीकृष्ण हमें परामर्श देते हैं कि खुद को सभी प्राणियों में, सभी प्राणियों को खुद में देखें और अंत में हर जगह श्रीकृष्ण को देखें (6.29)। यह एकता हमें द्वेष छोडऩे में मदद करेगी व हमें आनंदित करेगी।
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ragbuveer · 9 days
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20 सितम्बर 2024 : आपका जन्मदिन
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
*🚩🔱ॐगं गणपतये नमः🔱🚩*
🌹 *सुप्रभात जय श्री राधे कृष्णा*🌹
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
#वास्तु_ऐस्ट्रो_टेक_सर्विसेज_टिप्स
#हम_सबका_स्वाभिमान_है_मोदी
#योगी_जी_हैं_तो_मुमकिन_है
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※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
👍🏻👍🏻आध्यात्मिक गुरु 👍🏻राधे राधे 8764415587, 9610752236
जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत है #वास्तु_ऐस्ट्रो_टेक_सर्विसेज_टिप्स की विशेष प्रस्तुति में। यह कॉलम नियमित रूप से उन पाठकों के व्यक्तित्व और भविष्य के बारे में जानकारी देगा जिनका उस दिनांक को जन्मदिन होगा। पेश है दिनांक 20 को जन्मे व्यक्तियों के बारे में जानकारी : दिनांक 20 को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 2 होगा। आप अत्यधिक भावुक होते हैं। आप स्वभाव से शंकालु भी होते हैं। दूसरों के दु:ख-दर्द से आप परेशान हो जाना आपकी कमजोरी है। ग्यारह की संख्या आपस में मिलकर दो होती है इस तरह आपका मूलांक दो होगा। इस मूलांक को चंद्र ग्रह संचालित करता है। चंद्र ग्रह मन का कारक होता है।
चंद्र के समान आपके स्वभाव में भी उतार-चढ़ाव पाया जाता है। आप अगर जल्दबाजी को त्याग दें तो आप जीवन में बहुत सफल होते हैं। आप मानसिक रूप से तो स्वस्थ हैं लेकिन शारीरिक रूप से आप कमजोर हैं। चंद्र ग्रह स्त्री ग्रह माना गया है। अत: आप अत्यंत कोमल स्वभाव के हैं। आपमें अभिमान तो जरा भी नहीं होता।
शुभ दिनांक : 2, 11, 20, 23, 25, 27, 29
शुभ अंक : 2, 11, 20, 29, 56, 65, 92
शुभ वर्ष : 2025, 2027, 2029, 2036
ईष्टदेव : श्रीकृष्ण, शनि म��ाराज के ईष्ट दे, भगवान शिव, बटुक भैरव
शुभ रंग : सफेद, हल्का नीला, सिल्वर ग्रे
कैसा रहेगा यह वर्ष
लेखन से संबंधित मामलों में सावधानी रखना होगी। बगैर देखे किसी कागजात पर हस्ताक्षर ना करें। किसी नवीन कार्य योजनाओं की शुरुआत करने से पहले बड़ों की सलाह लें। व्यापार-व्यवसाय की स्थिति ठीक-ठीक रहेगी। स्वास्थ्य की दृष्टि से संभल कर चलने का वक्त होगा। पारिवारिक विवाद आपसी मेलजोल से ही सुलझाएं। दखलअंदाजी ठीक नहीं रहेगी।
※══❖═══▩राधे राधे▩═══❖══※
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varanasi-city · 17 days
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Radha Ashtami 2024: Radha Ashtami Vrat Katha : राधा अष्टमी पर जरूर करें इस कथा का पाठ, बरसेगी किशोरी जी की अपार कृपा
Radha Ashtami Vrat Katha in Hindi: राधा अष्टमी 11 सितम्बर, बुधवार को है। राधा अष्टमी का पर्व हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है। राधा अष्टमी पर श्री राधा और श्रीकृष्ण की विधि-विधान के साथ पूजा करके राधा अष्टमी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा अष्टमी का पाठ करने से भाग्य लक्ष्मी की कृपा बरसती है और व्रती मनुष्य के जीवन में…
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parasparivaarorg · 23 days
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Sanatan Dharm ke Paras Guru Ji dvaara Aayujit Janmaashtami Mahotsav
संसार को गीता का उपदेश देने वाले कृष्ण के जन्म का महोत्सव
महंत पारस जी के अनुसार पुरातन सनातन धर्म में कई धार्मिक त्योहारों को सूचीबद्ध किया गया है,उन प्रमुख धार्मिक त्योहारों में से एक है जन्माष्टमी, जिसे कृष्ण अष्टमी और गोकुलाष्टमी के नाम से भी जानते हैं। यह हिन्दुओं के सबसे प्रतिष्ठित त्योहारों में एक है, जो विष्णु के आंठवे अवतार भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मानते है। यह उत्सव जीवन में आनंद, भक्ति, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और जीवंतता का प्रतीक है।
यह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है जो आमतौर पर अगस्त में आता है।
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ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व
भगवान् श्री कृष्ण हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक माने जाते हैं। हिन्दू वैष्णों धर्म में जन्माष्टमी का विशेष महत्त्व है। महंत पारस जी के अनुसार कृष्ण रास लीला की परंपरा जैसे कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में जागरण करना, भक्ति गायन, नृत्य नाटक ,उपवास रखना जन्माष्टमी उत्सव के भाग हैं। कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र हैं। इनका जन्म मथुरा में भाद्रपद माह के आंठवे दिन की आधी रात को हुआ था। कृष्ण का जन्म अराजकता के समय हुआ था जब उनके मामा कंस द्वारा उनके जीवन के लिए संकट था। यह समय ऐसा था जब उनके मामा के द्वारा उत्पीड़न बड़े पैमाने पर था,और सब ओर बुराई फैली हुई थी
महंत पारस जी ने उल्लेख किया है की हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के काल कोठरी में आधी रात को हुआ था। कथा के अनुसार मथुरा के अत्याचारी साशक कृष्ण के मामा कंस के लिए एक भविष्यवाणी हुई थी की उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इसलिए उसने अपनी बहन देवकी और जीजा वासुदेव को काल कोठरी में बंद कर दिया और उनके हर पुत्र की हत्या कर दी लेकिन ��सके आठवें पुत्र श्री कृष्ण को नहीं मार सका क्युकी जैसे ही वो मारने के आगे बढ़ा वैसे ही शिशु से योगमाया प्रकट हुई और कहा की उसको मारने वाला जन्म ले चुका है और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर पंहुचा दिया गया है जो आगे चलकर उसका वध करेगा। मथुरा के बंदीगृह में जन्म के तुरंत उपरान्त, उनके पिता वसुदेव आनकदुन्दुभि कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं, जिससे बाल श्रीकृष्ण को गोकुल में नन्द और यशोदा को दिया जा सके। इस खबर से मथुरावासियों के भीतर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और उसी दिन से जन्माष्टमी को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाने लगा।
श्री कृष्ण के प्रारंभिक जीवन के बारे में दर्शाते है, उनके चंचल कारनामों और दैवीय चमत्कारों, भगवद् गीता सहित विभिन्न ग्रंथों में वर्णित हैं। सनातन धर्म के रक्षक के रूप में श्री कृष्ण की भूमिका और भक्ति, कर्तव्य और प्रेम पर उनकी अभिव्यक्तियाँ और चरित्र हिन्दू दर्शन का मूल हैं।
उत्सव अनुष्ठान और प्रथाएं
हिन्दू समुदायों की विविध सांस्कृतिक प्रथाओं को दर्शाते हुए, जन्माष्टमी समारोह भारत और दुनिया भर में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। हालांकि, सामान्य विषय और अनुष्ठान इन समारोहों को एकजुट करते हैं।
उपवास और प्रार्थना
महंत पारस जी के अनुयायी इस दिन व्रत रखते हैं, जो आमतौर पर सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन आधी रात के उत्सव के बाद समाप्त होता है। यह व्रत भक्ति और तपस्या का प्रतीक है, जो अनुयायियों को अपनी आध्यात्मिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है। व्रत के दौरान, भक्त प्रार्थना, जप और कृष्ण के जीवन से सम्बंधित ग्रंथों को पढ़ने में, भजन कीर्तन करने में संलग्न होते हैं।
आधी रात का जश्न
जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण आधी रात का उत्सव है, जो कृष्ण के जन्म के सही समय को दर्शाता है। मंदिरों और घरों को फूलों, रौशनी और रंगीन सजावट से सजाया जाता है। उनकी प्रार्थनाएं और भजन गायें जाते हैं,और कृष्ण की छवियों और मूर्तियों को स्न्नान कराया जाता है, सुन्दर सुन्दर कपडे पहनाएं जाते हैं और एक सुन्दर से सजाये गए पालने में रखा जाता है।
भक्त भक्ति गीत गाने, नृत्य करने और कृष्ण के बचपन के कारनामों की पुनरावृत्ति में भाग लेने के लिए इक्कठा होते हैं।
दही हांडी
जन्माष्टमी के सबसे जीवंत और लोकप्रिय पहलुओं में से एक दही हांडी परंपरा है, जो विशेष रूप से महाराष्ट्र और भारत के अन्य क्षेत्रों में मनाई जाती है। इस परंपरा में दही, मक्खन और अन्य वस्तुओं से भरी हुई एक मिटटी की हांडी को जमीन से ऊपर लटकाया जाता है। युवा टीम जिन्हे गोविंदा के नाम से जाना जाता है, हांडी तक पहुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं। यह कृत्य कृष्ण के मक्खन के प्रति प्रेम और उनके शरारती स्वाभाव का प्रतीक है, जो उनकी चंचल भावना और एक नेता और रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन महंत पारस जी के द्वारा दही हांडी का समारोह आयोजन कराई जाती है, लोग दही हांडी तोड़ते हैं जो त्यौहार का एक भाग है। दही हांडी का शाब्दिक अर्थ है दही से भरा मिट्टी का पात्र। दही हांडी के अनुसार श्री कृष्ण अपने सखाओं सहित दही ओर मक्खन जैसे दूध के उत्पादों को ढूंढ कर और चुराकर बाँट देते थे। इसलिए लोग अपने घरों में माखन और दूध की हांडी बालकों की पहुंच से बाहर छिपा देते थे और कृष्ण अपने सखाओं के साथ ऊँचे लटकती हांडियों को तोड़ने के लिए सूच्याकार स्तम्भ बनाते थे। भगवान् कृष्ण की यह लीला भारत भर में हिन्दू मंदिरों के हस्तशिल्पों में, साथ साथ साहित्य में और नृत्य नाटक में प्रदर्शित की जाती है जो बालकों के आनंद और भोलेपन का प्रतीक है।
कृष्ण लीला प्रदर्शन
कृष्ण के जीवन के विभिन्न नाट्य रूपांतरण, जिन्हे कृष्ण लीला के नाम से जाना जाता है, जन्माष्टमी के दौरान प्रदर्शित किये जाते हैं। इन प्रदर्शनों में उनके बचपन के चमत्कारों , राक्षसों के साथ उनकी लड़ाई और महाभारत में उनकी भूमिका का पुनर्मूल्यांकन शामिल है। इन नाटकों का मंचन अक्सर सामुदायिक स्थानों और मंदिरों में किया जाता है, जो बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित करते हैं, मनोरंजन और आध्यात्मिक संवर्धन दोनों प्रदान करते हैं।
क्षेत्रीय विविधताएं
हिन्दू संस्कृति की विविधता को प्रदर्शित करते हुए, जन्माष्टमी को विशिष्ट क्षेत्रीय स्वादों के साथ मनाया जाता है। हर क्षेत्र और जगह का अपना महत्व है, विविधताएं है। हर क्षेत्र में कृष्ण के अलग अलग नाम हैं, विभिन्न क्षेत्रों में पूजा व्रत की अलग अलग विधियां हैं। लोग इस दिन पवित्रता बनाये रखने के लिए विभिन्न धार्मिक कृत्यों का पालन करते हैं। जिनमे विशेषरूप से रात्रि जागरण, पूजा अर्चना, और भजन कीर्तन शामिल हैं।
इन सभी विभिन्न परम्पराओं और अनोखे तरीकों से जन्माष्टमी मानाने का उद्देश्य भगवान श्री की उपस्थिति और उनकी बाल लीलाओं की याद ताज़ा करना होता है। जन्माष्टमी को त्यौहार न सिर्फ धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक एकता और विविधता का भी प्रतीक है।
मथुरा और वृन्दावन
ब्रज क्षेत्र में कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और उनका बचपन का घर वृन्दावन, जन्माष्टमी समारोह के केंद्र हैं। मथुरा वृन्दावन में जन्माष्टमी की शोभा कुछ अलग ही देखने को मिलती है उत्सव में भाग लेने के लिए भारत और दुनिया के कोनों कोनों से तीर्थयात्री इन शहरों में आते हैं। मथुरा में कृष्ण जन्माष्टमी समारोह विशेष रूप से भव्य होते हैं जिसमे जुलुस, भक्ति गायन और विस्तृत अनुष्ठान होते हैं। वृन्दावन अपनी जीवंत उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमे कृष्ण की अपने भक्तों के साथ चंचल बातचीत की पुनरावृत्ति भी शामिल है।
पंजाब/हरयाणा
हरियाणा के (शाहाबाद मारकंडा) में महंत श्री पारस जी द्वारा डेरा नसीब दा में कृष्ण जन्माष्टमी बड़े पैमाने पर मनाई जाती है | पंजाब में जन्माष्टमी उत्साह और उमंग के साथ मनाई जाती है। यह त्यौहार भक्ति पूर्ण गायन, नृत्य और भजनों के गायन द्वारा चिन्हित है। गुरूद्वारे भी उत्सव में भाग लेते हैं, जो क्षेत्र में विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के सामंजस्य पूर्ण सह अस्तित्व को उजागर करते हैं। जन्माष्टमी पर विशेष रूप से खिचड़ी का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में खिचड़ी का वितरण किया जाता है , इसे बड़े श्रद्धा भाव से तैयार किया जाता है और सभी भक्तो के बिच प्रसाद रूप वितरित किया जाता है|
गुजरात / राजस्थान
गुजरात में, जन्माष्टमी को धुलेटी के नाम से जाना जाता है। उत्सव में विशेष प्रार्थनाएं, पारम्परिक नृत्य और उत्सव के भोजन की तैयारी शामिल है। यह क्षेत्र अपनी रंग बिरंगे जुलूसों और विस्तृत सजावट के लिए भी जाना जाता है, जो त्यौहार की ख़ुशी की भावना को दर्शाता है।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
जन्माष्टमी का गहरा आध्यात्मिक महत्व है, जो दैवीय शक्ति और धार्मिकता की जीत का प्रतिनिधित्व करता है। भगवद गीता में वर्णित कृष्ण की शिक्षाएँ कर्तव्य, भक्ति और आत्मा की शाश्वत प्रकृति के महत्व पर जोर देती हैं। ये शिक्षाएँ लाखों अनुयायियों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती रहती हैं।
सांस्कृतिक रूप से, जन्माष्टमी जीवन, कला और परंपरा के एक जीवंत उत्सव के रूप में कार्य करती है। यह त्यौहार समुदायों को एक साथ लाता है, एकता और साझा खुशी की भावना को बढ़ावा देता है। विभिन्न अनुष्ठान और प्रदर्शन न केवल कृष्ण की दिव्य उपस्थिति का जश्न मनाते हैं बल्कि सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा भी देते हैं।
आधुनिक अनुकूलन और वैश्विक उत्सव
हाल के वर्षों में, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में होने वाले उत्सवों के साथ, जन्माष्टमी ने भौगोलिक सीमाओं को पार कर लिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हिंदू समुदाय भक्ति और उत्साह के साथ जन्माष्टमी मनाते हैं। इन देशों में मंदिर और सांस्कृतिक संगठन भजन सत्र, सांस्कृतिक प्रदर्शन और कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं के बारे में शैक्षिक कार्यक्रमों सहित कार्यक्रमों की मेजबानी करते हैं।
जन्माष्टमी की वैश्विक पहुंच हिंदू परंपराओं के प्रति बढ़ती सराहना और कृष्ण की शिक्षाओं की सार्वभौमिक अपील को दर्शाती है। लाइव-स्ट्रीम किए गए कार्यक्रमों, सोशल मीडिया अभियानों और दुनिया भर के भक्तों को जोड़ने वाले ऑनलाइन मंचों के साथ आधुनिक तकनीक ने भी त्योहार के प्रभाव को बढ़ाने में भूमिका निभाई है।
1. धार्मिक महत्व: जन्माष्टमी कृष्ण के जन्म का प्रतीक है, जो पुरे संसार मे एक दिव्य नायक और धार्मिकता के प्रतीक के रूप में पूजनीय हैं। उनकी शिक्षा और जीवन भगवद गीता सहित विभिन्न हिंदू दर्शन और ग्रंथों का केंद्र हैं, जो आध्यात्मिक मार्गदर्शन और नैतिक शिक्षा प्रदान करता है।
2. नैतिक और नीतिपरक पाठ: कृष्ण के जीवन को सदाचारी और संतुलित जीवन जीने के मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। उनके कार्य और सनातन धर्म शिक्षा (कर्तव्य/धार्मिकता), कर्म (कार्य और उसके परिणाम), और भक्ति की अवधारणाओं को संबोधित करते हैं। जन्माष्टमी का उत्सव इन सिद्धांतों की याद दिलाता है।
3. आध्यात्मिक नवीनीकरण: भक्तों के लिए, जन्माष्टमी आध्यात्मिक नवीनीकरण और भक्ति का एक अवसर है। बहुत से लोग कृष्ण का सम्मान करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए उपवास करते हैं, मंदिर सेवाओं में भाग लेते हैं, और प्रार्थना और ध्यान में संलग्न होते हैं।
4. बुराई पर अच्छाई का प्रतीक: माना जाता है कि कृष्ण का जन्म दुनिया को बुराई से छुटकारा दिलाने और सनातन धर्म की बहाली के लिए हुआ था। जन्माष्टमी का उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत और धार्मिकता को बनाए रखने के लिए चल रहे संघर्ष का प्रतीक है।
कृष्ण का चरित्र चित्रण
श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं , जो तीनो लोक के तीन गुणों सतगुण रजोगुण और तमोगुण में से सतगुण के स्वामी हैं। श्री कृष्ण को जन्म से सभी सिद्धियां उयस्थित थी। कालांतर में उन्हें युगपुरुष कहा गया। उन्होंने ही महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि और सम्पूर्ण संसार को गीता के ज्ञान दिया था, इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान दिया जाता है। संसार में कृष्ण के किरदार को शब्दों में बयां नहीं कर सकते वो एक निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक , स्थितप्रज्ञ एवं दैवी सम्पदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे।
निष्कर्ष
जन्माष्टमी सिर्फ एक त्योहार ही नहीं त्यौहार से कहीं अधिक है; यह दिव्य प्रेम, धार्मिकता और सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। अपने जीवंत अनुष्ठानों, आनंदमय उत्सवों और गहरे आध्यात्मिक महत्व के माध्यम से, जन्माष्टमी सभी पृष्ठभूमि के लोगों को भगवा�� कृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा की साझा अभिव्यक्ति में एक साथ लाती है। जैसे ही हम इस शुभ अवसर का जश्न मनाते हैं, हमें कृष्ण की कालजयी शिक्षा और प्रेम, करुणा और धार्मिकता के स्थायी मूल्यों की याद आती है जो मानवता को प्रेरित करते रहते हैं। कुल मिलाकर, जन्माष्टमी केवल कृष्ण के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि उनकी शिक्षा और एक सार्थक और नैतिक जीवन जीने में उनकी प्रासंगिकता पर विचार करने का एक अवसर भी है।
भगवान कृष्ण की दिव्य कृपा हम सभी पर बनी रहे और जन्माष्टमी की भावना हमारे दिलों को खुशी और भक्ति से भर दे।
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cycleagarbatti · 24 days
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी : कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है
यह त्योहार कृष्ण पक्ष की अष्टमी या भाद्रपद महीने के आठवें दिन पड़ता है। इसे गोकुल अष्टमी भी कहा जाता है।
ऐसा मानते हैं कि , भगवान कृष्ण का जन्म वर्तमान समय के मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनका जन्म एक कालकोठरी में और कृष्ण पक्ष की अंधियारी आधी  रात को हुआ था ।
मान्यताओं के अनुसार, कंस मथुरा का शासक था। उसने अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव जी को कारागार में डालकर रखा था क्योंकि उसे यह श्राप मिला था कि देवकी की कोख से उत्पन्न होने वाली आठवीं सन्तान एक पुत्र रूप में होगी जो कंस का वध करेगी। अतः आठवें पुत्र के इंतजार में उसने जेल में ही उत्पन्न देवकी के सात सन्तानों की हत्या कर दी थी। दैवीय लीला से जब आठवें पुत्र श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो योगमाया ने वहां उपस्थित सभी पहरेदारों को गहन निद्रा में डाल दिया और वासुदेव जी को निर्देश दिया कि अभी ही वह कारागार से बाहर निकल कर पुत्र को यमुना जी के रास्ते से ले जाकर गोकुल पहुंचा दें। 
वासुदेव व देवकी को सारी बात समझ में आ चुकी थी कि यही प्रभु अवतरण हैं जिनके हाथों कंस का वध होगा। वैसा ही सब कुछ हुआ। समय आने पर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के हाथों कंस का अंत हुआ। 
इसी कारण इस दिन का बहुत ही महत्व माना जाता है और देश भर में इस दिवस को उत्सव की भांति मनाया जाता है।
मथुरा और वृन्दावन में कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी?
  जन्माष्टमी से 10 दिन पहले रासलीला, भजन, कीर्तन और प्रवचन जैसे विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों के साथ शुरू होता है यह उत्सव । रासलीलाएं कृष्ण और राधा के जीवन और प्रेम कहानियों के साथ-साथ उनकी अन्य गोपियों की नाटकीय रूपांतर पेश किए जाते हैं। पेशेवर कलाकार और स्थानीय उपासक दोनों ही मथुरा और वृन्दावन में विभिन्न स्थानों पर इसका प्रदर्शन करते हैं। भक्त जनमाष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण मंदिरों में आते हैं, विशेषकर वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में, जहां माना जाता है कि उनका जन्म हुआ था। मंदिरों को मनमोहक फूलों की सजावट और रोशनी से खूबसूरती से सजाया गया है।
पंचांमृत अभिषेक
अभिषेक के नाम से जाना जाने वाला एक विशिष्ट अनुष्ठान आधी रात को होता है, जो कृष्ण के जन्म का सटीक क्षण माना जाता है। इस दौरान कृष्ण की ��ूर्ति को दूध, दही, ��हद, घी और पानी से स्नान कराया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के अभिषेक के दौरान शंख बजाए जाते हैं, घंटियां बजाई जाती हैं और वैदिक मंत्रो का पाठ किया जाता है। इसके बाद भक्त श्रीकृष्ण को 56 अलग-अलग भोग (जिन्हें छप्पन भोग के नाम से जाना जाता है) अर्पित करते हैं। उनके लड्डू गोपाल स्वरूप को जन्म के बाद झूला झुलाते हैं और जन्म के गीत गाये जाते हैं। 
नंदोत्सव
जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाने वाला नंदोत्सव एक खास कार्यक्रम है। कहते हैं कि जब कृष्ण के पालक पिता, नंद बाबा ने उनके जन्म की खुशी में गोकुल (कृष्ण का गाँव) में सभी को उपहार और मिठाइयां दीं। इस दिन, भक्त प्रार्थना करने और जरूरतमंदों को दान देने के लिए नंद बाबा के जन्मस्थान नंदगांव की यात्रा करते हैं। इसके अलावा वे विभिन्न प्रकार के समारोहों और खेलों में भाग लेते हैं जो कृष्ण के चंचल स्वभाव का सम्मान में आयोजित किए जाते हैं।
दही हांडी पर्व का महत्व 
दही हांडी का पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है । महाराष्ट्र, गुजरात , उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में इसकी अलग धूम देखने को मिलती है। इस दौरान गोविंदाओं की टोली ऊंचाई पर बंधी दही से भरी मटकी फोड़ने की कोशिश करती है ।
जन्माष्टमी पर दही हांडी का खास महत्व होता है । भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकिया दर्शाने के लिए दही हांडी पर्व मनाया जाता है।
दही हांडी कार्यक्रम
दही हांडी कार्यक्रम, जो कृष्ण की मां यशोदा द्वारा ऊंचे रखे गए मिट्टी के बर्तनों से मक्खन चुराने की बचपन की शरारत से प्रेरित एक कार्यक्रम है। मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी समारोह का एक और मुख्य आकर्षण है। इस कार्यक्रम में युवा, पुरुषों के समूह ऊंचाई से लटके हुए एक बर्तन तक पहुंचने और उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं, जिसमें दही या मक्खन होता है। यह अवसर वफादारी, बहादुरी और टीम वर्क को दर्शाता है। इसमें बड़ी संख्या में दर्शक भी शामिल होते हैं, जो तालियां बजाते हैं और इस दृश्य का आनंद लेते हैं।
दरअसल, भगवान श्री कृष्ण बचपन में दही और मक्खन घर से चोरी करते थे और उसके साथ ही गोपियों की मटकियां भी फोड़ देते थे ।  यही कारण है कि गोपियों ने माखन और दही की हांडियों को ऊंचाई पर टांगना शुरू कर दिया था लेकिन कान्हा इतने नटखट थे कि अपने सखाओं की मदद से एक दूसरे के कंधों पर चढ़कर  हांडी को फोड़कर माखन और दही खा जाते थे । भगवान कृष्ण की इन्ह��ं बाल लीलाओं का स्मरण करते हुए दही हांडी का उत्सव मनाने की शुरुआत हुई थी । 
प्रभु की लीला कभी व्यर्थ नहीं होती है। उसका कोई न कोई कारण अवश्य होता है। 
ऐसा मानते हैं कि पैसों के लिए गोपियाँ अपने घर के सारे दूध , दही और माखन मथुरा में जाकर कंस की राजधानी में बेच आतीं थीं। वे सब बलवान हो जाते थे जबकि ग्वाल बाल सीमित रूप में इसे प्राप्त कर पाते थे। तब प्रभु की बाल लीला ने माखन चोरी करने का निर्णय किया था ताकि ये सभी हृष्ट पुष्ट रहें और मथुरा तक ये न पहुंच सके।
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manjeetsworld · 1 month
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जानिए श्री कृष्ण जी के जीवन से जुड़ी अनसुनी सच्चाई | SA News Chhattisgarh
लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित श्री कृष्ण जिनकी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में खासी लोकप्रियता है उनके विषय मे आज वे जानकारियां लेकर आये हैं जो अब तक न आपने सुनी और न पढ़ी होंगी। जानें 16 कलाओं के स्वामी श्री कृष्ण की लीलाओं का विषय में अद्भुत जानकारियां।
श्री कृष्ण का जन्म कब हुआ?
कृष्ण जी का जन्म द्वापर युग में, मथुरा के कारागार में हुआ था। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व के आसपास आधी रात को हुआ था। उस रात चंद्रमा का आठवां चरण था, जिसे अष्टमी तिथि के रूप में जाना जाता है। जन्माष्टमी का आयोजन इस दिन भगवान कृष्ण के जन्म के जश्न के रूप में भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने के अंधेरे पखवाड़े की अष्टमी के दिन किया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
भगवान कृष्ण का जन्म कारावास में हुआ, देवता होने के कारण उनमें प्रबल शक्ति थी। राक्षस कंस को ये आकाशवाणी के माध्यम से ज्ञात हो चुका था कि देवकी की आठवीं सन्तान उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। इस कारण अनेको नवजात बच्चों की हत्या कंस ने कराई। किन्तु जिसका विनाश निश्चित है उसे नहीं रोका जा सकता। भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और उसी रात उनके पिता वासुदेव ने उन्हें यशोदा के पास पहुंचाया। श्रीकृष्ण का लालन पालन माता यशोदा ने किया जबकि उनकी जन्मदात्री देवकी थीं। भक्तों के रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण का अवतार लिया। जगत की रीत है कोई ऐतिहासिक कार्य होता है तो वे प्रतिवर्ष उसे महोत्सव रूप में मनाने लगते हैं। कृष्णजन्माष्टमी का अर्थ है आज ही के दिन कृष्ण जी का जन्म हुआ किन्तु उसे दोबारा मनाने का कोई महत्व धर्मग्रन्थों में नहीं बताया गया है। आइए इस जन्माष्टमी जानें
संक्षेप में दृष्टिपात करने पर हम पाते हैं कि कृष्ण जी, देवकी-वासुदेव की आठवीं सन्तान थे। चूंकि उस समय देवकी और वासुदेव, राक्षस प्रवृत्ति के राजा कंस के कारावास में थे अतः कृष्ण जी को वासुदेव जी उसी रात यशोदा के पास छोड़कर आये। इस प्रकार कृष्ण जी का लालन-पालन यशोदा और नन्द जी की देखरेख में हुआ।
भगवान कृष्ण का अधिकांश जीवन राक्षसों से लड़ने और प्रजा की रक्षा करने में बीता। श्री कृष्ण आज जितने पूजनीय हैं उतने उस समय नहीं थे। उन्हें मारने की साज़िशों के तहत अनेको राक्षस उनके बाल्यकाल से ही भेजे जाने लगे थे। सुकून और सुख से इतर जीवन में अनियमितता थी। अंत मे श्री कृष्ण जी ने रहने के लिए द्वारका नगरी चुनी जहां एक ही द्वार था। दुर्वासा ऋषि के श्रापवश 56 करोड़ यादव आपस में लड़कर कटकर मर गए। और उसी श्रापवश त्रेतायुग की बाली वाली आत्मा जो द्वापरयुग में शिकारी थी उसके तीर मारने से श्री कृष्ण की मृत्यु हो गई। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण जीवन में बचते और बचाते रहे किन्तु सुकून से नहीं रह पाए अंततः श्रापवश मृत्यु को प्राप्त हुए।
हिंदू धर्म में लोग मुख्यतः 3 पुरुषों/देवों की भक्ति करते है। जो हैं रजगुण प्रधान भगवान ब्रह्मा, सतगुण प्रधान भगवान विष्णु, तमगुण प्रधान भगवान शिव। भगवान श्री कृष्ण को भगवान श्री विष्णु जी का ही आठवां अवतार कहा जाता है। श्री कृष्ण जी भगवान का अवतार होने के वजह से जन्म से ही लीला करने लगे थे। भगवान श्री कृष्ण का जीवन चरित्र देखें विष्णु जी के अ���तार होने के कारण चमत्कारी शक्तियों से युक्त थे। लीला और चमत्कार की वजह से लोग उन्हें जानने लगे और अपना ईष्ट समझकर उनकी पूजा करने लगे। गीता के अध्याय 7 के श्लोक 14 और 15 में त्रिगुण साधना व्यर्थ बताई गई और इसे करने वाले मनुष्य नीच, मूढ़ और दूषित कर्म करने वाले बताए गए हैं।
इस जन्माष्टमी आइए जानें कि भगवान कृष्ण की भक्ति कैसी करना चाहिए? पूर्ण परमात्मा कौन है? कृष्ण जी जो कि त्रिदेवों में से एक विष्णु जी के अवतार हैं, इनकी भक्ति करने से न तो पाप कटेंगे और न ही मुक्ति हो सकती है। स्वयं कृष्ण जी भी अपने कर्मो का फल भोगने के लिए बाध्य हैं। त्रेतायुग में विष्णु जी ने श्री राम के रूप में सुग्रीव के भाई बाली को पेड़ की ओट से मारा था। द्वापरयुग में वही बाली वाली आत्मा ने शिकारी रूप में कृष्ण जी को विषाक्त तीर मारा। कर्मफल तो ये देवता अपने भी नहीं समाप्त कर पाते तो हमारे कैसे करेंगे? यदि आप सर्व पापों से मुक्ति चाहते हैं तो वेदों में वर्णित साधना करनी होगी, पूर्ण तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लेनी होगी। क्योंकि वेदों में वर्णित है कि पूर्ण परमात्मा साधक के सभी पापों को नष्ट करता है (यजुर्वेद, अध्याय 8, मन्त्र 13)।
कृष्ण जन्माष्टमी 2024 पर जानिए वास्तविक में गीता ज्ञानदाता कौन?
हमें सदा से ही बताया जा रहा है कि गीता का ज्ञान देने वाला भगवान श्रीकृष्ण है परंतु वास्तव में गीता का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने नहीं बल्कि उनके पिता ब्रह्म ने दिया है, इसे ही ज्योतिनिरंजन या क्षर पुरुष भी कहते हैं। अभी तक जिन्होंने गीता का अर्थ निकाला है उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को ही गीता का ज्ञान दाता कहा है परंतु गीता जी में ही गीता ज्ञान दाता ने अपना परिचय दिया और कहा है कि मैं काल ब्रह्म हूं।
इसका प्रमाण गीता अध्याय 11 के श्लोक 32 और 47 में है। जब कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया तब अर्जुन ने डर से कांपते हुए पूछा भगवान आप कौन हैं। तब कृष्ण जी ने गीता अध्याय 11 के श्लोक 32 में कहा कि “अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब सर्व लोकों को खाने के लिए प्रकट हुआ हूँ।” गीता अध्याय 11 के श्लोक 46 में कहा है कि “हे हजार भुजाओं वाले आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए।” इस पर गीता अध्याय 11 के श्लोक 47 में कृष्ण रूप में कालब्रह्म ने कहा कि:
अर्जुन मैंने प्रसन्न होकर तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप तुझे दिखाया है जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने भी नहीं देखा। अधिक जानकारी के लिए visit करें Sant Rampal Ji Maharaj YouTube channel
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iskconchd · 11 months
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यदि कोई गम्भीरता से थोड़ी-सी भी भक्ति करता है तो श्रीकृष्ण ऐसे व्यक्ति को ऊपर उठाना अपना कर्तव्य मानते हैं, फिर उस व्यक्ति का क्या कहना जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन और प्राण श्रीकृष्ण की सेवा में समर्पित कर दिया है। हरेर्नाम को पत्र, 6 नवम्बर 1969
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narmadanchal · 1 month
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सीएम राइज स्कूल सुखतवा में श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित कार्यक्रम हुए
इटारसी। राज्य शासन (State Government) के निर्देश पर स्कूलों में भी श्री कृष्ण जन्म अष्टमी (Shri Krishna Janam Ashtami) का त्योहार धूमधाम और श्रद्धा से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर बच्चे राधा-कृष्ण (Radha-Krishna) की वेशभूषा में पहुंच रहे हैं और स्कूलों में श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना करके श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित सांस्कृतिक आयोजन भी किये जा रहे हैं। इसी श्रंखला में शासकीय उच्चतर माध्यमिक…
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toptrendworld · 1 month
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कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई!
भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से आपका जीवन खुशियों, समृद्धि और शांति से भर जाए। इस पावन पर्व पर उनकी लीलाओं का स्मरण करते हुए, हम सब उनके दिखाए मार्ग पर चलें और सच्चे प्रेम, भक्ति और धर्म को अपनाएं। जय श्रीकृष्ण! Krishna Janmashtami 2024 कृष्ण जन्माष्टमी 2024: भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण का पर्व कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख और पवित्र पर्व है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है। 2024…
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palkifoodsservices · 1 month
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पलकी फूड सर्विसेज की ओर से आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं। इस पावन अवसर पर श्रीकृष्ण की कृपा आप सभी पर बनी रहे और आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन हो। जय श्री कृष्णा!
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astroclasses · 1 month
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