श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक) ने इतना हठयोग/तप किया फिर भी उनका मोक्ष क्यों नहीं हुआ, वे मृत्यु उपरांत प्रेत क्यों बने?
पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण अर्थात मनमानी भक्ति करते हैं उनको न तो कोई सुख होता है, न कार्य सिद्धि होती है, न ही परम गति(मोक्ष) को प्राप्त होता है अर्थात व्यर्थ है।
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पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि को
श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी पंथ के प्रवर्तक) ने इतना हठयोग/तप किया फिर भी उनका मोक्ष क्यों नहीं हुआ, वे मृत्यु उपरांत प्रेत क्यों बने?
पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण अर्थात मनमानी भक्ति करते हैं उनको न तो कोई सुख होता है, न कार्य सिद्धि होती है, न ही परम गति(मोक्ष) को प्राप्त होता है अर्थात व्यर्थ है।
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पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण अर्थात मनमानी भक्ति करते हैं उनको न तो कोई सुख होता है, न कार्य सिद्धि होती है, न ही परम गति(मोक्ष) को प्राप्त होता है अर्थात व्यर्थ है।
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पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण अर्थात मनमानी भक्ति करते हैं उनको न तो कोई सुख होता है, न कार्य सिद्धि होती है, न ही परम गति(मोक्ष) को प्राप्त होता है अर्थात व्यर्थ है।
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पवित्र गीता जी अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्याग कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण अर्थात मनमानी भक्ति करते हैं उनको न तो कोई सुख होता है, न कार्य सिद्धि होती है, न ही परम गति(मोक्ष) को प्राप्त होता है अर्थात व्यर्थ है।
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