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#शैलपुत्री माता की कथा
astrovastukosh · 1 year
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💥 प्रथम नवरात्र माँ शैलपुत्री 💥
👉नवरात्र में दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन नौ रूपों में सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनको शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। इनका वाहन वृषभ है। इसलिए इस देवी को वृषारूढ़ा भी कहा जाता है ।
👉इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। इन्हें सती भी कहा जाता है। इस माता की मार्मिक कहानी इस प्रकार है --
💥शैलपुत्री के जन्म की कथा💥
👉एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती भलीभांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानीं और बार बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। सती के ना मानने की वजह से शिव को उनकी बात माननी पड़ी और अनुमति दे दी।
👉सती जब अपने पिता प्रजापित दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं और सिर्फ उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। उनकी बाकी बहनें उनका उपहास उड़ा रहीं थीं और सति के पति भगवान शिव को भी तिरस्कृत कर रहीं थीं। स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का मौका ना छोड़ा। ऐसा व्यवहार देख सती दुखी हो गईं। अपना और अपने पति का अपमान उनसे सहन न हुआ...और फिर अगले ही पल उन्होंने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना स्वयं दक्ष ने भी नहीं की होगी।
👉सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जैसे ही इसके बारे में पता चला तो वो दुखी हो गए। दुख और गुस्से की ज्वाला में जलते हुए शिव ने उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। इसी सती ने फिर हिमालय के यहां जन्म लिया और वहां जन्म लेने की वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
👉पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
👉मां शैलपुत्री का वास काशी नगरी वाराणसी में माना जाता है। वहां शैलपुत्री का एक बेहद प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां मां शैलपुत्री के सिर्फ दर्शन करने से ही भक्तजनों की मुरादें पूरी हो जाती हैं। कहा तो यह भी जाता है कि नवरात्र के पहले दिन यानि प्रतिपदा को जो भी भक्त मां शैलपुत्री के दर्शन करता है उसके सारे वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं। चूंकि मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ में त्रिशूल रहता है।
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
👉शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी
पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी रत्नयुक्त कल्याणकारिणी
👉ओम् ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:👇
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#akshayjamdagni #hindu #Hinduism #bharat #hindi
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hindistories1 · 1 year
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आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रि के पहले दिन की शैलपुत्री माता की कथा। Mata S...
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thebharatexpress · 2 years
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Chaitra Navratri: नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की होती है पूजा, यहां पढें ये विशेष कथा
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌॥ Chaitra Navratri 2023 Maa Shailputri Katha: चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि (Navratri 2023 March) की शुरुआत हो जाती है. इस वर्ष बुधवार 22 मार्च 2023 से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. नवरात्रि नवदुर्गा यानी मां दुर्गा के नौ रूपों की अराधना का पर्व है. नवरात्रि में भक्त पूजा, व्रत और जागरण कर माता…
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नवरात्रि के पहले दिन की शैलपुत्री माता की कथा | Navratri Day 1 - Maa Sh...
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sriramjanmbhumi · 4 years
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Nav Durga (नवदुर्गा): ShailPutri (शैलपुत्री) The First Form of Maa Durga
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🚩🚩जय श्री राम🚩🚩
Shailputri: The First Form among The Nine Forms of Devi Durga
🌹जय माता दी🚩
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥
Shailputri #Devidurga is known in the first form in nine forms. She is the first #Durga among the #Navadurga.
He was named '#Shailputri' because he was born as a daughter of #ParvatRajHimalaya.
They are worshiped and worshiped on the first day in #Navratri-worship. In the worship of this first day, yogis place their minds in the '#Muladhara' cycle. This is where their yoga practice begins.
Maa Shailputri Mantra:
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे
ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:
ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
बीज मंत्र
ह्रीं शिवायै नमः
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nisthadhawani · 3 years
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पहली नवरात्रि पर सुने माता शैलपुत्री की कथा मन को मिलेगी शांति | Nistha Dhawani
पहली नवरात्रि पर सुने माता शैलपुत्री की कथा मन को मिलेगी शांति | Nistha Dhawani
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bhaktibharat · 2 years
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✨ हरतालिका तीज - Hartalika Teej
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❀ हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ क्रमशः हरत अर्थात अपहरण, आलिका का अर्थ स्त्रीमित्र (सहेली) तथा तीज-तृतीया तिथि से लिया गया है। ❀ हरतालिका तीज पर माता पार्वती(माता शैलपुत्री) और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। ❀ हरतालिका तीज त्यौहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु में को गौरी हब्बा नाम से जाना जाता है।
हरतालिका तीज व्रत विधि एवं नियम | हरतालिका व्रत पूजन की सामग्री को पूरा जानने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 👇🏻 📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/hartalika-teej
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✨ हरतालिका तीज व्रत कथा - Hartalika Teej Vrat Katha 📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/hartalika-teej-vrat-katha
#hartalikateej #GauriTritiya #GauriHabba #SwaranGauriVrat #varaha #varahajayanti
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🙏🙏🔔🔔🪔🪔🛕🛕🌹🌹नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा (Maa Durga) के मां शैलपुत्री (Maa Shailputri) स्वरूप की पूजा होती है. नवरात्री पूजा की शुरुआत कलश स्थापना की पूजा से होती है. कलश को भगवान गणेश का स्वरुप माना गया है इसलिए सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है. इसके बाद मां शैलपुत्री की कथा और पूजा की जाती है. इसके बाद मां की आरती करें और मंत्रों का जाप किया जाता है. मां शैलपुत्री मंत्र जाप 1. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:। 2. ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। इन मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए . पूजा के बाद मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। मां शैलपुत्री की आरती : शैलपुत्री मां बैल सवार। करें देवता जय जयकार। शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी। पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे। ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू। सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने उतारी। उसकी सगरी आस जा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो। घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के। श्रृद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित शीश झुकाएं। जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद चकोरी अंबे। मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो : प्रणाम : जय माता दी 🛕🛕🪔🪔🔔🔔🌹🌹🙏🙏 https://www.instagram.com/p/Cb0zWKRhuR1/?utm_medium=tumblr
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kaahishsharma · 3 years
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🙏🙏🪔🪔🌹🌹🇮🇳🇮🇳🕉️🕉️🔔🔔🛕🛕🕓HAPPY NAVRATRI 🌹भक्ति सत्संगमयी शुभ मंगलवार 🌹जय माता दी : आज प्रथम नवरात्रि माँ शैलपुत्री 🌹कलश स्थापना : 07:34 am- 1:57pm today🌹🪔श्रीमद् भागवत महापुराण अमृत कथा 🌹हरिबोल 🌹प्रेम से बोलो ��च्चिदानंद भक्त वत्सल भगवान की जय 🌹जय जय श्री राधे 🌹श्रीशुकदेवजी ने कहा - परीक्षित! भगवान श्री कृष्ण ने आप हम सभी प्रेमी भक्तों और प्रिय उद्धवजी का मार्गदर्शन करते हुए गंतव्य से आगे क्रिया योग के महत्व को बताते हुए कहा - प्रिय भक्तगणों! जब कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित होता है तो भलि- भांति अपनी बुद्धिमता द्वारा चिकित्सा करने पर भी उस रोग का समूल नाश नहीं हो पाता। वह रोग बार-बार उभर कर मनुष्य को सताता रहता है। मन की वासनाएं और विविध कर्मों के संस्कार भी इसी भांति मनुष्य को घेरे रहते हैं। यहाँ तक कि यदा-कदा ये योगियों को भी भ्रष्ट कर देते हैं। जीव जन्म से लेकर मृत्यु तक कर्मों में लगा रहता है और हर्ष - विषाद आदि विकारों को प्राप्त होता रहता है। परंतु जो ज्ञानी जीव आत्म तत्व का साक्षात्कार कर लेता है वह इस भूलोक के विभिन्न वातावरणों में रहने के बावजूद वह भोग-वासनाओं हर्ष-विषाद के विकारों में संलग्न नहीं रहता। वह मेरा ध्यान करते हुए अपने आत्म स्वरूप में स्थित हो जाता है और उसे अपने नाशवान शरीर के सुख - दुःखों आदि का ध्यान नहीं रहता क्योंकि उसकी वृत्ति ब्रह्माकार हो जाती है।लेकिन यह आवश्यक नहीं कि हर ज्ञानी व्यक्ति ही अपनी आत्मा से मेरा साक्षात्कार कर पाता है। अज्ञानता.. To be continued.. आरती श्रीमद् भागवत अमृत महापुराण की।आरती अति पावन पुराण की।धर्म भक्ति विज्ञान खान की।विषय विलास विमोह विनाशिनि।विमल विराग विवेक विकाशिनि।भगवत् तत्व् रहस्य प्रकाशिनि।परम ज्योति परमात्म ज्ञान की। आरती.. प्रणाम : जय श्री राधे : हैप्पी नवरात्रि : जय माता दी 🌹🌹🪔🪔🛕🛕🔔🔔🕉️🕉️🇮🇳🇮🇳🙏🙏🕓 https://www.instagram.com/p/CNlV7Y3Bp8t/?igshid=1qc366dr3v8q6
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शैलपुत्री माता की कथा || Navratri Katha day 1 || Shailputri mata ki kath...
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rohithorizon · 4 years
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माता शैलपुत्री की कथा -  एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। .....
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hindistoryblogsfan · 4 years
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नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा जाती है। ये नौ स्वरूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। अलग-अलग दिनों में इनकी पूजा की जाती है। इनके अलावा देवी के विशेष साधक दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। इन महाविद्याओं की साधना अधूरे ज्ञान के साथ नहीं करना चाहिए, वरना पूजा का विपरीत फल भी मिल सकता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार देवी सती के 10 स्वरूपों को दस महाविद्याओं के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के दिनों में इन अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग विद्याओं की साधना की जाती है। इन महाविद्याओं की साधना पूरे विधि-विधान के साथ ही की जाती है। अगर साधना में कुछ गलती हो जाती है तो पूजा-पाठ का उल्टा असर भी हो सकता है। इसीलिए इन महाविद्याओं की साधना किसी विशेषज्ञ पंडित के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। इनके मंत्रों का जाप बिल्कुल सही उच्चारण के साथ ही करना चाहिए।
ये हैं दस महाविद्याओं के नाम
इनमें पहली विद्या हैं देवी काली, दूसरी हैं देवी तारा, तीसरी त्रिपुरा सुंदरी, चौथी भुवनेश्वरी, पांचवीं छिन्नमस्ता, छठी त्रिपुरा भैरवी, सातवीं धूमावती, आठवीं बगलामुखी, नौवीं मातंगी और दसवीं विद्या हैं देवी कमला।
इन दस महाविद्याओं के तीन समूह हैं। पहले समूह में सौम्य कोटि की प्रकृति की त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला शामिल हैं। दूसरे समूह में उग्र कोटि की काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी माता शामिल हैं। तीसरे समूह में सौम्य उग्र प्रकृति की तारा और त्रिपुरा भैरवी शामिल हैं।
ये है महाविद्याओं की उत्पत्ति की कथा
पं. शर्मा के अनुसार दस महाविद्याओं की उत्पत्ति देवी सती से मानी गई है। इस संबंध में कथा प्रचलित है कि सती के पिता दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में शिवजी और सती को आमंत्रित नहीं किया गया था। क्योंकि, दक्ष शिवजी को पसंद नहीं करते थे।
जब ये बात देवी सती को मालूम हुई तो वे भी दक्ष के यहां जाना चाहती थीं। लेकिन, शिवजी ने देवी को वहां न जाने के लिए समझाया। शिवजी ने कहा कि हमें आमंत्रण नहीं मिला है, इसीलिए हमें वहां नहीं जाना चाहिए। सती अपने पिता के यहां जाना चाहती थीं। शिवजी के मना करने पर वे क्रोधित हो गईं।
सती क्रोधित हो गईं। इसके बाद दसों दिशाओं से दस शक्तियां प्रकट हुईं। देवी विकराल रूप और दस शक्तियों को देखकर शिवजी ने इन स्वरूपों के बारे में पूछा। तब देवी ने बताया कि काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरा भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला, ये सभी मेरी स्वरूप दस महाविद्याएं हैं।
इसके बाद देवी सती शिवजी के मना करने के बाद भी पिता दक्ष के यहां यज्ञ में पहुंच गईं। वहां अपने पति शिवजी का अपमान होते देख, उन्होंने अग्निकुंड में कूदकर देह त्याग दी। अगले जन्म में देवी ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया था। बाद में शिवजी और पार्वती का विवाह हुआ।
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Kali maa, devi Tara, mata Kamala, there are ten Mahavidyas in the form of Goddess, navratri 2020, significance of dus mahavidyas of goddess
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lokkesari · 7 years
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नवरात्र महिमा: पूर्ण वर्णन
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नवरात्र महिमा: पूर्ण वर्णन
नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नौ देवियाँ है :-
शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।
शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्याअनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
नवरात्रि भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनायी जाती है। गुजरात में इस त्योहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडियाऔर गरबा के रूप में जान पड़ता है। यह पूरी रात भर चलता है। डांडिया का अनुभव बड़ा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, ‘आरती’ से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है। इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है।
महत्व:
नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं।
नवरात्रि के पहले तीन दिन
नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकि पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है।
नवरात्रि के चौथा से छठे दिन
व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रीयो को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।
नवरात्रि का सातवां और आठवां दिन[
सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक ‘यज्ञ’ किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।
नवरात्रि का नौवां दिन
नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। ईस दिन पर, कन्या पूजन होता है। उन नौ जवान लड़कियों की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े पेश किए जाते हैं।
प्रमुख कथा:
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया ��ाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है। तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं
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