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भगवान शिव और पार्वती का विवाह: एक दिव्य लव स्टोरी | theshivling.com #shi...
#youtube#भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह एक दिव्य गाथा है जिसमें भगवान के अद्वितीय रूप और महिमा का प्र
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दहेज के कारण बेटी परिवार पर भार मानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है।जो माता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारी कुपरम��पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया।
- जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज।
💰श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
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dowryfreemarriages Followers_Of_SantRampalJi MarriageIn17Minutes
SatlokAshram SantRampalJiQuotes
SantRampalJiMaharaj SaintRampalJi
श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
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लखनऊ, 08.03.2024 | महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में “शिव पूजन” कार्यक्रम का आयोजन किया गया I आयोजन के अंतर्गत ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल तथा ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने भगवान शिव शंकर जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनकी आरती की तथा भगवान शिव जी से सभी देशवासियों के ऊपर अपनी कृपा बरसाने हेतु प्रार्थना की |
हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि,
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
���र्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
"महाशिवरात्रि के इस अद्वितीय दिन पर हमें अपने जीवन को अध्यात्मिकता और संतोष की ओर ले जाना चाहिए । आज के दिन हम अपने अंतर्यामी परमात्मा के प्रति अपने समर्पण और श्रद्धा का उद्गार करते हैं और उनकी कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं । महाशिवरात्रि के इस महत्वपूर्ण पर्व पर, हमें अपने जीवन में नेक कामों का संकल्प करना चाहिए और अपनी आत्मा को अंतर्मुखी बनाकर अध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ना चाहिए । भगवान शिव की उपासना, ध्यान और प्रार्थना के माध्यम से हम अपने जीव�� को संतुलित, शांत और समृद्ध बना सकते हैं । आज के पवित्र दिन पर, हम सभी को भगवान शिव के प्रति हमारी श्रद्धा और समर्पण का प्रत्येक क्षण मनाने का संकल्प लेना चाहिए, यहां तक कि हमें अपने दिल में विशवास और प्रेम जाग्रत करना चाहिए, जिससे हम देशवासियों के बीच एक भाईचारा और सौहार्दता का वातावरण बना सके ।
देवाधिदेव महादेव भगवान शिव जी और माता पार्वती जी के विवाह के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले पवित्र पर्व महाशिवरात्रि की समस्त शिव भक्तों, देश व प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं | भगवान शिव जी से प्रार्थना है कि सभी के जीवन में ज्ञान, समृद्धि एवं धन-वैभव की वर्षा करें |
ऊँ नमः शिवाय !
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#दहेज_दानव_का_अंत_हो
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श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
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जिस कन्या या लड़के की शादी में बार बार रुकावटे आती हैं उन्हे किस देवता के कोनसे उपाय करने चाहिये?
ज्योतिष में शादी में रुकावटों को दूर करने के लिए विभिन्न देवताओं के उपायों का सुझाव दिया जाता है। हालांकि, इस तरह के उपायों का असर व्यक्ति की विशेष स्थिति पर भी निर्भर करता ह��, और इसे निर्धारित करने के लिए सटीक और व्यक्तिगत परामर्श की आवश्यकता है।
गौरी-शंकर पूजा: शिव और पार्वती के रूप में गौरी-शंकर की पूजा करना शादी में रुकावटों को दूर करने के लिए सुझावित है। शनिवार को गौरी-शंकर की आराधना करना भी फलदायक हो सकता है।
गणेश पूजा: गणेश जी की पूजा करना शादी में सुख-शांति एवं सफलता के लिए उपयुक्त हो सकता है। रोजाना गणेश आराधना या गणेश चालीसा का पाठ करना भी लाभकारी हो सकता है।
माँ कात्यायनी की पूजा: माँ कात्यायनी, देवी दुर्गा की एक स्वरूप है, जिन्हें विवाह एवं सुख-शांति के लिए पूजा जाता है। नवरात्रि के दौरान और माँ कात्यायनी जयंती पर उनकी पूजा करना लाभकारी हो सकता है।
संतान गोपाल मंत्र: विवाह में रुकावटों को दूर करने के लिए संतान गोपाल मंत्र का जाप भी किया जा सकता है।
ग्रह शांति पूजा: ज्योतिषियों के सुझाव के अनुसार, किसी विशेष ग्रह की शांति के लिए उपाय करना भी लाभकारी हो सकता है। यह ग्रह कुंडली के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं, इसलिए सटीक ज्योतिषीय सलाह लेना महत्वपूर्ण है।
यदि किसी को शादी में बार-बार रुकावटें आ रही हैं, तो इसके लिए आप Kundli Chakra 2022 Professional की मदद ले सकते है। और हमसे जोड़ भी सकते है। 8595675042.
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Dharma Desk: सोमवार के दिन पूजा के दौरान अपनी राशि के अनुसार इन मंत्रों का जाप करें, सभी रुके हुए काम पूरे होंगे
सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को प्रिय है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। साथ ��ी सोमवार का व्रत भी रखा जाता है. भगवान शिव की पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। शिव पुराण में बताया गया है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को वर के रूप में पाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत किया था। इसी व्रत के पुण्य से माता पार्वती का विवाह भगवान शिव से हुआ। इसलिए भक्त…
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210 शिव पार्वती विवाह
210 शिव पार्वती विवाहशिव पार्वती विवाह कोई सामान्�� घटना नहीं है। शिवतत्वनिष्ठ सदगुरु का मुमुक्षु साधक से मिलन है।सांसारिक विवाह तो काम की छाया में होता है, यह विवाह राम की छाया में हो रहा है।वहाँ काम का होना पहली शर्त है, यहाँ काम का न होना ही एकमात्र शर्त है। यहाँ तो विवाह बाद में होगा, काम को पहले ही जला दिया गया है।ध्यान से देखो, विषय और विषय की कामना, ये दो हैं। विषय नहीं बाँधता, विषय की…
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देवी माता के पवित्र 51 शक्ति पीठ, कथा और महत्व जाने विस्तार!
पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थापित हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तन्त्र चूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं। वर्तमान में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ है।
कैसे बने शक्तिपीठ, पढ़ें पौराणिक कथा :-
देवी माता के 51 शक्तिपीठों के बनने के सन��दर्भ में पौराणिक कथा प्रचलित है। राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा।
भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की जरूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया लेकिन वह नहीं मानी तो स्वयं जाने से इंकार कर दिया।
शंकरजी के रोकने पर भी जिद कर सती यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष, भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित सती ने यज्ञ-कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
भगवान शंकर को जब पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय व हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी। भगवान शिव ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमंडल पर भ्रमण करने लगे।
भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिए और कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के अंग विभक्त होकर गिरेंगे, वहां महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु ��पने चक्र से सती शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते।
'तंत्र-चूड़ामणि' के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।
51 शक्तिपीठ (51 Shakti Peethas) :
किरीट शक्तिपीठ (Kirit Shakti Peeth) : किरीट शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है। यहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।
(शक्ति का मतलब माता का वह रूप जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब शिवजी का वह अवतार जो माता के इस रूप के साथ हैं )
कात्यायनी शक्तिपीठ (Katyayani Shakti Peeth ) : वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरे थे। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है।
करवीर शक्तिपीठ (Karveer shakti Peeth) : महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।
श्री पर्वत शक्तिपीठ (Shri Parvat Shakti Peeth) : इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरी थी। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।
विशालाक्ष�� शक्तिपीठ (Vishalakshi Shakti Peeth) : उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।
गोदावरी तट शक्तिपीठ (Godavari Shakti Peeth) : आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।
शुचीन्द्रम शक्तिपीठ (Suchindram shakti Peeth) : तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिसागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के मतान्तर से पृष्ठ भाग गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।
पंच सागर शक्तिपीठ (Panchsagar Shakti Peeth) : इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता के नीचे के दांत गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।
ज्वालामुखी शक्तिपीठ (Jwalamukhi Shakti Peeth) : हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती की जीभ गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।
भैरव पर्वत शक्तिपीठ (Bhairavparvat Shakti Peeth) : इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षिप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का ऊपर का ओष्ठ गिरा है।
यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।
अट्टहास शक्तिपीठ ( Attahas Shakti Peeth) : अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति फुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।
जनस्थान शक्तिपीठ (Janasthan Shakti Peeth) : महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।
कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (Kashmir Shakti Peeth or Amarnath Shakti Peeth) : जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।
नन्दीपुर शक्तिपीठ (Nandipur Shakti Peeth) : पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह ��ीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां की शक्ति नन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।
श्री शैल शक्तिपीठ (Shri Shail Shakti Peeth ) : आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता की ग्रीवा गिरी थी। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथवा ईश्वरानन्द हैं।
नलहटी शक्तिपीठ (Nalhati Shakti Peeth) : पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहटी शक्तिपीठ, जहां माता की उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।
मिथिला शक्तिपीठ (Mithila Shakti Peeth ) : इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तातर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।
रत्नावली शक्तिपीठ (Ratnavali Shakti Peeth) : इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।
अम्बाजी शक्तिपीठ (Ambaji Shakti Peeth) : गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के शिखर पर देवी अम्बिका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उर्ध्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।
जालंधर शक्तिपीठ (Jalandhar Shakti Peeth) : पंजाब के जालंधर में स्थित है माता का जालंधर शक्तिपीठ। जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।
रामागिरि शक्तिपीठ (Ramgiri Shakti Peeth) : इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्रकूट तो कुछ मध्यप्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहां की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।
वैद्यनाथ शक्तिपीठ (Vaidhnath Shakti Peeth) : झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।
वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ (Varkreshwar Shakti Peeth) : माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।
कन्याकुमारी शक्तिपीठ (Kanyakumari Shakti Peeth) : तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता की पीठ गिरी थी। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।
बहुला शक्तिपीठ (Bahula Shakti Peeth) : पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।
उज्जयिनी शक्तिपीठ (Ujjaini Shakti Peeth) : मध्यप्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी हरसिद्धि शक्तिपीठ। जहां माता की कोहनी गिरी थी। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।
मणिवेदिका शक्तिपीठ (Manivedika Shakti Peeth) : राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहां माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।
प्रयाग शक्तिपीठ (Prayag Shakti peeth) : उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद है। इसे अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों पर गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं तथा भैरव भव है।
उत्कल शक्तिपीठ (Utakal Shakti Peeth) : उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरी था। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।
कांची शक्तिपीठ (Kanchi Shakti Peeth) : तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल शरीर गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।
कालमाधव शक्तिपीठ (Kalmadhav Shakti Peeth) : इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।
शोण शक्तिपीठ (Shondesh Shakti Peeth) : मध्यप्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।
कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shakti peeth) : कामगिरि असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता की योनि गिरी थी। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।
जयंती शक्तिपीठ (Jayanti Shakti Peeth) : जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयंतिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता की वाम जंघा गिरी थी। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।
मगध शक्तिपीठ (Magadh Shakti Peeth) : बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता की दाहिना जंघा गिरी थी। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।
त्रिस्तोता शक्तिपीठ (Tristotaa Shakti Peeth) : पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।
त्रिपुरी सुन्दरी शक्तिपीठ (Tripura Sundari Shakti Peeth) : त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।
38 . विभाषा शक्तिपीठ (Vibhasha Shakti Peeth) : पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्राम में स्थित है विभाषा शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कपालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।
कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ (Kurukshetra Shakti Peeth) : हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता के दाहिने चरण गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।
युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ ( Yugadhya Shakti Peeth) : पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति जुगाड़या और भैरव क्षीर खंडक है।
विराट अम्बिका शक्तिपीठ (Virat Shakti Peeth) : राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहां सती के 'दाहिने पैर की अंगुलियां गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।
कालीघाट शक्तिपीठ (Kalighat Shakti Peeth) : पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिद्ध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाहिने पैर के अंगूठे को छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।
मानस शक्तिपीठ (Manas Shakti Peeth) : तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता की दाहिनी हथेली गिरी थी। यहां की शक्ति द्राक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।
लंका शक्तिपीठ (Lanka Shakti Peeth) : श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता के नूपुर यानी पायल गिरे थे। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन,वह ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।
गण्डकी शक्तिपीठ (Gandaki Shakti Peeth) : नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती का दक्षिण कपोल गिरा था। यहां शक्ति गण्डकी´ तथा भैरवचक्रपाणि´ हैं।
गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (Guhyeshwari Shakti Peeth) : नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों घुटने गिरे थे। यहां की शक्ति महामाया´ और भैरवकपाल´ हैं।
हिंगलाज शक्तिपीठ (Hinglaj Shakti Peeth) : पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र (सिर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन है।
सुगंध शक्तिपीठ (Sugandha Shakti Peeth) : बांग्लादेश के खुलना में स���गंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता की नासिका गिरी थी। यहां की देवी सुनन्दा(मतांतर से सुगंधा) है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।
करतोया शक्तिपीठ (Kartoya Shakti Peeth) : बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता की वाम तल्प गिरी थी। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।
चट्टल शक्तिपीठ (Chatal Shakti Peeth) : बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता की दाहिनी भुजा गिरी थी। यहां की शक्ति भवानी तथा भैरव चन्द्रशेखर हैं।
यशोर शक्तिपीठ (Yashor Shakti Peeth) : बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता की बायीं हथेली गिरी थी। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।
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तीज का त्योहार
तीज महोत्सव: भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण पर्व परिचय तीज महोत्सव भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मुख्यतः महिलाओं के लिए समर्पित है। यह त्योहार हर साल सावन मास की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है और इसे खासतौर पर हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भारतीय समाज में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। तीज का पर्व पतियों की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख-शांति की कामना के साथ मनाया जाता है। आइए, इस लेख में तीज महोत्सव की महत्ता, इसकी परं��राएँ, और इसके आयोजन की विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=SpMxs6Tb-0k
तीज महोत्सव की धार्मिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तीज महोत्सव का धार्मिक महत्व भारतीय हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा है। यह पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें अपना पति बनाया। इस तरह, तीज महोत्सव का एक महत्वपूर्ण पहलू पत्नी के रूप में पति की लंबी उम्र की कामना करना है। इसके अलावा, यह पर्व समृद्धि, खुशहाली और पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती का प्रतीक भी है। तीज की तैयारी और आयोजन तीज महोत्सव की तैयारी एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती है। महिलाएँ इस अवसर को खास बनाने के लिए अपने घरों को सजाने, विशेष पकवान तैयार करने और अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए तरह-तरह की तैयारियाँ करती हैं। https://www.youtube.com/watch?v=SpMxs6Tb-0k
1. सज्जा और तैयारी: महिलाएँ इस दिन को विशेष बनाने के लिए अपने घरों को हरे-भरे पौधों, रंग-बिरंगे फूलों, और दीपों से सजाती हैं। घर के आंगन और आचार्य को विशेष रूप से सजाया जाता है। गांवों में विशेष रूप से झूले और रंग-बिरंगे झंडे भी लगाए जाते हैं। 2. व्रत और पूजा: तीज के दिन महिलाएँ उपवासी रहती हैं और पूरे दिन उपवासी रहकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान वे विशेष मंत्रों और भजनों का उच्चारण करती हैं। महिलाएँ व्रत के नियमों का पालन करते हुए दिनभर केवल फल-फूल का सेवन करती हैं। इस दिन विशेष पूजा के लिए कुमकुम, चंदन, फूल, और मिठाइयाँ तैयार की जाती हैं। 3. आहार और पकवान: तीज के पर्व पर विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें खासतौर पर दही वड़ा, पकोड़ी, खीर, और मिठाई शामिल होती हैं। इन पकवानों का स्वाद और उनका रंग-रूप इस त्योहार की सुंदरता को बढ़ाता है। महिलाएँ इन्हें एक-दूसरे के साथ बाँटती हैं और इस अवसर को खुशियों से भर देती हैं। तीज महोत्सव की सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ https://www.youtube.com/watch?v=SpMxs6Tb-0k
1. झूला झूलना: तीज के दिन गांवों और शहरों में महिलाएँ विशेष झूलों का आनंद लेती हैं। ये झूले आमतौर पर रंग-बिरंगे कपड़े और फूलों से सजाए जाते हैं। झूला झूलने का आयोजन न केवल मनोरंजन के लिए होता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है। 2. गीत और नृत्य: तीज महोत्सव के दौरान महिलाएँ पारंपरिक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। ये गीत खासतौर पर इस त्योहार से जुड़े हुए होते हैं और इनमें पति-पत्नी के रिश्ते, परिवार की खुशहाली, और देवी पार्वती की पूजा का वर्णन होता है। नृत्य और गीत इस पर्व के उल्लास को और बढ़ाते हैं। 3. विवाह और पारिवारिक संबंध: तीज का पर्व परिवारिक एकता और रिश्तों की मजबूती को प्रोत्साहित करता है। इस दिन महिलाएँ अपने परिवार के ��ाथ समय बिताती हैं, एक-दूसरे के साथ सहयोग करती हैं और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करती हैं। यह अवसर परिवार की खुशहाली और एकता को संजोने का भी है। तीज के आधुनिक स्वरूप और बदलाव समय के साथ-साथ तीज महोत्सव का स्वरूप भी बदल गया है। आधुनिक जीवनशैली और व्यस्त दिनचर्या के कारण, कई लोग इस पर्व को पारंपरिक तरीके से नहीं मना पाते। हालांकि, इस पर्व की मुख्य भावनाएँ और धार्मिक महत्व आज भी समान हैं। शहरों में तीज के आयोजन में कई बदलाव हुए हैं, जैसे कि पारंपरिक झूलों की जगह रंग-बिरंगे कृत्रिम झूले और आधुनिक सजावट का प्रचलन हुआ है। इसके बावजूद, तीज की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता आज भी वैसी की वैसी ही बनी हुई है। https://www.youtube.com/watch?v=SpMxs6Tb-0k
निष्कर्ष तीज महोत्सव भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो केवल धार्मिक मान्यता के साथ नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व पतियों की लंबी उम्र, वैवाहिक संबंधों की मजबूती, और परिवार की खुशहाली की कामना के साथ मनाया जाता है। इसकी परंपराएँ, पूजा विधियाँ, और उत्सव की विशेषताएँ इसे एक अद्वितीय और समृद्ध पर्व बनाती हैं। तीज का पर्व भारतीय समाज में एकता, भाईचारे और खुशियों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो सदियों से हमारे सांस्कृतिक ताने-बाने का हिस्सा रहा है।
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Shaadi mein aa rahi hai Talaak ki naubat? to Teej ke shubh prabhav se door hogi samasya
तीज का पर्व सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद माना जाता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार पौराणिक काल से ही दांपत्य जीवन की समस्याओं को दूर करने के लिए तीज व्रत का पालन एवं इस दिन होने वाले अनुष्ठानों को किया जाता रहा है और आज भी इस पर्व की महत्ता विशेष है. जो विवाह जीवन में आने वाली हर प्रकार की समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाली होती है. तीज एक ऎसा मांगलिक उत्सव है जो वैवाहिक जीवन में जोड़ों के मध्य रिश्ते को मजबूत करता है.
विवाह एक ऎसा रिश्ता है जिसे सात जन्मों का साथ माना ��या है. लेकिन कई बार जीवन में कुछ ऎसे पड़ाव आते चले जाते हैं जिनके कारण वैवाहिक जीवन में लगातार झगड़े और आपसी अनबन इतनी बढ़ जाती है कि एक छत के नीचे रह पाना दोनों के लिए ही बहुत मुश्किल होता है तब ऎसे में जीवन में आए इस संकट से बचने के लिए अगर कुछ कार्यों को कर लिया जाए तो इस परेशानी से बचाव भी संभव है. इन सभी परेशानियों को दूर करने में तीज का उत्सव सुखद कदमों की आहट को सुनाता है.
कुंडली में तलाक के कारण
समाज में होने वाले बदलावों के साथ हमारे जीवन में भी कई ऎसे बदलाव होते हैं जिसके कारण आज के समय वैवाहिक जीवन में आपसी संबंध भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए हैं. शादी विवाह में अगर तलाक या अलगाव जैसी परेशानियां जब रिश्ते में आने लगती हैं तो यह एक बेहद ही कठोर और चिंता देने वाला समय बन जाता है. तलाक या शादी में अलगाव की स्थिति किसी भी कारण से उभर सकती है.
इसमें आपसी मतभेद, अपनी-अपनी जीवन शैली, विचार, रहन सहन, परिवार जनों का हस्तक्षेप, पार्ट्नर की गलत आदतें जैसी बातें कई छोटी या बड़ी बातें शामिल हो सकती हैं. यह बातें तलाक और अलगाव के लिए जिम्मेदार हो सकती है. तलाक की वजह चाहे कोई भी हो लेकिन इसका रहस्य जन्म कुंडली में ही छिपा होता है और जिसे सुलझा कर हम इस तरह की समस्या से दूर रहते हुए सुखी वैवाहिक जीवन जी सकते हैं.
वैवाहिक जीवन की समस्याओं को ज्योतिष से पहचानें
विवाह में तलाक जैसी स्थिति आखिर किन कारणों से उभरी इसके लिए जन्म कुंडली की जांच करना जरूरी है. इस के अलावा दोनों लोगों के मध्य एक ऎसे व्यक्ति का होना भी जरुरी है जो निष्पक्ष रूप से दोनों का साथ देने वाला हो, एक योग्य ज्योतिषी इस भूमिका में सबसे अधिक उपयुक्त व्यक्ति होता है क्योंकि वह जानता है कि कुंडली में वो कौन से योग बने, और कौन सी दशा गोचर की स्थिति ऐसी बन रही है की अलगाव तलाक तक पहुंच सकता है.
इन बातों को जान समझ कर तलाक और अलगाव होने को रोक पाना संभव होता है. लेकिन अगर दोनों लोगों की रजामंदी इस तरह से नहीं मिल पाती है तब उस स्थिति में अकेला साथी भी ज्योतिष द्वारा बताई गई सलाह और उपायों से अपने टूटते घर को बचा सकता है. इसी में विशेष भूमिका आती है हमारे द्वारा किए जाने वाले उन खास उपायों की जो हम स्वय�� भी अगर कर लेते हैं तो रिश्ते को तलाक और अलगाव जैसी परिस्थिति से अपने जीवन को बचाया जा सकता है.
सावन तीज के दिन पूजा एवं अनुष्ठान रोक सकते हैं वैवाहिक जीवन का तनाव
तीज का पर्व इसी में एक विशेष उपाय है जो जीवन की इन उलझनों को दूर करने में बहुत सहायक होता है. यह न केवल रिश्ते को टूटने से बचाता है बल्कि ऎसे रिश्ते देता है जो जीवन भर साथ निभाते हैं. इसी कारण कुंवारी कन्याएं जब “योग्य वर” की कामना करती हैं तो उनके लिए तीज का दिन बेहद विशेष होता है.
तीज का पर्व है देवी पार्वती और महादेव के प्रेम विवाह का गवाह
शिव पुराण एवं अन्य कथाओं में इस बात का उल्लेख प्राप्त होता है की जब माता पार्वती ने अपने विवाह के लिए योग्य वर के रूप में भगवान शिव को पति बनाने की कामना रखी तब उ���की तपस्या और उनकी कठोर व्रत साथना में तीज व्रत का दिन भी गवाह बना. सावन माह की तृतीया तिथि के दिन ही महादेव ने देवी पार्वती को अपनी जीवन संगिनी बनने का वचन दिया था. इसी कारण से जो भी कन्या अपने लिए मनपसंद वर की इच्छा रखती है वह तीज के दिन यदि देवी पार्वती और महादेव का विधि विधान के साथ पूजन करती हैं तो उनकी कामना जरूर पूरी होती है.
तीज की पूजा का फल व्यक्ति को तभी प्राप्त होता है जब सभी नियमों का पालन करते हुए पूजन किया जाए. सावन तीज पर अगर सही तरह से उचित रूप में एक योग्य ज्योतिषी के सहयोग द्वारा पूजा अनुष्ठानों के कार्यों को किया जाता है तो वैवाहिक जीवन में आने वाली हर प्रकार की संभावित परेशानियों से बचा जा सकता है.
Source Url: https://medium.com/@latemarriage/shaadi-mein-aa-rahi-hai-talaak-ki-naubat-to-teej-ke-shubh-prabhav-se-door-hogi-samasya-a169b338b41a
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भूत को कैसे पहचाना जाता है? - भूत-प्रेत बाधा के लक्षण और मुक्ति के उपाय
भूत को कैसे पहचाना जाता है? – भूत-प्रेत बाधा के लक्षण और मुक्ति के उपाय – भुत-प्रेत जिन्हें नकारात्मक एनर्जी और आत्मा भी कहा जाता हैं। शास्त्रों में भी भुत-प्रेत और आत्मा के बारें में उल्लेख मिलता हैं। असमय मृत्यु के पश्चात आत्मा लम्बे समय तक भू लोक में भटकता रहता हैं। भगवान शिव और पार्वती जी के विवाह में जो बाराती गण थे उनमें लगभग भुत-प्रेत ही थे। जिन्हें देखने के बाद पार्वती जी के घर वाले डर गए…
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart21 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart22
"शंकराचार्यों की शास्त्र विरुद्ध पूजा पर एक नजर" आदि शंकराचार्य के ज्ञान की अब एक झलक पुस्तक हिमालय तीर्थ की दिखाता हूँ :-
पवित्र पुस्तक "हिमालय तीर्थ" पर विवेचन करता हूँ फिर आगे लगी फोटोकॉपी वाला लेख आपको आसानी से समझ आएगा।
"अध्याय = उत्तराखंड के पंच केदार"
"श्री केदरानाथ" इस पुस्तक में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी व अन्य देवी-देवताओं की भक्ति व स्थान बताए हैं। स्कंद पुराण का हवाला देकर बताया है कि स्कंद पुराण केदार खंड 41/5-6 में श्री शंकर भगवान जी ने माता पार्वती जी के प्रश्न का स्वयं उत्तर इस प्रकार दिया है कि हे प्राणेश्वरी! यह केदार क्षेत्र उतना ही प्राचीन है जितना मैं हूँ। मैंने इसी स्थान पर ब्रह्मा का रूप धारण करके सृष्टि की रचना की थी। यह स्थान मेरा चिरप्रिय आवास है। यह केदार खंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग (पृथ्वी का स्वर्ग) के समान है।
(स्कंद पुराण का प्रकरण समाप्त)
श्री केदार नाथ की अन्य विशेषता बताई है कि भगवान शंकर के बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से ग्यारहवां यहाँ पर है।
अन्य विशेषता बताई है कि "यह स्थान समुद्र तल से 11750 फुट (3500 मीटर) की ऊँचाई पर है। यह "ज्योतिर्लिंग" नर तथा नारायण ऋषियों द्वारा प्रतिष्ठित (स्थापित) है। इन दोनों ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए बडी कठिन (घोर) तपस्या की। भगवान के प्रसन्न होने पर उनसे वर मांगा कि आप ज्योतिर्लिंग रूप में यहाँ स्थापित हों ताकि आप ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके भक्तों पर महान उपकार हो सके। भगवान शंकर ने स्वीकार किया। उस दिन से इस केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा शुरू हुई।
"अनोखी घटना" पृष्ठ 19 पर :-
केदार का शाब्दिक अर्थ ऐसे स्थान से होता है जहाँ दलदल एवं अति मात्रा में जल हो। नर और नारायण ऋषियों के पश्चात् अन्य ऋषि-मुनियों व भक्तों द्वारा यह ज्योतिर्लिंग पूजित रहा है।
घटना : पाँच केदार कैसे बने? पांडव हिमालय में जिंदगी के अंतिम दिन व्यतीत करने गए हुए थे। एक दिन भीम ने देखा कि एक ��ैंस दूर घूम रही है। भीम ने ���ोचा कि भैंस दूध वाली लगती है। उसको पकड़ने के लिए चला तो देखते-देखते भैंस धरती में समाने लगी। भीम उसको रोकने के लिए दौड़ा, तब तक पृष्ठ भाग (पिछला भाग) ही बाहर था। आगे का हिस्सा मुख, सिर आदि जमीन में समा चुके थे। भैंस का पिछला भाग पत्थर बन गया। फिर शिव जी ने दर्शन दिए और पांडवों को आदेश दिया कि इस भैंस के पिछले भाग (गोबर द्वार व मूत्र द्वार) की पूजा करो जिससे तुम्हारी गोत्र हत्या, गुरू हत्या पाप को समाप्त करने के रूप में पूजा-अर्चना हो जाएगी।
ऐसा आदेश देकर शिव जी अंतर्ध्यान हो गए। महिष (भैंस) का जो पिछला भाग शिला (पत्थर) रूप बन गया था, वह पांडवों द्वारा पूजित हुआ व तब से आज तक पूजित है।
1. उस महिष (भैंस) का अग्र भाग यानि सिर नेपाल में जाकर प्रकट हुआ जो पशुपतिनाथ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
2. बाहू (अगले पैर) तुंग नाथ में 3. मुख रूद्र नाथ में 4. नाभि महेश्वर में 5. जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। चार भाग केदार क्षेत्र में प्रतिष्ठित हुए। पांचवा केदारनाथ सहित पंच केदार विख्यात हैं। पशुपतिनाथ नेपाल देश में है।
उपरोक्त पूजा का फल :-
यदि कोई शुद्ध मन से विचार कर ले कि मैं केदारनाथ जाऊँगा त��� इतने संकल्प मात्र से ही उसके तीन सौ कुलों के पितृगण शिव लोक को प्राप्त कर लेते हैं। (यह पृष्ठ 21 पर लिखा है।) इसी पृष्ठ 21 पर लिखा है कि ज्योतिर्लिंग के पास केदार क्षेत्र में ही एक उदक कुण्ड स्थित है। उसके जल को पीने से घोर पापी भी मरणोपरान्त शिव लोक प्राप्त कर शिव स्वरूप हो जाता है।
विचार करो : शिव लोक में तो रहते ही भूत, पिशाच, भैरव आदि पतित जीव हैं। इसीलिए तो शिव जी को भूतनाथ भी कहा जाता है। पुराण में कथा है कि जिस समय शिव जी का विवाह पार्बती से होना था तो उसके साथ भूत, प्रेत, भैरव आदि सेना गई थी। देवता कोई नहीं साथ गया था। फिर उपरोक्त साधना, गीता व वेद शास्त्रों में न लिखी होने से शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण हुआ। जिससे न सुख मिलता है, न सिद्धि, न गति यानि मोक्ष मिलता है अर्थात् जो व्यर्थ है।
पुस्तक हिमालय तीर्थ के पृष्ठ 36-38 पर लिखा है कि शंकर भगवान स्वयं बुद्ध अवतार धारण करके धरती पर जन्में। बौद्ध धर्म चलाया। मूर्ति पूजा का विरोध किया। बौद्ध धर्म के दो समुदायों हीनयान तथा महायान के पारंपरिक संघर्ष ने बदरिकाश्रम यानि बदरीनाथ को भी अपने कब्जे में ले लिया। पुजारी उस भगवान नारायण की मूर्ति को नारदकुण्ड में डालकर इस धाम से पलायन कर गए यानि भाग गए।
आगे लिखा है कि कालांतर में यानि कुछ समय पश्चात् भगवान आशुतोष यानि भगवान शंकर जी कलयुग के तीन हजार वर्ष व्यतीत होने पर आदि श्री शंकराचार्य जी के रूप में उत्पन्न हुए। फिर उस मूर्ति को नारदकुण्ड से निकलवाकर पुनः बदरिकाश्रम में स्थापित किया। तब से फिर उस मूर्ति की पूजा प्रारंभ हुई है। यह भी लिखा है कि भगवान शंकर भी इसी स्थान पर ब्रह्म हत्या से मुक्त हुए। भगवान राम तथा देवराज इंद्र को भी ब्रह्म हत्या से मुक्त होने के लिए बदरिकाश्रम धाम का सेवन (पूजन) करना पड़ा।
फिर कुछ और पूजा, परिक्रमा करना लिखा है। उसी बद्रीनाथ के आसपास के स्थान हैं। इन सब क्रियाओं से यानि उपरोक्त पूजा से विष्णु लोक प्राप्त होता है।
विचार करो :- विष्णु जी सतगुण युक्त देवता हैं। श्री शिव जी तमगुण युक्त देवता हैं। इनके लोकों में साधक चला गया तो क्या मुक्ति हो गई?
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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#अब_बेटी_बोझ_नहीं
💰श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
Mission of Sant Rampal Ji
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#अब_बेटी_बोझ_नहीं
💰श्री देवीपुराण के तीसरे स्कंद में प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन-भण्डारा किया गया था। न डी.जे बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा
जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इसे ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र श्री विष्णु जी से लक्ष्मी जी तथा छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना-अपना घर बसाओ। तीनों अपनी-अपनी पत्नियों को लेकर अपने-अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।
Mission of Sant Rampal Ji
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हरतालिका तीज - पति की दीर्घायु का व्रत, विधि और पूजा
हरतालिका तीज, जिसे बूढ़ी तीज या सुहागिनों का तीज भी कहा जाता है, हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का प्रतीक है।
पति की दीर्घायु का व्रत
हरतालिका तीज का मुख्य उद्देश्य पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करना होता है। इस दिन, विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।
हरतालिका तीज व्रत विधि
हरतालिका तीज का व्रत दो दिनों का होता है। पहले दिन, महिलाएं "हरतालिका" नामक एक मिट्टी की गोली बनाती हैं और उसे भगवान शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा करती हैं। दूसरे दिन, महिलाएं व्रत तोड़ती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।
हरतालिका तीज पूजा विधि
हरतालिका तीज की पूजा विधि इस प्रकार है:
सुबह: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
हरतालिका की पूजा: एक चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। हरतालिका को चौकी पर रखें और उसका गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, फूल, फल, आदि से पूजन करें।
कथा वाचन: हरतालिका तीज व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
आरती: भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारें।
भोग: भगवान शिव और माता पार्वती को भोग लगाएं।
निर्जला व्रत: दिन भर निर्जला व्रत रखें।
रात्रि जागरण: रात भर जागकर भगवान शिव और माता पार्वती के भजन गाएं।
दूसरे दिन: अगले दिन, सूर्योदय के बाद स्नान करें और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।
व्रत का पारण: दही, खीर, या फल जैसे सात्विक भोजन से व्रत का पारण करें।
हरतालिका तीज का महत्व
हरतालिका तीज का महत्व निम्नलिखित है:
पति की दीर्घायु: यह व्रत पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है।
पति-पत्नी के बीच प्रेम: यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और स्नेह को बढ़ाता है।
���ौभाग्य: यह व्रत महिलाओं के सौभाग्य और सुख-समृद्धि के लिए भी मनाया जाता है।
हरतालिका तीज की कुछ विशेषताएं
हरियाली: हरतालिका तीज के दिन, महिलाएं हरे रंग के कपड़े पहनती हैं और अपने घरों को हरी पत्तियों से सजाती हैं।
झूला: कुछ जगहों पर, महिलाएं झूला झूलती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती के भजन गाती हैं।
शृंगार: इस दिन, महिलाएं श्रृंगार करती हैं और अपने पतियों के लिए नए कपड़े और गहने खरीदती हैं।
मेहंदी: महिलाएं अपने हाथों और पैरों में मेहंदी लगाती हैं।
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