#वेदों_अनुसार_कबीरप्रभु_लीला
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क्या है गणेश और आदिगणेश में फर्क? | Sant Rampal Ji Maharaj LIVE Satsang
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Holy Yajurved
Adhyay 29 Mantra 25
When abandoning the scripture-based way of worship the devotee community is made to follow arbitrary way of worship, at that time KavirDev (Supreme God Kabir) reveals the Tatvgyan (the true spiritual knowledge).
To know more, read sacred Book Gyan Ganga
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परमपिता परमेश्वर कभी भी माँ से जन्म नहीं लेते |
ऋगवेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3
पूर्ण परमात्मा जब शिशु रूप धारण करके यहां आते है तो उनका पालन-पोषण कुंवारी गायों द्वारा होता है |#वेदों_अनुसार_कबीरप्रभु_लीला
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⚡️कबीर परमात्मा माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही उनकी कोई पत्नी थी। क्योंकि वे तो सबके उत्पत्तिकर्ता हैं। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में प्रमाण है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर साहेब) ही है।
कबीर, "ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशीपुरी ज�� कमल पे डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।
मात पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी। जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरे हासी।।"
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शिशु कबीर परमेश्वर द्वारा कुंवारी गाय का दूध पीने का वर्णन
परमेश्वर जब पृथ्वी पर शिशु रूप में प्रकट होते हैं तो उनकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध द्वारा होती है।
गरीब शिव उतरे शिवपुरी से, अविगत बदन विनोद।
महके कमल खुशी भये, लिया ईश कूं गोद।
सात बार चर्चा करी, बोले बालक बैन।
शिव कूं कर मस्तक धरया, ला मोमन एक धैन।
गरीब अन ब्यावर कूं दूहत है, दूध दिया तत्काल।
पीवै बालक ब्रह्मगति, तहाँ शिव भये दयाल
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⚡️ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3, मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2 में लिखा है कि वह परमेश्वर सशरीर प्रकट होता है और सशरीर अपने निज लोक को चला जाता है। कबीर परमेश्वर सन् 1398 (विक्रम संवत 1455, ज्येष्ठ पूर्णमासी) को शिशु रूप में प्रकट हुए। और सन् 1518 (वि. सं. 1575) को सशरीर सतलोक चले गए।
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काशी शहर की पवित्र भूमि पर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पूर्ण परमेश्वर कबीर/कविर्देव जी स्वयं अपने सतलोक से आकर लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर बालक रूप में प्रकट हुए।
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ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3, मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2 में लिखा है कि वह परमेश्वर सशरीर प्रकट होता है और सशरीर अपने निज लोक को चला जाता है। कबीर परमेश्वर सन् 1398 (विक्रम संवत 1455, ज्येष्ठ पूर्णमासी) को शिशु रूप में प्रकट हुए। और सन् 1518 (वि. सं. 1575) को सशरीर सतलोक चले गए।
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On the holy land of Kashi, during the auspicious moment of Brahma Muhurta on the full moon day of Jyeshtha month, Vikram Samvat 1455, Monday morning, Supreme God Kabir Ji himself descended from Satlok and appeared in the form of a child on a lotus flower in the Lahartara pond.
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कबीर परमेश्वर का कलयुग में प्रकट होना
ज्येष्ठ मांस की पूर्णमासी सन् 1398(विक्रम संवत 1455) को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब काशी में शिशु रूप में प्रकट हुए।
साहेब होकर उतरे, बेटा काहू का नाहीं।
जो बेटा होकर उतरे, वो साहेब भी नाहीं।।
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब सशरीर आये और अनेकों लीलाएं करके पुनः सशरीर सतलोक चले गए। क्योंकि
पूर्ण परमात्मा कभी भी न जन्म लेता है और न उसकी मृत्यु होती है।
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ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9
“अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।
परमेश्वर जब भी शिशुरूप में पृथ्वी पर आते हैं तो उनका पालन पोषण कुंवारी गायों के दूध से होता है।
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