#विष्णु विष्णु युग
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helputrust · 8 months ago
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लखनऊ, 04.05.2024 । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत को साकार करने तथा महिला सशक्तिकरण हेतु गो कैंपेन (अमेरिकन संस्था) के सहयो�� से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में विष्णु नगर शिक्षा निकेतन कन्या इंटर कॉलेज, खुर्शेदबाग, लखनऊ में आत्मरक्षा कार्यशाला आयोजित की गई जिसमे 31 छात्राओं ने मेरी सुरक्षा, मेरी ज़िम्मेदारी मंत्र को अपनाते हुए आत्मरक्षा के गुर सीखे तथा वर्तमान परिवेश में आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को जाना ।
कार्यशाला का शुभारंभ राष्ट्रगान से हुआ तथा विष्णु नगर शिक्षा निकेतन कन्या इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या श्रीमती सूर्यबाला, शिक्षिकाओं एवं रेड ब्रिगेड से तंजीम अख्तर ने दीप प्रज्वलित किया ।
विष्णु नगर शिक्षा निकेतन कन्या इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या श्रीमती सूर्यबाला ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद करते हुए कहा कि, “आज के युग में महिलाओं को सशक्तिकरण की आवश्यकता है और यह सशक्तिकरण हमारे समाज की नींव है । हम सभी को यह समझना चाहिए कि महिलाएं समाज का अभिन्न हिस्सा हैं और उन्हें समानता का हक है । जब हम महिलाओं को शक्तिशाली बनाते हैं तो हम समाज का और भी मजबूती से निर्माण करते हैं । आत्मरक्षा एक महत्वपूर्ण गुण है जिसे हमें अपने सभी बच्चों को सिखाना चाहिए । यह न केवल उनकी सुरक्षा बढ़ाता है बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है | जब महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती हैं तो समाज में संतुलन और समानता बनती है । आज हम सभी को महिलाओं के सशक्तिकरण का समर्थन करना चाहिए । हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करना चाहिए और उन्हें एक समान और समर्थ समाज की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग प्रदान करना चाहिए ।“
कार्यशाला में रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख श्री अजय पटेल ने बालिकाओं को आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को बताते हुए कहा कि, "किसी पर भी अन्याय तथा अत्याचार किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं हो सकती हैं, फिर समाज के एक बहुत बड़े भाग यानि स्त्रियों के साथ ऐसा करना प्रकृति के विरुद्ध हैं | महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ देश में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं तथा सरकार निरंतर महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चला रही है लेकिन यह अत्यंत दुख की बात है कि हमारा समाज 21वीं सदी में जी रहा है लेकिन कन्या भ्रूण हत्या व लैंगिक भेदभाव के कुचक्र से छूट नहीं पाया है | आज भी देश के तमाम हिस्सों में बेटी के पैदा होते ही उसे मार दिया जाता है या बेटी और बेटे में भेदभाव किया जाता है | महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होती है तथा उनको एक स्त्री होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है | आत्मरक्षा प्रशिक्षण समय की जरूरत बन चुका है क्योंकि यदि महिला अपनी रक्षा खुद करना नहीं सीखेगी तो वह अपनी बेटी को भी अपने आत्म सम्मान के लिए लड़ना नहीं सिखा पाएगी | आज किसी भी क्षेत्र में नजर उठाकर देखियें, नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति में समान की भागीदार हैं | फिर उन्हें कमतर क्यों समझा जाता है यह विचारणीय हैं | हमें उनका आत्मविश्वास बढाकर, उनका सहयोग करके समाज की उन्नति के लिए उन्हें साहस और हुनर का सही दिशा में उपयोग करना सिखाना चाहिए तभी हमारा समाज प्रगति कर पाएगा | आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने का हमारा यही मकसद है कि हम ज्यादा से ज्यादा बालिकाओं और महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखा सके तथा समाज में उन्हें आत्म सम्मान के साथ जीना सिखा सके |"
आत्मरक्षा प्रशिक्षण की प्रशिक्षिका तंजीम अख्तर ने लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लड़कों की मानसिकता के बारे में अवगत कराया तथा उन्हें हाथ छुड़ाने, बाल पकड़ने, दुपट्टा खींचने से लेकर यौन हिंसा एवं बलात्कार से किस तरह बचा जा सकता है यह अभ्यास के माध्यम से बताया |
कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र वितरित किये गये ।
कार्यशाला में विष्णु नगर शिक्षा निकेतन कन्या इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या श्रीमती सूर्यबाला, शिक्षिकाओं श्रीमती सविता देवी, श्रीमती निशि, श्रीमती मनोरमा, डॉ वंदना यादव, सुश्री शाइस्ता, श्रीमती आरती यादव, श्रीमती गीतांजलि, श्रीमती अनामिका यादव, सुश्री रचना शर्मा, छात्राओं, रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से श्री अजय पटेल, तंजीम अख्तर तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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indrabalakhanna · 7 months ago
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*🪷बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🪷*
#FridayMotivation
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#परमात्माका_चारोंयुगों_मेंआना
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📚पूर्ण परमात्मा चारों युगों में आते हैं, अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।
"सतयुग में सत्यसुकृत नाम से, त्रेता में मुनीन्द्र नाम से आये, द्वापर में करुणामय नाम से तथा कलयुग में अपने वास्तविक नाम कबीर नाम से प्रकट हुए।"
📚जिस कविर्देव/कबीर साहेब/हक्का कबीर/कबीरन/खबीरा के प्रमाण शास्त्रों (वेद, गीता, क़ुरान, बाइबल, गुरुग्रंथ साहिब) में मिलते हैं वह कोई और नहीं बल्कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही हैं जो 600 वर्ष पहले काशी में आये थे। जिन्होंने सद्भक्ति व समाज सुधार का मार्ग बताया।
📚त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर "मुनीन्द्र ऋषि" के रूप में आए थे। उस समय नल-नील तथा हनुमान जी को अपना सत्य ज्ञान बताकर अपनी शरण में लिया और अपने आशीर्वाद मात्र से नल-नील के शारीरिक तथा मानसिक रोग को ठीक किया था।
📚चारों युगों में अपनी प्यारी आत्माओं को पार करने आते हैं परमेश्वर कबीर जी
परमात्मा कबीर जी सतयुग में सत सुकृत नाम से प्रकट हुए थे। उस समय अपनी एक प्यारी आत्मा सहते जी को अपना शिष्य बनाया और अमृत ज्ञान समझाकर सतलोक का वासी बनाया।
📚त्रेता युग में परमात्मा कबीर जी मुनींद्र नाम से आए थे। उस समय लीलामय तरीके से बंके नाम की ��क प्यारी आत्मा को अपनी शरण में लिया, सत्य ज्ञान समझाया और पार किया।
📚ज्ञानी गरूड़ है दास तुम्हारा।
तुम बिन नहीं जीव निस्तारा।।
इतना कह गरूड़ चरण लिपटाया।
शरण लेवो अविगत राया।।
सतयुग में विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को कबीर साहेब जी ने उपदेश दिया, उनको सृष्टि रचना सुनाई और गरूड़ जी मुक्ति के अधिकारी हुए।
📚द्वापर युग में परमात्मा कबीर जी करुणामय नाम से आए थे और पंथ प्रचार के लिए चतुर्भुज नाम की एक प्यारी आत्मा को चुना। लाखों जीवों तक ज्ञान पहुंचाया और इस प्यारी आत्मा को पार किया।
📚कबीर जी चारों युगों में आते हैं।
*चारों युग देखो संवादा। पंथ उजागर कीन्हो नादा।।*
*कहां निर्गुण कहां सर्गुण भाई। नाद बिना नहीं चलै पंथाई।।*
(अनुराग सागर पृष्ठ 142)
उपरोक्त वाणी में परमात्मा कबीर जी अपने प्रिय शिष्य धर्मदास को समझाते हुए कहते हैं कि हे धर्मदास! मैंने चारों युगों में अपने नाद के पुत्रों से ही पंथ चलाए है
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kisturdas · 1 year ago
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SATLOKASHRAMSOJAT . कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे……
============================
।।सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार।।
इंद्र - 31 करोड़ लगभग
शची
(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
ब्राह्मा जी - 31 लाख करोड़ लगभग
विष्णु जी - 2 अरब लाख लगभग
शिवजी - 15 लाख अरब लगभग
ब्रह्म-काल- 25 खरब करोड़ लगभग
परब्रह्म - 2 पदम अरब लगभग
पूर्णब्रह्म कबिर्देव- अजर-अमर
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
@@@@@@@@@@@@@@@
सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की बीबी शची 14 ईन्द्रौं की बीबी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त होता है.)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
®®®®®®®®®®®®®®®
72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
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1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु -
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1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
ब्राह्मा जी की आयु है.
(31 नील 33 खरब 28 अरब 32 लाख मानव वर्ष अनुसार )
ब्रह्मा जी से सात गुणा विष्णु जी की आयु -
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7,25,76,000 × 7 = 50,80,32,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग) = 2,19,46,98,24,00,00,000 मानव वर्ष
विष्णुजी की आयु है।
(2 पदम 19 मील 46 खरब 98 अरब 24 करोड़ मानव वर्ष अनुसार)
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु -
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50,80,32,000 × 7 = 3,55,62,24,000 चतुर्युग 15,36,28,87,68,00,00,000 मानव वर्ष .
शिवजी की आयु है
(15 पदम 36 मील 48 खरब 87 अरब 68 करोड़ मानव वर्ष अनुसार )
ऐसे 3,55,62,24,000 चतुर्युग वाले जब सत्तर हजार (70,000) शिवजी मरते है तब ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) और इनकी माता दुर्गा -शेरावाली भी मर जाते है.
ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन और दुर्गा -शेरावाली की आयु-
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3,55,62,24,000×70000= 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग × (1चतुर्युग) = 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
( 25 खरब करोड़ लगभग मानव वर्ष अनुसार)
पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित किए 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग अर्थात 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
समय में काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली के 21 ब्रह्मांडो मे से जिस 1 ब्रह्मांड में स्रषटि चल रही होती है उस ब्रह्मांड में महाप्रलय होती है।
यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु होती है) एक युग होता है परब्रह्म का।
परब्रह्म का 1 दिन एक हजार युग का होता है इतनी ही 1 हज़ार युग की रात्री होती है 30 दिन-रात का 1 महिना तथा 12 महिनों का परब्रह्म का 1 वर्ष हुआ तथा इस प्रकार का 100 वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है। ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् ही हो जाती है
परब्रह्म की आयु
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इस प्रकार परब्रह्म जी का एक दिन और रात 1,000 +1,000 = 2,000 युग
1 महीना = 30 × 2,000= 6,000 युग
1 वर्ष = 12 × 6,000= 72,000 युग ।
100 वर्ष = 100 × 72,000 = 72,00,000 युग.
72,00,000 युग × 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 काल के जीवन के मानव वर्ष = 2,01,63,79,00,80,00,00,00,00,00,00,000
(2 पदम अरब लगभग मानव वर्ष अनुसार)
नोट-
अर्थात परब्रह्म के जीवन काल में 72,00,000 बार काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली का जन्म-मरण हो जाता है!!!.
परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के पश्चात परब्रह्म की भी म्रत्यु हो जाती है.ईस तीसरी दिव्य महाप्रलय में एक धुधुंकार शंख बजता है .और परब्रह्म सहित इसके 7 संख ब्रह्मांडो के सभी जीव ,काल-ब्रह्म और दुर्गा सहित सर्व 21 ब्रह्मण्ड,उसके जीव ,ब्रह्मा- विश्नू -शिवजी , देव,ऋषि व अन्य ब्रह्मांड सब कुछ नष्ट हो जाते हैं।
कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे.……………………
केवल सतलोक व ऊपर के तीनों लोक अगम लोक,अलख लोक,अनामी लोक ही शेष रहते हैं।
सतपूरुष के बनाये विधान द्वारा सतपूरुष के पुत्र अचिन्त द्वारा ये तीसरी दिव्य महाप्रलय और फ़िर स्रषटि रची जाती है. किंतु सतलोक गये जीव फ़िर जन्म -मरण में नही आते है.
इस प्रकार कबिर्देव परमात्मा ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष कबिर्देव हुँ|
www.jagatgururampalji.org पर जाकर ज्ञान गंगा पुस्तक डाउन्लोड कर अवश्य पढीये. या घर पर मुफ़्त पुस्तक प्राप्त करने के लिए अपना पता मेसेज किजिये.
सर्वजन हित में जारी.
शेयर अवश्य किजिये.. कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे……
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।।सर्व प्रभुओं की आयु मानव वर्ष अनुसार।।
इंद्र - 31 करोड़ लगभग
शची
(14 इन्द्रौं
की पत्नी) - 4 अरब लगभग
ब्राह्मा जी - 31 लाख करोड़ लगभग
विष्णु जी - 2 अरब लाख लगभग
शिवजी - 15 लाख अरब लगभग
ब्रह्म-काल- 25 खरब करोड़ लगभग
परब्रह्म - 2 पदम अरब लगभग
पूर्णब्रह्म कबिर्देव- अजर-अमर
एक ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष है,किस तरह के 100 वर्ष की है। गौर से नीचे देखिये
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ब्रह्मा का एक दिन = 1008 (एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही 1008 (एक हज़ार)चतुर्युग की रात्री।
दिन+रात = 2016 (दो हजार सोलह) चतुर्युग।
चार युगो ( (चतुर्युग) की आयु
@@@@@@@@@@@@@@@
सतयुग की आयु = 17,28,000 वर्ष
(17 लाख 28 हजार)
द्वापर युग की आयु = 12,96,000 वर्ष
(12 लाख 96 हज़ार)
त्रेता युग की आयु = 8,64,000 वर्ष
(8 लाख 64 हज़ार)
कलयुग की आयु = 4,32,000 वर्ष
(4 लाख 32 हज़ार)
चार युगौं (चतुर्युग)
की आयु = 43,20,000 वर्ष
43 लाख 20 हज़ार
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इंद्र की बीबी शची 14 ईन्द्रौं की बीबी बनती है, फ़िर ये सभी 14 ईन्द्र मर कर गधे बनते है और शची भी मर कर गधी का जीवन प्राप्त होता है.)
इस प्रकार इंद्र का जीवनकाल
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72 चतुर्युग × 43,20,000 = 31,10,40,000
मानव बर्ष
(31 करोड़ 10 लाख 40 हजार मानव वर्ष अनुसार )
शची (14 इंद्रौ की पत्नी) का जीवन काल
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1008 चतुर्युग× 43,20,000 = 4,35,45,60,000 मानव वर्ष
(4 अरब 33 करोड़ 45 लाख 60 हजार मानव वर्ष अनुसार)
इस प्रकार ब्रह्मा जी का एक दिन और रात 2016 चतुर्युग.
1 महीना = 30 गुणा 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 गुणा 60480 = 725760चतुर्युग ।
ब्रह्मा जी की आयु -
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1 महीना = 30 × 2016 = 60480 चतुर्युग।
वर्ष = 12 × 60480 = 725760चतुर्युग ।
7,25,760 × 100 =7,25,76,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग)=31,35,28,32,00,00,000 मानव वर्ष
ब्राह्मा जी की आयु है.
(31 नील 33 खरब 28 अरब 32 लाख मानव वर्ष अनुसार )
ब्रह्मा जी से सात गुणा विष्णु जी की आयु -
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7,25,76,000 × 7 = 50,80,32,000 चतुर्युग × 43,20,000(1चतुर्युग) = 2,19,46,98,24,00,00,000 मानव वर्ष
विष्णुजी की आयु है।
(2 पदम 19 मील 46 खरब 98 अरब 24 करोड़ मानव वर्ष अनुसार)
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु -
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50,80,32,000 × 7 = 3,55,62,24,000 चतुर्युग 15,36,28,87,68,00,00,000 मानव वर्ष .
शिवजी की आयु है
(15 पदम 36 मील 48 खरब 87 अरब 68 करोड़ मानव वर्ष अनुसार )
ऐसे 3,55,62,24,000 चतुर्युग वाले जब सत्तर हजार (70,000) शिवजी मरते है तब ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) और इनकी माता दुर्गा -शेरावाली भी मर जाते है.
ब्राह्मा-विश्नू -शंकर के पिता ज्योति निरंजन और दुर्गा -शेरावाली की आयु-
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3,55,62,24,000×70000= 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग × (1चतुर्युग) = 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
( 25 खरब करोड़ लगभग मानव वर्ष अनुसार)
पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित किए 24,89,35,68,00,00,000 चतुर्युग अर्थात 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 मानव वर्ष
समय में काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली के 21 ब्रह्मांडो मे से जिस 1 ब्रह्मांड में स्रषटि चल रही होती है उस ब्रह्मांड में महाप्रलय होती है।
यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु होती है) एक युग होता है परब्रह्म का।
परब्रह्म का 1 दिन एक हजार युग का होता है इतनी ही 1 हज़ार युग की रात्री होती है 30 दिन-रात का 1 महिना तथा 12 महिनों का परब्रह्म का 1 वर्ष हुआ तथा इस प्रकार का 100 वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है। ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् ही हो जाती है
परब्रह्म की आयु
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इस प्रकार परब्रह्म जी का एक दिन और रात 1,000 +1,000 = 2,000 युग
1 महीना = 30 × 2,000= 6,000 युग
1 वर्ष = 12 × 6,000= 72,000 युग ।
100 वर्ष = 100 × 72,000 = 72,00,000 युग.
72,00,000 युग × 2,24,04,21,12,00,00,00,00,000 काल के जीवन के मानव वर्ष = 2,01,63,79,00,80,00,00,00,00,00,00,000
(2 पदम अरब लगभग मानव वर्ष अनुसार)
नोट-
अर्थात परब्रह्म के जीवन काल में 72,00,000 बार काल- ब्राह्म और दुर्गा शेरावाली का जन्म-मरण हो जाता है!!!.
परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के पश्चात परब्रह्म की भी म्रत्यु हो जाती है.ईस तीसरी दिव्य महाप्रलय में एक धुधुंकार शंख बजता है .और परब्रह्म सहित इसके 7 संख ब्रह्मांडो के सभी जीव ,काल-ब्रह्म और दुर्गा सहित सर्व 21 ब्रह्मण्ड,उसके जीव ,ब्रह्मा- विश्नू -शिवजी , देव,ऋषि व अन्य ब्रह्मांड सब कुछ नष्ट हो जाते हैं।
कबीर .इतनी लंम्बी उमर .मरेगा अंत रे
सतगुरू मिले . तो पहुँचेगा सतलोक रे.……………………
केवल सतलोक व ऊपर के तीनों लोक अगम लोक,अलख लोक,अनामी लोक ही शेष रहते हैं।
सतपूरुष के बनाये विधान द्वारा सतपूरुष के पुत्र अचिन्त द्वारा ये तीसरी दिव्य महाप्रलय और फ़िर स्रषटि रची जाती है. किंतु सतलोक गये जीव फ़िर जन्म -मरण में नही आते है.
इस प्रकार कबिर्देव परमात्मा ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष कबिर्देव हुँ|
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सर्वजन हित में जारी.
शेयर अवश्य किजिये.
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thedhongibaba · 1 year ago
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🙏अब आपकी बारी
खासकर अपने बच्चों को बताएं
क्योंकि ये बात उन्हें कोई दूसरा व्यक्ति नहीं बताएगा...
📜😇 दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇 तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇 चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇 चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇 चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇 चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇 चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇 चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇 पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜
📜😇 पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇 छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇 सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇 सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😊 आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜
📜
📜😇 दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल
📜😇 बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜
📜
📜😇 पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇 स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
**********************
इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी सनातन भारतीय संस्कृति का ज्ञान हो।
ऊपर जाने पर एक सवाल ये भी पूँछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।
जवाब:-
अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-
(1)जल
(2) पथ्वी
(3)आकाश
(4)वायू
(5) अग्नि
ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।
5 जगह हँसना करोड़ो पाप के बराबर है
1. श्मशान में
2. अर्थी के पीछे
3. शौक में
4. मन्दिर में
5. कथा में
सिर्फ 1 बार भेजो बहुत लोग इन पापो से बचेंगे ।।
अकेले हो?
परमात्मा को याद करो ।
परेशान हो?
ग्रँथ पढ़ो ।
उदास हो?
कथाए पढो ।
टेन्शन मे हो?
भगवत गीता पढो ।
फ्री हो?
अच्छी चीजे फोरवार्ड करो
हे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियो पर कृपा करो......
सूचना
क्या आप जानते हैं ?
हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।
व्रत,उपवास करने से तेज़ बढ़ता है,सर दर्द और ��ाल गिरने से बचाव होता है ।
आरती----के दौरान ताली बजाने से
दिल मजबूत होता है ।
ये मेसेज असुर भेजने से रोकेगा मगर आप ऐसा नही होने दे और मेसेज सब नम्बरो को भेजे ।
श्रीमद भगवत गीता पुराण और रामायण ।
.
''कैन्सर"
एक खतरनाक बीमारी है...
बहुत से लोग इसको खुद दावत देते हैं ...
बहुत मामूली इलाज करके इस
बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है ...
अक्सर लोग खाना खाने के बाद "पानी" पी लेते है ...
खाना खाने के बाद "पानी" ख़ून में मौजूद "कैन्सर "का अणु बनाने वाले '''सैल्स'''को '''आक्सीजन''' पैदा करता है...
''हिन्दु ग्रंथो मे बताया गया है कि...
खाने से पहले'पानी 'पीना
अमृत"है...
खाने के बीच मे 'पानी ' पीना शरीर की
''पूजा'' है...
खाना खत्म होने से पहले 'पानी'
''पीना औषधि'' है...
खाने के बाद 'पानी' पीना"
बीमारीयो का घर है...
बेहतर है खाना खत्म होने के कुछ देर बाद 'पानी 'पीये...
ये बात उनको भी बतायें जो आपको "जान"से भी ज्यादा प्यारे है
रोज एक सेब
नो डाक्टर ।
रोज पांच बदाम,
नो कैन्सर ।
रोज एक निबु,
नो पेट बढना ।
रोज एक गिलास दूध,
नो बौना (कद का छोटा)।
रोज 12 गिलास पानी,
नो चेहेरे की समस्या ।
रोज चार काजू,
नो भूख ।
रोज मन्दिर जाओ,
नो टेन्शन ।
रोज कथा सुनो
मन को शान्ति मिलेगी ।।
"चेहरे के लिए ताजा पानी"।
"मन के लिए गीता की बाते"।
"सेहत के लिए योग"।
और खुश रहने के लिए परमात्मा को याद किया करो ।
अच्छी बाते फैलाना पुण्य है.किस्मत मे करोड़ो खुशियाँ लिख दी जाती हैं ।
जीवन के अंतिम दिनो मे इन्सान इक इक पुण्य के लिए तरसेगा ।
जब तक ये मेसेज भेजते रहोगे मुझे और आपको इसका पुण्य मिलता रहेगा...
अच्छा लगा तो मैने भी आपको भेज दिया, आप भी इस पुण्य के भागीदार बनें
*जय माँ सरस्वती*!! जय मां शारदा !! 🙏🙏🌹🌹
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jyotis-things · 1 year ago
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( #Muktibodh_part146 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part147
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 283-284
‘‘ऋषि विवेकानन्द जी से ज्ञान चर्चा’’
स्वामी रामानन्द जी का एक शिष्य ऋषि विवेकानन्द जी बहुत ही अच्छे प्रवचन कर्त्ता रूप में प्रसिद्ध था। ऋषि विवेकानन्द जी को काशी शहर के एक क्षेत्र का उपदेशक नियुक्त किया हुआ था। उस क्षेत्र के व्यक्ति ऋषि विवेकानन्द जी के धारा प्रवाह प्रवचनों को सुनकर उनकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहते थे। उसकी कालोनी में बहुत प्रतिष्ठा बनी थी। प्रतिदिन की तरह
ऋषि विवेकानन्द जी विष्णु पुराण से कथा सुना रहे थे। कह रहे थे, भगवान विष्णु सर्वेश्वर हैं, अविनाशी, अजन्मा हैं। सर्व सृष्टि रचनहार तथा पालन हार हैं। इनके कोई जन्मदाता माता-पिता नहीं है। ये स्वयंभू हैं। ये ही त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ जी के घर माता कौशल्या देवी की पवित्र कोख से उत्पन्न हुए थे तथा श्री रामचन्द्र नाम से प्रसिद्ध हुए। समुद्र पर सेतु बनाया, जल पर पत्थर तैराए। लंकापति रावण का वध किया। श्री विष्णु भगवान ही ने
द्वापर युग में श्री कृष्णचन्द्र भगवान का अवतार धार कर वासुदेव जी के रूप में माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया तथा कंस, केशि,शिशुपाल, जरासंध आदि दुष्टों का संहार किया। पाँच वर्षीय बालक कबीर देव जी भी उस ऋषि विवेकानन्द जी का प्रवचन सुन रहे थे तथा सैंकड़ों की संख्या में अन्य श्रोता गण भी उपस्थित थे। ऋषि विवेकानन्द जी ने अपने प्रवचनों को विराम दिया तथा उपस्थित श्रोताओं से कहा यदि किसी को कोई प्रश्न करना है तो वह निःसंकोच अपनी शंका का
समाधान करा सकता है।
बालक कबीर परमेश्वर खड़े हुए तथा ऋषि विवेकानन्द जी से करबद्ध होकर प्रार्थना कि हे ऋषि जी! आपने भगवान विष्णु जी के विषय में बताया कि ये अजन्मा हैं, अविनाशी है। इनके
कोई माता-पिता नहीं हैं। एक दिन एक ब्राह्मण श्री शिव पुराण के रूद्र संहिता अध्याय 6,7 को पढ़ कर श्रोताओं को सुना रहे थे, यह दास भी उस सत्संग में उपस्थित था। शिव पुराण में लिखा
है कि निराकार परमात्मा आकार में आया वह सदाशिव, काल रूपी ब्रह्म कहलाया। उसने अपने अन्दर से एक स्त्री प्रकट की जो प्रकृति देवी, अष्टांगी, त्रिदेव जननी, शिवा आदि नामों से जानी जाती है। काल रूपी ब्रह्म ने एक काशी नामक सुन्दर स्थान बनाया वहाँ दोनों शिव तथा शिवा अर्थात् काल रूपी ब्रह्म तथा दुर्गा पति-पत्नी रूप में निवास करने लगे। कुछ समय पश्चात् दोनों के सम्भोग से एक लड़का उत्पन्न हुआ। उसका नाम विष्णु रखा। इसी प्रकार दोनों के रमण करने से एक पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम ब्रह्मा रखा तथा कमल के फूल पर डाल कर अचेत
कर दिया। फिर अध्याय 9 के अन्त में लिखा है कि ‘‘ब्रह्मा रजगुण है, विष्णु सतगुण है तथा शंकर तमगुण है परन्तु सदा शिव इनसे भिन्न है वह गुणातीत है। यहाँ पर सदाशिव के अतिरिक्त
तीन देव श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिवजी भी है। इससे सिद्ध हुआ कि इन त्रिदेवों की जननी दुर्गा अर्थात् प्रकृति देवी है तथा पिता काल ब्रह्म है। इन तीनों प्रभुओं विष्णु आदि का जन्म हुआ है इनके माता-पिता भी है।
एक दिन मैंने एक ब्राह्मण द्वारा श्री देवी पुराण के तीसरे स्कंद में अध्याय 4-5 में सुना था कि जिसमें भगवान विष्णु ने कहा है ‘‘इन प्रकृति देवी अर्थात् दुर्गा को मैंने पहले भी देखा था मुझे अपने बचपन की याद आई है। मैं एक वट वृक्ष के नीचे पालने में लेटा हुआ था। यह मुझे पालने में झूला रही थी। ��स समय में बालक रूप में था। प्रकृति देवी के निकट जाकर तीनों देव
(त्रिदेव) श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिवजी करबद्ध होकर खड़े हो गए। भगवान विष्णु ने देवी की स्तूति की ‘‘तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह संसार तुम ही से उद्भाषित हो रहा है। हमारा अविर्भाव अर्थात् जन्म तथा तिरोभाव अर्थात् मृत्यु होती है। हम अविनाशी नहीं है। तुम अविनाशी हो। प्रकृति देवी हो। भगवान शंकर बोले, हे माता! यदि आप ही के गर्भ से भगवान विष्णु तथा
भगवान ब्रह्मा का जन्म हुआ है तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर आपका पुत्र नहीं हुआ? अर्थात् मुझे भी जन्म देने वाली तुम ही हो। हे ऋषि विवेकानन्द जी! आप कह रहे हो कि पुराणों में लिखा है कि भगवान विष्णु के तो कोई माता-पिता नहीं। ये अविनाशी हैं। इन पुराणों का ज्ञान दाता एक श्री ब्रह्मा जी हैं तथा लेखक भी एक ही श्री व्यास जी हैं। जबकि पुराणों में तो भगवान विष्णु नाशवान लिखे हैं। इनके माता-पिता का नाम भी लिखा है। क्यों जनता को भ्रमित कर रहे हो।
कबीर, बेद पढे पर भेद ना जाने, बाचें पुराण अठारा।
जड़ को अंधा पान खिलावें, भूले सिर्जन हारा।।
कबीर परमेश्वर जी के मुख कमल से उपरोक्त पुराणों में लिखा उल्लेख सुनकर ऋषि विवेकानन्द ���ति क्रोधित हो गया तथा उपस्थित श्रोताओं से बोले यह बालक झूठ बोल रहा है।
पुराणों में ऐसा नहीं लिखा है। उपस्थित श्रोताओं ने भी सहमति व्यक्त की कि हे ऋषि जी आप सत्य कह रहे हो यह बालक क्या जाने पुराणों के गूढ़ रहस्य को? आप विद्वान पुरूष परम विवेकशील हो। आप इस बच्चे की बातों पर ध्यान न दो। ऋषि विवेकानन्द जी ने पुराणों को उसी समय देखा जिसमें सर्व विवरण विद्यमान था। परन्तु मान हानि के भय से अपने झूठे
व्यक्तव्य पर ही दृढ़ रहते हुए कहा हे बालक तेरा क्या नाम है? तू किस जाति में जन्मा है। तूने तिलक लगाया है। क्या तूने कोई गुरु धारण किया है? शीघ्र बताइए।
कबीर परमेश्वर जी ने बोलने से पहले ही श्रोता बोले हे ऋषि जी! इसका नाम कबीर है, यह नीरू जुलाहे का पुत्र है। कबीर जी बोले ऋषि जी मेरा यही परिचय है जो श्रोताओं ने आपको
बताया। मैंने गुरु धारण कर रखा है। ऋषि विवेकानन्द जी ने पूछा क्या नाम है तेरे गुरुदेव का?
परमेश्वर कबीर जी ने कहा मेरे पूज्य गुरुदेव वही हैं जो आपके गुरुदेव हैं। उनका नाम है पंडित रामानन्द स्वामी। जुलाहे के बालक कबीर परमेश्वर जी के मुख कमल से स्वामी रामानन्द जी को अपना गुरु जी बताने से ऋषि विवेकानन्द जी ने ज्ञान चर्चा का विषय बदल कर परमेश्वर कबीर जी को बहुत बुरा-भला कहा तथा श्रोताओं को भड़काने व वास्तविक विषय भूलाने के
उद्देश्य से कहा देखो रे भाईयो! यह कितना झूठा बालक है। यह मेरे पूज्य गुरुदेव श्री 1008 स्वामी रामानन्द जी को अपना गुरु जी कह रहा है। मेरे गुरु जी तो इन अछूतों के दर्शन भी नहीं
करते। शुद्रों का अंग भी नहीं छूते। अभी जाता हूँ गुरु जी को बताता हूँ। भाई श्रोताओ! आप सर्व कल स्वामी जी के आश्रम पर आना सुबह-2। इस झूठे की कितनी पिटाई स्वामी रामानन्द जी करेगें? इसने हमारे गुरुदेव का नाम मिट्टी में मिलाया है। सर्व श्रोता बोले यह बालक मूर्ख, झूठा, गंवार है आप विद्वान हो।
कबीर जी ने कहाः-
निरंजन धन तेरा दरबार-निरंजन धन तेरा दरबार।
जहां पर तनिक ना न्याय विचार। (टेक)
वैश्या ओढे मल-मल खासा गल मोतियों का हार।
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा निरस आहार।।
पाखण्डी की पूजा जग में सन्त को कहे लबार।
अज्ञानी को परम विवेकी, ज्ञानी को मूढ गंवार।।
कह कबीर सुनो भाई साधो सब उल्टा व्यवहार।
सच्चों को तो झूठ बतावें, इन झूठों का एतबार।।
बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर जी अपने घर चले गए। वह ऋषि विवेकानन्द अपने गुरु रामानन्द स्वामी जी के आश्रम में गया तथा सर्व घटना की जानकारी बताई। हे स्वामी जी! एक छोटी जाति का जुलाहे का लड़का कबीर अपने आप को बड़ा विद्वान् सिद्ध करने के लिए भगवान् विष्णु जी को नाशवान बताता है। हे ऋषि जी! उसने तो हम ब्रह्मणों का घर से निकलना भी दूभर कर दिया है। हमारी नाक काट डाली अर्थात् हमें महा शर्मिन्दा (लज्जित) होना पड़ रहा
है। उसने कल भरी सभा में कहा है कि पंडि़त रामानन्द स्वामी मेरे गुरु जी हैं। मैंने उनसे दिक्षा ले रखी है। उस कबीर ने तिलक भी लगा रखा था जैसा हम वैष्णव सन्त लगाते है। अपने शिष्य
विवेकानन्द की बात सुनकर स्वामी रामानन्द जी बहुत क्रोधित होकर बोले हे विवेकानन्द कल सुबह उसे मेरे सामने उपस्थित करो। देखना सर्व के समक्ष उसकी झूठ का पर्दाफाश करूँगा।
क्रमशः__________
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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bhaktibharat · 1 year ago
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🐚 वामन जयन्ती - Vamana Jayanti
❀ त्रेता युग में भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार भगवान वामन के अवतरण दिवस को वामन जयंती के रूप मे मनाया जाता है।
❀ भगवान वामन का अवतरण भाद्रपद शुक्ल द्वादशी तिथि को हुआ, अतः इस उत्सव को वामन द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है।
Tumblr media
❀ वामन भगवान त्रेता युग में अवतरित प्रथम श्री विष्णु अवतार थे। इससे पहिले भगवान विष्णु के चार अवतार सतयुग में ही हुए थे।
❀ वामन भगवान प्रथम पूर्ण मानव अवतार भी हैं।
❀ भगवान वामन का अवतार माता अदिति एवं ऋषि कश्यप के पुत्र रूप इस पृथ्वी लोक में हुआ था।
📲 https://www.bhaktibharat.com/festival/vamana-jayanti
🖼️ Whatsapp, Instagram, Facebook and Twitter Wishes, Images and Messages
📥 https://www.bhaktibharat.com/wishes-quotes
🐚 वामन अवतार पौराणिक कथा - Vamana Avatar Pauranik Katha
📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/vamana-avatar-pauranik-katha
🐚 श्री दशावतार स्तोत्र - Dashavtar Stotram
📲 https://www.bhaktibharat.com/mantra/dashavtar-stotram-pralay-payodhi-jale
🐚 पार्श्व / परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा - Parshva / Parivartani Ekadashi Vrat Katha
📲 https://www.bhaktibharat.com/katha/parshva-ekadashi-vrat-katha
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devilalmeghwal · 2 years ago
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YouTube पर "हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया कबीर जी का प्रकट दिवस | Satlok Ashram Bhiwani | Sant Rampal Ji Maharaj" देखें
youtube
♦️कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।♦️
कलियुग में परमात्मा अपने वास्तविक कबीर नाम से आये तथा नि:संतान दंपती नीरु नीमा को कमल के फूल पर शिशु रुप में मिले।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी चारों युगों में धरती पर प्रकट होते हैं। सतयुग में "सतसुकृत" नाम से, त्रेतायुग में "मुनिन्द्र" नाम से, द्वापरयुग में "करुणामय" नाम से तथा कलयुग में "कबीर" नाम से आते हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे। उस समय गरुड़ जी, ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी को सत्य ज्ञान समझाया। श्री मनु महर्षि को भी ज्ञान समझाना चाहा लेकिन मनु जी ने परमात्मा के ज्ञान को सत्य न जानकर ब्रह्मा जी से सुने सुनाए वेद ज्ञान पर आधारित होकर तथा अपने द्वारा निकाले गए वेदों के निष्कर्ष पर ही आरुढ रहे। इसके विपरित परमात्मा का उपहास करने लगे कि आप तो सब ज्ञान विपरीत कह रहे हो। इसलिए परमात्मा का नाम "वामदेव" (उल्टा ज्ञान देने वाला) निकाल दिया। यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्र 4 में विवरण है कि यजुर्वेद के वास्तविक ज्ञान को वामदेव ऋषि ने सही जाना तथा अन्य को भी समझाया।
त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर "मुनिन्दर ऋषि" के रूप में आएं थे। उस समय नल-नील तथा हनुमानजी को अपना सत्य ज्ञान बताकर अपनी शरण में लिया और अपने आशीर्वाद मात्र से नल-नील के शारीरिक तथा मानसिक रोग को ठीक किया था। नल नील को कबीर परमेश्वर ने आशीर्वाद दिया था कि आपके हाथ से कोई भी वस्तु जल में नहीं डुबेगी। उसी आशीर्वाद के कारण समुद्र पर पुल (रामसेतु) बना था। इसका प्रमाण धर्मदास जी की वाणी है
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।
धन धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।।
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर "करुणामय" नाम से प्रकट हुए थे। उस समय वाल्मीकि जाति में उत्पन्न भक्त "सुपच सुदर्शन" को अपनी शरण में लिया था। कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद से इसी सुपच सुदर्शन जी ने पांडवों की यज्ञ सफल की थी। जो न तो श्री कृष्ण जी के भोजन करने से सफल हुई थी, न तैंतीस करोड़ देवताओं, न अठासी हजार ऋषियों, न बारह करोड़ ब्राह्मणों ,न नौ नाथ- चौरासी सिद्धों के भोजन खाने से सफल हुई थी। इसी युग में रानी इन्द्रमती को भी सत्य ज्ञान देकर शरण में लिया।
कलयुग में कबीर परमेश्वर आदरणीय गरीब दास जी, धर्मदास जी, नानक देव जी, दादू जी, मलूक दास जी, घीसा दास जी आदि को मिले और अपना तत्वज्ञान बताया।
हम सुल्तानी, नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
इसी कलयुग में सिकंदर लोधी, रविदास जी, अब्राहम सुल्तान आदि को भी मिले।
कबीर परमात्मा हर युग में आते हैं ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 18 कविर्देव शिशु रुप धारण कर लेता है लीला करता हुआ बड़ा होता है कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर (कबीर प्रभु ) ही है
शिशु रुप में कबीर परमेश्वर के परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है। ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 1 मंत्र 9, ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 96 मंत्र 17-18.
कबीर परमेश्वर हम सभी जीव आत्माओं के जनक हैं। इन्हीं की सतभक्ति करने से जीव को सर्व सुख, शांति तथा पूर्ण म���क्ष प्राप्त होता है। वर्तमान में कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी ही "यथार्थ कबीर पंथ" चला रहे हैं । जिनके सत्संगों का आधार सभी धर्मों के पवित्र सदग्रन्थ हैं। कबीर वाणियों में छुपे हुए गुढ़ रहस्यों को संत रामपाल जी महाराज जी ने सरल भाषा में समझाया है।
#SantRampalJiMaharaj
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
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prince-kumar · 2 years ago
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♦️कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।♦️
कलियुग में परमात्मा अपने वास्तविक कबीर नाम से आये तथा नि:संतान दंपती नीरु नीमा को कमल के फूल पर शिशु रुप में मिले।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी चारों युगों में धरती पर प्रकट होते हैं। सतयुग में "सतसुकृत" नाम से, त्रेतायुग में "मुनिन्द्र" नाम से, द्वापरयुग में "करुणामय" नाम से तथा कलयुग में "कबीर" नाम से आते हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे। उस समय गरुड़ जी, ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी को सत्य ज्ञान समझाया। श्री मनु महर्षि को भी ज्ञान समझाना चाहा लेकिन मनु जी ने परमात्मा के ज्ञान को सत्य न जानकर ब्रह्मा जी से सुने सुनाए वेद ज्ञान पर आधारित होकर तथा अपने द्वारा निकाले गए वेदों के निष्कर्ष पर ही आरुढ रहे। इसके विपरित परमात्मा का उपहास करने लगे कि आप तो सब ज्ञान विपरीत कह रहे हो। इसलिए परमात्मा का नाम "वामदेव" (उल्टा ज्ञान देने वाला) निकाल दिया। यजुर्वेद अध्याय 12 मंत्र 4 में विवरण है कि यजुर्वेद के वास्तविक ज्ञान को वामदेव ऋषि ने सही जाना तथा अन्य को भी समझाया।
त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर "मुनिन्दर ऋषि" के रूप में आएं थे। उस समय नल-नील तथा हनुमानजी को अपना सत्य ज्ञान बताकर अपनी शरण में लिया और अपने आशीर्वाद मात्र से नल-नील के शारीरिक तथा मानसिक रोग को ठीक किया था। नल नील को कबीर परमेश्वर ने आशीर्वाद दिया था कि आपके हाथ से कोई भी वस्तु जल में नहीं डुबेगी। उसी आशीर्वाद के कारण समुद्र पर पुल (रामसेतु) बना था। इसका प्रमाण धर्मदास जी की वाणी है
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।
धन धन सतगुरु सत कबीर, भक्त की पीर मिटाने वाले।।
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर "करुणामय" नाम से प्रकट हुए थे। उस समय वाल्मीकि जाति में उत्पन्न भक्त "सुपच सुदर्शन" को अपनी शरण में लिया था। कबीर परमेश्वर के आशीर्वाद से इसी सुपच सुदर्शन जी ने पांडवों की यज्ञ सफल की थी। जो न तो श्री कृष्ण जी के भोजन करने से सफल हुई थी, न तैंतीस करोड़ देवताओं, न अठासी हजार ऋषियों, न बारह करोड़ ब्राह्मणों ,न नौ नाथ- चौरासी सिद्धों के भोजन खाने से सफल हुई थी। इसी युग में रानी इन्द्रमती को भी सत्य ज्ञान देकर शरण में लिया।
कलयुग में कबीर परमेश्वर आदरणीय गरीब दास जी, धर्मदास जी, नानक देव जी, दादू जी, मलूक दास जी, घीसा दास जी आदि को मिले और अपना तत्वज्ञान बताया।
हम सुल्तानी, नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
इसी कलयुग में सिकंदर लोधी, रविदास जी, अब्राहम सुल्तान आदि को भी मिले।
कबीर परमात्मा हर युग में आते हैं ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 96 मंत्र 18 कविर्देव शिशु रुप धारण कर लेता है लीला करता हुआ बड़ा होता है कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर (कबीर प्रभु ) ही है
शिशु रुप में कबीर परमेश्वर के परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है। ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 1 मंत्र 9, ऋग्वेद मंडल 9 सुक्त 96 मंत्र 17-18.
कबीर परमेश्वर हम सभी जीव आत्माओं के जनक हैं। इन्हीं की सतभक्ति करने से जीव को सर्व सुख, शांति तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है। वर्तमान में कबीर परमेश्वर के अवतार संत रामपाल जी महाराज जी ही "यथार्थ कबीर पंथ" चला रहे हैं । जिनके सत्संगों का आधार सभी धर्मों के पवित्र सदग्रन्थ हैं। कबीर वाणियों में छुपे हुए गुढ़ रहस्यों को संत रामपाल जी महाराज जी ने सरल भाषा में समझाया है।
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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akhaidas · 2 years ago
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🎈 *कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस* 🎈 पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब प्रत्येक युग मे आते हैं, माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं। सतलोक से आते हैं शिशु रूप में प्रकट होते हैं। सभी धर्मों में फैली कुरीतियों को दूर कर सद्भक्ति बताकर जाति, धर्म का का भेद मिटाकर मानव धर्म की स्थापना करते हैं। 505 वर्ष पहले कबीर साहेब जी जब सतलोक जा रहे थे तब हिन्दू-मुस्लिम उनके शरीर को लेकर लड़ने को तैयार हो रहे थे, तब कबीर तब परमेश्वर कबीर जी ने समझाया मेरा शरीर नहीं मिलेगा, जो मिलेगा उसको आधा-आधा बांट लेना। उनके शरीर के स्थान पर सुगन्धित पुष्प मिले। आज भी मगहर में इसका प्रमाण है। वहाँ एक ही स्थान पर हिन्दू मुस्लिमों ने मजार बना रखी है। पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। सतलोक से सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) को काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर प्रकट हुए तथा माघ मास की शुक्ल एकादशी वि.सं. 1575 सन् 1518 को मगहर से सशरीर सतलोक गये��� कबीर साहेब के अतिरिक्त जितने भी देव/साहब/भगवान हैं सभी जन्म मृत्यु में हैं। अर्थात अविनाशी नहीं हैं। अर्थात सभी अवतार, तीनों प्रधान देव (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी ) तथा इनके पिता ब्रह्म (काल) भी जन्म मृत्यु में हैं। जबकि पूर्ण परमात्मा कविर्देव/ कबीर साहेब अविनाशी, जन्म-मृत्यु से परे हैं, सर्व सृष्टि रचनहार हैं, कुल के मालिक हैं। पूर्ण परमात्मा कबीर जी चारों युगों में आते हैं, मां के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। शिशु रूप में कमल के फूल पर प्रकट होते हैं। इसके अतिरिक्त जिंदा महात्मा के रूप में कहीं भी प्रकट होकर अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं। परमात्मा अपना तत्वज्ञान शब्दों, दोहों तथा चौपाईयों द्वारा बताते हैं। तथाअपने साधकों के तीन ताप का कष्ट, पाप कर्मों को काट कर साधक को सर्व सुख, शांति और पूर्ण मोक्ष प्रदान करते हैं। #कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023 #मगहर_लीला #SantRampalJiMaharaj अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj > App Play Store से डाउनलोड करें और Sant Rampal Ji Maharaj YouTube Channel पर Videos देखें और Subscribe करें। संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें। ⬇️⬇️ https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry https://www.instagram.com/p/Cn2LEw6ou0P/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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jaykumars-world · 2 years ago
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#मगहर_लीला
कबीर परमेश्वर निर्वाण दिवस
कौन है पूर्ण परमात्मा/अविनाशी भगवान जो कभी माँ के गर्भ से जन्म नहीं लेते, ना ही मृत्यु को प्राप्त होते, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं?
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब प्रत्येक युग मे आते हैं, माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं, सशरीर आते हैं, सशरीर जाते हैं। सतलोक से आते हैं शिशु रूप में प्रकट होते हैं। सभी धर्मों में फैली कुरीतियों को दूर कर सद्भक्ति बताकर जाति, धर्म का का भेद मिटाकर मानव धर्म की स्थापना करते हैं।
505 वर्ष पहले कबीर साहिब सतलोक जा रहे थे तब हिन्दू-मुस्लिम उनके शरीर को लेकर लड़ने को तैयार हो रहे थे, तब कबीर जी ने समझाया मेरा शरीर नहीं मिलेगा, जो मिलेगा उसको आधा आधा बांट लेना।
उनके शरीर के स्थान पर सुगन्धित पुष्प मिले।
आज भी मगहर में इसका प्रमाण है। वहाँ एक ही स्थान पर हिन्दू मुस्लिमों ने मजार बना रखी है।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) को काशी के लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर प्रकट हुए तथा माघ मास की शुक्ल एकादशी वि.सं.1575 सन् 1518 को मगहर से सशरीर सतलोक गये।
कबीर साहेब के अतिरिक्त जितने भी देव/साहब/भगवान है सभी जन्म मृत्यु में हैं। अर्थात अविनाशी नहीं हैं।
कबीर साहेब की वाणी है:-
राम कृष्ण अवतार हैं, इनका नाहि संसार।
जिन साहब संसार किया, सो किनहु ना जनम्या नार।।
अर्थात सभी अवतार, तीनों प्रधान देव (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी ) तथा इनके पिता ब्रह्म (काल) भी जन्म मृत्यु में हैं।
जबकि पूर्ण परमात्मा कविर्देव/ कबीर साहेब अविनाशी, जन्म-मृत्यु से परे हैं, सर्व सृष्टि रचनहार हैं, कुल के मालिक हैं।
कबीर साहेब की वाणी:-
ना मेरा जन्म ना गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहां जुलाहे कूं पाया।।
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब 505 वर्ष पहले काशी में लहरतारा तालाब में सन 1398 में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे वहां से नि:संतान दंपति नीरू नीमा उनको ले गए थे। 120 वर्ष तक लीला की, अपनी प्यारी आत्माओं को तत्वज्ञान बताया। सामाजिक कुरूतियों तथा पाखण्डवाद का विरोध किया। जातिवाद तथा साम्प्रदायिकता को मिटाकर सबको मानवता के सूत्र में पिरोया।
1518 में सशरीर अपने निज धाम सतलोक गये। जाते समय हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच होने वाले भयंकर गृहयुद्ध को टाल दिया।
कबीर परमेश्वर ने कहा था कि जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जायेगा तब मैं पुनः पृथ्वी पर आऊँगा। सब धर्म / पंथों को मिटाकर एक कर दूँगा।
#कबीरपरमेश्वर_निर्वाणदिवस 1 फरवरी 2023
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sagardasssaini · 11 days ago
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कबीर साहेब का वचन सत्य के मार्ग का संकेत
कबीर साहेब का हर वचन सत्य के मार्ग का पालन करने का निर्देश है। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है और उनका ज्ञान हमें जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करता है।
कबीर साहेब का अद्वितीय स्वरूप
कबीर साहेब का स्वरूप अद्वितीय है। वह न केवल ब्रह्मा और विष्णु के रूप में प्रकट होते हैं, बल्कि हर युग में अपने भव्य रूप में संसार में आते हैं। उनका रूप और उनका संदेश हमेशा सत्य और दिव्य होता है।
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anitadasi34 · 11 days ago
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कबीर साहेब का वचन सत्य के मार्ग का संकेत
कबीर साहेब का हर वचन सत्य के मार्ग का पालन करने का निर्देश है। उनका जीवन हम सभ�� के लिए प्रेरणा का स्रोत है और उनका ज्ञान हमें जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करता है।
कबीर साहेब का अद्वितीय स्वरूप
कबीर साहेब का स्वरूप अद्वितीय है। वह न केवल ब्रह्मा और विष्णु के रूप में प्रकट होते हैं, बल्कि हर युग में अपने भव्य रूप में संसार में आते हैं। उनका रूप और उनका संदेश हमेशा सत्य और दिव्य होता है।
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jyotis-things · 12 hours ago
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart123 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart124
काल निरंजन द्वारा कबीर जी से तीन युगों में कम जीव ले जाने का वचन लेना (विस्तृत व सम्पूर्ण वर्णन)
प्रश्न: कबीर जी के नाम से चले 12 पंथों के वास्तविक मुखिया कौन हैं और तेरहवां पंथ कौन चलाएगा?
उत्तर :- जैसा कि कबीर सागर के संशोधनकर्ता स्वामी युगलानन्द (बिहारी) जी ने दुख व्यक्त किया है कि समय-समय पर कबीर जी के ग्रन्थों से छेड़छाड़ करके उनकी बुरी दशा कर रखी है।
उदाहरण: परमेश्वर कबीर जी का जोगजीत के रूप में काल ब्रह्म के साथ विवाद हुआ था। वह "स्वसमवेद बोध" पृष्ठ 117 से 122 तक तथा "अनुराग सागर" 60 से 67 तक है।
परमेश्वर कबीर जी अपने पुत्र जोगजीत के रूप में काल के प्रथम ब्रह्माण्ड में प्रकट हुए जो इक्कीसवां ब्रह्माण्ड है जहाँ पर तप्त शिला बनी है। काल ब्रह्म ने जोगजीत के साथ झगड़ा किया। फिर विवश होकर चरण पकड़कर क्षमा याचना की तथा प्रतिज्ञा करवाकर कुछ सुविधा माँगी।
1. तीनों युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग) में थोड़े जीव पार करना।
2. जोर-जबरदस्ती करके जीव मेरे लोक से न ले जाना।
3. आप अपना ज्ञान समझाना। जो आपके ज्ञान को माने, वह आपका और जो मेरे ज्ञान को माने, वह मेरा।
4. कलयुग में पहले मेरे दूत प्रकट होने चाहिएँ, पीछे आपका दूत जाए।
5. त्रेतायुग में समुद्र पर पुल बनवाना। उस समय मेरा पुत्र विष्णु रामचंद्र रूप में लंका के राजा रावण से युद्ध करेगा, समुद्र रास्ता नहीं देगा।
6. द्वापर युग में शरीर त्यागकर जाऊँगा। राजा इन्द्रदमन मेरे नाम से (जगन्नाथ नाम से) समुद्र के किनारे मेरी आज्ञा से मंदिर बनवाना चाहेगा। उसको समुद्र बाधा करेगा। आप उस मंदिर की सुरक्षा करना। परमेश्वर ने सर्व माँगें स्वीकार कर ली और वचनबद्ध हो गए। तब काल ब्रह्म हँसा और कहा कि हे जोगजीत ! आप जाओ संसार ��ें। जिस समय कलयुग आएगा। उस समय मैं अपने 12 दूत (नकली सतगुरू) संसार में भेजूँगा। जब कलयुग 5505 वर्ष पूरा होगा, तब तक मेरे दूत तेरे नाम से (कबीर जी के नाम से) 12 कबीर पंथ चला दूँगा। कबीर जी ने जोगजीत रूप में काल ब्रह्म से कहा था कि कलयुग में मेरा नाम कबीर होगा और मैं कबीर नाम से पंथ चलाऊँगा। इसलिए काल ज्योति निरंजन ने कहा था कि आप कबीर नाम से एक पंथ चलाओगे तो मैं (काल) कबीर नाम से 12 पंथ चलाऊँगा। सर्व मानव को भ्रमित करके अपने जाल में फाँसकर रखूँगा। इनके अतिरिक्त और भी कई पंथ चलाऊँगा जो सतलोक, सच्चखण्ड की बातें किया करेंगे तथा सत्य साधना उनके पास नहीं होगी। जिस कारण से वे सत्यलोक की आश में गलत नामों को जाप करके मेरे जाल में ही रह जाऐंगे।
काल ब्रह्म ने पूछा था कि आप किस समय कलयुग में अपना सत्य कबीर पंथ चलाओगे? कबीर जी ने कहा था कि जिस समय कलयुग 5505 (पाँच हजार पाँच सौ पाँच) वर्ष बीत जाएगा, तब मैं अपना यथार्थ तेरहवां कबीर पंथ चलाऊँगा।
काल ने कहा कि उस समय से पहले मैं पूरी पृथ्वी के ऊपर शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करवाकर शास्त्रविरूद्ध ज्ञान बताकर झूठे नाम तथा गलत साधना के अभ्यस्त कर दूँगा। जब तेरा तेरहवां अंश आकर सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा, उल्टे उसके साथ झगड़ा करेंगे। कबीर जी को पता था कि जब कलयुग के 5505 वर्ष पूरे होंगे (सन् 1997 में) तब शिक्षा की क्रांति लाई जाएगी। सर्व मानव अक्षर ज्ञानयुक्त किया जाएगा। उस समय मेरा दास सर्व धार्मिक ग्रन्थों को ठीक से समझकर मानव समाज के रूबरू करेगा। सर्व प्रमाणों को आँखों देखकर शिक्षित मानव सत्य से परिचित होकर तुरंत मेरे तेरहवें पंथ में दीक्षा लेगा और पूरा विश्व मेरे द्वारा बताई भक्ति विधि तथा तत्त्वज्ञान को हृदय से स्वीकार करके भक्ति करेगा। उस समय पुनः सत्ययुग जैसा वातावरण होगा। आपसी रागद्वेष, चोरी-जारी, लूट ठगी कोई नहीं करेगा। कोई धन संग्रह नहीं करेगा। भक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाएगा। जैसे उस समय उस व्यक्ति को महान माना जा रहा होगा जिसके पास अधिक धन होगा, बड़ा व्यवसाय होगा, बड़ी-बड़ी कोठियाँ बना रखी होंगी, परंतु 13वें पंथ के प्रारम्भ होने के पश्चात् उन व्यक्तियों को मूर्ख माना जाएगा और जो भक्ति करेंगे, सामान्य मकान बनाकर रहेंगे, उनको महान, बड़े और सम्मानित व्यक्ति माना जाएगा।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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rakesh-kumars-posts · 11 days ago
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कबीर साहेब का वचन सत्य के मार्ग का संकेत
कबीर साहेब का हर वचन सत्य के मार्ग का पालन करने का निर्देश है। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है और उनका ज्ञान हमें जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करता है।
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abhay1233 · 11 days ago
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कबीर साहेब का वचन सत्य के मार्ग का संकेत
कबीर साहेब का हर वचन सत्य के मार्ग का पालन करने का निर्देश है। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है और उनका ज्ञान हमें जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करता है।
कबीर साहेब का अद्वितीय स्वरूप
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almostseverepaper · 12 days ago
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