Tumgik
#विशेषज्ञकौनहै
laweducation · 1 year
Text
विशेषज्ञ की राय क्या है और यह कब सुसंगत होती है? क्या ऐसी राय बाध्यकारी होती है? : साक्ष्य अधिनियम
विशेषज्ञ की राय क्या है (What is the Expert Opinion) - सामान्यत किसी तथ्य के बारे में उसी व्यक्ति की साक्ष्य को सुसंगत माना जाता है जो ऐसे तथ्य के बारे में जानकारी रखता हो। केवल मात्र राय साक्ष्य में ग्राह्य नहीं होती। लेकिन अनेक बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है जब किसी विवाधक तथ्य पर किसी विशेषज्ञ की राय आवश्यक हो जाती है। सामान्यत ऐसे विषय तकनीकी प्रकृति के होते है और ऐसे व्यक्तियों की राय को 'विशेषज्ञ की राय' (Expert's Opinion) कहा जाता है। साक्ष्य विधि में विशेषज्ञ कौन है - भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में शब्द 'विशेषज्ञ' की परिभाषा नहीं दी गई है। धारा 45 में विशेषज्ञ शब्द को 'विशेष कुशल व्यक्तियों' (Persons Specially skilled) के रूप में परिभाषित किया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि - किसी विषय विशेष में कुशलता रखने वाले व्यक्ति को विशेषज्ञ (Expert) कहा जा सकता है। अब्दुल रहमान बनाम स्टेट ऑफ मैसूर के मामले में न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि - विशेषज्ञ के लिए किसी उपाधि का होना आवश्यक नहीं है। (1972 क्रि. लॉ ज. 407) किशनसिंह बनाम एन. सिंह के मामले में - गूंगे एवं बहरों के विद्यालय के प्राचार्य को विशेषज्ञ मानते हुए उसके प्रमाण पत्र को साक्ष्य में ग्राह्य किया गया। लेकिन केवल पाठ्यपुस्तकों में लेखक की राय को विशेषज्ञ की राय नहीं माना गया है। ऐसी राय के आधार पर किसी अभियुक्त को दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता। साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के अनुसार  विशेषज्ञ कोन है – माननीय न्यायालय को विदेशी विधि का या विज्ञान की या कला की किसी बात पर या हस्तलेख या अंगुलि चिन्हों की अनन्यता के बारे में राय बनानी हो, तब उस विषय पर ऐसी विदेशी विधि, विज्ञान या कला में या हस्तलेख या अंगुलि चिन्हों की अनन्यता विषयक प्रश्नों में विशेष कुशल व्यक्तियों की रायें सुसंगत तथ्य होती है और ऐसे व्यक्ति विशेषज्ञ कहलाते है। विशेषज्ञ साक्ष्य की पूर्वापेक्षाएं – सबसे पूर्व वह विशेषज्ञ जिसकी अभिसाक्ष्य ग्राह्य होने वाली है, उसे दो चीजें साबीत की जानी चाहिए – (1) वह विषय जिसमे विशेषज्ञ का परिसाक्ष्य जरुरी है| (2) अभीष्ट गवाह हकीकत में विशेषज्ञ है एंव वह सच्चा और स्वतंत्र गवाह है| किस स्थिति में विशेषज्ञ की राय साक्ष्य में स्वीकार्य है - कभी-कभी न्यायालय के समक्ष ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हो जाती है जबकि किसी विवाद्यक अथवा सुसंगत तथ्य के बारे में निष्कर्ष निकलने से पूर्व उसे कतिपय तकनीकी प्रश्नों का हल निकालना होता है जो सामान्य ज्ञान तथा अनुभव से बाहर है। इसलिए ऐसे तकनीकी प्रश्नों का हल निकालने के लिए न्यायालय ऐसे व्यक्तियों की सहायता लेता है जो उस विषय के विशेषज्ञ होते है और ऐसे विशेषज्ञ व्यक्तियों की रायें साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 में सुसंगत एंव ग्राह्य मानी गई है, लेकिन यह जरुरी नहीं है कि ऐसी राय माननीय न्यायालय के लिए बाध्यकारी हो| निम्नांकित मामलों में न्यायालय द्वारा विशेषज्ञ की राय प्राप्त की जा सकती है - (1) विदेशी विधि (Foreign law) - विदेशी विधि से तात्पर्य ऐसी विधि से है जो भारत में प्रवृत्त नहीं है। इसके पीछे कारण यह है कि देशीय विधि का ज्ञान होने की अपेक्षा या उपधारणा तो की जाती है लेकिन विदेशी विधि के ज्ञान की नही| इस कारण विदेशी विधि के किसी प्रश्न पर न्यायालय द्वारा विशेषज्ञ की राय प्राप्त की जा सकती है। विल्सन बनाम विल्सन के मामले में इस प्रश्न का उत्तर देते हुए माननीय न्यायालय ने यह निर्धारित किया किया कि - विदेशी विधि के विशेषज्ञ के लिए उसका व्यायसायिक व्यक्ति (Professional) होना आवश्यक नहीं है। (1903 पी 157) (2) विज्ञान या कला (Science and Art) - जब माननीय न्यायालय को विज्ञान या कला के किसी विषय पर राय बनानी होती है तब न्यायालय ऐसे विषय पर विशेष कुशल व्यक्तियों की राय प्राप्त कर सकता है।किसी व्यक्ति की चोटों के बारे में चिकित्सक की राय प्राप्त की जा सकती है चूँकि वह उसका विशेषज्ञ होता है। (रामस्वरूप बनाम स्टेट ऑफ उत्तरप्रदेश, ए.आई.आर. 2000 एस.सी. 715) अमीर अली के अनुसार - राय हेतु विषय ऐसा होना चाहिए जो तकनीको स्वरूप का हो। (3) हस्तलेख एवं अंगुलि चिन्ह (Hand Writing or Finger Prints or Impressions) - इसी तरह जब न्यायालय को किसी व्यक्ति के हस्तलेख या अंगुलि चित्र (Hand writing or Finger impressions) के बारे में राय बनानी हो, उस स्थिति में माननीय न्यायालय ऐसे विषय के विशेषज्ञ व्यक्तियों अर्थात् हस्तलेख विशेषज्ञ (Hand writing Expert) की राय प्राप्त कर सकता है। हस्तलेख विशेषज्ञ की राय सबसे कम तथा कम विश्वसनीय साक्ष्य है, इसलिए यह माना जाता है कि, केवल हस्तलेख विशेषज्ञ की राय के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी मानना सही नहीं है| क्या विशेषज्ञ की राय न्यायालय के प्रति बाध्यकारी होती है - जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है कि - विशेषज्ञ की राय को मानना या न मानना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है यानि विशेषज्ञ की राय मानने के लिए न्यायालय आबद्ध नहीं है। 'वी. कार्तिकेय उर्फ कृष्णामूर्ति बनाम एस. कमलाम्मा' के मामले में विशेषज्ञ की राय को कमजोर एवं कम विश्वसनीय साक्ष्य माना गया है। ऐसी साक्ष्य पर अत्यन्त सावधानी एवं सतर्कता से विचार किये जाने की अपेक्षा है। (ए.आई.आर. 1994 आन्ध्रप्रदेश 102) 'फारेस्ट रेंज ऑफिसर बनाम पी.एम. अली' के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विशेषज्ञ की राय मात्र एक राय होती है। वह अर्थान्वयन में न्यायालय की मदद नहीं कर सकती। (ए.आई. आर. 1994 एस.सी. 120) इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विशेषज्ञ की राय कमजोर प्रकृति की साक्ष्य होने से वह न्यायालय पर आबद्धकर नहीं होती। इस सम्बन्ध में सुरेशकुमार बनाम मेवाराम के मामले में कहा गया है कि - विशेषज्ञों की भिन्न-भिन्न रायें होने पर स्वयं न्यायालय हस्ताक्षरों की तुलना कर निष्कर्ष निकाल सकता है। (ए.आई. आर. 1991 पंजाब एण्ड हरियाणा 254) Read More -  विशेषज्ञ कौन है What is the Expert in hindi संदर्भ – भारतीय साक्ष्य अधिनियम 17वां संस्करण (राजाराम यादव) सम्बंधित पोस्ट -  साबित, नासाबित व साबित नहीं हुआ की व्याख्या | धारा 3, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 धारा 4 | उपधारणा क्या है, अर्थ, परिभाषा एंव इसके प्रकार |Presumption in hindi साक्ष्य क्या है, परिभाषा एंव साक्ष्य के प्रकार | Definition of evidence in Hindi अपराधशास्त्र की परिभाषा, अर्थ एंव अपराधशास्त्र का महत्त्व Read the full article
0 notes