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दुर्गापूजा तक कोई राजनीतिक पार्टी नहीं निकाले रैली: ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विश्व हिन्दू परिषद् (वीएचपी) राष्ट्रिय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) और इसके सहयोगी संगठन बजरंग दल के खिलाफ चेतावनी जारी करते हुए कहा कि हथियारों का इस्तमाल करके उन्हें आग से नही खेलना चाहिए| उन्होंने कहा कि बंगाल का सबसे बड़ा उत्सव दुर्गा पूजा है| पूजा शुरू होने में अब ज्यादा दिन बाकि नहीं है| बाजारों में ग्राहकों की भी भीड़ उमड़नी आरम्भ हो गई है| ऐसे भीड़ में अगर राजनीतिक दल रैली या विरोध प्रदर्शन का आयोजन करेंगे, तो निश्चय ही लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा| ममता बनर्जी ने सभी राजनीतिक पार्टियों से अपील करते हुए कहा कि दुर्गा पूजा के अवसर पर रैली,जुलूस और बैठकों को स्थगित रखें| इसके जवाब में आरएसएस ने कहा कि दुर्गा पूजा के दौरान पिछले कई वर्षो से अस्त्र-शास्त्र तथा तलवारों की पूजा की जा रही है| हालाँकि पूजा के दौरान कभी भी शस्त्र के साथ प्रदर्शन या जुलुस नही निकाली जाती है| आरएसएस की ओर से डॉ. जिष्णु बसु ने मुख्यमंत्री के आग से नहीं खेलने वाले बयां पर रोष जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की मुँह से इस तरह की बातें अच्छी नहीं लगती है| Click to Post
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बंगाल में खेल शुरू : नंदीग्राम में जहां ममता पर हुआ था कथित हमला वहां भीड़े टीएमसी-भाजपा कार्यकर्ता Divya Sandesh
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बंगाल में खेल शुरू : नंदीग्राम में जहां ममता पर हुआ था कथित हमला वहां भीड़े टीएमसी-भाजपा कार्यकर्ता
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक टकराव का खेल शुरू हो गया है। एक दिन पहले नंदीग्राम में नामांकन के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चोटिल होने के बाद खुद पर चार-पांच लोगों द्वारा हमले का दावा किया था। इसके बाद क्षेत्र में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच टकराव की आशंका जाहिर की जा रही थी जो गुरुवार सुबह सच साबित हुई है।
आरोप है कि इलाके में बड़ी संख्या में तृणमूल कार्यकर्ता घरों से निकले थे और भाजपा के कार्यकर्ताओं के घरों को लक्ष्य कर हमले की कोशिश शुरू कर दी थी। सड़कों पर भी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उतरकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया जिसे लेकर भाजपा कर्मियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया है। सड़कों पर दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच टकराव हुआ है।
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दावा है कि दोनों ने एक-दूसरे पर हिंसक हमले किए हैं। हालांकि सूचना मिलने के बाद बड़ी संख्या में पुलिस और केंद्रीय बलों की टीम मौके पर पहुंच गई है जिसकी वजह से टकराव को फिलहाल रोक दिया गया है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि ममता बनर्जी पर हमला हुआ है और इसमें भाजपा के लोगों का हाथ है जबकि भाजपा का कहना है कि सीएम को चोट लगी है तो यह महज एक दुर्घटना है। जिस गाड़ी में ममता गिरी उसका दरवाजा खुला हुआ था और यह ड्राइवर की गलती है।
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जम्मू-कश्मीर: फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी हुई खत्म, 7 महीने से थे हिरासत में
चैतन्य भारत न्यूज श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला की नजरबंदी हटा दी गई है। बता दें पिछले साल 4 अगस्त से फारूक नजरबंद थे। 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया गया था। इसके बाद घाटी में किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए वहां के स्थानीय नेताओं को नजरबंद कर लिया गया था। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); विपक्षी पार्टियों ने किया था रिहाई का आग्रह फारूक अब्दुल्ला को 5 अगस्त से हाउस अरेस्ट में रखा गया था, लेकिन सरकार ने उनके खिलाफ पिछले साल 15 सितंबर को पब्लिक सेफ्टी एक्ट का केस दर्ज किया था। फिर उन्हें 3 महीने के लिए नजरबंद किया गया था। यह समयसीमा 15 दिसंबर को खत्म होने वाली थी। लेकिन उसके दो दिन पहले यानी 13 दिसंबर को ही उनकी नजरबंदी अगले 3 महीने के लिए और बढ़ा दी गई। ऐसे में अब उनकी नजरबंदी खत्म करने का फैसला लिया गया है। बता दें करीब पांच दिन पहले राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी, माकपा प्रमुख सीता राम येचुरी समेत कई विपक्षी पार्टियों के प्रमुख नेताओं ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृृहमंत्री को एक संयुक्त पत्र लिखकर तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं की रिहाई का आग्रह किया था। Govt issues orders revoking detention of Dr Farooq Abdullah pic.twitter.com/tcBzkwY7dI — Rohit Kansal (@kansalrohit69) March 13, 2020 इन नेताओं को किया गया था नजरबंद जिन नेताओं को नजरबंद किया गया था उनमें फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन सहित कई नेता शामिल थे। पिछले महीने यानी फरवरी में ही जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला से नजरबंदी हटा ली गई थी। लेकिन उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, आईएएस अफसर से नेता बने शाह फैसल समेत कई नेताओं पर पीएसए के तहत केस दर्ज किया गया था। फिर इन नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था। फिलहाल उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, शाह फैसल समेत कई नेता हिरासत में हैं। बेटी-बहन को भी हिरासत में लिया बता दें अक्टूबर, 2019 में फारूक अब्दुल्ला की बेटी साफिया और बहन सुरैया को भी पुलिस ने हिरासत में लिया था। ये दोनों ही आर्टिकल 370 को हटाने का विरोध कर रही थीं। हालांकि बाद में दोनों को रिहा कर दि��ा गया था। सुप्रीम कोर्ट पंहुचा था मामला गौरतलब है कि फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती समेत सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए कई दिनों से मांग की जा रही थी। लोकसभा और राज्यसभा में भी यह मामला उठा था। सुप्रीम कोर्ट में भी रिहाई को लेकर याचिकाएं दायर की गई थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उम्मीद जताई थी कि, 'रिहा होने के बाद तीनों पूर्व सीएम, कश्मीर के हालात को सामान्य बनाने और विकास करने में योगदान देंगे।' ये भी पढ़े... जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को गणतंत्र दिवस का तोहफा, आज से 2जी इंटरनेट सेवाएं बहाल, सोशल साइट्स पर रहेगी पाबंदी लोकसभा में बोले पीएम मोदी- अगर पिछली सरकार की तर्ज पर चलते तो न मंदिर बनता न जम्मू-कश्मीर से 370 हटता जम्मू कश्मीर: महिला कमांडेंट ने तीन आतंकियों को किया ढेर, पहले भी कर चुकी हैं शौर्य का प्रदर्शन Read the full article
#article370#farooqabdullah#farooqabdullahnajarband#farooqabdullahnews#farooqabdullahrevokingdetention#JammuKashmir#mahbubamuftis#omarabdullah
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ममता बनर्जी की विपक्षी एकजुटता रैली, लेकिन मंच पर नहीं दिखेंगे ये 7 नेता - West bengal tmc mamata banerjee kolkata rally oppotion party rahul sonia kcr naveen patnayak tpt
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शनिवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में विपक्षी दलों को एक साथ एक मंच पर लाने के लिए रैली कर रही हैं. लोकसभा चुनाव स�� पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता में राजनीतिक दलों से लेकर बीजेपी के बागी और मोदी विरोधी नेता भी एकजुट हो रहे हैं. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव सहित विपक्ष के करीब 7 ऐसा नेता हैं जो ममता बनर्जी के मंच पर नजर नहीं आएंगे. इन नेताओं के ममता की रैली में न पहुंचने के पीछे राजनीतिक मायने भी छिपा हुआ है.
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता के शक्ति प्रदर्शन करने के लिए ममता बनर्जी महारैली करने जा रही हैं. इस महारैली में लाखों लोगों के शामिल होने की बात कही जा रही है, इसके अलावा विपक्षी दलों के तकरीबन सभी दलों के नेता जुटेंगे.
हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, बसपा अध्यक्ष मायावती, टीआरएस चीफ व तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर और जगन मोहन रेड्डी इस रैली में शामिल नहीं हो रहे हैं. इसके अलावा ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के शामिल होने को लेकर संशय बरकरार है. वहीं, डीएमके के इस मंच पर आने से AIADMK ने दूरी बना रखी है.
ममता के मंच पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के न पहुंचने के पीछे सबसे बड़ी वजह कांग्रेस की पश्चिम बंगाल कमेटी मानी जा रही है. पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी ममता की रैली में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के शामिल होने को लेकर सहमत नहीं था.
बताया जा रहा है कि राज्य की कांग्रेस कमेटी आने वाले लोकसभा चुनावों को अकेला लड़ने के लिए तैयार हैं और उन्होंने ही राहुल गांधी को रैली में शामिल न होने का सुझाव दिया, जिसके बाद उन्होंने शामिल न होने का फैसला किया गया. हालांकि, सोनिया-राहुल ने अपनी जगह वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजना का फैसला किया है.
ममता के मंच पर बसपा अध्यक्ष मायावती भी खुद नहीं जा रही हैं बल्कि अपनी जगह पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को भेज रही हैं. बसपा प्रमुख कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह को छोड़कर किसी और दूसरे मंच पर विपक्षी नेताओं के साथ नहीं दिखी हैं. दरअसल, मायावती खुद भी पीएम पद की दावेदार के तौर पर पेश कर रही हैं. ऐसे में वो किसी और से मंच पर जाकर अपनी मजबूती को कमजोर नहीं करना चाहती हैं.
टीएमसी की रैली में ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक भी नहीं दिख सकते हैं. उन्होंने इंडिया टुडे माइंड रॉक्स कार्यक्रम में कहा था उनकी पार्टी की नीति साफ है, वह बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी बनाकर चल रहे हैं. वो दोनों पार्टियों में से किसी के साथ भी गठबंधन नहीं करेंगे. इसके अलावा अभी तक विपक्ष के ऐसे किसी भी मंच पर नहीं दिखे हैं. हालांकि, केसीआर से लेकर ममता तक ने नवीन पटनायक से मुलाकात कर फेडरल फ्रंट में शामिल होने का न्योता दिया था.
ममता के मंच पर आंध्र प्रदेश के वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष व आंध्र प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वाईएस जगन मोहन रेड्डी भी नजर नहीं आएंगे. दरअसल ममता की रैली टीडीपी अध्यक्ष ��ंद्रबाबू नायडू जा रहे हैं. माना जा रहा है कि इसी के चलते जगन मोहन रेड्डी इस रैली से दूरी बनाए हुए हैं, क्योंकि नायडू से उनका सियासी विरोध है.
इसी तरह ममता की रैली में AIADMK का भी कोई नेता नजर नहीं आएंगे, क्योंकि डीएमके के नेता स्टालिन पहुंच रहे हैं. तमिलनाडु में दोनों दल एक- दूसरे के विरोधी हैं, ऐसे में दोनों दल एक मंच पर साथ आने से गुरेज कर रहे हैं. जबकि डीएमके और AIADMK दोनों पार्टियां बीजेपी के खिलाफ हैं.
टीएमसी की रैली में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा, एचडी कुमारस्वामी, एचडी देवगौड़ा, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, तेजस्वी यादव, स्टालिन, मल्लिकार्जुन खड़गे, अजित सिंह, जयंत चौधरी, शरद यादव, हेमंत सोरेन, लालधुवहावमा और गेगांग अपांग उपस्थित होंगे.
इन नेताओं के अलावा मोदी विरोधी हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेता भी शामिल होंगे. इसके अलावा बीजेपी के बागी नेताओं में यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी भी मंच साझा करेंगे.
अखिलेश यादव-सपा, सतीश मिश्रा- बीएसपी, चंद्रबाबू नायडू-टीडीपीएमके, स्टालिन-डीएमके,एचडी कुमारस्वामी और एचडी देवगौड़ा-जेडीएस, खड़गे और सिंघवी-कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल-आप, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला-नेशनल कांफ्रेस, तेजस्वी यादव-आरजेडी,शरद पवार-एनसीपी,अजित सिंह और जयंत चौधरी-आरएलडी, हेमंत सोरेन, हार्दिक पटेल,जिग्नेश मेवाणी, लालधुवहावमा-नेता विपक्ष मिजोरम,यशवंत सिन्हा, शरद यादव, ,-पूर्व मुख्यंत्री अरूणाचल प्रदेश,अरुण शौरी इसमें शामिल होंगे ऐसाा कहा जा रहा है.
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जो एसी में बैठ जाते हैं वह खो जाते हैं जो धूप में तपते हैं वही निखरते हैं.
*जो एसी में बैठ जाते हैं वह खो जाते हैं जो धूप में तपते हैं वही निखरते हैं.* यह कहावत आज सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस या यूं कहें कि पूरे विपक्ष पर सटीक बैठती है आज कांग्रेस चुनाव ही नहीं हारी है बल्कि अपना आत्मविश्वास भी हार चुकी है ऐसा प्रतीत हो रहा है. *कोई पार्टी चुनाव हारती है तो हार कैसे हुई गलती कहां हुई उसकी जानकारी निकाल कर उसमें सुधार करती या अपने संगठन में बदलाव करती है, यह सब बातें पुरानी हो चुकी हैं, कांग्रेस के साथ ऐसा तब होता जब हार छोटी होती *2019 चुनाव की हार कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी हार है इस हार का कारण ��ांग्रेस के संगठन का कमजोर होना कार्यकर्ताओं का ना होना या जो कार्य करता है उनका उत्साह बढ़ाने वाला कोई ना होना है.* कांग्रेस के साथ आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि *कांग्रेस के प्रदेश स्तर के नेता या फिर जिन को जिम्मेदारी दी गई है संगठन में बड़े पदों पर वह अपने आप को एक आम कार्यकर्ता समझने के लिए तैयार है ही नहीं*. चुनाव हारने का भी उनके ऊपर कोई असर होता हुआ नहीं दिख रहा है उनका पद उनके पास है उनसे कोई सवाल जवाब करने वाला नहीं है. वह अपने आप को चुनाव हारने के बाद भी बड़ा नेता मानकर ही चल रहे हैं खुद का वजूद खत्म हो जाने के बाद भी बड़ी हस्ती मानकर ही चल रहे हैं और यह सभी लक्षण कॉन्ग्रेस के आने वाले चुनाव में हार को सुनिश्चित करता हुआ दिख रहा है भाजपा आज इतनी बड़ी जीत तक पहुंची है और देश में ज्यादातर राज्यों में खुद की सरकार बनाने में कामयाब हुई है तो इसमें भाजपा के नेताओं की भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर की गई मेहनत है. भाजपा में गुटबाजी बहुत कम है या यूं कहें कि ना के बराबर है और कांग्रेस में गुटबाजी हर जगह है दोनों पार्टियों की हार और जीत का यही अंतर तय करता है *भाजपा इतनी बड़ी जीत प्राप्त करने के बाद भी उत्साह के साथ साथ अपने होशो हवास में है और आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भाजपा लग चुकी है या यूं कहें कि भाजपा अभी से 2024 की तैयारी कर रही है*, भाजपा का पूरे देश में खुद का संगठन मजबूत है *भाजपा के पास बूथ स्तर तक कार्यकर्ता है इसके अलावा भाजपा का साथ देने के लिए कई और संगठन है जिसमें आरएसएस प्रमुख रूप से है, इसके अलावा विश्वहिंदू परिषद,हिंदू युवा वाहिनी ऐसे तमाम संगठन है जो लगातार भाजपा को मजबूत करने के लिए काम करते रहते हैं.* जिन राज्यों में भाजपा सरकार में नहीं रहती है वहां यह संगठन भाजपा के साथ मिलकर लगातार जनता से संपर्क अभियान चलाते रहते हैं हर मुद्दे को उठाकर जनता तक ले जाते हैं छोटे या बड़े आंदोलन करते रहते हैं जिसका फायदा भाजपा को चुनाव में मिलता है. *लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता क्या कर रहे हैं?* कांग्रेस के नेता बस इसी में लगे रहते हैं कि पार्टी हार जाए उस से मतलब नहीं है *बस साथ वाला दूसरा नेता या कार्यकर्ता आगे नहीं बढ़ना चाहिए कांग्रेस पार्टी आपसी खींचतान में उलझी हुई है कांग्रेस पार्टी के नेता ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को धोखा दे रहे हैं* कांग्रेस आज भाजपा से नहीं हारी है कॉन्ग्रेस आज खुद से ही हार रही है, *कांग्रेस के नेता कांग्रेस के लिए कैडर तैयार नहीं कर रहे हैं कार्यकर्ताओं की मदद नहीं कर रहे हैं कार्यकर्ताओं को निराश कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क नहीं कर रहे हैं* इसके अलावा जनता से जुड़े हुए मुद्दों को जनता के साथ सड़क पर उतर कर उठा नहीं रहे हैं उसका विरोध नहीं कर रहे हैं *अगर सड़क पर नहीं उतरेंगे डोर टू डोर कैंपेनिंग नहीं करेंगे तो फिर जनता इनको विकल्प के रूप में ��ैसे चुनेगी?* आज उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए *उत्तर प्रदेश में कहा जाता है कि मुख्य विपक्षी दल आज की तारीख में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी हैं* कांग्रेस तीसरे नंबर पर है *लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तो सोई हुई है.* उत्तर प्रदेश में लगातार अपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही है अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है लगातार महिलाओं के खिलाफ बच्चियों के खिलाफ बलात्कार और हत्या की घटनाएं हो रही है दूसरी पार्टी के नेताओं को मारा जा रहा है उनकी हत्या की जा रही है उत्तर *प्रदेश में आम जनता तो छोड़िए पुलिस वाले भी सुरक्षित नहीं है* इतना सब कुछ होने के बावजूद देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस क्या कर रही है? सिर्फ सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन? प्रदेश की कानून व्यवस्था पूरी तरीके से ध्वस्त है अगर इस समय सड़क पर उतरकर आंदोलन कांग्रेस नहीं करेगी इन सब घटनाओं का विरोध प्रदर्शन उग्र होकर धरना देकर जनता का साथ देकर नहीं करेगी तो फिर जनता कांग्रेस को क्यों चुनेगी? क्या कांग्रेस ऐसा सोच रही है कि जनता भाजपा से त्रस्त होकर खुद-ब-खुद विकल्प के रूप में कांग्रेस को चुनेगी? अगर कांग्रेस ऐसा सोच रही है तो फिर अमित शाह और भाजपा के दूसरे नेता ठीक कहते हैं कि अगले 50 साल तक भाजपा देश पर शासन करेगी. कॉन्ग्रेस गलतफहमी में है जनता उसी को चुनेगी जो दिखेगा जो नहीं दिखेगा उसका अस्तित्व जनता समाप्त कर देगी आने वाले कुछ ही महीनों में झारखंड हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव है हो सकता है इसी साल दिल्ली में भी चुनाव हो जाए *2019 की चुनावी हार से क्या सबक लिया है कांग्रेस ने?आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए क्या कर रही है कांग्रेसी? मुझे तो कहीं भी कांग्रेस दिखाई नहीं दे रही है* सोशल मीडिया पर *ट्वीट* करने से *पोस्ट* करने से और भाजपा का विरोध करने से जनता वोट नहीं देने वाली. *अगर* कांग्रेस का यही रवैया रहा तो आने वाले विधानसभा चुनाव हारने के लिए तैयार रहे कांग्रेस. मुख्य विपक्षी दल का काम होता है जनता की आवाज उठाना जनता पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ मजबूत आवाज बनना सरकार को मनमानी करने से रोकना लेकिन कॉन्ग्रेस चुनावी हार के साथ साथ सभी मुद्दों पर पूरी तरीके से नाकाम हो रही है कॉन्ग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है भाजपा लगातार बंगाल में धर्म के नाम पर राजनीति कर रही है ममता बनर्जी की सरकार को परेशान किया जा रहा है लगातार बंगाल में राजनीतिक हत्याएं हो रही है भाजपा के बंगाल के लोकल नेता केंद्र की भाजपा सरकार से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रहा है कांग्रेस इन सब चीजों के खिलाफ बंगाल में क्या कर रही है? बंगाल में आज कांग्रेस इस हालत में नहीं है कि खुद सरकार बना सके बंगाल के अंदर भी कांग्रेस से विपक्षी दल का ठप्पा छिन जाने की कगार पर है. हो सकता है आने वाले चुनाव में भाजपा वहां जीत भी जाए अगर कांग्रेस बंगाल में खुद के लिए कुछ नहीं कर रही है तो कम से कम ममता बनर्जी का सहारा तो बने लेकिन कॉन्ग्रेस यह काम भी नहीं कर रही है *आखिर कांग्रेस कर क्या रही है? कांग्रेस ��ै किस लिए?* यह चीज कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को सोचने की समझने की जरूरत है *आखिर वह कौन से लोग हैं जो जमीनी स्थिति से अवगत नहीं करा रहे हैं कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को या अवगत होने नहीं दे रहे हैं?* *क्या हर मुद्दे को सिर्फ राहुल गांधी ही उठाएंगे* दूसरे न���ता इंतजार करेंगे कि राहुल गांधी बोले तो ही हम लोग बोलेंगे राहुल गांधी ही पूरे देश में रैलियां करेंगे दूसरे नेता सिर्फ मुख्यमंत्री बनेंगे और मंत्री बनेंगे? या फिर चुनाव में टिकट लेंगे इसके अलावा किसी का कोई काम नहीं *सिर्फ नेतृत्व के भरोसे ही कांग्रेस रहेगी पूरे देश में?* *कांग्रेस अगर खुद के अंदर बदलाव नहीं करती है और बड़े स्तर पर बदलाव नहीं करती या हर राज्य में ऊपर से नीचे तक संगठन को नेताओं को और नेताओं को दिए गए पदों को नहीं बदलती तो भाजपा सच में लंबे समय तक शासन करेगी देश पर* और यह सब भाजपा की मेहनत का ही नतीजा होगा और इसके लिए भाजपा की तारीफ भी करनी होगी.
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा उठाए गए कदम से देश की राजनीति में अफरा-तफरी का माहौल है. संसद में पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से जोरदार आवाजें उठीं लेकिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में बयान देते हुए कहा कि राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न होने जैसी स्थिति बन गई है और पूरे घटनाक्रम पर केंद्र लगातार नजर बनाए हुए है. जाहिर है राज्य में अराजक स्थिति पैदा करने वाला कोई गैर-राजनीतिक दल नहीं बल्कि संवैधानिक पद पर आसीन (बैठी) एक महिला मुख्यमंत्री है. जो एक पुलिस अधिकारी को जांच से बचाने के लिए केंद्रीय एजेंसी (सीबीआई) के खिलाफ राज्य की पुलिस का इस्तेमाल करती है. और फिर केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए रात में धरने पर बैठ जाती है. ममता का मकसद बीजेपी विरोध की राजनीति में सबसे आगे दिखना है साथ ही सीबीआई जांच के खिलाफ आवाज उठाकर विक्टिम कार्ड खेलने का भी जोरदार राजनीतिक चाल चलना है. जिससे उन्हें आने वाले लोकसभा चुनाव में सियासी फायदा भी हो और उनके लोग सीबीआई की जांच से बच पाने में कामयाब हो सकें. ध्यान देने वाली बात यह है कि 17,000 करोड़ रुपए के इस घोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की जा रही है, और तीन बार सम्मन भेजे जाने के बावजूद कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सीबीआई को जांच करने में सहयोग करने से बच रहे थे. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने बयान में साफ कर दिया कि सीबीआई की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार चल रही थी और सीबीआई साल 2013 में एसआईटी के मुखिया रह चुके राजीव कुमार से कई मुद्दों पर जानकारी हासिल करना चाह रही थी. केंद्र और राज्य में टकराहट के पीछे की असली वजह राजीव कुमार के जांच में सहयोग करने की बात तो दूर उल्टा सीबीआई के अधिकारियों के साथ राज्य की कोलकाता पुलिस ने बदसलूकी की और उन्हें घंटों हिरासत में रखा. केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ राज्य पुलिस ��स कदर पेश आएगी इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी. लेकिन राज्य की मुखिया इस घटना को अंजाम देने में काफी अग्रसर रहीं और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पहुंचकर उनके समर्थन में सत्याग्रह करने का ऐलान भी कर दिया. [caption id="attachment_189429" align="alignnone" width="1002"] सीबीआई के दुरुपयोग को मुद्दा बनाकर ममता बनर्जी रविवार रात से कोलकाता के मेट्रो चैनल पर धरना कर रही हैं (फोटो: पीटीआई)[/caption] मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरना पर बैठने का ऐलान कर चुकी थीं वहीं राज्य पुलिस ने सीबीआई की टीम को घंटों हिरासत में रखा. अराजकता की सारी हदें तब पार हो गई जब सीबीआई के दफ्तर को पुलिस ने घेर लिया और मुख्यमंत्री के साथ कोलकाता के पुलिस कमिश्नर धरने पर बैठे नजर आने लगे. इस मामले को लेकर पुलिस सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कई अधिकारियों ने गहरी आपत्ति जताई और उन्होंने इसे सर्विस नियमों की अनदेखी करार दिया. सेवानिवृत (रिटायर्ड) अधिकारी एक आईपीएस अफसर के इस तरह धरना में सहभागिता (सहयोग) को सर्विस नियमों की अनदेखी मानते हैं. उत्तर प्रदेश और बीएसएफ के पूर्व डीजी प्रकाश सिंह कहते हैं कि ऑल इंडिया सर्विसेज़ के अफसर से ऐसे आचरण की उम्मीद नहीं की जा सकती है और राजीव कुमार का धरना-प्रदर्शन में हिस्सा लेना वाकई सर्विस रूल के नियमों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि राजीव कुमार जैसे अफसर को यह कतई शोभा नहीं देता है. हलांकि प्रकाश सिंह सीबीआई के अंतरिम डायरेक्टर रह चुके नागेश्वर राव के कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर जांच एजेंसी भेजने के फैसले को सही नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि सीबीआई के पूर्णकालीन डायरेक्टर बहाल हो चुके हैं तो अंतरिम डायरेक्टर जिनकी विश्वसनियता खुद सवालों के घेरे में है उन्हें ऐसे कदम से बचना चाहिए था. [caption id="attachment_184329" align="alignnone" width="1002"] पिछले कुछ समय के दौरान सीबीआई के उपयोग पर राजनीतिक रूप से काफी सवाल खड़े हुए हैं (फोटो: एएफपी)[/caption] ममता का कदम बेहद गैर-जिम्मेदाराना और अराजकता फैलाने जैसा वैसे प्रकाश सिंह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उठाए गए कदम को बेहद गैर-जिम्मेदाराना करार देते हैं और इसे अराजकता फैलाने जैसा कदम मानते हैं. बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अभायनंद के मुताबिक सीबीआई के साथ राज्य की यह टकराहट कोई नया नहीं है और यह कानूनी अंतर्विरोध एक्ट में निहित है. यह एक आम समस्या से थोड़ी ज्यादी बड़ी समस्या है जो समय-समय पर उफान मारता है. अभयानंद के मुताबिक नेतृत्व यदि क्षमतावान और दूरदर्शी हो तो ऐसी समस्याओं का समाधान निकाल लेता है. वैसे राजीव कुमार के धरना में भागीदारी को लेकर अभयानंद ने भी दुख प्रकट किया. उन्होंने एक पुलिस अधिकारी के आचरण के लिए इसे अशोभनीय करार दिया. लेकिन राजनीतिक ��ड़ाई इस कदर राज्य में संवैधानिक संकट पैदा करेगा और खुद मुख्यमंत्री केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ बगावती तेवर अपनाएंगी इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी. आलम यह है कि गृह मंत्री को लोकसभा में यह बयान देना पड़ा कि सीबीआई के दफ्तर और रिहायशी ठिकानों पर केंद्रीय पुलिस बल को तैनात किया गया है जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. फिलहाल ममता बनर्जी के समर्थन में विपक्ष गोलबंद होने लगा है और केंद्र पर सीबीआई के बेजा इस्तेमाल का आरोप बीजेपी विरोधी पार्टियां जोरशोर से लगा रही हैं. कइयों ने आपातकाल (इमरजेंसी) से ��दतर स्थिति का हवाला देकर बीजेपी को जमकर कोसा. वहीं तेजस्वी यादव सरीखे नेता ममता को भरपूर समर्थन देने की बात कहकर बीजेपी पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप मढ़ने में आगे दिखे. [caption id="attachment_189428" align="alignnone" width="1002"] तेजस्वी यादव ममता बनर्जी के विरोध को अपनी पार्टी का समर्थन देते हुए उनसे मिलने कोलकाता पहुंचे थे (फोटो: पीटीआई)[/caption] पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से कैसे जुड़े हैं घोटाले के तार? रोज वैली घोटाला तकरीबन 15,000 करोड़ का है वहीं शारदा चिटफंड घोटाला 2500 करोड़ रुपए का है. यह बंगाल के दो बड़े आर्थिक घोटाले हैं जिनमें निवेशकों के पैसों को कई गुना बढ़ाने का लालच देकर पैसे बटोरे गए और बाद में कंपनियां बंद कर दी गईं. साल 2013 में 1989 बैच के अफसर राजीव कुमार एसआईटी टीम की अगुवाई कर रहे थे. उनपर आरोप है कि इस घोटाले से जुड़े अहम कड़ी को जिनकी पैठ पश्चिम बंगाल सरकार में गहरी थी उनके खिलाफ सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई. साथ ही कई महत्वपूर्ण सबूतों को मिटा दिया गया. सीबीआई इसी संबंध में राजीव कुमार से पूछताछ करना चाहती है लेकिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह के मुताबिक कई सम्मन भेजे जाने के बाद भी पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सीबीआई के सामने हाजिर होने से बचते रहे. TMC पर शारदा और रोज वैली स्कैम के आरोपी को बचाने का आरोप शारदा कंपनी की चैयरपर्सन सुदीप्ता सेन थीं जिन्हें ममता बनर्जी का खास बताया जाता है. वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राज्यसभा सांसद कुणाल घोष कंपनी के मीडिया डिविजन के प्रमुख थे. एक अन्य सांसद का फोटो कंपनी के विज्ञापन में खूब प्रचारित किया गया लेकिन अप्रैल 2013 के बाद सुदीप्ता से संपर्क करना नामुमकिन हो गया और कंपनी रातों-रात बंद हो गई. रोज वैली स्कैम के प्रबंध निदेशक (एमडी) शिवमय दत्ता के संबंध बॉलीवुड और रियल स्टेट के कारोबारियों से था. मनी लॉन्ड्रिंग और कंपनी नियम को दरकिनार करने के चलते सुप्रीम कोर्ट ने जांच का जिम्मा सीबीआई को 2014 में सौंप दिया. सीबीआई इस मामले में 80 चार्जशीट फाइल कर चुकी है वहीं हजारों करोड़ रुपए अभी तक रिकवर भी किए जा चुके हैं. आरोप है कि ��ोनों कंपनियों के कर्ता-धर्ता की गहरी पैठ सत्ताधारी टीएमसी में है इसलिए इसकी मुखिया सीबीआई जांच से तिलमिला उठी हैं. [caption id="attachment_189434" align="alignnone" width="1002"] पश्चिम बंगाल में हुए शारदा चिटफंड घोटाले को अनुमानित रूप से 40 हजार करोड़ रुपए का स्कैम बताया जा रहा है[/caption] TMC के कई नेता जेल की हवा खा चुके हैं, कइयों के नाम जांच में शामिल दिसंबर 2014 में राज्य के परिवहन और खेल मंत्री मदन मित्रा आपराधिक षडयंत्र, चीटिंग और अन्य आरोपों के तहत गिरफ्तार किए जा चुके हैं. वहीं राज्यसभा सांसद कुणाल घोष, श्रीजॉय बोस सहित पार्टी के उपाध्यक्ष रजत मजूमदार भी जेल की हवा खा चुके हैं. शारदा ग्रुप की सीईओ और सीएमडी की उस चिट्ठी की चर्चा भी जोरों पर है जिसमें 22 ऐसे लोगों के नाम बताए गए हैं जो इस कंपनी के जरिए काफी पैसा बना चुके हैं. जाहिर है यह कौन से ऐसे नाम हैं जिनको लेकर बीजेपी लगातार आक्रामक रुख अपनाए हुए है और ममता केंद्र के खिलाफ बगावती रोल अपनाकर एंटी बीजेपी पार्टियों को जुटा कर विक्टिम रोल प्ले करने में जुट गई हैं. from Latest News अभी अभी Firstpost Hindi http://bit.ly/2I28pCa
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