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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart48 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणpart49
शिव लिंग पूजा :- जो अपने धर्मगुरूओं द्वारा बताई गई धार्मिक साधना कर रहे हैं, वे पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं कि यह साधना सही है। इसलिए वे अंधविश्वास (Blind Faith) किए हुए हैं।
इस शिव लिंग पर प्रकाश डालते हुए मुझे अत्यंत दुःख व शर्म का एहसास हो रहा है। परंतु अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए प्रकाश डालना अनिवार्य तथा मजबूरी है। शिव लिंग (शिव जी की पेशाब इन्द्री) के चित्र में देखने से स्पष्ट होता है कि शिव का लिंग (Private Part) स्त्री की लिंगी (पेशाब इन्द्री यानि योनि) में प्रविष्ट है। इसकी पूजा हिन्दू श्रद्धालु कर रहे हैं।
शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई? शिव महापुराण (जो बैंकटेश्वर प्रेस मुंबई से छपी है तथा जिसके प्रकाशक हैं "खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र) भाग-1 में विद्येश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
• विद्येश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27-30: पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ । (27) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया। (28) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया। (29) उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। (30) • विद्येश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40-43: इससे में अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षण ही मैं सगुण रूप हुआ हूँ। (40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक है। (41) लिंग लक्षण होने से यह मेर��� लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो! तुम नित्य इसकी ��र्चना करना। (42) यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है। (43) अन्य प्रमाण : शिव लिंग (शिव का जननेन्द्री Private Part) है तथा जिसमें यह प्रविष्ट है, वह लिंगी (पार्वती की जननेन्द्री Private Part) है :-
उपरोक्त प्रकाशन की श्री शिव महापुराण के रूद्र सहिता में पृष्ठ 25-28 पर च. को. रू. लिंग रूप कारण वरणन नामक द्वादश अध्याय के श्लोक नं. 1-54 में कहा है कि श्री व्यास जी के शिष्य श्री सूत जी से ऋषियों ने प्रश्न किया कि हे सूत जी! शिवलिंग की पूजा के विषय में जैसा आपने सुना है, वैसा बताओ? ऋषि सूत जी बोले कि मैंने जैसा सुना है, वैसा सुनो। वैसा कहता हूँ। दारूवन में शिव भक्त ऋषि रहते थे। वे निरंतर शिव जी का पूजन (भक्ति) करते थे। उनकी पत्नियाँ भी उनके साथ उसी वन में रहती थी। कुछ ऋषिजन एक दिन समिधाओं को लेने के लिए कभी दारूवन में आए। इसी अंतर में एक व्यक्ति नग्नावस्था (बिल्कुल नंगा) उस वन में आया और अपने लिंग (Private Part) को हाथ में पकड़कर कामी पुरूष (व्यभिचारी) की तरह निर्लज्ज होकर हिला हिलाकर अश्लील हरकत करने लगा। उसे देखकर उस वन की स्त्रियाँ उसके पास आई। वे उसके लिंग को पकड़कर हिलाने लगी। उसको छूने लगी। कुछ आलिंगन करने से प्रसन्न हुई। उसी समय वे ऋषि जी आ गए। उन ऋषियों ने कहा कि तू ऐसा बेशर्म कर्म करने वाला कौन है? तेरा लिंग धरती पर गिर जाए। उस समय उसका लिंग भूमि पर गिर गया। जलने लगा। तीनों लोकों में जलता हुआ गया। उसको शांत करने के लिए पार्बती (W/ शिव) की स्तुति की गई। उससे कहा गया कि आप योनि (लिंगी-Private Part of Women) बन जाओ। पार्वती जी ने योनि रूप धारण किया। उस जलते हुए लिंग को उस योनि में डाला गया, तब वह शांत हुआ। उसके पश्चात् उस शिवलिंग की ऐसी मूर्ति जिसमें स्त्री योनि में लिंग प्रविष्ट हो, पत्थर की बनाकर स्थान-स्थान पर रखकर पूजा शुरू हो गई। (देखो आगे चित्र लिंग व लिंगी का जिसमें स्पष्ट है, यह ऐसा है शिवलिंग। ऐसी बेशर्म पूजा भी करते हैं हिन्दू, यह तत्त्वज्ञान का टोटा है।)
विवेचन : यह ऊपर वाला विवरण श्री शिव महापुराण (खेमराज श्रीकृष्ण दास प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित) से शब्दा-शब्द लिखा है। फोटोकॉपी भी लगाई है। इसमें स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने (जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के पिता जी हैं) जान-बूझकर शास्त्र विरुद्ध साधना बताई है क्य���ंकि यह नहीं चाहता कि कोई शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) यानि अपने Private Part को जो पत्थर का था, उसको पत्थर की लिंगी (स्त्री का गुप्तांग) यानि Private Part बनाकर उसमें प्रवेश करके उस लिंग व लिंगी की पूजा करने को कह दिया। पहले तो तेजोमय बहुत बडा स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर अपने पुत्र शिव के रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्री के (Private Part) गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्री की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही रखकर नित्य पूजा करना।
अन्य प्रमाण देखें विद्येश्वर संहिता के उसी प्रकाशन की फोटोकॉपी में पृष्ठ 25-28 अध्याय 12 श्लोक 1-54 में।
इसके पश्चात् यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। आप मंदिर में शिवलिंग को देखना। उसके चारों ओर स्त्री इन्द्री का चित्र है जिसमें शिवलिंग प्रविष्ट दिखाई देता है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी।
आप जी ने ऊपर शिव पुराण भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता के पृष्ठ 11 पर अध्याय 5 श्लोक 27-30 में तथा अध्याय 12 श्लोक 1-54 की फोटोकॉपी में पढ़ा कि शिव ने जो तेजोमय स्तंभ खड़ा किया था। फिर उस स्तंभ को गुप्त करके पत्थर को अपने लिंग (गुप्तांग) का आकार दे दिया तथा एक पत्थर की पार्बती की लिंगी (Private Part) बनाई। उसमें लिंग प्रवेश करके दे दिया और बोला कि इसकी पूजा किया करो।
दूसरा प्रमाण : शिव नंगा होकर दारूवन में गया। अपने लिंग को हाथ में पकड़कर कामी पुरूष यानि व्यभिचारी की तरह निर्लज्ज होकर हिला हिलाकर अश्लील हरकत करने लगा। स्त्रियाँ भी उस लिंग का आलिंगन (स्पर्श) करने लगी। ऋषिजनों ने देखा तो उसको श्राप दे दिया, तेरा लिंग पृथ्वी पर गिर जाए। वह लिंग ऋषियों के श्राप से टूटकर भूमि पर गिर गया। जलने लगा। पार्बती ने योनि (लिंगी) रूप धारा। उसमें प्रविष्ट होकर शांत हुआ। फिर उसकी पूजा हिन्दू साहेबान करने लगे।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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ट्रम्प भतीजी ने नई किताब में "घातक रूप से कष्टप्रद परिवार" का वर्णन किया है
ट्रम्प भतीजी ने नई किताब में “घातक रूप से कष्टप्रद परिवार” का वर्णन किया है
मैरी ट्रम्प की पुस्तक पहली ट्रम्प जीवनी है जो परिवार के किसी सदस्य द्वारा लिखी गई है।
वाशिंगटन:
एक नई पुस्तक में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की एक भतीजी ने मनोविज्ञान में अपने प्रशिक्षण को यह निष्कर्ष निकालने के लिए लागू किया है कि राष्ट्रपति संभवत: नशा और अन्य नैदानिक विकारों से पीड़ित हैं – और उन लक्षणों को भड़काने वाले एक पिता द्वारा सफलता के लिए बढ़ाया गया था।
“टू मच एंड एवर एनफ: हाउ…
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उत्तराखंड में होली के इस शुभ पावन पर्व पर यहां एक अपनी परम्परा एवं अपनी रीत रिवाज क��� अनुसार प्रत्येक वर्ष होली का आयोजन देव तुल्य भूमि ढुङ्गा जिला चम्पावत उत्तराखंड में होली के इस शुभ पावन पर्व पर यहां एक अपनी परम्परा एवं अपनी रीत रिवाज के अनुसार प्रत्येक वर्ष होली का आयोजन संयोजक श्री भूप सिंह जी के द्वारा होली का आयोजन किया जाता है जहा अपने मीठी भाषाओ के नाम से होली गाई जाती है जिस होली में श्री राम भगवान एवं कृष्ण भगवान एवं महाभारत का वरणन किया गया है पूरी कहानी इन पर आधारित है जो एक होली के तौर पर गाई जाती है और वैसे भी 50 फ़ीसदी लोग शहरो में रहने लग गये है लेकिन हरसाल अपने पर्व को कभी नही भूलते हमेशा ही मिलजुलकर एक अच्छे समाज का निर्माण करते है उत्तराखंड से ढुङ्गा से जगु बोहरा की रिपोट
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शिव लिंग पूजा :- जो अपने धर्मगुरूओं द्वारा बताई गई धार्मिक साधना कर रहे हैं, वे पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं कि यह साधना सही है। इसलिए वे अंधविश्वास (Blind Faith) किए हुए हैं।
इस शिव लिंग पर प्रकाश डालते हुए मुझे अत्यंत दुःख व शर्म का एहसास हो रहा है। परंतु अंधविश्वास को समाप्त करने के लिए प्रकाश डालना अनिवार्य तथा मजबूरी है। शिव लिंग (शिव जी की पेशाब इन्द्री) के चित्र में देखने से स्पष्ट होता है कि शिव का लिंग (Private Part) स्त्री की लिंगी (पेशाब इन्द्री यानि योनि) में प्रविष्ट है। इसकी पूजा हिन्दू श्रद्धालु कर रहे हैं।
शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई? शिव महापुराण (जो बैंकटेश्वर प्रेस मुंबई से छपी है तथा जिसके प्रकाशक हैं "खेमराज श्री कृष्णदास प्रकाशन मुंबई (बम्बई), हिन्दी टीकाकार (अनुवादक) हैं विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद जी मिश्र) भाग-1 में विद्येश्वर संहिता अध्याय 5 पृष्ठ 11 पर नंदीकेश्वर यानि शिव के वाहन ने बताया कि शिव लिंग की पूजा कैसे प्रारम्भ हुई?
• विद्येश्वर संहिता अध्याय 5 श्लोक 27-30: पूर्व काल में जो पहला कल्प जो लोक में विख्यात है। उस समय महात्मा ब्रह्मा और विष्णु का परस्पर युद्ध हुआ । (27) उनके मान को दूर करने को उनके बीच में उन निष्कल परमात्मा ने स्तम्भरूप अपना स्वरूप दिखाया। (28) तब जगत के हित की इच्छा से निर्गुण शिव ने उस तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया। (29) उसी दिन से लोक में वह निष्कल शिव जी का लिंग विख्यात हुआ। (30) • विद्येश्वर संहिता पृष्ठ 18 अध्याय 9 श्लोक 40-43: इससे में अज्ञात स्वरूप हूँ। पीछे तुम्हें दर्शन के निमित साक्षात् ईश्वर तत्क्षण ही मैं सगुण रूप हुआ हूँ। (40) मेरे ईश्वर रूप को सकलत्व जानों और यह निष्कल स्तंभ ब्रह्म का बोधक है। (41) लिंग लक्षण होने से यह मेरा लिंग स्वरूप निर्गुण होगा। इस कारण हे पुत्रो! तुम नित्य इसकी अर्चना करना। (42) यह सदा मेरी आत्मा रूप है और मेरी निकटता का कारण है। लिंग और लिंगी के अभेद से यह महत्व नित्य पूजनीय है। (43) अन्य प्रमाण : शिव लिंग (शिव का जननेन्द्री Private Part) है तथा जिसमें यह प्रविष्ट है, वह लिंगी (पार्वती की जननेन्द्री Private Part) है :-
उपरोक्त प्रकाशन की श्री शिव महापुराण के रूद्र सहिता में पृष्ठ 25-28 पर च. को. रू. लिंग रूप कारण वरणन नामक द्वादश अध्याय के श्लोक नं. 1-54 में कहा है कि श्री व्यास जी के शिष्य श्री सूत जी से ऋषियों ने प्रश्न किया कि हे सूत जी! शिवलिंग की पूजा के विषय में जैसा आपने सुना है, वैसा बताओ? ऋषि सूत जी बोले कि मैंने जैसा सुना है, वैसा सुनो। वैसा कहता हूँ। दारूवन में शिव भक्त ऋषि रहते थे। वे निरंतर शिव जी का पूजन (भक्ति) करते थे। उनकी पत्नियाँ भी उनके साथ उसी वन में रहती थी। कुछ ऋषिजन एक दिन समिधाओं को लेने के लिए कभी दारूवन में आए। इसी अंतर में एक व्यक्ति नग्नावस्था (बिल्कुल नंगा) उस वन में आया और अपने लिंग (Private Part) को हाथ में पकड़कर कामी पुरूष (व्यभिचारी) की तरह निर्लज्ज होकर हिला हिलाकर अश्लील हरकत करने लगा। उसे देखकर उस वन की स्त्रियाँ उसके पास आई। वे उसके लिंग को पकड़कर हिलाने लगी। उसको छूने लगी। कुछ आलिंगन करने से प्रसन्न हुई। उसी समय वे ऋषि जी आ गए। उन ऋषियों ने कहा कि तू ऐसा बेशर्म कर्म करने वाला कौन है? तेरा लिंग धरती पर गिर जाए। उस समय उसका लिंग भूमि पर गिर गया। जलने लगा। तीनों लोकों में जलता हुआ गया। उसको शांत करने के लिए पार्बती (W/ शिव) की स्तुति की गई। उससे कहा गया कि आप योनि (लिंगी-Private Part of Women) बन जाओ। पार्वती जी ने योनि रूप धारण किया। उस जलते हुए लिंग को उस योनि में डाला गया, तब वह शांत हुआ। उसके पश्चात् उस शिवलिंग की ऐसी मूर्ति जिसमें स्त्री योनि में लिंग प्रविष्ट हो, पत्थर की बनाकर स्थान-स्थान पर रखकर पूजा शुरू हो गई। (देखो आगे चित्र लिंग व लिंगी का जिसमें स्पष्ट है, यह ऐसा है शिवलिंग। ऐसी बेशर्म पूजा भी करते हैं हिन्दू, यह तत्त्वज्ञान का टोटा है।)
विवेचन : यह ऊपर वाला विवरण श्री शिव महापुराण (खेमराज श्रीकृष्ण दास प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित) से शब्दा-शब्द लिखा है। फोटोकॉपी भी लगाई है। इसमें स्पष्ट है कि काल ब्रह्म ने (जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के पिता जी हैं) जान-बूझकर शास्त्र विरुद्ध साधना बताई है क्योंकि यह नहीं चाहता कि कोई शास्त्रों में वर्णित साधना करे। इसलिए अपने लिंग (गुप्तांग) यानि अपने Private Part को जो पत्थर का था, उसको पत्थर की लिंगी (स्त्री का गुप्तांग) यानि Private Part बनाकर उसमें प्रवेश करके उस लिंग व लिंगी की पूजा करने को कह दिया। पहले तो तेजोमय बहुत बडा स्तंभ ब्रह्मा तथा विष्णु के बीच में खड़ा कर दिया। फिर अपने पुत्र शिव के रूप में प्रकट होकर अपनी पत्नी दुर्गा को पार्वती रूप में प्रकट कर दिया और उस तेजोमय स्तंभ को गुप्त कर दिया और अपने लिंग (गुप्तांग) के आकार की पत्थर की मूर्ति प्रकट की तथा स्त्री के (Private Part) गुप्तांग (लिंगी) की पत्थर की मूर्ति प्रकट की। उस पत्थर के लिंग को लिंगी यानि स्त्री की योनि में प्रवेश करके ब्रह्मा तथा विष्णु से कहा कि यह लिंग तथा लिंगी अभेद रूप हैं यानि इन दोनों को ऐसे ही रखकर नित��य पूजा करना।
अन्य प्रमाण देखें विद्येश्वर संहिता के उसी प्रकाशन की फोटोकॉपी में पृष्ठ 25-28 अध्याय 12 श्लोक 1-54 में।
इसके पश्चात् यह बेशर्म पूजा सब हिन्दुओं में देखा-देखी चल रही है। आप मंदिर में शिवलिंग को देखना। उसके चारों ओर स्त्री इन्द्री का चित्र है जिसमें शिवलिंग प्रविष्ट दिखाई देता है। यह पूजा काल ब्रह्म ने प्रचलित करके मानव समाज को दिशाहीन कर दिया। वेदों तथा गीता के विपरीत साधना बता दी।
आप जी ने ऊपर शिव पुराण भाग-1 में विद्यवेश्वर संहिता के पृष्ठ 11 पर अध्याय 5 श्लोक 27-30 में तथा अध्याय 12 श्लोक 1-54 की फोटोकॉपी में पढ़ा कि शिव ने जो तेजोमय स्तंभ खड़ा किया था। फिर उस स्तंभ को गुप्त करके पत्थर को अपने लिंग (गुप्तांग) का आकार दे दिया तथा एक पत्थर की पार्बती की लिंगी (Private Part) बनाई। उसमें लिंग प्रवेश करके दे दिया और बोला कि इसकी पूजा किया करो।
दूसरा प्रमाण : शिव नंगा होकर दारूवन में गया। अपने लिंग को हाथ में पकड़कर कामी पुरूष यानि व्यभिचारी की तरह निर्लज्ज होकर हिला हिलाकर अश्लील हरकत करने लगा। स्त्रियाँ भी उस लिंग का आलिंगन (स्पर्श) करने लगी। ऋषिजनों ने देखा तो उसको श्राप दे दिया, तेरा लिंग पृथ्वी पर गिर जाए। वह लिंग ऋषियों के श्राप से टूटकर भूमि पर गिर गया। जलने लगा। पार्बती ने योनि (लिंगी) रूप धारा। उसमें प्रविष्ट होकर शांत हुआ। फिर उसकी पूजा हिन्दू साहेबान करने लगे।
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शेफ एंथनी बॉर्डेन की आवाज का एआई वर्णन पंक्ति को चिंगारी https://tinyurl.com/yh2v5war #आवज #एआई #एथन #क #चगर #पकत #बरडन #वरणन #शफ
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अपने कुछ रुझानों के लिए सुर्खियों में लाने के लिए ट्विटर ने वर्णन किया https://tinyurl.com/yxwl5hgl #अपन #क #कछ #कय #टवटर #न #म #रझन #लए #लन #वरणन #सरखय
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