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जयंती विशेष : लाला लाजपत राय को कहा जाता था 'पंजाब केसरी', जानिए उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें
चैतन्य भारत न्यूज पंजाब के शेर और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले मुख्य क्रांतिकारियों में से एक लाला लाजपत राय की आज जयंती है। इन्हें पंजाब केसरी के नाम से भी जाना जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं लाजपत राय की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें... (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
लाला जी का जन्म आज के ही दिन 28 जनवरी, 1865 को अपने ननिहाल के गांव ढुंढिके (जिला फरीदकोट, पंजाब) में हुआ था। उनके पिता लाला राधाकृष्ण लुधियाना जिले के जगरांव कस्बे के निवासी अग्रवाल वैश्य थे। लाला राधाकृष्ण अध्यापक थे। बचपन से ही लाजपत राय के मन में देश सेवा का बड़ा शौक था और देश को विदेशी शासन से आजाद कराने का प्रण किया। कॉलेज के दिनों में वह देशभक्त शख्सियत और स्वतंत्रता सेनानियों जैसे लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त के संपर्क में आए।
1907 में पूरे पंजाब में उन्होंने खेती से संबंधित आंदोलन का नेतृत्व किया और वर्षों बाद 1926 में जिनेवा में राष्ट्र के श्रम प्रतिनिधि बनकर गए। लाजपत राय ने पढाई छोड़ दी और देश को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने यह महसूस किया कि दुनिया के सामने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को रखना होगा ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों का भी सहयोग मिल सके। इस सिलसिले में वह 1914 में ब्रिटेन गए और फिर 1917 में यूएसए गए। अक्टूबर, 1917 में उन्होंने न्यू यॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे।
1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कलकत्ता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया। जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ा तो उन्होंने पंजाब में आंदोलन ��ा नेतृत्व किया। जब गांधीजी ने चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया तो उन्होंने इस फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई। एक बड़ा वाकया उस वक्त घटित हुआ, जब भारतीयों से बात करने आए साइमन कमीशन का विरोध का फैसला गांधी द्वारा लिया गया। साइमन कमीशन जहां भी गया, वहां साइमन गो बैक के नारे बुलंद हुए। 30 अक्टूबर 1928 को जब कमीशन लाहौर पहुंचा, तो लाजपत राय के नेतृत्व में एक दल शांतिपूर्वक साइमन गो बैक के नारे लगाता हुआ अपना विरोध दर्ज करवा रहा था। तभी अंग्रेज पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया और एक युवा अंग्रेज अफसर ने लालाजी के सर पर जोरदार प्रहार किया।
पुलिस ने खासतौर पर लाजपत राय को निशाना बनाया और उनकी छाती पर मारा। इस घटना के बाद लाजपत राय बुरी तरह जख्मी हो गए। 17 नवंबर, 1928 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। लाला जी का कथन था- 'मेरे शरीर पर पड़ी ए���-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी।' उनकी मृत्यु से पूरा देश भड़क उठा। इसी क्रोध के परिणामस्वरूप भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या की और फांसी के फंदे से झूल गए। Read the full article
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जयंती विशेष : लाला लाजपत राय को कहा जाता था 'पंजाब केसरी', जानिए उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें
चैतन्य भारत न्यूज पंजाब के शेर और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले मुख्य क्रांतिकारियों में से एक लाला लाजपत राय की आज जयंती है। इन्हें पंजाब केसरी के नाम से भी जाना जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं लाजपत राय की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें... (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
लाला जी का जन्म आज के ही दिन 28 जनवरी, 1865 को अपने ननिहाल के गांव ढुंढिके (जिला फरीदकोट, पंजाब) में हुआ था। उनके पिता लाला राधाकृष्ण लुधियाना जिले के जगरांव कस्बे के निवासी अग्रवाल वैश्य थे। लाला राधाकृष्ण अध्यापक थे। बचपन से ही लाजपत राय के मन में देश सेवा का बड़ा शौक था और देश को विदेशी शासन से आजाद कराने का प्रण किया। कॉलेज के दिनों में वह देशभक्त शख्सियत और स्वतंत्रता सेनानियों जैसे लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त के संपर्क में आए।
1907 में पूरे पंजाब में उन्होंने खेती से संबंधित आंदोलन का नेतृत्व किया और वर्षों बाद 1926 में जिनेवा में राष्ट्र के श्रम प्रतिनिधि बनकर गए। लाजपत राय ने पढाई छोड़ दी और देश को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने यह महसूस किया कि दुनिया के सामने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को रखना होगा ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों का भी सहयोग मिल सके। इस सिलसिले में वह 1914 में ब्रिटेन गए और फिर 1917 में यूएसए गए। अक्टूबर, 1917 में उन्होंने न्यू यॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे।
1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कलकत्ता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया। जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ा तो उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया। जब गांधीजी ने चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया तो उन्होंने इस फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई। एक बड़ा वाकया उस वक्त घटित हुआ, जब भारतीयों से बात करने आए साइमन कमीशन का विरोध का फैसला गांधी द्वारा लिया गया। साइमन कमीशन जहां भी गया, वहां साइमन गो बैक के नारे बुलंद हुए। 30 अक्टूबर 1928 को जब कमीशन लाहौर पहुंचा, तो लाजपत राय के नेतृत्व में एक दल शांतिपूर्वक साइमन गो बैक के नारे लगाता हुआ अपना विरोध दर्ज करवा रहा था। तभी अंग्रेज पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया और एक युवा अंग्रेज अफसर ने लालाजी के सर पर जोरदार प्रहार किया।
पुलिस ने खासतौर पर लाजपत राय को निशाना बनाया और उनकी छाती पर मारा। इस घटना के बाद लाजपत राय बुरी तरह जख्मी हो गए। 17 नवंबर, 1928 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। लाला जी का कथन था- 'मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी।' उनकी मृत्यु से पूरा देश भड़क उठा। इसी क्रोध के परिणामस्वरूप भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या की और फांसी के फंदे से झूल गए। Read the full article
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जयंती विशेष : लाला लाजपत राय को कहा जाता था 'पंजाब केसरी', जानिए उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें
चैतन्य भारत न्यूज पंजाब के शेर और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले मुख्य क्रांतिकारियों में से एक लाला लाजपत राय की आज जयंती है। इन्हें पंजाब केसरी के नाम से भी जाना जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं लाजपत राय की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें... (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
लाला जी का जन्म आज के ही दिन 28 जनवरी, 1865 को अपने ननिहाल के गांव ढुंढिके (जिला फरीदकोट, पंजाब) में हुआ था। उनके पिता लाला राधाकृष्ण लुधियाना जिले के जगरांव कस्बे के निवासी अग्रवाल वैश्य थे। लाला राधाकृष्ण अध्यापक थे। बचपन से ही लाजपत राय के मन में देश सेवा का बड़ा शौक था और देश को विदेशी शासन से आजाद कराने का प्रण किया। कॉलेज के दिनों में वह देशभक्त शख्सियत और स्वतंत्रता सेनानियों जैसे लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त के संपर्क में आए।
1907 में पूरे पंजाब में उन्होंने खेती से संबंधित आंदोलन का नेतृत्व किया और वर्षों बाद 1926 में जिनेवा में राष्ट्र के श्रम प्रतिनिधि बनकर गए। लाजपत राय ने पढाई छोड़ दी और देश को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने यह महसूस किया कि दुनिया के सामने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को रखना होगा ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों का भी सहयोग मिल सके। इस सिलसिले में वह 1914 में ब्रिटेन गए और फिर 1917 में यूएसए गए। अक्टूबर, 1917 में उन्होंने न्यू यॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे।
1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कलकत्ता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया। जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ा तो उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया। जब गांधीजी ने चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया तो उन्होंने इस फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई। एक बड़ा वाकया उस वक्त घटित हुआ, जब भारतीयों से बात करने आए साइमन कमीशन का विरोध का फैसला गांधी द्वारा लिया गया। साइमन कमीशन जहां भी गया, वहां साइमन गो बैक के नारे बुलंद हुए। 30 अक्टूबर 1928 को जब कमीशन लाहौर पहुंचा, तो लाजपत राय के नेतृत्व में एक दल शांतिपूर्वक साइमन गो बैक के नारे लगाता हुआ अपना विरोध दर्ज करवा रहा था। तभी अंग्रेज पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया और एक युवा अंग्रेज अफसर ने लालाजी के सर पर जोरदार प्रहार किया।
पुलिस ने खासतौर पर लाजपत राय को निशाना बनाया और उनकी छाती पर मारा। इस घटना के बाद लाजपत राय बुरी तरह जख्मी हो गए। 17 नवंबर, 1928 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। लाला जी का कथन था- 'मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी।' उनकी मृत्यु से पूरा देश भड़क उठा। इसी क्रोध के परिणामस्वरूप भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या की और फांसी के फंदे से झूल गए। Read the full article
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पुण्यतिथि विशेष : क्यों लाला लाजपत राय को कहा जाता था 'पंजाब केसरी'? जानिए उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातें
चैतन्य भारत न्यूज महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का निधन आज ही के दिन यानी 17 नवंबर 1928 को हुआ था। इन्हें 'पंजाब केसरी' भी कहा जाता है। वे जब बोलते थे तो केसरी की ही भांति उनका स्वर गूंजता था। जिस प्रकार केसरी की दहाड़ से वन्यजीव डर जाते हैं, उसी प्रकार से लाला लाजपत राय की गर्जना से अंग्रेज सरकार कांप उठती थी। आज हम आपको लाला लाजपत राय के 91वें बलिदान दिवस पर बताने जा रहे हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें जिन्हें बहुत ही कम लोग जानते हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
लाला लाजपत राय से जुड़ी कुछ खास बातें... लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को फिरोजपुर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता मुंशी राधा कृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के महान विद्वान थे। उनकी माता गुलाब देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। 1884 में उनके पिता का रोहतक ट्रांसफर हो गया और वह भी पिता के साथ आ गए। उनकी शादी 1877 में राधा देवी से हुई। बचपन से ही उनके मन में देश सेवा का बड़ा शौक था और देश को विदेशी शासन से आजाद कराने का प्रण किया। कॉलेज के दिनों में वह देशभक्त शख्सियत और स्वतंत्रता सेनानियों जैसे लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त के संपर्क में आए।
लाजपत राय देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी रास्ता अपनाने के हिमायती थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीति के वह खिलाफ थे। बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष और बाल गंगाधर तिलक के साथ वह भी मानते थे कि कांग्रेस की पॉलिसी का नकारात्मक असर पड़ रहा है। लाजपत राय ने वकालत करना छोड़ दिया और देश को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि दुनिया के सामने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को रखना होगा ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों का भी सहयोग मिल सके।
1907 में पूरे पंजाब में उन्होंने खेती से संबंधित आंदोलन का नेतृत्व किया और वर्षों बाद 1926 में जिनेवा में राष्ट्र के श्रम प्रतिनिधि बनकर गए। इसके बाद वह 1914 में ब्रिटेन गए और फिर 1917 में यूएसए गए। अक्टूबर, 1917 में उन्होंने न्यू यॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे। साल 1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कोलकाता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया।
संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1928 में साइमन कमिशन भारत आया। कमिशन में कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं होने के कारण भारतीय नागरिकों का गुस्सा भड़क गया। देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने लगा और लाला लाजपत राय विरोध प्रदर्शन में आगे-आगे थे। इस दौरान पुलिस ने खासतौर पर लाजपत राय को निशाना बनाया और उसकी छाती पर मारा। इस घटना के बाद लाला लाजपत राय बुरी तरह जख्मी हो गए और 17 नवंबर, 1928 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। ये भी पढ़े... जानिए कब और कैसे हुई 14 नवंबर को बाल दिवस मनाने की शुरुआत 9 बार जेल जा चुके थे जवाहर लाल नेहरू, बाल दिवस पर जानिए उनकी जिंदगी से जुड़ी 12 बातें राष्ट्रीय प्रेस दिवस आज, जानिए वर्तमान में पत्रकरिता की वास्तविक स्थिति Read the full article
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